Wednesday, September 18, 2013

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तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।
श्राद्ध कर्म व पूजा में गंगाजल, दूध, शहद  कुश और तिल का खास महत्व है। इनका यथोचित उपयोग करना न चूकें।

11 comments:

  1. दीपक और काली मिर्च का उपाय
    जो लोग धन संबंधी परेशानियों का सामना कर रहे हैं वे शाम के समय घर के मुख्य दरवाजे के बाहर सरसों के तेल का दीपक लगाएं। दीपक रास्ते के बीच में न लगाएं, ऐसे स्थान पर लगाएं जहां दीपक पर किसी का पैर लगने की संभावनाएं न हों। दीपक में काली मिर्च के दो दाने अवश्य डालें। यह उपाय प्रतिदिन करें या खास योगों में करें या विशेष मुहूर्त में करें या त्योहारों पर अवश्य करें।

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  2. व्यवसाय में धन लाभ के लिए नींबू और काली मिर्च का उपाय
    रविवार के दिन दोपहर के समय पांच नींबू काटकर व्यवसाय स्थल पर रखें, इनके साथ ही एक मुट्ठी काली मिर्च, एक मुट्टी पीली सरसों भी रखें। अगले दिन जब दुकान या व्यवसाय स्थल खोलें तो सभी सामान लेकर कहीं दूर सुनसान स्थान पर जाएं। सुनसान स्थान पर सभी चीजों गड्ढा खोदकर गाढ़ दें। इस प्रयोग से व्यवसाय चलने लगेगा या अगर किसी की बुरी नजर लगी होगी अथवा टोटका किया होगा तो उसका प्रभाव भी समाप्त हो जाएगा।

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  3. मंगल का ज्योतिष में महत्व और मंगल के लिए उपाय: ज्योतिष में मंगल मुकदमा ऋण, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, भूमि, भवन, मकान और माता का कारण होता है। मंगल देश प्रेम, साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता तथा खतरों से सामना करने की ताकत देता है।
    मंगल के शांति के उपाय: भगवान शिव की स्तुति करें। मूंगे को धारण करें। तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, केशर, कस्तुरी, लाल बैल, मसूर की दाल, भूमि आदि का दान।

