acharya astro: acharya astro: acharya astro:: acharya astro: acharya शास्त्रों के मुताबिक हिन्दू पंचांग का वैशाख माह भगवान विष्णु को समर्पित हैं। वहीं, पुराणों में शिव और विष्णु में भेद...
क्या है शिव के वाहन नंदी और त्रिनेत्र से जुड़ा संदेश?
नंदी या वृषभ वाहन- पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का प्रतीक है, जो शिव कृपा से ही साधे जाने का प्रतीक है।
त्रिनेत्र- भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है, जिसका खुलना अज्ञान व अविवेक का नाश करने वाला माना जाता है। शिव भक्ति के जरिए यही ज्ञान भक्त की जीवन की राह आसान बनाता है।
क्या है डमरू और मुण्डमाला से जुड़ी गूढ़ बात?
डमरू- डमरू का नाद यानी आवाज परब्रह्म स्वरूप माना गया है। शिव की तांडव नृत्य के दौरान इसके जरिए प्रकट ब्रह्म शक्ति जगत के सारे क्लेश व अज्ञानता का नाश करने वाली मानी गई है। इसलिए भी शिव पूजा में डमरू बजाने का महत्व है।
मुण्डमाला- शिव के गले में नरमुण्डों की माला मृत्यु या काल का उनके वश में होने प्रतीक है।
हिंदू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। धर्म की रक्षा के लिए हिंदू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं। इनमें से दस प्रमुख अवतार 'दशावतार' के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये दस अवतार हैं-
1. मत्स्य अवतार - मछली के रूप में।
2. कूर्म अवतार - कछुए के रूप में।
3. वराह अवतार - सूअर के रूप में।
4. नरसिंह अवतार - आधे शेर और आधे इंसान के रूप में।
5. वामन अवतार - बौने ब्राह्मण के रूप में।
6. परशुराम अवतार - ब्राह्मण योद्धा के रूप में।
7. श्रीराम अवतार - मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में।
8. श्रीकृष्ण अवतार - 16 कलाओं के पूर्ण अवतार के रूप में।
9. बुद्ध अवतार - क्षमा, शील और शांति के रूप में।
10. कल्कि अवतार ( यह अवतार कलियुग के अंत में होना माना गया है)- सृष्टि के संहारक के रूप में।
सांसारिक जीवन का अटल सत्य है कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु तय है। किंतु इस सच के उलट इसी संसार में ऐसे भी देहधारी हैं, जो युगों के बदलाव के बाद भी हजारों सालों से जीवित हैं। इन महान और अमर आत्माओं को 'चिरंजीवी' यानी अमर बताया गया है। इनकी संख्या 8 होने से ये अष्ट चिरंजीवी भी कहलाते हैं।
हनुमानजी: भगवान रुद्र के 11वें अवतार, भगवान श्रीराम के परम सेवक और भक्त व बल, बुद्धि और पुरूषार्थ देने वाले देवता श्रीहनुमान के चारों युगों में होने की महिमा तो सभी जानते हैं और 'चारों युग परताप तु्म्हारा है। परसिद्ध जगत उजियारा।।' यह चालीसा बोल हर रोज स्तुति भी करते हैं।
ऋषि मार्कण्डेय: भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए और युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।
भगवान वेद-व्यास: सनातन धर्म के प्राचीन और पवित्र चारों वेदों - ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन और 18 पुराणों के रचनाकार भगवान वेदव्यास ही हैं।
भगवान परशुराम: जगतपालक भगवान विष्णु के दशावतारों में एक हैं। इनके द्वारा पृथ्वी से 21 बार निरकुंश व अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया गया।
राजा बलि: भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया।
विभीषण: लंकापति रावण के छोटे भाई, जिसने रावण की अधर्मी नीतियों के विरोध में युद्ध में धर्म और सत्य के पक्षधर भगवान श्रीराम का साथ दिया।
कृपाचार्य: युद्ध नीति में कुशल होने के साथ ही परम तपस्वी ऋषि, जो कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे।
अश्वत्थामा: कौरवों और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के सुपुत्र थे, जो परम तेजस्वी और दिव्य शक्तियों के उपयोग में माहिर महायोद्धा थे, जिनके मस्तक पर मणी जड़ी हुई थी। शास्त्रों में अश्वत्थामा को अमर बताया गया है।
हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों को एक ही पिता, किंतु अलग-अलग माताओं की संतान बताया गया है।
इसके मुताबिक देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है।
देवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं।
दानवों के गुरु का क्या नाम है?
दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र महर्षि भृगु इनके पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फूंक देते थे। ब्रह्मदेव की कृपा से यह शुक्र ग्रह के रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है।
हिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियां हैं। जानिए इन पांच देवताओं के नाम और रोज उनकी पूजा से कौन-सी शक्ति व इच्छाएं पूरी होती हैं -
भगवान शिव का एक नाम है 'आशुतोष', क्या है इसका अर्थ?
भगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है। इस शब्द का मतलब जानें तो 'आशु' का अर्थ है - जल्द और 'तोष' यानी प्रसन्नता। इस तरह आशुतोष का अर्थ होता है- जल्द प्रसन्न होने वाला। पौराणिक प्रसंग उजागर करते हैं कि भगवान शिव भी भक्ति व पूजा के सरल उपायों से जल्द ही प्रसन्न होकर मन चाही इच्छा पूरी कर देते हैं। यही कारण है कि भगवान शिव 'आशुतोष' भी पुकारे जाते हैं।
तीर्थ परम्परा में उत्तराखंड या उत्तर दिशा के चार धामों (यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ व केदारनाथ) का भी महत्व है। यह यात्रा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर होती है, इसलिए यह यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री, केदारनाथ के बाद बद्रीनाथ में जाकर पूरी होती है।
इन पवित्र धामों में भी गंगा नदी के दर्शन व स्नान का खास महत्व है। पुराणों के मुताबिक मां गंगा जगत के कल्याण व पापनाश के लिए ही नदी के रूप में स्वर्ग से धरती पर उतरी। इन चार धामों में गंगा के भी कई रूप और नाम हैं। मसलन, गंगोत्री में भागीरथी, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा।
तंत्रचूड़ामणि ग्रंथ के मुताबिक देवी शक्तिपीठ की संख्या 52। वहीं, देवीभागवत के मुताबिक 108, देवीगीता के मुताबिक 72 बताई गई है। किंतु देवी पुराण (महाभागवत) में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है। इन्हीं 51 शक्ति पीठों की खास मान्यता है।
गुप्त नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जप करने से सभी सुखों की प्राप्ति संभव है। ये मंत्र बहुत ही चमत्कारी हैं अगर विधि-विधान से इनका जप किया जाए तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। मंत्र जप की विधि इस प्रकार है-
- सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इस मंत्र का जप करें।
- इस मंत्र की प्रतिदिन 5 माला जप करने से मन को शांति तथा प्रसन्नता मिलती है। यदि जप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।
क्या है शिव के वाहन नंदी और त्रिनेत्र से जुड़ा संदेश?
ReplyDeleteनंदी या वृषभ वाहन- पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का प्रतीक है, जो शिव कृपा से ही साधे जाने का प्रतीक है।
त्रिनेत्र- भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है, जिसका खुलना अज्ञान व अविवेक का नाश करने वाला माना जाता है। शिव भक्ति के जरिए यही ज्ञान भक्त की जीवन की राह आसान बनाता है।
क्या है डमरू और मुण्डमाला से जुड़ी गूढ़ बात?
