acharya astro: acharya astro: acharya astro:: acharya astro: acharya शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वहीं, पुराणों में शिव और विष्णु में भेद...
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश के निमित्त गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 20 मार्च, गुरुवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीगणेश का विधि-विधान से पूजन किया जाए, तो हर मनोकामना पूरी हो जाती है। गणेश चतुर्थी का व्रत इस विधि से करें-
व्रत विधि - सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि काम जल्दी ही निपटा लें। - दोपहर के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। - संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतये नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। - गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें। - पूजा में श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। - इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर ससम्मान विदा करें। शाम के समय स्वयं भोजन ग्रहण करें। संभव हो तो उपवास करें।
इस व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर भगवान श्रीगणेश की कृपा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।
किसी गृहस्थ को सबसे पहले आलस्य छोड़कर ब्रह्ममुहूर्त या सूर्योदय के पहले जागकर धर्म व अर्थ दो बातों का ध्यान रख आगे की दिनचर्या नियत करना चाहिए।
इसी कड़ी में दूसरा काम शरीर और मन की शुद्धि को दरिद्रता दूर करने के लिए अहम माना गया है। शरीर की पवित्रता के लिए पहले दांतों को साफ कर स्नान करना चाहिए। सुबह स्नान का यह महत्व यही बताया गया है कि चूंकि शरीर से कई रूपों में दूषित पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं, जो रोगी बनाते हैं, रोग मन को भी कमजोर करता है, इसलिए स्नान कर शरीर की पवित्रता से रोग, शोक व दु:ख दूर होते हैं। गंगा स्नान हो तो वह सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
स्नान के जरिए शरीर को पवित्र किया जा सकता, किंतु मन की शुद्धि के लिए दैनिक जीवन में कुछ खास बातों का ध्यान रखना व अपनाना भी जरूरी बताया गया है, जानिए मन की पवित्रता के लिए वह तीसरा काम, जो किसी भी इंसान को सुबह करने से नहीं चूकना चाहिए-
मंदिर से अधिक पुण्यदायी तीर्थ भूमि में किए देवकर्म होते हैं।
- तीर्थ भूमि से भी ज्यादा शुभ फल किसी नदी के तट पर किए देवकर्म देते हैं।
- नदियों में भी सप्तगंगा तीर्थ यानी सात नदियों गंगा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, सिंधु, सरयू और नर्मदा के किनारे किया देव कर्म अधिक शुभ फलदायी हैं।
- पवित्र नदियों से ज्यादा समुद्र के किनारे किया गया देवकर्म पुण्यदायी है।
- वहीं, सबसे ज्यादा शुभ और पुण्यदायी फल पवर्त शिखर पर किए देवकर्मों का मिलता है। इस संदर्भ में रावण द्वारा किए गए तप से पाई शिव कृपा भी उल्लेखनीय है।
- इन सब स्थानों के बाद शिवपुराण में मन को पावन बनाने का छुपा संदेश देते हुए लिखा गया है कि जहां मन लग जाए वही देवकर्मों से जल्द व ज्यादा पुण्य फल पाने के लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान है।
