Tuesday, December 24, 2013

http://www.totalbhakti.com/Articles/अन्नपुर्णा माता/1033.html

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33 comments:

  1. जन्म कुंडली के चौथे व पाँचवें भाव से जानें विषय—
    (ज्योतिष अनुसार शिक्षा के योग))—–

    दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही ‘कौन-सा विषय चुनें’ यह यक्ष प्रश्न बच्चों के सामने आ खड़ा होता है। माता-पिता को अपनी महत्वाकांक्षाओं को परे रखकर एक नजर कुंडली पर भी मार लेनी चाहिए। बच्चे किस विषय में सिद्धहस्त होंगे, यह ग्रह स्थिति स्पष्ट बताती है।
    आज जीवन के हर मोड़ पर आम आदमी स्वयं को खोया हुआ महसूस करता है। विशेष रूप से वह विद्यार्थी जिसने हाल ही में दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसके सामने सबसे बड़ा संकट यह रहता है कि वह कौन से विषय का चयन करे जो उसके लिए लाभदायक हो। एक अनुभवी ज्योतिषी आपकी अच्छी मदद कर सकता है। जन्मपत्रिका में पंचम भाव से शिक्षा तथा नवम भाव से उच्च शिक्षा तथा भाग्य के बारे में विचार किया जाता है। सबसे पहले जातक की कुंडली में पंचम भाव तथा उसका स्वामी कौन है तथा पंचम भाव पर किन-किन ग्रहों की दृष्टि है, ये ग्रह शुभ-अशुभ है अथवा मित्र-शत्रु, अधिमित्र हैं विचार करना चाहिए। दूसरी बात नवम भाव एवं उसका स्वामी, नवम भाव स्थित ग्रह, नवम भाव पर ग्रह दृष्टि आदि शुभाशुभ का जानना। तीसरी बात जातक का सुदर्शन चंद्र स्थित श्रेष्ठ लग्न के दशम भाव का स्वामी नवांश कुंडली में किस राशि में किन परिस्थितियों में स्थित है ज्ञात करना, तीसरी स्थिति से जातक की आय एवं आय के स्त्रोत का ज्ञान होगा। जन्मकुंडली में जो सर्वाधिक प्रभावी ग्रह होता है सामान्यत: व्यक्ति उसी ग्रह से संबंधित कार्य-व्यवसाय करता है। यदि हमें कार्य व्यवसाय के बारे में जानकारी मिल जाती है तो शिक्षा भी उसी से संबंधित होगी। जैसे

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  2. यदि जन्म कुंडली में गुरु सर्वाधिक प्रभावी है तो जातक को चिकित्सा, लेखन, शिक्षा, खाद्य पदार्थ के द्वारा आय होगी। यदि जातक को चिकित्सक योग है तो जातक जीव विज्ञान विषय लेकर चिकित्सक बनेगा। यदि पत्रिका में गुरु कमजोर है तो जातक आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, रैकी या इनके समकक्ष ज्ञान प्राप्त करेगा। श्रेष्ठ गुरु होने पर एमबीबीएस की पढ़ाई करेगा। यदि गुरु के साथ मंगल का श्रेष्ठ योग बन रहा है तो शल्य चिकित्सक, यदि सूर्य से योग बन रहा है तो नेत्र चिकित्सा या सोनोग्राफी या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से संबंधित विषय की शिक्षा, यदि शुक्र है तो महिला रोग विशेषज्ञ, बुध है तो मनोरोग तथा राहु है तो हड्डी रोग विशेषज्ञ बनेगा। चंद्र की श्रेष्ठ स्थिति में किसी विषय पर गहन अध्ययन करेगा। लेखक, कवि, श्रेष्ठ विचारक बनेगा तथा बीए, एमए कर श्रेष्ठ चिंतनशील, योजनाकार होगा। सूर्य के प्रबल होने पर इलेक्ट्रॉनिक से संबंधित शिक्षा ग्रहण करेगा। यदि मंगल अनुकूल है तो ऐसा जातक कला, भूमि, भवन, निर्माण, खदान, केमिकल आदि से संबंधित विषय शिक्षा ग्रहण करेगा। बुध प्रधान कुंडली वाले जातक बैंक, बीमा, कमीशन, वित्तीय संस्थान, वाणी से संबंधित कार्य, ज्योतिष-वैद्य, शिक्षक, वकील, सलाहकार, चार्टड अकाउंटेंट, इंजीनियर, लेखपाल आदि का कार्य करते हैं। अत: ऐसे जातक को साइंस, मैथ्स की शिक्षा ग्रहण करना चाहिए किंतु यदि बुध कमजोर हो तो वाणिज्य विषय लेना चाहिए। बुध की श्रेष्ठ स्थिति में चार्टड अकाउंटेंट की शिक्षा ग्रहण करना चाहिए। शुक्र की अनुकूलता से जातक साइंस की शिक्षा ग्रहण करेगा। शुक्र की अधिक अनुकूलता होने से जातक फैशन, सुगंधित व्यवसाय, श्रेष्ठ कलाकार तथा रत्नों से संबंधित विषय को चुनता है। शनि ग्रह प्रबंध, लौह तत्व, तेल, मशीनरी आदि विषय का कारक है। अत: ऐसे जातकों की शिक्षा में व्यवधान के साथ पूर्ण होती है। शनि के साथ बुध होने पर जातक एमबीए फाइनेंस में करेगा। यदि शनि के साथ मंगल भी कारक है तो सेना-पुलिस अथवा शौर्य से संबंधित विभाग में अधिकारी बनेगा। राहु की प्रधानता कुटिल ज्ञान को दर्शाती है। केतु – तेजी मंदी तथा अचानक आय देने वाले कार्य शेयर, तेजी मंदी के बाजार, सट्टा, प्रतियोगी क्वीज, लॉटरी आदि। कभी-कभी एक ही ग्रह विभिन्न विषयों के सूचक होते हैं तो ऐसी स्थिति में जातक एवं ज्योतिषी दोनों ही अनिर्णय की स्थिति में आ जाते हैं। उसका सही अनुमान लगाना ज्योतिषी का कार्य है। ऐसी स्थिति में देश, काल एवं पात्र को देखकर निर्णय लेना उचित रहेगा। जैसे नवांश में बुध का स्वराशि होना ज्योतिष, वैद्य, वकील, सलाहकार का सूचक है। अब यहां जातक के पिता का व्यवसाय (स्वयं की रुचि) जिस विषय की होगी, वह उसी विषय का अध्ययन कर धनार्जन करेगा।
    सामान्यत: वैदिक ग्रंथों के अनुसार सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरू और शनि इन सात ग्रहों का अपना अलग-अलग क्षेत्र और प्रभाव है। लेकिन, जब इन ग्रहों का आपसी योग बनता है तो क्षेत्र और प्रभाव बदल जाते हैं। इन ग्रहों के साथ राहु और केतु मिल जाये, तो कार्य में बाधा उत्पन्न करते हैं। व्यवहारिक भाशा में कहें तो टांग अड़ाते हैं। जन्मकुंडली के मुख्य कारक ग्रह ही कुंडली के प्रेसिडेंट होते हैं। यानी जो भी कुछ होगा वह उन ग्रहों की देखरेख में होगा, अत: यह ध्यान में जरूर रखें कि इस कुंडली में कारक ग्रह कौन से हैं। अगर कारक ग्रह कमजोर हैं या अस्त है, वृद्धावस्था में हैं तो उसके बाद वाले ग्रहों का असर आरंभ हो जायेगा। मंगल, शुक्र और सूर्य, शनि करियर की दशा तय करते हैं। बुध और गुरु उस क्षेत्र की बुद्धि और शिक्षा प्रदान करते हैं। यद्यपि क्षेत्र इनका भी निश्चित है, लेकिन इन पर जिम्मेदारियां ज्यादा रहती हैं। इसलिये कुंडली में इनकी शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज हम किसी एक या दो ग्रहों के करियर पर प्रभाव की चर्चा करेंगे। जन्मकुंडली में वैसे तो सभी बारह भाव एक दूसरे को पूरक हैं, किंतु पराक्रम, ज्ञान, कर्म और लाभ इनमें महत्?वपूर्ण है। इसके साथ ही इन सभी भावों का प्रभाव नवम भाग्य भाव से तय होता है। अत: यह परम भाव है।

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  3. सूर्य और मंगल यानी सोच और साहस के परम शुभ ग्रह माने गये हैं। सूर्य को कुंडली की आत्मा कहा गया है। और शोधपरक, आविष्कारक, रचनात्मक क्षेत्र से संबंधित कार्यों में इनका खास दखल रहता है। मशीनरी अथवा वैज्ञानिक कार्यों की सफलता सूर्यदेव के बगैर संभव ही नहीं है। जब यही सूक्ष्म कार्य मानव शरीर से जुड़ जाता है तो शुक्र का रोल आरंभ हो जाता है, क्योंकि मेंडिकल एस्ट्रोजॉली में शुक्र तंत्रिका तंत्र विज्ञान के कारक हैं। यानी शुक्र को न्यूरोलॉजी और गुप्त रोग का ज्ञान देने वाला माना गया है। सजीव में शुक्र का रोल अधिक रहता है और निर्जीव में सूर्य का रोल अधिक रहता है। यदि आपकी कुंडली में ये दोनों ग्रह एक साथ हैं और दक्ष अंश की दूरी पर हैं तो ह मानकर चलें कि इनका फल आपके ऊपर अधिक घटित होगा। तीसरे भाव, पांचवें भाव, दशम भाव और एकादश भाव में इनकी स्थिति आपके कुशल वैज्ञानिक, आविश्कारक, डॉक्टर, संगीतज्ञ, फैशन डिजाइनर, हार्ट अथवा न्यूरो सर्जन बना सकती है। इन दोनों की युति में शुक्र बलवान हों, तो स्त्री रोग विशेषज्ञ बना सकते हैं। साथ ही ललित कला और फिल्म उद्योग में संगीतकार आदि बन सकते हैं। लेकिन, जब इन्हीं सूर्य के साथ मंगल मिले हैं, तो पुलिस, सेना, इंजीनियर, अग्निशमन विभाग, कृषि कार्य, जमीन-जायदाद, ठेकेदारी, सर्जरी, खेल, राजनीति तथा अन्य प्रबंधन कार्य के क्षेत्र में अपना भाग्य आजमा सकते हैं। यदि इनकी युति पराक्रम भाव में दशम अथवा एकादश भाव में हो इंजीनियरिंग, आईआईटी वैज्ञानिक बनने के साथ-साथ अच्छे खिलाड़ी और प्रशासक बनना लगभग सुनिश्चित कर देती है। अधिकतर वैज्ञानिक, खिलाडिय़ों और प्रभावशाली व्यक्तियों की कुंडली में यह युति और योग देखे जा सकते हैं। आज के प्रोफेशनल युग में इनका प्रभाव और फल चरम पर रहता है। इसलिये यह मानकर चलें कि यदि कुंडली में मंगल, सूर्य तीसरे दसवे या ग्याहरवें भाव में हो तो अन्य ग्रहों के द्वारा बने हयु योगों को ध्यान में रखकर उपरोक्त कहे गये क्षेत्रों में अपना भाग्य आजमाना चाहिये। यदि इनके साथ बुध भी जुड़ जायें तो एजुकेशन, बैंक और बीमा क्षेत्र में किस्मत आजमा सकते हैं। लेकिन, इसके लिये कुंडली में बुध ओर गुरु की स्थिति पर ध्यान देने की जरूरत है। वास्तुकला तथा अन्य नक्काशी वाले क्षेत्रों के दरवाजे भी आपके लिये खुल जायेंगे, इसलिये कुंडली में अगर सूर्य, मंगल की प्रधानता हो तो इनके कारक अथवा संबंधित क्षेत्र अति लाभदायक और कामयाबी दिलाने वाले रहेंगे, इसलिये जो बेहतर और आपकी प्रकृति को सूट करे वही क्षेत्र चुनें।

    * विषय के चुनाव हेतु कुंडली के चौथे व पाँचवें भाव का प्रमुख रूप से अध्ययन करना चाहिए। साथ ही लग्न यानी व्यक्ति के स्वभाव का ‍भी विवेचन कर लेना चाहिए।

