Monday, April 29, 2013

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शनि ग्रह के अनुसार, साल 2016 आपके लिए कैसा रहेगा? इस राशिफल के माध्यम से आप जान पाएंगे इस साल उसके साथ क्या अच्छा होगा या कहां कब आपको परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को न्याय का देवता माना गया है क्योंकि मनुष्यों को उनके अच्छे-बुरे कर्मों का दंड शनिदेव ही देते हैं। साल 2016 में शनि वृश्चिक राशि में चलायमान रहेगा। तुला, वृश्चिक व धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती व मेष, सिंह पर ढय्या का प्रभाव रहेगा। इस दौरान 25 मार्च से 13 अगस्त 2016 तक शनि की स्थिति वक्रीय रहेगी। जानिए साल 2016 में शनिदेव किस प्रकार आपकी राशि को प्रभावित करेंगे-

मेष राशि

साल 2016 में शनि वृश्चिक राशि में रहेगा। इस साल मेष राशि वालों पर शनि की ढय्या का प्रभाव रहेगा। आठवें स्थान की ढय्या विपरीत फल देने वाली रहेगी। काम-काज में रुकावटों व अड़चनों की स्थितियां बनेंगी। आठवें स्थान पर शनि होने से स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ सकता है। शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करेंगे। पार्टनरशिप में नुकसान हो सकता है। व्यापार में अपनी सूझबूझ से आप मुनाफा बढ़ा लेंगे। किसी पर भी अधिक विश्वास न करें।
25 मार्च से 13 अगस्त 2016 के बीच शनि के वक्र स्थिति में रहने के कारण सर्जरी करवाने की स्थिति बन सकती है या फिर अन्य किसी कारण अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं। बॉस से किसी बात पर कहासुनी हो सकती है। किसी खास व्यक्ति से बिछड़ना हो सकता है। अपनी पूरी क्षमता व योग्यता का इस्तेमाल करने के बाद भी शनि की ढय्या के कारण परिणाम आशाजनक नहीं रहेंगे।

उपाय

1. सवा पांच रत्ती का नीलम या उपरत्न (नीली) सोना, चांदी या तांबे की अंगूठी में अभिमंत्रित करवा कर धारण करें।
2. शनि यंत्र के साथ नीलम या फिरोजा रत्न गले में लॉकेट की आकृति में पहन सकते हैं, यह उपाय भी उत्तम है।
3. किसी भी विद्वान ब्राह्मण से या स्वयं शनि के तंत्रोक्त, वैदिक मंत्रों के 23000 जाप करें या करवाएं। ये है शनि का तंत्रोक्त मंत्र-
ऊं प्रां प्रीं स: श्नैश्चराय नम:
4. शनिवार को व्रत रखें। चींटियों को आटा डालें।
5. जूते, काले कपड़े, मोटा अनाज व लोहे के बर्तन दान करें।


162 comments:

  1. सभी मित्रों को नाग पंचमी की मंगल कामनायें !!
    ये पावन दिवस आप सभी के जीवन में अनंत खुशियाँ लाये
    एवं आप की सभी कामनाये पूर्ण करे

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  2. 1 जिस जातक के जीवन में उपरोक्त लक्षण हैं, वह नागपंचमी के दिन किसी भी शिव मंदिर में नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ा कर आ जाए। जोड़ा चांदी का, पंचधातु का, तांबे का या अष्ट धातु का हो।

    2 नागपंचमी के दिन ही शिव मंदिर में 1 माला शिव गायत्री का जाप (यथाशक्ति) करें एवं नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाएं तो पूर्ण लाभ मिलेगा।

    शिव गायत्री मंत्र :
    'ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे, महादेवाय धीमहि तन्नोरुद्र: प्रचोदयात्।'

    * आम दिनों में भी कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय किए जा सकते हैं। विशेषकर सोमवार को शिव मंदिर में जो जातक यह मंत्र चंदन की अगरबत्ती लगाकर एवं दीपक (तेल या घी) लगाकर जाप करता है, तो उसे अवश्य ही श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है।

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  3. हर हिन्दू नागपंचमी पर नाग देवता की पूजा-अर्चना करता है लेकिन इस पूजा में अंधविश्वास है कि नाग को दूध पिलाने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं। जबकि ऐसा नहीं है, नाग कभी भी दूध नहीं पीता बल्कि और भी कोई पेय नहीं पीता।

    यदि भुलवश दूध गले के नीचे उतरा तो नाग की मौत हो जाती है। जैसे हमारे फेफड़ों में कुछ भी चला जाए तो मृत्यु का कारण बन जाता है। ऐसी पूजा किस काम कि जिससे फल मिलने के बजाए नाग देवता की मृत्यु का दोष लगकर हम शापित हो जाएं।

    नाग देवता को कोयले से घर के द्वार पर चित्राकृति में बनाने का भी चलन है। यदि शुद्ध गाय के घी से नाग की चित्राकृति बना कर उसकी पूजा की जाए तो फल कई गुना बढ़ जाता है।

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  4. कालसर्प दोष को लेकर लोगों में काफी भय और आशंका-कुशंकाएं रहती हैं, लेकिन कुछ आसान और अचूक उपायों से इसके असर को कम कियाकालसर्प दोष को लेकर लोगों में काफी भय और आशंका-कुशंकाएं रहती हैं, लेकिन कुछ आसान और अचूक उपायों से इसके असर को कम किया जा सकता है। कोई इसे कालसर्प दोष कहता है तो कोई योग। कोई इसे मानता है और कोई नहीं, लेकिन कुंडली के शोध से पता चलता है कि जिनकी भी कुंडली में यह दोष पाया गया है, उसका जीवन या तो रंक जैसे गुजरता है या फिर राजा जैसा।कालसर्प योग से मुक्ति के लिए बारह ज्योतिर्लिंग के अभिषेक एवं शांति का विधान बताया गया है। यदि द्वादश ज्योतिर्लिंग में से केवल एक नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का नागपंचमी के दिन अभिषेक, पूजा की जाए तो इस दोष से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है। जो इसे न कर पाएं वह यह उपाय अवश्य करें।

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  5. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान कर एक तांबे के लौटे में साफ जल भरें। जल में सूखी लाल मिर्ची के दानें डालें और यह जल सूर्य देव को अर्पित करें। ध्यान रहे जल चढ़ाते समय जिस स्थान पर स्थानांतरण कराना है उस स्थान का ध्यान करें। जल्दी ही आपकी इच्छा पूर्ण हो जाएगी।

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  6. यदि किसी को कड़ी मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिल पा रही है तो गृह स्थान के समीप किसी कुएं में या अन्य किसी जल स्रोत में कच्चा दूध डालने से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है। यह एक अचूक उपाय है और इससे निश्चित ही सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं।शिव अवतार श्रीहनुमान जी राहु और केतु के कष्टों से छुटकारा दिलाते हैं। इसलिए हनुमान उपासना भी बहुत शुभदायी है। हनुमानजी के स्मरण के लिए ये मंत्र जरूर बोलें -
    हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्।
    - शिव के ही अंश बटुक भैरव की आराधना से भी इस दोष से बचाव हो सकता है।
    हीं बटुकाय आपदुदारणाय कुरु कुरु बटुकाय हीं।

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  7. कालसर्प योग के दोष से मुक्ति के लिए नागों के देवता भगवान शिव की भक्ति और आराधना सबसे श्रेष्ठ उपाय है, जिसके लिए शिव पंचाक्षरी का स्मरण आसान व असरदार माना गया है। यह मंत्र है-
    ऊँ नम: शिवाय।

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  8. जानिए जिन लोगों की कुंडली मीन लग्न की है और उसके तृतीय या चतुर्थ भाव में गुरु स्थित है तो व्यक्ति के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ते हैं...
    मीन लग्न की कुंडली के तृतीय भाव में गुरु हो तो...
    जिन लोगों की कुंडली मीन लग्न की है और उसके तृतीय भाव में गुरु स्थित है तो व्यक्ति को भाई-बहनों की ओर से पूर्ण सुख एवं सहयोग नहीं मिल पाता है। अधिकांश समय में इनके बीच वैचारिक मतभेद चलते रहते हैं। कुंडली का तीसरा... भाव भाई-बहन एवं पराक्रम का कारक स्थान होता है। जबकि मीन लग्न में इस स्थान वृष राशि का स्वामी शुक्र है। शुक्र को असुरों का गुरु माना गया है और बृहस्पति देव को देवताओं का गुरु माना जाता है। शुक्र की इस राशि में गुरु होने पर व्यक्ति पिता से भी तालमेल नहीं बैठा पाता है।
    मीन लग्न की कुंडली के चतुर्थ भाव में गुरु हो तो...
    कुंडली का चौथा भाव माता एवं भूमि-भवन का कारक स्थान होता है। मीन लग्न की कुंडली में इस स्थान मिथुन राशि का स्वामी बुध है। बुध की इस राशि में गुरु होने पर व्यक्ति को शारीरिक सौंदर्य पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। माता की ओर से सहयोग मिलता है और इसी वजह से धन संबंधी कार्यों में इन्हें विशेष सफलता प्राप्त होती है। कभी-कभी अधिक खर्च के कारण असंतोष बना रहता है।

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  9. श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। रक्षा-बंधन दो शब्दों से मिल कर बना है- रक्षा और बंधन। रक्षा का अर्थ है बचाना, सावधानी, सुरक्षा और बंधन का अर्थ है जिससे बांधा जाए। अर्थात् सुरक्षा के भाव से किसी से जुडऩा रक्षाबंधन है।
    संस्कृत शब्द रक्षिका का अपभ्रंश शब्द राखी है। इसका अर्थ होता है रक्षा करना। हमें सुरक्षा मिलती है- प्रज्ञा से, प्रेम से, पवित्रता से। इन पर्वों पर हम वेद शिक्षा आरंभ करते हैं, यज्ञोपवीत पहनते हैं और रक्षासूत्र बंधवाते हैं। श्रावण पूर्णिमा को मनाए जाने वाला यह त्योहार भारतीय लोक जीवन में भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है।
    किंतु इस दिन मात्र बहन ही भाइयों को राखी बांधती है, ऐसा आवश्यक नहीं है , बल्कि त्योहार मनाने के लिए धर्म के प्रति आस्था होना आवश्यक है। इसलिए इस पर्व में दूसरों की रक्षा के धर्म-भाव को विशेष महत्व दिया गया है। इस प्रकार यह दिन हमारी ज्ञान प्राप्ति की इच्छा और विचारों की पवित्रता के भाव को व्यक्त करता है।

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  10. शनिवार के दिन किसी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें और शनि दोष की शांति के लिए हनुमानजी से प्रार्थना करें। बूंदी के लड्डू का भोग भी लगाएं।

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  11. शनिवार के दिन ग्यारह साबूत नारियल बहते हुए जल में प्रवाहित करें और शनिदेव से जीवन को सुखमय बनाने के लिए प्रार्थना करें।

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  12. प्रत्येक शनिवार को शाम के समय बड़(बरगद) और पीपल के पेड़ के नीचे सूर्योदय से पहले स्नान आदि करने के बाद कड़वे तेल का दीपक लगाएं और दूध एवं धूप आदि अर्पित करें।

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  13. यदि शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चल रही हो तो इस दौरान मांस, मदिरा का सेवन भूलकर भी न करें। इससे भी शनिदेव अति प्रसन्न हो जाते हैं।

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  14. लाल चंदन की माला को अभिमंत्रित कर शनिवार या शनि जयंती के दिन पहनने से शनि के अशुभ प्रभाव कम हो जाते हैं।

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  15. जीवन में हमें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ परेशानियां स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं जबकि कुछ समस्याओं के निदान के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। तंत्र शास्त्र के माध्यम से जीवन की कई समस्याओं का निदान किया जा सकता है। गोमती चक्र एक ऐसा पत्थर है जिसका उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। यह बहुत ही साधारण सा दिखने वाला पत्थर है लेकिन इसका यह बहुत प्रभावशाली है। इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
    1- यदि बार-बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।
    2- यदि कोई कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाए तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।
    3- यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है उतने गोमती चक्र लेेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे।
    4- यदि पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलूं बलजाद कहकर फेंद दें, मतभेद समाप्त हो जाएगा।
    5- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
    6- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
    7- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।

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  17. जीवन में हमें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुछ परेशानियां स्वयं ही समाप्त हो जाती हैं जबकि कुछ समस्याओं के निदान के लिए विशेष प्रयास करने पड़ते हैं। तंत्र शास्त्र के माध्यम से जीवन की कई समस्याओं का निदान किया जा सकता है। गोमती चक्र एक ऐसा पत्थर है जिसका उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। यह बहुत ही साधारण सा दिखने वाला पत्थर है लेकिन इसका यह बहुत प्रभावशाली है। इसके कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
    1- यदि बार-बार गर्भ गिर रहा हो तो दो गोमती चक्र लाल कपड़े में बांधकर कमर में बांध दें तो गर्भ गिरना बंद हो जाता है।
    2- यदि कोई कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाए तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होती है।
    3- यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है उतने गोमती चक्र लेेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे।
    4- यदि पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में हलूं बलजाद कहकर फेंद दें, मतभेद समाप्त हो जाएगा।
    5- प्रमोशन नहीं हो रहा हो तो एक गोमती चक्र लेकर शिव मंदिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें और सच्चे ह्रदय से प्रार्थना करें। निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जाएंगे।
    6- व्यापार वृद्धि के लिए दो गोमती चक्र लेकर उसे बांधकर ऊपर चौखट पर लटका दें और ग्राहक उसके नीचे से निकले तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है।
    7- यदि गोमती चक्र को लाल सिंदूर के डिब्बी में घर में रखें तो घर में सुख-शांति बनी रहती है।

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  18. ॐ नमो आदेश गुरुजी को आदेश माता भभूत पिता भभूत त्रिलोक तारिणी या भभूत किसने हाणी किसने छानी महादेव ने हाणी पार्वती ने छाणी !! स्यानौनाथ चौरासी सिद्धो की भभूत इस पिण्ड के मस्तिषक चढानी चढे भभूत धर्ती पडे धाऊ रक्षा करे गुरु गोरख राऊ !! भाग भाग रे शाकनि डाकनि मडी मसाणी दैत्य दानव राग – दाग शक्ति पाताल मीन मेखला को पुत्र उत्र हाको तेरो प्राण मै गाडो पांडवी बाण सरसों चेडा मैने साधी लंका जाये रावण बांधों कौउनिकी जिउदाल काल की पाती जाग जाग रे भैरों तीन त्रिलोकी नाथ हांकती डैणी वज्र मारो फांकती डैणी वज्र मारो अंम्बादी जंम्बादी डैणी वज्र मारो जल भूत को मारो थल भूत को मारो !!




    निंद्रा स्तभन तंत्र

    वृहती वृक्ष की जड मधु (शहद) के साथ घिसकर उसका नस्य लेने से निंद्र स्तभन होती है !!


    अथ विद्वेषण मंत्र

    ॐ नमो भगवती शमशान कालिके अमुकाऽमुकेन सह विद्वेषय विद्वेषय हन हन पच पच मथ मथ हुं फट् स्वाहा !!

    विधि – इस मंत्र से कडवे तेल में नीम, तिल, चावल मिलाकर खैर की लकडी को शमशान की अग्नि से जलाकर दस हजार आहुति देने से दोनों मे वैर भाव हो जाता है !!


    अथ स्त्री वशीकरण मंत्र

    ॐ आं ऐं भग भुगे भगोदरि भगमाले भगावहे भगगुह्ये भगयोने भगनिपातिनि सर्व भगवशंकरि भगरुपे नित्यक्लिन्ने भगस्वरुपे सर्व भगानि मह्यानय वरदे रेते सुरेते भगक्लिन्ने क्लिन्नद्रवे क्लेदय द्रावय अमोघे भगविच्चे क्षोभय क्षोभय सर्वसत्वान् भगेश्वरि ऐं ब्लूं जं ब्लूं में ब्लूं मौं ब्लूं हें ब्लूं हें क्लिन्ने सर्वाणि भगानि मे वशमानय स्त्रींहरल्बें ह्रीं भगमालिनि स्वाहा !!



    विधि - इस मंत्र का १०८ प्रतिदिन जप करने से स्त्री वशीकरण होता है !!


    अथ शैतान स्त्री वशीकरण मंत्र

    बड पीपल थान जहां बैठा अजाजील शैतान मेरी सबीह मेरीसी सूरत बन अमुकी (नाम) को जारा ना रानै तो अपनी बहन भानजी के सिर जान पग चलता अमीरान् जो न रानै तो धोबी की नाद चमार की खाल कलाल की माठी पड जो राजा चाहे राजा को मै चाहूं अपने काज को मेरा काम न होगा तो आनसीमें तेरा दामनगीर रहूंगा !!

    विधि – शनिवार से १२ (बारह) दिन तक अर्द्धरात्रि के समय नंगा हो १२ (बारह) राई को हाथ में ले कर प्रत्येक राई के उपर १२ (बारह) मंत्र पढकर अग्नि में डालें स्त्री साधक के प्रेम में वशीभूत हो हाजिर हो जायेगी !!

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  19. यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अप बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यहप्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है।

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  20. शादी वाले दिन से एक दिन पहले एक ईंट के ऊपर कोयले से "बाधायें" लिखकर ईंट को उल्टा करके किसी सुरक्षित स्थान पर रख दीजिये,और शादी के बाद उस ईंट को उठाकर किसी पानी वाले स्थान पर डाल कर ऊपर से कुछ खाने का सामान डाल दीजिये,शादी विवाह के समय में बाधायें नहीं आयेंगी।

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  21. शनि के बुरे समय बचने का ये है अचूक उपाय.


    जानिए आपके घर में कौन सी दिशा है खतरनाक
    वास्तु के अनुसार घर के दक्षिणी भाग में किसी भी तरह का दोष होना सबसे ज्यादा परेशानी देने वाला माना जाता है। घर के दक्षिणी कोने में जितना ज्यादा वास्तु का ध्यान रखा जाता है। घर में उतनी ही अधिक समृद्धि रहती है। इसलिए जब भी घर बनवाये तो दक्षिण दिशा के वास्तु का विशेष ध्यान रखें क्योंकि वास्तु के अनुसार इस दिशा में किसी भी तरह का वास्तुदोष होने पर घर के सदस्यों को अकास्मिक दुर्घटना का सामना करना पड़ सकता है।
    - दक्षिणमुखी भूखण्ड पर मार्ग की ओर से भूखण्ड के सिरे से ही भवन का निर्माण करना चाहिए।
    - दक्षिणमुखी भूखण्ड पर बने भवन का जल उत्तर दिशा से निकास हो तो स्त्रियों को स्वास्थ्य लाभ के साथ धन लाभ भी होता है। यदि उत्तर दिशा से जल का निकास न हो सके तो पूर्व दिशा से जल का निकास होना। ऐसा करने पर पुरुष यशस्वी व स्वस्थ होंगे।
    - दक्षिण दिशा में भवन के सम्मुख टीले, पहाड़ी और कोई ऊंचा भवन हो तो शुभ फलदायी होता है।
    - भूखण्ड का दक्षिण भाग कभी भी नीचे न रखें, यदि रखेंगे तो घर की स्त्रियां अस्वस्थ, धन हानि और आकस्मिक मृत्यु का सामना करना पड़ेगा।
    - दक्षिण भाग में कभी भी कुआं या बोरिंग न करवाएं। ऐसा करने से धनहानि, दुर्घटना व आकस्मिक मृत्यु का सामना करना पड़ सकता है।
    - दक्षिण भाग में बनने वाले कक्षों के बरामदे या फर्श नीचा न बनाएं। कोशिश यही करें कि इस भाग में जो भी निर्माण करें वह पूर्व, उत्तर व ईशान दिशा की अपेक्षा ऊंचा हो।
    - दक्षिण भाग में खाली स्थान न छोड़ें यदि छोड़ें तो नाम मात्र का हो।
    - भवन निर्माण करते समय अन्य महत्वपूर्ण वास्तु सिद्धांतों का पालन अवश्य करें।


    क्या आपको भी हैं ये परेशानियां? ये 3 शनि मंत्र बोल करें दूर
    धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक शनि की दशा जैसे ढैय्या, साढ़े साती या महादशा में शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव व्यावहारिक जीवन के अनेक कामों में बाधाएं पैदा कर सकती है। हिन्दू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव की उपासना से शनि ग्रह दोष शांति के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। परेशानियों से छुटकारे के लिए शास्त्रों में शनि के तीन मंत्र जप खासतौर पर प्रभावी माने गए हैं। जानते हैं इन शनि मंत्रों के अचूक असर से कौन-कौन सी पीड़ा दूर होती है और इन मंत्रों के जप की सरल विधि -

    - हर काम में नुकसान
    - विरोधी परेशानी का कारण बने हो
    - रोग में दवाई का असर नहीं कर रही हो
    - कारोबार में नाकामी
    - मेहनत के मुताबिक सफलता नहीं
    - संतान की असफलता
    - शनिवार के दिन नवग्रह या शनि मंदिर में बदन पर लाल लुंगी पहनकर भीगकर ही शनिदेव पर तेल चढ़ाते हुए इन तीन मंत्रों में से किसी की भी एक माला का जप करें -


    - ॐ शं शनैश्चराय नम:
    - ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
    - ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंयोरभिस्त्रवन्तुन:


    शनि दोष शांति के लिए बोलें यह अचूक देवी मंत्र
    हिन्दू मान्यताओं में शुक्रवार शक्ति उपासना की विशेष घड़ी है। शास्त्रों में कहा गया है कि चण्डी यानी दुर्गा की भक्ति ही कलियुग में जल्द व शुभ फल देने वाली है। देवी दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूप यानी नवदुर्गा भी समस्त ग्रह-नक्षत्रों के साथ पूरे जगत का पालन व पोषण व नियंत्रण करने वाली मानी गई है।

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  22. शनि दोष शांति के लिए बोलें यह अचूक देवी मंत्र
    हिन्दू मान्यताओं में शुक्रवार शक्ति उपासना की विशेष घड़ी है। शास्त्रों में कहा गया है कि चण्डी यानी दुर्गा की भक्ति ही कलियुग में जल्द व शुभ फल देने वाली है। देवी दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूप यानी नवदुर्गा भी समस्त ग्रह-नक्षत्रों के साथ पूरे जगत का पालन व पोषण व नियंत्रण करने वाली मानी गई है।
    यही कारण है कि नवग्रह पीड़ा खासतौर पर शनि दोष शांति के लिए शुक्रवार, शनिवार या नवमी तिथि को देवी दुर्गा के नीचे लिखे मंत्र का स्मरण शारीरिक, मानसिक व आर्थिक मुश्किलों से बचाने में बहुत प्रभावी माना गया है। खासतौर पर शनि साढ़े साती, ढैय्या या शनि दशा में दुर्गा ध्यान शुभ माना गया है।
    - शुक्रवार को स्नान के बाद देवी की पूजा लाल चंदन, लाल फूल, लाल अक्षत, लाल वस्त्र चढ़ाकर करें और धूप व दीप लगाकर लाल आसन पर बैठ नीचे लिखे दुर्गा गायत्री मंत्र का ध्यान कम से कम 108 बार जप माला या हाथ से गिनकर ही करें। अंत में देवी को प्रसाद लगाकर आरती करें।
    ॐ गिरिजाये विद्महे।
    शिवप्रियाय च धीमहि।
    तन्नो दुर्गा: प्रचोदयात्।।


    शनि के बुरे समय बचने का ये है अचूक उपाय...
    धर्म-ज्योतिष को मानने वाले लोग शनिदेव और शनि के प्रभावों को अच्छे से जानते हैं। यदि किसी व्यक्ति से जाने-अनजाने कोई पाप या गलत कार्य हो गया है तो शनिदेव ऐसे लोगों को निश्चित समय पर इन कर्मों का फल प्रदान करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि को न्यायाधिश का पद प्राप्त है। इसी वजह से इन्हें क्रूर देवता माना जाता है। हमारे द्वारा किए गए कर्मों का फल शनिदेव साढ़ेसाती और ढैय्या के समय में प्रदान करते हैं।
    यदि किसी व्यक्ति को अत्यधिक कष्ट भोगना पड़ रहे हैं तो इन अशुभ फलों के प्रभावों को कम करने के लिए कुछ ज्योतिषीय उपाय बताए गए हैं।
    कुछ लोगों की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में हो तो उसे जीवनभर कई प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं। ऐसे में प्रति शनिवार यह उपाय अपनाएं-


    शनिवार को प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठें और नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि करके पवित्र हो जाएं। इसके बाद जल, दूध, तिल्ली के तेल का दीपक लेकर किसी पीपल के वृक्ष के समीप जाएं। अब पीपल पर जल और दूध अर्पित करें। इसके बाद पीपल के वृक्ष के नीचे तिल्ली के तेल के दीपक को प्रज्जवलित करें। शनिदेव प्रार्थना करें कि आपकी सभी समस्याएं दूर हो और बुरे समय से पीछा छुट जाए। इसके बाद पीपल की सात परिक्रमा करें।
    घर लौट कर एक कटोरी में तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखकर इस तेल का दान करें। ऐसा करने पर कुछ ही समय में आपको सकारात्मक फल प्राप्त होने लगेंगे। इसके प्रभाव से आपके घर की पैसों से जुड़ी समस्त समस्याएं दूर होने लगेंगी और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलेगी।







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  23. मातृ दोष |
    यदि कुंडली में चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होकर शनि, राहु, मंगल आदि क्रूर ग्रहों से युक्त या आक्रान्त हो और गुरु अकेला पंचम या नवम भाव में है तब मातृ दोष के कारण संतान सुख में कमी का अनुभव हो सकता है.
    मातृ दोष के शांति उपाय |
    यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मातृ दोष बन रहा है तब इसकी शांति के लिए गोदान करना चाहिए या चांदी के बर्तन में गाय का दूध भरकर दान देना शुभ होगा. इन शांति उपायों के अतिरिक्त एक लाख गायत्री मंत्र का जाप करवाकर हवन कराना चाहिए तथा दशमांश तर्पण करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, वस्त्रादि का दान अपनी सामर्थ्य अनुसार् करना चाहिए. इससे मातृ दोष की शांति होती है.
    मातृ दोष की शांति के लिए पीपल के वृक्ष की 28 हजार परिक्रमा करने से भी लाभ मिलता है.

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  24. ब्राह्मण श्राप के शांति उपाय |
    ब्राह्मण श्राप की शांति के लिए किसी मंदिर में या किसी सुपात्र ब्राह्मण को लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों का दान करना चाहिए. व्यक्ति अपनी शक्ति अनुसार किसी कन्या का कन्यादान भी कर सकता है. बछड़े सहित गाय भी दान की जा सकती है. शैय्या दान की जा सकती है. सभी दान व्यक्ति को दक्षिणा सहित करने चाहिए. इससे शुभ फलों में वृद्धि होती है और ब्राह्मण श्राप या दोष से मुक्ति मिलती है.

