Sunday, September 11, 2011

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  1. र्म ग्रंथों से जुड़े कई सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब हम खोज रहे हैं। कई बातें ऐसी हैं जिनके बारे में हम जानते ही नहीं हैं। जीवन मंत्र ने आपके लिए एक ऐसा प्रयास शुरू किया है, जिससे आपको कई सवालों के जवाब तो मिलेंगे ही, आपका सामान्य ज्ञान भी बढ़ेगा।

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  2. कौन थे वो ऋषि जिन्होंने भगवान विष्णु के सीने पर मारी थी लात

    आज तक हम केवल ये ही सुनते आए हैं कि सारे ऋषि-मुनियों ने शक्तियों की प्राप्ति के लिए कभी ब्रह्मा, कभी विष्णु तो कभी शिव की घोर तपस्या की है। इन सब ऋषियों में एक ऋषि ऐसे भी हैं जिन्होंने भगवान विष्णु के सीने पर लात मारी थी। ये ऋषि थे भृगु। जिन्होंने महान ज्योतिषीय ग्रंथ भृगु संहिता की रचना की। इन्होंने भगवान विष्णु की सरलता और धैर्य की परीक्षा लेने के लिए उनके सीने पर लात मारी थी, जब वे शेषनाग की शय्या पर सो रहे थे। भगवान को जैसे ही लात लगी, वे उठ गए और उन्होंने भृगु के पैर पकड़ लिए और कहा कि आपको कहीं चोट तो नहीं आई, क्योंकि मेरी छाती वज्र की है।

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  3. हिन्दू पंचांग का दूसरा महीना 'वैशाख" हमें सरलता और परोपकार की भावना से जीना सीखाता है। इसकी धर्म परंपराएं संवदेनाओं से भी भरी हुई हैं। स्कंद पुराण में देवर्षि नारद ने वैशाख माह का महत्व बताया कि विद्याओं में वेद श्रेष्ठ है, मंत्रों में प्रणव, वृक्षों में कल्पवृक्ष, धेनुओं में कामधेनु, देवताओं में विष्णु, वर्णों में ब्राह्मण, वस्तुओं में प्राण, नदियों में गंगा, तेजों में सूर्य, अस्त्र-शस्त्रों में चक्र, धातुओं में स्वर्ण, वैष्णवों में शिव तथा रत्नों में कौस्तुभमणि श्रेष्ठ है, उसी तरह महीनों में वैशाख मास सर्वोत्तम है।

    देवर्षि नारद ने इस माह की श्रेष्ठता के साथ ही वैशाख माह के धर्म और आचरण का महत्व भी बताया। इसके मुताबिक इस विशेष काल में कुछ ऐसे छोटे-छोटे व आसान धार्मिक काम बताए गए हैं, जिनको दैनिक जीवन में अपनाने से जाने-अनजाने पाप भी नष्ट होते हैं और बिना पूजा-पाठ भी बहुत पुण्य मिलता है। अगली स्लाइड पर जानिए, ऐसे ही कुछ काम और उनसे जुड़ी भावना -

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  4. किसने भगवान गौतम बुद्ध को सबसे पहले विष्णु का नौवां अवतार कहा था

    भगवान गौतम बुद्ध को विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में नौवें क्रम पर रखा जाता है। आश्चर्य की बात ये है कि विष्णु के आठ अवतार बुद्ध के हजारों वर्ष पूर्व के हैं और सारे ग्रंथ भी उसी काल के हैं। तो फिर सवाल ये उठता है कि गौतम बुद्ध को विष्णु का नौवां अवतार कहा किसने? ये बात आदि शंकराचार्य के काल की है। कुछ किताबों में ये उल्लेख मिलता है कि जब आदि शंकराचार्य भारत में फैल रहे बौद्ध धर्म को रोक कर वैदिक धर्म की पुर्स्थापना के लिए प्रयास कर रहे थे। उस समय शंकराचार्य को बौद्धों और कापालिकों का सबसे बड़ा शत्रु माना जाता था लेकिन उन्हीं शंकराचार्य ने एक बार बनारस में गंगा घाट के किनारे एक बरगद के पेड़ को देखकर कहा था कि इस स्थान पर ऐसी शांति है कि मानो भगवान विष्णु के नौवें अवतार गौतम बुद्ध स्वयं ध्यान लगाकर बैठे हों। ये ही पहला संदर्भ है जिसमें गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना गया है।

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  5. इस माह में गर्मी का मौसम होने से जलदान श्रेष्ठ है। इस माह में जलदान करने वाला, प्याऊ लगवाने वाला, कुएं और तालाब बनवाने वाला बहुत पुण्य कमाता है। इसके पीछे संदेश यही है कि कि मानव ऐसे आचरण करें जिससे एक इंसान दूसरे इंसान से भावनाओं और संवेदनाओं से जुड़ा रहे।