    ग्रहानुसार विषय :—–
    * यदि चौथे व पाँचवें भाव पर हो।

    1सूर्य का प्रभाव – आर्ट्‍स, विज्ञान

    2 मंगल का प्रभाव – जीव विज्ञान

    3. चंद्रमा का प्रभाव – ट्रेवलिंग, टूरिज्म,

    4. बृहस्पति का प्रभाव – किसी विषय में अध्यापन की डिग्री

    5 बुध का प्रभाव – कॉमर्स, कम्प्यूटर

    6 शुक्र का प्रभाव- मीडिया, मास कम्युनिकेशन, गायन, वादन

    7 शनि का प्रभाव- तकनीकी क्षेत्र, गणित

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  4. इन मुख्‍य ग्रहों के अलावा ग्रहों की युति-प्रतियुति का भी अध्ययन करें, तभी किसी निष्कर्ष पर पहुँचें। (जैसे शुक्र और बुध हो तो होम्योपैथी या आयुर्वेद पढ़ाएँ) ताकि चुना गया विषय बच्चे को आगे सफलता दिला सके।

    कैसी होगी शिक्षा..??? किस दिशा में और किस क्षेत्र में होगी शिक्षा ..???
    वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति उच्च शिक्षा पाना चाहता है अथवा अपनी सन्तान को उच्च शिक्षा दिलाना चाहता है जिससे वह भविष्य में अच्छी नौकरी या व्यापार करके सुख व समस्या रहित जीवन जी सके। दूसरे शब्दों में यह कह लीजिए कि प्रत्येक व्यक्ति सन्तान को उच्च शिक्षा दिलाकर उसका अच्छा कैरियर बनाना चाहता है। उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए कुण्डली का चतुर्थ, पंचम एवं द्वितीय भाव में स्थित ग्रह व उनके स्वामियों की स्थिति, पंचमेश, चतुर्थेश, द्वितीयेश के साथ शुभ व अशुभ ग्रहों की स्थिति, दृष्टि व युति, दशमेश व दशम भाव की स्थिति के साथ-साथ चतुर्विशांश कुंडली, दशमांश कुंडली तथा कारंकाश कुंडली का अध्ययन शिक्षा, वाणी, बुद्धि तथा तर्कशक्ति आदि के बारे में बताता है।

    शिक्षा कैसी होगी, जातक भविष्य में किस दिशा में, क्षेत्र में, अपनी आजीविका प्राप्त करेगा व उसके सुखद भविष्य के लिए कौन-कौन क्षेत्र अच्छे रहेंगे, इन प्रश्नों के उत्तर एक ज्योतिषी जन्मकुंडली का विश्लेषण करके बता सकता है।
    कुण्डली के चतुर्थ भाव से विद्या, पंचम भाव से बुद्धि, द्वितीय भाव से वाणी, आठवें भाव से सामान्य ज्ञान एवं गुप्त विद्या तथा दशम भाव से विद्या जनित यश व आजीविका का भान होता है। इन सभी भावों में स्थित ग्रह, इनके स्वामी ग्रह आदि के विश्लेषण से जातक की शिक्षा व विद्या का क्षेत्र कैसा रहेगा तथा भविष्य कैसा होगा यह जाना जाता है।
    शिक्षा प्राप्ति के कुछ अनुभूत ज्योतिष योगों की चर्चा करते हैं-

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  5. 1-यदि गुरु केंद्र(1,4,7व 10) में हो तो जातक बुद्धिमान होता है। गुरु उच्च अथवा स्वग्रही हो तो और अच्छा फल देता है।
    2-पंचम भाव में सूर्य सिंह राशि में हो तो जातक मनोनुकूल शिक्षा पूर्ण करता है।
    3-बुध पंचम में हो तथा पंचमेश बली होकर केंद्र में स्थित हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक बुद्धिमान होता है।
    4-पंचमेश उच्च का केंद्र या त्रिकोण में स्थित हो तो जातक पूर्ण शिक्षा पाता है।
    5-गुरु शुक्र व बुध यदि केंद्र व त्रिकोण में एक साथ या अलग-अलग स्थित हों तथा गुरु उच्च, स्वग्रही या मित्र क्षेत्र में हो तो सरस्वती योग बनता है। ऐसे जातक पर सरस्वती की विशेष कृपा होती है।
    6-दशमेश व पंचमेश का स्थान परिवर्तन अर्थात् दशम भाव का स्वामी पंचम में तथा पंचम भाव का स्वामी दशम में हो तो व्यक्ति अच्छी शिक्षा प्राप्त करता है।
    7-बुध, चंद्रमा व मंगल पर शुक्र या गुरु की दृष्टि हो तो भी जातक बड़ा बुद्धिमान होता है।
    8-पंचम भाव में गुरु हो तो जातक अनेक शास्त्रों का ज्ञाता पुत्र व मित्रों से समृद्ध, बुद्धिमान व धैर्यवान होता है।
    9-लग्नेश यदि 12वें या 8वें भाव में हो तो जातक सिद्धि प्राप्त करता है और वह विद्या विशारद होता है।
    10-चतुर्थेश सप्तम व लग्न में हो तो जातक बहुत सी विद्या का ज्ञाता होता है।
    11-चंद्रमा से गुरु त्रिकोण में हो, बुध से मंगल त्रिकोण में और गुरु से बुध एकादश स्थान में हो तो जातक अच्छी शिक्षा प्राप्त करके बहुत सा धन अर्जन करता है।
    12-शिक्षा प्राइज़ में सूर्य चंद्र, बुध, गुरु, मंगल व शनि ग्रह की विशेष भूमिका है। इसके अतिरिक्त लग्नेश, पंचमेश व नवमेश तथा इन भावों का विश्लेषण भी उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु करना चाहिए। लग्नेश निर्बल हुआ तो बुद्धि व भाग्य व्यर्थ हो जाएंगे, यदि पंचम भाव निर्बल हुआ तो शरीर और भाग्य क्या करेंगे और यदि भाग्य कमजोर हुआ तो शरीर व बुद्धि व्यर्थ होंगे।

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  6. 13-पंचमेश शुभ ग्रह हो और पंचमेश का नवांशपति भी शत्रु ग्रहों से युत व दृष्टा न हो तो उच्च शिक्षा प्राप्त होती है।
    14-गुरु केंद्र या त्रिकोण में होकर शनि, राहु, केतु से युत या दृष्ट हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त कर विद्वान बनता है।
    15-गुरु द्वितीयेश होकर बलवान सूर्य व शुक्र से दृष्ट हो तो जातक व्याकरण शास्त्र का ज्ञाता होता है।
    16-पंचम भाव व पंचमेश बुध व मंगल के प्रभाव में हो तो जातक व्?यापार संबंधी उच्?च शिक्षा प्राप्त करता है।
    17-धन भाव में मंगल शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या धनभाव में चंद्र, मंगल की युति हो व बुध द्वारा दृष्ट हो तो जातक गणित विषय का ज्ञाता होता है।
    18-यदि द्वितीयेश से 8वें, 12वें शुभ ग्रह हों तो जातक प्रखर विद्वान होता है।
    19-लग्नेश, पंचमेश, नवमेश में परस्?पर युति या दृष्टि संबंध हो तो जातक उच्च शिक्षा प्राप्त करता है।
    20-गुरु व चंद्रमा एक-दूसरे के घर में हो तो चंद्रमा पर गुरु की दृष्टि हो तो सरस्वती योग होता है, जिससे जातक साहित्य, कला व काव्य में उच्च शिक्षा पाकर लोकप्रिय होता है।
    21- गुरु लग्न में हो तथा चंद्र से तृतीय सूर्य, मंगल, बुध हो तो जातक विज्ञान विषय में उच्च शिक्षा पाकर वैज्ञानिक बनता है।
    22-यदि मेष लग्न हो और पंचम में बुध तथा सूर्य पर गुरु की दृष्टि पड़े तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    23-यदि वृष लग्न हो और उसमें सूर्य बुध की युति लग्न, चतुर्थ या अष्टम में हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    24-यदि मिथुन लग्न हो और लग्न में शनि, तृतीय में शुक्र तथा नवम में गुरु स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    25-यदि कर्क लग्न हो और उसमें लग्न में बुध, गुरु व शुक्र की युति हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    26-यदि सिंह लग्न हो और मंगल-गुरु की युति चतुर्थ, पंचम या एकादश भाव में हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    27-यदि कन्या लग्न हो और उसमें एकादश भाव में गुरु, चंद्र तथा नवम भाव में बुध स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    28-यदि तुला लग्न हो और अष्टम में शनि गुरु द्वारा दृष्ट हो तथा नवम में बुध स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    29-यदि वृश्चिक लग्न हो और उसमें बुध सूर्य हो तथा नवम भाव में गुरु चंद्र स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    30- यदि धनु लग्न हो और उसमें गुरु हो तथा पंचम में मंगल व चंद्र स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    31- यदि मकर लग्न हो और उसमें शुक्र-मंगल की युति हो तथा पंचम भाव में चंद्र गुरु द्वारा दृष्ट हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    32- यदि कुंभ लग्न और एकादश भाव में चंद्र तथा षष्ठ भाव में गुरु स्थित हो तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    33- यदि मीन लग्न हो और उसमें गुरु षष्ठ, शुक्र अष्ठम, शनि नवम तथा मंगल-चंद्र एकादश भाव में हों तो जातक उच्च शिक्षा पाता है।
    (आप अपनी कुण्डली में उक्त योगों को विचारकर शिक्षा संबंधी विश्लेषण कर सकते हैं।)

    बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही शिक्षा दें..( अंक शास्त्र अनुसार)—-

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  7. अंक ज्योतिष में मूलांक जन्म तारीख के अनुसार 1 से 9 माने जाते हैं।

    प्रत्येक अंक व्यक्ति का मूल स्वभाव दिखाता है। बच्चे का मूल स्वभाव जानकर ही माता-पिता उसे सही तालीम दे सकते हैं। आइए, जानें कैसा है आपके बच्चे का स्वभाव।

    मूलांक 1 (1, 10 19, 28) : ये बच्चे क्रोधी, जिद्‍दी व अहंकारी होते हैं। अच्छे प्रशासनिक अधिकारी बनते हैं। ये तर्क के बच्चे हैं अत: डाँट-डपट नहीं सहेंगे। इन्हें तर्क से नहीं, प्यार से समझाएँ।

    * मूलांक 2 (2, 11, 20, 29) : ये शांत, समझदार, भावुक व होशियार होते हैं। माता-पिता की सेवा करते हैं। जरा सा तेज बोलना इन्हें ठेस पहुँचाता है। इनसे शांति व समझदारी से बात करें।

    * मूलांक 3 (3, 12, 21,30 ) : ये समझदार, ज्ञानी व घमंडी होते हैं। अच्‍छे सलाहकार बनते हैं। इन्हें समझाने के लिए पर्याप्त कारण व ज्ञान होना जरूरी है।

    * मूलांक 4 (4, 13, 22) : बेपरवाह, खिलंदड़े व कारस्तानी होते हैं। रिस्क लेना इनका स्वभाव होता है। इन्हें अनुशासन में रखना जरूरी है। ये व्यसनाधीन हो सकते हैं।

    * मूलांक 5 (5, 14, 23) : बुद्धिमान, शांत, आशावादी होते हैं। रिसर्च के कामों में रूचि लेते हैं। इनके साथ धैर्य से व शांति से बातचीत करें।

    * मूलांक 6 (6, 15, 24) : हँसमुख, शौकीन मिजाज व कलाप्रेमी होते हैं। ‘खाओ पियो ‍मस्त रहो’ पर जीते हैं। इन्हें सही संस्कार व सही दिशा-निर्देश जरूरी है।

    * मूलांक 7 (7, 16, 25) : भावुक, निराशावादी, तनिक स्वार्थी मगर तीव्र बुद्धि के होते हैं। व्यसनाधीन जल्दी होते हैं। कलाकार हो सकते हैं। इन्हें कड़े अनुशासन व सही मार्गदर्शन की जरूरत होती है।

