Tuesday, May 7, 2013

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6 comments:

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  2. कई बार पति-पत्नी के संबंधों में इतनी खटास आ जाती है कि रिश्तों का दोबारा उस रूप में बन पाना संभव नहीं जान पड़ता जबकि यह ऐसा रिश्ता है कि इसमें अलग होने की कल्पना भी मुश्किल हो जाती है। ज्योतिष के अनुसार करवाचौथ के मौके पर कुछ उपाय कर रिश्ते को पुनर्जीवित किया जा सकता है।

    पति का प्रेम प्राप्त करने के लिए
    लाल रंग के सूती कपड़े की थैली में पीली सरसों के साथ दो अभिमंत्रित गोमती चक्र लेकर एक पर पति का तथा एक पर अपना नाम केसर से लिखकर थैली में बंद कर अलमारी में रख दें तो दांपत्य जीवन मधुर हो जाएगा।

    पति का ध्यान पराई स्त्री में हो तो
    यदि पति की पराई स्त्री पर आसक्ति हो और उसका सारा ध्यान उसी महिला पर लगा रहता हो तो करवाचौथ या धनतेरस के दिन ब्लू टोपाज रत्न का लॉकेट अवश्य पहनें।

    यदि पराई स्त्री के कारण अपमान होता हो
    किसी दूसरी स्त्री के कारण पति आपका अपमान करता हो तो करवाचौथ पर 300 ग्राम बेसन के लड्डू, 2 आटे की टिक्की, 3 केले व 250 ग्राम भिगोई हुई चने की दाल गाय को खिलाएं। खिलाते वक्त गौ माता से प्रार्थना करें ‘हे मां आप मुझे मनचाहा फल देना और मेरी समस्या दूर करना।’ कुछ ही दिनों में आपके पति सन्मार्ग पर आ जाएंगे। यदि ऐसी गाय जो बछड़े को दूध पिलाती हो उसको खिलाएं तो चमत्कार से कम नहीं। यह उपाय करवाचौथ से शुरू कर पांच गुरुवार तक करें।

    यदि पति के विवाहेत्तर संबंध हों
    यदि पति के विवाहेत्तर संबंध हों तो पीपल के सूखे पत्ते या भोजपत्र के टुकड़े पर कपूर की तीन टिक्की किसी चीनी प्लेट पर रखकर जलाएं। पति के बाहरी संबंध शीघ्र ही छूट जाएंगे। ऐसा सप्ताह में तीन बार करें। करवाचौथ से यह उपाय शुरू कर सकती हैं।

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  3. 1 दंपति को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।

    2 गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें, पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें।

    3 माता बनने की इच्छुक महिला को चाहिए गुरुवार के दिन गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं।

    4 शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।

    5 गुरुवार के दिन पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।

    6 माता बनने की इच्छुक महिला को पारद शिवलिंग का रोजाना दूध से अभिषेक करें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।

    7 हर गुरुवार को भिखारियों को गुड़ का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है ।

    8 पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर स्त्री को पिलाएं यह सिद्ध एंवम परीक्षित प्रयोग है ।

    9 रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाए और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।

    10 श्वेत लक्ष्मणा बूटी की 21 गोली बनाकर उसे नियमपूर्वक गाय के दूध के साथ लेने से संतान सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है ।

    11 उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।

    12 नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।

    13 पहली बार ब्याही गाय के दूध के साथ नागकेसर के चूर्ण का लगातार 7 दिन सेवन करने से संतान पुत्र उत्पन्न होता है ।

    14. सवि का भात और मुंग की दाल खाने से बांझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।

    15. गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।

    16. पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी ।

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  4. रुद्राभिषेक में श्रृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है अतः अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग पदार्थों से अभिषेक करके प्राणी इच्छित फल प्राप्त कर सकता है इनमें दूध से पुत्र प्राप्ति, गन्ने के रस से यश उतम पति/पत्नी की प्राप्ति।

    शहद से कर्ज मुक्ति, कुश एवं जल से रोग मुक्ति, पंचामृत से अष्टलक्ष्मी तथा तीर्थों के जल से मोक्ष की प्राप्ति होती है सभी बारह ज्योतिर्लिंगों पर अभिषेक करने प्राणी जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिव में विलीन हो जाता है।

    पिता दक्ष प्रजापति के घर शरीर त्यागने के पश्च्यात माता सती ने श्रावण में पुनः तपस्या करके शिव को पति रूप प्राप्त करलिया था तभी से शिव को श्रावण का माह अति प्रिय है सम्पूर्ण श्रावणमाह शिव पृथ्वी पर वास करते हैं अतः इस महीने में रुद्राभिषेक करने से शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं।

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  5. रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के 'शिवसंकल्पमस्तु' आदि मंत्रों से 'गणेश' का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण 'विष्णु' का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज 'इंद्र' तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान 'सूर्य' का स्तवन है।

    पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में 'मरुत' और आठवें अध्याय में 'अग्नि' का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है। अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है।

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  6. रुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के पश्चात् प्राणी को फिर किसी भी पूजा की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि- ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, ब्रह्मा विष्णु भी रूद्रमय ही हैं।

    शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, 'रुद्राष्टाध्यायी' है जिसमें आठ अध्यायों में कुल 176 मंत्र हैं, इन्हीं मंत्रो के द्वारा त्रिगुण स्वरुप रूद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है शास्त्रों में भी कहागया गया है कि शिवः अभिषेक प्रियः अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है।

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