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  25. पति-पत्नी की यह प्रबल इच्छा होती है कि उनके यहां उत्तम संतान का जन्म हो क्योंकि बिना बच्चे को परिवार पूरा नहीं माना जाता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके यहां संतान का जन्म नहीं होता। इसके कई कारण हो सकते हैं। इस समस्या के निदान के लिए चिकित्सकीय मार्गदर्शन तो आवश्यक है ही लेकिन साथ ही यदि नीचे लिखा उपाय भी किया जाए तो संतान प्राप्ति की संभावना और भी अधिक हो जाती है।
    उपाय
    बुधवार के दिन सुबह जल्दी उठकर पति-पत्नी संयुक्त रूप से बाल गणेश की पूजा करें तथा अपने घर के मुख्य द्वार पर बाल गणपति की प्रतिमा लगाएं। आते-जाते इस प्रतिमा के समक्ष नमस्कार करें। प्रति बुधवार को गणेशजी का पूजन करने के बाद नीचे लिखे मंत्र का विधि-विधान से जप करें। इस मंत्र का जप करने से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।
    मंत्र
    संतान गणपतये नम: गर्भदोषहो नम: पुत्र पौत्राय नम:।
    जप विधि
    - प्रति बुधवार सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें।
    - इसके बाद बाल गणेश की पूजा करें और उन्हें दुर्गा चढ़ाएं साथ ही लड्डूओं का भोग भी लगाएं।
    - इसके बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठें।
    - तत्पश्चात हरे पन्ने की माला से ऊपर लिखे मंत्र का जप करें। मंत्र का प्रभाव आपको कुछ ही समय में दिखने लगेगा

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  26. 3- वास्तु शास्त्र के अनुसार विवाह योग्य युवक-युवतियों के कमरे एवं दरवाजे का रंग गुलाबी, हल्का पीला या सफेद (चमकीला) हो तो विवाह में आ रही परेशानियां दूर हो जाती हैं।

    4- यदि मंगल दोष के कारण किसी के विवाह में विलंब हो रहा है, तो उसके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखने से मंगल दोष का प्रभाव कम होता है व विवाह प्रस्ताव आने लगते हैं।

    5- यदि कोई विवाह योग्य युवक-युवती विवाह के लिए तैयार न हो, तो उसके कक्ष की उत्तर दिशा की ओर क्रिस्टल बॉल कांच की प्लेट अथवा प्याली में रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से वह विवाह के लिए मान जाता है।

    6- यदि विवाह प्रस्ताव में व्यवधान आ रहे हों तो विवाह वार्ता के लिए घर आए अतिथियों को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर में अंदर की ओर हो और उन्हें घर का दरवाजा दिखाई न दे। ऐसा करने से बात पक्की होने की संभावना बढ़ जाती है।

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  27. यदि परिवार में किसी का विवाह नहीं हो रहा हो अथवा होने में देरी हो रही है, तो इसका कारण भी वास्तु दोष हो सकता है। यदि आप भी अपनी संतान के विवाह में हो रही देरी से परेशान हैं, तो एक बार घर के वास्तु दोषों पर जरूर विचार करें और आगे बताए गए उपाय करें-

    1- वास्तु शास्त्र के अनुसार विवाह योग्य युवक-युवती जिस पलंग पर सोते हैं, उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का सामान नहीं रखना चाहिए। ऐसा होने से उनके विवाह योग में बाधा उत्पन्न होती है।

    2- वास्तु के नियमों के अनुसार विवाह योग्य युवक-युवतियों को उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित कमरे में रहना चाहिए। ऐसा करने से इनके लिए विवाह के प्रस्ताव आने लगते हैं।

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  28. आचार्य कहते हैं जो लोग लालची होते हैं, हमेशा पैसा-पैसा करते रहते हैं, उनके लिए सबसे बड़ा शत्रु कोई भिखारी होता है। लालची व्यक्ति कभी भी अपना धन किसी को देना नहीं चाहते हैं, ऐसे लोगों के सामने यदि कोई भिखारी या उनका धन मांगने वाला कोई अन्य व्यक्ति आ जाए तो वे उसे शत्रु की नजर से ही देखते हैं।

    यदि कोई व्यक्ति मूर्ख है तो वह ज्ञानी लोगों को अपना शत्रु मानता है। मूर्ख व्यक्ति कभी नहीं चाहता है कि कोई उसे ज्ञान का मार्ग दिखाए। अज्ञानी लोग स्वयं को ही श्रेष्ठ समझते हैं और उनके लिए दूसरे लोग अज्ञानी होते हैं। ऐसे लोग मूर्खतावश किसी का भी अपमान कर सकते हैं, अत: मूर्ख लोगों को उपदेश देने से बचना चाहिए।

    यदि कोई व्यक्ति चोर है तो वह चंद्रमा को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानता है। चोर हमेशा अपना काम रात के अंधेरे में ही करता है और अंधेरे में चांद की रोशनी ही उसे पकड़वा सकती है। इसी वजह से चोर चंद्रमा को शत्रु मानते हैं।

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  29. पति-पत्नी का रिश्ता आपसी तालमेल पर ही निर्भर करता है। यदि तालमेल में कमी हो तो छोटी सी परेशानी भी बड़ा असर दिखा सकती है। कभी-कभी वैवाहिक जीवन में ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं, जिनकी वजह से पति और पत्नी एक-दूसरे को ही शत्रु मानने लगते हैं। ऐसी परिस्थितियों के संबंध में आचार्य चाणक्य ने यह नीति बताई है...

    आचार्य चाणक्य कहते हैं कि...

    लुब्धानां याचक: शत्रु: मूर्खाणां बोधको रिपु:।

    जारस्त्रीणां पति: शत्रुश्चौराणां चंद्रमा रिपु:।।

    इस श्लोक में चाणक्य ने बताया है कि यदि कोई स्त्री बुरे चरित्र वाली है तो उसका सबसे बड़ा शत्रु उसी का पति होता है। गलत आचरण वाली स्त्री को उसका पति बुराई करने से रोकता है, इसी वजह से पत्नी अपने पति को ही सबसे बड़ा शत्रु मानती है। जब पत्नी गलत रास्ते पर चलने लग जाती है, तब पति और पत्नी का वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ जाता है। अधिकांश परिस्थितियों में ऐसा वैवाहिक रिश्ता समाप्त ही हो जाता है। अत: पति और पत्नी, दोनों को ही गलत रास्तों से दूर रहना चाहिए।

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  30. जिन लोगों की कुंडली धनु लग्न की है और उसके सप्तम भाव में शुक्र स्थित है तो व्यक्ति को जीवन साथी की ओर से कई मतभेदों का सामना करना पड़ता है। ये लोग जीवन साथी की ओर से पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं कर पाते हैं और इसी वजह से इन्हें धन संबंधी मामलों में हानि होती है। शत्रु पक्ष पर इन लोगों का प्रभाव अधिक रहता है। धनु लग्न की कुंडली के सप्तम भाव मिथुन राशि का स्वामी बुध है। बुध की इस राशि में शुक्र होने पर व्यक्ति को आमदनी के क्षेत्र में विशेष परिश्रम करना पड़ता है। यह स्थान जीवन साथी और व्यवसाय से संबंधित होता है। यहां शुक्र होने पर व्यक्ति को व्यवसाय में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

    धनु लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में शुक्र हो तो...

    कुंडली का अष्टम भाव आयु, स्वास्थ्य एवं पुरातत्व का कारक स्थान है। धनु लग्न में इस स्थान कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। चंद्र की इस राशि में शुक्र होने पर व्यक्ति को स्वास्थ्य के संबंध में काफी शक्ति प्राप्त होती है। बाहरी स्थानों से इन लोगों को अधिक लाभ होता है। घर-परिवार के मामलों में ये लोग भाग्यशाली रहते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के कारण ये लोग अधिक उम्र तक जीते हैं।

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  31. ऋषि स्नान और दानव स्नान

    ऋषि स्नान- यदि कोई व्यक्ति सुबह-सुबह जब आकाश में तारे दिखाई दे रहे हों और उस समय स्नान करें तो उस स्नान को ऋषि स्नान कहा जाता है।

    सामान्यत: जो स्नान सूर्योदय से पहले किया जाता है वह मानव स्नान कहलाता है। सूर्योदय से पूर्व किए जाने वाले स्नान ही श्रेष्ठ होते हैं।

    दानव स्नान- वर्तमान समय में काफी लोग सूर्योदय पश्चात और चाय-नाश्ता करने के बाद स्नान करते हैं, ऐसे स्नान को दानव स्नान कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हमें ब्रह्म स्नान, देव स्नान या ऋषि स्नान करना चाहिए। यही सर्वश्रेष्ठ स्नान हैं।

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  32. रह्म स्नान और देव स्नान

    ब्रह्म स्नान- सुबह-सुबह ब्रह्म मुहूर्त में यानी सुबह लगभग 4-5 बजे जो स्नान भगवान का चिंतन करते हुए किया जाता है, उसे ब्रह्म स्नान कहते हैं। ऐसा स्नान करने वाले को इष्टदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में दुखों का सामना नहीं करना पड़ता है।

    देव स्नान- आज के समय में अधिकांश लोग सूर्योदय के बाद ही स्नान करते हैं। जो लोग सूर्योदय के बाद किसी नदी में स्नान करते हैं या घर पर ही विभिन्न नदियों के नामों का जप करते हुए स्नान करते हैं तो उस स्नान को देव स्नान कहा जाता है। ऐसे स्नान से भी व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

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  33. नदी में नहाते समय पानी पर ऊँ लिखें

    यदि कोई व्यक्ति किसी नदी में स्नान करता है तो उसे पानी पर ऊँ लिखकर पानी में तुरंत डुबकी मार लेना चाहिए। ऐसा करने से नदी स्नान का अधिक पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा आपके आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त हो जाती है।

    नहाते समय करें मंत्रों का जप

    शास्त्रों के अनुसार दिन के सभी आवश्यक कार्यों के लिए अलग-अलग मंत्र बताए गए हैं। नहाते समय भी हमें मंत्र जप करना चाहिए। स्नान करते समय किसी मंत्र का पाठ किया जा सकता है या कीर्तन या भजन या भगवान का नाम लिया जा सकता है। ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

    नहाते समय इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ रहता है...

    गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।

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  34. बुरी नजर दूर होती है

    धन संबंधी मामलों में कई बार हम ईमानदारी से पूरी मेहनत करते हैं, लेकिन सकारात्मक फल प्राप्त नहीं हो पाते हैं। कार्यों में असफलता की वजह से पैसों की तंगी बढऩे लगती है। ऐसे में अक्सर ख्याल आता है कि इतनी मेहनत के बाद भी हमें उचित प्रतिफल प्राप्त क्यों नहीं हो रहा है। यदि कुंडली में ग्रह दोष होते हैं तो इस प्रकार की परिस्थितियां निर्मित होती हैं। किसी व्यक्ति की बुरी नजर से भी कार्यों में हानि हो सकती है।

    यहां दिए गए उपाय से इस प्रकार की परेशानियां खत्म हो जाती हैं। ग्रह दोष भी शांत होते हैं। यदि आपके ऊपर किसी की बुरी नजर है तो वह भी उतर जाती है।

    नहाते समय यह उपाय करने से आपके आस-पास की नकारात्मक शक्तियां प्रभावहीन हो जाती हैं। आपको कार्यों में सफलता मिलने लगती है और मेहनत का सही फल प्राप्त होता है। इस उपाय के साथ ही इष्टदेवी-देवताओं का भी पूजन-अर्चन करते रहना चाहिए।

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  35. तांत्रिक उपाय की विधि

    तांत्रिक उपाय कई प्रकार के होते हैं और ये उपाय ठीक से किए जाते हैं तो व्यक्ति के घर की दशा बदल सकती है। यहां नहाते समय किया जाने वाला तांत्रिक उपाय बताया जा रहा है। इस उपाय के अनुसार जिस बाल्टी में हम नहाने का पानी लेते हैं, उस पानी पर यह उपाय करना चाहिए।

    नहाने के लिए बाल्टी को पानी से पूरा भर लें। इसके बाद अपनी तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) से पानी पर त्रिभुज का निशान बनाएं।

    त्रिभुज बनाने के बाद एक अक्षर का बीज मंत्र ह्रीं उसी निशान के बीच वाले स्थान पर लिख दें।

    इस प्रकार प्रतिदिन नहाने से पहले यह उपाय करें। यह तांत्रिक उपाय है अत: इस संबंध में किसी प्रकार की शंका या संदेह नहीं करना चाहिए। अन्यथा उपाय का प्रभाव निष्फल हो जाता है। साथ ही, इस उपाय की चर्चा भी किसी से नहीं करना चाहिए।

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  36. हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक शनि, सूर्य पुत्र है, किंतु पिता-पुत्र होने पर भी शनि-सूर्य के बीच शत्रुभाव है। इस बात से जुड़ी पौराणिक कथा है कि शनि सूर्य की पत्नी छाया की संतान थे, किंतु शनि के जन्म के समय उनका रंग-रूप देखकर सूर्यदेव ने उनको, अपना पुत्र मानने से इंकार किया और छाया का अपमान किया।
    माता का अपमान सहन न कर पाने से शनि ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और सूर्य से भी अधिक बलवान बनने का वर मांगा। भोलेनाथ ने भी शनि की इच्छा पूरी कर नवग्रहों में सबसे ऊंचा स्थान भी दिया। यही नहीं, भगवान शिव ने बुरे कर्मों के लिए जगत के हर प्राणी को दण्ड देने का अधिकार भी शनि को दिया। यही वजह है कि शनि दण्डाधिकारी या न्याय के देवता भी कहलाते हैं।

    शनि की सजा से कौन-कौन बदहाल या बर्बाद हो सकता है, इसका जवाब भी शास्त्रों में लिखा गया है। शनि के प्रभाव का किन पर होता है, इस बारे में शास्त्र लिखते हैं कि -

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:।
    तव्या विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।

    जिसका मतलब है - देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर या विद्वान, ज्ञानी और नाग इन सभी का शनि की क्रूर दृष्टि या दण्ड से नाश हो सकता है।

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  37. हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक शनि, सूर्य पुत्र है, किंतु पिता-पुत्र होने पर भी शनि-सूर्य के बीच शत्रुभाव है। इस बात से जुड़ी पौराणिक कथा है कि शनि सूर्य की पत्नी छाया की संतान थे, किंतु शनि के जन्म के समय उनका रंग-रूप देखकर सूर्यदेव ने उनको, अपना पुत्र मानने से इंकार किया और छाया का अपमान किया।
    माता का अपमान सहन न कर पाने से शनि ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और सूर्य से भी अधिक बलवान बनने का वर मांगा। भोलेनाथ ने भी शनि की इच्छा पूरी कर नवग्रहों में सबसे ऊंचा स्थान भी दिया। यही नहीं, भगवान शिव ने बुरे कर्मों के लिए जगत के हर प्राणी को दण्ड देने का अधिकार भी शनि को दिया। यही वजह है कि शनि दण्डाधिकारी या न्याय के देवता भी कहलाते हैं।

    शनि की सजा से कौन-कौन बदहाल या बर्बाद हो सकता है, इसका जवाब भी शास्त्रों में लिखा गया है। शनि के प्रभाव का किन पर होता है, इस बारे में शास्त्र लिखते हैं कि -

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:।
    तव्या विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।

    जिसका मतलब है - देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर या विद्वान, ज्ञानी और नाग इन सभी का शनि की क्रूर दृष्टि या दण्ड से नाश हो सकता है।

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  38. हर देवता को अलग-अलग तरह के फूल-पत्र प्रिय माने गए हैं, तो कुछ विशेष फूल देवताओं को चढ़ाना निषेध भी होता है। किंतु शास्त्रों में ऐसे भी फूल बताए गए हैं, जिनको चढ़ाने से हर देवशक्ति की कृपा मिलती है या यूं कहें कि ये फूल हर देवी-देवता की पूजा में शुभ होते हैं और तमाम सुख-सौभाग्य बरसाते हैं। अगली स्लाइड्स पर तस्वीरों के जरिए जानिए ऐसे खूबसूरत व किस्मत बनाने वाले खास फूल-पत्ते, जो किसी भी देवी-देवता को चढ़ाए जा सकते हैं-

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  39. जीवन में सत्य से बड़ा कोई व्रत नहीं है। जिसने सत्य को जीवन में उतार लिया, वो संसार में सभी परेशानियों से जीत सकता है।

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  40. 1.खुद की कमाई से कम खर्च हो ऐसी जिन्दगी बनाओ..!
    2. दिन मेँ कम से कम 3 लोगो की प्रशंशा करो..!
    3. खुद की भुल स्वीकार ने मेँ कभी भी संकोच मत करो..!
    4. किसी के सपनो पर हँसो मत..!
    5. आपके पीछे खडे व्यक्ति को भी कभी कभी आगे जाने का मौका दो..!
    6. रोज हो सके तो सुरज को उगता हुए देखे..!
    7. खुब जरुरी हो तभी कोई चीज उधार लो..!
    8. किसी के पास से कुछ जानना हो तो विवेक से दो बार पुछो..!
    9. कर्ज और शत्रु को कभी बडा मत होने दो..!
    10. ईश्वर पर पुरा भरोशा रखो..!
    11. प्रार्थना करना कभीमत भुलो, प्रार्थना मेँ अपार शक्ति होती है..!
    12. अपने काम से मतलब रखो..!
    13. समय सबसे ज्यादा किमती है, इसको फालतु कामो मेँ खर्च मत करो..!
    14. जो आपके पास है, उसी मेँ खुश रहना सिखो..!
    15. बुराई कभी भी किसी कि भी मत करो करो,
    क्योकिँ बुराई नाव मेँ छेद समान है, बुराई छोटी हो बडी नाव तो डुबोही देती है..!
    16. हमेशा सकारात्मक सोच रखो..!
    17. हर व्यक्ति एक हुनर लेकर पैदा होता बस उस हुनर को दुनिया के सामने लाओ..!
    18. कोई काम छोटा नही होता हर काम बडा होता है जैसे कि सोचो जो काम आप कर रहे हो अगर आप वह काम आप नही करते हो तो दुनिया पर क्या
    असर होता..?
    19." सफलता उनको ही मिलती है जो कुछकरते है
    20. कुछ पाने के लिए कुछ खोना नही
    बल्कि कुछ करना पडता है

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  41. जिन लोगों की कुंडली धनु लग्न की है और उसके सप्तम भाव में शुक्र स्थित है तो व्यक्ति को जीवन साथी की ओर से कई मतभेदों का सामना करना पड़ता है। ये लोग जीवन साथी की ओर से पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं कर पाते हैं और इसी वजह से इन्हें धन संबंधी मामलों में हानि होती है। शत्रु पक्ष पर इन लोगों का प्रभाव अधिक रहता है। धनु लग्न की कुंडली के सप्तम भाव मिथुन राशि का स्वामी बुध है। बुध की इस राशि में शुक्र होने पर व्यक्ति को आमदनी के क्षेत्र में विशेष परिश्रम करना पड़ता है। यह स्थान जीवन साथी और व्यवसाय से संबंधित होता है। यहां शुक्र होने पर व्यक्ति को व्यवसाय में भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

    धनु लग्न की कुंडली के अष्टम भाव में शुक्र हो तो...

    कुंडली का अष्टम भाव आयु, स्वास्थ्य एवं पुरातत्व का कारक स्थान है। धनु लग्न में इस स्थान कर्क राशि का स्वामी चंद्र है। चंद्र की इस राशि में शुक्र होने पर व्यक्ति को स्वास्थ्य के संबंध में काफी शक्ति प्राप्त होती है। बाहरी स्थानों से इन लोगों को अधिक लाभ होता है। घर-परिवार के मामलों में ये लोग भाग्यशाली रहते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के कारण ये लोग अधिक उम्र तक जीते हैं।

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  42. हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक शनि, सूर्य पुत्र है, किंतु पिता-पुत्र होने पर भी शनि-सूर्य के बीच शत्रुभाव है। इस बात से जुड़ी पौराणिक कथा है कि शनि सूर्य की पत्नी छाया की संतान थे, किंतु शनि के जन्म के समय उनका रंग-रूप देखकर सूर्यदेव ने उनको, अपना पुत्र मानने से इंकार किया और छाया का अपमान किया।
    माता का अपमान सहन न कर पाने से शनि ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और सूर्य से भी अधिक बलवान बनने का वर मांगा। भोलेनाथ ने भी शनि की इच्छा पूरी कर नवग्रहों में सबसे ऊंचा स्थान भी दिया। यही नहीं, भगवान शिव ने बुरे कर्मों के लिए जगत के हर प्राणी को दण्ड देने का अधिकार भी शनि को दिया। यही वजह है कि शनि दण्डाधिकारी या न्याय के देवता भी कहलाते हैं।

    शनि की सजा से कौन-कौन बदहाल या बर्बाद हो सकता है, इसका जवाब भी शास्त्रों में लिखा गया है। शनि के प्रभाव का किन पर होता है, इस बारे में शास्त्र लिखते हैं कि -

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:।
    तव्या विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।

    जिसका मतलब है - देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर या विद्वान, ज्ञानी और नाग इन सभी का शनि की क्रूर दृष्टि या दण्ड से नाश हो सकता है।

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  43. हिन्दू धर्मग्रंथों के मुताबिक शनि, सूर्य पुत्र है, किंतु पिता-पुत्र होने पर भी शनि-सूर्य के बीच शत्रुभाव है। इस बात से जुड़ी पौराणिक कथा है कि शनि सूर्य की पत्नी छाया की संतान थे, किंतु शनि के जन्म के समय उनका रंग-रूप देखकर सूर्यदेव ने उनको, अपना पुत्र मानने से इंकार किया और छाया का अपमान किया।
    माता का अपमान सहन न कर पाने से शनि ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और सूर्य से भी अधिक बलवान बनने का वर मांगा। भोलेनाथ ने भी शनि की इच्छा पूरी कर नवग्रहों में सबसे ऊंचा स्थान भी दिया। यही नहीं, भगवान शिव ने बुरे कर्मों के लिए जगत के हर प्राणी को दण्ड देने का अधिकार भी शनि को दिया। यही वजह है कि शनि दण्डाधिकारी या न्याय के देवता भी कहलाते हैं।

    शनि की सजा से कौन-कौन बदहाल या बर्बाद हो सकता है, इसका जवाब भी शास्त्रों में लिखा गया है। शनि के प्रभाव का किन पर होता है, इस बारे में शास्त्र लिखते हैं कि -

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा:।
    तव्या विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।

    जिसका मतलब है - देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर या विद्वान, ज्ञानी और नाग इन सभी का शनि की क्रूर दृष्टि या दण्ड से नाश हो सकता है।

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  44. नव रत्नों के गुण एवं पहचान में रत्नों का प्रभाव सर्वमान्य व महत्वपूर्ण हैं। जितना महत्वपूर्ण कुंडली के आधार पर रत्नों का चुनाव हो उतना ही महत्वपूर्ण रत्न खरीदते समय उसकी गुणवत्ता तथा रंग, आकृति आदि का ध्यान रखना है। अंततः रत्न की गुणवत्ता प्रयोगशाला में जानी जा सकती है। परंतु कुछ मूलभूत पहचान निम्न तरीकों से भी की जा सकती है। इसके सामान्य गुण व पहचान की विधि विस्तृत रूप से दी गयी है। माणिक्य माणिक्य को सूर्य ग्रह का रत्न कहा जाता है। यह लाल रंग का होता है। 24 रत्ती से अधिक का हो तो लाल कहलाता है। यह एक मूल्यवान रत्न हैं। यह षडभुजीय पद्धति के अंतर्गत आता है। कबूतर के रक्त के रंग का माणिक्य श्रेष्ठ समझा जाता है। माणिक्य के गुण श्रेष्ठ और उत्तम माणिक्य के निम्नलिखित गुण होते हैं। जिस माणिक्य को प्रातः काल सूर्य के सामने रखते ही उसमें से लाल रंग की किरणें चारों तरफ बिखरने लगें वह माणिक्य उत्तम गुण का माना जाता है। अगर माणिक्य को पत्थर पर घिसने पर वह न घिसे और उसका वजन न घटे और उसकी शोभा और बढ़ जाए तो उसे शुद्ध समझना चाहिए। अंधकार में रखने पर यदि वह सूर्य की आभा के समान चमकता हो तो वह श्रेष्ठ माणिक्य होगा। सौगुने दूध में माणिक्य को डालने से दूध लाल दिखाई दे अथवा लाल किरणंे निकलने लगें तो वह उच्च कोटि का माणिक्य होता है। प्रातः काल सूर्य के सामने दर्पण पर माणिक्य को रखें। यदि दर्पण के नीचे की तरफ छाया भाग में किरणें दिखाई दें तो समझें कि वह उत्तम माणिक्य है। श्रेष्ठ माणिक्य लाल कमल की पंखुड़ियों के समान लाल, निर्मल, सुंदर, गोल, समान अंग-अवयव वाला और दीप्तिमान होता है। माणिक्य के दोष अगर माणिक्य में निम्नलिखित दोष पाए जाएं तो बिल्कुल नहीं पहनना चाहिए। सुन्न माणिक्य अथवा बिना खनक वाला अर्थात जिस माणिक्य के जमीन पर गिरने से आवाज न आए।

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  45. दोरंगा अर्थात एक ही नग में दो रंग हों तो उसे त्याग देना चाहिए। अगर उसमें किसी भी तरह का जाला आदि हो तो समझें कि वह दोषपूर्ण है। अगर उसमें किसी प्रकार का कोई बिंदु, चीरा या गड्ढा हो अथवा वह धमू ्रवर्ण हा े ता े इस े दाष्े ापणर््ू ा मान।ंे अगर रत्न में चुरचुरापन, पारदर्शिता की कमी, रंग में मलिनता, शहद के रंग का छींटा आदि हों तो वह दोषपूर्ण होता है। माणिक्य की पहचान श्रेष्ठ और सच्चे माणिक्य की पहचान निम्नलिखित है। श्रेष्ठ माणिक्य को आंखों पर रखने से ठंडक मालूम होती है। अगर रत्न में बुलबुले दें या रत्न हल्का हो तो कंाच को बनावटी समझना चाहिए। अगर कोई चीर या चरेड़ अथवा लकीर दिखाई दे, तो देखना आवश्यक है कि य े सब दाष्े ा शीश े के हंै या माणिक्य के। यदि यह शीशा होगा तो उसके चीर में चमक होगी। रत्न के चीर, चरेड़ अथवा लकीर में चमक नहीं होती। उस चीर में अस्वाभाविकता नहीं होती बल्कि वह टेढ़ी-मेढ़ी होती है। उसकी सफाई भी नहीं होती है। कृत्रिम रत्नों में रेशा होता है। यह रूखा और सफेद होता है। अगर इमीटेशन के रबड़ के पैंदे का भाग नग में आ गया हो तो उसमंे सफेद कण स्पष्ट दिखाई देते हैं। यदि माणिक्य में ‘दूधक’ हो, उस दूधक में नीलिमा हो और वह चलता हुआ नहीं हो तो उसे नकली समझना चाहिए। माणिक्य की परत सीधी और नकली की परत बलयाकार होती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतर है। अगर श्रेष्ठ माणिक्य को बर्फ के टुकड़े के ऊपर रख दिया जाए तो जोर की आवाज आती है। इसके विपरीत नकली होगा तो कोई आवाज नहीं आएगी। मोती मोती चंद्र ग्रह का रत्न है। इसका रंग सफेद होता है। यह खनिज नहीं। बल्कि जैविक पदार्थ है। भारत में प्राचीन मान्यता के अनुसार मोती आठ प्रकार के होते हैं- अभ्र मोती, शंख मोती, शुक्ति मोती, सर्प मोती, गज मोती, बांस मोती, शूकर मोती और मीन मोती। इन मोतियों की उत्पत्ति अलग-अलग प्रकार से होती है।

