Thursday, March 6, 2014

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acharya astro: acharya astro: acharya astro: acharya astro:: acharya astro: acharya astro: acharya astro: : acharya astro: acharya  शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्प...

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  1. शीतला सप्तमी या अष्टमी,23 और 24 मार्च को है।,चैत्र मास चल रहा है। इस मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली सप्तमी-अष्टमी को शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी कहा जाता है। इन दो दिनों में शीतला माता के लिए व्रत रखा जाता है। इस वर्ष यह पर्व 23 और 24 मार्च को है। जिन परिवारों में शीतला माता के निमित्त प्राचीन परंपरा का पालन किया जाता है, वहां एक दिन सभी सदस्य बासी खाना ही खाते हैं।
    ऐसी मान्यता है कि जो लोग शीतला सप्तमी या अष्टमी पर ठंडा खाना खाते हैं, उन्हें ठंड के प्रकोप से होने वाली बीमारियां नहीं होती हैं। कई लोग को ठंड के कारण पीतज्वर, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित परेशानियां आदि होने की संभावनाएं रहती हैं तो उन्हें हर वर्ष शीतला सप्तमी या अष्टमी पर बासी भोजन करना चाहिए। इन दिनों में बासी भोजन करने से ऐसी संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं।

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  2. शनिदेव शुभ व मंगल विचार, व्यवहार और कर्मों को अपनाने वाले इंसान पर ऐसी कृपा करते है कि उसकी सफलता, सुख, वैभव व भाग्य में आने वाली सारी बाधाओं का अंत हो जाता है। इस तरह माना जाता है कि शनि की प्रसन्नता रंक को भी राजा बनाने वाली होती है।

    यही कारण है कि शनिवार या शनि दशाओं जैसे साढ़ेसाती, ढैय्या में या शनि दोष दूर करने के लिए शास्त्रों में बताए 4 पंक्तियों के शनि मंगल स्तोत्र का पाठ बहुत ही चमत्कारी फल देने वाला माना गया है। जानिए इस छोटे-से 4 पंक्तियों के शनि मंगल स्तोत्र का पाठ व सरल शनि पूजा विधि-

    - शनिवार को सुबह व शाम जल में काले तिल डालकर स्नान के बाद यथासंभव काले या नीले वस्त्र पहन शनि मंदिर में शनि की काले पाषाण की चार भुजा युक्त मूर्ति को पवित्र जल से स्नान कराकर तिल या सरसों का तेल अर्पित करें। काले तिल, काले या कोई भी फूल, काला वस्त्र, तेल से बने पकवान का भोग लगाकर नीचे लिखे शनि मंगल मंत्र स्तोत्र को नीले आसन पर बैठ सुख, यश, वैभव, सफलता व शनि पीड़ा से मुक्ति की कामना के साथ बोलें-

    मन्द: कृष्णनिभस्तु पश्चिममुख: सौराष्ट्रक: काश्यप:
    स्वामी नक्रभकुम्भयोर्बुधसितौ मित्रे समश्चाङ्गिरा:।
    स्थानं पश्चिमदिक् प्रजापति-यमौ देवौ धनुष्यासन:
    षट् त्रिस्थ: शुभकृच्छनी रविसुत: कुर्यात् सदा मंङ्गलम्।।

    - यह मंत्र स्तुति बोलने के बाद धूप, तेल के दीप व कर्पूर से आरती करें व तेल के पकवान का प्रसाद ग्रहण करें व शनि का समर्पित किया काला धागा दाएं हाथ की कलाई या गले में पहने।

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  3. शास्त्रों में बताया गया है कि शीतला माता को ठंडे खाने का ही भोग लगाया जाता है। इसलिए एक दिन पूर्व ही खाना बना लेना चाहिए। प्राचीन मान्यता के अनुसार इस दिन घरों में चूल्हा भी नहीं जलाना नहीं चाहिए। सभी को एक दिन पहले बना बासी भोजन ही करना चाहिए।

    शीतला सप्तमी के संबंध में वैज्ञानिक तथ्य यह है कि इस समय मौसम परिवर्तन का दौर रहता है। ठंड की समाप्ति और गर्मी की शुरुआत का समय होने की वजह से बीमारियां होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती हैं। आमतौर पर जब भी मौसम परिवर्तित होता है, लोगों को मौसमी बीमारियां जकड़ लेती हैं। यह समय भी ऐसा ही है। मौसम परिवर्तन की वजह से इस दौरान काफी लोगों को, विशेष रूप से बच्चों को चेचक रोग हो जाता है। आज भी चेचक रोग को ग्रामीण अंचलों में शीतला माता का प्रकोप माना जाता है। इसी प्रकार के रोगों से बचने के लिए ही शीतला सप्तमी या अष्टमी पर एक दिन बासी भोजन किया जाता है।

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  4. कुंभ: घर की पश्चिम-उत्तर दिशा को स्वच्छ रखें। उपयोगी कागजात इस स्थान पर रखेंगे तो कार्यों में सफलता मिलेगी। यदि यहां किसी प्रकार के स्टोरेज की स्थिति निर्मित होती है तो स्थान परिवर्तन करें। घर में मनी प्लांट लगाएं।

    मीन: घर की पूर्वोत्तर दिशा में देवताओं के लि मंदिर बनवाएं। प्रयास करें कि घर का मंदिर और रसोईघर साथ-साथ न हो या चूल्हे की सीध में मंदिर न हो। मंदिर का स्थान परिवर्तन कर इष्टदेव को प्रसन्न करें। विशेष तौर पर लक्ष्मीनारायण की उपासना आपको भूमि-भवन का लाभ देगी।

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  5. धनु: घर का ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) आपकी साधना के लिए श्रेष्ठ है। यहां पर भगवान विष्णु की शत् नामावली या सहस्त्र नामावली का पाठ करें। ऐसा करने से रोग और दोषों से घर को मुक्ति मिलेगी। कार्यों में प्रगति का माहौल बनेगा।

    मकर: घर के पश्चिम में हरी या श्याम तुलसी का पौधा लगाएं तथा इसे निरंतर सींचें। ऐसा करने से रुके कार्यों में प्रगति होगी। मांगलिक कार्य के साथ आर्थिक लाभ के योग बनेंगे।

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  6. सपनों का संसार बहुत ही रोचक है। कुछ समय पहले तक जहां यह विषय पुराण, इतिहास व ज्योतिष तक ही सीमित था, वहीं आज यह परामनोविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान आदि में भी शोध का विषय बन चुका है। आज हम आपको कुछ सामान्य सपनों तथा भविष्य में उनसे संबंधित होने वाली घटनाओं के बारे में बता रहे हैं-


    सपने व उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

    1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना
    2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन की मृत्यु
    3- सूखा हुआ बगीचा देखना- कष्टों की प्राप्ति
    4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा
    5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा
    6- भेड़िया देखना- दुश्मन से भय
    7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना
    8- पहाड़ हिलते हुए देखना- किसी बीमारी का प्रकोप होना
    9- पूड़ी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना
    10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना
    11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति
    12- थूक देखना- परेशानी में पड़ऩा
    13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी
    14- स्वयं को उड़ते हुए देखना- किसी मुसीबत से छुटकारा
    15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से झगड़ा

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  7. 21 फरवरी, शुक्रवार को फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि है। इस दिन सुबह 7 बजकर 46 मिनट तक स्वाती नक्षत्र रहेगा, इसके बाद दिन भर विशाखा नक्षत्र रहेगा। शुक्रवार की रात को चंद्रमा राशि परिवर्तन करेगा। दिन भर तुला राशि में भ्रमण करने के बाद रात को 1 बजकर 26 मिनिट पर चंद्रमा वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा।
    ग्रहों की स्थिति पर नजर डालें तो इस समय सूर्य कुंभ राशि में भ्रमण कर रहा है। मंगल इस समय तुला राशि में है। बुध मकर राशि में चलायमान है। शनि व राहु तुला राशि में तथा केतु मेष राशि में में भ्रमण कर रहे हैं।

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  8. यदि आपके पति का स्वभाव भी गुस्सैल है और वह भी बात-बात पर गुस्सा हो जाते हैं तो नीचे लिखा उपाय करें-
    उपाय
    जब आपके पति गहरी नींद में सोए हों, तब एक नारियल, सात गोमती चक्र और थोड़ा का गुड़ लेकर इन सभी सामग्री को एक पीले कपड़े में बांध लें। अब इस पोटली को अपने पति के ऊपर सात बार ऊबार कर बहते हुए जल में बहा दें। इसके अलावा प्रतिदिन सूर्य को अर्ध्य दें। कुछ ही समय में आपके पति का गुस्सा छू-मंतर हो जाएगा।