यदि आपने किसी को उधार दिया और वह दे नहीं रहा है या कहीं पर आपकी पैतृक धन-संपत्ति विवाद के कारण फंसी पड़ी है तो आप निश्चिंत रहें। हम आपके लिए लाएं हैं लाल किताब के सरलतम और अचूक उपाय।रतिदिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरें और उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें। इसके बाद उक्त जल को सूर्य को अर्पित करें। अर्पित करते वक्त 'ॐ आदित्याय नमः' का जाप करते हुए सूर्य भगवान से धन वापिसी की प्रार्थना करें।
गुरु का आसरा, जिससे सारे अभावों और दु:खों से छुटकारा मिलता है।
दरअसल, गुरु, ज्ञान के जरिए ही सारी कमियों को दूर कर मन व जीवन को समृद्ध बना देते हैं। यहीं नहीं, शास्त्रों के मुताबिक गुरु से मिला यही बल ही ईश्वर कृपा को संभव बना देता है, इसलिए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप भी बताया गया है। गुरुवार गुरु भक्ति से ही सारी मुराद पूरी कर ज़िंदगी में घुली अशांति और कलह को दूर करने का शुभ दिन है।
गुरु पूजा परंपरा में ही शास्त्रों में देवगुरु बृहस्पति की उपासना के भी बड़े ही आसान व अचूक उपाय उजागर हैं। इसी कड़ी में केले के पेड़ के नजदीक यह उपाय भी सारी मन्नतें जल्द पूरी करने वाला माना गया है। अगली स्लाइड्स पर जानिए गुरु पूजा का महत्व व यह खास उपाय-
शास्त्रों के मुताबिक ज्ञान के देवता गुरु बृहस्पति हैं। बृहस्पति पूजा न केवल वैवाहिक दोष, बल्कि हर तरह से दक्षता, समृद्धि व शांति देने वाली मानी गई है। गुरु की प्रसन्नता के लिए इस दिन खास तौर पर विशेष रूप से केले के वृक्ष की पूजा का महत्व है। केले का वृक्ष विष्णु का रूप भी माना गया है।
गुरुवार को अगर विशेष पीली सामग्रियां चढ़ाने के साथ विशेष विष्णु मंत्र का ध्यान कर गुरु बृहस्पति की पूजा की जाए तो यह भरपूर सुख व सौभाग्य पाने की कामनासिद्धि का अचूक उपाय माना गया है।
- गुरुवार को केले के वृक्ष के नीचे या देवालय में केले के पत्तों के बीच एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति व विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। पीली गाय के दूध से बृहस्पति व विष्णु को स्नान कराएं। पीले फूल, पीला चंदन, गुड़, चने की दाल, पीले वस्त्र दोनों देवताओं को अर्पित करें। भोग में पीले पकवान या पीले फल अर्पित करें।
शास्त्रों के मुताबिक ज्ञान के देवता गुरु बृहस्पति हैं। बृहस्पति पूजा न केवल वैवाहिक दोष, बल्कि हर तरह से दक्षता, समृद्धि व शांति देने वाली मानी गई है। गुरु की प्रसन्नता के लिए इस दिन खास तौर पर विशेष रूप से केले के वृक्ष की पूजा का महत्व है। केले का वृक्ष विष्णु का रूप भी माना गया है।
गुरुवार को अगर विशेष पीली सामग्रियां चढ़ाने के साथ विशेष विष्णु मंत्र का ध्यान कर गुरु बृहस्पति की पूजा की जाए तो यह भरपूर सुख व सौभाग्य पाने की कामनासिद्धि का अचूक उपाय माना गया है।
- गुरुवार को केले के वृक्ष के नीचे या देवालय में केले के पत्तों के बीच एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति व विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। पीली गाय के दूध से बृहस्पति व विष्णु को स्नान कराएं। पीले फूल, पीला चंदन, गुड़, चने की दाल, पीले वस्त्र दोनों देवताओं को अर्पित करें। भोग में पीले पकवान या पीले फल अर्पित करें।
देवगुरु व जगतपालक भगवान विष्णु की पूजा के बाद गुरु मंत्र के स्मरण के साथ नीचे लिखे विष्णु मंत्र स्तोत्र के विशेष मंत्रों का ध्यान कर विवाह, धन, सुख की कामना करें व अंत में बृहस्पति-विष्णु की आरती घी के दीप से ही करें-