डमरू- डमरू का नाद यानी आवाज परब्रह्म स्वरूप माना गया है। शिव की तांडव नृत्य के दौरान इसके जरिए प्रकट ब्रह्म शक्ति जगत के सारे क्लेश व अज्ञानता का नाश करने वाली मानी गई है। इसलिए भी शिव पूजा में डमरू बजाने का महत्व है।
मुण्डमाला- शिव के गले में नरमुण्डों की माला मृत्यु या काल का उनके वश में होने प्रतीक है।
हिन्दू धर्मशास्त्र कहते हैं कि-
ReplyDeleteप्राणाघातान्निवृति: परधनहणे संयम: सत्यवाक्यं
काले शक्तया प्रदानं युवतिजनकथामूकभाव: परेषाम्।
तृष्णास्त्रोतोविभंगो गुरुषु च विनय: सर्वभूतानुकम्पा
सामान्य: सर्वशास्त्रेष्वनुपहतविधि: श्रेयसामेष पन्था:।।
सरल शब्दों में मतलब है कि इंसान के लिये 8 बातों को मन, वचन, व्यवहार में अपनाना चाहिए। ये बाते हैं -
- सच बोलना।
- शक्ति और समय के मुताबिक दान करना।
- गुण, उम्र या किसी भी रूप में बड़े-बुजुर्गों व गुरु के प्रति सम्मान और नम्रता का भाव रखना।
सृष्टि रचने वाले ब्रह्मदेव के कितने और कौन से मानस पुत्र हैं?
ReplyDeleteब्रह्मदेव के 17 मानस पुत्र माने गए हैं, जिनकी ब्रह्मदेव से ही उत्पत्ति इस तरह बताई गई है–
1. मन से मरिचि
2. नेत्र से अत्रि
3. मुख से अंगिरस
4. कान से पुलस्त्य
5. नाभि से पुलह
6. हाथ से कृतु
7. त्वचा से भृगु
8. प्राण से वशिष्ठ
9. अंगूठे से दक्ष
10. छाया से कंदर्प
11. गोद से नारद
12. इच्छा से सनक, सनन्दन, सनातन, सनतकुमार
16. शरीर से मनु
17. ध्यान से चित्रगुप्त
भगवान विष्णु के 10 अवतार कौन-कौन से हैं ?
ReplyDeleteहिंदू धर्म मान्यताओं में भगवान विष्णु जगतपालक माने जाते हैं। धर्म की रक्षा के लिए हिंदू धर्मग्रंथ श्रीमद्भागवतपुराण के मुताबिक सतयुग से लेकर कलियुग तक भगवान विष्णु के 24 अवतार माने गए हैं। इनमें से दस प्रमुख अवतार 'दशावतार' के रूप में प्रसिद्ध हैं। ये दस अवतार हैं-
1. मत्स्य अवतार - मछली के रूप में।
2. कूर्म अवतार - कछुए के रूप में।
3. वराह अवतार - सूअर के रूप में।
4. नरसिंह अवतार - आधे शेर और आधे इंसान के रूप में।
5. वामन अवतार - बौने ब्राह्मण के रूप में।
6. परशुराम अवतार - ब्राह्मण योद्धा के रूप में।
7. श्रीराम अवतार - मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में।
8. श्रीकृष्ण अवतार - 16 कलाओं के पूर्ण अवतार के रूप में।
9. बुद्ध अवतार - क्षमा, शील और शांति के रूप में।
10. कल्कि अवतार ( यह अवतार कलियुग के अंत में होना माना गया है)- सृष्टि के संहारक के रूप में।
कौन हैं अष्टचिरंजीवी यानी 8 अमर चरित्र?
