शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वहीं, पुराणों में शिव और विष्णु में भेद या तुलना निरर्थक ही नहीं पाप भी बताया गया है। क्योंकि वह एक ही परब्रह्म के स्वरूप माने गए हैं। भगवान विष्णु व शिव जगत के संताप और कलह को हरने वाले भी माने गए हैं। इसी भाव से दोनों देवताओं को हरि और हर भी पुकारा जाता है।
वैशाख माह भगवान विष्णु उपासना के साथ ही गर्मी का मौसम भी होता है। यही वजह है कि वैशाख माह के हर दिन, खासतौर पर शिव भक्ति के दिनों में विशेष मंत्रों से भगवान विष्णु के स्मरण के साथ प्रकृति रूप शिव की पूजा में जल धारा बहुत ही शुभ फल देने वाली मानी गई है।
शिव वैराग्य के अद्भुत आदर्श हैं। वाघम्बरधारी, सरल और सहज स्वरूप शिव अपने भक्त द्वारा अपनाए पूजा के आसान उपायों और सामग्रियों से भी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए यहां बताय जा रहा शिवलिंग पूजा का ऐसा आसान उपाय जो जल्द ही खुशहाल बनाने वाला माना गया है -
वैशाख माह के गर्मी के मौसम में शिवलिंग पर विशेष व आसान मंत्रों के साथ जल अर्पण कर मनोरथ पूर्ति की कामना करना बहुत ही शुभ होता है -
- सुबह नित्यकर्म और स्नान कर पवित्र हो जाएं। - शिव उपासना के लिए सफेद वस्त्र पहनें। - पंचोपचार पूजा चंदन या गंध, फूल, नैवेद्य और धूप, दीप से आरती का विधान है। इसके बाद शिव को जल व बिल्वपत्र भी अर्पित करते हुए विष्णु स्मरण के साथ नीचे लिखे शिव मंत्र बोलें -
ॐ विष्णुवल्लभाय नम: ॐ महेश्वराय नम: ॐ शंकराय नम:
- भगवान को नैवेद्य में फल या दूध से बनी मिठाई चढ़ाएं। - पूजा के बाद धूप, दीप, कर्पूर की शिव की आरती करें।
दुःख गुस्सा प्रेरणा परिवार अधिकार प्रार्थना संस्कार संस्कार प्रकृति अशांति प्रेरणा शांति बच्चे कर्तव्य नुकसान दबाव कर्म भगवान किस्मत रिश्ते समय ध्यान समय प्रबंधन दाम्पत्य शादी चिंता शरीर सुख समस्या प्यार स्वास्थ्य भाग्य गृहस्थी असफलता तनाव खुशी अशांति सफलता
सांसारिक जीवन में किसी भी रूप में आया दु:ख या संकट का वक्त बड़ा कठिन होता है। हिन्दू धर्म परंपराओं में ऐसे ही बुरे वक्त, हालात या बदहाली से बचने के लिए शिव उपासना प्रभावी मानी गई है। क्योंकि शिव भक्ति का मूल भाव ही शुभ व कल्याण को अपनाना है। भगवान शिव का महाकाल स्वरूप, काल भय से मुक्त करने वाला माना गया है। इनकी उपासना का फल मात्र काल या मृत्यु को टालने के ही अर्थ में नहीं है, बल्कि संदेश है कि शिव भक्ति काल यानी वक्त को भी अनुकूल बनाने वाली होती है।
अच्छाई का संग मिलते ही बुराई का अंत होता है। ऐसे ही भावों से शिवपुराण में आए एक मंत्र का ध्यान मात्र ही हर संसारी जीव के लिए बड़ा ही संकटमोचक व मंगलकारी माना गया है। खासतौर पर वैशाख माह में 6 को सोमवार और 7 को प्रदोष तिथि पर तो यह मंत्र स्मरण बड़ा ही शुभ होगा। जानिए कौन सा है यह शिव मंत्र, जो कई लोग नही जानते -
शिवपुराण के मुताबिक दानवी शक्तियों पर विजय व जगत कल्याण के भाव से देवताओं ने इस मंत्र से ही शिव की प्रसन्नता व कृपा पाई। शिव भक्ति की तिथियों पर पर शिव भक्ति की विशेष घड़ी में तो इस आसान व अचूक शिव मंत्र का स्मरण पलों में दु:ख व दरिद्रता दूर करने वाला माना गया है।
शाम को स्नान के बाद यथासंभव सफेद वस्त्र पहन शिवालय में गाय के दूध मिले पवित्र जल में अक्षत, तिल व सफेद चंदन मिलाकर नीचे लिखें मंत्र से शिवलिंग पर जलधारा अर्पित कर चंदन, बिल्वपत्र, फूल, जनेऊ व दूध या मावे की मिठाई का भोग लगाकर शिव की धूप, दीप, कर्पूर आरती कर कष्टों से छुटकारे या संकटमुक्त जीवन की कामना करें -
ऊँ नम: शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नम: ऊँ
- शिवलिंग पर चढ़ाए जल को चरणामृत रूप में ग्रहण करें व थोड़ा जल लाकर घर के हर कोने में छिड़कें।
- इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से यथाशक्ति जप भी मनोरथसिद्धि करने वाला होता है।
हर प्रेमी या प्रेमिका के मन में एक सवाल जरुर उठता है कि उसके लव पार्टनर का नेचर कैसा है, जैसा वह दिखाने की कोशिश करता है या इससे अलावा भी उसका अलग स्वभाव है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से ये समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है क्योंकि नाम यानी राशि के आधार पर भी किसी भी प्रेमी या प्रेमिका के नेचर के बारे में आसानी से जाना जा सकता है।
धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। तंत्र शास्त्र के अनुसार कुछ साधारण मगर सटीक उपाय करने से मां लक्ष्मी अपने भक्त पर जल्दी ही प्रसन्न हो जाती हैं और उसे मालामाल कर देती हैं। ये उपाय शुक्रवार को करने से और भी जल्दी फल प्राप्त होता है।
- शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और साधक को मालामाल कर देती हैं।
क्या होते हैं शकुन अपशकुन- शकुन-अपशकुन प्रकृति से मिलने वाले वो संकेत होते हैं जो हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं से सावधान करवाती है। ये वो छोटी-छोटी बातें होती है, जिन पर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता है। प्रकृति हमारे भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देती हैं। भारतीय ज्योतिष में वाराह संहिता नाम के ग्रन्थ में शकुन-अपशकुन के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है। शकुन-अपशकुन प्राचीन काल से ही लोकवार्ता या रिती-रिवाजों से पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचते रहे हैं। कुछ लोग इसको अंधविश्वास मानते हैं। फिर भी ज्यादातर लोग इन संकेतों को अनदेखा नहीं करते। हर इंसान कभी-कभी किसी ना किसी रूप में इन संकेतो को मानता है। शकुनों के परिणाम उतने ही प्राचीन हैं जितनी मनुष्य जाति। इन संकेतो को केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में माना जाता है। शकुन का उल्लेख हमारे वेदों, पुराणों व धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। महाभारत और रामायण जैसे ग्रन्थों में भी कई जगह शकुनों की बात कही गई है। ज्योतिष में भी शकुनों पर विशेष विचार किया जाता है। प्रश्न कुंडली के विचार में शकुनों का खास महत्व है। शुभ शकुनों में पूछे गये प्रश्न सफल व अपशकुनों में पूछे गये प्रश्न असफल होते देखे गये हैं
कितने तरह के होते है शकुन-अपशकुन- शकुन-अपशकुन कईं तरह के होते हैं। ये पृथ्वी से, आकाश से, स्वप्नों से और शरीर के अंगों से संबंधित हो सकते हैं। शकुन- अपशकुन जीव- जंतुओं और आपकी रोजमर्रा की जिंदगी से भी जुड़े हुए होते हैं। किसी भी काम या काम के बारे में बात करते वक्त होने वाली प्राकृतिक घटना शकुन या अपशकुन होती है। ये कई तरह की हो सकती है। प्राकृतिक व अप्राकृतिक तथ्य अच्छे व बुरे फल की भविष्यवाणी करने में सक्षम होते है॥
वाराह संहिता के अनुसार अपशकुनों से मुक्ति और बचने के लिए लोगों को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए यदि काले पक्षी, कौवा, चमगादड़ या किसी भी प्रकार के जानवरों आदि के अपशकुनों से प्रभावित हों तो अपने इष्टदेव का ध्यान करें या धर्मस्थल पर तिल के तेल का दान करें। अपशकुनोंं के दुष्प्रभाव से बचने के लिए धर्म स्थान पर प्रसाद चढ़ाकर बांट दें। छींक और हर तरह के सामान्य-असामान्य अपशकुनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए महामद्यमृत्युंजय के निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
अपना बिस्तर खिड़की के पास कभी भी न लगाएं। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और आपसी असहयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है। फिर भी यदि खिड़की के पास बिस्तर लगाना पड़े तो अपने सिरहाने और खिड़की के बीच पर्दा जरूर डालें। इससे नकारात्मक ऊर्जा रिश्तों पर असर नहीं कर पाएगी।
अपना बिस्तर खिड़की के पास कभी भी न लगाएं। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और आपसी असहयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है। फिर भी यदि खिड़की के पास बिस्तर लगाना पड़े तो अपने सिरहाने और खिड़की के बीच पर्दा जरूर डालें। इससे नकारात्मक ऊर्जा रिश्तों पर असर नहीं कर पाएगी।