बृहस्पति मंत्र- यह मंत्र कम से कम 108 बार या इससे अधिक बार स्मरण करना कामनासिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
1. संतो का सत्संग- संत यानी सज्जन या सद्गुणी की संगति। अच्छे लोगों का साथ बोल, विचार व कर्म को सही दिशा देकर सुख व सफलता देता हैं।
2. ईश्वर के कथा-प्रसंग में प्रेम– धर्मग्रंथों मे उजागर देवताओं के चरित्र और आदर्शों का स्मरण और जीवन में उतारने का संकल्प व यथासंभव प्रयास करना।
3. अहं का त्याग- अभिमान, दंभ न रखना, क्योंकि ऐसा भाव भगवान के स्मरण में बाधा बन जाता है। व्यावहारिक तौर पर भी अहंकार विनम्रता के साथ सारे गुणों पर हावी होकर पतन की ओर ले जाता है।
4. कपटरहित होना- छल न करने या धोखा न देने का भाव। मन, वचन व कर्म से इतने दृढ़ बने कि किसी भी स्थिति में संकल्पों व लक्ष्यों को पूरा कर सकें। बीच में संकल्प छोड़ना न केवल स्वयं को छलकर आत्मविश्वास को कमजोर करने वाला कृत्य है, बल्कि दूसरों की नजर में अविश्वास का पात्र बनाने वाला भी।
5. ईश्वर के मंत्र जप- भगवान में गहरी आस्था, जो इरादों को मजबूत बनाए रखती है।
6. इन्द्रियों का निग्रह– चरित्र, स्वभाव और कर्म को साफ रखना।
7. प्रकृति की हर रचना में ईश्वर देखना- प्रकृति व दूसरों के प्रति संवेदना और भावना रखना। भेदभाव, ऊंच-नीच से परे रहना।
8. संतोष रखना और दोष दर्शन से बचना- जो कुछ आपके पास है उसका सुख उठाएं। अपने अभाव या सुख की लालसा में दूसरों के दोष या बुराई न खोजें। इससे सुख में भी आप, सिर्फ मन में वैचारिक दोष होने से दु:खी ही रहेंगे। जबकि संतोष और सद्भाव से ईश्वर और धर्म में मन लगता है।
9. ईश्वर में विश्वास- भगवान में अटूट विश्वास रख दु:ख हो या सुख हर स्थिति में समान रहना। स्वभाव को सरल रखना यानी किसी के लिए बुरी भावना न रखना।
धार्मिक नजरिए से स्वभाव, विचार और व्यवहार में इस तरह के गुणों को लाने से न केवल ईश्वर की कृपा मिलती है, बल्कि सांसारिक सुख-सुविधाओं का वास्तविक आनंद भी मिलता है।
"हमारे ’ज्ञान-यज्ञ’ इस युग का सबसे महान ऐतिहासिक अभियान है I इसमें परिवार के प्रत्येक परिजन को प्रतिस्पर्धापूर्वक आत्मयोग प्रदान करना चाहिए I छुट-पुट अनेक पूण्य परमार्थो की बात सोचने की अपेक्षा युग की महती आवश्यकता को पूर्ण करने वाले इस एक ही अभियान को हमें एकाग्रता पूर्वक पूर्ण करना चाहिए I संस्कृति सीता को अज्ञान असुर के चंगुल से छुडाना हम रींछ वानरों का एक ही लक्ष और एक ही कार्यक्रम होना चाहिए I अनेक दिशाओं में न भटकें, अपनी समस्त श्रद्धा एक ही बिन्दु पर केन्द्रीत करें I हनुमान की तरह ’राम काज कीन्हे बिना, मोहि कहाँ विश्राम" की एक ही रट लगानी चाहिए और अपने को तिल तिल जलाकर संसार में सदज्ञान का प्रकाश करने वाले इस ज्ञान दीप को ’ज्ञान-यज्ञ’ को प्रदिप्त रखने में बडे़ से बडा़ त्याग, बलिदान करनें में संकोच नहीं करना चाहिए I
विपत्तिर्यों से छुटकारा पाने और उज्ज्वल भविष्य को मूर्तिमान करने में धर्मतन्त्र की सहायता लिये बिना काम किसी भी प्रकार नहीं चल सकता। बहस शब्द की नहीं, विवेचना, तथ्य, की है। किसी को धर्म अध्यात्म से चिढ़ हो तो उनको सन्तुष्ट कराने वाले शब्द दूसरे शब्द कोष में ढूँढ निकाले जा सकते हैं। पर करना यह होगा कि व्यक्ति एवं समाज की अनेकाने दिशाधाराओं को प्रभावित करने वाले अन्त:करण की उत्कृष्टता को सम्पदा से सुसम्पन्न बनाया जाय। मानवी संस्कृति के अवमूल्यन का अन्त किया जाय।