ReplyDeleteसांसारिक जीवन का अटल सत्य है कि जिसने जन्म लिया उसकी मृत्यु तय है। किंतु इस सच के उलट इसी संसार में ऐसे भी देहधारी हैं, जो युगों के बदलाव के बाद भी हजारों सालों से जीवित हैं। इन महान और अमर आत्माओं को 'चिरंजीवी' यानी अमर बताया गया है। इनकी संख्या 8 होने से ये अष्ट चिरंजीवी भी कहलाते हैं।
हनुमानजी: भगवान रुद्र के 11वें अवतार, भगवान श्रीराम के परम सेवक और भक्त व बल, बुद्धि और पुरूषार्थ देने वाले देवता श्रीहनुमान के चारों युगों में होने की महिमा तो सभी जानते हैं और 'चारों युग परताप तु्म्हारा है। परसिद्ध जगत उजियारा।।' यह चालीसा बोल हर रोज स्तुति भी करते हैं।
ऋषि मार्कण्डेय: भगवान शिव के परम भक्त। शिव उपासना और महामृत्युंजय सिद्धि से ऋषि मार्कण्डेय अल्पायु को टाल चिरंजीवी बन गए और युग-युगान्तर में भी अमर माने गए हैं।
भगवान वेद-व्यास: सनातन धर्म के प्राचीन और पवित्र चारों वेदों - ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद का सम्पादन और 18 पुराणों के रचनाकार भगवान वेदव्यास ही हैं।
भगवान परशुराम: जगतपालक भगवान विष्णु के दशावतारों में एक हैं। इनके द्वारा पृथ्वी से 21 बार निरकुंश व अधर्मी क्षत्रियों का अंत किया गया।
राजा बलि: भक्त प्रहलाद के वंशज। भगवान वामन को अपना सब कुछ दान कर महादानी के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनकी दानशीलता से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान विष्णु ने इनका द्वारपाल बनना स्वीकार किया।
विभीषण: लंकापति रावण के छोटे भाई, जिसने रावण की अधर्मी नीतियों के विरोध में युद्ध में धर्म और सत्य के पक्षधर भगवान श्रीराम का साथ दिया।
कृपाचार्य: युद्ध नीति में कुशल होने के साथ ही परम तपस्वी ऋषि, जो कौरवों और पाण्डवों के गुरु थे।
अश्वत्थामा: कौरवों और पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य के सुपुत्र थे, जो परम तेजस्वी और दिव्य शक्तियों के उपयोग में माहिर महायोद्धा थे, जिनके मस्तक पर मणी जड़ी हुई थी। शास्त्रों में अश्वत्थामा को अमर बताया गया है।
क्या है देव और दानवों के माता-पिता का नाम?
ReplyDeleteहिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक देवता धर्म के तो दानव अधर्म के प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौराणिक मान्यताओं में देव-दानवों को एक ही पिता, किंतु अलग-अलग माताओं की संतान बताया गया है।
इसके मुताबिक देव-दानवों के पिता ऋषि कश्यप हैं। वहीं, देवताओं की माता का नाम अदिति और दानवों की माता का नाम दिति है।
देवताओं के गुरु का क्या नाम है?
ReplyDeleteदेवताओं के गुरु बृहस्पति माने गए हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वे महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। भगवान शिव के कठिन तप से उन्होंने देवगुरु का पद पाया। उन्होंने अपने ज्ञान बल व मंत्र शक्तियों से देवताओं की रक्षा की। शिव कृपा से ये गुरु ग्रह के रूप में भी पूजनीय हैं।
दानवों के गुरु का क्या नाम है?
दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं। ब्रह्मदेव के पुत्र महर्षि भृगु इनके पिता थे। शुक्राचार्य ने ही शिव की कठोर तपस्या कर मृत संजीवनी विद्या प्राप्त की, जिससे वह मृत शरीर में फिर से प्राण फूंक देते थे। ब्रह्मदेव की कृपा से यह शुक्र ग्रह के रूप में पूजनीय हैं। शुक्रवार शुक्र देव की उपासना का ही विशेष दिन है।
कौन है हिंदू धर्म के पांच प्रमुख देवता?
ReplyDeleteहिंदू धर्म मान्यताओं में पांच प्रमुख देवता पूजनीय है। ये एक ईश्वर के ही अलग-अलग रूप और शक्तियां हैं। जानिए इन पांच देवताओं के नाम और रोज उनकी पूजा से कौन-सी शक्ति व इच्छाएं पूरी होती हैं -
सूर्य - स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता
विष्णु - शांति व वैभव
शिव - ज्ञान व विद्या
शक्ति - शक्ति व सुरक्षा
गणेश - बुद्धि व विवेक
भगवान शिव का एक नाम है 'आशुतोष', क्या है इसका अर्थ?
ReplyDeleteभगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है। इस शब्द का मतलब जानें तो 'आशु' का अर्थ है - जल्द और 'तोष' यानी प्रसन्नता। इस तरह आशुतोष का अर्थ होता है- जल्द प्रसन्न होने वाला। पौराणिक प्रसंग उजागर करते हैं कि भगवान शिव भी भक्ति व पूजा के सरल उपायों से जल्द ही प्रसन्न होकर मन चाही इच्छा पूरी कर देते हैं। यही कारण है कि भगवान शिव 'आशुतोष' भी पुकारे जाते हैं।
हिन्दू धर्म के चार धाम कौन से और कहां है?
ReplyDeleteहिन्दू धर्म के चार धाम ये हैं-
1. बद्रीनाथ (उत्तराखंड)
2. द्वारका (गुजरात)
3. जगन्नाथपुरी (ओडिसा)
4. रामेश्वरम (तमिलनाडु)
तीर्थ परम्परा में उत्तराखंड या उत्तर दिशा के चार धामों (यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ व केदारनाथ) का भी महत्व है। यह यात्रा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर होती है, इसलिए यह यात्रा यमुनोत्री से शुरू होकर गंगोत्री, केदारनाथ के बाद बद्रीनाथ में जाकर पूरी होती है।
इन पवित्र धामों में भी गंगा नदी के दर्शन व स्नान का खास महत्व है। पुराणों के मुताबिक मां गंगा जगत के कल्याण व पापनाश के लिए ही नदी के रूप में स्वर्ग से धरती पर उतरी। इन चार धामों में गंगा के भी कई रूप और नाम हैं। मसलन, गंगोत्री में भागीरथी, केदारनाथ में मंदाकिनी और बद्रीनाथ में अलकनन्दा।
देवी शक्तिपीठ कितने हैं?
ReplyDeleteतंत्रचूड़ामणि ग्रंथ के मुताबिक देवी शक्तिपीठ की संख्या 52। वहीं, देवीभागवत के मुताबिक 108, देवीगीता के मुताबिक 72 बताई गई है। किंतु देवी पुराण (महाभागवत) में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है। इन्हीं 51 शक्ति पीठों की खास मान्यता है।
गुप्त नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जप करने से सभी सुखों की प्राप्ति संभव है। ये मंत्र बहुत ही चमत्कारी हैं अगर विधि-विधान से इनका जप किया जाए तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। मंत्र जप की विधि इस प्रकार है-
ReplyDelete- सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र पहनकर सबसे पहले माता दुर्गा की पूजा करें। इसके बाद एकांत में कुश के आसन पर बैठकर लाल चंदन के मोतियों की माला से इस मंत्र का जप करें।
- इस मंत्र की प्रतिदिन 5 माला जप करने से मन को शांति तथा प्रसन्नता मिलती है। यदि जप का समय, स्थान, आसन, तथा माला एक ही हो तो यह मंत्र शीघ्र ही सिद्ध हो जाता है।
सुंदर पत्नी के लिए मंत्र
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम।।
गरीबी मिटाने के लिए
ReplyDeleteदुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।
रक्षा के लिए
ReplyDeleteशूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
ReplyDeleteस्वर्ग और मुक्ति के लिए
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हदि संस्थिते।
स्वर्गापर्वदे देवि नारायणि नमोस्तु ते।।
मोक्ष प्राप्ति के लिए
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतु:।।
स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने का मंत्र
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।
सामूहिक कल्याण के लिए मंत्र
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।।
भय नाश के लिए
ReplyDeleteयस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु।।
रोग नाश के लिए
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
बाधा शांति के लिए
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्ैवरिविनासनम्।।
विपत्ति नाश के लिए मंत्र
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।