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  46. कल्चर मोती: यह एक प्रकार का ब्लिस्टर मोती होता है। एक कृत्रिम पदार्थ सीपी और मेंटल के बीच पहुंचा दिया जाता है। यह पदार्थ मोती का एक छोटा सा दाना होता है। घोंघा इसी पर परतें डालने लगता है। जैसा कि यह प्राकृतिक विजातीय पदार्थ के अंदर आने पर करता है। इस प्रकार जो मोती तैयार होता है उसे सीपी से अलग कर उस पर मुक्ता आवरण चढ़ा दिया जाता है। फिर पालिश की जाती है। पालिश करने के बाद इसे एक विशेष किस्म की पालिश की मोटी परत से ढक दिया जाता है। 24 घंटे रखा जाए तो असली मोती और ज्यादा चमकने लगता है। कल्चर मोती में काफी अंतर आ जाता है। चावल में मोती को रगड़ने से सच्चे मोती की चमक और ज्यादा बढ़ जाती है जबकि कल्चर मोतियों की चमक कम हो जाती है। मूंगा यह मंगल ग्रह का रत्न है। इसका रंग लाल सिंदूरी होता है। यह खनिज नहीं अपितु जंतु की देन है। इसकी आकर्षक आभा और रंग के कारण इसे नवरत्नों में शामिल किया गया है। इसकी उत्पत्ति वानस्पतिक मानी गई है। परंतु यह भी मोती की भांति समुद्र से ही प्राप्त होता है। देखने पर इसका आकर बेल की शाखाओं जैसा लगता है। मूंगे नाम का एक जंतु, जो गूदे या जेली के समान लसलसा होता है, समुद्र में डूबी हुई चट्टानों से चिपक जाता है। इसके बाद यह कैल्शियम कार्बोनेट के कठोर जमाव को एकत्रित करके मधुमक्खियों के समान छत्ता बना लेता है। उसके बाद वर्षों तक यह जंतु कैल्शियम कार्बोनेट को इक्ट्ठा करके मूंगे का निर्माण करता है। मूंगा अपारदर्शक होता है। अलग-अलग समुद्रों में मिलने के कारण इसके आकार, रंग-रूप, और चमक में फर्क होता है। मूंगे की जांच और परख जो मूंगा पके हुए बेल के समान होता है, वह अति श्रेष्ठ होता है। गोल, लंबा, सीधा, चिकना और अपारदर्शक मूंगा भी उत्तम होता है। गड्ढे, धब्बे, तिल या लकीरों से रहित साफ, चमकदार मूंगा उत्तम होता है। जांच और परख मोती को अच्छी तरह जांच परख कर ही ही धारण करना चाहिए। फटा हुआ बारीक रेखा युक्त और धब्बेदार मोती दोषपूर्ण होता है। अगर मोती चमकरहित हो या उसके चारों ओर गोलाकार रेखा या कोई धब्बा हो तो वह दोषपूण्र् ा होता है। अगर मोती में जाल या चीरा हो, या वह श्यामवर्ण अथवा दोरंगा, हो तो अनिष्टकारी माना जाता है। मोती की पहचान असली मोती की पहचान निम्नलिखित है। कल्चर: इसमें कांच के समान विजातीय पदार्थ की गोली होती है। जो बींधने पर सूराख सी दिखाई देती है। सूराख में समानता नहीं होती है। कल्चर का छेद बीच में चैड़ा होता है। बींधने से गोली कई बार निकल जाती है। अगर यह अंदर ही रहे तो इसे लेंस द्वारा देखा जा सकता है। कल्चर मोती में ऊपर की चमड़ी कुछ कठोर होती है जबकि असली मोती की चमड़ी में कोमलता होती है। अगर गोमूत्र या खार में कल्चर मोती और असली मोती क जिस मूंगे का रंग सिंदूर, टिंगूल अथवा सिंगरफ से मिलता-जुलता हो, उत्तम होता है। उत्तम कोटि के मूंगे को लेंस से देखने पर बिल्कुल समतल दिखाई देता है। इसके विपरीत नकली मूंगे को लेंस से देखने पर मोटे-मोटे रवे स्पष्ट दिखाई देते हैं जो ढले हुए कांच के समान होते हैं। असली मूंगे को अगर शीशे पर रगड़ा किया जाए तो किसी भी तरह की आवाज नहीं आती है। इसके विपरीत नकली मूंगे को घिसने से शीशे के समान स्पष्ट आवाज आती है। पन्ना यह बुध ग्रह का रत्न है। इसमें दोष होना अनिवार्य है क्योंकि ये अक्सर षडभुजीय प्रिज्म के रूप में पाए जाते हैं। अगर इनकी कटाई की जाए तो ये खंडित हो जाते हैं। पन्ने का गहरे मखमली और घास के रंग का पन्ना सर्वोत्तम माना जाता है। इन्हें आभूषणों में जड़ते समय अत्यंत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि ये बहुत ही भंगुर होते हैं। पन्ने की पहचान श्र े ष् ठ पन्ने की पहचान निम्नलिखित है। पन्ने की जांच इसलिए आवश्यक है कि कई बार नकली कांच को रसायनों से रंगकर पन्ने के समान बना दिया जाता है। अभ्रकी: अभ्रक के समान चमक वाला, यह पन्ना अभ्रक के साथ निकलता है। इसमें अभ्रक का कुछ अंश आ जाता है। यह स्पष्ट झलकने लगता है। गड्ढे या चीर से युक्त, दो रंगा, सुन्न, काले या पीले छींटों वाला, बुरबुरा और रुग्ण चमकहीन पन्ना नहीं धारण करना चाहिए। उत्तम पन्ना हरे रंग का, चिकना, पारदर्शक या अर्धपारदर्शक तथा उज्ज्वल किरणों वाला होता है। यह अति उत्तम कोटि का माना जाता है।

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  47. उत्तम पन्ना बिंदुरहित और पानीदार होता है। असली पन्ने को चेसस फिल्टर से देखा जाए तो वह गुलाबी रंग का दिखाई देगा जबकी नकली का रंग हरा ही रहेगा। उत्तम कोटि के पन्ने का रंग कृत्रिम प्रकाश में भी हरा ही दिखाई देता है। नकली और असली रत्न के जो दोष होते हैं वे दोष देखने से ही पता चल जाते हैं। इमीटेशन की चीर शीशे की चीर के समान होती है। अगर असली रत्न को हल्दी के साथ घिसा जाए तो हल्दी का रंग नहीं बदलेगा। इसके विपरीत नकली पन्ने को हल्दी के साथ घिसने पर हल्दी लाल हो जाएगी। नकली पन्ने में पानी के बुलबुलों जैसे हवा के छोटे-छोटे बुलबुले यंत्र से देखने पर दिखाई देंगे। इसके विपरीत असली पन्ना एकदम साफ होगा। पुखराज यह वृहस्पति ग्रह का रत्न है। शुद्ध पुखराज हल्के पीले रंग का चमकदार होता है। यह मांगलिक भी होता है। पुखराज सहज ही चिर जाता है। पुखराज के गुण और परख असली पुखराज की नीचे लिखी विशेषताएं होती हैं। आजकल बाजार में पुखराज से मिलते जुलते कई पीले रंग के नकली रत्न उपलब्ध रहते हैं। इसलिए नीचे लिखी विशेषताओं और गुणों को ध्यान में रखकर ही पुखराज लेना चाहिए। हाथ में रखने पर भारी लगता है। इसकी छवि स्निग्ध और स्वच्छ होती है, दाना बड़ा और परतरहित होता है। असली पुखराज मुलायम तथा चिकना होता है। इसका रंग कनेर के फूल के जैसा होता है। उत्तम कोटि के पुखराज को कसाटै ी पर घिसन े पर उसक े रगं आरै छवि में निखार आ जाता। जिस पुखराज के पीलेपन में कालिमा मिली हो, या जो दोरंगा हो, चमकहीन हो और बालू के समान कर्कश हो वह, नकली होता है। पुखराज रत्न के तीन रवे एक दूसरे के साथ समकोण बनाते हुए परंतु असमान कक्ष होते हैं और सामान्यतया प्रिज्म या त्रिभुज के आकार के होते हैं। उत्तम पुखराज की अपनी निराली चमक होती है। उच्च कोटि के पुखराज को रगड़कर आग उत्पन्न की जा सकती है। उत्तम पुखराज को अगर एक किनारे से कनिष्ठिका और अंगूठे से पकड़कर जोर से दबाया जाए तो यह छिटककर दूर जा गिरता है।

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  48. श्रेष्ठ पुखराज को अगर आग पर गर्म किया जाए तो वह बीच से अस्त होते सूर्य की तरह लाल हो जाता है। इसके अलावा अगर रत्न में बुलबुले हों, या जाला हो, किसी भी किस्म की चीर या हरेड़ हो, तो धारण नहीं करना चाहिए। अलग-अलग खानों से निकलने के कारण पुखराज विभिन्न रंगों के हो सकते हंै। इसलिए ज्योतिष में पुखराज को चार श्रेणियों में बांटा गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ब्राह्मण वर्ण का पुखराज सफेद होता है। रंगहीन होता है। क्षत्रिय वर्ण का पुखराज गुलाबी होता है। शूद्र वर्ण का पुखराज श्याम आभायुक्त होता है। वैश्य वर्ण का पुखराज पीले रंग का होता है। नीलम यह शनि ग्रह का रत्न है। वि.ि भन्न स्थानों से प्राप्त होने के कारण इसकी कठोरता भी भिन्न-भिन्न होती है। नीलम अर्धपारदर्शक और पारदर्शक दोनों होते हैं। नीलम की पहचान असली नीलम की पहचान निम्नलिखित हैं। नकली नीलम में रंगों की वक्र पट्टियां दिखाई देती हैं जबकि असली नीलम में रंगों की पट्टियां सीधी और षडभुजीय प्रिज्म के समान होती हंै। असली नीलम में कुछ खनिज पदार्थ रहते हैं जो स्थान भेद के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। असली नीलम चिकना, चमकदार, साफ और मोर के पंख के समान आभा वाला होता है। असली नीलम को अगर मुट्ठी में पकड़ा जाए तो गर्मी का अनुभव होता है और कई बार रक्त का दबाव बढ़ जाता है। श्रेष्ठ नीलम के पास अगर कोई तिनका लाया जाए तो वह इससे चिपक जाता है। पूर्णिमा की रात जब चंद्रमा की विमल ज्योत्सना फैली हुई हो तब गौरवर्ण की किसी सुंदर कन्या के हाथ में स्वच्छ दूध से भरा कटोरा दे दिया जाए और उस पात्र पर नीलम का प्रकाश डाला जाए। यदि नीलम अपने प्रकाश से दूध, दूध के पात्र और कन्या पर तत्काल नीली आभा छा दे तो उसे उत्तम कोटि का समझना चाहिए। गोमेद गोमेद राहु ग्रह का रत्न है। ये पारदर्शक, पारभासक और अपारदर्शक होते हैं। गोमेद की पहचान गोमेद की पहचान निम्नलिखित है। सामान्यतः गोमेद उल्लू अथवा बाज की आंख तथा गोमूत्र के रंग के समान हल्के पीले रंग का होता है। असली गोमेद को 24 घंटे तक गोमूत्र में रखने से अगर गोमूत्र का रंग बदल जाए तो रत्न असली होता है। स्वच्छ, चिकना और भारी गोमेद उत्तम होता है तथा उसमें शहद के रंग की झाईं दिखाई देती है। इस रत्न की पहचान यह भी है कि कभी-कभी स्पेक्ट्रोस्कोप यंत्र में यह शोषण पटरियां बताता है। इसकी स्पष्ट पहचान यह है कि इसमें दोहरावर्तन होता है और इस कारण पिछले किनारे सामने से देखने पर दोहरे दिखाई देते हैं। लहसुनिया लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। लहसुनिया की पहचान लहसुनिया रत्न की पहचान निम्नलिखित है। उच्च कोटि के लहसुनिया रत्न को अगर हड्डी के ऊपर रख दिया जाए तो 24 घंटे के अंदर, हड्डी के आर-पार छेद हो जाता है। असली लहसुनिया में ढाई या तीन सफेद सूत होते हैं जो बीच में इधर-उधर हिलते रहते हैं। रत्न अपने चित्ताकर्षक रंग तथा चमकदार आभा के कारण हरेक आदमी का मन मोह लेते हैं। प्रकृति की देन ये रत्न संसार के प्रायः सभी देशों में पाए जाते हंै। हीरा यह शुक्र ग्रह का रत्न है। यह विभिन्न रंगों में पाया जाता है। हीरा विद्युत का कुचालक है। छः कोणों वाले हीरे के देवता इंद्र, शुक्ल वर्ण के यम, सर्प मुखाकार विष्णु, शंक्वाकार के वरुण और व्याघ्र के समान हीरे के देवता यम हैं। हीरे की पहचान असली हीरे की पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है। असली हीरे में प्रविष्ट हुआ प्रकाश लगभग पूरा भीतर से लौट आता है। हीरे से प्रकाश की किरण का इंद्र धनुषी रंगों का बिखराव अत्यधिक मात्रा में होता है। श्रेष्ठ हीरे की अपनी विशेष चमक-दमक होती है। ऐसी चमक अन्

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  49. किसी रत्न में नहीं होती है। काटे-संवारे हीरे के खंड की मेखला के ऊपर अथवा इसके समीप की मूल परत पर प्राकृतिक अंश भी अवश्य बचा रह जाता है।

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  50. जन्मकुंडली के द्वादश भावों में से प्रमुखतया, अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित है। तृतीय भाव से भी लघु यात्राओं की जानकारी ली जाती है। अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक है। सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राएं, विदेशों में व्यापार, व्यवसाय एवं प्रवास के द्योतक हैं। इसके अतिरिक्त लग्न तथा लग्नेश की शुभाशुभ स्थिति भी विदेश यात्रा संबंधी योगों को प्रभावित करती है। मेष लग्न 1- मेष लग्न हो तथा लग्नेश तथा सप्तमेश जन्म कुंडली के किसी भी भाव में एक साथ हों या उनमें परस्पर दृष्टि संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 2- मेष लग्न में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तथा द्वादशेश बलवान हो तो जातक कई बार विदेश यात्राएं करता है। 3- मेष लग्न हो व लग्नेश तथा भाग्येश अपने-अपने स्थानों में हों या उनमें स्थान परिवर्तन योग बन रहा हो तो विदेश यात्रा होती है। 4- मेष लग्न हो तथा छठे, अष्टम या द्वादश स्थान में कहीं भी शनि हो या शनि की दृष्टि इन भावों पर हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। 5- मेष लग्न में अष्टम भाव में बैठा शनि जातक को स्थान से दूर ले जाता है तथा बार-बार विदेश यात्राएं करवाता है। उदाहरण कुंडलियों में सैफ अली खान व अभिषेक बच्चन की कुंडलियों में यही स्थिति है। वृष लग्न 1- वृष लग्न में सूर्य तथा चंद्रमा द्वादश भाव में हो तो जातक विदेश यात्रा करता है तथा विदेश में ही काम-धंधा करता है। 2- वृष लग्न हो तथा शुक्र केंद्र में हो और नवमेश नवम भाव में हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। 3- वृष लग्न हो तथा शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक बार-बार विदेश जाता है और विदेश यात्राएं होती रहती हैं। 4- वृष लग्न हो व लग्नेश तथा नवम भाव का स्वामी, मेष, कर्क, तुला या मकर राशि में हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 5- वृष लग्न में भाग्य स्थान या तृतीय स्थान में मंगल राहु के साथ स्थित हो तो जातक सैनिक के रूप में विदेश यात्राएं करता है। उदाहरण कुंडली में लता मंगेशकर की यही स्थिति है- 6- वृष लग्न में राहु लग्न, दशम या द्वादश में हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। लता मंगेशकर की कुंडली में राहु द्वादश भाव में स्थित है। गायन के सिलसिले में इन्होंने कई विदेश यात्राएं की हैं। मिथुन लग्न 1- मिथुन लग्न हो, मंगल व लग्नेश दसवें भाव में स्थित हो, चंद्रमा व लग्नेश शनि द्वारा दृष्ट न हांे तो ऐसे योग वाला जातक विदेश यात्रा करता है।

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  51. 2- मिथुन लग्न हो और लग्नेश तथा नवमेश का स्थान परिवर्तन योग हो तो विदेश यात्रा योग बनता है। 3- मिथुन लग्न हो, शनि वक्री होकर लग्न में बैठा हो तो कई बार विदेश यात्राएं होती हैं। 4- मिथुन लग्न हो तथा लग्नेश व द्वादशेश में परस्पर स्थान परिवर्तन हो व अष्टम व नवम भाव बलवान हो तो विदेश यात्रा होती है। यदि लग्न में राहु अथवा केतु अनुकूल स्थिति में हों और नवम भाव तथा द्वादश स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। कर्क लग्न 1- कर्क लग्न हो और लग्नेश व चतुर्थेश बारहवें भाव में स्थित हांे तो जातक विदेश यात्रा करता है। 2- कर्क लग्न में चंद्रमा नवम भाव में हो और नवमेश लग्न में स्थित हो तो विदेश यात्रा होती है। 3- यदि लग्नेश, भाग्येश और द्वादशेश कर्क, वृश्चिक व मीन राशियों में स्थित हो, तो विदेश यात्रा का योग होता है। 4- यदि लग्नेश नवम भाव में स्थित हो और चतुर्थेश छठे, आठवें या द्वादश भाव में हो तो विदेश यात्राएं होती हैं। 5- यदि लग्नेश बारहवें स्थान में हो या द्वादशेश लग्न में हो तो काफी संघर्ष के बाद विदेश यात्रा होती है। 6- कर्क लग्न में लग्नेश व द्वादशेश की किसी भी भाव में युति हो तो विदेश यात्राएं होती हैं। सिंह लग्न 1- सिंह लग्न में गुरु, चंद्र 3, 6, 8 या 12वें भाव में हो तो विदेश यात्रा के योग हैं। 2- लग्नेश जहां बैठा हो उससे द्वादश भाव में स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 3- सिंह लग्न में द्वादश भाव में कर्क का चंद्रमा स्थित हो तो विदेश यात्रा होती है। 4- सिंह लग्न हो तथा मंगल और चंद्रमा की युति द्वादश भाव में हो तो विदेश यात्रा होती है। 5- यदि सिंह लग्न में लग्न स्थान में सूर्य बैठा हो व नवम व द्वादश भाव शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। कन्या लग्न 1- यदि कन्या लग्न में सूर्य स्थित हो व नवम व द्वादश भाव शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो विदेश यात्रा योग बनता है। 2- यदि सूर्य अष्टम स्थान में स्थित हो तो जातक दूसरे देशों की यात्राएं करता है। 3- यदि लग्नेश, भाग्येश और द्वादशेश का परस्पर संबंध बने तो जातक को जीवन में विदेश यात्रा के कई अवसर मिलते हैं

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  52. 4- कन्या लग्न में बुध और शुक्र का स्थान परिवर्तन विदेश यात्रा का योग बनाता है। 5- द्वितीय भाव में शनि अपनी उच्च राशि में स्थित हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। तुला लग्न 1- तुला लग्न में नवमेश बुध उच्च का होकर बारहवें भाव में स्वराशि में स्थित हो, राहु से प्रभावित हो तो राहु की दशा अंतर्दशा में विदेश यात्रा होती है। 2- यदि चतुर्थेश व नवमेश का परस्पर संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 3- यदि नवमेश या दशमेश का परस्पर संबंध या युति या परस्पर दृष्टि संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 4- चतुर्थ स्थान में मंगल व दशम स्थान में गुरु उच्च का होकर स्थित हो। 5- यदि लग्न में शुक्र व सप्तम में चंद्रमा हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। उदाहरण कुंडली में टेनिस स्टार सानिया मिर्जा की यही स्थिति है। वृश्चिक लग्न 1- वृश्चिक लग्न में पंचम भाव में अकेला बुध हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो शीघ्र ही विदेश यात्रा होती है। 2- वृश्चिक लग्न में चंद्रमा लग्न में हो, मंगल नवम स्थान में स्थित हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 3- यदि सप्तमेश शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर द्वादश स्थान में स्थित हो तो जातक विवाह के बाद विदेश यात्रा करता है। 4- यदि वृश्चिक लग्न में शुक्र अष्टम स्थान में हो या नवम स्थान में गुरु चंद्रमा की युति हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। 5- वृश्चिक लग्न में लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो व शुभ ग्रहों से युक्त हो या दृष्टि संबंध हो तो कई बार विदेश यात्रा होती है

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  53. 5- यदि लग्न में शुक्र व सप्तम में चंद्रमा हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। उदाहरण कुंडली में टेनिस स्टार सानिया मिर्जा की यही स्थिति है। वृश्चिक लग्न 1- वृश्चिक लग्न में पंचम भाव में अकेला बुध हो और उस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो शीघ्र ही विदेश यात्रा होती है। 2- वृश्चिक लग्न में चंद्रमा लग्न में हो, मंगल नवम स्थान में स्थित हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 3- यदि सप्तमेश शुभ ग्रहों से दृष्ट होकर द्वादश स्थान में स्थित हो तो जातक विवाह के बाद विदेश यात्रा करता है। 4- यदि वृश्चिक लग्न में शुक्र अष्टम स्थान में हो या नवम स्थान में गुरु चंद्रमा की युति हो तो विदेश यात्रा का योग होता है। 5- वृश्चिक लग्न में लग्नेश सप्तम भाव में स्थित हो व शुभ ग्रहों से युक्त हो या दृष्टि संबंध हो तो कई बार विदेश यात्रा होती है व जातक विदेश में ही बस जाता है। धनु लग्न 1- धनु लग्न में अष्टम स्थान में कर्क राशि का चंद्रमा हो तो जातक कई बाद विदेश यात्रा करता है। 2- धनु लग्न में द्वादश स्थान में मंगल, शनि आदि पाप ग्रह बैठे हों तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 3- धनु लग्न में नवमेश नवम भाव में स्थित हो, बलवान हो व चतुर्थेश से दृष्टि संबंध बनाता हो, युत हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 4- अष्टम भाव में चंद्रमा, गुरु की युति, नवमेश नवम भाव में हो तो विदेश यात्रा का प्रबल योग बनता है। 5- धनु लग्न में बुध और शुक्र की महादशा अक्सर विदेश यात्रा करवाती है। मकर लग्न 1- मकर लग्न में सप्तमेश, अष्टमेश, नवमेश या द्वादशेश के साथ राहु या

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  54. केतु की युति हो जाए तो विदेश गमन होता है। 2- मकर लग्न हो, चतुर्थ और दशम भाव में चर राशि हो और इनमें से किसी भी स्थान में शनि स्थित हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 3- लाभेश और अष्टमेश की युति एकादश स्थान में हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 4- नवमेश बलवान हो तो विदेश यात्रा होती है। 5- शनि चंद्रमा की युति किसी भी स्थान में हो या दोनों में दृष्टि संबंध हो तो विदेश यात्रा का योग बनता है। 6- सूर्य अष्टम में स्थित हो तो विदेश यात्राएं होती हैं। उदाहरण कुंडली में मदर टैरेसा की यही स्थिति है- कुंभ लग्न 1- कुंभ लग्न में नवमेश व लग्नेश का राशि परिवर्तन विदेश यात्रा कराता है। 2- भाग्येश द्वादश भाव में उच्च का होकर स्थित हो तो विदेश यात्रा होती है। 3- दशम स्थान में सूर्य व मंगल की युति विदेश यात्रा का योग बनाता है। 4- नवम या द्वादश या लग्न या नवम के स्वामियों का स्थान परिवर्तन विदेश यात्रा करवाता है। 5- कुंभ लग्न में तृतीय स्थान, नवम स्थान व द्वादश स्थान का परस्पर संबंध विदेश यात्रा का योग करवाता है। मीन लग्न 1- लग्नेश गुरु नवम भाव में स्थित हो व चतुर्थेश बुध छठे, आठवें या द्वादश भाव में स्थित हो तो जातक कई बाद विदेश गमन करता है। 2- पंचमेश, द्वितीयेश व नवमेश की लाभ (एकादश) भाव में युति विदेश यात्रा का योग बनाता है। 3- द्वादश भाव में मंगल, शनि आदि पाप ग्रह हों तो विदेश यात्रा का योग बनता है।

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  55. 4- यदि शुक्र चंद्रमा से छठे, आठवें या बारहवें स्थान में स्थित हो तो विदेश गमन योग बनता है। 5- मीन लग्न में लग्नेश नवम भाव में स्थित हो व चतुर्थेश छठे, आठवें या द्वादश भाव में हो तो विदेश यात्रा का प्रबल योग बनता है। 6- लग्नस्थ चंद्रमा व दशम भाव में शुक्र हो तो जातक कई देशों की यात्रा करता है। उदाहरण कुंडली में बाबा रामदेव की यही स्थिति है-

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  56. कुंडली का पांचवां भाव विद्या एवं बुद्धि का कारक स्थान है, सिंह लग्न में इस भाव धनु राशि का स्वामी गुरु है। गुरु की इस राशि में बुध ग्रह हो तो व्यक्ति को विद्या एवं बुद्धि के क्षेत्र में काफी उपलब्धियां प्राप्त होती हैं। बुध की इस स्थिति के कारण ये लोग घर-परिवार का सुख प्राप्त करते हैं।
    सिंह लग्न की कुंडली के षष्ठम भाव में बुध हो तो...
    जिन लोगों की कुंडली सिंह लग्न की है और उसके षष्ठम भाव में बुध स्थित है तो उन लोगों को धन के मामलों में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कुंडली का षष्ठम भाव शत्रु एवं रोग का कारक स्थान है। सिंह लग्न में छठे भाव मकर राशि का स्वामी शनि है। शनि की इस राशि में बुध हो तो व्यक्ति शत्रुओं पर धन की मदद से विजय प्राप्त करता है। ये लोग बोलचाल में विनम्र होते हैं।

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  57. हिन्दूग्रंथ रामचरितमानस के मुताबिक जब शिव भक्ति के घमण्ड में चूर काकभुशुण्डि गुरु का उपहास करने पर भगवान शंकर के शाप से अजगर बने। तब गुरु ने ही अपने शिष्य को शाप से मुक्त कराने के लिए शिव की स्तुति में रुद्राष्टक की रचना की। गुरु के तप व शिव भक्ति के प्रभाव से यह शिव स्तुति बड़ी ही शुभ व मंगलकारी शक्तियों से सराबोर मानी जाती है। साथ ही मन से सारी परेशानियों की वजह अहंकार को दूर कर विनम्र बनाती है।

    शिव की इस स्तुति से भी भक्त का मन भक्ति के भाव और आनंद में इस तरह उतर जाता है कि हर रोज व्यावहारिक जीवन में मिली नकारात्मक ऊर्जा, तनाव, द्वेष, ईर्ष्या और अहं को दूर कर देता है, इसलिए किसी भी दिन रुद्राष्टक का पाठ धर्म और व्यवहार के नजरिए से शुभ फल ही देता है।

    यह स्तुति सरल, सरस और भक्तिमय होने से शिव व शिव भक्तों को बहुत प्रिय भी है। धार्मिक नजरिए से शिव पूजन के बाद इस स्तुति के पाठ से शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। अगली तस्वीर पर क्लिक कर जानिए यह शिव स्तुति-

    नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्‌ ।
    अजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्‌ ॥

    निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्‌ ।
    करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्‌ ॥

    तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्‌ ।
    स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

    चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालुम्‌ ।
    मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥

    प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्‌ ।
    त्रय:शूल निर्मूलनं शूलपाणिं, भजे अहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥

    कलातीत-कल्याण-कल्पांतकारी, सदा सज्जनानन्द दातापुरारी।
    चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद-प्रसीद प्रभो मन्माथारी॥

    न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजंतीह लोके परे वा नाराणम्।
    न तावत्सुखं शांति संताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वभुताधिवासम् ॥

    न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम्‌ सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्‌ ।
    जरा जन्म दु:खौद्य तातप्यमानं, प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥

    रूद्राष्टक इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये,
    ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ॥

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  58. हर इंसान के मन में धनी बनने और धन से तमाम सुख-सुविधाओं को पाने का भाव आता है। इनको पूरा करने के लिए वह तरह-तरह के काम और धार्मिक उपाय चुनता है।

    ऐसे ही उपायों में शिव की विशेष मंत्र स्तुति से शिवरात्रि पर शिव पूजा दु:ख, दरिद्रता और धन के अभाव को दूर कर धन, संतान व अच्छी सेहत के जरिए वैभवशाली और संपन्न बना देती है। जानिए यह शिव मंत्र स्तुति, जो दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ के नाम से भी जानी जाती है। शिवलिंग को जल, दूध, बिल्वपत्र और सफेद आंकड़ा समर्पित कर इस मंत्र स्तुति का पाठ करें -

    विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
    कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
    कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
    दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥

    गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
    कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
    गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥2॥

    भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय
    उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
    ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥3॥

    चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय
    भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
    मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥4॥

    पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय
    हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
    आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥5॥

    भानुप्रियाय भवसागरतारणाय
    कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
    नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥6॥

    रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय
    नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
    पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥7॥

    मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय
    गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
    मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥8॥

    वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।
    सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।
    त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥9॥

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  59. शिव उपासना की इस मंगलकारी घड़ी में कल्याणकारी देवता शिव के अद्भुत षड़ाक्षरी मंत्र स्तुति का स्मरण तमाम सफलता व सुख पाने के लिए असरदार माना गया है। जिसे शिव की पंचोपचार पूजा कर बोलना भी शुभ फलदायी माना गया है।

    ॐकार बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।
    कामदं मोक्षदं चैव ऊँकाराय नमो नम:।।

    नमंति ऋषयो देवा नमन्त्यप्सरसां गणा:।
    नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।

    महादेव महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
    महापापहरं देव मकाराय नमो नम:।।

    शिवं शातं जगन्ननाथं लोकानुग्रहकारकम्।
    शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।

    वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।
    वामे शक्तिधरं वेदं वकाराय नमो नम:।।

    यत्र तत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
    यो गुरु: सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।

    षडक्षरमिदं स्तोत्रं य: पठेच्छिवसंनिधौ।
    शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

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  60. शिव पंचाक्षर स्तोत्र सारे रोग, शोक, संताप का नाश कर जीवन में शांति, सुख और समृद्धि लाने वाला माना गया है। शिव पंचाक्षर स्तोत्र शिव के अद्भुत रूप और शक्ति की स्तुति है, जो पंचाक्षर मंत्र नम: शिवाय के पांच अक्षरों न, म, श, व, य में छुपी शिव शक्ति का भी आवाहन है। भगवान शिव का यह स्तोत्र पाठ नियमित रूप से पंचोपचार पूजा कर भी जरूर करें -

    नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय|
    नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै "न" काराय नमः शिवायः॥
    मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय|
    मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै "म" काराय नमः शिवायः॥
    शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय|
    श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवायः॥
    वषिष्ठ कुंभोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय|
    चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवायः॥
    यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय|
    दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवायः॥
    पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत शिव सन्निधौ|
    शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

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  61. धर्म परंपराओं में लिंग पूजा बाणलिंग, पार्थिव लिंग सहित कई रूपों में की जाती है। शास्त्रों में कई रूपों में शिवलिंग पूजा सभी सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मानी गई है, जो शिवलिंग पर मात्र जल और बिल्वपत्र चढ़ाने मात्र से भी पूरी हो जाती हैं।

    महाशिवरात्रि भी शिव पूजा की बड़ी ही शुभ घड़ी है। इसलिए इस दिन शाम को शिव उपासना में शिव लिंगाष्टक का पाठ बहुत ही शुभ फल देने वाला होता है। इसे कामना सिद्धि के साथ भाग्य या संतान बाधा दूर करने वाला भी माना गया है। जानिए शिव की महिमा का यह अद्भुत पाठ –

    ब्रह्ममुरारिसुरार्चित लिगं निर्मलभाषितशोभित लिंग।
    जन्मजदुःखविनाशक लिंग तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥1॥

    देवमुनिप्रवरार्चित लिंगं, कामदहं करुणाकर लिंगं।
    रावणदर्पविनाशन लिंगं तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥2॥

    सर्वसुगंन्धिसुलेपित लिंगं, बुद्धिविवर्धनकारण लिंगं।
    सिद्धसुरासुरवन्दित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥3॥

    कनकमहामणिभूषित लिंगं, फणिपतिवेष्टितशोभित लिंगं।
    दक्षसुयज्ञविनाशन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥4॥

    कुंकुमचंदनलेपित लिंगं, पंकजहारसुशोभित लिंगं।
    संञ्चितपापविनाशिन लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥5॥

    देवगणार्चितसेवित लिंग, भवैर्भक्तिभिरेवच लिंगं।
    दिनकरकोटिप्रभाकर लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥6॥

    अष्टदलोपरिवेष्टित लिंगं, सर्वसमुद्भवकारण लिंगं।
    अष्टदरिद्रविनाशित लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥7॥

    सुरगुरूसुरवरपूजित लिंगं, सुरवनपुष्पसदार्चित लिंगं।
    परात्परं परमात्मक लिंगं, तत्प्रणमामि सदाशिव लिंगं॥8॥

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  62. शिव ही सारे सांसारिक सुखों का आधार हैं। क्योंकि शिव के इस स्वरूप व उपासना के बताए कई तरीके सरल ही नहीं बल्कि आसानी से तन, मन व धन कामनाओं को पूरा करने वाले हैं।

    इसी कड़ी में हिन्दू धर्मग्रंथों के ऐसे 5 शिव मंत्र स्तोत्र बताए जा रहे हैं, जिनका महाशिवरात्रि के दिन किसी भी पल खासतौर पर रात के वक्त स्मरण करना भी पैसा, संतान, सौभाग्य, अन्न व सेहत की सारी इच्छाएं पूरी करने वाला माना गया है। जानिए सरल शिव पूजा उपाय के साथ ये 5 शिव मंत्र स्तोत्र -

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  63. शिव ही सारे सांसारिक सुखों का आधार हैं। क्योंकि शिव के इस स्वरूप व उपासना के बताए कई तरीके सरल ही नहीं बल्कि आसानी से तन, मन व धन कामनाओं को पूरा करने वाले हैं।

    इसी कड़ी में हिन्दू धर्मग्रंथों के ऐसे 5 शिव मंत्र स्तोत्र बताए जा रहे हैं, जिनका महाशिवरात्रि के दिन किसी भी पल खासतौर पर रात के वक्त स्मरण करना भी पैसा, संतान, सौभाग्य, अन्न व सेहत की सारी इच्छाएं पूरी करने वाला माना गया है। जानिए सरल शिव पूजा उपाय के साथ ये 5 शिव मंत्र स्तोत्र -

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  64. फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह रात्रि भगवान शिव को अति प्रिय है। धर्म शास्त्रों के अनुसार शिवरात्रि के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया था। उसके अनुसार भगवान शिव अभिषेक, वस्त्र, धूप तथा पुष्प से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि शिवरात्रि के दिन व्रत उपवास रखने से होते हैं-
    फाल्गुने कृष्णपक्षस्य या तिथि: स्याच्चतुर्दशी।
    तस्यां या तामसी रात्रि: सोच्यते शिवरात्रिका।।
    तत्रोपवासं कुर्वाण: प्रसादयति मां ध्रुवम्।
    न स्नानेन न वस्त्रेण न धूपेन न चार्चया।
    तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासत:।।

    ईशानसंहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रिको आदिदेव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए-
    फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवी महानिशि।
    शिललिंगतयोद्भुत: कोटिसूर्यसमप्रभ:।।

    वैज्ञानिकता तथा अध्यात्म
    ज्योतिषशास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है। अत: वही समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। अत: इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभीष्टतम पदार्थ की प्राप्ति होती है। यही शिवरात्रि का रहस्य है

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  65. धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है-
    किसी समय वाराणसी के वन में एक भील रहता था। उसका नाम गुरुद्रुह था। वह वन्यप्राणियों का शिकार कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई। तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी। उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं। कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा। यह सोचकर वह पानी का पात्र भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया। उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था।
    थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई। गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे। इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई। तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो। वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा। यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे। मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी। हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया।
    थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई। शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया। इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिव की पूजा हो गई। उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया। इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई। वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया। जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए। सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई।
    इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई जिससे शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया। इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए। पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया। तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे। तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा। इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया।

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  66. व्रत विधि
    शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन व्रती (व्रत करने वाला) सुबह जल्दी उठकर स्नान संध्या करके मस्तक पर भस्म का त्रिपुण्ड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें। इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन करें। श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
    शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
    निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।

    यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक बोलें-
    देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
    कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
    तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
    कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

    इस प्रकार करें रात्रिपूजा
    व्रती दिनभर शिवमंत्र (ऊँ नम: शिवाय) का जप करें तथा पूरा दिन निराहार रहे। (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।) धर्मग्रंथों में रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान है। सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घर पर ही (यदि नर्मदेश्वर या अन्य कोई उत्तम शिवलिंग हो) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-

    ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये

    व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिव को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से पुष्प अर्पित कर भगवान की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-

    नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
    विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
    व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
    संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।

    अगले दिन सुबह पुन: स्नानकर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें।

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  67. व्रत विधि
    शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन व्रती (व्रत करने वाला) सुबह जल्दी उठकर स्नान संध्या करके मस्तक पर भस्म का त्रिपुण्ड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें। इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन करें। श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
    शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्।
    निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते।।

    यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक बोलें-
    देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते।
    कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव।।
    तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति।
    कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि।।

    इस प्रकार करें रात्रिपूजा
    व्रती दिनभर शिवमंत्र (ऊँ नम: शिवाय) का जप करें तथा पूरा दिन निराहार रहे। (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं।) धर्मग्रंथों में रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान है। सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर में जाकर अथवा घर पर ही (यदि नर्मदेश्वर या अन्य कोई उत्तम शिवलिंग हो) पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-

    ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये

    व्रती को फल, पुष्प, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप, दीप और नैवेद्य से चारों प्रहर की पूजा करनी चाहिए। दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिव को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें। चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जप करें। भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से पुष्प अर्पित कर भगवान की आरती व परिक्रमा करें। अंत में भगवान से प्रार्थना इस प्रकार करें-

    नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया।
    विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्।।
    व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च।
    संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि।।

    अगले दिन सुबह पुन: स्नानकर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें।

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  68. शिवरात्रि के दिन सभी राशि के लोग ये उपाय कर सकते हैं...
    - शिवरात्रि पर किसी गरीब व्यक्ति को गेहूं एवं चने की दाल का दान करें।
    - किसी जरूरतमंद एवं गरीब सुहागन स्त्री को भोजन कराएं। यदि आप सुहागन स्त्री को भोजन कराने में असमर्थ हैं तो किसी छोटी कन्या को भी भोजन करवा सकते हैं।
    - इस दिन शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें।
    शिवरात्रि पर जो भी विवाहित व्यक्ति ये तीनों उपाय या इन तीनों उपायों में से कोई एक उपाय भी करता है तो उसके वैवाहिक जीवन की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल और प्रेम बढ़ता है।
    शिवरात्रि के दिन सभी राशि के लोग ये उपाय कर सकते हैं...
    - शिवरात्रि पर किसी गरीब व्यक्ति को गेहूं एवं चने की दाल का दान करें।
    - किसी जरूरतमंद एवं गरीब सुहागन स्त्री को भोजन कराएं। यदि आप सुहागन स्त्री को भोजन कराने में असमर्थ हैं तो किसी छोटी कन्या को भी भोजन करवा सकते हैं।
    - इस दिन शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें।
    शिवरात्रि पर जो भी विवाहित व्यक्ति ये तीनों उपाय या इन तीनों उपायों में से कोई एक उपाय भी करता है तो उसके वैवाहिक जीवन की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल और प्रेम बढ़ता है।

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  69. इसे
    दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि आध्यात्मिकता का अवमूल्यन होते-होते वह बाजीगरी स्तर
    पर पहुँच गई है और सिद्धियों का तात्पर्य लोग किसी ऐसे ही अजूबे से समझने लगे हैं, जो कौतुक-कौतूहल उत्पन्न करता हो। दर्शकों को अचम्भे में
    डालता हो। भले ही वे अचरज सर्वथा निरर्थक ही क्यों न हो? बालों में से खाल निकाल लेना कोई ऐसा काम नहीं है कि जिसके
    बिना किसी का काम रुकता हो या फिर किसी का उससे बहुत बड़ा हित होने वाला हो।
    असाधारण कृत्य, चकाचौंध में डालने वाले करतब ही बाजीगर लोग दिखाते
    रहते हैं। इसी के सहारे वाहवाही लूटते और पैसा कमाते हैं, किन्तु इनके कार्यों में से एक भी ऐसा नहीं होता कि जिससे
    जन-हित का कोई प्रयोजन पूरा होता हो। कौतूहल दिखाकर अपना बड़प्पन सिद्ध करना उनका
    उद्देश्य होता है। इसके सहारे वे अपना गुजारा चलाते हैं। सिद्ध पुरुषों में भी
    कितने ही ऐसे होते हैं, जो ऐसी कुछ हाथों की सफाई दिखाकर अपनी सिद्धियों का
    विज्ञापन करते रहते हैं। हवा में हाथ मारकर इलायची या मिठाई मँगा देने, नोट दूने कर देने जैसे कृत्यों के बहाने चमत्कृत करके कितने
    ही भोले लोगों को ठग लिए जाने के समाचार आए दिन सुनने को मिलते रहते हैं। लोगों का
    बचपना है,

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  70. रस्तुत
    जीवन वृत्तांत में कौतूहल व अतिवाद न होते हुए भी वैसा सारगर्भित बहुत कुछ है, जिससे अध्यात्म विज्ञान के वास्तविक स्वरूप और उसके
    सुनिश्चित प्रतिफल को समझने में सहायता मिलती है। उसका सही रूप विदित न होने के
    कारण लोग-बाग इतनी भ्रांतियों में फँसते हैं कि भटकाव जन्य निराशा से वे श्रद्धा
    ही खो बैठते हैं और इसे पाखण्ड मानने लगते हैं। इन दिनों ऐसे प्रच्छन्न नास्तिकों
    की संख्या अत्यधिक है। जिनने कभी उत्साहपूर्वक पूजा-पत्री की थी, अब ज्यों-त्यों करके चिह्न पूजा करते हैं, तो भी लकीर पीटने की तरह अभ्यास के वशीभूत हो करते हैं।
    आनंद और उत्साह सब कुछ गुम हो गया। ऐसा असफलता के हाथ लगने के कारण हुआ। उपासना की
    परिणतियाँ, फलश्रुतियाँ पढ़ी-सुनी गईं थीं, उसमें से कोई कसौटी पर खरी नहीं उतरी, तो विश्वास टिकता भी कैसे?

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  71. प्रस्तुत
    जीवन वृत्तांत में कौतूहल व अतिवाद न होते हुए भी वैसा सारगर्भित बहुत कुछ है, जिससे अध्यात्म विज्ञान के वास्तविक स्वरूप और उसके
    सुनिश्चित प्रतिफल को समझने में सहायता मिलती है। उसका सही रूप विदित न होने के
    कारण लोग-बाग इतनी भ्रांतियों में फँसते हैं कि भटकाव जन्य निराशा से वे श्रद्धा
    ही खो बैठते हैं और इसे पाखण्ड मानने लगते हैं। इन दिनों ऐसे प्रच्छन्न नास्तिकों
    की संख्या अत्यधिक है। जिनने कभी उत्साहपूर्वक पूजा-पत्री की थी, अब ज्यों-त्यों करके चिह्न पूजा करते हैं, तो भी लकीर पीटने की तरह अभ्यास के वशीभूत हो करते हैं।
    आनंद और उत्साह सब कुछ गुम हो गया। ऐसा असफलता के हाथ लगने के कारण हुआ। उपासना की
    परिणतियाँ, फलश्रुतियाँ पढ़ी-सुनी गईं थीं, उसमें से कोई कसौटी पर खरी नहीं उतरी, तो विश्वास टिकता भी कैसे?

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  72. भगवान शिव के 108 नाम ----१- ॐ भोलेनाथ नमः२-ॐ कैलाश पति नमः३-ॐ भूतनाथ नमः४-ॐ नंदराज नमः५-ॐ नन्दी की सवारी नमः६-ॐ ज्योतिलिंग नमः७-ॐ महाकाल नमः८-ॐ रुद्रनाथ नमः९-ॐ भीमशंकर नमः१०-ॐ नटराज नमः११-ॐ प्रलेयन्कार नमः१२-ॐ चंद्रमोली नमः१३-ॐ डमरूधारी नमः१४-ॐ चंद्रधारी नमः१५-ॐ मलिकार्जुन नमः१६-ॐ भीमेश्वर नमः१७-ॐ विषधारी नमः१८-ॐ बम भोले नमः१९-ॐ ओंकार स्वामी नमः२०-ॐ ओंकारेश्वर नमः२१-ॐ शंकर त्रिशूलधारी नमः२२-ॐ विश्वनाथ नमः२३-ॐ अनादिदेव नमः२४-ॐ उमापति नमः२५-ॐ गोरापति नमः२६-ॐ गणपिता नमः२७-ॐ भोले बाबा नमः२८-ॐ शिवजी नमः२९-ॐ शम्भु नमः३०-ॐ नीलकंठ नमः३१-ॐ महाकालेश्वर नमः३२-ॐ त्रिपुरारी नमः३३-ॐ त्रिलोकनाथ नमः३४-ॐ त्रिनेत्रधारी नमः३५-ॐ बर्फानी बाबा नमः३६-ॐ जगतपिता नमः३७-ॐ मृत्युन्जन नमः३८-ॐ नागधारी नमः३९- ॐ रामेश्वर नमः४०-ॐ लंकेश्वर नमः४१-ॐ अमरनाथ नमः४२-ॐ केदारनाथ नमः४३-ॐ मंगलेश्वर नमः४४-ॐ अर्धनारीश्वर नमः४५-ॐ नागार्जुन नमः४६-ॐ जटाधारी नमः४७-ॐ नीलेश्वर नमः४८-ॐ गलसर्पमाला नमः४९- ॐ दीनानाथ नमः५०-ॐ सोमनाथ नमः५१-ॐ जोगी नमः५२-ॐ भंडारी बाबा नमः५३-ॐ बमलेहरी नमः५४-ॐ गोरीशंकर नमः५५-ॐ शिवाकांत नमः५६-ॐ महेश्वराए नमः५७-ॐ महेश नमः५८-ॐ ओलोकानाथ नमः५४-ॐ आदिनाथ नमः६०-ॐ देवदेवेश्वर नमः६१-ॐ प्राणनाथ नमः६२-ॐ शिवम् नमः६३-ॐ महादानी नमः६४-ॐ शिवदानी नमः६५-ॐ संकटहारी नमः६६-ॐ महेश्वर नमः६७-ॐ रुंडमालाधारी नमः६८-ॐ जगपालनकर्ता नमः६९-ॐ पशुपति नमः७०-ॐ संगमेश्वर नमः७१-ॐ दक्षेश्वर नमः७२-ॐ घ्रेनश्वर नमः७३-ॐ मणिमहेश नमः७४-ॐ अनादी नमः७५-ॐ अमर नमः७६-ॐ आशुतोष महाराज नमः७७-ॐ विलवकेश्वर नमः७८-ॐ अचलेश्वर नमः७९-ॐ अभयंकर नमः८०-ॐ पातालेश्वर नमः८१-ॐ धूधेश्वर नमः८२-ॐ सर्पधारी नमः८३-ॐ त्रिलोकिनरेश नमः८४-ॐ हठ योगी नमः८५-ॐ विश्लेश्वर नमः८६- ॐ नागाधिराज नमः८७- ॐ सर्वेश्वर नमः८८-ॐ उमाकांत नमः८९-ॐ बाबा चंद्रेश्वर नमः९०-ॐ त्रिकालदर्शी नमः९१-ॐ त्रिलोकी स्वामी नमः९२-ॐ महादेव नमः९३-ॐ गढ़शंकर नमः९४-ॐ मुक्तेश्वर नमः९५-ॐ नटेषर नमः९६-ॐ गिरजापति नमः९७- ॐ भद्रेश्वर नमः९८-ॐ त्रिपुनाशक नमः९९-ॐ निर्जेश्वर नमः१०० -ॐ किरातेश्वर नमः१०१-ॐ जागेश्वर नमः१०२-ॐ अबधूतपति नमः१०३ -ॐ भीलपति नमः१०४-ॐ जितनाथ नमः१०५-ॐ वृषेश्वर नमः१०६-ॐ भूतेश्वर नमः१०७-ॐ बैजूनाथ नमः१०८-ॐ नागेश्वर नमः

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  73. अशुभ सूर्य के लिए उपाय- शिवरात्रि पर शिवलिंग का अनार के रस से अभिषेक करें। इस उपाय से सूर्य के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं।

    अशुभ शनि के लिए उपाय- शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें। किसी गरीब व्यक्ति को काले कंबल का दान करें।

    अशुभ राहु के लिए उपाय- राहु के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए शिवलिंग पर पलाश के पुष्प अर्पित करें।

    अशुभ केतु के लिए उपाय- जिन लोगों की कुंडली में केतु अशुभ है वे लोग शिवरात्रि पर शिवलिंग के समक्ष सरसो के तेल का दीपक जलाएं।

    सभी ग्रहों के दोषों को दूर करने के लिए शिवरात्रि पर रात के समय किसी ऐसे शिव मंदिर में दीपक जलाएं जो निर्जन स्थान पर हो।

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  74. अशुभ सूर्य के लिए उपाय- शिवरात्रि पर शिवलिंग का अनार के रस से अभिषेक करें। इस उपाय से सूर्य के अशुभ प्रभाव खत्म हो जाते हैं।

    अशुभ शनि के लिए उपाय- शिवलिंग पर काले तिल अर्पित करें। किसी गरीब व्यक्ति को काले कंबल का दान करें।

    अशुभ राहु के लिए उपाय- राहु के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए शिवलिंग पर पलाश के पुष्प अर्पित करें।

    अशुभ केतु के लिए उपाय- जिन लोगों की कुंडली में केतु अशुभ है वे लोग शिवरात्रि पर शिवलिंग के समक्ष सरसो के तेल का दीपक जलाएं।

    सभी ग्रहों के दोषों को दूर करने के लिए शिवरात्रि पर रात के समय किसी ऐसे शिव मंदिर में दीपक जलाएं जो निर्जन स्थान पर हो।

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  75. 3- वासुकि कालसर्प दोष

    - वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात्रि को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।

    - श्राद्ध के दौरान किसी भी दिन लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।


    4- शंखपाल कालसर्प दोष

    - शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए श्राद्ध पक्ष के दौरान किसी भी दिन 400 ग्राम साबूत बादाम बहते पानी में प्रवाहित करें।

    - शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

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  76. जीवन में शक्ति और सिद्धि की कामना को पूरी करने के लिए श्रीहनुमान उपासना अचूक मानी जाती है। श्री हनुमान चिरंजीवी भी माने जाते हैं। ऐसी अद्भुत शक्तियों व गुणों के स्वामी होने से ही वे जाग्रत देवता के रूप में पूजनीय हैं। इसलिए किसी भी वक्त हनुमान की भक्ति संकटमोचन के साथ ही तन, मन व धन से संपन्न बनाने वाली मानी गई है। यहां बताए जा रहे विशेष हनुमान मंत्र का स्मरण संकटमुक्त रहने की कामनासिद्धि के साथ मंगलकारी साबित होगा।


    * स्नान के बाद श्री हनुमान की पंचोपचार पूजा यानी सिंदूर, गंध, अक्षत, फूल, नैवेद्य चढ़ाकर करें।


    * गुग्गल धूप व दीप जलाकर नीचे लिखा हनुमान मंत्र लाल आसन पर बैठ साल और जीवन को सफल व पीड़ामुक्त बनाने की इच्‍छा से बोलें और अंत में श्री हनुमान की आरती करें।



    ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय

    विश्वरूपाय अमित विक्रमाय

    प्रकटपराक्रमाय महाबलाय,

    सूर्य कोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।।

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  77. बुधवार गणेश जी की पूजा का दिन माना जाता है। गणेश जी को ऎसे देवता के रूप में पूजा जाता है, जिनका नाम जपने से कठिन से कठिन कार्य आसानी से बन जाते हैं। कार्य में आने वाली जान-अनजानी विघ्र, बाधाओं का नाश हो जाता है। शास्त्रों में माना गया है कि बुधवार के दिन गणेश जी के 12 नामों की स्तुति करने से गृहस्थी, व्यापार या फिर परीक्षा में सफलता से जुड़ी समस्या खत्म हो जाती है। गणेश जी के12 नामों की स्मुति कर इस मंत्र का स्मरण करना चाहिए...

    गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।
    द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।
    विनायकश्चायकर्ण: पशुपालो भावात्मज:।
    द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय य: पठेत्
    विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्रं भवते् कश्चित।।

    सभी भक्तों को सुबह गणेश जी पूजा के साथ जप बेहतर नतीजे देता है। पूजा में दूर्वा चढ़ाना और मोदक का यथाशक्तिभोग लगाना न भूलें।

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  78. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में केतु प्रथम भाव में स्थित है तो इस स्थिति से व्यक्ति व्यापार में या सेवा क्षेत्र में संतोषजनक उपलब्धि हासिल करता है। इन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता मिल सकती है, कभी-कभी पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण रहता है। सिर दर्द की समस्या हो सकती है। जीवन साथी और बच्चे के जन्म या स्वास्थ्य के लिए चिंता रह सकती है।

    कुंडली के द्वितीय भाव में केतु हो तो...

    जिन लोगों की कुंडली में केतु द्वितीय भाव में होता है, उनके लिए यात्राएं लाभकारी होती हैं। ये लोग जीवन में कई उपलब्धियां हासिल करते हैं। ये लोग धन को भविष्य के लिए बचाने के लिए सक्षम नहीं हो पाते हैं। सामान्यत: केतु की इस स्थिति के कारण संतान बुढ़ापे में मददगार नहीं होती है।

    कुंडली के तृतीय भाव में केतु हो तो...

    यदि कुंडली के तृतीय भाव में केतु स्थित हो तो व्यक्ति को ससुराल वालों से या दोस्तों और भाइयों से विशेष लाभ मिलता है। 45 वर्ष की आयु के बाद इनके धन की हानि हो सकती है। इस कारण इन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इनकी आयु अधिक रहती है।

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  79. कुंडली में केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति भगवान का सम्मान करने वाला होता है। ऐसे लोग अध्यापक, बड़ों और अपने पूरे कुल को जीवन में खुशी देने वाले होते हैं। ये लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। इनका बचपन ठीक-ठाक रहता है।

    कुंडली के पंचम भाव में केतु हो तो...

    यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के पंचम भाव में केतु हो तो व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम रहने वाला होता है। इनका किसी से वाद-विवाद भी नहीं होता है। केतु की इस स्थिति के कारण कुछ लोग को वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनके जीवन में 45 साल की उम्र के बाद बुरा समय आ सकता है।

    कुंडली के षष्ठम भाव में केतु हो तो...

    जिन लोगों की कुंडली में केतु षष्ठम भाव में स्थित है, उनका जीवन एक समान चलता रहता है। इन्हें मां से प्रेम मिलता है। ये लोग खुश रहने वाले, हंसमुख होते हैं। विदेश में या घर से दूर भी सहज ही रहते हैं। इनके कई दुश्मन हो सकते हैं।

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  80. यदि कुंडली के सप्तम भाव में केतु स्थित हो तो व्यक्ति दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। इन्हें 35 की उम्र के बाद मान-सम्मान और धन लाभ मिल सकता है। इन्हें अहंकार, झूठे वादे और अभद्र भाषा के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

    कुंडली के अष्टम भाव में केतु हो तो...

    कुंडली के अष्टम इस भाव में केतु अच्छा माना जाता है। इस स्थिति के कारण व्यक्ति भावना पूर्ण होते हैं। सदा दूसरे का भला सोचने वाले होते हैं। जीवन में 34 वर्ष के बाद बड़ी सफलता मिल सकती है। बीमारियां सदा बनी रहती हैं।

    कुंडली के नवम भाव में केतु हो तो...

    केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति योग्य और बहादुर होता है। केतु के कारण इन लोगों के पास पर्याप्त पैसा होता है। साथ ही, ये लोग धन संबंधी कार्यों में तेजी से सफलता प्राप्त करते हैं।

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  81. केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति प्रसिद्ध होता है। इनका झुकाव खेलों की ओर अधिक होता है। व्यक्तित्व आकर्षक हो सकता है। इनका जीवन साथी बहुत ही सुंदर होता है। ये लोग अपने भाइयों की मदद करते हैं।

    कुंडली में केतु एकादश भाव में हो तो...

    इस ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति हमेशा भविष्य के बारे में सोचता रहता है। इसी वजह से ये लोग काम पर ध्यान नहीं लगा पाते हैं। इनके पास पर्याप्त धन रहता है। मन में भयभीत रहने वाले, लेकिन शरीर से शक्तिशाली दिखाई देने वाले हो सकते हैं। ये लोग अच्छे व्यवस्थापक या शासक हो सकते हैं।

    कुंडली के द्वादश भाव में केतु हो तो...