सब दोस्तों मित्रो गुरुओ को महा शिवरात्री की बहुत सुभ कामना है जी भोले बाबा सबकी मनोकामना पूरी करे ॐ नमः शिवाय ,धनीराम ज्योतिषाचार्य
ReplyDeleteकृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश के निमित्त गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 20 मार्च, गुरुवार को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीगणेश का विधि-विधान से पूजन किया जाए, तो हर मनोकामना पूरी हो जाती है। गणेश चतुर्थी का व्रत इस विधि से करें-
ReplyDeleteव्रत विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि काम जल्दी ही निपटा लें।
- दोपहर के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतये नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
- गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें।
- पूजा में श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें।
- इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर ससम्मान विदा करें। शाम के समय स्वयं भोजन ग्रहण करें। संभव हो तो उपवास करें।
इस व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर भगवान श्रीगणेश की कृपा से सभी मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।
किसी गृहस्थ को सबसे पहले आलस्य छोड़कर ब्रह्ममुहूर्त या सूर्योदय के पहले जागकर धर्म व अर्थ दो बातों का ध्यान रख आगे की दिनचर्या नियत करना चाहिए।
ReplyDeleteइसी कड़ी में दूसरा काम शरीर और मन की शुद्धि को दरिद्रता दूर करने के लिए अहम माना गया है। शरीर की पवित्रता के लिए पहले दांतों को साफ कर स्नान करना चाहिए। सुबह स्नान का यह महत्व यही बताया गया है कि चूंकि शरीर से कई रूपों में दूषित पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं, जो रोगी बनाते हैं, रोग मन को भी कमजोर करता है, इसलिए स्नान कर शरीर की पवित्रता से रोग, शोक व दु:ख दूर होते हैं। गंगा स्नान हो तो वह सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
स्नान के जरिए शरीर को पवित्र किया जा सकता, किंतु मन की शुद्धि के लिए दैनिक जीवन में कुछ खास बातों का ध्यान रखना व अपनाना भी जरूरी बताया गया है, जानिए मन की पवित्रता के लिए वह तीसरा काम, जो किसी भी इंसान को सुबह करने से नहीं चूकना चाहिए-
मंदिर से अधिक पुण्यदायी तीर्थ भूमि में किए देवकर्म होते हैं।
ReplyDelete- तीर्थ भूमि से भी ज्यादा शुभ फल किसी नदी के तट पर किए देवकर्म देते हैं।
- नदियों में भी सप्तगंगा तीर्थ यानी सात नदियों गंगा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, सिंधु, सरयू और नर्मदा के किनारे किया देव कर्म अधिक शुभ फलदायी हैं।
- पवित्र नदियों से ज्यादा समुद्र के किनारे किया गया देवकर्म पुण्यदायी है।
- वहीं, सबसे ज्यादा शुभ और पुण्यदायी फल पवर्त शिखर पर किए देवकर्मों का मिलता है। इस संदर्भ में रावण द्वारा किए गए तप से पाई शिव कृपा भी उल्लेखनीय है।
- इन सब स्थानों के बाद शिवपुराण में मन को पावन बनाने का छुपा संदेश देते हुए लिखा गया है कि जहां मन लग जाए वही देवकर्मों से जल्द व ज्यादा पुण्य फल पाने के लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान है।
शिवपुराण के मुताबिक अपने ही घर में पवित्रता के साथ किया गया देव कर्म शुभ फल देते हैं।