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  9. विपत्तिर्यों से छुटकारा पाने और उज्ज्वल भविष्य को मूर्तिमान करने
    में धर्मतन्त्र की सहायता लिये बिना काम किसी भी प्रकार नहीं चल सकता। बहस शब्द की
    नहीं, विवेचना, तथ्य, की है। किसी को धर्म
    अध्यात्म से चिढ़ हो तो उनको सन्तुष्ट कराने वाले शब्द दूसरे शब्द कोष में ढूँढ
    निकाले जा सकते हैं। पर करना यह होगा कि व्यक्ति एवं समाज की अनेकाने दिशाधाराओं
    को प्रभावित करने वाले अन्त:करण की उत्कृष्टता को सम्पदा से सुसम्पन्न बनाया जाय।
    मानवी संस्कृति के अवमूल्यन का अन्त किया जाय।

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  10. 1. संतो का सत्संग- संत यानी सज्जन या सद्गुणी की संगति। अच्छे लोगों का साथ बोल, विचार व कर्म को सही दिशा देकर सुख व सफलता देता हैं।

    2. ईश्वर के कथा-प्रसंग में प्रेम– धर्मग्रंथों मे उजागर देवताओं के चरित्र और आदर्शों का स्मरण और जीवन में उतारने का संकल्प व यथासंभव प्रयास करना।

    3. अहं का त्याग- अभिमान, दंभ न रखना, क्योंकि ऐसा भाव भगवान के स्मरण में बाधा बन जाता है। व्यावहारिक तौर पर भी अहंकार विनम्रता के साथ सारे गुणों पर हावी होकर पतन की ओर ले जाता है।

    4. कपटरहित होना- छल न करने या धोखा न देने का भाव। मन, वचन व कर्म से इतने दृढ़ बने कि किसी भी स्थिति में संकल्पों व लक्ष्यों को पूरा कर सकें। बीच में संकल्प छोड़ना न केवल स्वयं को छलकर आत्मविश्वास को कमजोर करने वाला कृत्य है, बल्कि दूसरों की नजर में अविश्वास का पात्र बनाने वाला भी।

    5. ईश्वर के मंत्र जप- भगवान में गहरी आस्था, जो इरादों को मजबूत बनाए रखती है।

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  11. देवगुरु व जगतपालक भगवान विष्णु की पूजा के बाद गुरु मंत्र के स्मरण के साथ नीचे लिखे विष्णु मंत्र स्तोत्र के विशेष मंत्रों का ध्यान कर विवाह, धन, सुख की कामना करें व अंत में बृहस्पति-विष्णु की आरती घी के दीप से ही करें-

    बृहस्पति मंत्र- यह मंत्र कम से कम 108 बार या इससे अधिक बार स्मरण करना कामनासिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

    ॐ बृं बृहस्पतये नम:

    विष्णु मंत्र स्तोत्र -

    श्रीनिवासाय देवाय नम: श्रीपतये नम:।
    श्रीधराय सशाङ्र्गाय श्रीप्रदाय नमो नम:।।
    श्रीवल्लभाय शान्ताय श्रीमते च नमो नम:।
    श्रीपर्वतनिवासाय नम: श्रेयस्कराय च।।
    श्रेयसां पतये चैव ह्याश्रयाय नमो नम:।
    नम: श्रेय:स्वरूपाय श्रीकराय नमो नम:।।
    शरण्याय वरेण्याय नमो भूयो नमो नम:।
    स्त्रोत्रं कृत्वा नमस्मृत्य देवदेवं विसर्जयेत्।।
    इति रुद्र समाख्याता पूजा विष्णोर्महात्मन:।
    य: करोति महाभक्त्या स याति परमं पदम्।।

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  12. किसी गृहस्थ को सबसे पहले आलस्य छोड़कर ब्रह्ममुहूर्त या सूर्योदय के पहले जागकर धर्म व अर्थ दो बातों का ध्यान रख आगे की दिनचर्या नियत करना चाहिए।

    इसी कड़ी में दूसरा काम शरीर और मन की शुद्धि को दरिद्रता दूर करने के लिए अहम माना गया है। शरीर की पवित्रता के लिए पहले दांतों को साफ कर स्नान करना चाहिए। सुबह स्नान का यह महत्व यही बताया गया है कि चूंकि शरीर से कई रूपों में दूषित पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं, जो रोगी बनाते हैं, रोग मन को भी कमजोर करता है, इसलिए स्नान कर शरीर की पवित्रता से रोग, शोक व दु:ख दूर होते हैं। गंगा स्नान हो तो वह सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

    स्नान के जरिए शरीर को पवित्र किया जा सकता, किंतु मन की शुद्धि के लिए दैनिक जीवन में कुछ खास बातों का ध्यान रखना व अपनाना भी जरूरी बताया गया है, जानिए मन की पवित्रता के लिए वह तीसरा काम, जो किसी भी इंसान को सुबह करने से नहीं चूकना चाहिए

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  13. मंदिर से अधिक पुण्यदायी तीर्थ भूमि में किए देवकर्म होते हैं।

    - तीर्थ भूमि से भी ज्यादा शुभ फल किसी नदी के तट पर किए देवकर्म देते हैं।

    - नदियों में भी सप्तगंगा तीर्थ यानी सात नदियों गंगा, गोदावरी, कावेरी, ताम्रपर्णी, सिंधु, सरयू और नर्मदा के किनारे किया देव कर्म अधिक शुभ फलदायी हैं।

    - पवित्र नदियों से ज्यादा समुद्र के किनारे किया गया देवकर्म पुण्यदायी है।

    - वहीं, सबसे ज्यादा शुभ और पुण्यदायी फल पवर्त शिखर पर किए देवकर्मों का मिलता है। इस संदर्भ में रावण द्वारा किए गए तप से पाई शिव कृपा भी उल्लेखनीय है।

    - इन सब स्थानों के बाद शिवपुराण में मन को पावन बनाने का छुपा संदेश देते हुए लिखा गया है कि जहां मन लग जाए वही देवकर्मों से जल्द व ज्यादा पुण्य फल पाने के लिए सबसे श्रेष्ठ स्थान है।

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  14. शिवपुराण के मुताबिक अपने ही घर में पवित्रता के साथ किया गया देव कर्म शुभ फल देते हैं।

    - गोशाला में किया गया कर्म घर से भी दस गुना फलदायी होता है।

    - किसी पवित्र सरोवर के किनारे किया देव कर्म गोशाला से दस गुना ज्यादा पुण्य देता है।

    - तुलसी, बिल्वपत्र या पीपल वृक्ष की जड़ के नजदीक देव कर्म जलाशय से दस गुना ज्यादा शुभ फल देते हैं।

    - इन वृक्षों के तले किए देव कर्म से अधिक फल मंदिर में किए देवकर्म देते हैं।

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  15. विनायक को 21 दूर्वा चढ़ाते वक्त नीचे लिखे 10 मंत्रों को बोलें यानी हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं और आखिरी बची दूर्वा चढ़ाते वक्त सभी मंत्र बोलें। ये मंत्र हैं-

    ॐ गणाधिपाय नम:। ॐ विनायकाय नम:। ॐ विघ्रनाशाय नम:।
    ॐ एकदंताय नम:। ॐ उमापुत्राय नम:। ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:।
    ॐ ईशपुत्राय नम:। ॐ मूषकवाहनाय नम:। ॐ इभवक्त्राय नम:।
    ॐ कुमारगुरवे नम:।

    - मंत्रों के साथ पूजा के बाद यथाशक्ति मोदक का भोग लगाएं। 21 मोदक का चढ़ावा श्रेष्ठ माना जाता है।

    - अंत में श्रीगणेश आरती कर क्षमा प्रार्थना करें। कार्य में विघ्र बाधाओं से रक्षा की कामना करें।

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  16. जय श्री राम

    जाने रामायण की किन चौपाइयों से दूर होती हैं
    घर या काम-काज की कौन-कौन सी परेशानियां?