    * मूलांक 8 (8, 17, 26) : तनिक स्वार्थी, भावुक, अति व्यावहारिक, मेहनती व व्यापार बुद्धि वाले होते हैं। जीवन में देर से गति आती है। इन्हें सतत सहयोग व अच्छे साथियों की जरूरत होती है।

    * मूलांक 9 (9, 18, 27) : ऊर्जावान, शैतान व तीव्र बुद्धि के विद्रोही होते हैं। माता-पिता से अधिक बनती नहीं है। प्रशासन में कुशल होते हैं। इनकी ऊर्जा को सही दिशा देना व इन्हें समझना जरूरी होता है।

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  8. व्यवसाय में सफलता का सटीक अध्ययन—–

    शिक्षा पूर्ण होने के पश्चात अक्सर युवाओं के मन में यह दुविधा रहती है कि नौकरी या व्यवसाय में से उनके लिए उचित क्या होगा। इस संबंध में जन्मकुंडली का सटीक अध्ययन सही दिशा चुनने में सहायक हो सकता है।
    * नौकरी या व्यवसाय देखने के लिए सर्वप्रथम कुंडली में दशम, लग्न और सप्तम स्थान के अधिपति तथा उन भावों में स्थित ग्रहों को देखा जाता है।
    * लग्न या सप्तम स्थान बलवान होने पर स्वतंत्र व्यवसाय में सफलता का योग बनता है।
    * प्रायः लग्न राशि, चंद्र राशि और दशम भाव में स्थित ग्रहों के बल के तुलनात्मक अध्ययन द्वारा व्यवसाय का निर्धारण करना उचित रहता है।
    * प्रायः अग्नि तत्व वाली राशि (मेष, सिंह, धनु) के जातकों को बुद्धि और मानसिक कौशल संबंधी व्यवसाय जैसे कोचिंग कक्षाएँ, कन्सल्टेंसी, लेखन, ज्योतिष आदि में सफलता मिलती है।
    * पृथ्वी तत्व वाली राशि (वृष, कन्या, मकर) के जातकों को शारीरिक क्षमता वाले व्यवसाय जैसे कृषि, भवन निर्माण, राजनीति आदि में सफलता मिलती है।
    जल तत्व वाली राशि (कर्क, वृश्चिक, मीन) के जातक प्रायः व्यवसाय बदलते रहते हैं। इन्हें द्रव, स्प्रिट, तेल, जहाज से भ्रमण, दुग्ध व्यवसाय आदि में सफलता मिल सकती है।
    * वायु तत्व (मिथुन, तुला, कुंभ) प्रधान व्यक्ति साहित्य, परामर्शदाता, कलाविद, प्रकाशन, लेखन, रिपोर्टर, मार्केटिंग आदि के कामों में अपना हुनर दिखा सकते हैं।
    * दशम स्थान में सूर्य हो : पैतृक व्यवसाय (औषधि, ठेकेदारी, सोने का व्यवसाय, वस्त्रों का क्रय-विक्रय आदि) से उन्नति होती है। ये जातक प्रायः सरकारी नौकरी में अच्छे पद पर जाते हैं।
    * चन्द्र होने पर : जातक मातृ कुल का व्यवसाय या माता के धन से (आभूषण, मोती, खेती, वस्त्र आदि) व्यवसाय करता है।
    * मंगल होने पर : भाइयों के साथ पार्टनरशिप (बिजली के उपकरण, अस्त्र-शस्त्र, आतिशबाजी, वकालत, फौजदारी) में व्यवसाय लाभ देता है। ये व्यक्ति सेना, पुलिस में भी सफल होते हैं।
    * बुध होने पर : मित्रों के साथ व्यवसाय लाभ देता है। लेखक, कवि, ज्योतिषी, पुरोहित, चित्रकला, भाषणकला संबंधी कार्य में लाभ होता है।
    * बृहस्पति होने पर : भाई-बहनों के साथ व्यवसाय में लाभ, इतिहासकार, प्रोफेसर, धर्मोपदेशक, जज, व्याख्यानकर्ता आदि कार्यों में लाभ होता है।
    * शुक्र होने पर : पत्नी से धन लाभ, व्यवसाय में सहयोग। जौहरी का कार्य, भोजन, होटल संबंधी कार्य, आभूषण, पुष्प विक्रय आदि कामों में लाभ होता है।
    शनि :- शनि अगर दसवें भाव में स्वग्रही यानी अपनी ही राशि का हो तो 36वें साल के बाद फायदा होता है। ऐसे जातक अधिकांश नौकरी ही करते हैं। अधिकतर सिविल या मैकेनिकल इंजीनियरिंग में जाते है। लेकिन अगर दूसरी राशि या शत्रु राशि का हो तो बेहद तकलीफों के बाद सफलता मिलती है। अधिकांश मामलों में कम स्तर के मशीनरी कामकाज से व्यक्ति जुदा हो जाता है।
    राहू :- अचानक लॉटरी से, सट्‍टे से या शेयर से व्यक्ति को लाभ मिलता है। ऐसे जातक राजनीति में विशेष रूप सफल रहते हैं।
    केतु :- केतु की दशम में स्थिति संदिग्ध मानी जाती है किंतु अगर साथ में अच्छे ग्रह हो तो उसी ग्रह के अनुसार फल मिलता है लेकिन अकेला होने या पाप प्रभाव में होने पर के‍तु व्यक्ति को करियर के क्षेत्र में डूबो देता है।

    बहरहाल हम बात कर रहे हैं व्यक्ति के रोजगार(Profession) की. चाहे लाल-किताब हो अथवा वैदिक ज्योतिष, अधिकतर ज्योतिषी व्यक्ति के कार्यक्षेत्र, रोजगार के प्रश्न पर विचार करने के लिए जन्मकुंडली के दशम भाव (कर्म भाव) को महत्व देते हैं. वो समझते हैं कि जो ग्रह दशम स्थान में स्थित हो या जो दशम स्थान का अधिपति हो, वो इन्सान की आजीविका को बतलाता है. अब उनके अनुसार यह दशम स्थान सभी लग्नों से हो सकता है——
    जन्मलग्न से, सूर्यलग्न से या फिर चन्द्रलग्न से, जिसके दशम में स्थित ग्रहों के स्वभाव-गुण आदि से मनुष्य की आजीविका का पता चलता है. जबकि ऎसा बिल्कुल भी नहीं होता. ये पूरी तरह से गलत थ्योरी है.

    दशम स्थान को ज्योतिष में कर्म भाव कहा जाता है, जो कि दैवी विकासात्मक योजना (Evolutionary Plan) का एक अंग है.यहाँ कर्म से तात्पर्य इन्सान के नैतिक अथवा अनैतिक, अच्छे-बुरे, पाप-पुण्य आदि कर्मों से है. दूसरे शब्दों में इन कर्मों का सम्बन्ध धर्म से, भावना से तथा उनकी सही अथवा गलत प्रकृति से है न कि पैसा कमाने के निमित किए जाने वाले कर्म(रोजगार) से.

    आइये जाने धन प्राप्ति/शिक्षा/रोजगार के कुछ खास/महत्वपूर्ण करक योग—

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  9. इंजीनियरिंग शिक्षा के कुछ योग –

    जन्म, नवांश या चन्द्रलग्न से मंगल चतुर्थ स्थान में हो या चतुर्थेश मंगल की राशि में स्थित हो।
    मंगल की चर्तुथ भाव या चतुर्थेश पर दृष्टि हो अथवा चतुर्थेश के साथ युति हो।
    मंगल और बुध का पारस्परिक परिवर्तन योग हो अर्थात मंगल बुध की राशि में हो अथवा बुध मंगल की राशि में हो।

    चिकित्सक (डाक्टर )शिक्षा के कुछ योग –

    जैमिनि सूत्र के अनुसार चिकित्सा से सम्बन्धित कार्यो में बुध और शुक्र का विशेष महत्व हैं। ’’शुक्रन्दौ शुक्रदृष्टो रसवादी (1/2/86)’’ – यदि कारकांश में चन्द्रमा हो और उस पर शुक्र की दृष्टि हो तो रसायनशास्त्र को जानने वाला होता हैं। ’’ बुध दृष्टे भिषक ’’ (1/2/87) – यदि कारकांश में चन्द्रमा हो और उस पर बुध की दृष्टि हो तो वैद्य होता हैं।
    जातक परिजात (अ.15/44) के अनुसार यदि लग्न या चन्द्र से दशम स्थान का स्वामी सूर्य के नवांश में हो तो जातक औषध या दवा से धन कमाता हैं। (अ.15/58) के अनुसार यदि चन्द्रमा से दशम में शुक्र – शनि हो तो वैद्य होता हैं।
    वृहज्जातक (अ.10/2) के अनुसार लग्न, चन्द्र और सूर्य से दशम स्थान का स्वामी जिस नवांश में हो उसका स्वामी सूर्य हो तो जातक को औषध से धनप्राप्ति होती हैं। उत्तर कालामृत (अ. 5 श्लो. 6 व 18) से भी इसकी पुष्टि होती हैं।
    फलदीपिका (5/2) के अनुसार सूर्य औषधि या औषधि सम्बन्धी कार्यो से आजीविका का सूचक हैं। यदि दशम भाव में हो तो जातक लक्ष्मीवान, बुद्धिमान और यशस्वी होता हैं (8/4) ज्योतिष के आधुनिक ग्रन्थों में अधिकांश ने चिकित्सा को सूर्य के अधिकार क्षेत्र में माना हैं और अन्य ग्रहों के योग से चिकित्सा – शिक्षा अथवा व्यवसाय के ग्रहयोग इस प्रकार बतलाए हैं -
    सूर्य एवं गुरू — फिजीशियन
    सूर्य एवं बुध — परामर्श देने वाला फिजीशियन
    सूर्य एवं मंगल — फिजीशियन
    सूर्य एवं शुक्र एवं गुरू — मेटेर्निटी
    सूर्य,शुक्र,मंगल, शनि—- वेनेरल
    सूर्य एवं शनि —– हड्डी/दांत सम्बन्धी
    सूर्य एवंशुक्र , बुध —- कान, नाक, गला
    सूर्य एवं शुक्र $ राहु , यूरेनस —- एक्सरे
    सूर्य एवं युरेनस —- शोध चिकित्सा
    सूर्य एवं चन्द्र , बुध — उदर चिकित्सा, पाचनतन्त्र
    सूर्य एवंचन्द्र , गुरू — हर्निया , एपेण्डिक्स
    सूर्य एवं शनि (चतुर्थ कारक) — टी0 बी0, अस्थमा
    सूर्य एवं शनि (पंचम कारक) —- फिजीशियन

    न्यायाधीश बनने के कुछ योग – —

    यदि जन्मकुण्डली के किसी भाव में बुध-गुरू अथवा राहु-बुध की युति हो।
    यदि गुरू, शुक्र एवं धनेश तीनों अपने मूल त्रिकोण अथवा उच्च राशि में केन्द्रस्थ अथवा त्रिकोणस्थ हो तथा सूर्य मंगल द्वारा दृष्ट हो तो जातक न्यायशास्त्र का ज्ञाता होता हैं।
    यदि गुरू पंचमेश अथवा स्वराशि का हो और शनि व बुध द्वारा दृष्ट हो।
    यदि लग्न, द्वितीय, तृतीय, नवम्, एकादश अथवा केन्द्र में वृश्चिक अथवा मकर राशि का शनि हो अथवा नवम भाव पर गुरू-चन्द्र की परस्पर दृष्टि हो।
    यदि शनि से सप्तम में गुरू हो।
    यदि सूर्य आत्मकारक ग्रह के साथ राशि अथवा नवमांश में हो।
    यदि सप्तमेश नवम भाव में हो तथा नवमेश सप्तम भाव में हो।
    यदि तृतीयेश, षष्ठेश, गुरू तथा दशम भाव – ये चारों बलवान हो।