    ये लोग हमेशा आगे बढ़ते रहते हैं, लेकिन व्यवसाय या सेवा कार्य बार-बार बदलने से इनके धन लाभ में कमी हो जाती है। यदि ये लोग सभी प्रकार की विलासिता को छोड़ देते हैं तो काफी लाभ प्राप्त होता है।

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  82. 28 जनवरी, बुधवार) माघ मास की गुप्त नवरात्रि की अंतिम दिन है। तंत्र शास्त्र के अनुसार गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन यदि दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप किया जाए तो साधक की हर परेशानी दूर हो सकती है। यदि आपकी भी कोई समस्या है तो आज आप इन मंत्रों का विधि-विधान से जाप करें।

    यहां हर समस्या के लिए एक विशेष मंत्र बताया गया है। दुर्गा सप्तशती के मंत्र बहुत ही शीघ्र असर दिखाते हैं, यदि आप मंत्रों का उच्चारण ठीक से नहीं कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से इन मंत्रों का जाप करवाएं, अन्यथा इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। मंत्र जाप की विधि इस प्रकार है-
    गुप्त नवरात्रि के अंतिम दिन सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुशा (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इन मंत्रों का जाप करें।

    - इन मंत्रों की प्रतिदिन 5 माला जाप करने से मन को शांति तथा प्रसन्नता मिलती है। यदि जाप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाते हैं।

    सुंदर पत्नी के लिए मंत्र

    पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
    तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।

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  83. दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
    स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
    दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
    सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
    रक्षा के लिए
    शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
    घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।


    स्वर्ग और मुक्ति के लिए

    सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते।
    स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।


    मोक्ष प्राप्ति के लिए

    त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
    विश्वस्य बीजं परमासि माया।
    सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
    त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:।।

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  84. दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
    मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।


    सामूहिक कल्याण के लिए मंत्र

    देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
    निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
    तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
    भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।।


    भय नाश के लिए

    यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
    ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
    सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
    नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।

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  85. रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
    रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
    त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
    त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।


    बाधा शांति के लिए

    सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
    एवमेव त्वया कार्यमस्मद्ैवरिविनासनम्।।


    विपत्ति नाश के लिए मंत्र

    देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
    प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
    प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
    त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।

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  86. 1. शाम को जलाएं दीपक
    यदि आप चाहते हैं कि महालक्ष्मी की कृपा आपके घर बनी रहे तो हर रोज शाम के समय मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। इस उपाय को करते समय हमारा भाव होना चाहिए कि यह दीपक देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए है। शाम के समय महालक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करती हैं और जिन घर के द्वार पर देवी के स्वागत के लिए दीपक जलाएं जाते हैं, वहां वे निवास करती हैं।
    2. रंगोली बनाएं
    हर रोज मुख्य दरवाजे के सामने रंगोली भी बनानी चाहिए। रंगोली से घर का वातावरण सकारात्मक और पवित्र होता है। रंगोली देवी-देवताओं के सम्मान और स्वागत के लिए बनाई जाती है। जिन घर के सामने सुंदर रंगोली बनाई जाती है, वहां सभी देवी-देवताओं की कृपा बनी रहती है। इस उपाय से घर के कई वास्तु दोष भी दूर होते हैं।
    3. घर में करें गौमूत्र का छिड़काव
    प्रतिदिन घर में गौमूत्र का छिड़काव करना चाहिए, लेकिन आजकल यह उपाय हर रोज कर पाना काफी लोगों के लिए मुश्किल है। अत: कम से कम सभी त्योहारों पर, सभी शुभ मुहूर्त पर, पूर्णिमा तिथि पर घर में गौमूत्र का छिड़काव अवश्य किया जा सकता है। इस उपाय से वातावरण में मौजूद सभी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है, घर का माहौल पवित्र होगा। घर के वास्तु दोष दूर होते हैं। जहां गौमूत्र का छिड़काव किया जाता है उस घर पर सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा होती है।
    4. सुगंधित होना चाहिए घर का वातावरण
    घर का वातावरण सुगंधित रखना चाहिए। इसके लिए सुबह-शाम सुगंधित अगरबत्ती या धूप बत्ती जलाएं। जिन स्थान पर बदबू आती रहती है, वहां नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है, वास्तु दोष में बढ़ोतरी होती है। ऐसे स्थान पर रहने वाले लोगों को मानसिक तनाव और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इन सब से बचने के लिए घर को सुगंधित रखें। इसके प्रभाव से परिवार के सदस्यों का मन प्रसन्न रहेगा और कार्य ठीक से कर पाएंगे। धूप-अगरबत्ती की मोहक सुगंध देवी-देवताओं को आकर्षित करती है।
    5. रोज करें पूजा
    हर रोज घर के मंदिर में रखी प्रतिमाओं और फोटो की विधिवत पूजा की जानी चाहिए। मंदिर में रखी प्रतिमाएं आपके घर से सभी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है। यदि इनकी पूजा नहीं की जाती है तो वास्तु दोष भी बढ़ता है और लक्ष्मी कृपा प्राप्त नहीं हो पाती है। शास्त्रों के अनुसार घर के मंदिर में पूजन करने से भी अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

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  87. शाम के समय सोना नहीं चाहिए, इससे लक्ष्मी हमारे घर से लौट जाती हैं। शाम के समय सोना महालक्ष्मी के प्रति अनादर का भाव प्रकट करता है। यदि कोई व्यक्ति अस्वस्थ है या वृद्ध है तो वह शाम के समय सो सकता है। साथ ही, गर्भवती स्त्री भी शाम को विश्राम के लिए शयन कर सकती है। जो लोग पुर्णत: स्वस्थ हैं, उन्हें शाम को सोना नहीं चाहिए। यह समय पूजन कर्म के लिए श्रेष्ठ होता है। अत: इस समय शयन का त्याग करना चाहिए। शाम को सोना स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है। इससे मोटापा बढ़ सकता है, आलस्य में बढ़ोतरी होती है।
    7. शाम के समय शिवलिंग के पास लगाएं दीपक
    हर रोज सूर्यास्त के बात शिवलिंग के पास दीपक लगाना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार शाम के समय शिवलिंग के पास दीपक लगाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यह उपाय करने वाले भक्त को शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। शिवजी की प्रसन्नता से धन संबंधी कार्यों में आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं और घर में धन-समृद्धि बढ़ सकती है।
    8. शाम को पूरा घर करें रोशन
    शाम के समय पूरे घर में रोशनी करना चाहिए। किसी भी कमरे में अंधेरा नहीं होना चाहिए। यदि अधिक समय के लिए पूरे घर में रोशनी नहीं कर सकते हैं तो कुछ देर के लिए यह उपाय किया जा सकता है। अंधेरे से वास्तु दोष उत्पन्न होता है।
    9. घर में रखें साफ-सफाई
    घर को अच्छी तरह साफ एवं स्वच्छ रखें। घर में कचरा या मकड़ी के जाले दिखाई नहीं देना चाहिए। जहां गंदगी रहती हैं, वहां देवी लक्ष्मी निवास नहीं करतीं। जिन घरों में गंदगी रहती है, वहां वास्तु दोषों का प्रभाव काफी अधिक होता है। साथ ही, गंदगी स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। अस्वच्छ स्थान पर दरिद्रता का वास होता है।

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  88. बहुत से विद्वानों एवं विचारकों का मानना है कि कालसर्प योग की चर्चा किसी भी ग्रंथ में नहीं है। या ऐसा कोई दोष या योग नहीं होता। यह केवल कल्पना ही है। यह मात्र कपोल कल्पित है और जनता को गुमराह कर या उन्हें डरा कर पैसा ऐंंठने का ही साधन है। परंतु यदि ऐसा कोई योग होता ही नहीं तो उसका नामकरण कैसे हो गया? हां विभिन्न ग्रंथों में इसका उल्लेख अवश्य है जिनमें से निम्न ग्रंथों में इसे इस प्रकार कहा गया है :

    काल सर्प योग तभी बनता है जब सारे ग्रह राहु और केतु के एक ओर आ जाएं। यदि इस रेखा से कोई एक ग्रह बाहर रह जाता है तो उसे आंशिक माना जाता है। पूर्ण कालसर्प योग वाले लोग एक बार बहुत परिश्रम के बाद ही ऊंचाई पर आते हैं और कई बार एक ही घटना उन्हें एकाएक धराशायी कर देती है। क्रियात्मक रूप से देखा गया है कि आंशिक कालसर्प योग की कुंडली वाले जातक जीवन में बहुत संघर्ष करते हैं और कई बार वहीं के वहीं रह जाते हैं। इस योग के अलावा कुंडली में अन्य योग भी अपना प्रभाव डालते हैं।

    अधिकांश लोगों की कुंडलियों में कम से कम आंशिक कालसर्प योग, मंगलीक योग की तरह अवश्य मिल जाता है। इसका कारण है कि 12 लग्न, 9 ग्रहों के हिसाब से भी लगभग 54 करोड़ कुंडलियों में यह योग मिलेगा। एक अनुमान के अनुसार 24 लोगों में से एक में अवश्य मंगलीक योग और 6 में से एक की कुंडली में कालसर्प योग भी अवश्य मिलेगा।

    अब उनको क्या कहें जो मंगल दोष को भी नहीं मानते जब कि दक्षिण भारतीय ज्योतिष में तो मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम ,अष्टम व 12वें भाव के अलावा दूसरे भाव के मंगल को भी कुछ दोष मानते हैं।

    समस्या यह है कि जब विद्वान या आलोचक उदाहरण देते हैं तो केवल गिने-चुने सफल लोकप्रिय लोगों का ही उदाहरण देते हैं, उन कुंडलियों की विवेचना नहीं करते जिनके जीवन में इस योग के कारण उथल-पुथल कई बार पूरी जिंदगी रहती है।

    ज्योतिष का आधार प्रत्यक्षता है। हर युग में हर विषय में समयानुसार , देश काल पात्र आदि के अनुसार अनुसंधान चलते रहते हैं और उसी के आधार पर नियम और उसके फलादेश बनाए जाते हैं।

    आवश्यकता है ज्योतिष शास्त्र के क्षेत्र में हुए नवीन वैज्ञानिक शोध को स्वीकार करने की न कि एक ही परिपाटी पर घिसटने की। फिर भी इन ग्रंथों में भी ऐसे योग की व्याख्या की गई है।

    जातक नभ संयोग- वराह मिहिर

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  89. रचना सारावली-कल्याण वर्मा

    कालसर्प योग-शांति रत्नम

    कालसर्प योग- नाड़ी ग्रन्थ

    कालसर्प योग- जैन ज्योतिष

    प्रकार

    1. अनंत काल सर्प

    राहु प्रथम भाव में : मानसिक अशांति,अस्थिरता , षड्यंत्र में फंसना कोर्ट के चक्कर, व्यवसाय में हानि, संघर्ष, दुखी वैवाहिक जीवन, अपनों से ही परेशानी, एक के बाद एक अनन्त मुसीबतें देता है।

    2. कुलिक काल सर्प

    राहु दूसरे भाव में : सेहत खराब, धन की कमी, अधिक संघर्ष , अपयश, कटु वाणी, पारिवारिक कलह, विवाह विच्छेद आदि।

    3. वासुकी कालसर्प योग

    राहु तीसरे भाव में : भाई-बहन को कष्ट, मित्रों से धोखा, नौकरी में कठिनाई, भाग्य में विघ्न ,विदेश में कठिनाई ,कानूनी नुक्सान।

    4. शंंखपाल कालसर्प योग

    राहु चौथेे भाव में : वाहन से नुक्सान, माता से नुक्सान, नौकरी में कठिनाई, व्यवसाय में उतार-चढ़ाव, राजा से रंक, पढ़ाई में कमी परीक्षा में कठिनाई।

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  90. 5. पद्म कालसर्प योग

    राहु पांचवें भाव में : बुढ़ापे में संतान अलग, गुप्त शत्रुओं से हानि, कारावास, गुप्त रोग, रोगों की पहचान सही नहीं ,पत्नी का चरित्र संदेहास्पद, मित्रों सेे विश्वासघात, शेयर- लाटरी से हानि।

    6. महा पद्म कालसर्प योग

    राहु छठेेे भाव में : प्रेम में असफलता, प्रिय पात्र या पत्नी से विरह,चरित्र से शुद्ध नहीं, निराशा की भावना, शत्रु हावी।

    7. तक्षक कालसर्प योग

    राहु सातवें भाव में : वैवाहिक जीवन में हानि ,पार्टनरशिप में धोखा, उधार वापिस नहीं, पैसा डूबना, शत्रु अधिक, गुप्त रोगों से पीड़ित।

    8. कर्कोटक कालसर्प योग

    राहु आठवें भाव में : भाग्योदय में परेशानी, प्रमोशन में रुकावट, पैतृक संपत्ति में कमी, व्यापार में हानि, सर्जरी, अचानक चोट, मित्रों से धोखा।

    9. शंखनाद कालसर्प योग

    राहु नवें भाव में : भाग्यहानि, शासन से परेशानी, पिता सुख कम, व्यापार में हानि, अधिकारियों से मनमुटाव, घोर परिश्रम के बावजूद फल नहीं ।

    10. घातक कालसर्प योग

    राहु दसवें भाव में : नौकरी में कठिनता, शासन से परेशानी ,स्थान परिवर्तन ,निरंतर ङ्क्षचता ,अधिकारियों से मनमुटाव, गृहस्थ खराब।

    11. विषाक्त कालसर्प योग

    राहु ग्यारहवें भाव में : जन्म स्थान से दूर ,बड़े भाई से विवाद, नेत्र पीड़ा, हृदय रोग, अंतिम जीवन रहस्यमय, घोर परिश्रम।

    12. शेषनाग कालसर्प योग

    राहु बारहवेंं भाव में : गुप्त शत्रु, झगड़े में हार, बदनामी ,मृत्यु के बाद नाम, नेत्र रोग, शल्य चिकित्सा आदि।

    कालसर्प वाले प्रसिद्ध लोग

    नेहरू, तिलक, अकबर, मोरारीबापू, बेनजीर भुट्टो, नेल्सन मंडेला,मार्टिन लूथर किंग,भारत, अटल बिहारी वाजपेयी,कलाम, नजमा हेपतुल्ला, राजकपूर,अमृता सिंह, व्ही. शांताराम, स्मिता पाटिल, लता मंगेशकर, सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली, अडवानी, अंबानी, अमृता प्रीतम, चाणक्य, मोरारजी देसाई, चंद्रशेखर, ओशो, अजीत सिंह, नारायण दत्त तिवारी, चिदम्बरम, राम जेठमलानी, राम बिलास पासवान।

    कालसर्प योग के प्रभाव

    सपनों में सांप दिखना या सांपों से वास्ता पडऩा, सांप का काटना , संघर्ष, मानसिक कष्ट,भाई से या जीवन में बड़ा धोखा, पैतृक संपत्ति का नाश, शिक्षा का पूर्ण उपयोग नहीं,व्यवसाय में समस्या, संतान प्राप्ति में विलम्ब, एक के बाद एक समस्याएं, संतान का विवाह लेट,पत्नी अनुकूल नहीं, पहला प्रेम असफल,परिश्रम का फल नहीं, कोर्ट-कचहरी,थाने के बिना मतलब चक्क्र, मुकद्दमेबाजी, नौकरी बार-बार बदलना, आर्थिक हालात में बार बार उतार-चढ़ाव, मन अशांत, अनावश्यक दुश्मनी,दांपत्य जीवन व बच्चों से कम सुख, अस्वस्थ शरीर, नशे का आदी, संचित धन संपदा एकाएक समाप्त हो जाना, हीरो से जीरो, अर्श से फर्श पर, राजा से रंक, पिता की संपत्ति हाथ से निकल जाना, असाध्य रोग।

    आंशिक काल सर्पयोग के कारण जीवन में संघर्ष अधिक रहेगा। मेहनत अधिक परंतु लाभ या फल कम मिलेगा। कोई भी काम एक बार में नहीं बनेगा, अड़चनों के बाद होगा पर हो जाएगा। हर कार्य , विवाह, रिश्ता होकर ऐन वक्त पर टूटना , शिक्षा में एक साल का गैप , योग्य होते हुए भी नंबर कम आना, कंपीटीशन, व्यापार ,नौकरी , प्रेम प्रसंग आदि में विलंब या असफल,बार-बार व्यवसाय परिवर्तन, स्थान परिवर्तन, टैंशन, घर से भागने, परिवार से दूर, वैवाहिक जीवन में परेशानी, संतान प्राप्ति में विलम्ब हर तरफ से परेशानी, समस्याओं से घिरे होने की संभावना रहेगी। जीवन में यश कम रहेगा। जिसकी मदद करेंगे वह काम नहीं आएगा या उससे संबंध बिगड़ जाएंगे। जीवन में 27 -30 वर्षों तक सब कुछ धीमी गति से चलने की संभावना है। कई कार्य अंतिम समय पर काम बिगडऩे, सामने आई चीज हाथ से निकल जाने, पैसा फंसने की संभावना बनी रहेगी।

    सब कुछ होते हुए भी मन की आंतरिक खुशी गायब रह सकती है। काम आप करेंगे, क्रैडिट कोई और ले जाएगा। जूनियर आपसे आगे बढ़ जाएंगे। आप सीढ़ी का पायदान बनकर रह जाएंगे, लोग आपका सहारा लेकर ऊपर चढ़ जाएंगे । आप वहीं के वहीं रह जाएंगे पारिवारिक अशांति, अनचाहे मुकद्दमे या पुलिस केस, सरकारी कार्यालयों में परेशानी, आकस्मिक दुर्घटना ,चोरी, गंभीर बीमारी ,चौपाए पशु से समस्या मत्यु तुल्य कष्ट, पार्टनरशिप अपनों से धोखा, विदेश गमन गणग्रस्त , बेकसूर होने पर भी समस्या होने की आशंका रहेगी। जीवन के किसी एक भाग में कमी रहेगी। माता या पिता में से किसी एक का साथ कम रहेगाा। सपनों में या जीवित सापों से सामना होगा। अजीब सपने होंगे। उखड़ी नींद होगी। काल सर्प योग को नकारने वाले उपरोक्त उल्लेखित ग्रंथों का अध्ययन अवश्य करें। हां इसका नामकरण अलग-अलग समय पर अलग-अलग हो सकता है परंतु परिणाम यही होते हैं जिनकी चर्चा उपरोक्त बिंदुओं पर की गई है।

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  91. सोमवार का दिन भगवान शिव की साधना और भक्ति के लिए उत्तम माना गया है। भगवान रुद्र साक्षात महाकाल हैं। सारे देव, दानव, मानव, किन्नर शिव की आराधना करते हैं।मान्यता है कि साध्य योग में भगवान शिव की पूजा करने से कठिन कार्य भी आसानी से बन जाता है।

    निम्नलिखित मंत्र की कम से कम 11 माला जाप सोमवार के दिन करें। शिवजी के सामने घी का दीपक अर्पित करें।जब भी यह मंत्र करें एकाग्रचित्त होकर करें।सच्चे मन से जाप करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी।

    मंत्र: वागर्थाविव सम्‍पृक्‍तौ, वागर्थ प्रतिपत्तये, जगत: पितरौ वन्‍दे, पार्वती परमेश्‍वरौ

    संपूर्ण संसार के माता-पिता भगवान शिव और मां पार्वती हमारे घर-परिवार पर अपना कृपा भरा आशीर्वाद बनाए रखें।परिवार के जो सगे-संबंधी हैं उनमें एकता और अपनापन स्थापित हो, हम से किसी कारण वश दूर हो गए संबंधियों को पुन: हमारे करीब ले आएं।

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  92. धर्म शास्त्रों में दुखों को मिटाने और लक्ष्मी को पाने के लिए पांच ऐसे प्राणीयों का वर्णन किया गया है जिन्हें भोजन खिलाने से घर में लक्ष्मी का वास तो होता ही है साथ ही धार्मिक कर्म भी हो जाते हैं। दुख और सुख तो कर्मों के अनुरूप ही प्राप्त होते हैं। पुण्य कर्म करने से दुखों का क्षय होता है।

    घर में जब भी रोटी बनाएं तो पहली रोटी गाय को खिलाएं। गोमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं को पहुंच जाएगा। हिंदू धर्म के सभी देवी-देवताओं और अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना हो तो गो भक्ति और गो सेवा से बढ़कर कोई अन्य विकल्प नहीं है।

    सुबह के समय पक्षियों को सतनाजा, बाजरा और रोटी डालने से घर की आर्थिक हालत में सुधार होता है। अपना खुद का कारोबार करने वाले जातको को प्रतिदिन पक्षियों को दाना देना चाहिए। ऐसा करने से कारोबार में दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की होती है।

    दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन कुत्ते को रोटी खिलाएं। जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे शनि अति प्रसन्न होते हैं। शनि देव की कृपा के उपरांत जातक को परेशानियों से सदा के लिए निजात मिल जाती है। कुत्ते को तेल से चुपड़ी रोटी खिलाने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। राहु-केतु के योग कालसर्प योग से पीड़‍ित व्यक्तियों को यह उपाय लाभ पहुंचाता है।

    कर्ज तले जी रहे इंसान का जीवन रोग और शोक को खुला निमंत्रण देता है। ऐसे में यदि प्रतिदिन चींटियों को शक्कर और आटा डालें तो जल्द ही कर्ज से मुक्ति पाई जा सकती है। धन से संबंधित सभी अवरोध समाप्त हो जाते हैं और लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।

    पैतृक संपत्ति में से आपको कुछ न मिल पा रहा हो अथवा कोई मूल्यवान वस्तु गुम हो गई हो तो नियम से हर रोज मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं। शीघ्र ही आपको शुभ समाचार मिलेगा।

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  93. श्री राम भक्त हनुमान जी प्रत्येक युग में असंभव काम को भी संभव करते आएं हैं। हनुमान जी भक्ति और शक्ति का कलात्मक संगम हैं। शक्ति और भक्ति का प्रभाव अनेक आयामों में प्रकाशित होकर व्यक्ति और समाज को प्रभावित और उत्प्रेरित करता है। श्री हनुमान जी को खुश करने का सबसे सरल उपाय है हनुमान चालीसा का नित्य पाठ। इसके पाठ से चमत्कारिक फल प्राप्त होता है। इस पाठ को करने के लिए कोई विशेष समय सीमा निर्धारित नहीं है। कभी भी किसी भी समय शुद्ध मन से हनुमान चालीसा का पाठ किया जा सकता है।

    यदि आप पूरी हनुमान चालीसा का पाठ नहीं कर सकते तो केवल एक लाइन के जाप से ही चमत्कारी फल प्राप्त कर सकते हैं। हनुमान चालीसा में तुलसीदास जी ने कुल चालीस दोहे लिखे हैं और प्रत्येक दोहे की हर एक लाइन का अलग अलग चमत्कारी प्रभाव है। अत्यधिक जिस लाईन का प्रभाव है वह है:

    भूतपिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे।

    अर्थात जो व्यक्ति हनुमान जी की इस लाइन का नाम जाप करता है दानव और प्रेतात्मा उसके करीब नहीं आती। वह सभी बुरी बलाओं से बचा रहता है। इस एक लाइन का जाप समस्त तरह के डर भय को दूर कर देता है और जीवन में सहन-शक्ति का संचार करता है।

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  94. भगवती और शिवजी के अवतार भैरव में बड़ा ही अद्भुत संबंध है। मातेश्वरी का कहना है कि उनकी कोई भी पूजा-आराधना तब तक अधूरी रहेगी, जब तक मातेश्वरी के पश्चात भैरव देव का दर्शन और पूजन भी न कर लिया जाए।

    मंदिर में जाकर पूजा करते समय पहले तो मां भगवती की और फिर भैरवदेव की पूजा की जाती है, परन्तु उपासना और तंत्र साधना करते समय पहले किया जाता है, भैरव का ध्यान और आह्वान।

    भैरव के ध्यान के पश्चात प्रारंभ की जाती है, मां दुर्गा की उपासना। सर्वप्रथम दुर्गा की मूर्ति स्थापित कीजिए। मातेश्वरी के रूप का ध्यान करते हुए उन्हें अपने निकट अनुभव करते हुए नीचे दिए गए मंत्र का जाप करें।

    मां दुर्गा के मंत्र 'ॐ श्री दुर्गाय नमः' का जाप करने से जीवन में आ रही सभी परेशानियों का अंत होता है।

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  95. जिस व्यक्ति की जन्मपत्री में चन्द्रमा आठवें घर में बैठा हो उसे जल क्षेत्र से भय रहता है। इन्हें नदी, तालाब, सरोवर एवं समुद्र के आस-पास किसी भी तरह की असावधानी से बचना चाहिए।

    लाल किताब के अनुसार ऐसे व्यक्तियों को माता के हाथों से चावल या चांदी का एक टुकड़ा लेकर संभालकर रखना चाहिए। इससे धन की परेशानी नहीं रहती है। मानसिक शांति एवं स्थिरता के लिए सोने की अंगूठी में मोती धारण करना चाहिए।

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  96. श्मशान का नाम सुनते ही मन में एक भय उभरने लगता है। लेकिन लाल किताब में एक ऐसा उपाय है जो श्मशान भूमि में जाकर करना होता है। हलांकि यह उपाय ऐसा है जिसके लिए आपको किसी तंत्र मंत्र की जरूरत नहीं है। बस करना यह है कि आप एक छोटा सा मिट्टी का बर्तन लेकर श्मशान जाइये।

    इस बर्तन में श्मशान में स्थित जल के स्रोत जैसे नल, हैंडपंप आदि से पानी भरकर अपने घर ले आएं। इसमें चांदी का एक चौरस टुकड़ा रखकर घर के पूर्व दिशा में इस प्रकार स्थापित कर दें ताकि कोई इसके साथ छेड़-छाड़ नहीं करे।

    इस उपाय से आर्थिक मामलों में आने वाली बाधाएं एवं कार्य में बार-बार आने वाली रुकावटें दूर होती हैं। चन्द्रमा के अष्टम भाव में होने पर यह उपाय बहुत ही लाभकारी होता है।

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  97. गुरूवार के दिन का स्वामी देव गुरू बृहस्पति को माना गया है। गुरू धर्म और धन के स्वामी ग्रह हैं। धन संबंधी परेशानी दूर करने के लिए हर गुरूवार के दिन किसी सुहागन स्त्री को सुहाग सामग्री दान करें।

    सुहाग समाग्री में आप अपनी इच्छा और सामर्थ्य के अनुसार कुछ भी दे सकते हैं।

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  98. बजरंग बाण का जप और पाठ मंगलवार या शनिवार के दिन शुरु करें। इस दिन यथाशक्ति हनुमान कृपा और शनिदेव की प्रसन्नता के लिए व्रत भी रख सकते हैं। बजरंग बाण के नित्य पाठ से व्यक्ति के तन, मन और धन से जुड़े सभी कलह और संताप दूर होते हैं और भौतिक सुख प्राप्त होते हैं। आपके मन की कामना स्वयं जानेंगे हनुमान बस मन लगाकर कर लें उनका पाठ

    बजरंग बाण

    दोहा :

    निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।

    तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥

    चौपाई :

    जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥

    जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥

    जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥

    आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥

    जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥

    बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥

    अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥

    लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥

    अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥

    जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥

    जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥

    ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥

    ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥

    जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥

    बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥

    भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥

    इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥

    सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥

    जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥

    पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥

    बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥

    जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥

    जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥

    चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥

    उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥

    ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥

    ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥

    अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥

    यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥

    पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥

    यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥

    धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥

    दोहा :

    उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।

    बाधा सब हर, करैं सब काम सफल हनुमान॥

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  99. हनुमान साधना - बजरंग बाण।

    श्री हनुमान जी की उपासना में शुद्धता अति आवश्यक है। विधि-विधान और नियमपूर्वक अगर श्री हनुमान जी की साधना की जाए तो तत्काल फल मिलता है। समस्त विघ्न बाधाओं के निवारण हेतु, शत्रुओं के विनाश के लिए, रोगों से मुक्ति के लिए, भूत-प्रेत बाधा निवारण के लिए, धन-वैभव एवं परिवार में सुख-शांति के लिए श्री हनुमान जी की साधना अवश्य करनी चाहिए।

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  100. एक बार एक बाप अपने बेटे से मिलने शहर जाता है l
    वहां उसके बेटे के साथ एक खूबसूरत लड़की भी रहती है l
    तीनों डिनर की टेबल पर बैठ जाते हैं l
    पापा :- बेटा तुम्हारे साथ ये लड़की कौन है ?
    लड़का :- पापा, ये लड़की मेरी रूम पार्टनर है, और मेरे
    साथ ही रहती है l
    लड़का :- मुझे पता है कि आप क्या सोच रहे होंगे………
    लेकिन हम दोनों के बीच कोई ऐसा रिलेशनशिप नही है l
    हम दोनों के कमरें अलग हैं, और हम लोग अलग-अलग ही सोतें
    हैं l केवल हम लोग बहुत अच्छे दोस्त हैं l
    पापा :- अच्छा बेटा …!!
    दूसरे दिन उसके पापा वापस चले जाते हैं l
    एक सप्ताह बाद
    लड़की :- सुनो, पिछले संडे तुम्हारे पापा ने जिस प्लेट मे
    डिनर किया था, वो प्लेट गायब है l मुझे तो शक है
    कि प्लेट तुम्हारे पापा ने ही चोरी की की होगी……!!
    लड़का :- शटअप…!!
    ये तुम क्या कह रही हो ?
    लड़की :- तुम एक बार अपने पापा से पूछ तो लो, पूछने मे
    क्या हर्ज है l
    लड़का :- ओ के……!!
    लड़का अपने पापा को ई-मेल लिखकर भेजता है l
    डियर पापा,
    मै ये नहीं कह रहा हूं, कि आपने प्लेट चोरी की……
    मै ये भी नहीं कह रहा हूं कि आपने प्लेट चोरी नही की……
    अगर आप गलती से प्लेट ले गये हों तो प्लीज आप उसे वापस
    कर देना, क्योंकि वो उस लड़की की लकी प्लेट हैl
    -: आपका बेटा :-
    उसके पापा उसे एक घंटे बाद जवाब भेजते हैं l
    डियर बेटा,
    मै ये नहीं कह रहा हूं कि तेरी रूम पार्टनर तेरे साथ
    सोती है……
    मै ये भी नहीं कह रहा हूं कि वो तेरे साथ
    नहीं सोती है……
    अगर इस पूरे हफ्ते मे वो लड़की एक बार भी अपने कमरे मे
    अपने बेड पर सो जाती तो उसके तकिये के नीचे
    ही प्लेटमिल जाती, जो मैने छुपाई थी l
    -: तेरा बाप :-
    बाप आखिर बाप होता है l

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  101. एक ग्राहक पान की दूकान पर पहुँचा और पानवाले से बोला....
    "भाई, ये पाँच रुपये लो और बढ़िया सा पान लगा दो।

    हाँ इलायची भी डाल देना और हाँ थोड़ा पिपरमेंट।"

    पानवाला : "जी.."
    ग्राहक : "मसाला कानपुरवाला डालना..."