    1. सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए-

    हनुमान अंगद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।

    2. नौकरी पाने के लिए -

    बिस्व भरण पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत जस होई।।

    धन-दौलत, सम्पत्ति पाने के लिए -

    जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।

    3. पुत्र पाने के लिए -

    प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
    सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।

    4. शादी के लिए -

    तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।
    मांडवी श्रुतकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥

    5. खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए -

    गई बहोर गरीब नेवाजू। सरल सबल साहिब रघुराजू।।

    6. पढ़ाई या परीक्षा में कामयाबी के लिए-

    जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
    मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

    7. जहर उतारने के लिए -

    नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

    8. नजर उतारने के लिए -

    स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।

    9. हनुमानजी की कृपा के लिए -

    सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपनें बस करि राखे रामू।।

    10. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए -

    जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
    पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

    11. सफल व कुशल यात्रा के लिए -

    प्रबिसि नगर कीजै सब काजा। ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥

    12. शत्रुता मिटाने के लिए -

    बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई॥

    13. सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए -

    प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
    जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥

    14. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए -

    दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥

    15. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए -

    नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
    लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

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  17. सपनों का संसार बहुत ही रोचक है। कुछ समय पहले तक जहां यह विषय पुराण, इतिहास व ज्योतिष तक ही सीमित था, वहीं आज यह परामनोविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान आदि में भी शोध का विषय बन चुका है। आज हम आपको कुछ सामान्य सपनों तथा भविष्य में उनसे संबंधित होने वाली घटनाओं के बारे में बता रहे हैं-


    सपने व उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

    1- आंखों में काजल लगाना- शारीरिक कष्ट होना
    2- स्वयं के कटे हाथ देखना- किसी निकट परिजन की मृत्यु
    3- सूखा हुआ बगीचा देखना- कष्टों की प्राप्ति
    4- मोटा बैल देखना- अनाज सस्ता होगा
    5- पतला बैल देखना - अनाज महंगा होगा
    6- भेड़िया देखना- दुश्मन से भय
    7- राजनेता की मृत्यु देखना- देश में समस्या होना
    8- पहाड़ हिलते हुए देखना- किसी बीमारी का प्रकोप होना
    9- पूड़ी खाना- प्रसन्नता का समाचार मिलना
    10- तांबा देखना- गुप्त रहस्य पता लगना
    11- पलंग पर सोना- गौरव की प्राप्ति
    12- थूक देखना- परेशानी में पड़ऩा
    13- हरा-भरा जंगल देखना- प्रसन्नता मिलेगी
    14- स्वयं को उड़ते हुए देखना- किसी मुसीबत से छुटकारा
    15- छोटा जूता पहनना- किसी स्त्री से झगड़ा

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  18. 6- स्त्री से मैथुन करना- धन की प्राप्ति
    17- किसी से लड़ाई करना- प्रसन्नता प्राप्त होना
    18- लड़ाई में मारे जाना- राज प्राप्ति के योग
    19- चंद्रमा को टूटते हुए देखना- कोई समस्या आना
    20- चंद्रग्रहण देखना- रोग होना
    21- चींटी देखना- किसी समस्या में पढ़ना
    22- पवन चक्की देखना- शत्रुओं से हानि
    23- स्वयं का दांत टूटते हुए देखना- समस्याओं में वृद्धि
    24- खुला दरवाजा देखना- किसी व्यक्ति से मित्रता होगी
    25- बंद दरवाजा देखना- धन की हानि होना
    26- खाई देखना- धन और प्रसिद्धि की प्राप्ति
    27- धुआं देखना- व्यापार में हानि
    28- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
    29- सुराही देखना- बुरी संगति से हानि
    30- चश्मा लगाना- ज्ञान बढ़ना

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  19. 31- दीपक जलाना- नए अवसरों की प्राप्ति
    32- आसमान में बिजली देखना- कार्य-व्यवसाय में स्थिरता
    33- मांस देखना- आकस्मिक धन लाभ
    34- विदाई समारोह देखना- धन-संपदा में वृद्धि
    35- टूटा हुआ छप्पर देखना- गड़े धन की प्राप्ति के योग
    36- पूजा-पाठ करते देखना- समस्याओं का अंत
    37- शिशु को चलते देखना- रुके हुए धन की प्राप्ति
    38- फल की गुठली देखना- शीघ्र धन लाभ के योग
    39- दस्ताने दिखाई देना- अचानक धन लाभ
    40- शेरों का जोड़ा देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
    41- मैना देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
    42- सफेद कबूतर देखना- शत्रु से मित्रता होना
    43- बिल्लियों को लड़ते देखना- मित्र से झगड़ा
    44- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
    45- मधुमक्खी देखना- मित्रों से प्रेम बढ़ना

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  20. चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 31 मार्च, सोमवार से हो रहा है, जिसका समापन 8 अप्रैल, मंगलवार को होगा।

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  21. पहले दिन करें मां शैलपुत्री का पूजन

    चैत्र नवरात्रि के पहले दिन (31 मार्च, सोमवार) मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।

    हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। अत: इस दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।

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  22. मिथुन- इस राशि के लोगों को देवी यंत्र स्थापित कर मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए साथ ही तारा कवच का रोज पाठ करें। मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती हैं।

    कर्क- कर्क राशि के लोगों को शैलपुत्री की पूजा-उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें। भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती हैं।

    सिंह- सिंह राशि के लिए मां कूष्मांडा की साधना विशेष फल करने वाली है। दुर्गा मंत्रों का जप करें। ऐसा माना जाता है कि देवी मां के हास्य मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। देवी बलि प्रिया हैं, अत: साधक नवरात्र की चतुर्थी को आसुरी प्रवृत्तियों यानी बुराइयों का बलिदान देवी के चरणों में निवेदित करते हैं।

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  23. शास्त्रों के अनुसार प्रतिपदा से लेकर नौ तिथियों में देवी को विशिष्ट भोग अर्पित करने तथा ये ही भोग गरीबों को दान करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं व साधक को धन की कभी कमी नहीं होती। यदि आप भी इस मौके का लाभ उठाना चाहते हैं, तो जानिए नवरात्रि में किस तिथि पर देवी मां को किस चीज का भोग लगाएं-

    - प्रतिपदा (31 मार्च, सोमवार) को माता को घी का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती है तथा वह निरोगी होता है।

    - द्वितीया (1 अप्रैल, मंगलवार) को माता को शक्कर काभोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे साधक को दीर्घायु प्राप्त होती है।

    - तृतीया (2 अप्रैल, बुधवार) को माता को दूध चढ़ाएं तथा इसका दान करें। ऐसा करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है।

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  24. चतुर्थी (3 अप्रैल, गुरुवार) को मालपूआ चढ़ाकर दान करें। इससे सभी प्रकार की समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं।

    - पंचमी तिथि (4 अप्रैल, शुक्रवार) को माता दुर्गा को केले का भोग लगाएं व गरीबों को केले का दान करें। इससे आपके परिवार में सुख-शांति रहेगी।

    - षष्ठी तिथि (5 अप्रैल, शनिवार) के दिन माता दुर्गा को शहद का भोग लगाएं व इसका दान भी करें। इस उपाय से गरीब भी मालामाल हो जाता है।

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  25. सप्तमी (6 अप्रैल, रविवार) को माता को गुड़ की वस्तुओं का भोग लगाएं तथा दान भी करें। इससे दरिद्रता का नाश होता है।

    - अष्टमी (7 अप्रैल, सोमवार) को नारियल का भोग लगाएं तथा नारियल का दान भी करें। इससे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

    - नवमी (8 अप्रैल, मंगलवार) को माता को विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं व यथाशक्ति गरीबों में दान करें। इससे लोक-परलोक में आनंद व वैभव मिलता है।

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  26. रुद्राक्ष का अर्थ है रुद्र अर्थात शिव की आंख से निकला अक्ष यानी आंसू। रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसुओं से मानी जाती है। इस बारे में पुराण में एक कथा प्रचलित है। उसके अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने मन को वश में कर संसार के कल्याण के लिए सैकड़ों सालों तक तप किया। एक दिन अचानक ही उनका मन दु:खी हो गया। जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उनमें से कुछ आंसू की बूंदें गिर गई।

