Tuesday, September 30, 2014
Friday, July 25, 2014
Wednesday, July 9, 2014
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acharya astro: acharya astro: acharya astro:: acharya astro: acharya शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वहीं, पुराणों में शिव और विष्णु में भे...
Thursday, March 6, 2014
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Friday, January 24, 2014
Tuesday, January 14, 2014
बुरे योग जिनका निवारण जरुरी है
कुंडली में हम सामान्यतः राज योगों की ही खोज करते हैं, किन्तु कई बार स्वयं ज्योतिषी व कई बार जातक इन दुर्योगों को नजरअंदाज कर जाता है,जिस कारण बार बार संशय होता है की क्यों ये राजयोग फलित नहीं हो रहे.आज ऐसे ही कुछ दुर्योगों के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ,जिनके प्रभाव से जातक कई योगों से लाभान्वित होने से चूक जाते हैं.सामान्यतः पाए जाने वाले इन दोषों में से कुछ इस प्रकार हैं..
१. ग्रहण योग: कुंडली में कहीं भी सूर्य अथवा चन्द्र की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है.चन्द्र ग्रहण योग की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है.चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है.माँ के सुख में कमी आती है.किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ देना व नए काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं.अमूमन किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया,आदि इसी योग के कारण माने गए हैं.यदि यहाँ चंद्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी होता है,तो मिर्गी ,चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है. सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता सुख में कमी करता है.जातक का शारीरिक ढांचा कमजोर रह जाता है.आँखों व ह्रदय सम्बन्धी रोगों का कारक बनता है.सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उस में निबाह मुस्किल होता है.डिपार्टमेंटल इन्क्वाइरी ,सजा ,जेल,परमोशन में रुकावट सब इसी योग का परिणाम है.
२. चंडाल योग: गुरु की किसी भी भाव में राहू से युति चंडाल योग बनती है.शरीर पर घाव का एक आध चिन्ह लिए ऐसा जातक भाग्यहीन होता है.आजीविका से जातक कभी संतुष्ट नहीं होता,बोलने में अपनी शक्ति व्यर्थ करता है व अपने सामने औरों को ज्ञान में कम आंकता है जिस कारण स्वयं धोखे में रहकर पिछड़ जाता है.ये योग जिस भी भाव में बनता है उस भाव को साधारण कोटि का बना देता है.मतान्तर से कुछ विद्वान् राहू की दृष्टी गुरु पर या गुरु की केतु से युति को भी इस योग का लक्षण मानते हैं.
३.दरिद्र योग:लग्न या चंद्रमा से चारों केंद्र स्थान खाली हों या चारों केन्द्रों में पाप ग्रह हों तो दरिद्र योग होता है.ऐसा जातक अरबपति के घर में भी जनम ले ले तो भी उसे आजीविका के लिए भटकना पड़ता है,व दरिद्र जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
४. शकट योग:चंद्रमा से छटे या आठवें भाव में गुरु हो व ऐसा गुरु लग्न से केंद्र में न बैठा हो तो शकट योग का होना माना गया है. ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी कर्ज से दबा रहता है,व सगे सम्बन्धी उससे घृणा करते हैं.वह अपने जीवन में अनगिनत उतार चढ़ाव देखता है.ऐसा जातक गाड़ी चलाने वाला भी हो सकता है.
५.उन्माद योग: (a) यदि लग्न में सूर्य हो व सप्तम में मंगल हो, (b) यदि लग्न में शनि और सातवें ,पांचवें या नवें भाव में मंगल हो (c) यदि धनु लग्न हो व लग्न- त्रिकोण में सूर्य-चन्द्र युति हों साथ ही गुरु तृतीय भाव या किसी भी केंद्र में हो तो गुरुजनों द्वारा उन्माद योग की पुष्टि की गयी है.जातक जोर जोर से बोलने वाला ,व गप्पी होता है.ऐसे में यदि ग्रह बलिष्ट हों तो जातक पागल हो जाता है.
६. कलह योग: यदि चंद्रमा पाप ग्रह के साथ राहू से युक्त हो १२ वें ५ वें या ८ वें भाव में हो तो कलह योग माना गया है.जातक के सारे जीवन भर किसी न किसी बात कलह होती रहती है व अंत में इसी कलह के कारण तनाव में ही उसकी मृत्यु हो जाती है.
नोट:लग्न से घड़ी के विपरीत गिनने पर चौथा-सातवां -दसवां भाव केंद्र स्थान होता है.पंचम व नवं भाव त्रिकोण कहलाते हैं. साथ ही लग्न की गिनती केंद्र व त्रिकोण दोनों में होती है.