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  4. विवाह मानव जीवन का एक पड़ाव है जिसके बाद इंसान अपनी पूर्व की जीवन शैली को छोड़कर एक नये जीवन के सफर पर चलता है। हर स्त्री पुरुष विवाह के समय अपना जीवन एक अन्जान व्यक्ति के साथ सिर्फ यह सोचकर जोड़ता है कि मेरा हम सफर जीवन में सदैव मेरा साथ निभायेगा। मेरे हर सुख-दुख को अपना सुख-दुख समझेगा और जिन्दगी में आने वाली सभी कठिनाइयों का मिलकर मुकाबला करेगा। विवाह को पड़ाव इसलिए कहा गया है क्योंकि विवाह से पूर्व व्यक्ति सिर्फ अपने लिये सोचता है, स्वयं के लिये जीता है किन्तु विवाह के पश्चात वह अपने परिवार के लिये अपनी आने वाली संतानों के लिये जीता है। पर आज विवाह का मतलब ही बदल गया है। रोज हम हमारे समाज में कई मामलों में देखतें हैं कि व्यक्ति ग्रस्त वैवाहिक जीवन के फलस्वरूप हत्या और आत्महत्या जैसा अपराध भी कर देते हैं।
    तलाक, अलगाव, दूसरा विवाह, झगड़ा आये दिन हम देखते हैं। तमाम ऐसी परिस्थितियों के लिये जिम्मेदार हैं हमारी आधुनिक शैली जो समाज को पथभ्रष्ट करती है। टीवी संस्कृति ऐसे धारावाहिक जिनका कोई अर्थ नहीं है, जिनकी तरफ इंसान खिचता चला जा रहा है और आधे से ज्यादा समय वही टीवी देखने में ही गुजारता है। इसका पूरा प्रभाव हमारे समाज, संस्कृति, बच्चों आदि पर पड़ता है। धारावाहिकों की उल्टी-सीधी कहानियों का कोई तत्व नहीं होता पर व्यक्ति अपनी रीयल जिन्दगी में इसको उतार लेता है।
    हमारे देश में 80 प्रतिशत शादियां सिर्फ गुण-मिलान के आधार पर कर दी जाती हैं जो कि किसी भी गली-मुहल्ले में किसी मंदिर में बैठे पूजारी से मिलवा लिये जाते हैं, क्योंकि प्राय: सभी मंदिरों में पूजारी के पास पंचांग होता है और सभी पंचांगों में गुण-मिलान की सारणी होती है, मात्र वो सारणी देखकर जो कि एक आम आदमी भी देख सकता है, पूजारी जी कह देते हैं कि लड़के-लड़की के 28 गुण मिल रहे हैं कोई दोष नहीं हैं आप विवाह कर सकते हैं और मात्र इतने से गुण मिलान मानकर किसी के भाग्य का निर्णय हो जाता है और विवाह हो जाता है। बाद में परिणाम चाहे जो हों यहां मैं यह कहना चाहुंगा कि मेरे उक्त कथन का तात्पर्य यह कतई नहीं हैं कि मैं गुण-मिलान को आवश्यक नहीं मानता या गुण-मिलान का कोई औचित्य नहीं है, बल्कि मेरा भी यह कहना है कि एक सफल विवाह के लिये गुण मिलना भी अत्यन्त आवश्यक हैं किन्तु इसके साथ यह भी कहना है कि सिर्फ गुण-मिलान ही काफी नहीं है बल्कि पूर्ण कुंडली मिलान उससे भी ज्यादा आवश्यक है।
    यहां मैं पाठकों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहुंगा कि प्राय: एक दिन या चौबीस घंटों में एक ही नक्षत्र होता है। मात्र एक यो दो घंटे ही चौबीस घंटों में दूसरा नक्षत्र होता है और गुण-मिलान सिर्फ किस नक्षत्र के किस चरण में जातक का जन्म हुआ है, उसके आधार पर होता है। किन्तु उन चौबीस घंटों में बारह लग्नों की बारह कुंडलियां बनती है। कहने का तात्पर्य यह कि उन चौबीस घंटों में जन्में सभी जातकों की जन्म नक्षत्र और जन्म राशि तो समान होंगी किन्तु उन सभी की कुंडलियां अलग-अलग होगी किसी के लिये गुरु, सूर्य, चंद्रमा, मंगल कारक ग्रह होगें तो किसी के लिये शुक्र, शनि या बुध कोई मांगलिक होगा। किसी की कुंडली में राजयोग तो किसी की कुंडली में दरिद्र योग होगा।
    कोई अल्पायु होगा, कोई मध्यायु होगा, तो कोई दीर्घायु तो किसी कुंडली में उसका वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा होगा तो किसी की कुंडली में बहुत खराब होगा। किसी के द्वि-विवाह, त्रि-विवाह योग होता है तो कोई अविवाहित रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि उन चौबीस घंटों में जन्में सभी जातकों को जन्म नक्षत्र तो एक ही होगा किन्तु सभी की कुंडलियां और उनका भाग्य अलग-अलग होगा। यहां पुन: ध्यान देने योग्य यह बात है कि गुण-मिलान सिर्फ जन्म नक्षत्रों के आधार पर ही होता है ऐसे में यदि किन्ही दो लड़के-लड़की के गुण मिलायेंगे और उनके गुण मिल भी गये किन्तु उनकी कुंडलियों में कोई दोष है तो वह विवाह कतई सफल नहीं हो सकता।
    मेरे व्यक्तिगत ज्योतिषीय अनुभवों में मैंने सैकड़ों ऐसी कुंडलियां देखी हैं जिनके गुण तो 28-28, 30-30 मिल जाते हैं किन्तु उनका वैवाहिक जीवन अतियन्त कष्टप्रद है। उनके तलाक के मुकदमें चल रहे हैं या तलाक हो चुके हैं या उनका जीवन ही खत्म हो चुका है और सैकड़ों ऐसी कुंडलियां देखी गयी हैं। जिसके मात्र 8-8, 10-10 गुण ही मिलते हैं किन्तु फिर भी उनका पारिवारिक वैवाहिक जीवन सुखद उन्नतिपूर्ण चल रहा है।
    अत: यहां मैं पुन: लिखना और कहना चाहुंगा कि मैं गुण मिलान के खिलाफ नहीं हूं गुण मिलान भी आवश्यक है किन्तु मेरा पाठकों से सिर्फ यह निवेदन है कि मात्र गुण मिलान पर ही पूर्ण भरोसा नहीं करें किसी योग्य ज्योतिषी से बालक-बालिका की कुंडलियां मिलवाकर ही उसके विवाह का निर्णय लें क्योंकि गुण-मिलान से ज्यादा आवश्यक है कुंडलियों का मिलना और दोनों की कुंडलियों में उनके वैवाहिक जीवन की स्थिति।
    जरूर पढ़े