झाडू- झाडू को घर की लक्ष्मी मानते हैं क्योंकि यह दरिद्र को घर से बाहर निकालता है। इससे भी कई शकुन व अपशकुन जुड़े हैं। दीपावली के त्यौहार पर नया झाडू घर में लाना लक्ष्मी जी के आगमन का शुभ शकुन है। नए घर में गृह प्रवेश से पूर्व नए झाडू का घर में लाना शुभ होता है। झाडू के ऊपर पांव रखना गलत समझा जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रहा है। कोई छोटा बच्चा अचानक घर में झाडू लगाने लगे तो समझ लीजिए कि घर में कोई अनचाहे मेहमान के आने का संकेत है। सूर्यास्त के बाद घर में झाडू लगाना अपशकुन होता है क्योंकि यह व्यक्ति के दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
दूध- सुबह-सुबह दूध को देखना शुभ कहा जाता है। दूध का उबलकर गिरना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति, संपत्ति, मान व वैभव की उन्नति होती है। दूध का बिखर जाना अपशकुन मानते हैं जो किसी दुर्घटना का संकेत है। दूध को जान-बूझ कर छलकाना अपशकुन माना जाता है जो घर में कलह का कारण है। दूध का अपशकुन दूध का बिखर जाना अशुभ होता है। बच्चों का दूध पीते ही घर से बाहर जाना अपशकुन माना जाता है। स्वप्न में दूध दिखाई देना अशुभ माना जाता है।
आइना- हर घर में आइने का बहुत महत्व है। आइने से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नवविवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। मतलब ये कि टूटा आइना हर तरह से अशुभ ही होता है।
आइना- हर घर में आइने का बहुत महत्व है। आइने से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नवविवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। मतलब ये कि टूटा आइना हर तरह से अशुभ ही होता है।
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मकर लग्न की कुंडली के सप्तम या अष्टम भाव में शनि स्थित हो तो व्यक्ति के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं जानिए... मकर लग्न की कुंडली के सप्तम भाव में शनि हो तो... कुंडली का सप्तम भाव जीवन साथी का कारक स्थान होता है और मकर लग्न की कुंडली में इस स्थान कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। यहां शनि होने पर व्यक्ति को जीवन साथी की ओर कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन लोगों को कड़ी मेहनत के बाद ही सफलता मिलती है। धन के मामलों में इन्हें आंशिक सुख प्राप्त होता है। शनि के कारण ऐसे लोगों को संतान की ओर से पूर्ण सुख प्राप्त होता है। मकर लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में शनि हो तो... जिन लोगों की कुंडली मकर लग्न की है और उसके अष्टम भाव में शनि स्थित है तो उन लोगों को स्वास्थ्य संबंधी मामलों में सावधान रहने की आवश्यकता है। मकर लग्न की कुंडली का अष्टम भाव सिंह राशि है और इसका स्वामी शनि का शत्रु सूर्य है। यहां शत्रु राशि में शनि होने पर व्यक्ति को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। धन के साथ घर-परिवार की ओर से भी इन्हें आंशिक सुख ही मिल पाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इन्हें कई उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र मारण , मोहन , सम्मोहन , उच्चाटन , वशीकरण , आदि सभी कार्यों में यह मंत्र फलदायक है तथा इस मंत्र के सिद्ध करने पर घर में स्वर्ण वर्षा सी होती रहती है | विनियोग ॐ अस्य श्री स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्रस्य, श्री ब्रह्मा ऋषिः पंक्तिश्छन्दः | हरी हर रुद्रत्मक स्वर्णाकर्षण भैरवो देवता ,ह्रीं बीजं ह्रीं शक्तिः ॐ कीलकं स्वर्णाकर्षण भैरव प्रसाद सिद्ध्यर्थं स्वर्ण राशि प्राप्तये स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जपे विनियोगः | ध्यान पीतवर्ण चतुर्बाहु त्रिनेत्रपीतदाससम्| आश्रय स्वर्ण मणिक्यम तडित पूरित पात्रकम् | अभिलषितं महाशुलं तोमरं चामरं द्रव्यं | सर्वाभरण सम्पन्नं मुक्ताहरोपशोभितम | मदोंन्मत्तम सुखासीनं भक्तानां च वर प्रदं | संततं चितयेद्रिश्यं भैरवं सर्व सिद्धिदम् | पारिजात द्रुम कांतारस्थिते मणि मंडपे | सिंहासन गतं ध्यायेद्भैरव स्वर्ण दायकम् | गागेयपात्रं डमरूं त्रिशूलं वरं करैः संदश्रतं त्रिनेत्रम् | देव्यायुतं तप्त सुवर्ण वर्ण स्वर्णाकृतिं भैरवामाश्रयामि |
स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय ह्रांह्रींह्रूं | अजामलबद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय | मम दारिद्रयं विद्वेषणाय महाभैरव नमः श्रीं ह्रीं ऐं | यह मंत्र सवा लाख जपने से सिद्ध होता है और इअसका दशांश तर्पण करना चाहिए |
स्त्री हो या पुरुष रोज सुबह बिस्तर छोडऩे से पहले अपने हाथों के दर्शन करने चाहिए। यदि आप सोचते हैं कि केवल हाथों के दर्शन से क्या होगा? तो इस प्रश्न का उत्तर धर्म ग्रंथों में दिए इस मंत्र में छिपा हुआ है- कराग्रे वसति लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविंद: प्रभाते करदर्शनम्॥ इस मंत्र में बताया गया है कि सुबह-सुबह हमें अपने हाथों के दर्शन क्यों करने चाहिए। यह प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा है और आज भी जो लोग इसका पालन करते हैं उनके जीवन में सुख और शांति के साथ धन की पूर्ति भी बनी रहती है।
1 रोटी के चमत्कारी फायदे जानेंगे तो आप भी रोज करेंगे ये 1 काम
खाने में चाहे कितने भी पकवान हों लेकिन रोटी के बिना खाना अधूरा ही रहता है। रोटी हमारे पेट को तो तृप्त करती ही है लेकिन शास्त्रों के अनुसार रोटी के कई अन्य फायदें भी बताए गए हैं। रोटी से जुड़े कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें करने से हमारी किस्मत चमक सकती हैं और रुके हुए कार्य पूर्ण हो सकते हैं।
गाय हिंदू धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। अत: प्रतिदिन हमें गाय को कम से कम 1 रोटी अवश्य खिलानी चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है। भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौमाता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा ही जैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।
सभी जीवों के भरण-पोषण का ध्यान रखना भी इंसानों का ही कर्तव्य बताया गया है। इसी वजह से यह परंपरा शुरू की गई है। पुराने समय में गाय को घास खिलाई जाती थी लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी है। जंगलों कटाई करके वहां हमारे रहने के लिए शहर बसा दिए गए हैं। जिससे गौमाता के लिए घास आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है और आम आदमी के लिए गाय के लिए हरी घास लेकर आना काफी मुश्किल कार्य हो गया है। इसी कारण के चलते गाय को रोटी खिलाई जाने लगी है।
पित्री दोष का कारन है दिवंगत पितरों की अतृप्ति इसका मूल कारन है पितरों की “स्वधा” नामक उस पराशक्ति के स्वरूप का अप्रसन्न होना श्राद्ध पक्ष में थोड़े से प्रयास से ही इन सर्व शक्तिमान स्वधा देवी को तृप्त-प्रसन्न करने से पित्री/काल सर्प/पित्री चंडाल दोष का निवारण किया जा सकता है क्रिया निम्न प्रकार है सर्व प्रथम घर के मंदिर या दक्षिण दिशा के कोने में हरे रंग के कपडे में नारियल लपेट कर कलश स्थापन करें लगातार सभी श्राधों में शास्त्र विधि अनुसार पंचोपचार पूजन करें खीर का प्रशाद अर्पण करें इनमें ही अपने सभी पितरों का ध्यान करें सामर्थ्य अनुसार मंत्र “ओम हरीम श्रीम कलीम स्वधा देव्या स्वाहा” इसके उपरान्त समस्त पितरों के निमित्त तर्पण-श्राद्ध के द्वारा अन्न और जल प्रदान करें फिर अमावस्या को इस नारियल को किसी भी पवित्र नदी में जल प्रवाह कर दें जल को सारे घर में झिडक दें !श्रीमद्देवी भगवत के नवें स्कंध के ४४वे अध्याय के ३१वें श्लोक में लिखा है ...हे देवी ! तुम पितरों के लिए प्राणतुल्य और ब्राह्मणों के लिए जीवनस्वरूपिणी हैं !आप श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी हो और श्राद्ध बल्वैश्व आदि का फल प्रदान करने वाली है !!३१!!