    इन्हीं आंसू की बूंदों से रुद्राक्ष नामक वृक्ष उत्पन्न हुआ। शिवमहापुराण की विद्येश्वर संहिता में रुद्राक्ष के 14 प्रकार बताए गए हैं। सभी का महत्व व धारण करने का मंत्र अलग-अलग है। इन्हें माला के रूप में पहनने से मिलने वाले फल भी भिन्न ही हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार इन रुद्राक्षों को विधिविधान से धारण करने से विशेष लाभ मिलता है। जानिए रुद्राक्ष के प्रकार, उन्हें धारण करने के मंत्र तथा होने वाले लाभ के बारे में-

    1- एक मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात शिव का स्वरूप है। यह भोग और मोक्ष प्रदान करता है। जहां इस रूद्राक्ष की पूजा होती है, वहां से लक्ष्मी दूर नहीं जाती अर्थात जो भी इसे धारण करता है वह कभी गरीब नहीं होता।
    धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं नम:

    2- दो मुख वाला रुद्राक्ष देव देवेश्वर कहा गया है। यह संपूर्ण कामनाओं और मनोवांछित फल देने वाला है। जो भी व्यक्ति इस रुद्राक्ष को धारण करता है उसकी हर मुराद पूरी होती है।
    धारण करने का मंत्र- ऊं नम:

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  27. 3- तीन मुख वाला रुद्राक्ष सफलता दिलाने वाला होता है। इसके प्रभाव से जीवन में हर कार्य में सफलता मिलती है तथा विद्या प्राप्ति के लिए भी यह रुद्राक्ष बहुत चमत्कारी माना गया है। धारण करने का मंत्र- ऊं क्लीं नम:

    4- चार मुख वाला रुद्राक्ष ब्रह्मा का स्वरूप है। उसके दर्शन तथा स्पर्श से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं नम:

    5 - पांच मुख वाला रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र स्वरूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्ति देने वाला तथा संपूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। इसको पहनने से अद्भुत मानसिक शक्ति का विकास होता है। धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं नम:

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  28. 6 - छ: मुख वाला रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का स्वरूप है। इसे धारण करने वाला ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। यानी जो भी इस रुद्राक्ष को पहनता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं हूं नम:

    7- सात मुख वाला रुद्राक्ष अनंग स्वरूप और अनंग नाम से प्रसिद्ध है। इसे धारण करने वाला दरिद्र भी राजा बन जाता है। यानी अगर गरीब भी इस रुद्राक्ष विधिपूर्वक पहने तो वह भी धनवान बन सकता है। धारण करने का मंत्र- ऊं हूं नम:

    8 - आठ मुख वाला रुद्राक्ष अष्टमूर्ति भैरव स्वरूप है। इसे धारण करने वाला मनुष्य पूर्णायु होता है। यानी जो भी अष्टमुखी रुद्राक्ष पहनता है उसकी आयु बढ़ जाती है और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। धारण करने का मंत्र- ऊं हूं नम:

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  29. 9 - नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल मुनि का प्रतीक माना गया है। भैरव क्रोध के प्रतीक हैं और कपिल मुनि ज्ञान के। यानी नौमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से क्रोध पर नियंत्रण रखा जा सकता है। साथ ही, ज्ञान की प्राप्ति भी हो सकती है। धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं हूं नम:

    10 - दस मुख वाला रुद्राक्ष भगवान विष्णु का रूप है। इसे धारण करने वाले मनुष्य की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं नम:

    11 - ग्यारह मुखवाला रुद्राक्ष रुद्र रूप है। इसे धारण करने वाला सर्वत्र विजयी होता है। यानी जो इस रुद्राक्ष को पहनता है, किसी भी क्षेत्र में उसकी कभी हार नहीं होती। धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं हूं नम:

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  30. 12- बारह मुख वाले रुद्राक्ष को धारण करने पर मानो मस्तक पर बारहों आदित्य विराजमान हो जाते हैं। यानी उसके जीवन में कभी इज्जत, शोहरत, पैसा या अन्य किसी वस्तु की कोई कमी नहीं होती। धारण करने का मंत्र- ऊं क्रौं क्षौं रौं नम:

    13 - तेरह मुख वाला रुद्राक्ष विश्वदेवों का रूप है। इसे धारण कर मनुष्य सौभाग्य और मंगल लाभ प्राप्त करता है।
    धारण करने का मंत्र- ऊं ह्रीं नम:

    14 - चौदह मुख वाला रुद्राक्ष परम शिव रूप है। इसे धारण करने पर समस्त पापों का नाश हो जाता है।
    धारण करने का मंत्र- ऊं नम:

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  31. शिवमहापुराण के अनुसार रुद्राक्ष को आकार के हिसाब से तीन भागों में बांटा गया है-

    1- उत्तम श्रेणी- जो रुद्राक्ष आकार में आंवले के फल के बराबर हो वह सबसे उत्तम माना गया है।

    2- मध्यम श्रेणी- जिस रुद्राक्ष का आकार बेर के फल के समान हो वह मध्यम श्रेणी में आता है।

    3- निम्न श्रेणी- चने के बराबर आकार वाले रुद्राक्ष को निम्न श्रेणी में गिना जाता है।

    जिस रुद्राक्ष को कीड़ों ने खराब कर दिया हो या टूटा-फूटा हो, या पूरा गोल न हो। जिसमें उभरे हुए दाने न हों। ऐसा रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए।
    वहीं जिस रुद्राक्ष में अपने आप डोरा पिरोने के लिए छेद हो गया हो, वह उत्तम होता है।

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  32. 1 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 1 तारीख को हुआ है, उन सभी लोगों का लकी नंबर 1 होता है। अंक 1 का कारक ग्रह सूर्य है। इसलिए अंक 1 वाले सभी लोगों को सूर्य विशेष रूप से प्रभावित करता है।

    अंक ज्योतिष के अनुसार 1 अंक वाले व्यक्ति रचनात्मक, सकारात्मक सोच वाले और नेतृत्व क्षमता के धनी होते हैं। ये लोग जो कार्य शुरू करते हैं, उसे जब तक पूरा नहीं करते, इन्हें शांति नहीं मिलती। इन लोगों का विशेष गुण होता है कि यह हर कार्य को पूर्ण योजना बनाकर करते हैं, अपने कार्य के प्रति पूरे ईमानदार रहते हैं।

    - अंक 1 वाले लोगों के लिए रविवार और सोमवार विशेष लाभ देने वाले दिन हैं।

    - इनके लिए पीला, सुनहरा, भूरा रंग काफी फायदेमंद है।

    - तांबा और सोना से इन्हें विशेष लाभ प्रदान करता है।

    - इनके लिए पुखराज, पीला हीरा, कहरुवा और पीले रंग के रत्न, जवाहरात आदि लाभदायक हैं।

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  33. 2 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 2 तारीख को हुआ है, वे सभी अंक 2 वाले लोग माने जाते हैं। यह नंबर चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है। चंद्रमा रचनात्मकता और कल्पनाशीलता का प्रतिनिधित्व करता है। चंद्रमा के सभी गुण अंक 2 वाले में विद्यमान रहते हैं।

    जिस प्रकार चंद्रमा को चंचलता का प्रतीक माना जाता है कि ठीक उसी प्रकार अंक 2 वाले भी चंचल स्वभाव के होते हैं। चंद्र के प्रभाव से ये लोग प्रेम-प्रसंग में भी पारंगत रहते हैं।

    - इस अंक के लोगों के लिए रविवार, सोमवार और शुक्रवार काफी शुभ दिन होते हैं।

    - इनके लिए हरा या हल्का हरा रंग बेहद फायदेमंद है। क्रीम और सफेद रंग भी विशेष लाभ देते हैं।

    - लाल, बैंगनी या गहरे रंग इनके लिए अच्छे नहीं होते।

    - अंक 2 वाले लोगों को मोती, चंद्रमणि, पीले-हरे रत्न पहनना चाहिए।

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  34. 3 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 3 तारीख को हुआ है, वे लोग अंक 3 के व्यक्ति माने जाते हैं। अंक 3 वाले लोग काफी महत्वाकांक्षी होते हैं।

    अंक तीन का ग्रह स्वामी गुरु अर्थात बृहस्पति है। ज्योतिष और न्यूमरोलॉजी के अनुसार इस अंक से संबंधित लोगों को बृहस्पति विशेष रूप से प्रभावित करता है। यह लोग अधिक समय तक किसी के अधीन कार्य करना पसंद नहीं करते, ये लोग उच्च आकांक्षाओं वाले होते हैं।

    इनका लक्ष्य उन्नति करते जाना होता है, अधिक समय एक जगह रुककर यह कार्य नहीं कर सकते। इन्हें बुरी परिस्थितियों से लडऩा बहुत अच्छे से आता है।