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  5. लग्न में केतु शुभ नहीं का होना प्राय: शुभ नहीं समझा जाता। लग्नस्थ केतु जातक को शंकालु, चिंताग्रस्त व भ्रमिष्ट बना देता है। वात व्याधि से भी ऐसे जातक पीड़ित रहते हैं। केतु प्रधान जातक जीवन में कोई लक्ष्य या महत्वाकांक्षा नहीं रखते... 'जैसा चल रहा है, चलने दे' इस मानसिकता के चलते रेस में सदैव पीछे रहना पसंद करते हैं।

    ऐसे व्यक्तियों को हँसना-खिलखिलाना पसंद नहीं होता। अति शुभ सूचना भी वे निराश होकर ही देंगे। हाँ सिंह लग्न, मकर या कुंभ में केतु हो तो वैभव, चल-अचल संपत्ति व पुत्र सुख का कारक बनता है।

    यदि केतु सूर्य के साथ हो तो मन सदैव शंकालु बनाता है, आत्मविश्वास का अभाव देता है। चंद्र-केतु युति पानी से भय व जीवन में संघर्ष दिखाती है। मंगल-केतु य‍ु‍ति होने पर व्यक्ति जीवन में कोई रस नहीं लेता। शुक्र-युति विवाह व काम सुख में बाधा डालती है।


    ND
    गुरु-केतु युति प्रतियुति आध्यात्म में रुचि देती है व सि‍द्धि मार्ग का रास्ता दिखाती है। केतु शुभ दृष्टि में हो तो जातक आध्यात्म-उपासना का मार्ग चुनता है व ईश्वर कृपा का भागी बनता है। बुध के साथ होने पर व्यक्ति मितभाषी होता है।

    विशेष : केतु की प्रतिकूलता को कुत्ते को भोजन देकर, कोढ़ी-अपाहिजों की सेवा करके और गणेश जी की आराधना करके व खूब हँसकर कम किया जा सकता है।

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  6. श्रीशिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करते वक्त विशेष तौर पर नीचे लिखा बीज मंत्र श्रीशिवमहिम्नस्तोत्र के मंत्रों के आगे और पीछे लगाकर बोलें। आगे सीधे व पीछे इस बीज मंत्र को उल्टी तरफ से बोलें, जिसे लोम-विलोम पाठ भी पुकारा जाता है। यह मंत्र है-

    "ऐं ह्रीं श्रीं हों जूं स:"

    - किसी विद्वान ब्राह्मण से इस स्तोत्र का पाठ कराना स्वयं करने से भी अधिक पुण्यदायी और कामनापूर्ति में शीघ्र फलदायी माना गया है।

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  7. प्रदोष तिथि व नृसिंह चतुर्दशी की शाम या रात को किसी भी शिव मंदिर, संभव हो तो किसी शिव ज्योर्तिलिंग की गंध, अक्षत, सफेद फूल, आंकडे़ के फूल, धतूरा व सफेद मिठाइयां चढ़ाकर पूजा के बाद धूप व दीप जलाकर इस मंत्र का मनोकामनाएं पूरी करने व सारे कष्ट दूर करने की प्रार्थना के साथ स्मरण करें-