    शिक्षक के कुछ योग –

    यदि चन्द्रलग्न एवं जन्मलग्न से पंचमेश बुध, गुरू तथा शुक्र के साथ लग्न चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो।
    यदि चतुर्थेश चतुर्थ भाव में हो अथवा चतुर्थ भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो अथवा चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह स्थित हो।
    यदि पंचमेश स्वगृही, मित्रगृही, उच्चराशिस्थ अथवा बली होकर चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित हो और दशमेश का एकादशेश से सम्बन्ध हो।
    यदि पंचम भाव में सूर्य-मंगल की युति हो अथवा राहु, शनि, शुक्र में से कोई ग्रह पंचम भाव में बैठा हो और उस पर पापग्रह की दृष्टि भी हो तो जातक अंग्रेजी भाषा का विद्वान अथवा अध्यापक होता हैं।
    यदि पंचमेश बुध, शुक्र से युक्त अथवा दृष्ट हो अथवा पंचमेश जिस भाव में हो उस भाव के स्वामी पर शुभग्रह की दृष्टि हो अथवा उसके दोनों ओर शुभग्रह बैठें हो।
    यदि बुध पंचम भाव में अपनी स्वराशि अथवा उच्चराशि में स्थित हो।
    यदि द्वितीय भाव में गुरू या उच्चस्थ सूर्य, बुध अथवा शनि हो तो जातक विद्वान एवं सुवक्ता होता हैं।
    यदि बृहस्पति ग्रह चन्द्र, बुध अथवा शुक्र के साथ शुभ स्थान में स्थित होकर पंचम एवं दशम भाव से सम्बन्धित हो।
    सूर्य,चन्द्र और लग्न मिथुन,कन्या या धन राशि में हो व नवम तथा पंचम भाव शुभ व बली ग्रहों से युक्त हो ।

    ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में सरस्वती योग शारदा योग, कलानिधि योग, चामर योग, भास्कर योग, मत्स्य योग आदि विशिष्ट योगों का उल्लेख हैं। अगर जातक की कुण्डली में इनमे से कोई योग हो तो वह विद्वान अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, यशस्वी एवं धनी होता है।

    जानिए राशियों से जुड़े नौकरी और व्यवसाय—

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  10. 1-मेष: – पुलिस अथवा सेना की नौकरी, इंजीनियंिरंग, फौजदारी का वकील, सर्जन, ड्राइविंग, घड़ी का कार्य, रेडियो व टी.वी. का निर्माण या मरम्मत, विद्युत का सामान, कम्प्यूटर, जौहरी, अग्नि सम्बन्धी कार्य, मेकेनिक, ईंटों का भट्टा, किसी फैक्ट्री में कार्य, भवन निर्माण सामग्री, धातु व खनिज सम्बन्धी कार्य, नाई, दर्जी, बेकरी का कार्य, फायरमेन, कारपेन्टर।
    2-वृषभ: – सौन्दर्य प्रसाधन, हीरा उद्योग, शेयर ब्रोकर, बैंक कर्मचारी, नर्सरी, खेती, संगीत, नाटक, फिल्म या टी.वी. कलाकार, पेन्टर, केमिस्ट, ड्रेस डिजाइनर, कृषि अथवा राजस्व विभाग की नौकरी, महिला विभाग, सेलटेक्स या आयकर विभाग की नौकरी, ब्याज से धन कमाने का कार्य, सजावट तथा विलासिता की वस्तुओं का निर्माण अथवा व्यापार, चित्रकारी, कशीदाकारी, कलात्मक वस्तुओं सम्बन्धी कार्य, फैशन, कीमती पत्थरों या धातु का व्यापार, होटल व बर्फ सम्बन्धी कारोबार।
    3-मिथुन: – पुस्तकालय अध्यक्ष, लेखाकार, इंजीनियर, टेलिफोन आपरेटर, सेल्समेन, आढ़तिया, शेयर ब्रोकर, दलाल, सम्पादक, संवाददाता, अध्यापक, दुकानदार, रोडवेज की नौकरी, ट्यूशन से जीविका कमाने वाला, उद्योगपति, सचिव, साईकिल की दुकान, अनुवादक, स्टेशनरी की दुकान, ज्योतिष, गणितज्ञ, लिपिक का कार्य, चार्टड एकाउन्टेंट, भाषा विशेषज्ञ, लेखक, पत्रकार, प्रतिलिपिक, विज्ञापन प्रबन्धन, प्रबन्धन (मेनेजमेन्ट) सम्बन्धी कार्य, दुभाषिया, बिक्री एजेन्ट।

    4-कर्क: – जड़ी-बूटिंयों का व्यापार, किराने का सामान, फलों के जड़ पौध सम्बन्धी कार्य, रेस्टोरेन्ट, चाय या काफी की दुकान, जल व कांच से सम्बन्धित कार्य, मधुशाला, लांड्री, नाविक, डेयरी फार्म, जीव विज्ञान, वनस्सपति विज्ञान, प्राणी विज्ञान आदि से सम्बन्धित कार्य, मधु के व्यवसाय, सुगन्धित पदार्थ व कलात्मक वस्तुओं से सम्बन्धित कार्य, सजावट की वस्तुएं, अगरबत्ती, फोटोग्राफी, अभिनय, पुरातत्व इतिहास, संग्रहालय, शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता या सामाजिक संस्थाओं के कर्मचारी, अस्पताल की नौकरी, जहाज की नौकरी, मौसम विभाग, जल विभाग या जल सेना की नौकरी, जनरल मर्चेन्ट।
    5-सिंह: – पेट्रोलियम, भवन निर्माण, चिकित्सक, राजनेता, औषधि निर्माण एवं व्यापार, कृषि से उत्पादित वस्तुएं, स्टाक एक्सचेंज, कपड़ा, रूई, कागज, स्टेशनरी आदि से सम्बन्धित व्यवसाय, जमीन से प्राप्त पदार्थ, शासक, प्रसाशक, अधिकारी, वन अधिकारी, राजदूत, सेल्स मैनेजर, ऊन के गरम कपड़ों का व्यापार, फर्नीचर व लकड़ी का व्यापार, फल व मेवों का व्यापार, पायलेट, पेतृक व्यवसाय।
    6-कन्या: – अध्यापक, दुकान, सचिव, रेडियो या टी.वी. का उद्घोषक, ज्योतिष, डाक सेवा, लिपिक, बैकिंग, लेखा सम्बन्धी कार्य, स्वागतकर्ता, मैनेजर, बस ड्रायवर और संवाहक, जिल्दसाज, आशुलिपिक, अनुवादक, पुस्तकालय अध्यक्ष, कागज के व्यापारी, हस्तलेख और अंगुली के विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक, अन्वेषक, सम्पादक, परीक्षक, कर अधिकारी, सैल्स मेन, शोध कार्य पत्रकारिता आदि।
    7-तुला: – न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट, परामर्शदाता, फिल्म या टी.वी. से सम्बन्ध, फोटोग्राफर, फर्नीचर की दुकान, मूल्यवान वस्तुओं का विनिमय, धन का लेन-देन, नृत्य-संगीत या चित्रकला से सम्बन्धित कार्य, साज-सज्जा, अध्यापक, बैंक क्लर्क, एजेन्सी, दलाली, विलासिता की वस्तुएं, राजनेता, जन सम्पर्क अधिकारी, फैशन मॉडल, सामाजिक कार्यकर्ता, रेस्तरां का मालिक, चाय या काफी की दुकान, मूर्तिकार, कार्टूनिस्ट, पौशाक का डिजाइनर, मेकअप सहायक, केबरे प्रदर्शन।

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  11. 8-वृश्चिक: – केमिस्ट, चिकित्सक, वकील, इंजीनियर, भवन निर्माण, टेलीफोन व बिजली का सामान, रंग, सीमेन्ट, ज्योतिषी और तांत्रिक, जासूसी का काम करने वाला, दन्त चिकित्सक, मेकेनिक, ठेकेदार, जीवन बीमा एजेन्ट, रेल या ट्रक कर्मचारी, पुलिस और सेना के कर्मचारी, टेलिफोन आपरेटर, समुद्री खाद्यान्नों के व्यापारी, गोता लगाकर मोती निकालने का काम, होटय या रेस्टोरेन्ट, चोरी या डकैती, शराब की फैक्ट्री, वर्कशाप का कार्य, कल-पुर्जो की दुकान या फैैक्ट्री, लोहे या स्टील का कार्य, तम्बाकू या सिगरेट का कार्य, नाई, मिष्ठान की दुकान, फायर बिग्रेड की नौकरी।
    9-धनु: – बैंक की नौकरी, अध्यापन, किसी धार्मिक स्थान से सम्बन्ध, ऑडिट का कार्य, कम्पनी सेकेट्री, ठेकेदार, सट्टा व्यापार, प्रकाशक, विज्ञापन से सम्बन्धित कार्य, सेल्समेन, सम्पादक, शिक्षा विभाग में कार्य, लेखन, वकालात या कानून सम्बन्धी कार्य, उपदेशक, न्यायाधीश, धर्म-सुधारक, कमीशन ऐजेन्ट, आयात-निर्यात सम्बन्धी कार्य, प्रशासनाधिकारी, पशुओं से उत्पन्न वस्तुओं का व्यापार, चमड़े या जूते के व्यापारी, घोड़ों के प्रशिक्षक, ब्याज सम्बन्धी कार्य, स्टेशनरी विक्रेता।
    10-मकर: – नेवी की नौकरी, कस्टम विभाग का कार्य, बड़ा व्यापार या उच्च पदाधिकारी, समाजसेवी, चिकित्सक, नर्स, जेलर या जेल से सम्बन्धित कार्य, संगीतकार, ट्रेवल एजेन्ट, पेट्रोल पम्प, मछली का व्यापार, मेनेजमेन्ट, बीमा विभाग, ठेकेदारी, रेडिमेड वस्त्र, प्लास्टिक, खिलौना, बागवानी, खान सम्बन्धी कार्य, सचिव, कृषक, वन अधिकारी, शिल्पकार, फैक्ट्री या मिल कारीगर, सभी प्रकार के मजदूर।
    11 -कुम्भ: – शोध कार्य, शिक्षण कार्य, ज्योतिष, तांत्रिक, प्राकृतिक चिकित्सक, इंजीनियर या वैज्ञानिक, दार्शनिक, एक्स-रे कर्मचारी, चिकित्सकीय उपकरणों के विक्रेता, बिजली अथवा परमाणु शक्ति से सम्बन्धित कार्य, कम्प्यूटर, वायुयान, वैज्ञानिक, दूरदर्शन टैक्नोलोजी, कानूनी सलाहकार, मशीनरी सम्बन्धी कार्य, बीमा विभाग, ठेकेदार, लोहा, तांबा, कोयला व ईधन के विक्रेता, चौकीदार, शव पेटिका और मकबरा बनाने वाले, चमड़े की वस्तुओं का व्यापार।

    12 -मीन: – लेखन, सम्पादन, अध्यापन कार्य, लिपिक, दलाली, मछली का व्यापार, कमीशन एजेन्ट, आयात-निर्यात सम्बन्धी कार्य, खाद्य पदार्थ या मिष्ठान सम्बन्धी कार्य, पशुओं से उत्पन्न वस्तुओं का व्यापार, फिल्म निर्माण, सामाजिक कार्य, संग्रहालय या पुस्तकालय का कार्य, संगीतज्ञ, यात्रा एजेन्ट, पेट्रोल और तेल के व्यापारी, समुद्री उत्पादों के व्यापारी, मनोरंजन केन्द्रों के मालिक, चित्रकार या अभिनेता, चिकित्सक, सर्जन, नर्स, जेलर और जेल के कर्मचारी, ज्योतिषी, पार्षद, वकील, प्रकाशक, रोकड़िया, तम्बाकू और किराना का व्यापारी, साहित्यकार

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  12. राहु का द्वादश भावों में फल

    दशम भाव में लाभ देता है राहु





    प्रत्येक जातक की कुंडली में ग्रह स्थान (भाव) अनुसार जातक को फल देते हैं एवं विजय, यश, सम्मान, कीर्ति के साथ अपयश, अपव्यय, विनाशकारी बुद्धि, कीर्ति का ह्रास इस प्रकार दोनों तरह के फल देते हैं। यह सब निर्भर करता है ग्रह जातक की लग्न कुंडली में किस भाव में बैठा है।