श्राद्ध की महत्ता क्यूँ और कैसे धर्म शास्त्रों में कहा गया है की पितरों को पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु,पुत्र-पोत्र,यश,स्वर्ग,पुष्टि,बल,लक्ष्मी,सुख-शांति,सम्रिध्ही,सोभाग्य,धन-धान्य एवं मोक्ष की प्राप्ति करता है! अश्विन मास में पितरों को आशा होती है की हमारे पुत्र-पोत्र हमारे लिए तर्पण,श्राद्ध एवं पिंड दान करेंगे इसी आशा को लेकर इस पुरे पन्द्रह दिन सभी के सभी पितृ पृथ्वी पर उसके घर में आ जाते हैं अतः हर गृहस्थी का कर्तव्य है वोह अपने ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के निमित्त तर्पण-श्राद्ध,पिंड दान अवश्य करे ये पितरों का पर्व पक्ष होता है अतः अपने वंशजों की सेवा से प्रसन्न हो कर वे पितृ हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं जो गृहस्थ इस प्रकार उनके निमित्त जान-समझ कर कुछ नहीं करता अंत में अमावस्या वाले दिन वो दुखी मन से निश्वास छोडते हुए शाप देकर वापिस अयार्मा लोक चले जाते हैं वहाँ जाकर उन्हें जो अपमान सहन करना पड़ता है वोही हमें तरह-तरह के दुखों के रूप में भोगना पड़ता है अतः एकदम श्राद्ध का परित्याग नहीं करना चाहिए पितरों को निष्काम-निस्स्वार्थ भाव से पुरे पन्द्रह दिन सामर्थ्य अनुसार अवश्य तृप्त करें
समुद्र शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर का हर अंग उसके स्वभाव के बारे में कुछ न कुछ जरूर बताता है। अगर किसी मनुष्य के शरीर पर पूरी तरह से गौर किया जाए तो उसके स्वभाव के बारे में बहुत कुछ आसानी से जाना जा सकता है।
समुद्र शास्त्र के अनुसार कान और गर्दन भी ऐसे ही अंग हैं, जो किसी भी इंसान के स्वभाव को अच्छे से व्यक्त करते हैं। कान मनुष्य की चौथी ज्ञान इंद्री है। इसका एक हिस्सा शरीर के बाहर दिखाई देता है, जबकि एक हिस्सा शरीर के अंदर होता है।
जबकि गर्दन शरीर का वह हिस्सा है, जिस पर मनुष्य का सिर टिका होता है और मस्तिष्क से निकलकर सभी अंगों में पहुंचने वाली नसें और नाडिय़ां इसी से होकर गुजरती हैं। जानिए किस तरह के कान व गर्दन वाले लोगों का स्वभाव कैसा होता है-
छोटे कान- समुद्र शास्त्र के अनुसार जिन लोगों के कान सामान्य से थोड़े छोटे आकार के होते हैं, ऐसे लोग बहुत बलशाली होते हैं। ये विश्वसनीय भी होते हैं। साथ ही, ये कला के क्षेत्र में भी रुचि रखते हैं। यदि कोई इनसे कोई वस्तु मांग ले तो ये उसे मना नहीं करते।
मोटी गर्दन- समुद्र शास्त्र के अनुसार जिस इंसान की गर्दन मोटी होती है, प्राय: ऐसे लोगों की नीयत खराब होती है। ऐसे लोग भ्रष्ट चरित्र, व्यसनी, शराबी, दु:स्साहसी, क्रोधी, अहंकारी, उन्मादी तथा अधिक आक्रामक होते हैं। इन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
बड़े कान- यदि किसी व्यक्ति के कान बड़े हो तो वह विचारशील, कर्मठ, व्यवहारिक तथा समय का पाबंद होता है। ऐसे लोग कभी-कभी क्रूर भी हो जाते हैं यदि कोई इनकी बात न माने तो। इन्हें किसी भी काम में लेटलतीफी पसंद नहीं आती और ये सब काम व्यवस्थित तरीके से करने में विश्वास रखते हैं।
चौड़े कान- समुद्र शास्त्र के अनुसार यदि किसी इंसान के कानों का चौड़ाई सामान्य से अधिक हो तो ऐसे लोग सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य की प्राप्ति करते हैं। ऐसे लोग अवसरवादी भी होते हैं यानी ये सिर्फ अपना स्वार्थ साधने में लगे रहते हैं।
सामान्य से अधिक छोटे कान- यदि किसी व्यक्ति के कान बहुत ही छोटे हो तो ऐसे लोग चंचल, निम्न विचारधारा वाले एवं भगवान में विश्वास करने वाले होते हैं। कभी-कभी ऐसे लोग लालची भी हो जाते हैं और किसी के भी साथ धोखा करने से नहीं हिचकते। ये बहुत चापलूस भी होते हैं। किसी से काम निकालना इन्हें बखूबी आता है।
- जिन लोगों के कान ऊपर की ओर ऊठे हुए हो तो यह लज्जा, शर्म और संकोच का लक्षण है और यदि कान गर्दन की ओर झुका हो तो यह संकेत है सतर्कता, सावधानी, शंका तथा मौन प्रवृत्ति का।
- जिस व्यक्ति के कान के बीच का भाग दबा हो तो वह अपराधी प्रवृत्ति का होता है।
सीधी गर्दन- समुद्र शास्त्र की माने तो जिन लोगों की गर्दन सीधी होती है, ऐसे लोग स्वाभिमानी होते हैं। साथ ही ये लोग समय के पाबंद, वचनबद्ध एवं सिद्धांत प्रिय होते हैं। इन पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है।
लंबी गर्दन- जिन लोगों की गर्दन सामान्य से अधिक बड़ी हो तो ऐसे लोग बातूनी, मंदबुद्धि, अस्थिर, निराश और चापलूस होते हैं। यह अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की आदत से लाचार भी होते हैं।
छोटी गर्दन- अगर गर्दन सामान्य आकार से छोटी होती है तो ऐसे लोग कम बोलने वाले, मेहनती, हित साधक मगर धूर्त, कंजूस, अविश्वसनीय व घमंडी होते हैं। ऐसे लोगों का फायदा दूसरे लोग उठाते हैं मगर इन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता।
सूखी गर्दन- ऐसी गर्दन में मांस कम होता है तथा नसें स्पष्ट दिखाई देती हैं। ऐसे लोग सुस्त, कम महत्वाकांक्षी, सदैव रोगी रहने वाले, आलसी, क्रोधी, विवेकहीन और हर कार्य में असफल होते हैं। ये सामान्य स्तर के लोग होते हैं और अपने जीवन से संतुष्ट भी।
ऊंट जैसी गर्दन- ऐसी गर्दन पतली व ऊंची होती है। ऐसे जातक आमतौर पर सहनशील, अदूरदर्शी व परिश्रम प्रिय होते हैं। इनमें से कुछ लोग धूर्त भी होते हैं। ये लोग अपना हित साधने में लगे होते हैं और समय आने पर किसी भी हद तक जा सकते हैं।
आदर्श गर्दन- ऐसी गर्दन पारदर्शी व सुराहीदार होती है, जो आमतौर पर महिलाओं में पाई जाती है। ऐसी गर्दन कला प्रिय, कोमल, ऐश्वर्य और भोग की परिचायक होती है। ऐसे लोग सुख व वैभव का जीवन जीते हैं।
पवित्रा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह रोज के काम जल्दी निपटाकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें, संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। (यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।) भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत को पीए। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जप करें एवं व्रत की कथा सुनें। रात को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी (8 अगस्त, शुक्रवार) के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर व दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। इस प्रकार पवित्रा एकादशी व्रत करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है।
ज्योतिष में केतु को एक छाया ग्रह माना गया है, लेकिन जन्म कुंडली में यह जिस भाव में स्थित होता है, उससे संबंधित क्षेत्र को पूरे जीवन प्रभावित करता है। केतु हमेशा ही अशुभ प्रभाव नहीं देता है, इससे शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। कुंडली में केतु की महादशा के समय इस ग्रह का असर काफी अधिक रहता है। आपकी कुंडली में केतु किस भाव में स्थित है, उस स्थिति के अनुसार यहां जानिए आपके जीवन पर केतु का कैसा असर रहेगा...