    शान्तं पद्मासनस्थं शशधरमुकुटं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं।
    शूलं पाशं च खड्गं परसुमभयदं दक्षिणाङ्गे वहन्तम्।
    नागं पाशं च घण्टां डमरुसहितं साङ्कशं वामभागे।
    नानालंकारयुक्तं स्फटिकमणिनिभं पार्वतीशं नमामि।।

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  8. क्या आपका व्यवसाय ठीक नहीं चल रहा है? या फिर कमाई से अधिक खर्च हो जाता है, या नौकरी में तरक्की नहीं मिल रही है? धन आकर खर्च हो जाता हो तो घबराइए बिल्कुल नहीं। तंत्र शास्त्र में ऐसे कई टोटके हैं, जिनसे यह सभी समस्याएं तुरंत ही हल हो सकती हैं। यदि आपके साथ भी यही समस्याएं हैं तो ये टोटका करें-

    टोटका

    किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन सुबह हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्रीगणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे संकट नाशन गणेश स्तोत्र के 11 पाठ करें। इसके बाद इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रुपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं।

    यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहें। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नई थैली बना कर बदलते रहें।

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  9. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसे पितृ दोष है या नही, और यदि है तो किन ग्रहों के कारण। उन ग्रहों के उपाय कर इस दोष के प्रभाव को कुछ कम किया जा सकता है। ज्योतिषीय मत के अनुसार पितृ दोष होने का एक कारण सूर्य की अशुभ ग्रहों के साथ बन रही युति भी होती है। यदि आपकी कुंडली में भी इसी वजह से पितृ दोष की स्थिति बन रही है तो ये उपाय करें-
    उपाय

    1- रविवार के दिन घर में विधि-विधान पूर्वक सूर्य यंत्र स्थापित करें। रोज इस यंत्र का पूजन करें। इस उपाय से पितृ दोष का नकारात्मक प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जाता है।2- रोज तांबे के लोटे से सूर्य को अर्ध्य दें। इसके पहले पानी में लाल फूल, कुंकुम व चावल अवश्य मिलाएं। पितृ दोष निवारण के लिए ये बहुत ही छोटा और अचूक उपाय है।

    3- इस मंत्र का जप रोज करें। मंत्र जप करते समय आपका मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए-
    ऊं आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय,
    धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात।।

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  10. 4- पांच मुखी रूद्राक्ष धारण करें व रोज 12 ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें। बुजुर्गों का सम्मान करें तथा उनकी मदद का प्रयास करें।

    5- रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुड़ खिलाएं। स्वयं घर से निकलते समय गुड़ खाएं।

    6- लग्न के अनुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधिविधान से धारण करें।

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  11. हिन्दू धर्मशास्त्र कहते हैं कि-

    स्तनदायी गर्भधात्री भक्ष्यदात्री गुरुप्रिया।
    अभीष्टदेवपत्नी च पितु: पत्नी च कन्यका।।
    सगर्भजा या भगिनी पुत्रपत्त्नी प्रियाप्रसू:।
    मातुर्माता पितुर्माता सोदरस्य प्रिया तथा।।
    मातु: पितुश्र्च भगिनी मातुलानी तथैव च।
    जनानां वेदविहिता मातर: षोडश स्मृता:।।

    इन बातों के मुताबिक 16 स्त्रियां मनुष्य के लिए माताएं या माता की तरह हैं और उनके लिए कभी भी गलत भाव व सोच से व्यवहार नहीं करना चाहिए-

    1. स्तन या दूध पिलाने वाली
    2. गर्भधारण करने वाली
    3. भोजन देने वाली,
    4. गुरुमाता यानी गुरु की पत्नी
    5. इष्टदेव की पत्नी
    6. पिता की पत्नी यानी सौतेली मां
    7. पितृकन्या यानी सौतेली बहिन
    8. सगी बहन
    9. पुत्रवधू या बहू
    10. सास
    11. नानी
    12. दादी
    13. भाई की पत्नी
    14. मौसी
    15. बुआ और
    16. मामी।

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