    - इनके लिए मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार अधिक शुभ होते हैं।

    - हर माह की 6, 9, 15, 18, 27 तारीखें इनके लिए विशेष रूप से लाभदायक हैं।

    - इन लोगों की अंक 6 और अंक 9 वाले व्यक्तियों से काफी अच्छी मित्रता रहती है।

    - रंगों में इनके लिए बैंगनी, लाल, गुलाबी, नीला शुभ होते है।

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  35. 4 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिस व्यक्ति का जन्म किसी भी माह की 4 तारीख को हुआ हो, उसका मूलांक 4 होता है। अंक ज्योतिष के अनुसार ऐसे व्यक्ति एक विशेष प्रकार के चरित्र वाले होते हैं। इस अंक का स्वामी यूरेनस होता है।

    अंक 4 के लोग काफी संवेदनशील होते हैं। इन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है। छोटी-छोटी बातों पर बुरा मान जाते हैं। इस स्वभाव की वजह से इनके ज्यादा मित्र नहीं होते हैं। मित्र कम होने से ये लोग अधिकांश समय अकेलापन महसूस करते हैं। ये किसी को दुखी नहीं देख सकते हैं।

    - अंक 4 वाले लोगों के लिए रविवार, सोमवार और शनिवार भाग्यशाली दिन होते हैं।

    - इनके लिए 1, 2, 7, 10, 11, 16, 18, 20, 25, 28, 29 तारीखें विशेष लाभ प्रदान करने वाली होती हैं।

    - इन्हें नीला और ब्राउन कलर काफी फायदा पहुंचाता है अत: इन्हें इस रंग के कपड़े पहनना चाहिए।

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  36. 5 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन व्यक्तियों का जन्म 5 तारीख को हुआ हो, वे सभी मूलांक 5 के लोग होते हैं। अंक ज्योतिष के अनुसार अंक 5 का स्वामी बुध ग्रह है। बुध ग्रह बुद्धि और विवेक का प्रतीक है। बुध के प्रभाव से इस अंक के व्यक्ति काफी बुद्धिमान और तुरंत निर्णय लेने वाले होते हैं।

    अंक 5 वाले काफी स्टाइलिश होते हैं और वैसे ही कपड़े पहनना पसंद करते हैं। इनकी सभी लोगों से बहुत जल्द दोस्ती हो जाती है और ये अच्छी दोस्ती निभा भी सकते हैं। दोस्तों के लिए यह जितने उदार और शुभचिंतक होते हैं, ठीक इसके विपरीत दुश्मनों के लिए उतने ही बुरे होते हैं।

    - इन लोगों के लिए बुधवार और शुक्रवार शुभ होते हैं।

    - रंगों में इनके लिए हल्का ब्राउन, सफेद और चमकदार रंग बेहद लाभदायक हैं।

    - इन्हें गहरे रंग के कपड़े कम से कम पहनना चाहिए।

    - इनके लिए 5, 14, 23 तारीखें भाग्यशाली होती हैं।

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  37. 6 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 6 तारीख को हुआ है, वे सभी अंक 6 वाले माने जाते हैं। अंक ज्योतिष के अनुसार अंक 6 का स्वामी शुक्र ग्रह है। शुक्र ग्रह से प्रभावित व्यक्ति काफी ग्लैमरस और हाई लाइफ स्टाइल के साथ जीवन जीते हैं। ऐसे लोगों से कोई भी बहुत ही जल्द आकर्षित हो जाता है। इस वजह से इनके कई मित्र होते हैं और इस अंक के अधिकांश व्यक्तियों के एक से अधिक प्रेम संबंध भी होते हैं।

    अंक 6 के लोग किसी भी कार्य को विस्तृत योजना बनाकर ही करते हैं, जिससे इन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है। यह लोग स्वभाव से थोड़े जिद्दी होते हैं। जो कार्य शुरू करते हैं, उसे पूरा करने के बाद ही इन्हें शांति मिलती है।

    - इनके लिए मंगलवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ दिन होते हैं। इन दिनों से शुरू किए गए कार्यों में इन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

    - किसी भी माह की 3, 6, 9, 12, 15, 18, 21, 24, 27, 30 तारीख के दिन शुभ होते हैं।

    - इन लोगों के लिए बैंगनी और काला रंग अशुभ है। इन्हें लाल या गुलाबी शेड्स के कपड़े पहनने चाहिए।

    - इन लोगों की मित्रता 3, 6, 9 अंक वालों से अच्छी रहती है।

    - ये लोग अंक 5 के लोगों से आगे बढऩे का बहुत प्रयास करते हैं, परंतु पीछे रह जाते हैं।

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  38. 7 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन व्यक्तियों का जन्म किसी भी माह की 7 तारीख को हुआ हो, वे अंक 7 वाले होते हैं। इस अंक के स्वामी वरुण देव अर्थात् जल के देवता हैं। जल मूल रूप से चंद्रमा से संबंधित है। इसी वजह से इस अंक के लोगों पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव रहता है।

    अंक 7 लोग स्वतंत्र विचारों वाले और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं। ये लोग किसी को भी बड़ी आसानी से प्रभावित कर लेते हैं। चंद्र से संबंधित होने के कारण ये मन से बड़े ही चंचल होते हैं। इन्हें मस्ती-मजाक करना पसंद होता है। ये लोग अपने मित्रों का हमेशा मनोरंजन करते रहते हैं। सभी को खुश रखते हैं।

    - अंक 7 वालों के लिए रविवार और सोमवार शुभ दिन होते हैं।

    - इनके लिए माह की 1, 2, 4, 7, 10, 11, 13, 16, 19, 20, 22, 25, 28, 29, 31 तारीखें शुभ फल देने वाली हैं।

    - इनके लिए हरा, पीला, सफेद, क्रीम और हल्के रंग लाभदायक है।

    - इन्हें गहरे रंगों के उपयोग से बचना चाहिए।

    - अंक 7 वालों को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए।

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  39. आपका वह काम जल्दी से जल्दी और ठीक से हो जाए तो घर से निकलने से पहले यह उपाय करें। इससे आपका हर काम जल्दी और परफेक्ट होगा। ये बहुत ही छोटा और अचूक उपाय है।

    उपाय

    जिस दिन किसी कार्य विशेष के लिए जाना हो उस दिन जल्दी उठकर स्नान आदि नित्य कामों से निपटकर सबसे पहले भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। श्रीगणेश को धूप-दीप, फूल, दूर्वा आदि चढ़ाएं। गुड़-धनिए का प्रसाद अर्पित करें। इसके बाद गणेशजी के सामने बैठकर रुद्राक्ष या पन्ना की माला से ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का यथाशक्ति जप करें। जब घर से निकलने वाले हों तब श्रीगणेश को चढ़ाई दूर्वा में से थोड़ी दूर्वा अपनी जेब में रख लें।

    इस उपाय से निश्चित रूप से आपका हर सोचा हुआ काम जल्दी और ठीक से हो जाएगा।

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  40. आज हम बात कर रहे हैं चेहरे के सबसे निचले भाग में स्थित ठोड़ी की। ठोड़ी होंठों के ठीक नीचे होती है। चेहरे को सुंदर बनाने में ठोड़ी का भी अहम योगदान रहता है। समुद्र शास्त्र के अनुसार ठोड़ी भी कई प्रकार की होती है।

    ठोड़ी के प्रकारों के आधार पर ही मनुष्य के गुण-अवगुण तथा स्वभाव के बारे में आसानी से जाना जा सकता है। समुद्र शास्त्र के अनुसार जो ठोड़ी चिकनी और मांसल हो वह शुभ होती है, वहीं नीचे की ओर झुकी हुई और सूखी हुई ठोड़ी अशुभ होती है। जानिए ठोड़ी के अनुसार किस व्यक्ति का स्वभाव कैसा होता है-

    सामान्य ठोड़ी

    ये ठोड़ी शुभ फलदायक होती है। इस प्रकार की ठोड़ी होंठों के ठीक नीचे समानांतर रूप से होती है। ऐसे ठोड़ी वाले लोग हमेशा सच बोलने वाले और अपने नियमों का पालन करने वाले होते हैं। ये लोग गंभीर और कम बोलने वाले होते हैं। ये कम जरूर बोलते हैं, लेकिन जब भी बोलते हैं काम की बात ही बोलते हैं।