कुंडली के पहले भाव में केतु केतु की इस स्थिति से व्यक्ति व्यापार में या सेवा क्षेत्र में अच्छा लाभ प्राप्त कर सकता है। इन्हें आध्यात्मिक कार्यों में भी सफलता मिलती है। पारिवारिक जीवन में केतु के कारण कभी-कभी तनाव हो सकता है। सिर दर्द की समस्या रहती है। साथ ही, जीवन साथी, संतान के स्वास्थ्य की भी चिंता रह सकती है। कुंडली के दूसरे भाव में केतु इस ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति की यात्राएं लाभ देने वाली होती हैं। ये लोग जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं। भविष्य के लिए धन बचाने के लिए इन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बुढ़ापे में संतान का साथ मिलता है। ध्यान रखें यहां सिर्फ केतु के अनुसार उसके फल बताए गए हैं। कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति और योगों के कारण केतु का असर बदल भी सकता है।
कुंडली के तीसरे भाव में केतु यदि कुंडली के तृतीय भाव में केतु स्थित हो तो व्यक्ति को ससुराल पक्ष से, भाइयों से और दोस्तों से विशेष लाभ मिलता है। ऐसे व्यक्ति को 45 वर्ष की उम्र में धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली के चौथे भाव में केतु केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति की भगवान के प्रति आस्था रखने वाला होता है। ये लोग गुरु के साथ ही घर के बुजुर्ग लोगों को प्रसन्न रखने वाले होते हैं। इन्हें समय-समय पर कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। इनका बचपन ठीक-ठाक रहता है।
कुंडली के पांचवें भाव में केतु यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव में केतु है तो व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम होता है। ये लोग विवादों से भी दूर रहते हैं। इस स्थिति के कारण कुछ लोगों की कुंडली में एक से अधिक विवाह के योग भी बन सकते हैं। इन लोगों को 45 वर्ष की उम्र के बाद समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली के छठे भाव में केतु जिन लोगों की कुंडली में केतु षष्ठम भाव में है, उनके जीवन में अच्छा और बुरा दोनों तरह का समय एक साथ चलता रहता है। इन्हें माता से विशेष स्नेह रहता है। ये लोग हंसमुख होते हैं। विदेश में या घर से दूर भी सहज ही रहते हैं। इनके कई दुश्मन हो सकते हैं।
कुंडली के सातवें भाव में केतु कुंडली के सप्तम भाव में केतु हो तो व्यक्ति दुश्मनों पर हावी रहता है। इन्हें 35 की उम्र के बाद मान-सम्मान, धन का सुख मिलता है। इन लोगों को अहंकार, झूठ और अभद्र भाषा से बचना चाहिए। इन बातों के कारण ये लोग परेशानियों का सामना करते हैं।
कुंडली के आठवें भाव में केतु कुंडली के इस भाव में केतु अच्छा माना जाता है। इस स्थिति के कारण व्यक्ति भावुक होता है। ये लोग दूसरे के भले के लिए सोचते हैं। 34 वर्ष की उम्र के बाद इन्हें कार्यों में सफलता और कई उपलब्धियां हासिल होती हैं। बीमारियों के कारण समय-समय पर परेशानियां होती रहती हैं।
कुंडली के नौवे भाव में केतु इस स्थिति के कारण व्यक्ति योग्य और बहादुर होता है। इन लोगों के पास पैसा भी पर्याप्त रहता है। ये लोग धन संबंधी कार्यों में तेजी से सफलता प्राप्त करते हैं। घर-परिवार में सुख मिलता है।
कुंडली के दसवें भाव में केतु केतु दशम भाव में हो तो व्यक्ति समाज में प्रसिद्ध होता है। इनका झुकाव खेलों की ओर अधिक रहता है। इनका व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है। इनका जीवन साथी सुंदर होता है। ये लोग अपने भाइयों की मदद करते हैं।
कुंडली में ग्याहरवें भाव में केतु इस भाव में केतु हो तो व्यक्ति हमेशा ही भविष्य के विषय में सोचता रहता है। इसी कारण ये लोग काम पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। इनके पास धन रहता है। ये लोग कार्यों को अच्छी तरह से संचालित कर सकते हैं। कुंडली के बारहवें भाव में केतु ये लोग हमेशा आगे बढ़ते रहते हैं, लेकिन व्यवसाय और नौकरी में बार-बार बदलाव के कारण पैसा जमा नहीं कर पाते हैं। यदि ये लोग दिखावे से बचेंगे तो लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
शाबर धूमावती साधना : ================= दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवां है और माँ के इस स्वरुप को बहुत ही उग्र माना जाता है ! माँ का यह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपा कहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी है ! एक मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया ! माँ सती ने इसे शिव जी का अपमान समझा और अपने शरीर को अग्नि में जला कर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा )उसने माँ धूमावती का रूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं पर आधारित है ! नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँ धूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे और अनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की ! यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलित शाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है ! कोर्ट कचहरी आदि के पचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोग करे ! माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रु उसे मूक होकर देखते रह जाते है ! || मंत्र || ॐ पाताल निरंजन निराकार आकाश मंडल धुन्धुकार आकाश दिशा से कौन आई कौन रथ कौन असवार थरै धरत्री थरै आकाश विधवा रूप लम्बे हाथ लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव डमरू बाजे भद्रकाली क्लेश कलह कालरात्रि डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाया जीया आकाश तेरा होये धुमावंतीपुरी में वास ना होती देवी ना देव तहाँ ना होती पूजा ना पाती तहाँ ना होती जात न जाती तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ आप भई अतीत ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा ! || विधि || 41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा ! || प्रयोग विधि १ || जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे – “ हे माँ ! मेरे (अमुक) शत्रु के घर में निवास करो ! “ ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा ! || प्रयोग विधि २ || शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे ! ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा ! नोट – इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !कोई भी जप-अनुष्ठान करने से पूर्व मंत्र की शुद्धि जांचा लें ,विधि की जानकारी प्राप्त कर लें तभी प्रयास करें |गुरु की अनुमति बिना और सुरक्षा कवच बिना तो कदापि कोई साधना न करें |उग्र महाशक्तियां गलतियों को क्षमा नहीं करती कितना भी आप सोचें की यह तो माँ है |उलट परिणाम तुरत प्राप्त हो सकते हैं |अतः बिना सोचे समझे कोई कार्य न करें |पोस्ट का उद्देश्य मात्र जानकारी उपलब्ध करना है ,अनुष्ठान या प्रयोग करना नहीं |अतः कोई समस्या होने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे
शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वहीं, पुराणों में शिव और विष्णु में भेद या तुलना निरर्थक ही नहीं पाप भी बताया गया है। क्योंकि वह एक ही परब्रह्म के स्वरूप माने गए हैं। भगवान विष्णु व शिव जगत के संताप और कलह को हरने वाले भी माने गए हैं। इसी भाव से दोनों देवताओं को हरि और हर भी पुकारा जाता है।
ReplyDeleteवैशाख माह भगवान विष्णु उपासना के साथ ही गर्मी का मौसम भी होता है। यही वजह है कि वैशाख माह के हर दिन, खासतौर पर शिव भक्ति के दिनों में विशेष मंत्रों से भगवान विष्णु के स्मरण के साथ प्रकृति रूप शिव की पूजा में जल धारा बहुत ही शुभ फल देने वाली मानी गई है।
शिव वैराग्य के अद्भुत आदर्श हैं। वाघम्बरधारी, सरल और सहज स्वरूप शिव अपने भक्त द्वारा अपनाए पूजा के आसान उपायों और सामग्रियों से भी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए यहां बताय जा रहा शिवलिंग पूजा का ऐसा आसान उपाय जो जल्द ही खुशहाल बनाने वाला माना गया है -
वैशाख माह के गर्मी के मौसम में शिवलिंग पर विशेष व आसान मंत्रों के साथ जल अर्पण कर मनोरथ पूर्ति की कामना करना बहुत ही शुभ होता है -
- सुबह नित्यकर्म और स्नान कर पवित्र हो जाएं।
- शिव उपासना के लिए सफेद वस्त्र पहनें।
- पंचोपचार पूजा चंदन या गंध, फूल, नैवेद्य और धूप, दीप से आरती का विधान है। इसके बाद शिव को जल व बिल्वपत्र भी अर्पित करते हुए विष्णु स्मरण के साथ नीचे लिखे शिव मंत्र बोलें -
ॐ विष्णुवल्लभाय नम:
ॐ महेश्वराय नम:
ॐ शंकराय नम:
- भगवान को नैवेद्य में फल या दूध से बनी मिठाई चढ़ाएं।
- पूजा के बाद धूप, दीप, कर्पूर की शिव की आरती करें।
दुःख गुस्सा प्रेरणा परिवार अधिकार प्रार्थना संस्कार संस्कार प्रकृति अशांति प्रेरणा शांति बच्चे कर्तव्य नुकसान दबाव कर्म भगवान किस्मत रिश्ते समय ध्यान समय प्रबंधन दाम्पत्य शादी चिंता शरीर सुख समस्या प्यार स्वास्थ्य भाग्य गृहस्थी असफलता तनाव खुशी अशांति सफलता