ReplyDelete- गोशाला में किया गया कर्म घर से भी दस गुना फलदायी होता है।
- किसी पवित्र सरोवर के किनारे किया देव कर्म गोशाला से दस गुना ज्यादा पुण्य देता है।
- तुलसी, बिल्वपत्र या पीपल वृक्ष की जड़ के नजदीक देव कर्म जलाशय से दस गुना ज्यादा शुभ फल देते हैं।
- इन वृक्षों के तले किए देव कर्म से अधिक फल मंदिर में किए देवकर्म देते हैं।
यदि आपने किसी को उधार दिया और वह दे नहीं रहा है या कहीं पर आपकी पैतृक धन-संपत्ति विवाद के कारण फंसी पड़ी है तो आप निश्चिंत रहें। हम आपके लिए लाएं हैं लाल किताब के सरलतम और अचूक उपाय।रतिदिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होने के पश्चात एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरें और उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें। इसके बाद उक्त जल को सूर्य को अर्पित करें।
ReplyDeleteअर्पित करते वक्त 'ॐ आदित्याय नमः' का जाप करते हुए सूर्य भगवान से धन वापिसी की प्रार्थना करें।
जय श्री राम
ReplyDeleteजाने रामायण की किन चौपाइयों से दूर होती हैं
घर या काम-काज की कौन-कौन सी परेशानियां?
1. सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए-
हनुमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।
2. नौकरी पाने के लिए -
बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।
धन-दौलत, सम्पत्ति पाने के लिए -
जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।
3. पुत्र पाने के लिए -
प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।
4. शादी के लिए -
तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।
मांडवी श्रुतकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥
5. खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए -
गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।
6. पढ़ाई या परीक्षा में कामयाबी के लिए-
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥
7. जहर उतारने के लिए -
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
8. नजर उतारने के लिए -
स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।
9. हनुमानजी की कृपा के लिए -
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।
10. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए -
जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।
11. सफल व कुशल यात्रा के लिए -
प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
12. शत्रुता मिटाने के लिए -
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥
13. सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए -
प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥
14. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए -
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥
15. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए -
नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।
गुरु का आसरा, जिससे सारे अभावों और दु:खों से छुटकारा मिलता है।
ReplyDeleteदरअसल, गुरु, ज्ञान के जरिए ही सारी कमियों को दूर कर मन व जीवन को समृद्ध बना देते हैं। यहीं नहीं, शास्त्रों के मुताबिक गुरु से मिला यही बल ही ईश्वर कृपा को संभव बना देता है, इसलिए गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप भी बताया गया है। गुरुवार गुरु भक्ति से ही सारी मुराद पूरी कर ज़िंदगी में घुली अशांति और कलह को दूर करने का शुभ दिन है।