    इनकी बात को सिरे से नकारा नहीं जा सकता। ये जो भी काम करते हैं, नि:स्वार्थ भाव से करते हैं। इसलिए ये परिवार और समाज में बहुत लोकप्रिय होते हैं। ये जहां भी जाते हैं, लोग इनका मान-सम्मान करते हैं। आर्थिक रूप से भी ये काफी संपन्न होते हैं।

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  41. मुख के अंदर दबी हुई ठोड़ी

    ऐसी ठोड़ी चेहरे से थोड़ी अंदर की ओर दबी हुई रहती है। ऐसी ठोड़ी वाले लोग काफी चंचल होते हैं। साथ ही ये आलसी, निराशावादी व मायूस भी होते हैं। ये मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ नहीं होते। इसलिए इनमें सोचने-समझने की क्षमता भी आमतौर पर थोड़ी कम होती है। ये बहुत अधिक बोलते हैं, लेकिन ये क्या बोल रहे हैं और क्यों बोल रहे हैं, इस बात का अंदाजा इन्हें भी नहीं होता।

    अधिक बोलने के कारण ही लोग इनसे थोड़ा दूर भागते हैं। ये लोग किसी भी कार्यक्रम में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं, लेकिन अति उत्साह में कभी-कभी ये हंसी व गुस्से के पात्र बन जाते हैं। परिवार में इनका कोई खास मान-सम्मान नहीं होता।

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  42. अज्ञात पितृ श्राद्ध में नारायण नाग बलि विधान होता है जिसका प्रमुख उद्देश है अपने अतृप्त पितरोंको तृप्त करके उन्हे सद्गती दिलाना । क्योंकि मरने वालो कि सभी इच्छाएं पुरी नही हो सकती है । कुछ तीव्र इच्छाए मरने के बाद भी आत्मा का पिछा नही छोडती है । ऐसी स्थिती में वायुरुप होने के पश्चात् भी आत्मा पृथ्वीपर हि विचरण (भ्रमण) करती है । वास्तव में जीवात्मा सूर्य का अंश होता है जो निसर्गत: मृत्यू

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  43. के पश्चात् सूर्य कि और आकषित होता है जैसे इसी पथ्वीपर से जल,समुद्र कि और आकर्षित होता है । किन्तु वासना एवं इच्छाएं आत्मा को इसी वातावरण में रहने के लिए मजबूर कर देती है। ऐसी स्थिती में आत्मा को बहोत पीडाएं होती है । और अपनी पिडाओंसे मुक्ती पाने के लिए वंशजो के सामने सांसरीक समस्या का निर्माण करता है। ईस समस्या ओंसे मुक्ती पाने के हेतु सामान्य इन्सान पहले तो वैद्यकिय सहारा लेता है। यदी उसे समाधान नही मिलता तो ज्योतिषका आधार लेता है। क्योंकी कुंडली में कुछ ग्रह स्थितीया एसी होती है जिससे पितृदोष का अनुमान लगाया जा सकता है।

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  44. पितरों कि संतुष्टी हेतु उनकी श्रध्दा से जो पुजा कि जाती है उसी को श्राध्द कहते है। श्राध्द को उचित सामग्री स्थान, मुहूर्त शास्त्र से किया जाए तो निश्चय हि वह फलदायी बनता है।

    नारायण बली प्रमुख रुपसे तब करना चाहिए जब अपत्य हिनता, कष्टमय जीवन और दारिद्र्य, शरीर के न छुटने वाले विकार भुतप्रेत, पिशाच्च बाधा, अपमृत्यू, अपघातों का सिलसिला साथही में पुर्वजन्म में मिले
    पितृशाप, प्रेतशाप, मातृशाप, भ्रातृशाप, पत्निशाप, मातुलशाप आदी संकट मनुष्य के सामने निश्चल रुप में खडे हो। इन सभी संकटो से निश्चित रुप से मुक्ती पाने के लिये शास्त्रोक्त काम्य नारायण बली विधान है। साथही में इस विधान के साथ नागबली का भी विधान है।नागबली यह विधी शोनक ऋषीने बतलायी है। किसी व्यक्तीने अपने जीवन में जो द्रव्य संग्रह किया है। उसकी द्रव्य पर आसक्ती रह गयी तो वह व्यक्ती मृत्यू के पश्चात उस द्रव्य पर नाग बनके रह जाता है। और उस द्रव्य का किसी को लाभ नहीं होने देता। ऐसे नाग की इस जन्म में अथवा पिछले किसी जन्म में हत्या की गयी तो उसका शाप लगता है। उदा. वात, पित्त, कफ, त्रिदोष, जन्य ज्वर, शुळ, ऊद, गंडमाला, कुष्ट्कंडु, नेत्रकर्णकॄच्छ आदी सारे रोंगोका निवारण करने के लिए एवम्ं संतती प्राप्ती के नागबली विधान करना चाहिए। ये विधान श्री क्षेत्र अमलेश्वर में ही करने चाहिए।
    त्रिपिंडी
    त्रिपिंडी श्राध्द एक काम्य श्राध्द है। यदी लगातार तीन साल पितरोंका श्राध्द न होनेसे पितरोंको प्रेतत्व आत है, वह दुर करनेके लिए यह श्राध्द करना चाहिए। मानव का एक मास पितरोंका एक दिन होता है। आमावस पितरोंकी तिथी है उस दिन दर्शश्राध्द होता है। अतृप्त पितर प्रेतरुपसे पीडा देते है। और भी पितृकर्मका लोप, श्राध्द कर्म और्ध्वदैहिक क्रिया सशास्त्र न होनेसे भूत, प्रेत, यक्ष्, गंधर्व, शाकिणी, रेवती, जंभूक आदिंओंकी पीडा उत्पन्न होकर घरमें अशांतता निर्माण होती है। और भी एक दिन, तीन दिन, पंध्रह दिन के अंतरसे जूड आती है। मृत व्यक्ति स्वप्नमें आती है। समृध्दी दिन ब दिन ढलती जाती है। इस लिए त्रिपिंडी श्राध्द करना चाहिए। इसका विधान श्राध्द चिंतामणी इस ग्रंथमे बताया है।

    अर्तार्पितास्तु पितरो पिर्वान्तरूधिरंसदा ।
    ततः स्वभवनं यान्ति शापं दत्वा सुदारूण्ं ॥
    इस शाप से सांसारिक संकटो से मुक्ति पाने के लिए त्रिपिंडी श्राध्द करना उचित है। त्रिपिंडी श्राध्द एक काम्य श्राध्द है जिसकी वजह से समृध्दी धीरे-धीरे बढती है। विवाह आदि कर्ममे संकटो का नाश होता है। व्यवसाय मे सफलता आती है घर मे शांती निर्माण होती है। यह कर्म कुशावर्त तिर्थ के पास किया जा सकता है। इस विधी मे ब्रम्हा, विष्णू महेश प्रमुख देवता है। ये देवता व्दिविस्थ्, अन्तरिक्षस्थ, भूमिस्थ और सत्व, रज तमो गुणी तथा बाल, तरुण और वृध्द अवस्था के अनादिष्ट प्रेतोंको सद्गती देते है। इस विधी के पूर्व शरीर शुध्दी हेतू प्रायश्चित लेना जरूरी है। त्रिपिंडी विधी पत्नी के साथ नये सफेद कपडे पहनकर करना चाहिए यह विधी जो अविवाहित है अथवा जिसकी पत्नी जीवित नही है वह भी कर सकते है ।

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  45. कालसर्प योग क्या है?
    कालसर्प योग का विचार करनेसे पहले राहू केतू का विचार करना आवश्यक है। राहू सर्प का मु़ख माना गया है। तो केतू को पूंछ मानी जाती है। इस दो ग्रहोंकें कारण कालसर्प योग बनता है। इस संसार में जब कोई भी प्राणी जिस पल मे जन्म लेता है, वह पल(समय) उस प्राणी के सारे जीवन के लिए अत्यन्त ही महत्वपुर्ण माना जाता है। क्यों की उसी एक पल को आधार बनाकर ज्योतिष शास्त्र की सहायता सें उसके समग्र जीवन का एक ऐसा लेखा जोखा तैयार किया जा सकता है, जिससे उसके जीवन में समय समय पर घटने वाली शुभ-अशुभ घटनाऔं के विषय में समय से पूर्व जाना जा सकता है।

    जन्म समय के आधार पर बनायी गयी जन्म कुंडली के बारह भाव स्थान होते है । जन्मकुंडली के इन भावों में नवग्रहो की स्थिती योग ही जातक के भविष्य के बारे में जानकारी प्रकट करते है। जन्मकुंडली के विभिन्न भावों मे इन नवग्रहों कि स्थिति और योग से अलग अलग प्रकार के शुभ-अशुभ योग बनते है। ये योग ही उस व्यक्ती के जीवन पर अपना शुभ-अशुभ प्रभाव डालते है।

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  46. जन्म कुंडली में जब सभी ग्रह राहु और केतु के एक ही और स्थित हों तो ऐसी ग्रह स्थिती को कालसर्प योग कहते है। कालसर्प योग एक कष्ट कारक योग है। सांसारीक ज्योतिषशास्त्र में इस योग के विपरीत परिणाम देखने में आते है। प्राचीन भारतीय ज्योतिषशास्त्र कालसर्प योग के विषय में मौन साधे बैठा है। आधुनिक ज्योतिष विव्दानों ने भी कालसर्प योग पर कोई प्रकाश डालने का कष्ट नहीं उठाया है की जातक के जीवन पर इसका क्या परिणाम होता है ?