ReplyDeleteसांसारिक जीवन में किसी भी रूप में आया दु:ख या संकट का वक्त बड़ा कठिन होता है। हिन्दू धर्म परंपराओं में ऐसे ही बुरे वक्त, हालात या बदहाली से बचने के लिए शिव उपासना प्रभावी मानी गई है। क्योंकि शिव भक्ति का मूल भाव ही शुभ व कल्याण को अपनाना है। भगवान शिव का महाकाल स्वरूप, काल भय से मुक्त करने वाला माना गया है। इनकी उपासना का फल मात्र काल या मृत्यु को टालने के ही अर्थ में नहीं है, बल्कि संदेश है कि शिव भक्ति काल यानी वक्त को भी अनुकूल बनाने वाली होती है।
ReplyDeleteअच्छाई का संग मिलते ही बुराई का अंत होता है। ऐसे ही भावों से शिवपुराण में आए एक मंत्र का ध्यान मात्र ही हर संसारी जीव के लिए बड़ा ही संकटमोचक व मंगलकारी माना गया है। खासतौर पर वैशाख माह में 6 को सोमवार और 7 को प्रदोष तिथि पर तो यह मंत्र स्मरण बड़ा ही शुभ होगा। जानिए कौन सा है यह शिव मंत्र, जो कई लोग नही जानते -
शिवपुराण के मुताबिक दानवी शक्तियों पर विजय व जगत कल्याण के भाव से देवताओं ने इस मंत्र से ही शिव की प्रसन्नता व कृपा पाई। शिव भक्ति की तिथियों पर पर शिव भक्ति की विशेष घड़ी में तो इस आसान व अचूक शिव मंत्र का स्मरण पलों में दु:ख व दरिद्रता दूर करने वाला माना गया है।
शाम को स्नान के बाद यथासंभव सफेद वस्त्र पहन शिवालय में गाय के दूध मिले पवित्र जल में अक्षत, तिल व सफेद चंदन मिलाकर नीचे लिखें मंत्र से शिवलिंग पर जलधारा अर्पित कर चंदन, बिल्वपत्र, फूल, जनेऊ व दूध या मावे की मिठाई का भोग लगाकर शिव की धूप, दीप, कर्पूर आरती कर कष्टों से छुटकारे या संकटमुक्त जीवन की कामना करें -
ReplyDeleteऊँ नम: शिवाय शुभं शुभं कुरु कुरु शिवाय नम: ऊँ
- शिवलिंग पर चढ़ाए जल को चरणामृत रूप में ग्रहण करें व थोड़ा जल लाकर घर के हर कोने में छिड़कें।
- इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से यथाशक्ति जप भी मनोरथसिद्धि करने वाला होता है।
हर प्रेमी या प्रेमिका के मन में एक सवाल जरुर उठता है कि उसके लव पार्टनर का नेचर कैसा है, जैसा वह दिखाने की कोशिश करता है या इससे अलावा भी उसका अलग स्वभाव है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से ये समझना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है क्योंकि नाम यानी राशि के आधार पर भी किसी भी प्रेमी या प्रेमिका के नेचर के बारे में आसानी से जाना जा सकता है।
ReplyDeleteपंचक का प्रारंभ आज यानी 3 मई, शुक्रवार को शाम 04 बजकर 53 मिनिट से हो रहा है जो 7 मई, मंगलवार को 04 बजकर 30 मिनिट रात अंत तक रहेगा।
ReplyDeleteधन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करना बहुत ही आसान है। तंत्र शास्त्र के अनुसार कुछ साधारण मगर सटीक उपाय करने से मां लक्ष्मी अपने भक्त पर जल्दी ही प्रसन्न हो जाती हैं और उसे मालामाल कर देती हैं। ये उपाय शुक्रवार को करने से और भी जल्दी फल प्राप्त होता है।
ReplyDelete- शुक्रवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं और साधक को मालामाल कर देती हैं।
ReplyDeleteक्या होते हैं शकुन अपशकुन-
ReplyDeleteशकुन-अपशकुन प्रकृति से मिलने वाले वो संकेत होते हैं जो हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं से सावधान करवाती है। ये वो छोटी-छोटी बातें होती है, जिन पर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता है। प्रकृति हमारे भविष्य में होने वाली घटनाओं का संकेत देती हैं। भारतीय ज्योतिष में वाराह संहिता नाम के ग्रन्थ में शकुन-अपशकुन के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है। शकुन-अपशकुन प्राचीन काल से ही लोकवार्ता या रिती-रिवाजों से पीढ़ी दर पीढ़ी पहुंचते रहे हैं। कुछ लोग इसको अंधविश्वास मानते हैं। फिर भी ज्यादातर लोग इन संकेतों को अनदेखा नहीं करते। हर इंसान कभी-कभी किसी ना किसी रूप में इन संकेतो को मानता है। शकुनों के परिणाम उतने ही प्राचीन हैं जितनी मनुष्य जाति। इन संकेतो को केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में माना जाता है।
शकुन का उल्लेख हमारे वेदों, पुराणों व धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। महाभारत और रामायण जैसे ग्रन्थों में भी कई जगह शकुनों की बात कही गई है। ज्योतिष में भी शकुनों पर विशेष विचार किया जाता है। प्रश्न कुंडली के विचार में शकुनों का खास महत्व है। शुभ शकुनों में पूछे गये प्रश्न सफल व अपशकुनों में पूछे गये प्रश्न असफल होते देखे गये हैं
कितने तरह के होते है शकुन-अपशकुन-
ReplyDeleteशकुन-अपशकुन कईं तरह के होते हैं। ये पृथ्वी से, आकाश से, स्वप्नों से और शरीर के अंगों से संबंधित हो सकते हैं। शकुन- अपशकुन जीव- जंतुओं और आपकी रोजमर्रा की जिंदगी से भी जुड़े हुए होते हैं। किसी भी काम या काम के बारे में बात करते वक्त होने वाली प्राकृतिक घटना शकुन या अपशकुन होती है। ये कई तरह की हो सकती है। प्राकृतिक व अप्राकृतिक तथ्य अच्छे व बुरे फल की भविष्यवाणी करने में सक्षम होते है॥
अपशकुनों से मुक्ति और बचने के लिए क्या करें-
ReplyDeleteवाराह संहिता के अनुसार अपशकुनों से मुक्ति और बचने के लिए लोगों को निम्नलिखित उपाय करने चाहिए
यदि काले पक्षी, कौवा, चमगादड़ या किसी भी प्रकार के जानवरों आदि के अपशकुनों से प्रभावित हों तो अपने इष्टदेव का ध्यान करें या धर्मस्थल पर तिल के तेल का दान करें। अपशकुनोंं के दुष्प्रभाव से बचने के लिए धर्म स्थान पर प्रसाद चढ़ाकर बांट दें। छींक और हर तरह के सामान्य-असामान्य अपशकुनों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए
महामद्यमृत्युंजय के निम्नलिखित मंत्र का जप करें।
हर तरह के अपशकुन से बचने का मंत्र
मन्त्र- ऊँ ह्रौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुच्च्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमाऽमृतात ऊँ स्व: भुव: भू: ऊँ स: जूं ह्रौं ॥ऊँ॥
अपना बिस्तर खिड़की के पास कभी भी न लगाएं। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और आपसी असहयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है। फिर भी यदि खिड़की के पास बिस्तर लगाना पड़े तो अपने सिरहाने और खिड़की के बीच पर्दा जरूर डालें। इससे नकारात्मक ऊर्जा रिश्तों पर असर नहीं कर पाएगी।
ReplyDeleteअपना बिस्तर खिड़की के पास कभी भी न लगाएं। इससे पति-पत्नी के रिश्तों में तनाव और आपसी असहयोग की प्रवृत्ति बढ़ती है। फिर भी यदि खिड़की के पास बिस्तर लगाना पड़े तो अपने सिरहाने और खिड़की के बीच पर्दा जरूर डालें। इससे नकारात्मक ऊर्जा रिश्तों पर असर नहीं कर पाएगी।
ReplyDeleteझाडू-
ReplyDeleteझाडू को घर की लक्ष्मी मानते हैं क्योंकि यह दरिद्र को घर से बाहर निकालता है। इससे भी कई शकुन व अपशकुन जुड़े हैं। दीपावली के त्यौहार पर नया झाडू घर में लाना लक्ष्मी जी के आगमन का शुभ शकुन है। नए घर में गृह प्रवेश से पूर्व नए झाडू का घर में लाना शुभ होता है। झाडू के ऊपर पांव रखना गलत समझा जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति घर आई लक्ष्मी को ठुकरा रहा है। कोई छोटा बच्चा अचानक घर में झाडू लगाने लगे तो समझ लीजिए कि घर में कोई अनचाहे मेहमान के आने का संकेत है। सूर्यास्त के बाद घर में झाडू लगाना अपशकुन होता है क्योंकि यह व्यक्ति के दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है।
ये हैं कुछ खास शकुन-अपशकुन
ReplyDeleteदूध-
सुबह-सुबह दूध को देखना शुभ कहा जाता है। दूध का उबलकर गिरना शुभ माना जाता है। इससे घर में सुख-शांति, संपत्ति, मान व वैभव की उन्नति होती है। दूध का बिखर जाना अपशकुन मानते हैं जो किसी दुर्घटना का संकेत है। दूध को जान-बूझ कर छलकाना अपशकुन माना जाता है जो घर में कलह का कारण है।
दूध का अपशकुन दूध का बिखर जाना अशुभ होता है। बच्चों का दूध पीते ही घर से बाहर जाना अपशकुन माना जाता है। स्वप्न में दूध दिखाई देना अशुभ माना जाता है।
आइना-
ReplyDeleteहर घर में आइने का बहुत महत्व है। आइने से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नवविवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। मतलब ये कि टूटा आइना हर तरह से अशुभ ही होता है।
आइना-
ReplyDeleteहर घर में आइने का बहुत महत्व है। आइने से जुड़े कई शकुन-अपशकुन मनुष्य जीवन को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करते हैं। दर्पण का हाथ से छूटकर टूट जाना अशुभ माना जाता है। एक वर्ष तक के बच्चे को दर्पण दिखाना अशुभ होता है। यदि कोई नवविवाहिता अपनी शादी का जोड़ा पहन कर श्रृंगार सहित खुद को टूटे दर्पण में देखती है तो भी अपशकुन होता है। मतलब ये कि टूटा आइना हर तरह से अशुभ ही होता है।
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ReplyDeleteमकर लग्न की कुंडली के सप्तम या अष्टम भाव में शनि स्थित हो तो व्यक्ति के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं जानिए...