    जानिए राहु के अलग-अलग भाव में फल

    प्रथम भाव (लग्न) - राहु यदि जातक की कुंडली में प्रथम भाव में बैठा हो तो जातक को दुष्ट, मस्तिष्क रोग, स्वार्थी एवं राजद्वेषी के साथ नीच कर्म करने वाला, दुर्बल एवं कामी बनाता है।

    द्वितीय भाव : राहु जातक की कुंडली में द्वितीय भाव में बैठा हो तो जातक परदेश जाकर कमाता है। अल्प संतति, कुटुंबहीन के साथ भाषा कठोर रहती है, धन का कम आगमन होता है (अल्प धनवान) परंतु संग्रह करने की आदत जातक में रहती है।

    तृतीय भाव : राहु जातक की कुंडली में तृतीय भाव में हो तो योगाभ्यासी, विवेक को बनाए रखने वाला, प्रवासी, पराक्रम शून्य, अरिष्टनाशक के साथ बलवान, विद्वान एवं अच्छा व्यवसायी होता है।

    चतुर्थ भाव : शुद्ध जातक की कुंडली में राहु चतुर्थ भाव में रहने पर वह असंतोषी, दुःखी, क्रूर एवं मिथ्‍याचारी (झूठ पर चलने वाला), कम बोलने वाला बनाता है। इसी के साथ पेट की बीमारी बनी रहती है एवं माता को कष्ट रहता है।

    पंचम भाव : राहु जातक की कुंडली में रहने पर भाग्यशाली बनाता है। शास्त्र को समझने वाला रहता है परंतु इसी के साथ मति मंद रहती है (मतिमंद), धनहीन एवं कुटुंब का धन समाप्त करने वाला निकलता है।

    षष्ठम भाव : जातक की कुंडली में राहु षष्ठम भाव में रहता है तो जातक निरोगी, पराक्रमी एवं बड़े-बड़े कार्य करने वाला रहता है। अरिष्ट निवारक के साथ शत्रुहन्ता एवं कमर दर्द से पीड़ित रहता है।

    सप्तम भाव : जातक की कुंडली में राहु सप्तम भाव में हो तो व्यापार में जातक को हानि, वात रोग होता है, दुष्कर्म की प्रेरणा, चतुर के साथ लोभी एवं दुराचारी बनाता है। सबसे ज्यादा प्रभाव गृहस्थ पर पड़ता है। स्त्री कष्ट अथवा स्त्री नाशक बनाता है।

    अष्टम भाव : जातक की कुंडली में अष्टम भाव में राहु जातक को हष्ट-पुष्ट बनाता है। गुप्त रोगी होता है, व्यर्थ भाषण करने वाला, मूर्ख के साथ-साथ क्रोधी, उदर रोगी एवं कामी होता है।

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  13. नवम भाव : जातक की कुंडली में राहु नवम भाव में हो तो जातक को तीर्थयात्रा करने वाला एवं धर्मात्मा बनाता है, परंतु इसी के विपरीत परिणाम भी देता है। प्रवासी, वात रोगी, व्यर्थ परिश्रमी के साथ दुष्ट प्रवृत्ति का बनाता है।

    दशम भाव : जातक की कुंडली में राहु दशम भाव में जातक को लाभ देता है। कार्य सफल कराने के साथ व्यवसाय कराता है परंतु मंद गति, लाभहीन अल्प संतति, अरिष्टनाशक भी बनाता है।

    एकादश भाव : जातक की कुंडली में राहु ग्यारहवें भाव में अनियमित कार्यकर्ता, मितव्ययी, अच्छा वक्ता बनाता है। इसी के साथ आलसी, क्लेशी एवं चंद्रमा से युक्ति हो तो राजयोग दिलाता है।

    द्वादश भाव : जातक की कुंडली में राहु द्वादश भाव में हो तो चिंताशील एवं विवेकहीन बनाता है। परिश्रमी, सेवक के साथ जातक कामी होता है। मूर्ख जैसा व्यवहार करता है।

    *****************************************************

    राहु किस घर में कैसा फल देता है?

    राहु एक छाया ग्रह है, परंतु जन्म पत्रिका में यह जिस भाव स्थित होता है, उस स्थान को बेहद प्रभावित करता है। खासकर जब राहु की महादशा हो। जातक पूर्णत: असमंजस की स्थिती में आ जाता है। वह अच्छे-बुरे का विचार भी छोड देता है। जातक की रूचि विपरित कार्यों में हो जाती है।आइए जानते है किस घर में राहु क्या फल देता है...

    १. प्रथम भाव- विजयी, कृपण, वैरागी, गुस्सैल, कमजोर मस्तिष्क।

    २. द्वितिय भाव- द्वैष रखने वाला, झूठा, कड़वा बोलने वाला, मक्कार, धनवान।

    ३. तृतीय भाव- ताकतवर, अक्लमंद, उद्यमी, विवेकशील।

    ४. चतुर्थ भाव- मातृद्रोही, सुखहीन, झगडऩे वाला।

    ५. पंचम भाव- पुत्रवाला, सुखी, धनवान, कम अक्ल का।

    ६. षष्ठ भाव- ताकतवर, धैर्यशली, शत्रुविजयी, कर्मठ।

    ७. सप्तम भाव- अनेक विवाह, कपटी, व्यभिचारी, चतूर।

    ८. आठवां भाव- लम्बी आयु परंतु क ष्टकारी जीवन, गुप्त रोगी।

    ९. नवां भाव- भाग्यहीन, यात्रा करने वाला, मेहनती।

    १0. दसवा भाव- नीच कर्म करने वाला, नशाखोर, वाचाल।

    ११. एकादश भाव- चोकस, छोटे कार्य करनेे वाला, लालची।

    १२. द्वादश भाव- पैसा लुटानेवाला, जल्दबाज, चिंता।

    अन्य ग्रहों पर विचार कर ही फलित करें।

    किस घर में कैसा फल देता है केतु?

    केतु एक छाया ग्रह है परंतु जन्म पत्रिका में यह जिस भाव स्थित होता है, उस स्थान को बेहद प्रभावित करता है। खासकर जब केतु की महादशा हो। यह पूर्णत: खराब भी नही होती। वह अच्छे-बुरे दोनों प्रकार का असर छोड़ती है। जातक की रुचि विभिन्न कार्यों में हो जाती है। आइए देखते हैं, केतु किस भाव में कैसा असर दिखाता है।

    प्रथम भाव

    व्यापार या सेवा संतोषजनक होता है। आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता मिलेगी, पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण रहेगा। सिरदर्द, पत्नी, बच्चे के जन्म या स्वास्थ्य के लिए चिन्ता रहेगी।

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  14. द्वितीय भाव

    यात्रा लाभकारी होती है। बहुत कुछ अर्जित किया है लेकिन इसे भविष्य के लिए बचाने के लिए सक्षम नहीं हो पाते है। बच्चे बुढ़ापे में मददगार नहीं होते।

    तृतीय भाव

    ससुराल वालों या दोस्तों और भाइयों से लाभ में मिलता है। ४५ वर्ष की आयु पश्चात वित्त पर बुरा प्रभाव पडता है। आयु लम्बी रहती है।

    चतुर्थ भाव

    भगवान का सम्मान करने वाले, अध्यापक और बड़ों और अपने पूरे कुल को जीवन में खुशी देने वाले होगे। बीमार, कई बीमारियों से ग्रस्त, बचपन मे बुरा नहीं है।

    पंचम भाव

    आर्थिक रूप से सक्षम रहने वाला, कोई विवाद भी नहीं, अपने पूरे जीवन में एक ही समय में दो पत्नियां होती हैं। 45 साल की उम्र के बाद बुरा प्रभाव पड़ता है।

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  15. षष्ठम भाव

    इस तरह के जातक के जीवन में अच्छा बुरा दोनों एक समान चलते हैं। मां से प्रेम मिलता है, खुश रहने वाले, हंसमुख होते हैं। विदेशों में सहज रहते हैं। इनके कई दुश्मन हो सकते हैं।

    सप्तम भाव

    आपके दुश्मन को आपसे सदा डर होगा। ३५ की उम्र के ऊपर मान सम्मान, धन अर्जित करेंगे। गर्व, झूठे वादे, अभद्र भाषा परेशानी का कारण बनेंगे।

    अष्टम भाव

    इस भाव में केतु अच्छा है, ऐसे जातक भावना पूर्ण होते है। सदा दूसरे का भला सोचने वाला उम्र के ३४वें वर्ष में सफलता मिलती है। बीमारी सदा बनी रहती है।

    नवम भाव

    इस तरह के एक व्यक्ति योग्य और बहादुर होते हैं, इस तरह के व्यक्ति की दौलत तेजी से बढ़ती है।

    दशम भाव

    वह एक प्रसिद्ध खेल व्यक्तित्व हो सकता है। उनकी पत्नी बहुत ही सुंदर होती है। अपने भाइयों को लगातार मदद करता है।

    एकादश भाव

    हमेशा भविष्य के बारे में सोचना होगा। पर्याप्त धन रहेगा, मन कायर लेकिन शरीर शक्तिशाली हो सकता है। वह व्यवस्थापक या शासक हो सकता है।

    द्वादश भाव

    आगे बढ़ते रहते हैं लेकिन बार-बार बदलने से व्यवसाय या सेवा के संबंध में लाभ में कमी आती है। उन्हें सभी विलासिता को छोडऩे से लाभ होगा।

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    द्वादश भावों में राहु

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  16. राहु प्रथम भाव में शत्रुनाशक अल्प संतति मस्तिष्क रोगी स्वार्थी सेवक प्रवृत्ति का बनाता है।
    राहु दूसरे भाव में कुटुम्ब नाशक अल्प संतति मिथ्या भाषी कृपण और शत्रु हन्ता बनाता है।
    राहु तीसरे भाव में विवेकी बलिष्ठ विद्वान और व्यवसायी बनाता है।
    राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है।
    राहु पंचम भाग्यवान कर्मठ कुलनाशक और जीवन साथी को सदा कष्ट देने वाला होता है।
    राहु छठे भाव में बलवान धैर्यवान दीर्घवान अनिष्टकारक और शत्रुहन्ता बनाता है।
    राहु सप्तम भाव में चतुर लोभी वातरोगी दुष्कर्म प्रवृत्त एकाधिक विवाह और बेशर्म बनाता है।
    राहु आठवें भाव में कठोर परिश्रमी बुद्धिमान कामी गुप्त रोगी बनाता है।
    राहु नवें भाव में सदगुणी परिश्रमी लेकिन भाग्य में अंधकार देने वाला होता है।
    राहु दसवें भाव में व्यसनी शौकीन सुन्दरियों पर आसक्त नीच कर्म करने वाला होता है।
    राहु ग्यारहवें भाव में मंदमति लाभहीन परिश्रम करने वाला अनिष्ट्कारक और सतर्क रखने वाला बनाता है।

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  17. राहु बारहवें भाव में मंदमति विवेकहीन दुर्जनों की संगति करवाने वाला बनाता है।

    चेतावनी

    राहु के लिये जातक अपनी जन्म कुन्डली में देखें राहु प्रथम द्वितीय चतुर्थ पंचम सप्तम अष्टम नवम द्वादस भावों में किसी भी राशि का विशेषकर नीच का बैठा हो,तो निश्चित ही आर्थिक मानसिक भौतिक पीडायें अपनी महादशा अन्तरदशा में देता है,इसमे कोई संसय नही है। समय से पहले यानि महादशा अन्तरदशा आरम्भ होने से पहले राहु के बीज मन्त्र का अवश्य जाप कर लेना चाहिये। ताकि राहु प्रताडित न करे और वह समय सुख पूर्वक व्यतीत हो,याद रखें अस्त राहु भयंकर पीडाकारक होता है,चाहे वह किसी भी भाव का क्यों न हो।