    - इंसानों के अलावा अमुक प्राणी और पक्षियों के जीवन के लिए भी जल बहुत जरूरी होता है। इसलिए धर्मलाभ के ये आसान तरीके भी अपनाएं-

    - पक्षियों के लिए जलपात्र रखें।

    - चींटियों के लिए आटे-गुड़ से बनी गोलियां डालें।

    - मछलियों को दाना दे।

    इसके पीछे भाव यह है कि अहं भाव छोड़कर स्वयं के मन को सुकून देने के साथ ही दूसरों को भी सुख और तृप्ति दें। अमुक जीवों को जल और भोजन देना इंसान को प्रकृति से भी जोड़ता है।

    - भूखे को भोजन कराएं, प्यासे को पानी पिलाएं।

    - धूप से तपती जमीन से पैरों को बचाने के लिए पदयात्रियों को जूते-चप्पल या पादुका दान करें।

    - ठंडक के लिए पंखा दान दें।

    इन आसान कामों से धर्म के साथ मानवीय भावनाएं भी फैलती है।

    - इसके अलावा सारे तप, यज्ञ, दान और स्नान के साथ भगवान विष्णु व श्रीकृष्ण की भक्ति, उपासना, कीर्तन, भजन, मंत्र जप के यथाशक्ति उपाय अपनाना भी कामनासिद्धि करने वाले और बड़े ही पुण्यदायी व पापनाशक माने गए हैं।

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  6. आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति में चार ऐसे काम बताए हैं जो कि इंसान खुद ही सीखता है और ये काम करना कोई दूसरा व्यक्ति हमें नहीं सीखा सकता। चाणक्य द्वारा रचित चाणक्य नीति ग्रंथ में ऐसी नीतियां बताई गई हैं जो कि सुखी और श्रेष्ठ जीवन का निर्माण करती हैं। इन नीतियों का पालन करने पर व्यक्ति को कभी भी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता है।

    चाणक्य के अनुसार कोई भी व्यक्ति कितना दानवीर है वह उसके स्वभाव में ही रहता है। किसी भी इंसान की दानशक्ति को कम करना या बढ़ाना बहुत ही मुश्किल कार्य है। यह आदत व्यक्ति के जन्म के साथ ही आती है।

    दूसरी बात, मीठा बोलना। यदि कोई व्यक्ति कड़वा बोलने वाला है तो उसे लाख समझा लो कि वह मीठा बोलें, लेकिन वह अपना स्वभाव लंबे समय तक नहीं बदल सकता है। जो व्यक्ति जन्म से ही कड़वा बोलने वाला है, उसे मीठा बोलना नहीं सिखाया जा सकता। यह आदत भी व्यक्ति के जन्म के साथ ही उसके स्वभाव में शामिल रहती है।

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  7. तीसरी बात, धैर्य धारण करना। धैर्य एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति को हर विषम परिस्थिति से बचाने में सक्षम है। विपरीत परिस्थितियों में धैर्य धारण करके ही बुरे समय को दूर किया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति हर कार्य जल्दबाजी में करता है, बिना विचारे ही त्वरित निर्णय कर लेता है तो बाद में हानि उठाता है। ऐसे लोगों को धैर्य की शिक्षा देना भी समय की बर्बादी ही है, क्योंकि यह गुण भी व्यक्ति के जन्म के साथ ही उसके स्वभाव में रहता है।


    चौथी बात है समय पर उचित या अनुचित निर्णय लेने की क्षमता। किसी भी व्यक्ति को यह नहीं सिखाया जा सकता कि वह किस समय कैसे निर्णय लें। जीवन में हर पल अलग-अलग परिस्थितियां निर्मित होती हैं। ऐसे में सही या गलत का निर्णय व्यक्ति को स्वयं ही करना पड़ता है। जो भी व्यक्ति समय पर उचित और अनुचित निर्णय समझ लेता है, वह जीवन में काफी उपलब्धियां प्राप्त करता है। यह गुण भी व्यक्ति के जन्म के साथ ही आता है और स्वभाव में ही शामिल रहता है।

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  8. 12. किसी सफ़र पर निकलने से पहले या सफल व कुशल यात्रा के लिए-

    प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
    ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

    13. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए-

    नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
    लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

    14. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए-

    जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
    पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

    15. शत्रुता मिटाने के लिए-

    बयरु न कर काहू सन कोई।
    राम प्रताप विषमता खोई॥

    16. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए-

    दैहिक दैविक भौतिक तापा।
    राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

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