ReplyDeleteमकर लग्न की कुंडली के सप्तम भाव में शनि हो तो...
कुंडली का सप्तम भाव जीवन साथी का कारक स्थान होता है और मकर लग्न की कुंडली में इस स्थान कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। यहां शनि होने पर व्यक्ति को जीवन साथी की ओर कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन लोगों को कड़ी मेहनत के बाद ही सफलता मिलती है। धन के मामलों में इन्हें आंशिक सुख प्राप्त होता है। शनि के कारण ऐसे लोगों को संतान की ओर से पूर्ण सुख प्राप्त होता है।
मकर लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में शनि हो तो...
जिन लोगों की कुंडली मकर लग्न की है और उसके अष्टम भाव में शनि स्थित है तो उन लोगों को स्वास्थ्य संबंधी मामलों में सावधान रहने की आवश्यकता है। मकर लग्न की कुंडली का अष्टम भाव सिंह राशि है और इसका स्वामी शनि का शत्रु सूर्य है। यहां शत्रु राशि में शनि होने पर व्यक्ति को कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। धन के साथ घर-परिवार की ओर से भी इन्हें आंशिक सुख ही मिल पाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इन्हें कई उपलब्धियां प्राप्त होती हैं।
स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र
ReplyDeleteमारण , मोहन , सम्मोहन , उच्चाटन , वशीकरण , आदि सभी कार्यों में यह
मंत्र फलदायक है तथा इस मंत्र के सिद्ध करने पर घर में स्वर्ण वर्षा सी
होती रहती है |
विनियोग
ॐ अस्य श्री स्वर्णाकर्षण भैरव मन्त्रस्य, श्री ब्रह्मा ऋषिः
पंक्तिश्छन्दः | हरी हर रुद्रत्मक स्वर्णाकर्षण भैरवो देवता ,ह्रीं बीजं
ह्रीं शक्तिः ॐ कीलकं स्वर्णाकर्षण भैरव प्रसाद सिद्ध्यर्थं स्वर्ण राशि
प्राप्तये स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र जपे विनियोगः |
ध्यान
पीतवर्ण चतुर्बाहु त्रिनेत्रपीतदाससम्|
आश्रय स्वर्ण मणिक्यम तडित पूरित पात्रकम् |
अभिलषितं महाशुलं तोमरं चामरं द्रव्यं |
सर्वाभरण सम्पन्नं मुक्ताहरोपशोभितम |
मदोंन्मत्तम सुखासीनं भक्तानां च वर प्रदं |
संततं चितयेद्रिश्यं भैरवं सर्व सिद्धिदम् |
पारिजात द्रुम कांतारस्थिते मणि मंडपे |
सिंहासन गतं ध्यायेद्भैरव स्वर्ण दायकम् |
गागेयपात्रं डमरूं त्रिशूलं वरं करैः संदश्रतं त्रिनेत्रम् |
देव्यायुतं तप्त सुवर्ण वर्ण स्वर्णाकृतिं भैरवामाश्रयामि |
स्वर्णाकर्षण भैरव मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय ह्रांह्रींह्रूं |
अजामलबद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय |
मम दारिद्रयं विद्वेषणाय महाभैरव नमः श्रीं ह्रीं ऐं |
यह मंत्र सवा लाख जपने से सिद्ध होता है और इअसका दशांश तर्पण करना
चाहिए |
स्त्री हो या पुरुष रोज सुबह बिस्तर छोडऩे से पहले अपने हाथों के दर्शन करने चाहिए।
ReplyDeleteयदि आप सोचते हैं कि केवल हाथों के दर्शन से क्या होगा? तो इस प्रश्न का उत्तर धर्म ग्रंथों में दिए इस मंत्र में छिपा हुआ है-
कराग्रे वसति लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविंद: प्रभाते करदर्शनम्॥
इस मंत्र में बताया गया है कि सुबह-सुबह हमें अपने हाथों के दर्शन क्यों करने चाहिए। यह प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा है और आज भी जो लोग इसका पालन करते हैं उनके जीवन में सुख और शांति के साथ धन की पूर्ति भी बनी रहती है।
1 रोटी के चमत्कारी फायदे जानेंगे तो आप भी रोज करेंगे ये 1 काम
ReplyDeleteखाने में चाहे कितने भी पकवान हों लेकिन रोटी के बिना खाना अधूरा ही रहता है। रोटी हमारे पेट को तो तृप्त करती ही है लेकिन शास्त्रों के अनुसार रोटी के कई अन्य फायदें भी बताए गए हैं। रोटी से जुड़े कुछ ऐसे काम हैं जिन्हें करने से हमारी किस्मत चमक सकती हैं और रुके हुए कार्य पूर्ण हो सकते हैं।
गाय हिंदू धर्म में पवित्र और पूजनीय मानी गई है। शास्त्रों के अनुसार गौसेवा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक बना रहता है। इसीलिए गाय की सेवा करने की बात कही जाती है। पुराने समय से ही गौसेवा को धर्म के साथ ही जोड़ा गया है। गौसेवा भी धर्म का ही अंग है। गाय को हमारी माता बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि गाय में हमारे सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इसी वजह से मात्र गाय की सेवा से ही भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। अत: प्रतिदिन हमें गाय को कम से कम 1 रोटी अवश्य खिलानी चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गौमाता की भी पूजा की जाती है। भागवत में श्रीकृष्ण ने भी इंद्र पूजा बंद करवाकर गौमाता की पूजा प्रारंभ करवाई है। इसी बात से स्पष्ट होता है कि गाय की सेवा कितना पुण्य का अर्जित करवाती है। गाय के धार्मिक महत्व को ध्यान में रखते हुए कई घरों में यह परंपरा होती है कि जब भी खाना बनता है पहली रोटी गाय को खिलाई जाती है। यह पुण्य कर्म बिल्कुल वैसा ही जैसे भगवान को भोग लगाना। गाय को पहली रोटी खिला देने से सभी देवी-देवताओं को भोग लग जाता है।
सभी जीवों के भरण-पोषण का ध्यान रखना भी इंसानों का ही कर्तव्य बताया गया है। इसी वजह से यह परंपरा शुरू की गई है। पुराने समय में गाय को घास खिलाई जाती थी लेकिन आज परिस्थितियां बदल चुकी है। जंगलों कटाई करके वहां हमारे रहने के लिए शहर बसा दिए गए हैं। जिससे गौमाता के लिए घास आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती है और आम आदमी के लिए गाय के लिए हरी घास लेकर आना काफी मुश्किल कार्य हो गया है। इसी कारण के चलते गाय को रोटी खिलाई जाने लगी है।
पित्री दोष का कारन है दिवंगत पितरों की अतृप्ति इसका मूल कारन है पितरों की “स्वधा” नामक उस पराशक्ति के स्वरूप का अप्रसन्न होना श्राद्ध पक्ष में थोड़े से प्रयास से ही इन सर्व शक्तिमान स्वधा देवी को तृप्त-प्रसन्न करने से पित्री/काल सर्प/पित्री चंडाल दोष का निवारण किया जा सकता है क्रिया निम्न प्रकार है
ReplyDeleteसर्व प्रथम घर के मंदिर या दक्षिण दिशा के कोने में हरे रंग के कपडे में नारियल लपेट कर कलश स्थापन करें लगातार सभी श्राधों में शास्त्र विधि अनुसार पंचोपचार पूजन करें खीर का प्रशाद अर्पण करें इनमें ही अपने सभी पितरों का ध्यान करें सामर्थ्य अनुसार मंत्र “ओम हरीम श्रीम कलीम स्वधा देव्या स्वाहा” इसके उपरान्त समस्त पितरों के निमित्त तर्पण-श्राद्ध के द्वारा अन्न और जल प्रदान करें फिर अमावस्या को इस नारियल को किसी भी पवित्र नदी में जल प्रवाह कर दें जल को सारे घर में झिडक दें !श्रीमद्देवी भगवत के नवें स्कंध के ४४वे अध्याय के ३१वें श्लोक में लिखा है ...हे देवी ! तुम पितरों के लिए प्राणतुल्य और ब्राह्मणों के लिए जीवनस्वरूपिणी हैं !आप श्राद्ध की अधिष्ठात्री देवी हो और श्राद्ध बल्वैश्व आदि का फल प्रदान करने वाली है !!३१!!