    राहु-केतु यानि कालसर्प योग
    वास्तव में राहू केतु छायाग्रह है। उनकी उपनी कोई दृष्टी नही होती। राहू का जन्म नक्षत्र भरणी और केतू का जन्म नक्षत्र आश्लेषा हैं। राहू के जन्म नक्षत्र भरणी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प है। इस दोष निवारण
    हेतू हमारे वैदिक परंपरा के अनुसार ग्रह्शांती पुजन मे प्रमुख देवता राहू का उनके अधिदेवता काल और प्रत्यादि देवता सर्प
    सहित पुजन अनिवार्य है।

    काल
    यदि काल का विचार किया जाये तो काल हि ईश्वर के प्रशासन क्षेत्र का अधिकारी है जन्म से लेकर मृत्यू तक सभी अवस्थाओं
    के परिवर्तन चक्र काल के आधीन है। काल हि संसार का नियामक है।

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  47. कालसर्प योग से पिडीत जातक का भाग्य प्रवाह राहु केतु अवरुध्द करते है। जिसके परिणाम स्वरुप जातक की प्रगति नही होती। उसे जीवीका चलाने का साधन नहीं मिलता अगर मिलता है तो उसमें अनेक समस्यायें पैदा होती है। जिससे उसको जिविका चलानी मुश्किल हो जाती है। विवाह नही हो पाता। विवाह हो भी जाए तो संतान-सुख में बाधाएं आती है।
    वैवाहीक जीवन मे कलहपुर्ण झगडे आदि कष्ट रहते हैं। हमेशा कर्जं के बोझ में दबा रहाता है और उसे अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पडते है।

    दुर्भाग्य
    जाने अन्जाने में किए गए कर्मो का परिणाम दुर्भाग्य का जन्म होता है।
    दुर्भाग्य चार प्रकार के होते है-
    1. अधिक परिश्रम के बाद भी फल न मिलना धन का अभाव बने रहना।
    2. शारीरीक एवं मानसिक दुर्बलता के कारण निराशा उत्पन्न होती है। अपने जीवीत तन का बोझ ढाते हुए शीघ्र से
    शीघ्र मृत्यु की कामना करता है।
    3. संतान के व्दारा अनेक कष्ट मिलते है
    4. बदचनल एवं कलहप्रिय पति या पती का मिलना है।

    उपरोक्त दुर्भाग्य के चारों लक्षण कालसर्प युक्त जन्मांग में पूर्ण रूप से दृष्टिगत होते है।
    कालसर्प योग से पिडित जातक दुर्भाग्य से मूक्ति पाने के लिए अनेक उपायो का सहारा लेता है वह हकीम वैदय डॉक्टरों के पास जाता है। धन प्राप्ति के अनेक उपाय करता है बार बार प्रयास करने पर भी सफलता नही मिलने पर अंत में उपाय ढुंढने के लिए वह ज्योतिषशास्त्र का सहारा लेता है।अपनी जन्म पत्री मे कौन कौन से दोष है कौन कौन से कुयोग से है उन्हें तलाशता है। पुर्वजन्म के पितृशाप, सर्पदोष, भातृदोष आदि दोष कोई उसकी कुंडली में है - कालसर्प योग।

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  48. कोई माने या न माने कालसर्प योग होता है। किसी के मानने या न मानने से शास्त्री य सिध्दांत न कभी बदले थे औ न ही बदलेंगे । शास्त्र आखिर शास्त्र हैं इसे कोई माने या न माने इससे कोई अंतर नही पडता । कालसर्प योग प्रमाणित है इसे प्रमाणित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    कालसर्प योगके बाराह प्रकार है।
    १) अनंत कालसर्प योग
    जब कुंडली मे प्रथम एवंम सप्तम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को अनंत कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के चिंता, न्युनगंड, जलसे भय आदी प्रकारसे नुकसान होता है।
    २) कुलिक कालसर्प योग
    जब कुंडली मे दुसरे एवंम आठवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कुलिक कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को आर्थिक हानी, अपघात, वाणी मे दोष, कुटुंब मे कलह, नर्व्हस ब्रेक डाउन आदी
    आपतीयोंका सामना करना पडता है।
    ३) वासुकि कालसर्प योग
    जब कुंडली मे तीसरे एवंम नवम स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को वासुकि कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को भाई बहनोंसे हानी, ब्लडप्रेशर, आकस्मित मृत्यु तथा रिश्तेदारोंसे नुकसान होता है।

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  49. ४) शंखपाल कालसर्प योग
    जब कुंडली मे चौथे एवंम दसवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखपाल कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके माता को पिडा, पितृसुख नही, कष्टमय जिवन, नोकरी मे बडतर्फी, परदेश जाकर
    बुरी तरह मृत्यु आदी।
    ५) पद्दम कालसर्प योग
    जब कुंडली मे पांचवे एवंम ग्यारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पद्दम कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्तीके विध्याअध्ययन मे रुकावट, पत्नी को बिमारी, संतान प्राप्ती मे विलंब, मित्रोंसे हानी होती है।
    ६) महापद्दम कालसर्प योग
    जब कुंडली मे छ्ठे एवंम बारहवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को महापद्दम कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को कमर की पिडा, सरदर्द्, त्वचारोग्, धन की कमी, शत्रुपीडा यह सब हो सकता है
    ७) तक्षक कालसर्प योग
    जब कुंडली मे सातवे एवंम पहले स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को तक्षक कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती के दुराचारी, व्यापार मे हानी, वैवाहिक जीवन मे दु:ख, अपघात, नौकरीमे परेशानी
    होती है।
    ८) कर्कोटक
    जब कुंडली मे आठवे एवंम दुसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को कर्कोटक कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को पितृक संपत्ती का नाश, गुप्तरोग, हार्ट अटैक, कुटुंब मे तंटे और जहरीले जनवरोंसे
    डर रहता है।
    ९) शंखचुड कालसर्प योग
    जब कुंडली मे नवम एवंम तीसरे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शंखचुड कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती धर्म का विरोध, कठोर वर्तन, हाय ब्लड प्रेशर, सदैव चिंता, संदेहास्पद चरीत्रवाला
    होता है।

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  50. १०) पातक कालसर्प योग
    जब कुंडली मे दशम एवंम चौथे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को पातक कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती दुष्ट, दुराचारी लो ब्लड प्रेशर जीवन मे कष्ट, घर मे पिशाच्च पीडा, चोरी की
    संभावना होती है।

    ११) विषधर कालसर्प योग
    जब कुंडली मे ग्यारहवे एवंम पांचवे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को विषधर कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती को अस्थिरता, संततीसंबंधी चिंता, जेल मे कैद होने की संभावना होती है।
    १२) शेषनाग कालसर्प योग
    जब कुंडली मे बारहवे एवंम छ्ठे स्थान मे राहू, केतु होते है। तब इस योग को शेषनाग कालसर्पयोग कहते है।
    इस योग के प्रभाव से व्यक्ती अपयश, ऑंख की बिमारी, गुप्त शत्रुअओंकी पिडा, तंटे बखेडे आदी मुकाबला करना
    पडता है।

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  51. नियम :
    १) नारायण नागबली-नारायणबली, नागबली तीन दिन में संपन्न होनेवाली विधी है।
    २) आपको मुहूर्त के एक दिन पहले शाम को यहा पर आना जरूरी है।
    ३) विधान के लिए नये सफेद वस्त्र ( धोती, गमछा, नैपकिन, धर्मपत्नी के लिए साड़ी, ब्लाउज जिसका रंग काला या हरा नही होना चाहीये।
    ४) इस विधी के लिए आपको एक सव्वा ग्राम सोने की नाग प्रतिमा लानी चाहिए।
    ५) विधी की अन्य व्यवस्था पंडीतजी व्दारा कि जाती है।
    ६) पूजा विधी के लिए ८ दिन पहले आपका नाम दूरध्वनी यानि मोबाइल पर अथवा मेल पर अथवा पत्र व्दारा आरक्षण करना अनिवार्य है। क्योंकी आपकी सभी सुविधा हम कर सके।
    रुद्राभिषेक विधि: रुद्राभिषेक विधि कल्याणकारी हैं। उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि-विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्र-- ॐ नम:शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव-पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।

    महाशिवरात्रि पर शिव-आराधना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। अधिकांश शिव भक्त इस दिन शिवजी का अभिषेक करते हैं। लेकिन बहुत कम ऐसे लोग है जो जानते हैं कि शिव का अभिषेक क्यों करते हैं?