गुरु पूजा परंपरा में ही शास्त्रों में देवगुरु बृहस्पति की उपासना के भी बड़े ही आसान व अचूक उपाय उजागर हैं। इसी कड़ी में केले के पेड़ के नजदीक यह उपाय भी सारी मन्नतें जल्द पूरी करने वाला माना गया है। अगली स्लाइड्स पर जानिए गुरु पूजा का महत्व व यह खास उपाय-
शास्त्रों के मुताबिक ज्ञान के देवता गुरु बृहस्पति हैं। बृहस्पति पूजा न केवल वैवाहिक दोष, बल्कि हर तरह से दक्षता, समृद्धि व शांति देने वाली मानी गई है। गुरु की प्रसन्नता के लिए इस दिन खास तौर पर विशेष रूप से केले के वृक्ष की पूजा का महत्व है। केले का वृक्ष विष्णु का रूप भी माना गया है।
ReplyDeleteगुरुवार को अगर विशेष पीली सामग्रियां चढ़ाने के साथ विशेष विष्णु मंत्र का ध्यान कर गुरु बृहस्पति की पूजा की जाए तो यह भरपूर सुख व सौभाग्य पाने की कामनासिद्धि का अचूक उपाय माना गया है।
- गुरुवार को केले के वृक्ष के नीचे या देवालय में केले के पत्तों के बीच एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति व विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। पीली गाय के दूध से बृहस्पति व विष्णु को स्नान कराएं। पीले फूल, पीला चंदन, गुड़, चने की दाल, पीले वस्त्र दोनों देवताओं को अर्पित करें। भोग में पीले पकवान या पीले फल अर्पित करें।
शास्त्रों के मुताबिक ज्ञान के देवता गुरु बृहस्पति हैं। बृहस्पति पूजा न केवल वैवाहिक दोष, बल्कि हर तरह से दक्षता, समृद्धि व शांति देने वाली मानी गई है। गुरु की प्रसन्नता के लिए इस दिन खास तौर पर विशेष रूप से केले के वृक्ष की पूजा का महत्व है। केले का वृक्ष विष्णु का रूप भी माना गया है।
ReplyDeleteगुरुवार को अगर विशेष पीली सामग्रियां चढ़ाने के साथ विशेष विष्णु मंत्र का ध्यान कर गुरु बृहस्पति की पूजा की जाए तो यह भरपूर सुख व सौभाग्य पाने की कामनासिद्धि का अचूक उपाय माना गया है।
- गुरुवार को केले के वृक्ष के नीचे या देवालय में केले के पत्तों के बीच एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर बृहस्पति व विष्णु की मूर्ति स्थापित करें। पीली गाय के दूध से बृहस्पति व विष्णु को स्नान कराएं। पीले फूल, पीला चंदन, गुड़, चने की दाल, पीले वस्त्र दोनों देवताओं को अर्पित करें। भोग में पीले पकवान या पीले फल अर्पित करें।
देवगुरु व जगतपालक भगवान विष्णु की पूजा के बाद गुरु मंत्र के स्मरण के साथ नीचे लिखे विष्णु मंत्र स्तोत्र के विशेष मंत्रों का ध्यान कर विवाह, धन, सुख की कामना करें व अंत में बृहस्पति-विष्णु की आरती घी के दीप से ही करें-
ReplyDeleteबृहस्पति मंत्र- यह मंत्र कम से कम 108 बार या इससे अधिक बार स्मरण करना कामनासिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है।
ॐ बृं बृहस्पतये नम:
विष्णु मंत्र स्तोत्र -
श्रीनिवासाय देवाय नम: श्रीपतये नम:।
श्रीधराय सशाङ्र्गाय श्रीप्रदाय नमो नम:।।
श्रीवल्लभाय शान्ताय श्रीमते च नमो नम:।
श्रीपर्वतनिवासाय नम: श्रेयस्कराय च।।
श्रेयसां पतये चैव ह्याश्रयाय नमो नम:।
नम: श्रेय:स्वरूपाय श्रीकराय नमो नम:।।
शरण्याय वरेण्याय नमो भूयो नमो नम:।
स्त्रोत्रं कृत्वा नमस्मृत्य देवदेवं विसर्जयेत्।।
इति रुद्र समाख्याता पूजा विष्णोर्महात्मन:।