    पानवाला : "जी... जी..."
    ग्राहक : "थोड़ा गुलकंद भी..."

    पानवाला : "बहुत अच्छा..."
    ग्राहक : "काला दाना तो होगा तुम्हारे पास?"

    पानवाला : "जी"

    ग्राहक : "तो फिर वह भी डालना और लौंग
    हो तो वो भी डाल देना" पान वाला इतनी फरमाइशें सुनकर बोला...

    साहब इसमें एक चीज़ तो रह ही गई।

    ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा.."वह क्या....?

    "आपका पाँच रुपये, कहिए तो वह भी डाल दूँ...।"

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  102. स्कंद पुराण के अनुसार : चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।

    व्रत की परम्परा

    प्रात: काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर, कलश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्त या चित्र रखें। कलश को जल से भर कर रोली, मौली, अक्षत, पान-सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें। रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ भी कल्याणकारी है।

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  103. भगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।
    तिल चढ़ाने से पापों का नाश हो जाता है।
    जौ अर्पित करने से सुख में वृद्धि होती है।
    गेहूं चढ़ाने से संतान वृद्धि होती है।
    यह सभी अन्न भगवान को अर्पण करने के बाद गरीबों में वितरीत कर देना चाहिए।
    शिवपुराण के अनुसार जानिए भगवान शिव को कौन सा रस (द्रव्य) चढ़ाने से उसका क्या फल मिलता है-
    ज्वर (बुखार) होने पर भगवान शिव को जलधारा चढ़ाने से शीघ्र लाभ मिलता है। सुख व संतान की वृद्धि के लिए भी जलधारा द्वारा शिव की पूजा उत्तम बताई गई है।
    नपुंसक व्यक्ति अगर घी से भगवान शिव का अभिषेक करे, ब्राह्मणों को भोजन कराए तथा सोमवार का व्रत करे तो उसकी समस्या का निदान संभव है।
    तेज दिमाग के लिए शक्कर मिश्रित दूध भगवान शिव को चढ़ाएं।
    सुगंधित तेल से भगवान शिव का अभिषेक करने पर समृद्धि में वृद्धि होती है।
    शिवलिंग पर ईख (गन्ना) का रस चढ़ाया जाए तो सभी आनंदों की प्राप्ति होती है।
    शिव को गंगाजल चढ़ाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है।
    मधु (शहद) से भगवान शिव का अभिषेक करने से राजयक्ष्मा (टीबी) रोग में आराम मिलता है।
    लाल व सफेद आंकड़े के फूल से भगवान शिव का पूजन करने पर भोग व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
    चमेली के फूल से पूजन करने पर वाहन सुख मिलता है।
    अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने से मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है।
    शमी पत्रों (पत्तों) से पूजन करने पर मोक्ष प्राप्त होता है।
    बेला के फूल से पूजन करने पर सुंदर व सुशील पत्नी मिलती है।
    जूही के फूल से शिव का पूजन करें तो घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती।
    कनेर के फूलों से शिव पूजन करने से नए वस्त्र मिलते हैं।
    हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सुख-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
    धतूरे के फूल से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
    लाल डंठलवाला धतूरा पूजन में शुभ माना गया है।
    दूर्वा से पूजन करने पर आयु बढ़ती है।

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  104. बीमारी ठीक करने के लिए उपाय
    महाशिवरात्रि के दिन पानी में दूध व काले तिल डालकर शिवलिंग का अभिषेक करें। अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करें। अभिषेक करते समय ऊं जूं स: मंत्र का जाप करते रहें।

    इसके बाद भगवान शिव से रोग निवारण के लिए प्रार्थना करें और प्रत्येक सोमवार को रात में सवा नौ बजे के बाद गाय के सवा पाव कच्चे दूध से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लें। इस उपाय से बीमारी ठीक होने में लाभ मिलता है।


    कालसर्प दोष का उपाय
    महाशिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद किसी शिव मंदिर में जाकर या घर पर ही अकेले में भगवान शिव की प्रतिमा के सामने महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें। प्रत्येक मंत्र जाप के साथ एक बिल्वपत्र भगवान शिव पर चढ़ाते रहें।
    मंत्र
    ऊँ हौं ऊं जूं स: भूर्भुव: स्व: त्र्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवद्र्धनम्।
    उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुव: स्वरों जूं स: हौं ऊं।।

    इसके बाद प्रत्येक दिन इस मंत्र का जाप 108 बार करें। यदि यह संभव न हो तो जितना जाप आप कर सकें, उतना ही करें। इस उपाय से कालसर्प दोष का असर कम होने लगेगा तथा हर कार्य में सफलता मिलने लगेगी।

    कालसर्प दोष निवारण के अन्य उपाय
    - महाशिवरात्रि के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद चांदी से निर्मित नाग-नागिन की पूजा करें और सफेद फूल के साथ इसे बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। कालसर्प दोष से राहत पाने का ये अचूक उपाय है।
    - महाशिवरात्रि पर सुबह स्नान आदि करने के बाद किसी शिव मंदिर में जाकर लघु रुद्र का पाठ स्वयं करें या किसी योग्य पंडित से करवाएं। ये पाठ विधि-विधान पूर्वक होना चाहिए।
    - सफेद फूल, बताशे, कच्चा दूध, सफेद कपड़ा, चावल व सफेद मिठाई बहते हुए जल में प्रवाहित करें और कालसर्प दोष की शांति के लिए शेषनाग से प्रार्थना करें।
    - महाशिवरात्रि के दिन गरीबों को अपनी शक्ति के अनुसार दान करें व नवनाग स्तोत्र का पाठ करें। शाम के समय पीपल के वृक्ष की पूजा करें तथा पीपल के नीचे दीपक जलाएं।
    - कालसर्प यंत्र की स्थापना करें। प्रतिदिन विधि-विधान पूर्वक इसका पूजन करने से भी कालसर्प दोष से राहत मिलती है।

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  105. महाशिवरात्रि पर आप राशि के अनुसार ये उपाय कर सकते हैं-

    वृष- दही से भगवान शिव का अभिषेक शुभ फल देता है। इससे धन संबंधी समस्या का निदान होता है। साथ ही भगवान शिव की स्तुति करें व बिल्व पत्र भी चढ़ाएं तो और जल्दी फल प्राप्त होगा।

    मिथुन- इस राशि के लोग गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करें तो जल्दी ही उसकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगी। भगवान शिव को धतूरा भी चढ़ाएं।

    कर्क- इस राशि वाले शक्कर मिला हुआ दूध भगवान शिव को चढ़ाएं। साथ ही आंकड़े के फूल भी अर्पित करें।

    सिंह- सिंह राशि के लोग लाल चंदन के जल से शिव जी का अभिषेक करें तथा शिव अमृतवाणी सुनें। इससे इनकी हर मनोकामना पूरी होगी।

    कन्या- विजया (भांग) मिश्रित जल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इससे यदि इन्हें कोई रोग होगा तो वह समाप्त हो जाएगा।

    तुला- इस राशि के लोग भगवान शिव का गाय के घी में इत्र मिलाकर अभिषेक करें। साथ ही केसर मिश्रित मिठाई का भोग भी लगाएं। इससे इनके जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।

    वृश्चिक- शहद मिश्रित जल से भगवान शिव का अभिषेक वृश्चिक राशि के लोगों के लिए शीघ्र फल देने वाला माना जाता है। शहद न हो तो शक्कर का उपयोग भी कर सकते हैं।

    धनु- इस राशि के लोगों को दूध में केसर मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। साथ ही शिव पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए।
    मकर- आप अपनी राशि के अनुसार तिल्ली के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करें तो आपको हर काम में सफलता मिलेगी। भगवान शिव को बिल्व पत्र भी चढ़ाएं।

    कुंभ- इस राशि के व्यक्तियों को नारियल के पानी या सरसों के तेल से भगवान शिव का अभिषेक करना चाहिए। इससे इन्हें धन लाभ होगा।

    मीन- इस राशि के लोग पानी में केसर मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। धन संबंधी सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

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  106. मेष- इस राशि के लोग जल में गुड़ मिलाकर भगवान शिव का अभिषेक करें। यदि ये न कर पाएं तो जल में कुंकुम मिलाकर भी भगवान शिव का अभिषेक कर सकते हैं। शिव पंचाक्षर मंत्र का जाप करें।

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  107. 1- अनन्त कालसर्प दोष

    - अनन्त कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि के दिन एकमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

    - यदि इस दोष के कारण स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है तो महाशिवरात्रि के दिन रांगे (एक धातु) से बना सिक्का पानी में प्रवाहित करें।

    2- कुलिक कालसर्प दोष

    - कुलिक नामक कालसर्प दोष होने पर दो रंग वाला कंबल अथवा गर्म वस्त्र दान करें।

    - चांदी की ठोस गोली बनवाकर उसकी पूजा करें और उसे अपने पास रखें।
    3- वासुकि कालसर्प दोष

    - वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।

    - महाशिवरात्रि पर लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

    4- शंखपाल कालसर्प दोष

    - शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए महाशिवरात्रि के दिन बादाम बहते पानी में प्रवाहित करें।

    - शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

    5- पद्म कालसर्प दोष

    - पद्म कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि के दिन से प्रारंभ करते हुए 40 दिनों तक रोज सरस्वती चालीसा का पाठ करें।

    - महाशिवरात्रि के दिन जरूरतमंदों को पीले वस्त्र का दान करें और तुलसी का पौधा लगाएं।

    6- महापद्म कालसर्प दोष

    - महापद्म कालसर्प दोष के निदान के लिए हनुमान मंदिर में जाकर सुंदरकांड का पाठ करें।

    - महाशिवरात्रि के दिन गरीब, असहायों को भोजन करवाकर दान-दक्षिणा दें।

    7- तक्षक कालसर्प दोष

    - तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल में बहाएं।

    - सफेद कपड़े और चावल का दान करें।

    8- कर्कोटक कालसर्प दोष
    - कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करें।

    - शीशे के आठ टुकड़े पानी में प्रवाहित करें।

    9- शंखचूड़ कालसर्प दोष

    - शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए महाशिवरात्रि के दिन रात को सोने से पहले सिरहाने के पास जौ रखें और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दें।

    - पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।

    10- घातक कालसर्प दोष

    - घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखें।

    - चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करें।

    11- विषधर कालसर्प

    - विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

    - भगवान शिव के मंदिर में जाकर दान-दक्षिणा दें।

    12- शेषनाग कालसर्प दोष

    - शेषनाग कालसर्प दोष होने पर महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में सौंफ बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह खा लें।

    - दूध-जलेबी का दान करें।

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  108. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा (होली- 5 मार्च, गुरुवार) के दिन किए गए उपाय बहुत ही जल्दी शुभ फल प्रदान करते हैं। आज हम आपको होली पर किए जाने वाले कुछ साधारण उपाय बता रहे हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं-

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  109. धन की कमी से बचने का उपाय
    होली की रात चंद्रमा के उदय होने के बाद अपने घर की छत पर या खुली जगह, जहां से चांद नजर आए, वहां खड़े हो जाएं। फिर चंद्रमा का स्मरण करते हुए चांदी की प्लेट में सूखे छुहारे तथा कुछ मखाने रखकर शुद्ध घी के दीपक के साथ धूप एवं अगरबत्ती अर्पित करें। अब दूध से चंद्रमा को अर्घ्य दें।
    अर्घ्य के बाद सफेद मिठाई तथा केसर मिश्रित साबूदाने की खीर अर्पित करें। चंद्रमा से समृद्धि प्रदान करने का निवेदन करें। बाद में प्रसाद और मखानों को बच्चों में बांट दें। फिर लगातार आने वाली प्रत्येक पूर्णिमा की रात चंद्रमा को दूध का अर्घ्य दें। कुछ ही दिनों में आप महसूस करेंगे कि आर्थिक संकट दूर होकर समृद्धि निरंतर बढ़ रही है।

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  110. ग्रहों की शांति के लिए उपाय
    होली की रात उत्तर दिशा में बाजोट (पटिए) पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर मूंग, चने की दाल, चावल, गेहूं, मसूर, काले उड़द एवं तिल की ढेरी बनाएं। अब उस पर नवग्रह यंत्र स्थापित करें। उस पर केसर का तिलक करें, घी का दीपक लगाएं एवं नीचे लिखे मंत्र का जाप करें। जाप स्फटिक की माला से करें। जाप पूरा होने पर यंत्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें, ग्रह अनुकूल होने लगेंगे।
    मंत्र- ब्रह्मा मुरारी स्त्रीपुरान्तकारी भानु शशि भूमि-सुतो बुधश्च।
    गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव: सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।।

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  111. व्यापार में सक्सेस पाने का उपाय
    एकाक्षी नारियल को लाल कपड़े में गेहूं के आसन पर स्थापित करें और सिंदूर का तिलक करें। अब मूंगे की माला से नीचे लिखे मंत्र का जाप करें। 21 माला जाप होने पर इस पोटली को दुकान में ऐसे स्थान पर टांग दें, जहां ग्राहकों की नजर इस पर पड़ती रहे। इससे व्यापार में सफलता मिलने के योग बन सकते हैं।
    मंत्र- ऊं श्रीं श्रीं श्रीं परम सिद्धि व्यापार वृद्धि नम:।

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  112. शीघ्र विवाह के लिए उपाय
    होली के दिन सुबह एक साबूत पान पर साबूत सुपारी एवं हल्दी की गांठ शिवलिंग पर चढ़ाएं तथा पीछे पलटे बगैर अपने घर आ जाएं। यही प्रयोग अगले दिन भी करें। जल्दी ही आपके विवाह के योग बन सकते हैं।

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  113. रोग नाश के लिए उपाय
    अगर आप किसी बीमारी से पीडि़त हैं, तो इसके लिए भी होली की रात को खास उपाय करने से आपकी बीमारी दूर हो सकती है। होली की रात आप नीचे लिखे मंत्र का जाप तुलसी की माला से करें।
    मंत्र- ऊं नमो भगवते रुद्राय मृतार्क मध्ये संस्थिताय मम शरीरं अमृतं कुरु कुरु स्वाहा

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  114. होलिका दहन से पूर्व जब गड्ढा खोदें, तो सबसे पहले उसमें थोड़ी चांदी, पीतल व लोहा दबा दें। यह तीनों धातु सिर्फ इतनी मात्रा में होनी चाहिए, जिससे आपकी मध्यमा उंगली के नाप का छल्ला बन सके। इसके बाद विधि-विधान से दाण्डा रोपे। जब आप होलिका पूजन को जाएं, तो पान के एक पत्ते पर कपूर, थोड़ी-सी हवन सामग्री, शुद्ध घी में डुबोया लौंग का जोड़ा तथा बताशे रखें।होली की रात आप ये उपाय भी कर सकते हैं
    धन लाभ का उपाय
    दूसरे पान के पत्ते से उस पत्ते को ढक दें और 7 बार होलिका की परिक्रमा करते हुए ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। परिक्रमा समाप्त होने पर सारी सामग्री होलिका में अर्पित कर दें तथा पूजन के बाद प्रणाम करके घर वापस आ जाएं। अगले दिन पान के पत्ते वाली सारी नई सामग्री ले जाकर पुन: यही क्रिया करें। जो धातुएं आपने दबाई हैं, उनको निकाल लाएं।
    फिर किसी सुनार से तीनों धातुओं को मिलाकर अपनी मध्यमा उंगली के माप का छल्ला बनवा लें। 15 दिन बाद आने वाले शुक्ल पक्ष के गुरुवार को छल्ला धारण कर लें। इस उपाय से धन लाभ के योग बन सकते हैं।

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  115. तनाव दूर करने का सबसे आसान तरीका
    यदि आप भावनात्मक रूप से हताश हैं और तनाव ने आपको पूरी तरह से घेर रखा है, तो म्यूजिक का आनंद लें और हमेशा खुश रहें। आइए जानते हैं तनाव दूर करने के अलावा क्या है म्यूजिक थेरेपी के फायदे....
    1. मांसपेशियों को रिलैक्स करे- दिनभर कम्प्यूटर के सामने बैठ कर काम करते रहने से हमारी पीठ, गर्दन और कंधे की मांसपेशियां अकड़ जाती हैं। इस कारण बॉडी की मसल्स में खिंचाव रहता है। इन मसल्स को रिलैक्स करने के लिए म्यूजिक सुनना चाहिए। म्यूजिक सुनने से सभी मांसपेशियां ढीली हो कर रिलैक्स हो जाती हैं।
    2. अनिद्रा दूर करे- म्यूजिक आपको नींद लाने में मददगार साबित हो सकता है। यदि आपको नींद नहीं आती है तो सोने से पहले थोड़ा मधुर संगीत सुनें। धीरे-धीरे अनिद्रा की समस्या दूर हो जाएगी।

    3. दिल के लिए फायदेमंद- यदि आपका काम तनाव से भरा हुआ है तो ऐसा मधुर संगीत सुने जिसमें बहुत सारी बीट्स हों। इससे आप तनाव रहित होगें और आपके दिल पर ज्यादा असर भी नहीं पड़ेगा।

    4. पाचन मजबूत बनाए- म्यूजिक मन को शांत करता है। साथ ही, एसिडिटी होने से रोकता है। जब आप शांत होते हैं, एसिड प्रोडक्शन अपने आप ही बैलेंस हो जाता है।

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  116. हनुमान चालीसा का पाठ करें
    होली के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद किसी हनुमान मंदिर में जाकर 21 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें। साथ ही हनुमान भक्तों को हनुमान चालीसा पुस्तक का वितरण भी करें। 21, 51 या श्रृद्धा के अनुसार इससे ज्यादा पुस्तक का वितरण भी कर सकते हैं। इससे हनुमानजी की कृपा आप पर बनी रहेगी।

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  117. हनुमानजी को चढ़ाएं पान
    करें बड़ के पेड़ का उपाय
    होली के दिन सुबह स्नान करने के बाद बड़ (बरगद) के पेड़ का एक पत्ता तोड़ें और इसे साफ स्वच्छ पानी से धो लें। अब इस पत्ते को कुछ देर हनुमानजी की प्रतिमा के सामने रखें और इसके बाद इस पर केसर से श्रीराम लिखें। अब इस पत्ते को अपने पर्स में रख लें। साल भर आपका पर्स पैसों से भरा रहेगा। अगली होली पर इस पत्ते को किसी नदी में प्रवाहित कर दें और इसी प्रकार से एक और पत्ता अभिमंत्रित कर अपने पर्स में रख लें।
    दीपक जलाएं
    होली के दिन शाम के समय समीप स्थित किसी हनुमान मंदिर में जाएं और हनुमानजी की प्रतिमा के सामने एक सरसों के तेल का व एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद वहीं बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमानजी की कृपा पाने का ये एक अचूक उपाय है।

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  118. अगर आप शनि दोष से पीडि़त हैं, तो होली के दिन एक काला कपड़ा लें और इसमें थोड़ी काली उड़द की दाल व कोयला डालकर एक पोटली बना लें। इसमें एक रुपए का सिक्का भी रखें। इसके बाद इस पोटली को अपने ऊपर से उसार कर किसी नदी में प्रवाहित कर दें और फिर किसी हनुमान मंदिर में जाकर राम नाम का जप करें। इससे शनि दोष का प्रभाव कम हो सकता है।

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  119. शनि दोष से बचाता है ये उपाय
    इस मंत्र का करें जाप
    यदि आप पर कोई संकट है, तो होली के दिन नीचे लिखे हनुमान मंत्र का विधि-विधान से जाप करें।
    मंत्र- ऊं नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा

    जाप विधि
    सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुलदेवता को नमन कर कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठें। पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जप करेंगे, तो विशेष फल मिलता है। जाप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।
    करें राम रक्षा स्त्रोत का पाठ
    होली के दिन किसी हनुमान मंदिर जाएं और राम रक्षा स्त्रोत का पाठ करें। इसके बाद हनुमानजी को गुड़ और चने का भोग लगाएं। जीवन में यदि कोई समस्या है, तो उसका निवारण करने के लिए प्रार्थना करें।

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  120. मेष व वृश्चिक राशि
    मेष तथा वृश्चिक राशि के स्वामी मंगलदेव हैं। मंगल का रंग लाल है और उनकी पूजा भी लाल सामग्री से ही होती है। अत: मेष व वृश्चिक राशि वाले लोगों को लाल रंग से होली खेलना अति लाभदायक होगा, इससे उनको मान-सम्मान मिलेगा तथा क्रोध पर नियंत्रण होगा। भूमि से लाभ मिलेगा, ऋणों से मुक्ति मिलेगी। विवाह में बाधा नहीं आएगी।
    वृषभ व तुला राशि
    वृषभ व तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं। नवग्रहों में शुक्र सबसे चमकीला ग्रह है। वृषभ व तुला राशि वाले लोग होली पर सफेद रंग के कपड़े पहन सकते हैं और होली खेलने में पीले एवं आसमानी रंग का प्रयोग करें। इससे वैभव की प्राप्ति होगी। विलासिता पूर्ण जीवन का आनंद उठा सकेंगे। मित्र, परिजन सभी आपको सम्मान देंगे।
    मिथुन व कन्या राशि
    इन दोनों राशियों के स्वामी बुध हैं। बुध बुद्धि एवं वाणी से संबंधित ग्रह है। ज्योतिष के अनुसार बुध हरे रंग का प्रतिनिधि ग्रह है। मिथुन व कन्या राशि वाले लोग होली पर सुबह गाय को हरा चारा खिलाएं। हरे रंग से होली का उत्सव मनाएं। इसके प्रभाव से वे व्यापार एवं नौकरी में सम्मानजनक उपलब्धि अर्जित करेंगे। मान-सम्मान की प्राप्ति होगी।
    कर्क राशि
    कर्क राशि के स्वामी चंद्रमा हैं। चंद्रमा मन एवं धन से संबंधित ग्रह है, जो पूर्ण सफेद है। कर्क राशि के लोगों को सफेद आक के फूलों से भगवान शिव का पूजन कर पीले, केसरिया एवं हरे रंग से होली खेलना चाहिए। जो उनके लिए धन तथा सुख में वृद्धि करने वाला होगा। हरा रंग शांति प्रदान करेगा। संतान का सुख मिलेगा तथा समाज में सम्मान भी मिलेगा।
    सिंह राशि
    सिंह राशि के स्वामी सूर्य हैं, जो सारे ग्रहों के भी स्वामी हैं। लाल, पीला, महरुन एवं नारंगी सूर्य से संबंधित रंग है। सिंह राशि वाले लोगों को होली के दिन सुबह सूर्य को लाल गुलाब मिश्रित जल से अर्घ्य देकर लाल रंग से होली खेलना चाहिए। इससे वे अत्यधिक ऊर्जा की प्राप्ति करेंगे। शरीर में शक्ति का संचार होगा। बुद्धि प्रखर होगी। उच्च पद पर आसीन होंगे।
    धनु व मीन राशि
    धनु एवं मीन राशि के स्वामी गुरु हैं। गुरु धर्म, शुद्ध आचरण, सात्विक प्रवृत्ति एवं अत्यधिक धन प्रदाता ग्रह है। धनु व मीन राशि के लोगों को होली के दिन सुबह भगवान शंकर का पीली हल्दी की गांठों से पूजन करना चाहिए तथा गरीबों को भोजन कराना चाहिए। होली हेतु इन्हें पीले रंग का उपयोग लाभकारी होगा, जो इन्हें धन, मान-सम्मान एवं सफलता दिलाएगा।
    मकर व कुंभ राशि
    मकर एवं कुंभ राशि के स्वामी शनिदेव हैं। शनि न्यायप्रिय एवं मंद गति का ग्रह है, जिनका रंग नीला है। शनि सात्विक एवं धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों को कभी कष्ट नहीं देते। मकर एवं कुंभ राशि के लोगों को होली में नीले, सफेद, काले, ब्राउन रंगों का उपयोग लाभदायक होगा।

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  121. होली (धुरेंडी) का पर्व 6 मार्च, शुक्रवार को है।

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  122. शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमा तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना चाहिए। पूर्णमासी के पहले आधे काल में भद्र काल चल रहा होता है तथा इस दौरान किसी भी प्रकार के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। भद्राकाल में होलिका दहन करने से गांव समाज को हानि उठानी पड़ती है। इसलिए भद्राकाल को छोड़कर होलिका दहन किया जाता है।

    पंचांग के अनुसार इस वर्ष पूर्णिमा तिथि का आरंभ रात 4 मार्च रात 8 बजकर 57 मिनट से शुरु है और पूर्णिमा का समापन 5 मार्च को रात्रि 11:35 में हो रहा है। इसलिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 5 मार्च को सायं 06:19 बजे से रात्रि 08:48 बजे तक रहेगा।

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  123. यदि कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर है तो उसे प्रतिदिन शिवलिंग पर घी अर्पित करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार जो व्यक्ति शिवलिंग पर घी अर्पित करता है उसे शारीरिक बल प्राप्त होता है। इस उपाय के साथ ही, खाने में घी का उपयोग करना फायदेमंद रहता है। शारीरिक बल प्राप्त करने के लिए संयमित दिनचर्या का पालन करें। खान-पान का भी विशेष ध्यान रखें।
    नियमित रूप से करें घी का सेवन
    आयुर्वेद के अनुसार घी स्वास्थ्य को बहुत अधिक लाभ पहुंचाता है। घी का नियमित सेवन करने पर वात और पित्त के रोग दूर होते हैं। यदि किसी व्यक्ति को पेट में जलन की शिकायत रहती है तो उसके लिए घी का उपयोग काफी फायदेमंद है। घी से शरीर मजबूत होता है, कमजोरी दूर होती है। आंखों की रोशनी के लिए भी घी का सेवन करना बेहद जरूरी है। घी खाते समय इसकी मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अधिक घी खाना नुकसानदायक भी हो सकता है। इस बात का खास ध्यान रखें।

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  124. पूजन, हवन आदि धार्मिक कर्मों में गाय के दूध से बने घी का विशेष महत्व है। हवन करते समय इस घी से आहुति देने पर या घी का दीपक जलाने पर जो धुआं निकलता है, वह वातावरण के लिए फायदेमंद होता है। इस धुएं से हवा में मौजूद सूक्ष्म और हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और पवित्रता बढ़ती है। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने की और यज्ञ आदि में इस घी का उपयोग करने की प्रथा चली आ रही है।
    गाय के दूध से बने घी को कहते हैं रसायन
    गाय के दूध से बने घी को रसायन भी कहते हैं। इस घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस होते हैं। इस वजह से ये घी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में भी लाभ पहुंचाता है। यह एक औषधि है और जो लोग इस घी का हर रोज सेवन करते हैं, वे लंबे समय तक बुढ़ापे में होने वाले रोगों से बचे रहते हैं। यदि हम पूरी तरह स्वस्थ हैं तो घी का सेवन कर सकते हैं, लेकिन किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो डॉक्टर से परामर्श के बाद ही घी का सेवन करें।

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  125. स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के लिए घी का उपाय
    यदि कोई व्यक्ति बहुत दिनों से बीमार है और बीमारी किसी भी उपचार से ठीक नहीं हो रही है तो उसके लिए घी का यह उपाय करें। जिस कमरे में रोगी आराम करता हो, उस कमरे में रोज शाम को घी का दीपक केशर डालकर जलाएं। साथ ही, रोगी की दवाइयां, चिकित्सकीय परामर्श आदि भी जारी रखें। दीपक जलने पर घी और केशर से मिश्रित धुआं निकलेगा, जो कि वातावरण की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करेगा और सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाएगा। जिससे रोगी के स्वास्थ्य को जल्दी लाभ मिल सकता है।
    वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए घी का उपाय
    आजकल अधिकांश लोगों के वैवाहिक जीवन में वाद-विवाद होते रहते हैं। कभी-कभी छोटे-छोटे विवाद भी बड़ा रूप ले लेते हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए घी का यह उपाय करें। रोज रात को सोने से पहले घर में हम जहां बर्तन धोते हैं, उस स्थान पर घी का एक दीपक लगाएं। दीपक जलाने से पहले स्थान को अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए।

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  126. 1. यदि हिचकी नहीं रूक रही है तो गाय के दूध से बना घी आधा चम्मच खाएं। इससे लाभ मिल सकता है।
    2. इस घी के नियमित सेवन से पेट और पाचन तंत्र से जुड़ी कई समस्याएं, जैसे- कब्ज, गैस, अपच आदि दूर हो सकती हैं।
    3. जिन लोगों को कमजोरी महसूस होती है, उन्हें नियमित रूप से एक गिलास दूध में एक चम्मच घी और मिश्री डालकर पीना चाहिए।
    4. यदि हाथ पर या पैरों के तलवों पर जलन हो रही हो तो घी की मालिश करें। इससे जलन में आराम मिल सकता है।
    5. गाय के दूध से बने घी का सेवन गंभीर बीमारी कैंसर को भी बढ़ने से रोक सकता है।
    6. घी का सेवन रोज करने से वात और पित्त से जुड़े रोगों में लाभ होता है।

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  127. . गर्मी के दिनों में पित्त संबंधी रोग होने की संभवानाएं बढ़ जाती हैं तो घी के सेवन से पित्त रोग शांत हो सकते हैं। शरीर में पर्याप्त शीतलता बनी रहती है।
    9. यदि दाल में थोड़ा सा घी डालकर खाएंगे तो पेट में गैस संबंधी समस्या नहीं होती है।
    10. घी के सेवन से त्वचा की चमक भी बनी रहती है।
    11. घी से चेहरे की मसाज भी कर सकते हैं। साथ ही, बालों की मालिश भी की जा सकती है। ऐसा करने पर त्वचा और बालों की कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। बाल कम उम्र में सफेद नहीं होंगे।
    12. यदि जलने से या किसी चोट से त्वचा पर निशान बन गए हैं तो उस जगह घी लगाने से ये निशान भी साफ हो सकते हैं।

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  128. सूर्य के लिए उपाय
    1. सूर्य को हर रोज जल अर्पित करें।
    2. ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करें।
    3. गायत्री मंत्र का जप करें। मंत्र- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। गायत्री मंत्र स्वयं सिद्ध माना गया है, इस कारण जो भी व्यक्ति इसका जप करता है, उसे जल्दी ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।
    चंद्र के लिए उपाय
    1. शिवजी की पूजा करें। शिवजी की पूजा से सभी प्रकार के दोषों की शांति हो जाती है।
    2. दूध का दान करें, क्योंकि दूध चंद्र से संबंधित वस्तु है।
    3. चंद्र का पूजन करें।
    मंगल के लिए उपाय
    1. मंगलवार को गरीब बच्चों को मिठाई खिलाएं। गरीब बच्चों की सेवा से मंगल देव प्रसन्न होते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं।
    2. लाल मसूर का दान करें। मसूर की दाल मंगल से संबंधित वस्तु है इस कारण इसका दान करने पर मंगल दोष शांत होते हैं।
    3. सुंदरकांड का पाठ करें। सुंदरकांड के पाठ से हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है और दुखों से मुक्ति मिलती है।
    बुध के लिए उपाय
    1. हर बुधवार गणेशजी की पूजा करें। बुध और गणेशजी की पूजा के बुधवार श्रेष्ठ माना गया है।
    2. गाय को हरी घास खिलाएं। गोमात की सेवा से सभी ग्रहों के दोष खत्म होते हैं।
    3. मूंग का दान करें। मूंग बुध से संबंधित वस्तु है, इसलिए इसका दान किया जाता है।

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  129. गुरु के लिए उपाय
    1. विष्णुजी की पूजा करें। भगवान श्रीहरि की प्रसन्नता से महालक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली के अशुभ फल भी खत्म हो सकते हैं।
    2. गाय को आटे में हल्दी डालकर खिलाएं। हल्दी गुरु से संबंधित वस्तु है और गौमाता को आटा-हल्दी खिलाने से गुरु के दोष शांत होते हैं।
    3. गुरुवार को चने की दाल का दान करें। चने की दाल भी गुरु से संबंधित है, इस कारण इसका दान किया जाता है।
    शुक्र के लिए उपाय
    1. शुक्रवार को चावल का दान करें। अन्न का दान, अक्षय पुण्य प्रदान करता है। चावल का पूजन आदि कर्मों में भी विशेष महत्व है। इसका दान सभी सुख-सुविधाएं प्रदान कर सकता है।
    2. शुक्रवार को महालक्ष्मी की पूजा करें। शुक्रवार देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन लक्ष्मी पूजा से शुक्र के दोषों से भी मुक्ति मिलती है।
    3. शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं।
    शनि के लिए उपाय
    1. पहने हुए काले तथा नीले कपड़ों का दान करें। काला और नीला, शनि के प्रिय रंग हैं। इन रंगों के कपड़े किसी जरुरतमंद व्यक्ति को देंगे तो शनि देव प्रसन्न होते हैं।
    2. शनिवार को पीपल के नीचे दीपक जलाएं। शनि के दोष दूर करने के लिए हर शनिवार ये उपाय किया जा सकता है।
    3. हनुमान चालीसा का पाठ करें। बजरंग बली के भक्तों को शनि के अशुभ फल प्राप्त नहीं होते हैं। इस कारण हनुमान चालीसा का पाठ करते रहना चाहिए।
    राहु-केतु के लिए उपाय
    1. काले कंबल का दान करें। राहु-केतु के दोष दूर करने के लिए ये उपाय श्रेष्ठ माना गया है। गरीब व्यक्ति को कंबल के दान से सभी ग्रहों की कृपा प्राप्त होती है।
    2. पीपल की पूजा करें और सात परिक्रमा करें। पीपल को पूजनीय और पवित्र वृक्ष माना गया है। इसकी पूजा से राहु-केतु का कालसर्प दोष भी दूर होता है।
    3. शिवजी का अभिषेक करें।

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  131. ज्योतिषशास्त्र में शनि को क्रूर ग्रह बताया गया है। लेकिन यह क्रूर ग्रह जब कुण्डली के पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में अपनी राशि मकर या कुंभ में होता है तब शश नामक शुभ योग बनाता है। इस योग को पंच महापुरूष योग के रूप में जाना जाता है। यह एक प्रकार का राजयोग है।

    शनि अपनी उच्च राशि तुला में बैठा हो तब भी यह शुभ योग व्यक्ति को कामयाब बना देता है। माना जाता है कि शश योग जिनकी कुण्डली में होता है वह व्यक्ति गरीब परिवार में भी जन्मा तब भी एक दिन धनवान जरूर बन जाता है।

    मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला वृश्चिक, मकर एवं कुंभ लग्न में जिनका जन्म होता है उनकी कुण्डली में इस योग के बनने की संभावना रहती है।

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  132. जिनकी कुण्डली में गुरू और चन्द्रमा एक साथ बैठे होते हैं तब उनकी कुण्डली में एक राजयोग बनता है जिसे गजकेशरी योग के नाम से जाना जाता है। जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है वह बुद्घिमान और दीर्घायु होता है।इस योग से प्रभावित व्यक्ति पढ़ने-लिखने में बहुत ही होशियार होते हैं। यह दयावान और विवेशील होते हैं। आमतौर पर इस योग वाले व्यक्ति उच्च पद पर कार्यरत होते हैं।

    यह योग उन स्थितियों में भी बनता है जब गुरू और चन्द्रमा एक दूसरे से चौथे, सातवें या दसवें घर में होता हैं। ज्योतिष के ग्रंथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्र में कहा गया है कि चन्द्रमा और गुरू के बीच संबंध नहीं भी हो और केवल गुरू चौथे, सातवें या दसवें घर में शुभ स्थिति में बैठा हो तब भी गजकेशरी योग बनता है।

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  133. शुभ ग्रहों में शुक्र भी एक है। यह वृष और तुला राशि का स्वामी है जबकि इसकी उच्च राशि मीन है। जिस व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शुक्र वृष, तुला या मीन राशि में होता है उनकी कुण्डली में मालव्य नामक योग बनता है। यह योग भी राजयोग की श्रेणी में आता है।

    जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है वह व्यक्ति बहुत ही सुंदर और सौभाग्यशाली होता है। प्रसिद्धि इनके साथ-साथ चलती है। ऐसा व्यक्ति जो भी काम करता है उसमें भाग्य पूरा साथ देता है।

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  134. मंगल को क्रूर ग्रह के रूप में जाना जाता है। मंगल जब मंगलिक योग बनाता है तब व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में तूफान ला देता है।

    लेकिन जब मंगल अपनी राशि मेष या वृश्चिक में केन्द्र स्थान यानी कुण्डली के पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में होता है तब एक शुभ योग बनाता है जिसे रूचक योग के नाम से जाना जाता है।

    यह राजयोग जिनकी कुण्डली में होता है वह बहुत ही साहसी होते हैं और कभी किसी दबाव में आकर कोई काम नहीं करते हैं। ऐसे व्यक्ति जहां भी होते हैं लोग इन्हें सम्मान देते हैं। यह राजा के समान शानो-शौकत से रहते हैं।

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  135. वास्तु के अनुसार अध्ययन कक्षा (स्टडी रूम) का अध्ययन की दृष्टि से पूर्व तथा उत्तर-पूर्व दिशा का कमरा सर्वोत्तम होता है। यदि बच्चा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पढऩे बैठेगा , तो परिणाम बेहतर होंगे। पूर्व दिशा की ओर ध्यान करना अच्छी सोच व ज्ञान का सोत माना जाता है। पढ़ते समय यदि बच्चा उत्तर की ओर मुंह करके बैठे, तो सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और पढ़ाई में ध्यान लगता है।
    वर्तमान समय प्रतियोगिता का युग है, प्रत्येक कार्य श्रेष्ठ ही नहीं वरना सर्वश्रेष्ठ चाहिए। ऐसी स्थिति में अभिभावक एवं आमजन के मन में प्रश्न उठता है कि मकान में किस स्थान पर बैठने पर

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  136. अध्ययन किया जावे तो सर्वश्रेष्ठ सफलता मिले। वास्तु में मकान में सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम, पवित्र कोण, ईशान कोण होता है। जहां पर भगवान का निवास रहता है। अत पढऩे वाले विद्यार्थी को ईशान कोण (उत्तर पूर्व का कोना) की ओर मुंह करके पढऩा चाहिए। अध्ययन कक्ष के पश्चिम-मध्य क्षेत्र में बनाना अति लाभप्रद है। इस दिशा में बुध, गुरु, चंद्र एवं शुक्रचार ग्रहों से उत्तम प्रभाव प्राप्त होता है। इस दिशा के कक्ष में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को बुध ग्रह से बुद्धि वृद्धि, गुरु ग्रह से महत्वाकांक्षा एवं जिज्ञासु? विचारों में वृद्धि, चंद्र ग्रह से नवीन विचारों की वृद्धि और शुक्र ग्रह से प्रतिभा एवं लेखन कला में निपुणता और धन वृद्धि होती है।
    अच्छे नंबर के लिए साधारण वास्तु उपाय-
    पढ़ाई की मेज पर प्लास्टिक का पिरामिड तथा ग्लोब रखना चाहिए। ग्लोब को रोज घुमाना चाहिए , इससे दुनिया के प्रति मित्रता का भाव पैदा होता है।
    बुध, गुरु, शुक्र एवं चंद्र चार ग्रहों के प्रभाव वाली पश्चिम-मध्य दिशा में अध्ययन कक्ष का निर्माण करने से अति लाभदायक सिद्ध होती है।
    टेबल पूर्व-उत्तर ईशान या पश्चिम में रहना चाहिए। दक्षिण आग्नेय व उत्तर-वायव्य में नहीं होना चाहिए।
    कक्ष में शौचालय कदापि नहीं बनाएं।
    खिड़की या रोशनदान पूर्व-उत्तर या पश्चिम में होना अति उत्तम माना गया है। दक्षिण में यथा संभव न ही रखें।
    प्रवेश द्वार पूर्व-उत्तर, मध्य या पश्चिम में रहना चाहिए।
    पुस्तकें रखने की अलमारी या रैक उत्तर दिशा की दीवार से लगी होना चाहिए।
    पानी रखने की जगह, मंदिर, एवं घड़ी उत्तर या पूर्व दिशा में उपयुक्त होती है।
    टेबिल गोलाकार या अंडाकार की जगह आयताकार हो।
    टेबल के टॉप का रंग सफेद दूधिया हो। टेबल पर अध्ययन करते समय आवश्यक पुस्तक ही रखें।
    कक्ष में बंद घड़ी, टूटे-फूटे बेकार पेन, धारदार चाकू, हथियार व औजार न रखें।
    कम्प्यूटर टेबिल पूर्व मध्य या उत्तर मध्य में रखें, ईशान में कदापि न रखे।
    अक्सर छात्रों की मेज के ऊपर रैक बनी होती है , जो बेहद हानिकारक होती है। इससे सिर पर बोझ महसूस होता है।
    विद्यार्थी का बेड दक्षिण-पश्चिम/उत्तर पश्चिम कोने में होना चाहिए। सोते समय छात्र का बेड दक्षिण पूर्व दिशा में हो।
    यह आवश्यक है कि छात्र का बेड बिल्कुल कमरे के दरवाजे के सामने न हो।
    इन बातों का भी रखें ख्याल-

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  137. यदि जलपान, नाश्ता किया हो तो झूठे पात्र, बर्तन, प्लेट आदि को तुरंत हटा देना चाहिए।
    पढ़ाई की मेज पर पानी से भरा गिलास जरूर रखना चाहिए। पानी वातावरण की सारी निषेधात्मक तरंगों को सोख लेता है।
    कक्ष में केवल ध्यान, अध्यात्म वाचन, चर्चा एवं अध्ययन ही करना चाहिए। गपशप, भोग-विलास की चर्चा एवं अश्लील हरकतें नहीं करना चाहिए।
    कक्ष में जूते-चप्पल, मोजे पहनकर प्रवेश नहीं करना चाहिए।
    अध्ययन कक्ष में वस्तुओं का ढेर नहीं लगाना चाहिए। जिन वस्तुओं का काम न हो, उन्हें फेंकना बेहतर है।
    पढ़ाई के लिए ब्रह्म मुहूर्त सबसे अच्छा-
    पढऩे का समय ब्रह्म मुहूर्त (प्रात काल), सूर्योदय से पूर्व अर्थात सुबह 4.30 बजे से प्रथम प्रहर सुबह 10 बजे तक उत्तम रहता है। अधिक देर रात पढऩा उचित नहीं है। अध्ययन कक्ष के मंदिर में सुबह-शाम चंदन की अगरबत्तियां लगाना न भूलें।
    कक्ष में हल्के रंगों का प्रयोग- अध्ययन कक्ष की दीवारों का रंग हल्का पीला, सफेद या किसी भी हल्के रंग का होना चाहिए। बिस्तर या पर्दे के रंग खिलते हुए होने चाहिए। संयोजन सफेद, बादामी, पिंक, आसमानी या हल्का फिरोजी रंग दीवारों पर या टेबल-फर्नीचर पर अच्छा है। काला, गहरा नीला रंग कक्ष में नहीं करना चाहिए। रंग-बिरंगे पेन-पेंसिल का प्रयोग बच्चे के मस्तिष्क को ऊर्जा प्रदान करता है।
    मां सरस्वती का छोटा का चित्र लगाएं- पढ़ाई में मन की एकाग्रता हेतु सरल, चमत्कारी टिप्स अपने अध्ययन कक्ष में मां सरस्वती का छोटा सा चित्र लगाएं व पढऩे के लिए बैठने से पूर्व उसके समक्ष कपूर का दीपक जलाएं अथवा तीन अगरबत्ती हाथ जोड़ कर जलाएं। प्रार्थना करें व पढ़ाई शुरू करें। नकारात्मक चित्रंकन वाली तस्वीर, फिल्मी तस्वीर, प्रेम प्रदर्शित तस्वीर नहीं लगाना चाहिए। कुछ अच्छे पोस्टर या महापुरुषों द्वारा कहे गए नीति वचन अध्ययन कक्ष के वातावरण को बेहतर बनाते हैं।
    मीठा दही भी जरूरी- परीक्षाओं से पांच दिन पूर्व से बच्चों को मीठा दही नियमित रूप से दें। उसमें समय परिवर्तन करें। यदि एक दिन सुबह 8 बजे दही दिया है तो अगले दिन 9 बजे, उसके अगले दिन 10 बजे, उसके अगले दिन 11 बजे दें। इस क्रिया को दोहराते रहें और प्रतिदिन एक घंटा बढ़ाते रहें। पढ़ते समय विद्यार्थी का मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना चाहिए।
    जाप व तुलसी भी गुणकारी-विद्यार्थी सुबह उठते ही ''ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नम:ÓÓ का 21 बार जाप करें। जो बच्चे पढ़ते समय शीघ्र सोने लगते हैं, अथवा मन भटकने के कारण अध्ययन नहीं कर पाते उनके अध्ययन कक्ष में हरे रंग के परदे लगाएं। जिन बच्चों की स्मरण शक्ति कमजोर हो, उन्हें तुलसी के 11 पत्तों का रस मिश्री के साथ नियमित रूप से दें।
    सरस्वती यंत्र की स्थापना और सरस्वती मंत्र का जप भी उत्तम अंक प्राप्त करने के लिए लाभप्रद है।
    ।। ऐं ह्रीं क्लीं सरस्वत्यै नम: ।।
    निम्न देवी के मंत्र का जप विद्या प्राप्ति के लिए अत्यंत उत्तम है। ।। या देवि सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    गायत्री मंत्र का जप रुद्राक्ष व स्फटिक मिश्रित माला पर करना श्रेयस्कर है।
    ।। ओम भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम । भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।।
    सदा याद रखें- ।। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।- गीता।।

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  138. गृह क्लेश को दूर करेगे ये उपाय,गृह क्लेश, मानसिक परेशानियां, ऋण, रोग इत्यादि परिवार में बने रहते हैं । जहां ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों के सामाजिक पारिवारिक एवं अन्य मनोवैज्ञानिक कारण हैं वहां ज्योतिष भी इसके बारे काफी हद तक मार्गदर्शन करता है । जन्मकुंडली मात्र जातक के निजी व्यक्तित्व अथवा उसके भविष्य बारे इंगित ही नहीं करती । जन्म कुंडली के बारह भाव अलग-अलग शारीरिक अंगों के बारे में जहां इंगित करते हैं, वे जातक के निजी सम्बन्धों-सम्बन्धियों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं । जन्म कुंडली में चौथा भाव सुख, माता, भूमि का दर्शाया गया है-जन्म कुंडली का लग्न आप स्वयं है । यदि कुंडली से चौथे भाव में कोई क्रूर ग्रह क्रमश: राहू-केतु-शनि मंगल (कर्क) का बैठा हो, अथवा चतुर्थ भाव का स्वामी ग्रह छठे भाव-एकादश भाव-द्वादश भाव में हो, सप्तम भाव के स्वामी ग्रह, द्वादश में हों, छठे भाव का स्वामी अष्टम में हो-अष्टम का स्वामी छठे भाव में हो ।

    दशम भाव के स्वामी ग्रह का लग्न के साथ मित्र भाव न हो तो पिता, पुत्र में वैमनस्य । छठे-आठवें भाव में शनि-शनि राहू हो तो पितृ, दोष -राहू और केतु क्रमश: भावों में सभी 7 ग्रह आ जाएं तो कालसर्प योग, सप्तम भाव में नीच राशि गत ग्रह हो और उस भाव का स्वामी भी 12वें भाव में नीच राशि हो तो पति-पत्नी में वैमनस्य कलह-क्लेश होता है। इन सभी तथ्यों की उपस्थितियों में ज्योतिष उपायों द्वारा मार्गदर्शन करके इनसे निजात- छुटकारा दिलवाता है।

    - यदि किसी भी जन्मकुंडली में पितृ-दोष हो तो उसका उपाय है, हर अमावस को ब्राह्मण को घर बुलाकर दोपहर मध्य 12 बजे के बाद आदर से भोजन कराएं, नित्य अपने पितरों के प्रति स्नान के बाद तीन तर्पण जल से करें, ‘ऊँ सर्व पितृ तर्पयामी’ कहते हुए जल छोड़ें ।

    - हर अमावस को एक कटोरी चावल उबालकर ठंडा करके एक गोल पिंड बना उसकी रोली-मौली चंदन-पुष्प से पूजन करें । उसके ऊपर कच्चा दूध, गंगा जल भी चढ़ाएं, उपरांत एक माला गायत्री मंत्र की करके कुछ देर के लिए कमरा बंद करके - वह पिंड पूजन सामग्री सहित गाय को खिला दें ।

    - नित्य सांयकाल (गाय गोबर के दीपक बना लें) अपने घर के द्वार के पास तुलसी के पौधे के पास गाय गोबर के दीपक में घी का दीपक जलाएं । ऐसा 40 दिन अवश्य करें । अति लाभकारी उपाय है ।

    - नित्य सांयकाल सारे घर में कच्चे दूध में 9 बूंद शहद मिला कर छींटा दें । बाद में गुग्गल, हरमल, लोबान, मोटी अजवायन,पीली सरसों के मिश्रित पाऊडर की धूनी दें ।

    - पति-पत्नी में वैमनस्य हो तो अपने शयन कक्ष में सायंकाल एक मुशकपूर की टिक्की पर 3 लौंग रख कर जलाएं । आधा घंटा कमरा बंद रखें, ऐसा नित्य प्रति 108 दिन करें ।

    - अपने माता-पिता के नित्य चरण स्पर्श कर शुभ आशीर्वाद लें । उनकी सेवा करें ।

    - अपने घर की चौखट या घर के आगे का स्थान प्रात: अवश्य धोएं ।

    - कालसर्प कुण्डली में हो तो 18 सूखे नारियल रविवार को18 अलग-अलग मंदिरों में एक-एक करके चढ़ाएं अथवा चांदी के सर्प-सर्पणी के ऐसे जोड़े बनाएं जिसकी आंखों में लहसुनिया नग लगा हो, पूंछ पर गोमेद लगा हो । इसका नदी किनारे काल सर्प पूजन-राहू-केतु पूजन-वास्तु पूजन किसी कर्मकांडी देवज्ञ ब्राह्मण से कराएं । 3 पूर्णिमा 2 अमावस कुल पांच पूजन कराएं ।

    - घर में सदैव गायत्री मंत्र की ध्वनि तरंगें, मंत्र चलता रहे ।

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  139. कस्तुरी तिलकम ललाटपटले,वक्षस्थले कौस्तुभम ।
    नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले,वेणु करे कंकणम ।

    सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम,कंठे च मुक्तावलि ।
    गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते,गोपाल चूडामणी ॥

    वसुदेव सुत देव, कंस चाणुर मदनम्॥
    देवकी परमानन्द, वन्दे कृष्णं जगदगुरुम्॥॥

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  140. कुंडली के दोषों को शांत करने के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं, जिनसे शुभ फल प्राप्त किए जा सकते हैं। यहां जानिए सप्ताह के सातों दिनों के लिए छोटे-छोटे उपाय...
    1. रविवार
    रविवार सूर्य का दिन माना जाता है और इस दिन सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। सूर्य से शुभ फल प्राप्त करने के लिए हर रविवार गुड़ और चावल को नदी में प्रवाहित करें।
    2. सोमवार
    सोमवार चंद्र का दिन है। चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए इस दिन भोजन में खीर भी शामिल करें। यदि कुंडली में चंद्र नीच का हो तो सफेद कपड़े पहनना चाहिए और श्वेत चंदन का तिलक लगाएं।
    3. मंगलवार
    मंगल की विशेष पूजा का दिन है मंगलवार। इस दिन मसूर की दाल का दान करें। जो लोग मंगली हैं, वे लाल वस्तुओं का दान विशेष रूप से करें। हर मंगलवार कुछ रेवड़ियां नदी में प्रवाहित करें। मीठा पराठा बनाकर गरीब बच्चों को खिलाएं। हनुमानजी की पूजा करें।
    4. बुधवार
    बुद्धि के देवता बुध ग्रह का दिन है बुधवार। जिन लोगों की कुंडली में बुध अशुभ फल दे रहा है वे इस दिन साबूत मूंग न खाएं और इसका दान करें। मंगलवार की रात को हरे मूंग भिगोकर रखें और बुधवार की सुबह यह मूंग गाय को खिलाएं।
    5. गुरुवार
    देव गुरु बृहस्पति का दिन है गुरुवार। जिन लोगों की कुंडली में गुरु ग्रह अच्छी स्थिति में नहीं है, वे लोग इस दिन किसी ब्राह्मण को पीले रंग के वस्त्र दान में दें। कढ़ी-चावल खुद भी खाएं और गरीब बच्चों को भी खिलाएं। पीला रुमाल अपने साथ रखें।
    6. शुक्रवार
    असुरों के गुरु शुक्र का दिन है शुक्रवार। इस दिन शुक्र ग्रह के लिए विशेष उपासना की जानी चाहिए। इस दिन दही और लाल ज्वार का दान करना चाहिए। सफेद रेशमी वस्त्रों का दान करें।
    7. शनिवार
    शनिवार को शनि की पूजा विशेष रूप से की जाती है। हर शनिवार एक नारियल नदी में प्रवाहित करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें। शनिदेव के दर्शन करें और तेल चढ़ाएं।

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  141. किसी भी शुभ मुहूर्त में कर सकते हैं ये उपाय
    जिस मुहूर्त में उपाय करना हो, उस दिन सुबह जल्दी उ‌‌ठें। स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पीले वस्त्र पहनें। किसी मंदिर में जाएं या घर के मंदिर में ही श्री गणेश और लक्ष्मीजी की पूजा का प्रबंध करें। पूजा की तैयारी के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुश के आसन पर बैठ जाएं।
    दोनों देवी-देवता की प्रतिमाओं को पंचामृत से स्नान कराएं।
    स्नान के बाद श्रीगणेश की प्रतिमा को हल्दी से पीले किए हुए चावल पर विराजित करें।
    देवी लक्ष्मी को कुमकुम से लाल किए हुए चावल पर विराजित करें।
    इसके बाद गणेशजी को चंदन, लाल फूल चढ़ाएं। देवी लक्ष्मी को भी कुंकुम और लाल फूल अर्पित करें।
    प्रसाद के लिए गुड़ के लड्डू और दूध से बनी खीर का भोग लगाएं।
    इस प्रकार पूजन के बाद सुगंधित धूप व दीप प्रज्जवलित करें। लक्ष्मी-गणेशजी की आरती करें।
    क्षमा याचना करें और परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें।
    इसके बाद पंचामृत व प्रसाद ग्रहण करें। इस प्रकार समय-समय पर यह उपाय करते रहना चाहिए।

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  142. दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।
    धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे।।
    श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरदे सर्वजनं में वशमानय स्वाहा।।

    पूजन के समय इस लक्ष्मी-विनायक के मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें। मंत्र जप के लिए कमल के गट्‌टे की माला का उपयोग करना चाहिए।
    ध्यान रखें मंत्र का जप सही उच्चारण के साथ करना चाहिए।
    यदि आप इस मंत्र का जप नहीं कर पा रहे हैं तो इन सरल मंत्रों का जप कर सकते हैं।
    श्रीगणेश मंत्र- ॐ महोदराय नम:। ॐ विनायकाय नम:।
    महालक्ष्मी मंत्र- ॐ महालक्ष्म्यै नम:। ॐ दिव्याये नम:

    इन मंत्रों के जप के बाद लक्ष्मी-गणेशजी की आरती करें। क्षमा प्रार्थना करें। इसके बाद पंचामृत व प्रसाद ग्रहण करें

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  143. व्रत विधि
    पापमोचनी एकादशी के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती (व्रत रखने वाला) दशमी तिथि (15 मार्च, रविवार) को एक बार सात्विक भोजन करें और भगवान का ध्यान करे। एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत का संकल्प करें। संकल्प के बाद षोड्षोपचार (16 सामग्रियों से) सहित भगवान श्रीविष्णु की पूजा करें।
    पूजा के बाद भगवान के सामने बैठकर भगवद् कथा का पाठ करें या किसी योग्य ब्राह्मण से करवाएं। परिवार सहित बैठकर भगवद् कथा सुनें। रात भर जागरण करें। अत: रात में भी बिना कुछ खाए (संभव हो तो ठीक नहीं तो फल खा सकते हैं) भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें।
    द्वादशी तिथि (17 मार्च, मंगलवार) को सुबह स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें। इसके बाद स्वयं भोजन करें। इस प्रकार पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं तथा व्रती के सभी पापों का नाश कर देते हैं।

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  144. पापमोचनी एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है-बहुत समय पहले मांधाता नाम के एक पराक्रमी राजा थे। राजा मांधाता ने एक बार लोमश ऋषि से पूछा कि मनुष्य जो जाने-अनजाने में पाप करता है, उससे कैसे मुक्त हो सकता है? तब लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी, तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास करने लगी।
    कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थ। तभी उनकी नजऱ अप्सरा पर गई और उसके मनोभाव को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने प्रयास में सफल हुई और ऋषि की तपस्या भंग हो गई। ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जागी तो उन्हें आभास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरक्त हो चुके हैं। उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ।
    श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी (पापमोचिनी एकादशी) का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था। अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया, जिससे उनका पाप भी नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गई और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ तब वह पुन: स्वर्ग चली गई।

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  145. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार खर (मल) मास को भगवान पुरुषोत्तम ने अपना नाम दिया है। इसलिए इस मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। इस मास में भगवान विष्णु की आराधना करने का विशेष महत्व है। इस बार खर मास का प्रारंभ 15 मार्च, रविवार से होगा, जो 14 अप्रैल, मंगलवार तक रहेगा।
    इस मास में सुबह सूर्य उदय होने से पहले शौच, स्नान, संध्या (प्राणायाम, गायत्री जाप व सूर्य को अर्घ्य) आदि अपने-अपने करने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए। पुरुषोत्तम मास में श्रीमद्भागवत का पाठ करने का विशेष महत्व है। इस महीने में तीर्थ, घर, व मंदिर आदि स्थानों पर भगवान की कथा होनी चाहिए। भगवान की कृपा से देश तथा विश्व का मंगल हो तथा गाय, ब्राह्मण तथा धर्म की रक्षा हो, इसके लिए व्रत-नियम आदि का आचरण करते हुए दान, पुण्य और भगवान का पूजन करना चाहिए। मलमास के संबंध में लिखा है-
    येनाहमर्चितो भक्त्या मासेस्मिन् पुरुषोत्तमे।
    धनपुत्रसुखं भुकत्वा पश्चाद् गोलोकवासभाक्।।
    अर्थात- पुरुषोत्तम मास में नियम से रहकर विधिपूर्वक पूजा करने से भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा करने वाला यहां सब प्रकार के सुख भोगकर मृत्यु के बाद दिव्य गोलोक में निवास करता है।
    इस मंत्र का जाप करें मलमास में
    धर्म ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक भी वर्णित हैं, जिनका जाप यदि खर मास में किया जाए तो अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में श्रीकौण्डिन्य ऋषि ने यह मंत्र बताया था। ये मंत्र इस प्रकार है-
    मंत्र- गोवद्र्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
    गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।
    इस मंत्र का जाप करते समय मन में भगवान पुरुषोत्तम का ध्यान इस प्रकार करना चाहिए-
    कौण्डिन्येन पुरा प्रोक्तमिमं मंत्र पुन: पुन:।
    जपन्मासं नयेद् भक्त्या पुरुषोत्तममाप्नुयात्।
    ध्यायेन्नवघनश्यामं द्विभुजं मुरलीधरम्।
    लसत्पीतपटं रम्यं सराधं पुरुषोत्तम्।।
    अर्थात- मंत्र जपते समय नवीन मेघश्याम दोभुजधारी बांसुरी बजाते हुए पीले वस्त्र पहने हुए श्रीराधिकाजी के सहित श्रीपुरुषोत्तम भगवान का ध्यान करना चाहिए। इस मंत्र का एक महीने तक भक्ति पूर्वक बार-बार जाप करने से पुरुषोत्तम भगवान की प्राप्ति होती है, ऐसा धर्म ग्रंथों में लिखा है।

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  146. पुराणों के मतानुसार शनि देव को परमात्मा ने सभी लोकों का न्यायाधीश बनाया है। शनिदेव त्रिदेव और ब्रह्मांड निवासियों में बिना किसी भेद के उनके किए कर्मों की सजा उन्हें देते हैं। जब किसी व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव पड़ता है तो वह पाठ-पूजा और तंत्र-मंत्र के माध्यम से शनिदेव को खुश करने में जुट जाता है। शास्त्रों में सेवा, दान-पुण्य और मानव-प्रेम ऐसे तीन काम हैं जिन्हें आप अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेंगे तो शनि आप पर कभी अपना दुष्प्रभाव नहीं डालेंगे। इसके अतिरिक्त

    1. सोमवार के दिन शिवालय में पानी में काले तिल मिलाकर शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करें।

    2. शनिवार के दिन काले शिवलिंग पर सरसों के तेल से रुद्राभिषेक करें।

    3. शारीरिक कष्ट से मुक्ति हेतु महादेव के महामृत्युंजय मंत्र का यथा संभव जाप करें।

    4. काले कपड़े में नारियल उड़द व कागज़ी बादाम बांधकर शिवालय में चढ़ाएं।

    5. महादेव के अचूक अमोघ शिव कवच का नियमित पाठ करें।

    6. सोमवार के दिन शिवालय में तिल के तेल का दीपक करें।

    7. काले धागे में सात दाने 7 मुखी रुद्राक्ष प्राणप्रतिष्ठा करवाकर गले में धारण करें।

    8. सोमवार के दिन काले आसान पर बैठकर व पश्चिममुखी होकर रूद्राष्टक का पाठ करें।

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  147. प्रत्येक व्यक्ति में इच्छाएं होती हैं। कुछ परिस्थितियों के अधीन हो अपनी इच्छाओं को दबा लेते हैं और कुछ अपनी मनचाही इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए दिन रात एक कर देते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कुछ ऐसे उपाय बताएं गए हैं जिन्हें सप्ताह के प्रत्येक दिन अपनाकर आप भी अपनी मनचाही इच्छाएं पूर्ण कर सकते हैं।

    रविवार - शारीरिक रोगों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

    सोमवार - धन की इच्छा हो तो लक्ष्मी पूजन करें, ब्राह्मणों को पत्नी सहित घी से पका हुआ भोजन करवाएं।

    मंगलवार - रोगों से निजात पाने के लिए काली मां की पूजा करें, उड़द, मूंग और अरहर दाल या ब्राह्मण को अनाज से बना भोजन करवाएं।

    बुधवार - पुत्र सुख की कामना है तो श्री विष्णु का पूजन करें।

    गुरुवार - लंबी आयु की चाह रखते हैं तो वस्त्र,यज्ञोपवीत और घी मिले खीर से देवताओं विशेष रूप से गुरु का पूजन करें।

    शुक्रवार - समस्त भोगों की प्राप्ति के लिए देवताओं का पूजन करें। देवी या लक्ष्मी, ब्राह्मणों को अन्न दान करें।

    शनिवार - अकाल मृत्यु से स्वंय की रक्षा के लिए रुद्र पूजा, तिल से हवन, दान, ब्राह्मणों को तिल मिला भोजन करवाएं।

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  148. अमावस्या को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं। जो व्यक्ति रोगी है, उसके कपड़े से धागा निकालकर रूई के साथ उससे बत्ती बनाएं। फिर एक मिट्टी का दीपक लें और उसमें घी भरें, रूई और धागे की बत्ती भी लगाएं। ये दीपक हनुमानजी के मंदिर में जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। इस उपाय से रोगी जल्दी ठीक हो सकता है। यह उपाय मंगलवार और शनिवार को भी नियमित रूप से किया जाना चाहिए। साथ ही, दवाइयों का और आवश्यक परहेज का भी ध्यान रखें।
    धन संबंधी बाधाएं दूर करने के लिए उपाय
    अमावस्या पर किसी ऐसे मंदिर जाएं, जहां पीपल हो। अपने साथ जनेऊ और संपूर्ण पूजन सामग्री लेकर जाएं। पीपल की पूजा करें और जनेऊ अर्पित करें। साथ ही, भगवान श्रीहरि के मंत्रों का जप करें या भगवान विष्णु का ध्यान करें। पीपल की परिक्रमा करते हुए ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का जप करें। इस उपाय से पितर देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है।

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  149. अमावस्या पर किसी ऐसे सरोवर या किसी ऐसे स्थान पर जाएं, जहां मछलियां हों। वहां जाते समय अपने साथ गेहूं के आटे की गोलियां बनाकर ले जाएं। सरोवर में मछलियों के आटे की गोलियां डालें। इस उपाय से पितर देवताओं के साथ ही अन्य देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त होती है।
    अमावस्या पर तुलसी और बिल्व पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए
    अमावस्या पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस दिन तुलसी के पत्ते या बिल्व पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। यदि आप अमावस्या पर देवी-देवताओं को तुलसी के पत्ते और शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाना चाहते हैं तो एक दिन पहले ही ये पत्ते तोड़कर रख लें। यदि अमावस्या के दिन नया बिल्वपत्र ना मिले तो पुराने पत्तों को ही धोकर पुन: शिवलिंग पर अर्पित कर सकते हैं।

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  150. हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश के लिए व्रत किया जाता है। इसे गणेश चतुर्थी व्रत कहते हैं। इस बार ये व्रत 28 दिसंबर, सोमवार को है। गणेश चतुर्थी का व्रत इस विधि से करें-

    व्रत व पूजन विधि
    सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि काम जल्दी ही निपटा लें। दोपहर के समय अपनी इच्छा के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। गणेश चतुर्थी व्रत का संकल्प लें। संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार (16 सामग्रियों से) पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊं गं गणपतयै नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
    भगवान श्रीगणेश को गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें। पूजा में श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा प्रदान करने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन करें। संभव हो तो उपवास करें।
    इस व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर भगवान श्रीगणेश की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।

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  151. ऐसे करें श्रीगणेश को प्रसन्न
    ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान श्रीणेश को विभिन्न प्रकार के पत्ते विधि-विधान से अर्पित किए जाएं तो हर चिंता दूर हो सकती है। सबसे पहले भगवान श्रीगणेश को शमी वृक्ष के पत्ते चढ़ाकर 'सुमुखाय नम:' कहें। इसके बाद क्रम से यह पत्ते चढ़ाएं और नाम मंत्र बोलें-
    1. बिल्वपत्र 'उमापुत्राय नम:'
    2. दूर्वादल 'गजमुखाय नम:'
    3. बेर 'लम्बोदराय नम:'
    4. धतूरे का पत्ता 'हरसूनवे नम:'
    5. सेम का पत्ता 'वक्रतुण्डाय नम:'
    6. तेजपत्ता 'चतुर्होत्रे नम:'
    7. कनेर का पत्ता 'विकटाय नम:'
    8. कदली या केला 'हेमतुंडाय नम:'
    9. आक का पत्ता 'विनायकाय नम:'
    10. अर्जुन का पत्ता 'कपिलाय नम:'
    11. मरुआ का पत्ता 'भालचन्द्राय नम:'
    12. अगस्त्य का पत्ता 'सर्वेश्वराय नम:'
    13. वनभंटा 'एकदन्ताय नम:'
    14. भंगरैया का पत्ता 'गणाधीशाय नम:'
    15. अपामार्ग का पत्ता 'गुहाग्रजाय नम:'
    16. देवदारु का पत्ता 'वटवे नम:'
    17. गान्धारी पत्र 'सुराग्रजाय नम:'
    18. सिंदूर या सिंदूर वृक्ष का पत्ता 'हेरम्बाय नम:'
    19. केतकी पत्र चढ़ाकर 'सिद्धिविनायकाय नम:'

    अंत में दो दूर्वादल गन्ध, फूल और चावल गणेशजी को चढ़ाना चाहिए।

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  152. शादी के लायक लोगों के लिए भी वास्तु में कुछ ऐसी बातें कही गई हैं, जिनका ध्यान न रखने पर ये शादी में बाधा आ सकती है।
    ध्यान दे वास्तु में कही गई इन 6 बातों पर-
    1. काले रंग के कपड़े और काले रंग की चीजों का इस्तेमाल कम करना चाह‌िए। यह आपके लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
    2. कुंवारे लड़कों का ब‌िस्तर इस तरह रखना चाह‌िए ताक‌ि सोते समय पैर उत्तर और स‌िर दक्ष‌िण द‌िशा में हो। सोने के इस न‌ियम की अनदेखी से बचना चाह‌िए।
    3. ज‌िन कमरों में एक से अध‌िक दरवाजे हों उस कमरे में व‌िवाह योग्य लड़कों को सोना चाह‌िए। ज‌िन कमरों में हवा और रोशनी कम आते हों, उन कमरों में नहीं सोना चाह‌िए।

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  153. 4. जिन कमरों का रंग डार्क यानी गहरा हो, वे कुंवारे लड़के के लिए अच्छा नहीं माना जाता। ऐसे लड़कों के कमरे का रंग पीला, गुलाबी होना शुभ होता है।
    5. वास्तु शास्त्र के अनुसार, व‌िवाह योग्य लड़कों को दक्ष‌िण और दक्ष‌िण-पश्च‌िम द‌िशा वाले कमरों में नहीं सोना चाह‌िए। इससे शादी में बाधा आती है। माना जाता है क‌ि इससे अच्छे रिश्ते नहीं आते हैं।

    6. ऐसी जगह पर नहीं सोएं जहां बीम लटका हुआ द‌िखाई दे।

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  154. श्री रामचरित मानस में संत महाकवि तुलसीदास ने मंत्र शक्ति के संबंध में वर्णन किया है।

    मंत्र महामणि विषय ब्याल के।
    मेटत कठिन कुअंक भाल के॥

    आज के व्याधि, रोग-शोक, कलह-क्लेश, ईर्ष्या-द्वेष, बैर-हिंसा, अकाल-अभाव, अनाचार-स्वेच्छाचार आदि से पीड़ित मानव को भगवदुपासना, ईश्वराधन मंत्र जप से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। शारदा तिलक एवं मंत्र महोदधि में मंत्र तीन प्रकार के बताए गए हैं। पुलिंग-स्त्रीलिंग-नपुंसक लिंग।

    जिस मंत्र के अंत में ‘हुं फट्’ हो उसे पुरुषमंत्र कहते हैं जैसे ‘ऊं हं हनुमते रुद्रात्मकाय हूं फट्’ यह हनुमान जी का मंत्र है। इस मंत्रानुष्ठान से साधक को तत्काल फल मिलता है।

    मंत्र महार्णव पूर्व खण्ड में मंत्रोल्लेख मिलता है। जिस मंत्र के अंत में ‘स्वाहा’ शब्द हो उसे स्त्री मंत्र अर्थात स्त्री लिंग कहा जाता है ‘यथोक्तं ऊं पूर्व कपि मुखायच्च मुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहारणाय स्वाहा’। यह शत्रु संकट निवारणार्थ हनुमद्-मंत्र है। जिस मंत्र के अंत में ‘नम:’ हो वह नपुंसक लिंग कहलाता है जैसे - ‘रां रामाय नम: अथवा कृष्णाय नम:। श्रीकृष्ण पंचाक्षर मंत्र या श्री गणेशाय नम:।’

    एक ही परमत्व परम प्रभु को शिव अथवा राम या विष्णु, रुद्र, सदाशिव, परब्रह्म परमेश्वर महेश्वर, सर्वेश्वर कहा गया है। परब्रह्म परमात्मा शिव महेश्वर रुद्र नर भी हैं नारी भी हैं। अत: उनके उपासकों के लिए उनके पुलिंग मंत्र भी हैं स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग मंत्र भी हैं क्योंकि शिव से भिन्न कुछ है ही नहीं, शिव से भिन्न शिव नहीं है। तभी उन्हें भगवान अद्र्धनारीश्वर भी कहा जाता है। वह भगवान हैं वही भगवती भी है तभी कहा गया है कि शिव नर उमा नारी तस्मै तस्यै नमो नम:।

    भगवान के लिए कहा गया है त्वम् स्त्री त्वम् पुमान्। शिव कुटस्थ तत्व है और आद्यशक्ति परिणामिनी तत्व है जैसे पुष्प में गंध, सूर्य में प्रभा नित्य और स्वभाव सिद्ध है उसी प्रकार शिव में शक्ति भी, भगवान में भगवती स्वभाव सिद्ध है। सदाशिव का अर्थ है नित्य मंगल त्रिकाल मंगल अर्थात मंगलमय कल्याण कर्ता शंकर।

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    Jyotish Seva
    March 14 at 8:45am ·

    सनातन धर्म के पुराणों में जीवन से संबंधित सभी समस्याओं का हल बताया गया है। महाभारत काल में युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया था कि घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहे इसके लिए क्या करना चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने बताया था की कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें हमेशा अपने घर में रखना चाहिए। जिस घर में ये चीजें हमेशा विद्यमान रहती हैं उस घर में दरिद्रता कभी नहीं आती। आईए जानें कौन सी हैं वह चीजें-
    घी
    प्रतिदिन घर के मंदिर में गाय के घी का दीप अर्पित करना और प्रसाद भोग लगाने से देवी-देवता आति शीघ्र अपनी कृपा बरसाते हैं। काफी किस्म का घी बाजार में आसानी से उपलब्ध होता है लेकिन गाय के दूध से बना घी ही देवी- देवताओं को अर्पण किया जाना चाहिए और घर में भी रखें।
    पानी
    कम कमाई में भी पैसा जोड़ना चाहते हैं तो अपने वॉश रूम में हमेशा एक बाल्टी पानी भर कर रखें। घर में मेहमान आने पर सबसे पहले उन्हें पानी दें ऐसा करने से अशुभ ग्रह शुभ होते हैं।
    शहद
    वास्तुनुसार घर में जो भी नकारात्मक ऊर्जा होती है वह शहद की पॉजिटिव एनर्जी से मिल कर समाप्त हो जाती है। जिससे परिवार के सभी सदस्यों को फ़ायदा होता है इसलिए बहुत से घरों में इसे आवश्यक रूप से रखा जाता है। शहद को किसी साफ और सुरक्षित स्थान पर रखें। इससे घर में बरकत बनी रहेगी और फिजूल खर्चों में कमी आएगी।
    चंदन
    ज्योतिषाचार्य मानते हैं की सप्ताह वार के अनुसार तिलक लगाने से ग्रहों को अपने अनुकुल बनाया जा सकता है और उन से श्रेष्ठ एवं शुभ फलों की प्राप्ति की जा सकती है। चंदन तिलक को धारण करने का विशेष महत्व है। चंदन का तिलक शीतल होता है उसे धारण करने से पापों का नाश होता है। इसकी खुशबू से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
    वीणा
    विद्या, ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती के हाथों में सदा वीणा रहती है। पुराणों में मां सरस्वती को कमल पर बैठा दिखाया जाता है। कीचड़ में खिलने वाले कमल को कीचड़ स्पर्श नहीं कर पाता। इसीलिए कमल पर विराजमान मां सरस्वती हमें यह संदेश देना चाहती हैं कि हमें चाहे कितने ही दूषित वातावरण में रहना पड़े, परंतु हमें खुद को इस तरह बनाकर रखना चाहिए कि बुराई हम पर प्रभाव न डाल सके। घर में सदा देवी सरस्वती का रूप और वीणा रखें।

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  156. शाबर धूमावती साधना :
    =================
    दस महाविद्याओं में माँ धूमावती का स्थान सातवां है और माँ के इस स्वरुप को बहुत ही उग्र माना जाता है ! माँ का यह स्वरुप अलक्ष्मी स्वरूपा कहलाता है किन्तु माँ अलक्ष्मी होते हुए भी लक्ष्मी है ! एक मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया तो उस यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया ! माँ सती ने इसे शिव जी का अपमान समझा और अपने शरीर को अग्नि में जला कर स्वाहा कर लिया और उस अग्नि से जो धुआं उठा )उसने माँ धूमावती का रूप ले लिया ! इसी प्रकार माँ धूमावती की उत्पत्ति की अनेकों कथाएँ प्रचलित है जिनमे से कुछ पौराणिक है और कुछ लोक मान्यताओं पर आधारित है !
    नाथ सम्प्रदाय के प्रसिद्ध योगी सिद्ध चर्पटनाथ जी माँ धूमावती के उपासक थे ! उन्होंने माँ धूमावती पर अनेकों ग्रन्थ रचे और अनेकों शाबर मन्त्रों की रचना भी की !
    यहाँ मैं माँ धूमावती का एक प्रचलित शाबर मंत्र दे रहा हूँ जो बहुत ही शीघ्र प्रभाव देता है !
    कोर्ट कचहरी आदि के पचड़े में फस जाने पर अथवा शत्रुओं से परेशान होने पर इस मंत्र का प्रयोग करे !
    माँ धूमावती की उपासना से व्यक्ति अजय हो जाता है और उसके शत्रु उसे मूक होकर देखते रह जाते है !
    || मंत्र ||
    ॐ पाताल निरंजन निराकार
    आकाश मंडल धुन्धुकार
    आकाश दिशा से कौन आई
    कौन रथ कौन असवार
    थरै धरत्री थरै आकाश
    विधवा रूप लम्बे हाथ
    लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव
    डमरू बाजे भद्रकाली
    क्लेश कलह कालरात्रि
    डंका डंकिनी काल किट किटा हास्य करी
    जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते
    जाया जीया आकाश तेरा होये
    धुमावंतीपुरी में वास
    ना होती देवी ना देव
    तहाँ ना होती पूजा ना पाती
    तहाँ ना होती जात न जाती
    तब आये श्री शम्भु यती गुरु गोरक्षनाथ
    आप भई अतीत
    ॐ धूं: धूं: धूमावती फट स्वाहा !
    || विधि ||
    41 दिन तक इस मंत्र की रोज रात को एक माला जाप करे ! तेल का दीपक जलाये और माँ को हलवा अर्पित करे ! इस मंत्र को भूल कर भी घर में ना जपे, जप केवल घर से बाहर करे ! मंत्र सिद्ध हो जायेगा !
    || प्रयोग विधि १ ||
    जब कोई शत्रु परेशान करे तो इस मंत्र का उजाड़ स्थान में 11 दिन इसी विधि से जप करे और प्रतिदिन जप के अंत में माता से प्रार्थना करे –
    “ हे माँ ! मेरे (अमुक) शत्रु के घर में निवास करो ! “
    ऐसा करने से शत्रु के घर में बात बात पर कलह होना शुरू हो जाएगी और वह शत्रु उस कलह से परेशान होकर घर छोड़कर बहुत दुर चला जायेगा !
    || प्रयोग विधि २ ||
    शमशान में उगे हुए किसी आक के पेड़ के साबुत हरे पत्ते पर उसी आक के दूध से शत्रु का नाम लिखे और किसी दुसरे शमशान में बबूल का पेड़ ढूंढे और उसका एक कांटा तोड़ लायें ! फिर इस मंत्र को 108 बार बोल कर शत्रु के नाम पर चुभो दे !
    ऐसा 5 दिन तक करे , आपका शत्रु तेज ज्वर से पीड़ित हो जायेगा और दो महीने तक इसी प्रकार दुखी रहेगा !
    नोट – इस मंत्र के और भी घातक प्रयोग है जिनसे शत्रु के परिवार का नाश तक हो जाये ! किसी भी प्रकार के दुरूपयोग के डर से मैं यहाँ नहीं लिखना चाहता ! इस मंत्र का दुरूपयोग करने वाला स्वयं ही पाप का भागी होगा !कोई भी जप-अनुष्ठान करने से पूर्व मंत्र की शुद्धि जांचा लें ,विधि की जानकारी प्राप्त कर लें तभी प्रयास करें |गुरु की अनुमति बिना और सुरक्षा कवच बिना तो कदापि कोई साधना न करें |उग्र महाशक्तियां गलतियों को क्षमा नहीं करती कितना भी आप सोचें की यह तो माँ है |उलट परिणाम तुरत प्राप्त हो सकते हैं |अतः बिना सोचे समझे कोई कार्य न करें |पोस्ट का उद्देश्य मात्र जानकारी उपलब्ध करना है ,अनुष्ठान या प्रयोग करना नहीं |अतः कोई समस्या होने पर हम जिम्मेदार नहीं होंगे

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  157. बच्चों के लिए माता-पिता को ध्यान रखनी चाहिए ये 5 बातें,1.हर बच्चे का अपना अलग स्वभाव हाेता है । कुछ बच्चे चपल आैर तेज स्वभाव के होते हैं। पब्लिक प्लेसेस पर वे कभी-कभी अत्यधिक उतावले हो जाते हैं। यह सिर्फ नई जगह के उत्साह के कारण होता है। एेसे में जरूरी है कि उन्हें पब्लिक प्लेस में इस बात के लिए किसी प्रकार की सजा न दी जाए, लेकिन बाद में समझाएं।
    2. बच्चों की मांगों को पूरा करें, लेकिन उन्हें मनमर्जी न करने दें। अभिभावक होने के नाते यह आपका कर्तव्य है कि आप घर के नियम बनाएं और बच्चों को उनका पालन करने के लिए तैयार करें।
    3. बच्चों के ऊपर जाेर-जाेर से चिल्लाने से कुछ नहीं होगा, वो आपको अनसुना कर देंगे और उल्टा आपको ही झुंझलाहट होगी। इसकी बजाय उन्हें शांति से समझाना चाहिए। यह भी जरूरी है कि बच्चों से बात करते समय अाप उनसे आंखें मिलाकर बात करें और अपनी बात पूरे आत्मविश्वास के साथ उन्हें समझाएं। आपकी कोशिश यही होनी चाहिए कि बच्चे आपकी बातों को ध्यान से सुनें।
    4. बच्चों काे नियमित बनाने की प्रक्रिया कभी आसान नहीं होती है और इससे हार कर ये कह देना कि ‘ये ऐसे ही हैं और कभी नहीं सुधरेंगे’ कभी भी इस बात का हल नहीं हो सकता है। अगर आपको लगता है कि बच्चों में बहुत सुधार की जरूरत है तो इसके लिए छोटे-छोटे चरणों में काम करें। इससे अापको झुंझलाहट भी नहीं हाेगी।
    5. बच्चों द्वारा किए गए अच्छे कामों काे पहचानें और उनकी सराहना करें।

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  158. कल 11 नवंबर शुक्रवार को देव प्रबोधनी एकादशी है। 4 महीने के बाद जगेंगे भगवान श्री हरि व‌िष्‍णु। शास्त्रों के अनुसार, कल का न केवल दिन बल्कि रात भी है खास इसलिए कुछ खास काम हैं जो नहीं करने चाहिए अन्यथा कमाए गए पुण्य भी पाप में परिवर्तित हो जाते हैं। वैसे तो इस दिन व्रत रखने का विधान है लेकिन संभव न हो तो पुण्यलाभ के लिए रखें ध्यान-

    * जुआ खेलने वाले का घर-परिवार कभी बस नहीं सकता। वैसे तो इसे कभी खेलना नहीं चाहिए लेकिन एकादशी तिथि पर स्वयं पर नियंत्रण रखें और यह खेल न खेलें।

    * एकादशी की रात जागरण करके हरी नाम संकीर्तन करना चाहिए।

    * पान नहीं खाना चाहिए इससे रजोगुण में बढ़ौतरी होती है। किसी को भेंट भी न करें।

    * दातुन, मंजन, टूथ पेस्ट का प्रयोग न करें।

    * चोरी करने से इस लोक में ही नहीं परलोक में भी दुख भोगना पड़ता है। इस बुरी आदत से एकादशी वाले दिन ही नहीं बल्कि सदा दूर रहें।

    * हिंसा से दूर रहें, मन में बुरे भाव आते हैं।

    * संभोग न करें। ब्रह्मचार्य का पालन करें।

    * झूठ नहीं बोलना चाहिए।

    * किसी के गुण-दोष की व्याख्या अथवा तिरस्कार न करें।

    * काम भाव से दूर रहें।

    * मन में द्वेष न आने दें।

    * मांस मद‌िरा से दूर रहें।

    * लहसुन प्याज का सेवन न करें।

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  159. सर जी ओम ऐंग ह्रीं हनुमते रामदूताय नमः के लाभ बता दीजिये

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  160. क्या एक साथ 3देवो के मन्त्र किया ज सकता है

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  161. क्या एक साथ 3देवो के मन्त्र किया ज सकता है

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  162. सर जी ओम ऐंग ह्रीं हनुमते रामदूताय नमः के लाभ बता दीजिये

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