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  52. वेदों से हमें ज्ञान प्राप्त होता है, लेकिन वेदना हमारे भीतर विवेक जाग्रत करती है। इसलिए जीवन को बेहतर बनाने के लिए संवेदना का उदय आवश्यक है। कथावाचक मोरारी बापू का चिंतन..
    लोग कहते हैं कि जहां पैसा होता है, वहां संवेदना नहीं होती। यह कोई सूत्र या सिद्धांत नहीं है। यदि जीवन में विवेक प्रकट हो जाए तो धन में भी संवेदना प्रकट हो सकती है। विद्या से भी संवेदना प्रकट हो सकती है और ज्ञान से भी संवेदना हो सकती है। विवेक हो तो हर क्षेत्र में संवेदना का जन्म हो सकता है।
    मेरा एक सूत्र है कि जिस देश के पास वेद हो मगर वेदना न हो तो वेद भी ज्यादा सहायक नहीं बन पाएंगे। हमारे पास वेद है, लेकिन वेदना नहीं। मैं युवाओं से यही कहना चाहता हूं कि बुजुगरें से प्रेरणा लेकर ईश्वर से प्रार्थना करें कि हमारे अंदर की संवेदना का नाश न हो। हमारी वेदना सलामत रहे, यह बहुत जरूरी है, परस्पर संवेदना होगी तो एक छोटी-सी कुटिया भी राजमहल बन जाती है।
    कथा परम-पावन सद्प्रवृत्ति है, लेकिन वह उपयोगी हो, इसलिए संवेदना का अवतार होना चाहिए, वेदना प्रकट होनी चाहिए। मेरा अनुभूत प्रयोग है कि रामकथा से संवेदना प्रकट हो सकती है। संवेदनाशून्य समाज राम कथा से ही संवेदना से भर सकता है। आप सोचिए तो सही, बिना आंसू की आंख कोई आंख है? आंख में संवेदना हो, आंख में प्यार हो, आंख में भाव हो। हमारी आंखों में स्पर्धा कितनी घुस गई है। जहां देखो, वहां स्पर्धा। मैं अक्सर कहता हूं कि एवरेस्ट के लिए स्पर्धा चाहिए, मगर कैलास के लिए तो श्रद्धा ही चाहिए।
    एक सूक्ति है - मधुमक्खी की गुनगुनाहट तब तक होती है, जब तक वह फूल का रस न लेना शुरू कर दे। जब वह फूल पर बैठ जाती है और रस चूसने लगती है तो उसकी गुनगुनाहट बंद हो जाती है। मेरे भाई-बहन, संवेदना प्रकट करके जीवन की किसी ऐसी सद्प्रवृत्ति के फूल पर बैठ जाओ। ऐसी प्रवृत्ति में रुचि
    लेकर, जिसमें तुम्हारा कोई स्वार्थ नहीं है, केवल और केवल औरों के लिए तुम्हारे हृदय में संवेदना प्रकट हुई हो, और तुम उसी सद्प्रवृत्ति में लग जाओ तो कर्म की गुनगुनाहट बंद हो जाएगी।
    पीपल का एक छोटा-सा पौधा हो तो संभालने के लिए बाड़ लगानी पड़ती है, लेकिन वही पौधा जब बहुत बड़ा हो जाए तो उसके तने के साथ हाथी को बांध दो तो वह भी उसे नहीं
    उखाड़ सकता। वैसे ही, व्यक्ति की संवेदना और साधना जब छोटी हो, तब सुरक्षा की जरूरत है। लेकिन भजन जब विराट हो जाता है, तब काम-क्रोध के हाथी उसे उखाड़ नहीं पाते। किसी विकार की ताकत नहीं कि उसे निर्मूल कर सके। सत्संग भी ऐसा ही है। गोस्वामी जी कहते हैं कि बिनु सत्संग बिबेक न होई। विवेक को केंद्र में रखकर हम उससे अपनी दबी हुई, बुझती हुई संवेदना की ज्योति को पुन: प्रज्जवलित करें। हमारे दिल में संवेदना का एक दीप जले और इस जाग्रत ज्योति के आश्रय में रामचरित मानस जैसा बिल्कुल प्रासंगिक शास्त्र, हर युग-धर्म-जाति-देश के लिए, हरेक व्यक्ति के लिए अनुकूल पड़े, ऐसे शास्त्र के प्रकाश में हम अपनी संवेदना को विकसित करें।
    गोस्वामी जी कहते हैं कि रचि महेस निज मानस राखा.. शंकर भगवान ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा था, अपने हृदय में रखा था। तुलसी का यह रामचरित मानस ग्रंथ हमारे जीवन का एक मार्ग बन गया है। भगवान शंकर इसे हृदय में रखकर बैठे हैं। संवेदना कभी मस्तिष्क में नहीं होती, हृदय में ही होती है।
    मुझे इतने साल की यात्रा से लगता है कि रामकथा व्यक्ति को बहिर्मुख भी कर देती है और अंतर्मुख भी। रामकथा से विवेक की उपलब्धि कर हम अंतर्मुखी भी हों और दूसरों के लिए थोड़ा बहिर्मुखी भी हों। गोस्वामी जी कहते हैं कि सत्संग के बिना विवेक कभी नहीं होगा। तो एक बात पक्की हो गई कि सत्संग करो तो विवेक होगा। लेकिन तुलसी ने तुरंत एक शर्त डाल दी- राम कृपा बिनु सुलभ न सोई.. सत्संग हरि की कृपा के बिना सुलभ नहीं है। सत्संग में जाने का मौका मिले तो समझना कि हरि कृपा हो रही है। फिर क्या होगा? कोई बिबेकु मोह भ्रम भागा.. मोह और भ्रम, दोनों ही भाग जाएंगे तब रघुनाथ चरन अनुरागा.. तब राम के चरणों में प्रेम उत्पन्न हो जाएगा। ईश्वर के चरणों के प्रेम के मार्ग की बाधा दो ही हैं। मोह और भ्रम। प्रेम में यदि मोह आ गया तो बाधा है और प्रेम में यदि भ्रम आ गया तो बाधा है।

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  53. और सिंदूर हो गया हनुमान जी का प्रिय

    हनुमान जी ने सोचा कि कि चुटकी भर सिंदूर लगाने से राम जी की आयु बढ़ जाती है और माता को राम जी का स्नेह मिलता है तो क्यों न मैं पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लूं। इससे तो प्रभु राम अमर हो जाएंगे और मुझे भी उनका अपार स्नेह मिलेगा। बस क्या था, हनुमान जी ने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया और पहुंच गए राम जी की सभा में।

    राम जी ने जब हनुमान को इस रुप में देखा तो हैरान रह गए। राम जी ने हनुमान से पूरे शरीर में सिंदूर लेपन करने का कारण पूछा तो हनुमान जी ने साफ-साफ कह दिया कि इससे आप अमर हो जाएंगे और मुझे भी माता सीता की तरह आपका स्नेह मिलेगा।

    हनुमान जी की इस बात को सुनकर राम भी भाव विभोर हो गए और हनुमान जी को गले से लगा लिया। उस समय से ही हनुमान जी को सिंदूर अति प्रिय है और सिंदूर अर्पित करने वाले पर हनुमान जी प्रसन्न रहते हैं।

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