ऐसे ही कई प्रकार के योग और भी हैं जिनकी चर्चा फिर कभी करेंगे.फिलहाल यदि इन योगों में से कोई योग आपको अपनी कुंडली में दिखाई पड़ता है तो किसी योग्य ब्रह्मण द्वारा इसका उचित निवारण कराएँ.लेख आपको कैसा लगा ये जरूर बताएं ,चर्चाओं का दौर जारी रहा तो इन योगों का निवारण भी इसी ब्लॉग के द्वारा बताऊंगा
१. ग्रहण योग: कुंडली में कहीं भी सूर्य अथवा चन्द्र की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है.चन्द्र ग्रहण योग की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है.चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है.माँ के सुख में कमी आती है.किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ देना व नए काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं.अमूमन किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया,आदि इसी योग के कारण माने गए हैं.यदि यहाँ चंद्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी होता है,तो मिर्गी ,चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है. सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता सुख में कमी करता है.जातक का शारीरिक ढांचा कमजोर रह जाता है.आँखों व ह्रदय सम्बन्धी रोगों का कारक बनता है.सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उस में निबाह मुस्किल होता है.डिपार्टमेंटल इन्क्वाइरी ,सजा ,जेल,परमोशन में रुकावट सब इसी योग का परिणाम है.
२. चंडाल योग: गुरु की किसी भी भाव में राहू से युति चंडाल योग बनती है.शरीर पर घाव का एक आध चिन्ह लिए ऐसा जातक भाग्यहीन होता है.आजीविका से जातक कभी संतुष्ट नहीं होता,बोलने में अपनी शक्ति व्यर्थ करता है व अपने सामने औरों को ज्ञान में कम आंकता है जिस कारण स्वयं धोखे में रहकर पिछड़ जाता है.ये योग जिस भी भाव में बनता है उस भाव को साधारण कोटि का बना देता है.मतान्तर से कुछ विद्वान् राहू की दृष्टी गुरु पर या गुरु की केतु से युति को भी इस योग का लक्षण मानते हैं.
३.दरिद्र योग:लग्न या चंद्रमा से चारों केंद्र स्थान खाली हों या चारों केन्द्रों में पाप ग्रह हों तो दरिद्र योग होता है.ऐसा जातक अरबपति के घर में भी जनम ले ले तो भी उसे आजीविका के लिए भटकना पड़ता है,व दरिद्र जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
४. शकट योग:चंद्रमा से छटे या आठवें भाव में गुरु हो व ऐसा गुरु लग्न से केंद्र में न बैठा हो तो शकट योग का होना माना गया है. ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी कर्ज से दबा रहता है,व सगे सम्बन्धी उससे घृणा करते हैं.वह अपने जीवन में अनगिनत उतार चढ़ाव देखता है.ऐसा जातक गाड़ी चलाने वाला भी हो सकता है.
५.उन्माद योग: (a) यदि लग्न में सूर्य हो व सप्तम में मंगल हो, (b) यदि लग्न में शनि और सातवें ,पांचवें या नवें भाव में मंगल हो (c) यदि धनु लग्न हो व लग्न- त्रिकोण में सूर्य-चन्द्र युति हों साथ ही गुरु तृतीय भाव या किसी भी केंद्र में हो तो गुरुजनों द्वारा उन्माद योग की पुष्टि की गयी है.जातक जोर जोर से बोलने वाला ,व गप्पी होता है.ऐसे में यदि ग्रह बलिष्ट हों तो जातक पागल हो जाता है.
६. कलह योग: यदि चंद्रमा पाप ग्रह के साथ राहू से युक्त हो १२ वें ५ वें या ८ वें भाव में हो तो कलह योग माना गया है.जातक के सारे जीवन भर किसी न किसी बात कलह होती रहती है व अंत में इसी कलह के कारण तनाव में ही उसकी मृत्यु हो जाती है.
नोट:लग्न से घड़ी के विपरीत गिनने पर चौथा-सातवां -दसवां भाव केंद्र स्थान होता है.पंचम व नवं भाव त्रिकोण कहलाते हैं. साथ ही लग्न की गिनती केंद्र व त्रिकोण दोनों में होती है.
ऐसे ही कई प्रकार के योग और भी हैं जिनकी चर्चा फिर कभी करेंगे.फिलहाल यदि इन योगों में से कोई योग आपको अपनी कुंडली में दिखाई पड़ता है तो किसी योग्य ब्रह्मण द्वारा इसका उचित निवारण कराएँ.लेख आपको कैसा लगा ये जरूर बताएं ,चर्चाओं का दौर जारी रहा तो इन योगों का निवारण भी इसी ब्लॉग के द्वारा बताऊंगा
Saturday, January 4, 2014
acharya astro: acharya astro: acharya astro:
acharya astro: acharya astro: acharya astro:: acharya astro: acharya शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वहीं, पुराणों में शिव और विष्णु में भेद...
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