य: करोति महाभक्त्या स याति परमं पदम्।।
1. संतो का सत्संग- संत यानी सज्जन या सद्गुणी की संगति। अच्छे लोगों का साथ बोल, विचार व कर्म को सही दिशा देकर सुख व सफलता देता हैं।
ReplyDelete2. ईश्वर के कथा-प्रसंग में प्रेम– धर्मग्रंथों मे उजागर देवताओं के चरित्र और आदर्शों का स्मरण और जीवन में उतारने का संकल्प व यथासंभव प्रयास करना।
3. अहं का त्याग- अभिमान, दंभ न रखना, क्योंकि ऐसा भाव भगवान के स्मरण में बाधा बन जाता है। व्यावहारिक तौर पर भी अहंकार विनम्रता के साथ सारे गुणों पर हावी होकर पतन की ओर ले जाता है।
4. कपटरहित होना- छल न करने या धोखा न देने का भाव। मन, वचन व कर्म से इतने दृढ़ बने कि किसी भी स्थिति में संकल्पों व लक्ष्यों को पूरा कर सकें। बीच में संकल्प छोड़ना न केवल स्वयं को छलकर आत्मविश्वास को कमजोर करने वाला कृत्य है, बल्कि दूसरों की नजर में अविश्वास का पात्र बनाने वाला भी।
5. ईश्वर के मंत्र जप- भगवान में गहरी आस्था, जो इरादों को मजबूत बनाए रखती है।
6. इन्द्रियों का निग्रह– चरित्र, स्वभाव और कर्म को साफ रखना।
ReplyDelete7. प्रकृति की हर रचना में ईश्वर देखना- प्रकृति व दूसरों के प्रति संवेदना और भावना रखना। भेदभाव, ऊंच-नीच से परे रहना।
8. संतोष रखना और दोष दर्शन से बचना- जो कुछ आपके पास है उसका सुख उठाएं। अपने अभाव या सुख की लालसा में दूसरों के दोष या बुराई न खोजें। इससे सुख में भी आप, सिर्फ मन में वैचारिक दोष होने से दु:खी ही रहेंगे। जबकि संतोष और सद्भाव से ईश्वर और धर्म में मन लगता है।
9. ईश्वर में विश्वास- भगवान में अटूट विश्वास रख दु:ख हो या सुख हर स्थिति में समान रहना। स्वभाव को सरल रखना यानी किसी के लिए बुरी भावना न रखना।
धार्मिक नजरिए से स्वभाव, विचार और व्यवहार में इस तरह के गुणों को लाने से न केवल ईश्वर की कृपा मिलती है, बल्कि सांसारिक सुख-सुविधाओं का वास्तविक आनंद भी मिलता है।
ज्ञान-यज्ञ
ReplyDelete"हमारे ’ज्ञान-यज्ञ’
इस युग का सबसे महान ऐतिहासिक अभियान है I इसमें
परिवार के प्रत्येक परिजन को प्रतिस्पर्धापूर्वक आत्मयोग प्रदान करना चाहिए I
छुट-पुट अनेक पूण्य परमार्थो की बात
सोचने की अपेक्षा युग की महती आवश्यकता को पूर्ण करने वाले इस एक ही अभियान को हमें
एकाग्रता पूर्वक पूर्ण करना चाहिए I संस्कृति सीता को अज्ञान
असुर के चंगुल से छुडाना हम रींछ वानरों का एक ही लक्ष और एक ही कार्यक्रम होना
चाहिए I अनेक दिशाओं में न भटकें, अपनी
समस्त श्रद्धा एक ही बिन्दु पर केन्द्रीत करें I हनुमान
की तरह ’राम काज कीन्हे बिना, मोहि
कहाँ विश्राम" की एक ही रट लगानी चाहिए और अपने को तिल
तिल जलाकर संसार में सदज्ञान का प्रकाश करने वाले इस ज्ञान दीप को ’ज्ञान-यज्ञ’ को प्रदिप्त रखने में बडे़ से
बडा़ त्याग, बलिदान करनें में संकोच नहीं करना चाहिए I
विपत्तिर्यों से छुटकारा पाने और उज्ज्वल भविष्य को मूर्तिमान करने
ReplyDeleteमें धर्मतन्त्र की सहायता लिये बिना काम किसी भी प्रकार नहीं चल सकता। बहस शब्द की
नहीं, विवेचना, तथ्य, की है। किसी को धर्म
अध्यात्म से चिढ़ हो तो उनको सन्तुष्ट कराने वाले शब्द दूसरे शब्द कोष में ढूँढ
निकाले जा सकते हैं। पर करना यह होगा कि व्यक्ति एवं समाज की अनेकाने दिशाधाराओं
को प्रभावित करने वाले अन्त:करण की उत्कृष्टता को सम्पदा से सुसम्पन्न बनाया जाय।
मानवी संस्कृति के अवमूल्यन का अन्त किया जाय।