श्राद्ध की महत्ता क्यूँ और कैसे
ReplyDeleteधर्म शास्त्रों में कहा गया है की पितरों को पिंड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु,पुत्र-पोत्र,यश,स्वर्ग,पुष्टि,बल,लक्ष्मी,सुख-शांति,सम्रिध्ही,सोभाग्य,धन-धान्य एवं मोक्ष की प्राप्ति करता है!
अश्विन मास में पितरों को आशा होती है की हमारे पुत्र-पोत्र हमारे लिए तर्पण,श्राद्ध एवं पिंड दान करेंगे इसी आशा को लेकर इस पुरे पन्द्रह दिन सभी के सभी पितृ पृथ्वी पर उसके घर में आ जाते हैं अतः हर गृहस्थी का कर्तव्य है वोह अपने ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों के निमित्त तर्पण-श्राद्ध,पिंड दान अवश्य करे ये पितरों का पर्व पक्ष होता है अतः अपने वंशजों की सेवा से प्रसन्न हो कर वे पितृ हमारी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं जो गृहस्थ इस प्रकार उनके निमित्त जान-समझ कर कुछ नहीं करता अंत में अमावस्या वाले दिन वो दुखी मन से निश्वास छोडते हुए शाप देकर वापिस अयार्मा लोक चले जाते हैं वहाँ जाकर उन्हें जो अपमान सहन करना पड़ता है वोही हमें तरह-तरह के दुखों के रूप में भोगना पड़ता है अतः एकदम श्राद्ध का परित्याग नहीं करना चाहिए पितरों को निष्काम-निस्स्वार्थ भाव से पुरे पन्द्रह दिन सामर्थ्य अनुसार अवश्य तृप्त करें
समुद्र शास्त्र के अनुसार मनुष्य के शरीर का हर अंग उसके स्वभाव के बारे में कुछ न कुछ जरूर बताता है। अगर किसी मनुष्य के शरीर पर पूरी तरह से गौर किया जाए तो उसके स्वभाव के बारे में बहुत कुछ आसानी से जाना जा सकता है।
ReplyDeleteसमुद्र शास्त्र के अनुसार कान और गर्दन भी ऐसे ही अंग हैं, जो किसी भी इंसान के स्वभाव को अच्छे से व्यक्त करते हैं। कान मनुष्य की चौथी ज्ञान इंद्री है। इसका एक हिस्सा शरीर के बाहर दिखाई देता है, जबकि एक हिस्सा शरीर के अंदर होता है।
जबकि गर्दन शरीर का वह हिस्सा है, जिस पर मनुष्य का सिर टिका होता है और मस्तिष्क से निकलकर सभी अंगों में पहुंचने वाली नसें और नाडिय़ां इसी से होकर गुजरती हैं। जानिए किस तरह के कान व गर्दन वाले लोगों का स्वभाव कैसा होता है-
छोटे कान- समुद्र शास्त्र के अनुसार जिन लोगों के कान सामान्य से थोड़े छोटे आकार के होते हैं, ऐसे लोग बहुत बलशाली होते हैं। ये विश्वसनीय भी होते हैं। साथ ही, ये कला के क्षेत्र में भी रुचि रखते हैं। यदि कोई इनसे कोई वस्तु मांग ले तो ये उसे मना नहीं करते।
मोटी गर्दन- समुद्र शास्त्र के अनुसार जिस इंसान की गर्दन मोटी होती है, प्राय: ऐसे लोगों की नीयत खराब होती है। ऐसे लोग भ्रष्ट चरित्र, व्यसनी, शराबी, दु:स्साहसी, क्रोधी, अहंकारी, उन्मादी तथा अधिक आक्रामक होते हैं। इन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
बड़े कान- यदि किसी व्यक्ति के कान बड़े हो तो वह विचारशील, कर्मठ, व्यवहारिक तथा समय का पाबंद होता है। ऐसे लोग कभी-कभी क्रूर भी हो जाते हैं यदि कोई इनकी बात न माने तो। इन्हें किसी भी काम में लेटलतीफी पसंद नहीं आती और ये सब काम व्यवस्थित तरीके से करने में विश्वास रखते हैं।
ReplyDeleteचौड़े कान- समुद्र शास्त्र के अनुसार यदि किसी इंसान के कानों का चौड़ाई सामान्य से अधिक हो तो ऐसे लोग सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य की प्राप्ति करते हैं। ऐसे लोग अवसरवादी भी होते हैं यानी ये सिर्फ अपना स्वार्थ साधने में लगे रहते हैं।
सामान्य से अधिक छोटे कान- यदि किसी व्यक्ति के कान बहुत ही छोटे हो तो ऐसे लोग चंचल, निम्न विचारधारा वाले एवं भगवान में विश्वास करने वाले होते हैं। कभी-कभी ऐसे लोग लालची भी हो जाते हैं और किसी के भी साथ धोखा करने से नहीं हिचकते। ये बहुत चापलूस भी होते हैं। किसी से काम निकालना इन्हें बखूबी आता है।
ReplyDelete- जिन लोगों के कान ऊपर की ओर ऊठे हुए हो तो यह लज्जा, शर्म और संकोच का लक्षण है और यदि कान गर्दन की ओर झुका हो तो यह संकेत है सतर्कता, सावधानी, शंका तथा मौन प्रवृत्ति का।
- जिस व्यक्ति के कान के बीच का भाग दबा हो तो वह अपराधी प्रवृत्ति का होता है।
सीधी गर्दन- समुद्र शास्त्र की माने तो जिन लोगों की गर्दन सीधी होती है, ऐसे लोग स्वाभिमानी होते हैं। साथ ही ये लोग समय के पाबंद, वचनबद्ध एवं सिद्धांत प्रिय होते हैं। इन पर आसानी से विश्वास किया जा सकता है।
ReplyDeleteलंबी गर्दन- जिन लोगों की गर्दन सामान्य से अधिक बड़ी हो तो ऐसे लोग बातूनी, मंदबुद्धि, अस्थिर, निराश और चापलूस होते हैं। यह अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की आदत से लाचार भी होते हैं।
छोटी गर्दन- अगर गर्दन सामान्य आकार से छोटी होती है तो ऐसे लोग कम बोलने वाले, मेहनती, हित साधक मगर धूर्त, कंजूस, अविश्वसनीय व घमंडी होते हैं। ऐसे लोगों का फायदा दूसरे लोग उठाते हैं मगर इन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता।
सूखी गर्दन- ऐसी गर्दन में मांस कम होता है तथा नसें स्पष्ट दिखाई देती हैं। ऐसे लोग सुस्त, कम महत्वाकांक्षी, सदैव रोगी रहने वाले, आलसी, क्रोधी, विवेकहीन और हर कार्य में असफल होते हैं। ये सामान्य स्तर के लोग होते हैं और अपने जीवन से संतुष्ट भी।
ReplyDeleteऊंट जैसी गर्दन- ऐसी गर्दन पतली व ऊंची होती है। ऐसे जातक आमतौर पर सहनशील, अदूरदर्शी व परिश्रम प्रिय होते हैं। इनमें से कुछ लोग धूर्त भी होते हैं। ये लोग अपना हित साधने में लगे होते हैं और समय आने पर किसी भी हद तक जा सकते हैं।
आदर्श गर्दन- ऐसी गर्दन पारदर्शी व सुराहीदार होती है, जो आमतौर पर महिलाओं में पाई जाती है। ऐसी गर्दन कला प्रिय, कोमल, ऐश्वर्य और भोग की परिचायक होती है। ऐसे लोग सुख व वैभव का जीवन जीते हैं।
इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
ReplyDeleteपवित्रा एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह रोज के काम जल्दी निपटाकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें, संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा विधि-विधान से करें। (यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं।) भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत को पीए। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जप करें एवं व्रत की कथा सुनें। रात को भगवान विष्णु की मूर्ति के समीप हो सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी (8 अगस्त, शुक्रवार) के दिन वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर व दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें। इस प्रकार पवित्रा एकादशी व्रत करने से योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है।
ज्योतिष में केतु को एक छाया ग्रह माना गया है, लेकिन जन्म कुंडली में यह जिस भाव में स्थित होता है, उससे संबंधित क्षेत्र को पूरे जीवन प्रभावित करता है। केतु हमेशा ही अशुभ प्रभाव नहीं देता है, इससे शुभ फल भी प्राप्त होते हैं। कुंडली में केतु की महादशा के समय इस ग्रह का असर काफी अधिक रहता है। आपकी कुंडली में केतु किस भाव में स्थित है, उस स्थिति के अनुसार यहां जानिए आपके जीवन पर केतु का कैसा असर रहेगा...