    राहु कूटनीति का ग्रह है

    राहु कूटनीति का सबसे बडा ग्रह है,राहु जहां बैठता है शरीर के ऊपरी भाग को अपनी गंदगी से भर देता है,यानी दिमाग को खराब करने में अपनी पूरी पूरी ताकत लगा देता है। दांतों के रोग देता है,शादी अगर किसी प्रकार से राहु की दशा अन्तर्दशा में कर दी जाती है,तो वह शादी किसी प्रकार से चल नही पाती है,अचानक कोई बीच वाला आकर उस शादी के प्रति दिमाग में फ़ितूर भर देता है,और शादी टूट जाती है,कोर्ट केश चलते है,जातिका या जातक को गृहस्थ सुख नही मिल पाते है।इस प्रकार से जातक के पूर्व कर्मो को उसी रूप से प्रायश्चित कराकर उसको शुद्ध कर देता है।

    राहु जेल और बन्धन का कारक है

    राहु का बारहवें घर में बैठना बडा अशुभ होता है,क्योंकि यह जेल और बन्धन का मालिक है,१२ वें घर में बैठ कर अपनी महादशा अन्तर्दशा में या तो पागलखाने या अस्पताल में या जेल में बिठा देता है,यह ही नही अगर कोई सदकर्मी है,और सत्यता तथा दूसरे के हित के लिये अपना भाव रखता है,तो एक बन्द कोठरी में भी उसकी पूजा करवाता है,और घर बैठे सभी साधन लाकर देता है। यह साधन

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  18. किसी भी प्रकार के हो सकते है।

    राहु संघर्ष करवाता हैहजारों कुन्डलियों को देखा,जो महापुरुष या नेता हुये उन्होने बडे बडे संघर्ष किये तब जाकर कहीं कुर्सी पर बैठे,जवाहर लाल नेहरू सुभाषचन्द्र बोस सरदार पटेल जिन्होने जीवन भर संघर्ष किया तभी इतिहास में उनका नाम लिखा गया,हिटलर की कुन्डली में भी द्सवें भाव में राहु था,जिसके कारण किसी भी देश या सरकार की तरफ़ मात्र देखलेने की जरूरत से उसको मारकाट की जरूरत नही पडती थी।

    राहु १९वीं साल में जरूर फ़ल देता है

    यह एक अकाट्य सत्य है कि किसी कुन्डली में राहु जिस घर में बैठा है,१९ वीं साल में उसका फ़ल जरूर देता है,सभी ग्रहों को छोड कर यदि किसी का राहु सप्तम में विराजमान है,चाहे शुक्र विराजमान हो,या बुध विराजमान हो या गुरु विराजमान हो,अगर वह स्त्री है तो पुरुष का सुख और पुरुष है तो स्त्री का सुख यह राहु १९ वीं साल में जरूर देता है। और उस फ़ल को २० वीं साल में नष्ट भी कर देता है। इसलिये जिन लोगों ने १९ वीं साल में किसी से प्रेम प्यार या शादी कर ली उसे एक साल बाद काफ़ी कष्ट हुये। राहु किसी भी ग्रह की शक्ति को खींच लेता है,और अगर राहु आगे या पीछे ६ अंश तक किसी ग्रह के है तो वह उस ग्रह की सम्पूर्ण शक्ति को समाप्त ही कर देता है।
    राहु की दशा १८ साल की होती है

    राहु की दशा का समय १८ साल का होता है,राहु की चाल बिलकुल नियमित है,तीन कला और ग्यारह विकला रोजाना की चाल के हिसाब से वह अपने नियत समय पर अपनी ओर से जातक को अच्छा या बुरा फ़ल देता है,राहु की चाल से प्रत्येक १९ वीं साल में जातक के साथ अच्छा या बुरा फ़ल मिलता चला जाता है,अगर जातक की १९ वीं साल में किसी महिला या पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध बने है,तो उसे ३८ वीं साल में भी बनाने पडेंगे,अगर जातक किसी प्रकार से १९ वीं साल में जेल या अस्पताल या अन्य बन्धन में रहा है,तो उसे ३८ वीं साल में,५७ वीं साल में भी रहना पडेगा। राहु की गणना के साथ एक बात और आपको ध्यान में रखनी चाहिये कि जो तिथि आज है,वही तिथि आज के १९ वीं साल में होगी।

    राहु चन्द्र हमेशा चिन्ता का योग बनाते हैं

    राहु और चन्द्र किसी भी भाव में एक साथ जब विराजमान हो,तो हमेशा चिन्ता का योग बनाते है,राहु के साथ चन्द्र होने से दिमाग में किसी न किसी प्रकार की चिन्ता लगी रहती है,पुरुषों को बीमारी या काम काज की चिन्ता लगी रहती है,महिलाओं को अपनी सास या ससुराल खानदान के साथ बन्धन की चिन्ता लगी रहती है। राहु और चन्द्रमा का एक साथ रहना हमेशा से देखा गया है,कुन्डली में एक भाव के अन्दर दूरी चाहे २९ अंश तक क्यों न हो,वह फ़ल अपना जरूर देता है। इसलिये राहु जब भी गोचर से या जन्म कुन्डली की दशा से एक साथ होंगे तो जातक का चिन्ता का समय जरूर सामने होगा।

    पंचम का राहु औलाद और धन में धुंआ उडा देता है

    राहु का सम्बन्ध दूसरे और पांचवें स्थान पर होने पर जातक को सट्टा लाटरी और शेयर बाजार से धन कमाने का बहुत शौक होता है,राहु के साथ बुध हो तो वह सट्टा लाटरी कमेटी जुआ शेयर आदि की तरफ़ बहुत ही लगाव रखता है,अधिकतर मामलों में देखा गया है कि इस प्रकार का जातक निफ़्टी और आई.टी. वाले शेयर की तरफ़ अपना झुकाव रखता है। अगर इसी बीच में जातक का गोचर से बुध अस्त हो जाये तो वह उपरोक्त कारणों से लुट कर सडक पर आजाता है,और इसी कारण से जातक को दरिद्रता का जीवन जीना पडता है,उसके जितने भी सम्बन्धी होते है,वे भी उससे परेशान हो जाते है,और वह अगर किसी प्रकार से घर में प्रवेश करने की कोशिश करता है,तो वे आशंकाओं से घिर जाते है। कुन्डली में राहु का चन्द्र शुक्र का योग अगर चौथे भाव में होता है तो जातक की माता को भी पता नही होता है कि वह औलाद किसकी है,पूरा जीवन माता को चैन नही होता है,और अपने तीखे स्वभाव के कारण वह अपनी पुत्र वधू और दामाद को कष्ट देने में ही अपना सब कुछ समझती है।

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  19. राहु से ग्रस्त व्यक्ति पागल की तरह व्यवहार करता है
    पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन खाजखुजली भूत चुडैल का शरीर में प्रवेश बिना बात के ही झूमना,नशे की आदत लगना,गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना,शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना,होरर शो देखने की आदत होना,भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना,नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना,कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना,शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना,शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना,ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना,नींद नही आना,शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना,बाजी नामक रोग लगा लेना,जैसे गाडीबाजी,रंडीबाजी,आदि,इन रोगों के अन्य रोग भी राहु के है,जैसे कि किसी दूसरे के मामले में अपने को दाखिल करने के बाद दो लोगों को आपस में लडाकर दूर बैठ कर तमाशा देखना,लोगों को पोर्न साइट बनाकर या क्लिप बनाकर लूटने की क्रिया करना और इन कामों के द्वारा जनता का जीवन बिना किसी हथियार के बरबाद करना भी है। अगर उपरोक्त प्रकार के भाव मिलते है,तो समझना चाहिये कि किसी न किसी प्रकार से राहु का प्रकोप शरीर पर है,या तो गोचर से राहु अपनी शक्ति देकर मनुष्य जीवन को जानवर की गति प्रदान कर रहा है,अथवा राहु की दशा चल रही है,और पुराने पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है।
    राहु के रत्न उप रत्न

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  20. राहु से ग्रस्त व्यक्ति पागल की तरह व्यवहार करता है
    पेट के रोग दिमागी रोग पागलपन खाजखुजली भूत चुडैल का शरीर में प्रवेश बिना बात के ही झूमना,नशे की आदत लगना,गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना,शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना,होरर शो देखने की आदत होना,भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना,नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना,कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना,शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना,शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना,ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना,नींद नही आना,शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना,बाजी नामक रोग लगा लेना,जैसे गाडीबाजी,रंडीबाजी,आदि,इन रोगों के अन्य रोग भी राहु के है,जैसे कि किसी दूसरे के मामले में अपने को दाखिल करने के बाद दो लोगों को आपस में लडाकर दूर बैठ कर तमाशा देखना,लोगों को पोर्न साइट बनाकर या क्लिप बनाकर लूटने की क्रिया करना और इन कामों के द्वारा जनता का जीवन बिना किसी हथियार के बरबाद करना भी है। अगर उपरोक्त प्रकार के भाव मिलते है,तो समझना चाहिये कि किसी न किसी प्रकार से राहु का प्रकोप शरीर पर है,या तो गोचर से राहु अपनी शक्ति देकर मनुष्य जीवन को जानवर की गति प्रदान कर रहा है,अथवा राहु की दशा चल रही है,और पुराने पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है।
    राहु के रत्न उप रत्न

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  21. राहु के समय में अधिक से अधिक चांदी पहननी चाहिये

    राहु के रत्न गोमेद,तुरसा,साफ़ा आदि माने जाते है,लेकिन राहु के लिये कभी भी रत्नों को चांदी के अन्दर नही धारण करना चाहिये,क्योंकि चांदी के अन्दर राहु के रत्न पहिनने के बाद वह मानसिक चिन्ताओं को और बढा देता है,गले में और शरीर में खाली चांदी की वस्तुयें पहिनने से फ़ायदा होता है। बुधवार या शनिवार को को मध्य रात्रि में आर्द्रा नक्षत्र में अच्छा रत्न धारण करने के बाद ४० प्रतिशत तक फ़ायदा हो जाता है,रत्न की जब तक उसके ग्रह के अनुसार विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है,तो वह रत्न पूर्ण प्रभाव नही देता है,इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी या पेन्डल में लगवाने के बाद प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करवालेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर अपने आप में पत्थर ही है,जिस प्रकार से किसी मूर्ति को दुकान से लाने के बाद उसे मन्दिर में स्थापित करने के बाद प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह फ़ल देना चालू करती है,और प्राण प्रतिष्ठा नही करवाने पर पता नही और कौन सी आत्मा उसके अन्दर आकर विराजमान हो जावे,और बजाय फ़ल देने के नुकसान देने लगे,उसी प्रकार से रत्न की प्राण प्रतिष्ठा नही करने पर भी उसके अन्दर और कौन सी शक्ति आकर बैठ जावे और जो किया जय वह खाकर गलत फ़ल देने लगे,इसका ध्यान रखना चाहिये,राहु की दशा और अन्तर दशा में तथा गोचर में चन्द्र सूर्य और लगन पर या लगनेश चन्द्र लगनेश या सूर्य लगनेश के ऊपर जब राहु की युति हो तो नीला कपडा भूल कर नही पहिनना चाहिये,क्योंकि नीला कपडा राहु का प्रिय कपडा है,और उसे एकपडे के पहिनने पर या नीली वस्तु प्रयोग करने पर जैसे गाडी या सामान पता नही कब हादसा देदे यह पता नही होता है।
    राहु की जडी बूटियां

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  22. चंदन को माथे में लगाने वाला राहु से नही घबडाता

    रत्न की अनुपस्थिति में राहु के लिये जडी बूटियों का प्रयोग भी आशातीत फ़ायदा देता है,इसकी जडी बूटियों में सफ़ेद चंदन को महत्ता दी गयी है,इसे आर्द्रा नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को आधी रात के समय काले धागे में बांध कर पुरुष अपनी दाहिनी बाजू में और स्त्रियां अपनी बायीं बाजू में धारण कर सकती है। इसके धारण करने के बाद राहु का प्रभाव कम होना चालू हो जाता है।

    राहु से जुडे व्यापार और नौकरी

    यदि राहु अधिक अंशों में बलवान है,तो इस प्रकार व्यापार और नौकरी फ़ायदा देने वाले होते है,गांजा,अफ़ीम,भांग,रबड का व्यापार,लाटरी कमीशन, सर्कस की नौकरी,सिनेमा में नग्न दृश्य,प्रचार और मीडिया वाले कार्य,म्यूनिसपल्टी के काम,सडक बनाने के काम,जिला परिषद के काम,विधान सभा और लोक सभा के काम,उनकी सदस्यता आदि।

    राहु का वैदिक मंत्र

    राहु ग्रह सम्बन्धित पाठ पूजा आदि के स्तोत्र मंत्र तथा राहु गायत्री को पाठको की सुविधा के लिये यहां मै लिख रहा हूँ,वैदिक मंत्र अपने आप में अमूल्य है,इनका कोई मूल्य नही होता है,किसी दुखी व्यक्ति को प्रयोग करने से फ़ायदा मिलता है,तो मै समझूंगा कि मेरी मेहनत वसूल हो गयी है।

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  23. राहु मंत्र के लिये ध्यान

    नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी करालवक्त्र: करवालशूली। चतुर्भुजश्चक्रधरश्च राहु: सिंहाधिरूढो वरदोऽस्तु मह्यम॥

    राहु गायत्री

    नीलवर्णाय विद्यमहे सैहिकेयाय धीमहि तन्नो राहु: प्रचोदयात ।

    राहु का वैदिक बीज मंत्र

    ऊँ भ्राँ भ्रीँ भ्रौँ स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ कया नश्चित्रऽआभुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठ्या व्वृता ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: भ्रौँ भ्रीँ भ्राँ ऊँ राहुवे नम:॥

    राहु का जाप मंत्र

    ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहुवे नम:॥ १८००० बार रोजाना,शांति मिलने तक॥

    राहु स्तोत्र

    राहु: दानव मन्त्री च सिंहिकाचित्त नन्दन:। अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्र आदित्य विमर्दन:॥
    रौद्र: रुद्र प्रिय: दैत्य: स्वर-भानु:-भानु भीतिद:। ग्रहराज: सुधा पायी राकातिथ्य-अभिलाषुक:॥
    काल दृष्टि: काल रूप: श्री कण्ठह्रदय-आश्रय:। विधुन्तुद: सैहिकेय: घोर रूप महाबल:॥
    ग्रह पीडा कर: दंष्ट्री रक्त नेत्र: महोदर:। पंचविंशति नामानि स्मृत्वा राहुं सदा नर:॥
    य: पठेत महतीं पीडाम तस्य नश्यति केवलम। आरोग्यम पुत्रम अतुलाम श्रियम धान्यम पशून-तथा॥
    ददाति राहु: तस्मै य: पठते स्तोत्रम-उत्तमम। सततम पठते य: तु जीवेत वर्षशतम नर:॥

    राहु मंगल स्तोत्र

    राहु: सिंहल देश जश्च निऋति कृष्णांग शूर्पासनो। य: पैठीनसि गोत्र सम्भव समिद दूर्वामुखो दक्षिण:॥
    य: सर्पाद्यधि दैवते च निऋति प्रत्याधि देव: सदा। षटत्रिंस्थ: शुभकृत च सिंहिक सुत: कुर्यात सदा मंगलम॥

    उपरोक्त दोनो स्तोत्रों का नित्य १०८ पाठ करने से राहु प्रदत्त समस्त प्रकार की कालिमा भयंकर क्रोध अकारण मस्तिष्क की गर्मी अनिद्रा अनिर्णय शक्ति ग्रहण योग पति पत्नी विवाद तथा काल सर्प योग सदा के लिये समाप्त हो जाते हैं,स्तोत्र पाठ करने के फ़लस्वरूप अखंड शांति योग की परिपक्वता पूर्ण निर्णय शक्ति तथा राहु प्रदत्त समस्त प्रकार के कष्टों से निवृत्ति हो जाती है।

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  24. बृहस्पति का परिभ्रमण






    चंद्रमा कुंडली के अनुसार जब बृहस्पति परिभ्रमण पर रहते हैं तो किस स्थान पर क्या परिणाम देते हैं एवं उससे क्या लाभ या हानि होती है। आइए जानें-

    प्रथम : आर्थिक कष्ट, चिंताएँ घेरती हैं और यात्राएँ होती हैं। रिश्तेदारों से मनमुटाव कराता है।


    पृथक से द्वितीय स्थान : घर में खुशी का समावेश होता है। शत्रुओं का नाश कराता है। अविवाहित का विवाह और गृहस्थी वाले के यहाँ बच्चे का जन्म, धनप्राप्ति कराता है अर्थात पूर्ण सुख देता है।


    तृतीय : धन की कमी कराता है। रिश्तेदारों से कटुता और कार्य में असफलता दिलाता है। यात्रा में नुकसान, बीमारी और स्थान परिवर्तन होता है।


    चतुर्थ : किसी मित्र या रिश्तेदार से अपमानित कराता है। जातक को गलत कार्य के लिए प्रेरित करता है। साथ ही चोर का भय होता है।


    पंचम : राजकार्य में सफलता दिलाता है। उच्च अधिकारियों से सम्मान मिलता है। जातक को नए पद की प्राप्ति (पदोन्नति) दिलाता है। बेरोजगार को नौकरी, पुत्र की प्राप्ति होती है। घर में शुभ कार्य होता है। जमीन-जायदाद और अन्य प्रकार के वैभव, विलासिता की वस्तुओं की खरीदी करवाता।


    षष्ठम : घर में झगड़े करवाता है और कष्ट देता है। रिश्तेदारों से मनमुटाव की स्थिति उत्पन्न होती है। धनहानि, खर्च बढ़ाता है।


    सप्तम : पारिवारिक खुशियाँ देता है। शादी व नए संबंध कराता है। धन की प्राप्ति देता है। नए विषय का ज्ञान देता है। वाहन सुख तथा बच्चे का जन्म होता है।


    अष्टम : अशुभ होता है। घर कलह, शारीरिक कष्ट, मानसिक तनाव आदि कई प्रकार के कष्ट देता है।


    नवम : जातक को ज्ञानवृद्धि कराता है। कार्य करने की क्षमता बढ़ाता है। यानी कर्म करने की प्रेरणा जगाता है।


    दशम : बीमारी, धनहानि तथा कष्ट देता है। स्थान परिवर्तन कराता है। जायदाद का नुकसान देता है तथा जीवन कष्टमय कर देता है।


    एकादश : जीवन में खुशियाँ देता है। पूर्ण तंदुरूस्ती एवं धन की प्राप्ति कराता है। भूमिहीन को भूमि दिलाता है। मकान भी देता है। संतान की प्राप्ति भी कराता है। अविवाहित का विवाह होता है।


    द्वादश : कष्टप्रद जीवन देता है। मानसिक और शारीरिक तथा बौद्धिक कष्ट देकर तनाव से युक्त कर देता है। इति शुभम।

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  25. शनि का परिभ्रमण


    shani grah


    शनि जब चंद्र कुंडली में परिभ्रमण करता है तो क्या फल देता है और क्या संभावनाएँ रहती हैं, जानिए।

    प्रथम : ‍शनि का चंद्रकुंडली के प्रथम स्थान में भ्रमण नजदीकी रिश्तेदारों के लिए अशुभ रहता है। बीमारी के योग रहते हैं।
    द्वितीय : शनि चंद्रकुंडली के दूसरे भाव में जब प्रवेश करता है तो खुशियों में कमी आ सकती है। बीमारी हो सकती है। यह धनहानि कराता है। नौकरीपेशा निलंबित या पदविहीन हो सकता है। खर्च को बढ़ाता है। स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है।
    तृतीय : इस भाव में शनि आने के आने पर धनोपार्जन करवाता है। खुशियाँ देता है।
    चतुर्थ : यह भाव मानसिक, शारीरिक कष्ट और परिवार के लिए अशुभ फल देता है। अनहोनी घटनाएँ होती हैं।
    पंचम : इससे धननाश, खर्च में बढ़ो‍तरी हो सकती है। गलत आक्षेप लगवा सकता है।
    षष्ठम : शत्रुओं पर विजय दिलवाता है। मुख्य कार्य करवाता है और बीमारी से दूर रखता है। बीमार व्यक्ति बीमारी से मु‍क्त हो जाता है। वैवाहिक जीवन में सुख देता है और धन की प्राप्ति कराता है।
    सप्तम : इस भाव में शनि यात्राएँ कराता है। जातक घर से दूर रहता है, परंतु उसे गुप्त रोग या जननांग में बीमारी होने का भय रहता है।
    अष्टम : यह भाव पत्नी और बच्चों से दूर कर सकता है। कभी-कभी तलाक भी दिला देता है। (अर्थात किसी जातक की निम्न राशि पर विराजे तब)। इसके अतिरिक्त रिश्तेदारों और नौकरों से कष्ट तथा धनहानि देता है।
    नवम : यह भाव शत्रुओं से हानि, किसी आपराधिक व्यक्ति द्वारा कष्ट, बीमारी, धनहानि पत्नी से अलगाव कराता है।
    दशम : शनि के इस भाव में बेरोजगार व्यक्ति को रोजगार प्राप्त हो जाता है, लेकिन किसी-किसी जातक को कार्य से सुकमय बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
    एकादश : यह भाव जमीन-जायदाद की प्राप्ति कराता है। अविवाहित के विवाह का योग बनाता है। अस्थायी नौकरी वाला स्थायी होता है।
    द्वादश : इस भाव में शनि धनहानि देता है। बीमारी हो सकती है। पारिवारिक झगड़े करवाता है।

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  26. कौन सा ग्रह किस रोग का कारक Kiss


    1. सूर्य : पित्त, वर्ण, जलन, उदर, सम्बन्धी रोग, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी, न्यूरोलॉजी से सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग, ह्रदय रोग, अस्थियों से सम्बन्धी रोग, कुष्ठ रोग, सिर के रोग, ज्वर, मूर्च्छा, रक्तस्त्राव, मिर्गी इत्यादि.


    2. चन्द्रमा : ह्रदय एवं फेफड़े सम्बन्धी रोग, बायें नेत्र में विकार, अनिद्रा, अस्थमा, डायरिया, रक्ताल्पता, रक्तविकार, जल की अधिकता या कमी से संबंधित रोग, उल्टी किडनी संबंधित रोग, मधुमेह, ड्रॉप्सी, अपेन्डिक्स, कफ रोग,मूत्रविकार, मुख सम्बन्धी रोग, नासिका संबंधी रोग, पीलिया, मानसिक रोग इत्यादि.


    3. मंगल : गर्मी के रोग, विषजनित रोग, व्रण, कुष्ठ, खुजली, रक्त सम्बन्धी रोग, गर्दन एवं कण्ठ से सम्बन्धित रोग, रक्तचाप, मूत्र सम्बन्धी रोग, ट्यूमर, कैंसर, पाइल्स, अल्सर, दस्त, दुर्घटना में रक्तस्त्राव, कटना, फोड़े-फुन्सी, ज्वर, अग्निदाह, चोट इत्यादि.


    4. बुध : छाती से सम्बन्धित रोग, नसों से सम्बन्धित रोग, नाक से सम्बन्धित रोग, ज्वर, विषमय, खुजली, अस्थिभंग, टायफाइड, पागलपन, लकवा, मिर्गी, अल्सर, अजीर्ण, मुख के रोग, चर्मरोग, हिस्टीरिया, चक्कर आना, निमोनिया, विषम ज्वर, पीलिया, वाणी दोष, कण्ठ रोग, स्नायु रोग, इत्यादि.


    5. गुरु : लीवर, किडनी, तिल्ली आदि से सम्बन्धित रोग, कर्ण सम्बन्धी रोग, मधुमेह, पीलिया, याददाश्त में कमी, जीभ एवं पिण्डलियों से सम्बन्धित रोग, मज्जा दोष, यकृत पीलिया, स्थूलता, दंत रोग, मस्तिष्क विकार इत्यादि.


    6. शुक्र : दृष्टि सम्बन्धित रोग, जननेन्द्रिय सम्बन्धित रोग, मूत्र सम्बन्धित एवं गुप्त रोग, मिर्गी, अपच, गले के रोग, नपुंसकता, अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियों से संबंधित रोग, मादक द्रव्यों के सेवन से उत्पन्न रोग, पीलिया रोग इत्यादि.


    7. शनि : शारीरिक कमजोरी, दर्द, पेट दर्द, घुटनों या पैरों में होने वाला दर्द, दांतों अथवा त्वचा सम्बन्धित रोग, अस्थिभ्रंश, मांसपेशियों से सम्बन्धित रोग, लकवा, बहरापन, खांसी, दमा, अपच, स्नायुविकार इत्यादि.


    8. राहु : मस्तिष्क सम्बन्धी विकार, यकृत सम्बन्धी विकार, निर्बलता, चेचक, पेट में कीड़े, ऊंचाई से गिरना, पागलपन, तेज दर्द, विषजनित परेशानियां, किसी प्रकार का रियेक्शन, पशुओं या जानवरों से शारीरिक कष्ट, कुष्ठ रोग, कैंसर इत्यादि.


    9. केतु : वातजनित बीमारियां, रक्तदोष, चर्म रोग, श्रमशक्ति की कमी, सुस्ती, अर्कमण्यता, शरीर में चोट, घाव, एलर्जी, आकस्मिक रोग या परेशानी, कुत्ते का काटना इत्यादि.

    Kiss कब होगी रोग मुक्ति Kiss


    किसी भी रोग से मुक्ति रोगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा की समाप्ति के पश्चात ही प्राप्त होती है. इसके अतिरिक्त यदि कुंडली में लग्नेश की दशा अर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, योगकारक ग्रह की दशा अर्न्तदशा-प्रत्यर्न्तदशा प्रारम्भ हो जाए, तो रोग से छुटकारा प्राप्त होने की स्थिति बनती हैं. शनि यदि रोग का कारक बनता हो, तो इतनी आसानी से मुक्ति नही मिलती है,क्योंकि शनि किसी भी रोग से जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है और राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक उस रोग की जांच नही हो पाती है. डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को बीमारी क्या है और ऐसे में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है.

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  27. जन्म कुंडली बताए बीमारी

    जन्म पत्रिका का अष्टम भाव वैसे तो मोक्ष का स्थान माना जाता है। परंतु यह बिमारी का भी घर है। कुछ योग ऐसे हं जो अष्टम स्थान में प्रभावशील होकर रोग उत्पन्न करते हैं। कौन से हैं वे रोग आइए जानते हैं।
    1- अष्टम भाव मंगल, चंद्र और शुक्र हो तो जातक सेक्स संबधी एवं हर्निया रोग से ग्रसित होता है।
    2- अष्टम भाव में शुक्र हो तथा प्रथम भाव में शनि हो तो पेंशाब में घात संबधी रोग होता है। शनि यदि अष्टम भाव में हो उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि ना हो तो भी पेशाब संबधी रोग होता है।
    3- अष्टम भाव में मंगल, शुक्र की युति हो तो वीर्य संबंधी रोग होता है।
    4- अष्टम भाव में शनि हो तथा उस पर मंगल की दृष्टि हो तो जलोदर नाम का रोग होता है।
    5- मोक्ष स्थान अष्टम में केतु अशुभ होने पर वायु गोला रोग करता है, केतु पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो अल्सर भी हो सकता है।
    6- अष्टम स्थान पर चंद्रमा नीच का हो, शत्रु या अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो सर्दी संबधी रोग होते हैं। हर्निया, गैस, हृदय रोग भी हो सकता है।
    7- अष्टम स्थान पर नीच का मंगल राहु से युक्त हो, चंद्र कमजोर हो तो बाढ़ में बहने या जल में डूबने का खतरा रहता है।
    8- अष्टम भाव में शनि या शुक्र नीच का होकर बैठा हो तथा उस पर कोई शुभ दृष्टि भी न हो तो जातक को शुगर, ब्लडप्रेशर, अपेन्डि़क्स जैसे रोग होते हैं।



    शनि रोग का कारक बनता हो, जो जातक को लम्बे समय तक पीड़ित रखता है. यह और एक दर्द भी है कि राहु जब किसी रोग का जनक होता है, तो बहुत समय तक तो उस रोग की जांच (डायग्नोसिस) ही नहीं हो पाती है. डॉक्टर यह समझ ही नहीं पाता है कि जातक को क्या बीमारी है? और ऐसी स्थिति में रोग अपेक्षाकृत अधिक अवधि तक चलता है. प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी रोगों से अवश्य पीड़ित होता है. कुछ व्यक्ति कुछ विशेष समय में अथवा माह में ही प्रतिवर्ष बीमार हो जाते है. ये सभी तथ्य प्राय: जन्मप्रत्रिका में ग्रहों की भागवत एवं राशिगत स्थितियों और दशा, अन्तदर्शा पर निर्भर करते हैं. इसके अतिरिक्त कई बीमारियां ऐसी हैं, जो होने पर बहुत कम दुष्प्रभाव डाल पाती हैं, जबकि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो जब भी जातक विशेष को होती हैं, तो बहुत नुकसान पहुंचाती है. कई बार ऐसा स्थिति उत्पन्न होती है कि बीमारी होती तो हैं लेकिन उसकी पहचान भली प्रकार से नहीं हो पाती है. उन सभी प्रकार के तथ्यों का पता जातक की कुंडली को देखकर लगाया जा सकता है. आज हम लोग कुंडली से पता लगने वाले रोगों की चर्चा करेंगे.

    Kiss रोगों के कारण Kiss


    रोगों में शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के रोग आते हैं. इसके अतिरिक्त दुर्घटना इत्यादि का सम्बन्ध भी रोग एवं पीड़ा से होता है. रोगादि एवं शारीरिक पीड़ा का प्रारम्भ जन्म से ही हो जाता है. सामान्य रुप से कुंडली में ग्रहों की स्थितियों से रोगों के कारण निम्नवत हैं-


    1. लग्न एवं लग्नेश का अशुभ स्थिति में होना.


    2. चंद्रमा का क्षीण अथवा निर्बल होना अथवा चन्द्रलग्न में पाप ग्रहों का उपस्थित होना.


    3. लग्न, चन्द्रमा एवं सूर्य तीनों पर ही पाप अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव होना.


    4. जन्मपत्रिका में शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों का गुरु, शुक्र आदि शुभ ग्रहों की अपेक्षा अधिक बलवान होना.


    5. अष्टमेश का लग्न में होना अथवा लग्नेश का अष्टम भाव में उपस्थित होना.


    6. लग्नेश की अपेक्षा षष्ठेश का अधिक बली होना.


    उक्त सभी योगों के अतिरिक्त यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में अरिष्ट योग बनता हो, तो भी जन्म के पश्चात उसे अनेक कष्टों एवं रोगादि का सामना करना पड़ता है.

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  28. विवाह योग का संबंध शुक्र-गुरु से


    marriage yog


    आजकल लड़के-लड़कियाँ उच्च शिक्षा या अच्छा करियर बनाने के चक्कर में बड़ी उम्र के हो जाने पर विवाह में काफी विलंब हो जाता है। उनके माता-पिता भी असुरक्षा की भावनावश बच्चों के अच्छे खाने-कमाने और आत्मनिर्भर होने तक विवाह न करने पर सहमत हो जाने से भी विवाह में विलंब निश्चित होता है। अच्छा होगा किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें।

    ज्योतिषीय दृष्टि से जब विवाह योग बनते हैं, तब विवाह टलने से विवाह में बहुत देरी हो जाती है। वे विवाह को लेकर अत्यंत चिंतित हो जाते हैं। वैसे विवाह में देरी होने का एक कारण बच्चों का मांगलिक होना भी होता है। इनके विवाह के योग 27, 29, 31, 33, 35 व 37वें वर्ष में बनते हैं। जिन युवक-युवतियों के विवाह में विलंब हो जाता है, तो उनके ग्रहों की दशा ज्ञात कर, विवाह के योग कब बनते हैं, जान सकते हैं।

    जिस वर्ष शनि और गुरु दोनों सप्तम भाव या लग्न को देखते हों, तब विवाह के योग बनते हैं। सप्तमेश की महादशा-अंतर्दशा या शुक्र-गुरु की महादशा-अंतर्दशा में विवाह का प्रबल योग बनता है। सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश के साथ बैठे ग्रह की महादशा-अंतर्दशा में विवाह संभव है।

    marriage yog


    अन्य योग निम्नानुसार हैं-
    (1) लग्नेश, जब गोचर में सप्तम भाव की राशि में आए।
    (2) जब शुक्र और सप्तमेश एक साथ हो, तो सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में,
    (3) लग्न,चंद्र लग्न एवं शुक्र लग्न की कुंडली में सप्तमेश की दशा-अंतर्दशा में,
    (4) शुक्र एवं चंद्र में जो भी बली हो, चंद्र राशि की संख्या, अष्टमेशकी संख्या जोड़ने पर जो राशि आए, उसमें गोचर गुरु आने पर।
    (5) लग्नेश-सप्तमेश की स्पष्ट राशि आदि के योग के तुल्य राशि में जब गोचर गुरु आए,
    (6) दशमेश की महादशा और अष्टमेश के अंतर में,
    (7) सप्तमेश-शुक्र ग्रह में जब गोचर में चंद्र गुरु आए।
    (8) द्वितीयेश जिस राशि में हो,उस ग्रह की दशा-अंतर्दशा में।

    मान्यता है कि निम्नलिखित उपाय करने पर विवाह योग बनते हैं एवं विवाह शीघ्र होता है-
    माँ पार्वती की विधिवत पूजा करके प्रतिदिन निम्नांकित मंत्र की पाँच माला का जाप करने पर मनोरथ शीघ्र पूर्ण होता है-

    हे गौरि शंकरार्धांगि यथा त्व शंकर प्रिया।
    तथा मां कुरु कल्याणि, कान्तकांता सुदुर्लुभाम्‌॥

    माह की प्रत्येक प्रदोष तिथि को माँ पार्वती का श्रृंगार कर विधिवत पूजन करें। तीन रत्ती से अधिक का जरकन, हीरे या पुखराज की अँगूठी अनामिका में शुभ मुहूर्त में विधिवत धारण करें।

    अच्छा होगा किसी विद्वान ज्योतिषी को अपनी जन्म कुंडली दिखाकर विवाह में बाधक ग्रह या दोष को ज्ञात कर उसका निवारण करें। विवाह के लिए गुरु आराध्य है, उसकी उपासना करना चाहिए।

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  29. बहुत ही सही एवं प्रमाणित जानकारी धन्यवाद जी

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  30. Dear Sir,
    I am a Software Engineer in a reputed MNC in Bengaluru. I am searching match for me.
    When I am seeing a girl's horoscope in matrimony site what should I see first and next to check compatibility.
    I am a B.Tech I am looking someone from my caste (Brahmin) preferably with professionally qualified like B.Tech/MBBS/MCA/MBA .
    Apart from that


    Where is the problem ? when shall I get married.
    How will be the beauty,education,job and nature of my wife.
    How will be my in laws.
    How will be my married life.
    How will be my prosperity post marriage.


    1. How can I check I mean what should I see in the girl's horoscope to decide she will match with me or not.
    2. How to check if the girl had any affair before marriage.
    3. How to check she will not have any affair after marriage.
    4. Please tell me some formulae or shortcut or tips by seeing which I can be sure she will be a good partner for me and can proceed.


    My birth details :
    Date of Birth: 10 February 1981 Tuesday
    Time of Birth: 21:43 (=09:43 PM), Indian Standard Time
    Place of Birth: Bhubaneswar (Orissa), India
    Latitude: 20.13N Longitude: 85.50E
    Gender : Male ; Marital Status : Single

    Regards,
    Sumit

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    Replies
    1. Its not that easy sumit.....you should visit an astrologer.

      Regards,

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    2. Seema jee,
      I understand. But at least this can be checked. Kindly check if you can my marriage will be love or arranged.
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      Date of Birth: 10 February 1981 Tuesday
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      Thanks & Regards,
      Sumit

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    Regards,
    Sumit

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