ReplyDeleteकुंडली के पहले भाव में केतु
केतु की इस स्थिति से व्यक्ति व्यापार में या सेवा क्षेत्र में अच्छा लाभ प्राप्त कर सकता है। इन्हें आध्यात्मिक कार्यों में भी सफलता मिलती है। पारिवारिक जीवन में केतु के कारण कभी-कभी तनाव हो सकता है। सिर दर्द की समस्या रहती है। साथ ही, जीवन साथी, संतान के स्वास्थ्य की भी चिंता रह सकती है।
कुंडली के दूसरे भाव में केतु
इस ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति की यात्राएं लाभ देने वाली होती हैं। ये लोग जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं। भविष्य के लिए धन बचाने के लिए इन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बुढ़ापे में संतान का साथ मिलता है।
ध्यान रखें यहां सिर्फ केतु के अनुसार उसके फल बताए गए हैं। कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति और योगों के कारण केतु का असर बदल भी सकता है।
कुंडली के तीसरे भाव में केतु
ReplyDeleteयदि कुंडली के तृतीय भाव में केतु स्थित हो तो व्यक्ति को ससुराल पक्ष से, भाइयों से और दोस्तों से विशेष लाभ मिलता है। ऐसे व्यक्ति को 45 वर्ष की उम्र में धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली के चौथे भाव में केतु
केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति की भगवान के प्रति आस्था रखने वाला होता है। ये लोग गुरु के साथ ही घर के बुजुर्ग लोगों को प्रसन्न रखने वाले होते हैं। इन्हें समय-समय पर कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। इनका बचपन ठीक-ठाक रहता है।
कुंडली के पांचवें भाव में केतु
ReplyDeleteयदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव में केतु है तो व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम होता है। ये लोग विवादों से भी दूर रहते हैं। इस स्थिति के कारण कुछ लोगों की कुंडली में एक से अधिक विवाह के योग भी बन सकते हैं। इन लोगों को 45 वर्ष की उम्र के बाद समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कुंडली के छठे भाव में केतु
जिन लोगों की कुंडली में केतु षष्ठम भाव में है, उनके जीवन में अच्छा और बुरा दोनों तरह का समय एक साथ चलता रहता है। इन्हें माता से विशेष स्नेह रहता है। ये लोग हंसमुख होते हैं। विदेश में या घर से दूर भी सहज ही रहते हैं। इनके कई दुश्मन हो सकते हैं।
कुंडली के सातवें भाव में केतु
ReplyDeleteकुंडली के सप्तम भाव में केतु हो तो व्यक्ति दुश्मनों पर हावी रहता है। इन्हें 35 की उम्र के बाद मान-सम्मान, धन का सुख मिलता है। इन लोगों को अहंकार, झूठ और अभद्र भाषा से बचना चाहिए। इन बातों के कारण ये लोग परेशानियों का सामना करते हैं।
कुंडली के आठवें भाव में केतु
कुंडली के इस भाव में केतु अच्छा माना जाता है। इस स्थिति के कारण व्यक्ति भावुक होता है। ये लोग दूसरे के भले के लिए सोचते हैं। 34 वर्ष की उम्र के बाद इन्हें कार्यों में सफलता और कई उपलब्धियां हासिल होती हैं। बीमारियों के कारण समय-समय पर परेशानियां होती रहती हैं।
कुंडली के नौवे भाव में केतु
ReplyDeleteइस स्थिति के कारण व्यक्ति योग्य और बहादुर होता है। इन लोगों के पास पैसा भी पर्याप्त रहता है। ये लोग धन संबंधी कार्यों में तेजी से सफलता प्राप्त करते हैं। घर-परिवार में सुख मिलता है।
कुंडली के दसवें भाव में केतु
केतु दशम भाव में हो तो व्यक्ति समाज में प्रसिद्ध होता है। इनका झुकाव खेलों की ओर अधिक रहता है। इनका व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है। इनका जीवन साथी सुंदर होता है। ये लोग अपने भाइयों की मदद करते हैं।
कुंडली में ग्याहरवें भाव में केतु
ReplyDeleteइस भाव में केतु हो तो व्यक्ति हमेशा ही भविष्य के विषय में सोचता रहता है। इसी कारण ये लोग काम पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। इनके पास धन रहता है। ये लोग कार्यों को अच्छी तरह से संचालित कर सकते हैं।
कुंडली के बारहवें भाव में केतु
ये लोग हमेशा आगे बढ़ते रहते हैं, लेकिन व्यवसाय और नौकरी में बार-बार बदलाव के कारण पैसा जमा नहीं कर पाते हैं। यदि ये लोग दिखावे से बचेंगे तो लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
शाबर धूमावती साधना :
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दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवां है और माँ के इस स्वरुप को बहुत ही उग्र माना जाता है ! माँ का यह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपा कहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी है ! एक मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया ! माँ सती ने इसे शिव जी का अपमान समझा और अपने शरीर को अग्नि में जला कर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा )उसने माँ धूमावती का रूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं पर आधारित है !
नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँ धूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे और अनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की !
यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलित शाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है !
कोर्ट कचहरी आदि के पचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोग करे !
माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रु उसे मूक होकर देखते रह जाते है !
|| मंत्र ||
ॐ पाताल निरंजन निराकार
आकाश मंडल धुन्धुकार
आकाश दिशा से कौन आई
कौन रथ कौन असवार
थरै धरत्री थरै आकाश
विधवा रूप लम्बे हाथ
लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव
डमरू बाजे भद्रकाली
क्लेश कलह कालरात्रि
डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी
जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
जाया जीया आकाश तेरा होये
धुमावंतीपुरी में वास
ना होती देवी ना देव
तहाँ ना होती पूजा ना पाती
तहाँ ना होती जात न जाती
तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
आप भई अतीत
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !
|| विधि ||
41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !
|| प्रयोग विधि १ ||
जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे –
“ हे माँ ! मेरे (अमुक) शत्रु के घर में निवास करो ! “
ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !
|| प्रयोग विधि २ ||
शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे !
ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !
नोट – इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !कोई भी जप-अनुष्ठान करने से पूर्व मंत्र की शुद्धि जांचा लें ,विधि की जानकारी प्राप्त कर लें तभी प्रयास करें |गुरु की अनुमति बिना और सुरक्षा कवच बिना तो कदापि कोई साधना न करें |उग्र महाशक्तियां गलतियों को क्षमा नहीं करती कितना भी आप सोचें की यह तो माँ है |उलट परिणाम तुरत प्राप्त हो सकते हैं |अतः बिना सोचे समझे कोई कार्य न करें |पोस्ट का उद्देश्य मात्र जानकारी उपलब्ध करना है ,अनुष्ठान या प्रयोग करना नहीं |अतः कोई समस्या होने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे