Friday, January 24, 2014

Santoshi Bhajan - Karti Hoon Tumhara Vrat Mein (HD)

182 comments:

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  4. हर इंसान के स्वभाव व व्यवहार में गुण या दोष होते हैं, किंतु जो इंसान अपने दोषों को नजरअंदाज कर दूसरों की कमियां ढूंढने की कवायद में लगा रहता है, वह अक्सर कलह, संताप, आरोप-प्रत्यारोप के जाल में जीवन को उलझाकर कुंठा या निराशा का शिकार होता है। यही वजह है कि रोजमर्रा की ज़िंदगी में उठते-बैठते अक्सर किसी भी रूप में कभी अपनी खामियां दूसरों का जीवन, तो कभी दूसरों की कमियां हमारी ज़िंदगी पर बुरा असर डालती हैं। ऐसी स्थितियां किसी भी इंसान को विवेकहीन बनाती हैं, यानी सही-गलत की समझ से दूर कर सकती हैं। जीवन को ऐसी नकारात्मक दशा से बचाने या बाहर आने के लिए धर्मग्रंथों में लिखी सीधी और साफ बातों पर गौर करें तो पल में जीवन की सारी मुश्किलों का हल मिल सकता है। इसी कड़ी में हिंदू धर्मग्रंथ गरुड़ पुराण में भी मृत्यु ही नहीं, जीवन से भी जुड़े ज्ञान व रहस्यों में सफलता व तरक्की के कई सूत्र व परेशानियों के समाधान भी मिलते हैं। गरुड़ पुराण में लिखा है कि- सद्भिरासीत सततं सद्भि: कुर्वीत संगतिम्। सद्भिर्विवाद मैत्रीं च नासद्भि: किंचिदाचरेत्।। पण्डितैश्च विनीतैश्च धर्मज्ञै: सत्यवादिभि:। बन्धनस्थोपि तिष्ठेच्च न तु राज्ये खलै: सह।। इस श्लोक में व्यावहारिक जीवन को साधने व तरक्की के लिए 5 बेहतरीन सूत्र उजागर किए गए हैं, जो इंसान के हर भ्रम व संशय को दूर कर देते हैं। ये हैं- - हमेशा सज्जनों यानी गुणी, ज्ञानी, दक्ष व सरल स्वभाव के इंसानों की संगति में रहें, क्योंकि ऐसी संगति से आप ऊर्जावान बने रहकर दिशाहीन होने से बचेंगे। - दोस्ती व विवाद भी करें तो सज्जनों से, क्योंकि उनसे वाद-विवाद के दौरान भी ज्ञान की बातों से कई हल सामने आते हैं।

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  5. पंडित यानी दक्ष, विनम्र, धर्म में आस्थावान, मन, वचन व कर्म से सच्चे इंसान हों, तो उनके साथ बंधन में भी रहना गलत नहीं होगा, क्योंकि ऐसा संग यश, लक्ष्मी व सफलता लाने वाला होता है।

    - दुर्जन यानी कुटिल, व्यसनी दुर्गुणी व बुरे स्वभाव के व्यक्ति के साथ न मित्रता करें न शत्रुता, क्योंकि उसके अनुचित या अनैतिक काम मित्र हों या शत्रु, दोनों के लिए कई तरह से जीवन में अशांति, कलह या संकट की वजह बन जाते हैं।

    - दुष्ट स्वभाव के व्यक्ति के साथ शाही व आलीशान जीवन भी मिले, तो वैसे व्यक्ति का साथ छोड़ देना चाहिए, क्योंकि आखिरकार वे अपयश व दु:ख का कारण बनते हैं।

    इसी कड़ी में हिंदू धर्मग्रंथ गरुड़ पुराण में भी व्यावहारिक जीवन में बुरे कर्मोंं की सजा प्रेत योनि मिलना भी बताया गया है। इसके पीछे मकसद यही है कि हर प्राणी सदाचार, संस्कार, मर्यादा व सद्कर्मों से जुड़कर रहे तो सुख-सम्मान भरा जीवन संभव है, अन्यथा उसकी भूत-प्रेत की तरह दुर्गति होना तय है।

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  6. दरअसल, गरुड़ पुराण जीवन को साधने की ही सीख देता है, ताकि मृत्यु के बाद कष्टों का सामना न करना पड़े। अन्यथा बीमारियों से तन की कमजोरी या अपवित्रता से लेकर अज्ञानता, बुरे बोल और बर्ताव से मिलने वाले गलत नतीजे, भारी दु:ख व अभाव भी शास्त्रों में बताई मृत्यु के बाद बुरे कामों से मिलने वाली सजा भुगतने या प्रेत योनि मिलने का जीते-जी एहसास ही है। जानिए, गरुड़ पुराण के मुताबिक क्या काम करने से मिलती है प्रेत योनि-

    मातरं भगिनीं ये च विष्णुस्मरणवर्जिता:।
    अदृष्दोषां त्यजति स प्रेतो जायते ध्रुवम्।
    भ्रातृधुग्ब्रह्महा गोघ्र: सुरापो गुरुतल्पग:।
    हेमक्षौमहरस्ताक्ष्र्य स वै प्रेतत्वमाप्रुयात्।।
    न्यासापहर्ता मित्रधु्रक् परदारतस्तथा।
    विश्वासघाती क्रूरस्तु स प्रेतो जायते ध्रुवम्।।
    कुलमार्गांश्चसंत्यज्य परधर्मतस्तथा।
    विद्यावृत्तविहीनश्च स प्रेतो जायते ध्रुवम्।।

    सरल शब्दों में जानिए इन बातों में उजागर दैनिक जीवन में किए ऐसे बुरे काम, जिनसे कोई व्यक्ति मरने पर प्रेत योनि में जाता है–

    - बेकसूर मां, बहन, पत्नी, बहू और कन्या को छोड़ देना।

    - गुरुपत्नी के प्रति दुर्भाव रखने वाला, भाई के साथ दगाबाजी करने वाला , गाय को मारने वाला, नशा करने वाला, किसी भी मनुष्य या ब्राह्मण को मृत्यु तुल्य दु:ख देने वाला व चोर।

    - परायी स्त्री से संबंध रखने वाला, घर में रखी अमानत को हरने वाला, मित्र के साथ धोखा करने वाला, विश्वासघाती व दुष्ट।

    - वह अज्ञानी व दुराचरण करने वाला, जो कुटुंब या परिवार की अच्छी परंपराओं व धर्म की राह छोड़े।

    सनातन धर्म में धर्म की रक्षा या पालन के लिए अहिंसा को भी अहम माना गया है। अहिंसा सत्य व प्रेम को कायम रख धर्म के जरिए जीवन के सारे मकसदों को पाना आसान बना देती है। इसी कड़ी में जानिए हिंसा से बचें व गरुड़ पुराण के मुताबिक किन पशु-पक्षियों को मारने का पाप उतारने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है।

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  7. शास्त्रों में अहिंसा की भावना इंसानी जीवन के लिए ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधों से लेकर हर जीव के लिए अहम मानी गई है। यह माना गया है कि हर जीव में ही शिव के रूप में ईश्वर का वास है। इसीलिए खासकर इंसान के लिए जीव हिंसा, यहां तक कि पेड़-पौधों को काटना भी अपराध ही माना गया है। इन जीवों में गाय, बकरे या बिल्ली जैसे पालतू पशुओं को जाने-अनजाने मारना पाप और देव अपराध माना गया है।

    जानिए गरुड़ पुराण में जाने-अनजाने गाय सहित अन्य पशु-पक्षियों को सताने या मारने या फिर पेड़-पौधों के नुकसान के प्रायश्चित के लिए भी क्या जरूरी उपाय बताए हैं-

    गोहत्या- हिंदू धर्म में गाय को देव प्राणी माना गया है। इसमें त्रिदेव से लेकर करोड़ों देवी-देवताओं का वास माना जाता है। इसलिए गोहत्या महापाप बताया गया है। गाय को मारने का पाप उतारने के लिए गाय के हत्यारे को एक माह तक पञ्चगव्य (गोमूत्र, गोबर, गाय का दूध, दही व घी की नियत मात्रा) का सेवन कर गोशाला में गायों की देखभाल करते हुए रहना पड़ता है। साथ ही, गाय का दान करना पड़ता है।

    इसके अलावा एक माह तक चन्द्रायण व्रत (चंद्रमा की तिथियों के घटने-बढ़ने के मुताबिक नियत संख्या में भोजन की मात्रा ग्रहण करना) व दूध पीकर ही पूरी तरह से पाप शुद्धि होती है।

    पेड़-पौधे- गाय या पशु ही नहीं पेड़, बेल या झाड़ी को काटने पर भी पाप से छुटकारे के लिए एक सौ बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए।

    अन्य पशु-पक्षी- जाने-अनजाने तोता मारने पर 2 साल का बछड़ा दान करना पड़ता है।

    - बकरा, भेड़ या गधे को मारने पर एक बैल का दान करना पड़ता है।

    - हाथी को मारने पर 5 नील बैलों (खास प्रजाति के बैल) का दान करना पड़ता है।

    - बिल्ली, मेढक, नेवले या किसी पालतू जानवर को मारने पर व्यक्ति को तीन रात दूध पीना चाहिए। इसके अलावा, पाद कृच्छ्रव्रत (इस व्रत में एक दिन सुबह, एक दिन शाम, एक दिन मांगा हुआ भोजन करना और एक दिन उपवास किया जाता है) का पालन करना पड़ता है।

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  8. सरकारी नौकरी किस को मिल सकती है :-
    १. यदि १० भाव में मंगल हो, या १० भाव पर मंगल की दृष्टी हो,
    २. यदि मंगल ८ वे भाव के अतिरिक्त कही पर भी उच्च राशी मकर (१०) का होतो।
    ३. मंगल केंद्र १, ४, ७, १०, या त्रिकोण ५, ९ में हो तो.
    ४. यदि लग्न से १० वे भाव में सूर्य (मेष) , या गुरू (४) उच्च राशी का हो तो। अथवा स्व राशी या मित्र राशी के हो।
    ५. लग्नेश (१) भाव के स्वामी की लग्न पर दृष्टी हो।
    ६. लग्नेश (१) +दशमेश (१०) की युति हो।
    ७. दशमेश (१०) केंद्र १, ४, ७, ७ , १० या त्रिकोण ५, ९ वे भाव में हो तो। उपरोक्त योग होने पर जातक को सरकारी नौकरी मिलती है। जितने ज्यादा योग होगे , उतना बड़ा पद प्राप्त होगा।

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  9. र्म ग्रंथों के अनुसार सामुद्रिक शास्त्र की रचना शिव पुत्र कार्तिकेय ने की है। इस ग्रंथ के अनुसार आज हम आपको कुछ ऐसे लक्षणों के बारे में बता रहे हैं, जिसे देखकर सौभाग्यशाली स्त्रियों के विषय में विचार किया जा सकता है-

    रक्ता व्यक्ता गभीरा च स्निग्धा पूर्णा च वर्तुला ।1।
    कररेखांनाया: स्याच्छुभा भाग्यानुसारत ।2।

    अंगुल्यश्च सुपर्वाणो दीर्घा वृत्ता: शुभा: कृशा।

    अर्थात्- जिस स्त्री के हाथ की रेखा लाल, स्पष्ट, गहरी, चिकनी, पूर्ण और गोलाकार हो तो वह स्त्री भाग्यशाली होती है। वह अपने जीवन में अनेक सुख भोगती है।

    जिन स्त्रियों की अंगुलियां लंबी, गोल, सुंदर और पतली हो तो वह शुभफल प्रदान करती हैं।

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  10. पूर्णचंद्रमुखी या च बालसूर्य-समप्रभा।
    विशालनेत्रा विम्बोष्ठी सा कन्या लभते सुखम् ।1।

    या च कांचनवर्णाभ रक्तपुष्परोरुहा।
    सहस्त्राणां तु नारीणां भवेत् सापि पतिव्रता ।2।

    अर्थात्- जिस कन्या का मुख चंद्रमा के समान गोल, शरीर का रंग गोरा, आंखें थोड़ी बड़ी और होंठ हल्की सी लालिमा लिए हुए हों तो वह कन्या अपने जीवन काल में सभी सुख भोगती है।

    जिस स्त्री के शरीर का रंग सोने के समान हो और हाथों का रंग कमल के समान गुलाबी हो तो वह हजारों पतिव्रताओं में प्रधान होती है।

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  11. ललनालोचने शस्ते रक्तान्ते कृष्णतारके।
    गोक्षीरवर्णविषदे सुस्निग्धे कृष्ण पक्ष्मणी ।1।

    राजहंसगतिर्वापि मत्तमातंगामिनि।
    सिंह शार्दूलमध्या च सा भवेत् सुखभागिनी ।2।

    अर्थात्- जिसके दोनों नेत्र प्रान्त (आंखों के ऊपर-नीचे की त्वचा) हल्के लाल, पुतली का रंग काला, सफेद भाग गाय के दूध के समान तथा बरौनी (भौहें) का रंग काला हो वह स्त्री सुलक्षणा होती है।

    जो स्त्री राजहंस तथा मतवाले हाथी के समान चलने वाली हो और जिसकी कमर सिंह अथवा बाघ के समान पतली हो तो वह स्त्री सुख भोगने वाली होती है।

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  12. गौरांगी वा तथा कृष्णा स्निग्धमंग मुखं तथा।
    दंता स्तनं शिरो यस्यां सा कन्या लभते सुखम् ।1।

    मृदंगी मृगनेत्रापि मृगजानु मृगोदरी।
    दासीजातापि सा कन्या राजानं पतिमाप्रुयात् ।2।

    अर्थात्- जो स्त्री गौरी अथवा सांवले रंग की हो, मुख, दांत व मस्तक स्निग्ध यानी चिकना हो तो वह भी बहुत भाग्यवान होती है और अपने कुल का नाम बढ़ाने वाली होती है।

    जिस नारी के अंग कोमल तथा नेत्र, जांघ और पेट हिरन के समान हो तो वह स्त्री दासी के गर्भ से उत्पन्न होकर भी राजा के समान पति को प्राप्त करती है।

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  13. अंभोज: मुकुलाकारमंगष्टांगुलि-सम्मुखम्।
    हस्तद्वयं मृगाक्षीणां बहुभोगाय जायते ।1।

    मृदु मध्योन्नतं रक्तं तलं पाण्योररंध्रकम्।
    प्रशस्तं शस्तरेखाढ्यमल्परेखं शुभश्रियम् ।2।

    अर्थात्- जिन महिलाओं के दोनों हाथ, अंगूठा और अंगुलियां सामने होकर कमल कलिका के समान पतली व सुंदर हों, ऐसी स्त्री सौभाग्यवती होती है।

    जिस स्त्री की हथेली कोमल, हल्की लाल, स्पष्ट, बीच का भाग उठा हुआ, अच्छी रेखाओं से युक्त होती है, वह स्त्री सौभाग्य और लक्ष्मी से युक्त होती है।

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  14. मत्स्येन सुभगा नारी स्वस्तिके वसुप्रदा।
    पद्मेन भूषते पत्नी जनयेद् भूपतिं सुतम् ।1।

    चक्रवर्तिस्त्रिया: पाणौ नद्यावर्त: प्रदक्षिण:।
    शंखातपत्रकमठा नृपमातृत्वसूचका: ।2।

    अर्थात्- जिस स्त्री की हथेली में मछली का चिह्न हो तो वह सुंदर, भाग्यशाली और स्वस्तिक का चिह्न हो तो धन देने वाली होती है। कमल का चिह्न हो तो राजपत्नी होकर भूमि का पालन करने वाला पुत्र पैदा करती है।

    जिस स्त्री की हथेली में दक्षिणावर्त मंडल का चिह्न हो ता वह चक्रवर्ती राजा की पटरानी होती है। शंख, छत्र और कछुए का चिह्न हो तो वह स्त्री राजमाता होती है।

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  15. तुलामानाकृती रेखा वणिक्पत्नित्वहेतुका ।1।
    गजवाजिवृषाकारा करे वामे मृगीदृशा ।।

    रेखा प्रसादज्राभा सूते तीर्थकरं सुतम्।
    कृषीबलस्य पत्नी स्याच्छकटेन मृगेण वा ।2।

    अर्थात्- जिन स्त्रियों के उल्टे हाथ की हथेली में तराजू, हाथी, घोड़े और बैल के चिह्न हों तो वह बनिए की स्त्री होती हैं।

    जिसके हाथ में वज्र और प्रासाद (कोठी) का चिह्न हो तो वह स्त्री तीर्थ करने वाले पुत्र को पैदा करती है। शकट और मृग का चिह्न हो तो वह किसान की स्त्री होती है।

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  16. त्रिशूलासगदाशक्ति - दुन्दुभ्याकृतिरेखया ।1।
    नितम्बिनी कीर्तिमती त्यागेन पृथिवीतले ।2।

    शुभद: सरलोअंगुष्ठो वृत्तो वृत्तनखो मृदु:।

    अर्थात्- जिस स्त्री की हथेली में त्रिशूल, तलवार, गदा, शक्ति और नगाड़े के आकार की रेखा हो तो वह दान के द्वारा कीर्ति प्राप्त करती है।

    जिन सुंदरियों के अंगूठे सीधे, गोल तथा नख गोल और कोमल हो तो शुभप्रद है।

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  17. 1- अगर आपके शरीर के दाहिने भाग में या सीधे हाथ में लगातार खुजली हो, तो समझ लेना चाहिए कि आपको धन लाभ होने वाला है।

    2- बैंक में पैसे जमा करने जाते समय अगर रास्ते में गाय आ जाए तो आपके धन संबंधित सभी काम पूरे होते हैं।

    3- यदि कोई सपने में देखे कि उस पर कानूनी मुकदमा चलाया जा रहा है, जिसमें वह निर्दोष छूट गया है, तो उसे अतुल धन संपदा की प्राप्ति होती है।

    4- यदि कोई सपने में अपने सीने को खुजाता है, तो उसे विरासत में संपत्ति मिलती है, यदि आंख खुजाता है, तो धन लाभ होता है।

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  18. 5- अगर आप धन से संबंधित किसी कार्य के लिए कहीं जा रहे हों और रास्ते में पीले वस्त्र पहने कोई सुंदर स्त्री या कन्या दिख जाए, तो इसे भी धन प्राप्ति का संकेत मानना चाहिए।

    6- किसी से लेन-देन करते समय यदि पैसा आपके हाथ से छूट जाए, तो समझना चाहिए कि धन लाभ होने वाला है।

    7- जो व्यक्ति सपने में मोती, मूंगा, हार, मुकुट आदि देखता है, उसके घर में लक्ष्मी स्थाई रूप से निवास करती है।

    8- जिसे स्वप्न में कुम्हार घड़ा बनाता हुआ दिखाई देता है, उसे बहुत धन लाभ होता है। जो व्यक्ति सपने में स्वयं को केश विहीन (गंजा) देखता है, उसे अतुल्य धन की प्राप्ति होती है।

    9- दीपावली के दिन यदि कोई किन्नर संज-संवर कर दिखाई दे, तो अवश्य ही धन लाभ होता है। ये धन लाभ अप्रत्याशित रूप से होता है।

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  19. 10- सोकर उठते ही सुबह-सुबह कोई भिखारी मांगने आ जाए, तो समझना चाहिए कि आपके द्वारा दिया गया पैसा (उधार) बिना मांगे ही मिलने वाला है। इसलिए भिखारी को अपने द्वार से कभी खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए।

    11- यदि कोई सपने में स्वयं को कच्छा पहनकर कपड़े में बटन लगाता देखता है, तो उसे धन के साथ मान-सम्मान भी मिलता है। यदि कोई स्वप्न में किसी को चेक लिखकर देता है, तो उसे विरासत में धन मिलता है तथा उसके व्यवसाय में भी वृद्धि होती है।

    12- गुरुवार के दिन कुंवारी कन्या पीले वस्त्रों में दिख जाए, तो इसे भी शुभ संकेत मानना चाहिए। ये भी धन लाभ होने के संकेत है।

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  20. 13- अगर आप धन से संबंधित किसी काम के लिए कहीं जाने के लिए कपड़े पहन रहे हों और उसी समय आपकी जेब से पैसे गिरें, तो यह आपके लिए धन प्राप्ति का संकेत है।

    14- यदि कोई सपने में दियासलाई जलाता है, तो उसे अनपेक्षित रूप से धन की प्राप्ति होती है। सपने में अगर किसी को धन उधार देते हैं, तो अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है।

    15- कहीं जाते समय नेवले द्वारा रास्ता काटना या नेवले का दिखना शुभ संकेत होता है। नेवला दिखना धन लाभ का संकेत होता है। आप सोकर उठे हों और उसी समय नेवला आपको दिख जाए तो गुप्त धन मिलने की संभावना रहती है।

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  21. 16- सपने में यदि गर्दन में मोच आ जाए, तो भी धन लाभ होता है। यदि पका हुआ संतरा देखे तो शीघ्र ही अतुल धन-संपत्ति प्राप्त होती है। जो सपने में खेत में पके हुए गेहूं देखता है, वह शीघ्र ही धनवान बन जाता है।

    17- शुक्रवार के दिन कपिला गाय (केसरिया रंग की) के दर्शन होना भी बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा हो जाए तो समझना चाहिए कहीं से अचानक धन प्राप्ति के योग बन रहे हैं।

    18- जो व्यक्ति सपने में फल-फूलों का भक्षण करता है, उसे धन लाभ होता है। जो स्वप्न में धूम्रपान करता है, उसे भी धन प्राप्ति होती है। सपने में जिसके दाहिने हाथ में सफेद रंग का सांप काट ले, उसे बहुत से धन की प्राप्ति होती है।

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  22. 19- कुत्ता यदि अचानक धरती पर अपना सिर रगड़े और यह क्रिया बार-बार करे तो उस स्थान पर गढ़ा धन होने की संभावना होती है। यदि यात्रा करते समय किसी व्यक्ति को कुत्ता अपने मुख में रोटी, पूड़ी या अन्य कोई खाद्य पदार्थ लाता दिखे, तो उस व्यक्ति को धन लाभ होता है।

    20- जो व्यक्ति सपने में मूत्र, वीर्य, विष्ठा व वमन का सेवन करता है, वह निश्चित ही महा धनी हो जाता है। यदि कोई व्यक्ति सपने में अपनी प्रेमिका से संबंध विच्छेद कर लेता है, तो उसे विरासत में धन की प्राप्ति होती है।

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  23. 21- यदि कोई यात्री घर को लौट रहा हो और गधा उसके बांई ओर रेंके तो उसे थोड़े समय बाद धन लाभ होता है। यदि किसी व्यक्ति को किसी गांव, नगर अथवा मकान में प्रवेश करते समय सुअर अपनी दाहिनी ओर दिख जाए तो उसे लाभ मिलता है।

    22- जिसे सपने में ऊंट दिखाई देता है, उसे अपार धन लाभ होता है। स्वप्न में हरी फुलवारी तथा अनार देखने वाले को भी धन प्राप्ति के योग बनते हैं। सपने में यदि गड़ा हुआ धन दिखाई दे, तो उसके धन में अतुलनीय वृद्धि होती है।

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  24. घर में रखें गणेश जी की ऐसी प्रतिमा

    गणेश जी यूं तो हर रुप में मंगलकारी हैं। लेकिन धन और सुख में बाधा को दूर करने के लिए नृत्य करती हुई गणेश जी की प्रतिमा घर में रखना बहुत ही शुभ होता है।

    गणेश जी की ऐसी प्रतिमा को इस प्रकार रखना चाहिए कि घर के मुख्य द्वार पर गणेश की जी दृष्टि रहे। प्रतिमा नहीं होने पर तस्वीर भी लगा सकते हैं।

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  25. घर में रखें ऐसी बांसुरी

    बांसुरी को वास्तु दोष दूर करने में बहुत ही कारगर माना गया है। आर्थिक समस्याओं से मुक्ति के लिए व्यक्ति को चांदी की बांसुरी घर में रखना चाहिए। आप चाहें तो सोने की बांसुरी भी रख सकते हैं।

    वास्तुशास्त्र में कहा गया है कि सोने की बांसुरी घर में रखने से घर में लक्ष्मी का वास बना रहता है। अगर सोने अथवा चांदी का बांसुरी रखना संभव नहीं हो तो बांस से बनी बांसुरी घर में रख सकते हैं।

    इससे भी वास्तु दोष दूर होता है और धन आगमन के स्रोत बनने लगते हैं। शिक्षा, व्यवसाय या नौकरी में बाधा आने पर शयन कक्ष के दरवाजे पर दो बांसुरियों को लगाना शुभ फलदायी होता है।

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  26. पूजा घर में उत्तर की ओर रखें इन्हें

    देवी लक्ष्मी की तस्वीर या मूर्ति आपके घर में जरुर होगी लेकिन धन में वृद्घि के लिए लक्ष्मी के साथ घर में कुबेर की मूर्ति या तस्वीर जरुर होनी चाहिए।

    क्योंकि लक्ष्मी धन का सुख देती हैं लेकिन आय के बिना धन का सुख संभव नहीं है। आय कुबेर महाराज प्रदान करते हैं। इसलिए दोनों एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं। कुबेर महाराज उत्तर दिशा के स्वामी हैं इसलिए इन्हें हमेशा उत्तर दिशा में ही रखें।
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  27. घर में रखें यह शंख लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी

    वास्तु विज्ञान के अनुसार शंख में वास्तु दोष दूर करने की अद्भुत क्षमता है। जहां नियमित शंख का घोष होता वहां के आस-पास की हवा भी शुद्घ और सकारात्मक हो जाती है।

    शास्त्रों में कहा गया है जिन घरों में देवी लक्ष्मी के हाथों में शोभा पाने वाला दक्षिणवर्ती शंख होता है वहां लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं। ऐसे घर में धन संबंधी परेशानी कभी नहीं आती है।

    इस शंख को लाल कपड़े में लपेटकर पूजा स्थान में रखना चाहिए और नियमित इसकी पूजा करनी चाहिए।

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  28. धन वृद्घि करता है यह नारियल

    नारियल को श्रीफल कहा गया है। श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी इसलिए नारियल को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। इनमें एकाक्षी नारियल बहुत ही शुभ होता है।

    जिस घर में इसकी नियमित पूजा होती है वहां नकारात्मक शक्तियां नहीं ठहरती हैं। घर में दिनानुदिन उन्नति होती रहती है। लोग खुशहाल रहते हैं।

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  29. धन वृद्घि करता है यह नारियल

    नारियल को श्रीफल कहा गया है। श्री का अर्थ होता है लक्ष्मी इसलिए नारियल को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। इनमें एकाक्षी नारियल बहुत ही शुभ होता है।

    जिस घर में इसकी नियमित पूजा होती है वहां नकारात्मक शक्तियां नहीं ठहरती हैं। घर में दिनानुदिन उन्नति होती रहती है। लोग खुशहाल रहते हैं।

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  30. गंगा दशहरा

    ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है. इस दिन पवित्र नदी गंगा जी भागीरथ द्वारा स्वर्ग लोग से पृ्थ्वी लोक पर अवतीर्ण हुई थी. इस दिन स्नान, दान, तर्पण से जीवन के समस्त पापों का नाश होता है.यही कारण है, कि इस पर्व का नाम दशहरा पडा है. पर्वों की श्रेणी में गंगा दशहरा श्रद्वा और विश्वास का पर्व है. प्राचीन पुराण के अनुसार इस तिथि में स्नान, दान करना विशेष कल्याणकारी रहता है. सभी नदियों में गंगा नदी को सबसे अधिक पवित्र और पापमोचिनी माना गया है. गंगा में डूबकी लगाने से मनुष्यों को मुक्ति प्राप्त होती है.

    ऋषि भागीरथ ने अपनी कई वर्षो की कठोर तपस्या कर गंगा को पृ्थ्वी पर आने के लिये मनाया था. गंगा दशहरा पर्व पर प्यासे राहगीरों को शर्बल पिलाकर उनकी प्यास बुझाना कल्याणकारी माना जाता है. इस दिन भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बडे-बडे मेलों का आयोजन किया जाता है. जगह-जगह पर प्याऊ लगाने के साथ साथ इस दिन छतरी, वस्त्र, जूते और गर्मी की ताप से बचने के सभी साधनों को दान में देना शुभ माना जाता है. यह सभी कार्य करने से व्यक्ति के पाप दूर होते है. और वह सदमार्ग की ओर अग्रसर होता है.

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  31. निर्जला एकादशी की कथा

    निर्जला एकादशी से संबंधित एक कथा काफी प्रचलित है। यह कथा महाभारत की है। कथा के अनुसार एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामाह, आपने प्रति पक्ष (एक माह में दो पक्ष होते हैं। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। यानी एक माह में दो एकादशी आती हैं।) एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी बिना भोजन नहीं रह सकता।

    भीम ने आगे कहा कि मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे दिन में कई बार भोजन करना पड़ता है। क्या अपनी भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊंगा?

    भीम के इस प्रश्न के उत्तर में महर्षि ने कहा कि भीम, पूरे वर्ष में सिर्फ एक एकादशी ऐसी है जो वर्षभर की चौबीस एकादशियों का पुण्य दिला सकती है। वह एकादशी है ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी। जो भी व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है उसे एक ही व्रत से सभी एकादशियों के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है। अत: भीम तुम इस एकादशी का व्रत करो। भीम निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिए सहमत हो गए। इसलिए इसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

    आज भी जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है, उसे अक्षय पुण्य प्राप्त होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

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  32. निर्जला एकादशी का व्रत किस प्रकार किया जाना चाहिए यह विधि इस प्रकार है...

    इस एकादशी पर जलपान करना वर्जित किया गया है। अत: इस दिन पानी भी नहीं पीना चाहिए। हालांकि, आज के दौर में ऐसा कर पाना काफी मुश्किल है, अत: जब प्यास असहनीय हो जाए तब दूध पान किया जा सकता है। थोड़ा बहुत फलाहार भी किया जा सकता है। वैसे इस दिन निर्जल और निराहार रहने पर अधिक पुण्य प्राप्त होता है।

    इस एकादशी पर निर्जल रहकर उपवास करना होता है, इसी वजह से इस एकादशी का नाम निर्जला एकादशी पड़ा है। यह व्रत अत्यंत कठिन और सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना गया है।

    इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पंचोपचार से पूजा करें। इसके पश्चात मन को शांत रखते हुए दिव्य मंत्र 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करें। शाम को भगवान की पूजा करें व रात में भजन-कीर्तन करते हुए धरती पर विश्राम करें।

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  33. निर्जला एकादशी के दूसरे दिन किसी योग्य ब्राह्मण को अपने घर आमंत्रित करें और उसे भोजन कराएं। इसके बाद जल से भरे कलश के ऊपर सफेद वस्त्र ढंकें और उस पर शक्कर व दक्षिणा रखें। अब इस कलश का दान ब्राह्मण को कर दें। साथ ही, यथाशक्ति अन्न, वस्त्र, आसन, जूता, छतरी, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। अंत में स्वयं भोजन करें।

    जल कलश का दान- धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल प्राप्त होता है। हम वर्ष की 23 एकादशियों में फलाहार और अन्न खाते हैं, इससे दोष उत्पन्न होता है। अत: निर्जला एकादशी का व्रत करने से अन्य 23 एकादशियों पर अन्न खाने का दोष दूर हो जाता है। इस प्रकार निर्जला एकादशी का व्रत करने वाला सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है।

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  34. एक अन्य कथा के अनुसार एक बार महर्षि व्यास पांडवों के आवास पर पधारे। जब महाबली भीम ने महर्षि से कहा कि युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी वर्षभर की एकादशियों का व्रत रखते हैं और मुझे भी व्रत रखने के प्रेरित करते हैं, लेकिन मैं बिना खाना खाए नहीं रह सकता हूं।

    महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में वृक नामक अग्नि है इसलिए वह अधिक मात्रा में भोजन करता है। इसी अग्नि के कारण भीम बिना खाना खाए नहीं रह सकता है। तब महर्षि ने भीम को कहा कि तुम ज्येष्ठ शुक्ल निर्जला एकादशी का व्रत करो।

    निर्जला एकादशी व्रत में थोड़ा सा पानी पीने से दोष नहीं लगता है। इस व्रत से अन्य 23 एकादशियो का पुण्य भी प्राप्त हो जाता है। भीम ने साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया। परिणामस्वरूप निर्जला एकादशी के अगले दिन सुबह के समय भीम बेहाल हो गए। तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी, चरणामृत प्रसाद, देकर भीम की मुर्छा दूर की। इसलिए इस एकादशी को भीमसेन एकादशी भी कहते कहा जाता है।

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  35. हर व्यक्ति चाहता है कि उसे समाज में मान-सम्मान मिले। लेकिन कई लोगों के जीवन में कुछ ऐसे हालात बन जाते हैं कि उन्हें बार-बार बदनामी का सामना करना पड़ता है। वास्तु गुरु कुलदीप सालूजा कहते हैं कि इसका एक कारण उनका घर और उसका वास्तु होता है।

    1. जिस जमीन पर आपका घर है उसकी उत्तर दिशा और ईशान कोण ऊंचे हों और अन्य दिशा नीचे हों तो भूमि के स्वामी को बदनामी का सामना करना पड़ता है।

    2. जिस घर के आग्नेय कोण में बहुत ज्यादा मात्रा में खाद्य पदार्थ रखे जाते हैं। किसी भी रुप में अधिक मात्रा में पानी का जमाव हो जैसे वॉटर टैंक, अंडरग्राउंड वॉटर टैंक तो उस घर में रहने वाले व्यक्ति की कन्या को बदनामी का सामना करना पड़ता है।


    3. जिनके घर में दक्षिण-नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ होता है उनके घर में स्त्रियों को बदनामी के कारण कष्ट होता है। घर का पश्चिम-नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ हो तो पुरुषों की बदनामी होती है।

    4. घर में दक्षिण दिशा बढ़ा हुआ हो और पश्चिम नैऋत्य से मिलकर कोने का निर्माण करता है तो यह स्त्री पुरुष दोनों की बदनामी की संभावना को बढ़ाता है।

    5. घर के मुख्यद्वार की चैखट काले रंग की हो या उस पर काला रंग किया गया हो तो घर के मुखिया के साथ धोखा होता है, उस पर झूठे आरोप लगते हैं।

    6. घर के मुख्यद्वार के साथ सीधे हाथ की खिड़की के पास टूटी-फूटी हालत में दीवार हो, प्लास्टर उखड़ा हुआ हो या खिड़की टूटी हुई हो तो मरम्मत करवा लेनी चाहिए। ऐसा नहीं होने से घर के मुखिया को समाज में मानहानि का सामना करना पड़ता है।

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  36. आपने देखा होगा कि कुछ लोग अपने दरवाजे पर सरसो का तेल और सिंदूर का टीका लगा कर रखते हैं। खासतौर पर दीपावाली के दिन तो जरुर ही तेल और सिंदूर लगाते हैं। क्या आप जानते हैं इसके पीछे क्या कारण है।

    वास्तु विज्ञान के अनुसार दरवाजे पर सिंदूर और तेल लगाने से घर में नकारात्मक उर्जा का प्रवेश नहीं होता है। यह घर में मौजूद वास्तुदोष को भी दूर करने में कारगर माना जाता है।

    वास्तु विशेषज्ञ कुलदीप सालूजा के अनुसार दरवाजे पर सिंदूर लगाने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। जबकि सरसों का तेल शनि का प्रतिनिधि माना जाता है जो बुरी नजरों से रक्षा करता है।


    जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से दरवाजे पर तेल लगाने से दरवाजा लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। इसलिए दरवाजे पर सिंदूर लगाने की परंपरा रही है।

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  37. घर में मकड़ी का जाला देखकर सबसे पहले आपके मन में क्या आता है। आप सोचते होंगे कि, कितना गंदा लग रहा है इसे जल्दी से जल्दी हटा दिया जाए।

    शकुन शास्त्र में और बड़े-बुर्जुगों का कहना है कि घर में मकड़ी का जाला नहीं होना चाहिए इससे नकारात्मक उर्जा का संचार होता है। इससे जीवन में कई प्रकार की उलझनें आने लगती हैं।

    लेकिन एक मान्यता यह भी है कि मकड़ी का जाला आपकी किस्मत का ताला भी खोल सकता है। लेकिन इसकी शर्त यह है कि मकड़ी के जाले में आपको अपने हस्ताक्षर या नाम की आकृति दिख जाए।



    मान्यता है कि मकड़ी के जाले में इस तरह के चिन्ह का दिखना शुभ संकेत होता है। इससे आने वाले दिनों में कोई बड़ा लाभ या अच्छी ख़बर मिलती है।

    इसलिए दीपावली के मौके पर घर की साफ-सफाई करते वक्त मकड़ी के जाले को हटाते समय एक नजर जाले की आकृति पर भी डालें। क्या पता इस दीपावली आपको कोई बड़ा फायदा मिल जाए।

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  38. गरीब आदमी के अमीर बनने में वक्त नहीं लगता

    समय हमेशा एक जैसा नहीं होता है। जैसे सुबह के बाद शाम का आना तय है उसी तरह शाम के बाद सुबह आना भी निश्चित है। ठीक इसी तरह यह जरूरी नहीं है कि जो व्यक्ति आज गरीब है वह हमेशा गरीब ही रहेगा। भाग्य के करवट बदलने की देरी है बस, गरीब आदमी के अमीर बनने में वक्त नहीं लगता है।
    भाग्य के करवट लेने पर अगर बहुत बड़े धन्ना सेठ नहीं बने तो भी आर्थिक समस्याओं से राहत तो मिल ही जाती है। इस विषय में कुछ पुरानी मान्यताएं हैं। जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों तक पहुंचता रहा है। ऐसे ही कुछ संकेत यहां हम बता रहे हैं जिनसे आप समझ सकते हैं कि भाग्य करवट लेने वाला है।

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  39. राह में मिल जाए ऐसी वस्तु

    राह चलते हुए कुछ चीजों का मिलना बड़ा ही सौभाग्यशाली होता है। इनमें शंख, स्वास्तिक चिन्ह, घोड़े की नाल एवं सिक्का शामिल है। कागज का रूपया इसमें शामिल नहीं है। इन चीजों को आदर सहित उठाकर प्रणाम करना चाहिए।
    घर के आंगन या बगीचे में गड्ढ़ा खोदकर गाड़ देना चाहिए। अगर ऐसा नहीं कर सकें तो पूजा घर में रख दें। इससे भाग्य उन्नत होता है और लाभ के अवसर बार-बार मिलने लगते हैं।

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  40. डरें नहीं आने वाली है खुशी

    अगर आप सांप देखते ही डर के मारे कांपने लगते हैं तो इस डर को मन से निकाल दीजिए। पौराणिक मान्यता के अनुसार सांप उस स्थान पर दिखने लगते हैं जहां धन आने वाला होता है या जिस जमीन में पहले से खूब धन होता है।
    अगर आपके घर के आंगन में नाग नागीन का जोड़ा कहीं से आ जाए तो यह अच्छा शगुन होता है। ऐसे में नाग को मारने की बजाय नाग-नागिन एवं भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।

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  41. क्या ऐसे पहन लिए कपड़े?

    कई बार हम लोग किसी और ख्याल में होते हैं। ऐसे में करना कुछ और होता है, कर कुछ और लेते हैं। अगर आपके साथ भी ऐसा कुछ होता है और आप गलती से उल्टा कपड़ा पहन लेते हैं तो लोगों के सामने शर्माने की जरूरत नहीं है। यह संकेत है कि आपको जल्दी ही कहीं से कोई अच्छी खबर या धन का लाभ होने वाला है।
    कुछ स्थानों पर उल्टा कपड़ा पहन लेने पर ऐसा भी माना जाता है कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आने वाली हैं। इसलिए सेहत के मामले में लापरवाही से बचने की कोशिश करें। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तभी धन और वैभव का आनंद ले सकेंगे।

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  42. छी छी कैसा सपना देख लिया

    कभी-कभी सपना भी बताता है कि, भाग्य करवट लेने वाला है। ऐसा ही एक सपना है कि आप खुद को मल में लेटे हुए अथवा मल छूते हुए देखें। यह सपना देखकर आप नाक भौंह सिकोड़ सकते हैं। लेकिन यह सपना बड़े ही भाग्य से आता है।
    यह बताता है कि सुख के दिन आने वाले हैं। कहीं से खूब लाभ मिलेगा। वैसे सुखद सपने ही लाभ के संकेत देते हैं। ऐसा ही एक सपना है गहनों से लदी कन्या का हाथ में फूल लिए नजर आना।

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  43. ज्योतिष में शरीर के लक्षणों के देखकर व्यक्तित्व और भविष्य बताने की विधि को सामुद्रिक विद्या कहते हैं। ये ज्योतिष का अभिन्न अंग है। सामुद्रिक विद्या के अनुसार मनुष्य के सिर से लेकर पैर तक हर अंग के अपने कुछ लक्षण होते हैं, उसकी बनावट, आकार और रंग हमारे व्यक्तित्व के रहस्यों पर तो रोशनी डालते ही हैं, साथ ही भविष्य भी बताते हैं। किसी भी व्यक्ति के चेहरे को देखकर ये आसानी से बताया जा सकता है कि वो व्यवहार, आचार-विचार और कार्यक्षेत्र में कैसा है।

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  44. चेहरे का आकार बताता है...

    - गोल चेहरे वाले व्यक्ति भावुक और सबकी परवाह करने वाले धनी होते हैं।
    - चौकोर चेहरे वाले व्यक्ति आक्रामक और महत्वाकांक्षी प्रवृत्ति के होते हैं। इन्हें गुस्सा जल्दी आता है और ठंडा हो जाता है।
    - जिन लोगों का चेहरा ओवल कट वाला होता है, वे लोग हर काम को लेकर प्रैक्टिकल अर्पोच रखते हैं।
    - त्रिकोण चेहरे वाले लोग ऊजार्वान होते हैं, लेकिन काम करते समय उनमें वह स्टेमिना दिखाई नहीं देता है।

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  45. यदि चेहरे की लंबाई की तुलना में व्यक्ति का चेहरा 70 प्रतिशत तक वाइड है तो वह व्यक्ति आत्मविश्वासी है।

    - आंखों से आईब्रो के बीच की दूरी ज्यादा और आईब्रो तनी रहती है तो ऐसे व्यक्ति जल्दी घुल-मिल जाते हैं।

    - जिनकी आंखों का रंग गहरा या डार्क होता है, वे जल्दी किसी को भी आकर्षित कर लेते हैं।

    - पलकें यदि घनी हैं तो ऐसे व्यक्ति ज्यादा एनालिटिकल होते हैं। जबकि, पतली पलकों वाले व्यक्ति जल्दी में काम करना जानते हैं।

    - व्यक्ति के ऊपरी होंठ भरे हुए हों तो वह उदार होता है। पतले होंठ वाले व्यक्ति कंजूस होते हैं।

    - नाक और ऊपरी होंठ के बीच दूरी अधिक है तो सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का है। अन्य मजाक पसंद नहीं करते।

    - दोनों आंखों के बीच की दूरी पर निर्भर है। यदि दूरी ज्यादा है तो ऐसे लोग सहनशील होते हैं।

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  46. चेहरे पर मुस्कान लिए हुए किसी बच्चे को देखकर अकसर मुंह से निकल जाता है कि कितना क्यूट है, लेिकन क्या क्यूटनेस का कोई पैमाना होता है? जवाब है हां। हाल ही में हुए एक रिसर्च के बाद डॉक्टर्स ने तय किया है कि किस तरह के चेहरे की बनावट वाले व्यक्ति को क्यूट की कैटगरी में रखा जाएगा। चेहरे के आधार पर क्यूटनेस को परखने के लिए वैज्ञािनकों ने इस अध्ययन में 90 वयस्क लोगों को 200 चेहरे दिखाए। इनसे मिले जवाबों के आधार पर तय किया गया कि गुलाबी रंगत, भरे हुए गाल, बड़ी-बड़ी आंखें, छोटी-सी बटन की तरह नाक और छोटी सी ठुड्डी है तो वह बच्चा हो या फिर बड़ा, क्यूट कहलाएगा। ये तो हुई क्यूटनेस की बात, लेकिन व्यक्ति का चेहरा उसके पूरे व्यक्तित्व का आईना भी होता है। इससे सेहत और मन का हाल आसानी से पढ़ा जा सकता है।

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  47. माथे पर आड़ी लकीरें: ये आपके पाचन तंत्र में गड़बड़ी का संकेत हैं। रोज सुबह नींबू पानी पीना ठीक रहेगा। वहीं माथे पर पिम्पल्स होना लिवर और पेट में समस्या होने की जानकारी देता है।

    आंखों बीच लाइनें खिंचना: ये लिवर पर पड़ रहे दबाव को बताती हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। धीरे-धीरे आईब्रो के आसपास मसाज करें।

    आंखों की नीचे काले घेरे: ये बताते हैं कि आपके खून में आयरन की कमी है। कॉफी, चाय कम, फिज़ी ड्रिंक कम पिएं। पूरी नींद नहीं लेने से भी ये दिखाई देते हैं।

    कानों में खुजली: ये आमतौर पर एलर्जी की वजह से होती है। सिरोसिस और एक्जिमा भी हो सकता है। इसलिए पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी लें।

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  48. मुंह के आसपास झुर्रियां: बढ़ती उम्र का पता बताने वाली ये झुर्रियां अकसर स्मोकिंग की वजह से भी होती हैं। लिप बाम लगाकर इन्हें कम कर सकते हैं।

    होंठ के किनारे कटना: विटामिन बी की कमी को दर्शाता है। डाइट में होलग्रेन और हरी सब्जियां शामिल करें।

    सूखे होंठ: डिहाइड्रेशन, विटामिन बी और आयरन की कमी बताते हैं। खूब सारा पानी पिएं और पोषक आहार लें।

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  49. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली सिंह लग्न की है और उसके नवम भाव सूर्य स्थित है तो उन लोगों भाग्य एवं धर्म के संबंध में प्रबल शक्ति प्राप्त होती है। सिंह लग्न के नवम भाव मेष राशि का स्वामी मंगल है। यह स्थान धर्म एवं भाग्य का कारक स्थान है। यहां सूर्य होने पर व्यक्ति को भाग्य का साथ मिलता है और उसे कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। इन लोगों का धर्म और ईश्वर में विश्वास होता है।

    सिंह लग्न की कुंडली के दशम भाव में सूर्य स्थित हो तो...

    जिन लोगों की कुंडली के दशम भाव में सूर्य स्थित है वे लोग पिता की ओर से कुछ वैमनस्य का सामना करते हैं। कुंडली का दसवां भाव राज्य एवं पिता का कारक स्थान है। सिंह लग्न में दशम भाव वृष राशि का स्वामी शुक्र है। शुक्र की इस राशि में सूर्य होने पर व्यक्ति सफलता एवं उन्नति के लिए लगातार प्रयास करता है।

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  50. व्यवसाय में लाभ के लिए जरूरी है कि आप जहां कारोबार कर रहे हैं वहां धन आगमन की अनुकूल स्थिति हो। यह अनुकूल स्थिति तब बनती है जब दुकान या व्यापारिक प्रतिष्ठान का वास्तु सही हो नहीं तो मेहनत और समय खर्च करने के बाद भी लाभ को लेकर निराशा जनक स्थिति बनी रहती है।



    वास्तु विज्ञान के अनुसार व्यापार में बेहतर लाभ पाने के लिए सबसे पहले तो यह करें कि व्यापारिक प्रतिष्ठान की दीवारों पर गहरे रंग नहीं लगवाएं। सफेद, क्रीम एवं दूसरे हल्के रंगों का प्रयोग सकारात्मक उर्जा का संचार करता है जो लाभ वृद्घि में सहायक होता है। दीपावली आने वाली है तो रंग-रोगन करवाते समय इन बातों का ध्यान रखिएगा।
    दूसरी बात जो गौर करने की है वह यह है कि व्यापारिक प्रतिष्ठान का दरवाजा अंदर की ओर खुले। बाहर की ओर दरवाजे का खुलना लाभ को कम करता है क्योंकि आय के साथ व्यय भी बढ़ा रहता है।
    दुकानों में उत्तर एवं पश्चिम दिशा की ओर शोकेस का निर्माण करवाना चाहिए। इससे खरीदारों की संख्या बढ़ती है। धन में वृद्घि के लिए तिजोरी का मुंह उत्तर की ओर रखें क्योंकि यह देवाताओं के कोषाध्याक्ष कुबेर की दिशा है।
    अगर आपके व्यापारिक प्रतिष्ठा में सीढ़ियां बनी हुई है तो इस बात का ध्यान रखें कि सीढ़ियों की संख्या सम नहीं होनी चाहिए।

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  51. शनि शांति के उपाय

    1) कांसे के बर्तन में सरसों का तेल भरकर तथा अपना चेहरा देखकर संकल्प लेकर पंडित को दान दें।

    2) दान देने वाले व्यक्ति घर की दहलीज के अंदर खड़े रहें और पंडित को दहलीज के बाहर खड़ा कर लहसुन, तेल, लोहा, काला वस्त्र, कंबल इत्यादि दक्षिणा सहित दान दें

    3) प्रात:काल के समय पीपल का पूजन कर तेल का दीपक लगाकर परिक्रमा करें

    4) हनुमान चालीसा तथा शनि चालीसा का नित्य पाठ करें। मंगलवार तथा शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करें

    5) पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए वर्षभर प्रत्येक शनिवार बहते जल में पानी वाले नारियल, काले कपड़े में लोहा, काला तिल बांधकर अपने पर से उतारकर शनि महाराज से प्रार्थना कर बहा दें

    6) शनि मंत्र के जप करें या करवाएं।

    मंत्र है- 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।।'

    या

    'ॐ शं शनये नम:।।

    7) ज्योतिषी से सलाह लेकर मध्यमा अंगुली में नीलम या काले घोड़े अथवा नाव की कील की अंगूठी धारण करें। बिच्छू घास को हाथ में बांधा जा सकता है।

    8) महामृत्युंजय के जप करें या करवाएं।

    9) राजा दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ या हनुमान बाहुक का पाठ नित्य करें।

    10) विशेषकर सामाजिक कानून के खिलाफ या अन्यायपूर्ण कोई कार्य न करें।

    शनि न्याय के देवता हैं। वे अपनी दशा में जातक द्वारा किए गए कर्मों का फल देते हैं।

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  52. द्वादश भावों में राहु
    राहु प्रथम भाव में शत्रुनाशक अल्प संतति मस्तिष्क रोगी स्वार्थी सेवक प्रवृत्ति का बनाता है।
    राहु दूसरे भाव में कुटुम्ब नाशक अल्प संतति मिथ्या भाषी कृपण और शत्रु हन्ता बनाता है।
    राहु तीसरे भाव में विवेकी बलिष्ठ विद्वान और व्यवसायी बनाता है।
    राहु चौथे भाव में स्वभाव से क्रूर कम बोलने वाला असंतोषी और माता को कष्ट देने वाला होता है।
    राहु पंचम भाग्यवान कर्मठ कुलनाशक और जीवन साथी को सदा कष्ट देने वाला होता है।
    राहु छठे भाव में बलवान धैर्यवान दीर्घवान अनिष्टकारक और शत्रुहन्ता बनाता है।
    राहु सप्तम भाव में चतुर लोभी वातरोगी दुष्कर्म प्रवृत्त एकाधिक विवाह और बेशर्म बनाता है।
    राहु आठवें भाव में कठोर परिश्रमी बुद्धिमान कामी गुप्त रोगी बनाता है।
    राहु नवें भाव में सदगुणी परिश्रमी लेकिन भाग्य में अंधकार देने वाला होता है।
    राहु दसवें भाव में व्यसनी शौकीन सुन्दरियों पर आसक्त नीच कर्म करने वाला होता है।
    राहु ग्यारहवें भाव में मंदमति लाभहीन परिश्रम करने वाला अनिष्ट्कारक और सतर्क रखने वाला बनाता है।
    राहु बारहवें भाव में मंदमति विवेकहीन दुर्जनों की संगति करवाने वाला बनाता है।

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  53. इस मंत्र से होने लगी धन की बरसात

    आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र मंत्र ऐसा सिद्घ मंत्र माना जाता है जिसके नियमित पाठ से देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव घर में बनी रहती है। इसी मंत्र से शंकराचार्य ने सोने की बरसात करवा दी थी इसलिए इस मंत्र को कनकधारा स्तोत्र कहा जाता है। आप भी धन वृद्घि के लिए नियमित इस स्तोत्र का पाठ करें।

    अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
    अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

    मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
    माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

    विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

    आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
    आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

    बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
    कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

    कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
    मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

    प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
    मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

    दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
    दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

    इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
    दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

    गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
    सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

    श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
    शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

    नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
    नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

    सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
    त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

    यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
    संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

    सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

    दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
    प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

    कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
    अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

    स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
    गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

    ।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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  54. इस मंत्र से होने लगी धन की बरसात

    आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र मंत्र ऐसा सिद्घ मंत्र माना जाता है जिसके नियमित पाठ से देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव घर में बनी रहती है। इसी मंत्र से शंकराचार्य ने सोने की बरसात करवा दी थी इसलिए इस मंत्र को कनकधारा स्तोत्र कहा जाता है। आप भी धन वृद्घि के लिए नियमित इस स्तोत्र का पाठ करें।

    अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
    अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

    मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
    माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

    विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

    आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
    आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

    बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
    कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

    कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
    मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

    प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
    मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

    दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
    दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

    इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
    दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

    गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
    सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

    श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
    शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

    नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
    नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

    सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
    त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

    यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
    संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

    सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

    दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
    प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

    कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
    अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

    स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
    गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

    ।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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  55. राहुकाल में शुरू किए गए किसी भी शुभ कार्य में हमेशा कोई न कोई विघ्न आता है। अगर इस समय में कोई व्यापार प्रारंभ किया गया हो तो वह घाटे में आकर बंद हो जाता है। इस काल में खरीदा गया कोई भी वाहन, मकान, जेवरात अन्य कोई भी वस्तु शुभ फलकारी नही होती। अत: किसी भी शुभ कार्य को करते समय राहुकाल पर अवश्य विचार कर लेना चाहिए।
    प्रत्येक स्थान पर एवं ऋतुओं में अलग अलग समय पर सूर्योदय एवं सूर्यास्त होता हैं। अत: हर जगह पर राहुकाल का समय अलग-अलग होता हैं किंतु प्रत्येक वार पर इसके स्टैंडर्ड समय के अनुसार राहुकाल मान सकते हैं। जैसे-

    - भारतीय ज्योतिष में सोमवार को राहुकाल का स्टैंडर्ड समय सुबह 7:30 से 9 बजे तक माना गया है।

    - मंगलवार के दिन दोपहर 3 से 4:30 बजे तक राहुकाल रहता है इसलिए इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा उसका अशुभ फल प्राप्त होता है। इससे बचना चाहिए।

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  56. बुधवार के दिन दोपहर 12 से 1:30 बजे तक का समय राहुकाल होता है।

    - गुरुवार के दिन राहुकाल का स्टैंडर्ड समय दोपहर 1:30 से 3 बजे तक रहता है।

    - शुक्रवार के दिन सुबह 10:30 से 12 बजे तक के समय का स्वामी राहु होता है। यही शुक्रवार के दिन राहुकाल का स्टैंडर्ड समय है।

    - शनिवार के दिन सुबह 9 से 10:30 बजे तक राहुकाल होता है। इस समय में शुरु किए गए किसी भी शुभ कार्य में हमेशा कोई न कोई विघ्न अवश्य आता है।

    - रविवार के दिन राहुकाल का समय शाम 4:30 से 6 बजे तक रहता है

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  57. प्रश्न 1- पुराणों में वर्णित अश्वमेध यज्ञ क्या है?

    उत्तर- धर्म ग्रंथों में अनेक स्थान पर अश्वमेध यज्ञ का वर्णन आता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम व महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर ने भी ये यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ के अंतर्गत एक घोड़ा छोड़ा जाता था। ये घोड़ा जहां तक जाता था, वहां तक की भूमि यज्ञ करने वाले की मानी जाती थी। यदि कोई इसका विरोध करता था, तो उसे यज्ञ करने वाले के साथ युद्ध करना पड़ता था। ये यज्ञ वसंत या ग्रीष्म ऋतु में किया जाता था और करीब एक वर्ष इसके प्रारंभिक अनुष्ठानों की पूर्णता में लग जाता था।

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  58. प्रश्न 2- पुष्पक विमान क्या है?

    उत्तर- पुष्पक विमान का सर्वप्रथम वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है। वैदिक साहित्य में देवताओं के विमानों की चर्चा है, लेकिन दैत्यों और मनुष्यों द्वारा उपयोग किया गया पहला विमान पुष्पक ही माना जाता है। पौराणिक संदर्भों में विज्ञान की खोज करने वालों की मान्यता है कि प्राचीन भारतीय विज्ञान आधुनिक विज्ञान की तुलना में अधिक संपन्न था। इस लिहाज से इस विमान का अस्तित्व व प्रामाणिकता स्वीकारी जाती है। प्राचीन भारतीय की वैज्ञानिक क्षमता में विश्वास करने वाले मानते हैं कि यह विमान तत्कालीन विज्ञान का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण था।

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  59. प्रश्न- 3 हिंदू नव वर्ष का प्रारंभ किस दिन से और क्यों होता है ?

    उत्तर- हिंदू नव वर्ष का प्रारम्भ चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी पहले दिन से माना जाता है। इस पर्व को गुड़ी पड़वा के नाम से मनाते हैं। ब्रह्मपुराण के अनुसार पितामह ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया था। इसीलिए इसे सृष्टि का प्रथम दिन माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार चारों युगों में सबसे प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ भी इसी तिथि से हुआ था।

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  60. प्रश्न 4- जिस समय भगवान श्रीराम को वनवास दिया गया, उस समय उनकी आयु कितनी थी?

    उत्तर- वाल्मीकि रामायण के अनुसार जिस समय भगवान श्रीराम को वनवास दिया गया, उस समय उनकी आयु लगभग 27 वर्ष थी। राजा दशरथ श्रीराम को वनवास नहीं भेजना चाहते थे, लेकिन वे वचनबद्ध थे। जब श्रीराम को रोकने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने श्रीराम से यह भी कह दिया कि तुम मुझे बंदी बनाकर स्वयं राजा बन जाओ।

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  61. प्रश्न 5- पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य का जन्म कैसे हुआ था?

    उत्तर- गुरु द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। एक बार जब महर्षि भरद्वाज सुबह गंगा स्नान करने गए, वहां उन्होंने घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। यह देखकर उन्होंने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में संग्रहित कर लिया। उसी में से द्रोणाचार्य का नाम हुआ था।

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  62. प्रश्न 6- हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार इनमें से कौन से ज्योतिर्लिंग की स्थापना चंद्रदेव ने की थी?

    उत्तर- धर्म ग्रंथों के अनुसार चंद्रदेव ने सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। सोमनाथ भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर कि यह मान्यता है, कि जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी।

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  63. प्रश्न 7- हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष कितने दिनों का होता है?

    उत्तर- हिंदू पंचांग के अनुसार श्राद्ध पक्ष 16 दिनों का होता है। श्राद्ध पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से अश्विन मास की अमावस्या तक होता है। इन 16 दिनों में पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूजन, तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान आदि करने का विशेष महत्व है।

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  64. प्रश्न 8- हिंदू धर्म में किस ग्रंथ को पांचवे वेद की संज्ञा दी गई है?

    उत्तर- हिंदू धर्म में महाभारत को पांचवां वेद कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। श्रीमद्भागवत गीता जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागर की देन है। इस ग्रंथ में कुल मिलाकर एक लाख श्लोक है, इसलिए इसे शतसाहस्त्री संहिता भी कहा जाता है।

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  65. प्रश्न 9- वाल्मीकि रामायण के अनुसार देवराज इंद्र के रथ के सारथी का नाम क्या है?

    उत्तर- देवराज इंद्र के रथ के सारथि का नाम मातलि है। राम-रावण युद्ध के दौरान जब रावण अपने रथ में बैठकर और श्रीराम भूमि पर खड़े रहकर युद्ध कर रहे थे। उस समय इंद्र ने अपना रथ भगवान श्रीराम की सहायता के लिए भेजा था। उस समय भी मातलि ने ही रथ का संचालन बड़ी कुशलता के साथ किया था।

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  66. प्रश्न 10- धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने किसे सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया था?

    महाभारत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को सृष्टि के अंत तक पृथ्वी पर भटकने का श्राप दिया था। गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ। कृपी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अच्चै:श्रवा अश्व के समान शब्द किया, इसी कारण उसका नाम अश्वत्थामा हुआ। वह महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुआ था।


    प्रश्न 11- वाल्मीकि रामायण में कितने श्लोक, उपखंड व कांड हैं?

    उत्तर- रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है। इस महाकाव्य में 24 हजार श्लोक, पांच सौ उपखंड तथा उत्तर सहित सात कांड हैं। परमपिता ब्रह्माजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने इस ग्रंथ की रचना की थी। सर्वप्रथम लव-कुश ने भगवान श्रीराम के दरबार में इसे गाकर सुनाया था।

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  67. प्रश्न 12- धर्म ग्रंथों के अनुसार देवताओं का सेनापति कौन है?

    उत्तर- धर्म ग्रंथों के अनुसार देवताओं के सेनापति भगवान शिव व माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय हैं। इनका वाहन मोर है। धार्मिक कथाओं के अनुसार ये मोर भगवान विष्णु ने कार्तिकेय को दिया था। देवासुर संग्राम में कार्तिकेय ने ही देवताओं की सेना का प्रतिनिधित्व किया था। ये प्रचंड क्रोधी स्वभाव के हैं। दक्षिण भारत में इन्हें ही मुरुगन स्वामी के रूप में पूजा जाता है।


    प्रश्न 13- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार किस देवी की पूजा करने से नागों का भय नहीं रहता?

    उत्तर- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार मनसादेवी का पूजन करने से नागों का भय नहीं रहता क्योंकि ये देवी नागों के राजा वासुकि की बहन हैं। मनसादेवी के गुरु स्वयं भगवान शिव बताए गए हैं। इन्हीं के पुत्र आस्तीक ने जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। महर्षि आस्तीक का नाम लेने से भी नागों का भय नहीं रहता।

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  68. प्रश्न 14- माता सीता की छाया द्वापर युग में किस रूप में प्रकट हुईं?

    उत्तर- ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार रावण ने माता सीता का नहीं उनकी छाया का हरण किया था। इन्हीं छाया रूपी सीता ने द्वापर युग में द्रौपदी के रूप में जन्म लिया था। द्रौपदी पांडवों की पत्नी थी। इनका जन्म अग्नि कुंड से हुआ था। द्रौपदी के पिता का नाम द्रुपद था व इनके भाई का नाम धृष्टद्युम्न। धृष्टद्युम्न का जन्म भी यज्ञ के अग्नि कुंड से हुआ था।


    प्रश्न 15- धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम क्या है?

    उत्तर- भगवान सूर्यदेव का रथ चलाने वाले सारथी का नाम अरुण है। इनकी माता का नाम विनता और पिता का नाम महर्षि कश्यप है। भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ अरुण के छोटे भाई हैं। धर्म ग्रंथों में अरुण की दो संतानें बताई गई हैं- जटायु और संपाति। जटायु ने ही माता सीता का हरण कर रहे रावण से युद्ध किया था और संपाति ने वानरों को लंका का मार्ग बताया था।

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  69. प्रश्न 16- धर्म ग्रंथों में जातिस्मर शब्द का उपयोग किसके लिए किया गया है?

    उत्तर- धर्म ग्रंथों के अनुसार पूर्वजन्म की बातों को याद रखने वाले के लिए जातिस्मर शब्द का उपयोग किया गया है। हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। आज भी ऐसे कई मामले सामने आते हैं, जिन्हें सुनने के बाद पुनर्जन्म की बातों को सिरे से नकारा नहीं जा सकता। हिंदू धर्म के अनुसार आत्मा सिर्फ शरीर बदलती है। इसे ही पुनर्जन्म कहते हैं।


    प्रश्न 17- महाभारत के अनुसार राजा परीक्षित ने किस ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाला था?

    उत्तर- राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाला था। इससे क्रोधित होकर शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने राजा परीक्षित को सात दिनों के अंदर तक्षक नाग द्वारा काटने से मृत्यु होने का श्राप दिया था। राजा परीक्षित अर्जुन के पोते तथा अभिमन्यु के पुत्र थे। अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए ही राजा जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था।

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  70. प्रश्न 18- हिंदू धर्म में सांप को दूध पिलाने की प्रथा सही है या गलत?

    उत्तर- हिंदू धर्म में सांप को दूध पिलाने का प्रचलन है जो कि पूरी तरह से गलत है। जीव विज्ञान के अनुसार सांप पूरी तरह से मांसाहारी जीव है, ये मेंढक, चूहा, पक्षियों के अंडे व अन्य छोटे-छोटे जीवों को खाकर अपना पेट भरते हैं। दूध इनका प्राकृतिक आहार नहीं है। नागपंचमी के दिन कुछ लोग नाग को दूध पिलाने के नाम पर इन पर अत्याचार करते हैं क्योंकि इसके पहले ये लोग सांपों को कुछ खाने-पीने को नहीं देते। भूखा-प्यासा सांप दूध को पी तो लेता है, लेकिन कई बार दूध सांप के फेफड़ों में घुस जाता है, जिससे उसे निमोनिया हो जाता है और इसके कारण सांप की मौत भी हो जाती है।


    प्रश्न 19- रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने किस ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था?

    उत्तर- राजा दशरथ द्वारा करवाए गए पुत्रेष्ठि यज्ञ को ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था। इस यज्ञ के फलस्वरूप ही भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न का जन्म हुआ था।

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  71. प्रश्न 20- धर्म ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा की कितनी पत्नियां है?

    उत्तर- धर्म ग्रंथों के अनुसार चंद्रमा की 27 पत्नियां हैं। इनमें से रोहिणी नाम की पत्नी चंद्रमा को विशेष प्रिय है। रोहिणी से विशेष प्रेम करने और अन्य के साथ भेद-भाव करने के कारण ही प्रजापति दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दिया था। चंद्रमा द्वारा भगवान शिव की उपासना करने से ही उन्हें इस श्राप से मुक्ति मिली थी। चंद्रमा की ये 27 पत्नियां वास्तव में 27 नक्षत्र हैं।


    प्रश्न 21- क्यों सांप बीन की धुन पर नाचता है?
    उत्तर- खेल-तमाशा दिखाने वाले कुछ लोग सांप को अपनी बीन की धुन पर नचाने का दावा करते हैं, जबकि ये पूरी तरह से अंधविश्वास है क्योंकि सांप के तो कान ही नहीं होते। दरअसल ये मामला सांपों की देखने और सुनने की शक्तियों और क्षमताओं से जुड़ा है। सांप हवा में मौजूद ध्वनि तरंगों पर प्रतिक्रिया नहीं दर्शाते पर धरती की सतह से निकले कंपनों को वे अपने निचले जबड़े में मौजूद एक खास हड्डी के जरिए ग्रहण कर लेते हैं।

    सांपों की नजर ऐसी है कि वह केवल हिलती-डुलती वस्तुओं को देखने में अधिक सक्षम हैं बजाए स्थिर वस्तुओं के। सपेरे की बीन को इधर-उधर लहराता देखकर नाग उस पर नजर रखता है और उसके अनुसार ही अपने शरीर को लहराता है और लोग समझते हैं कि सांप बीन की धुन पर नाच रहा है।

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  72. प्रकृति ने हमें अनेक रंग प्रदान किए हैं परंतु वे सभी अलग-अलग प्रभाव हमारे जीवन में डालते हैं। भवन का रंग-रोगन करवाने से पूर्व कुंडली के ग्रहों पर भी विचार अवश्य करना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अंतर्गत इस विषय में कुछ ध्यान रखने योग्य बातें हैं, जो इस प्रकार हैं-

    1- वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में काले रंग का उपयोग (फर्श आदि में) नहीं करना चाहिए। काले रंग या पत्थर का अधिक उपयोग करने से राहु का प्रभाव जीवन में अधिक पड़ता है, जिससे समस्याएं हो सकती हैं।

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  73. 2- यदि शुक्र उच्च व केंद्र या त्रिकोण में हो या मित्र क्षेत्री हो तो भवन की साज-सज्जा में पीले व सफेद रंग का प्रयोग शुभ है।

    3- यदि गुरु अशुभ, शत्रु व निर्बल है तो पीले व सफेद रंग का प्रयोग परिवार में विरोध बढ़ाता है।

    4- गुरु-शुक्र का संबंध होने पर भी पीले व सफेद रंग का अधिक प्रयोग आत्म-क्लेश की स्थिति बनाता है।

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  74. 5- यदि भवन स्वामी की कुंडली में शुक्र उच्च हो तो सफेद रंग शुभकारक होता है और यदि शुक्र निर्बल हो तो भवन में सफेद रंग का उपयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

    6- भवन में सफेद रंग का अधिक उपयोग करना भी ठीक नहीं है। ऐसा करने से गृहस्थ जीवन अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो जाएगा, जो भविष्य में विलासिता व भोग के कारण दु:ख का कारण बन सकता है।

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  75. 19 जून 2014 को गुरु कर्क राशि में प्रवेश करेगा। हालांकि, गुरु के राशि परिवर्तन को लेकर अलग-अलग पंचांगों में अलग-अलग तिथि बताई गई है। अधिकांश पंचांगों के अनुसार गुरु ग्रह 19 जून को ही मिथुन राशि से कर्क राशि में प्रवेश करेगा। कर्क राशि चंद्रमा के स्वामित्व वाली राशि है। इस राशि में 5 डिग्री तक आने पर गुरु उच्च का हो जाएगा। शेष समय में मित्र राशि में माना जाएगा।

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  76. आजाद भारत की राशि भी कर्क ही है, गुरु का इस राशि में आना देश के लिए उत्तम समय लेकर आएगा। आम जनता को सरकार की ओर से राहत मिलेगी। 2 नवंबर 2014 तक कर्क पर शनि का ढय्या भी रहेगा, फिर भी इस राशि के लोगों को विशेष लाभ प्राप्त होगा। गुरु के प्रभाव से कर्क राशि के लोगों को कोई बड़ा पद एवं नई जिम्मेदारी मिलने की संभावनाएं बन रही हैं। धन लाभ भी होगा।

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  78. मंगल ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों का सेनापति माना गया है। इसी वजह से मंगल का प्रभाव भी काफी अधिक होता है। मंगल किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को पूरी तरह प्रभावित करता है।

    कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में मंगल का अलग-अलग असर होता है। किसी व्यक्ति के जन्म के समय मंगल कुंडली के जिस भाव में स्थित होता है, उसका वैसा ही असर जीवनभर बने रहता है।

    अपनी कुंडली में देखिए मंगल किस भाव में स्थित है और यहां जानिए उस स्थिति के अनुसार मंगल आपके जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है...

    प्रथम भाव में मंगल हो तो...
    ज्योतिष के अनुसार कुंडली के प्रथम भाव में मंगल हो तो व्यक्ति साहसी, अल्पायु, अभिमानी, शूरवीर, सुंदर रूप वाला और चंचल हो सकता है।

    द्वितीय भाव में मंगल हो तो...
    ऐसा व्यक्ति निर्धन, कुरूप, नीच लोगों के साथ रहने वाला हो सकता है, जिसकी कुंडली के द्वितीय भाव में मंगल स्थित होता है। इस स्थिति के कारण व्यक्ति विद्याहीन अथवा कम बुद्धि वाला भी हो सकता है।

    तृतीय भाव में मंगल हो तो...
    कुंडली के तृतीय भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाला होता है। ऐसे लोगों को भाई-बहन की ओर से पूर्ण सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। सामान्यत: ऐसे लोग समाज में प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं।

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  79. चतुर्थ भाव में मंगल हो तो...

    किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल चौथे भाव में हो तो, वह व्यक्ति घर, वस्त्र और भाई-बंधु से पूर्ण सुख प्राप्त नहीं कर पाता है। मंगल की इस स्थिति के कारण व्यक्ति वाहन सुख भी प्राप्त नहीं कर पाता है।

    पंचम भाव में मंगल हो तो...

    जिन लोगों की कुंडली के पंचम भाव में मंगल स्थित होता है, वे लोग सुख, धन और पुत्र के संबंध में परेशानियों का सामना करते हैं। इनकी बुद्धि बुद्धि होती है। मंगल के कारण ये लोग अशांत रहते हैं।

    छठे भाव में मंगल हो तो...

    कुंडली के छठे भाव में मंगल स्थित हो तो व्यक्ति कामुक होता है। मंगल के कारण ऐसे लोग दिखने सुंदर और बलवान होते हैं। ये लोग समाज में प्रतिष्ठा पाने वाले होते हैं।

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  80. आज शुक्रवार 27 जून को अमावस्या तिथि है !शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है।

    अमावस्या के दिन सोम, मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है, तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है।

    इसी तरह शनिवार और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाता है। ऐसे योग होने पर अमावस्या के दिन तीर्थस्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण या कर्ज और पापों से मिली पीड़ाओं से छुटकारा मिलता है। इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है।

    पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान बताए हैं। ये हैं-

    अमावस्या पयोव्रत- इस व्रत में केवल पीने के लिए दूध ही ग्रहण किया जाता है। भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है। इससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

    अमावस्या व्रत- कूर्म पुराण के अनुसार इस दिन शिवजी की आराधना के साथ व्रत किया जाता है, जो व्रती की गंभीर पीड़ाओं का शमन करता है।

    वट सावित्री व्रत- पति की लंबी उम्र व परिवार की खुशहाली के लिए ज्येष्ठ अमावस्या पर भी यह व्रत रखने का विधान है।

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  81. जीवन में आने वाले ऐसे ही संकटों से रक्षा के लिए धर्मशास्त्रों में जगतजननी देवी दुर्गा के 9 दिव्य स्वरूपों यानी नवदुर्गा के स्मरण की मंत्र स्तुति का शुक्रवार, नवमी तिथि या नवरात्रि की शुभ घड़ी में पाठ का महत्व बताया गया है। यह देवी के रक्षा कवच के रूप में हर संकट में रक्षक माना गया है। जानिए, नवदुर्गा की अद्भुत स्तुति-

    - शुक्रवार को देवी दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर की लाल पूजा सामग्रियों जैसे लाल चंदन, लाल फूल, वस्त्र या चुनरी व नैवेद्य अर्पित कर नीचे लिखी मंत्र स्तुति का पाठ करें-

    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

    पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीतिचाष्टकम् ।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

    अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्येगतोरणे।

    विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।

    न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।

    नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।

    - मंत्र स्तुति के बाद धूप व दीप से देवी आरती कर घर-परिवार की विपत्तियों और संकटों से रक्षा की प्रार्थना करें।

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  82. हृदय-मंदिर के अंदर संतोष
    जब कभी किसी दु:खद घटना
    से तुम्हारा मन खिन्न हो रहा हो, निराशा के बादल चारों ओर
    से छाए हुए हों, असफलता के कारण चित्त
    दु:खी बना हुआ हो, भविष्य की भयानक आशंका
    सामने खड़ी हुई हो, बुद्धि
    किंकत्र्तव्यविमूढ़ हो रही हो, तो इधर-उधर मत भटको। उस
    लोमड़ी को देखो, वह शिकारी कुत्तों से
    घिरने पर भाग कर अपनी गुफा में घुस जाती है और वहाँ संतोष की साँस लेती है।
    ऐसे विषम अवसरों पर सब ओर
    से अपने चित्त को हटा लो और अपने हृदय-मंदिर में चले जाओ। बाहर की समस्त बातों को
    बिलकुल भूल जाओ। पाप-तापों को द्वार पर छोड़ कर जब भीतर जाने लगोगे तो मालूम
    पड़ेगा कि एक बड़ा भारी बोझ, जिसके भार से गरदन टूटी
    जा रही थी, उतर गया और तुम बहुत ही
    हलके, रुई के टुकड़े की तरह
    हलके हो गए हो। हृदय-मंदिर में इतनी शांति मिलेगी,
    जितनी
    ग्रीष्म से तपे हुए व्यक्ति को बर्फ से भरे हुए कमरे में मिलती है। कुछ ही देर में
    आनंद की झपकियाँ लेने लगोगे।
    हृदय के इस सात्विक स्थान
    को ब्रह्मलोक या गोलोक भी कहते हैं; क्योंकि इसमें पवित्रता, प्रकाश और शांति का ही निवास है। परमात्मा ने हमें स्वर्ग-सोपान
    सुख प्राप्त करने के लिए दिया है,

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  83. इस संसार की श्रेष्ठतम विभूति-ज्ञान
    सच्चा ज्ञान वह है, जो हमें हमारे गुण, कर्म, स्वभाव की त्रुटियाँ
    सुझाने, अच्छाइयाँ बढ़ाने एवं
    आत्मनिर्माण की प्रेरणा प्रस्तुत करता है। यह सच्चा ज्ञान ही हमारे स्वाध्याय और
    सत्संग का, चिंतन और मनन का विषय
    होना चाहिए।
    कहते हैं कि संजीवनी बूटी
    का सेवन करने से मृतक व्यक्ति भी जीवित हो जाते हैं। हनुमान द्वारा पर्वत समेत यह
    बृटी लक्ष्मण जी की मूच्र्छा जगाने के लिए काम में लाई गई थी। वह अभी औषधि रूप में
    तो मिलती नहीं है, पर सूक्ष्म रूप में अभी
    भी मौजूद है। आत्मनिर्माण की विद्या संजीवनी विद्या कही जाती है, इससे मूर्छत पड़ा हुआ मृतक तुल्य अंत:करण पुन: जाग्रत् हो जाता है
    और प्रगति में बाधक अपनी आदतों को, विचार-शृंखलाओं को
    सुव्यवस्थित बनाने में लग कर अपने आप का कायाकल्प ही कर लेता है।
    सुधरी विचारधारा का
    मनुष्य ही देवता कहलाता है। कहते हैं, देवता स्वर्ग में रहते
    हैं। देव-वृत्तियों वाले मनुष्य जहाँ कहीं भी रहते हैं, वहाँ स्वर्ग जैसी परिस्थितियाँ अपने आप बन जाती हैं। अपने को
    सुधारने से चारों ओर बिखरी हुई परिस्थितियाँ उसी प्रकार सुधर जाती हैं, जैसे दीपक के जलते ही चारों ओर फैला हुआ अँधेरा उजाले में बदल जाता
    है।

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  84. हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है, लेकिन आमजन केवल दो नवरात्रि (चैत्र व शारदीय नवरात्रि) के बारे में ही जानते हैं। आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है, इनके बारे में लोग कम ही जानते हैं। इस बार आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा (28 जून, शनिवार) से हो रहा है, जो आषाढ़ शुक्ल नवमी (6 जुलाई, रविवार) को समाप्त होगी।

    आषाढ़ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति से उपासना की जाती है। यह समय शाक्य एवं शैव धर्मावलंबियों के लिए पैशाचिक, वामाचारी क्रियाओं के लिए अधिक शुभ एवं उपयुक्त होता है। इसमें प्रलय एवं संहार के देवता महाकाल एवं महाकाली की पूजा की जाती है।

    इस गुप्त नवरात्रि में संहारकर्ता देवी-देवताओं के गणों एवं गणिकाओं अर्थात भूत-प्रेत, पिशाच, बैताल, डाकिनी, शाकिनी, खण्डगी, शूलनी, शववाहनी, शवरूढ़ा आदि की साधना की जाती है। ऐसी साधनाएं शाक्त मतानुसार शीघ्र ही सफल होती हैं। दक्षिणी साधना, योगिनी साधना, भैरवी साधना के साथ पंचमकार (मद्य, मछली, मुद्रा, मैथुन, मांस) की साधना भी इसी नवरात्रि में की जाती है।

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  85. साल में कब-कब आती है नवरात्रि, जानिए

    हिंदू धर्म के अनुसार एक वर्ष में चार नवरात्रि होती है। वर्ष के प्रथम मास अर्थात चैत्र में प्रथम नवरात्रि होती है। चौथे माह आषाढ़ में दूसरी नवरात्रि होती है। इसके बाद अश्विन मास में प्रमुख नवरात्रि होती है। इसी प्रकार वर्ष के ग्यारहवें महीने अर्थात माघ में भी गुप्त नवरात्रि मनाने का उल्लेख एवं विधान देवी भागवत तथा अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है।

    अश्विन मास की नवरात्रि सबसे प्रमुख मानी जाती है। इस दौरान गरबों के माध्यम से माता की आराधना की जाती है। दूसरी प्रमुख नवरात्रि चैत्र मास की होती है। इन दोनों नवरात्रियों को क्रमश: शारदीय व वासंती नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है।

    आषाढ़ तथा माघ मास की नवरात्रि गुप्त रहती है। इसके बारे में अधिक लोगों को जानकारी नहीं होती। इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। गुप्त नवरात्रि विशेष तौर पर गुप्त सिद्धियां पाने का समय है। साधक इन दोनों गुप्त नवरात्रि में विशेष साधना करते हैं तथा चमत्कारिक शक्तियां प्राप्त करते हैं।

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  86. पहले दिन करें मां शैलपुत्री का पूजन

    गुप्त नवरात्रि के पहले दिन (28 जून, शनिवार) को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है।
    नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं।

    हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। अत: इस दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्त्रियों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।

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  87. दूसरे दिन करें मां ब्रह्मचारिणी की उपासना

    गुप्त नवरात्रि के दूसरे दिन (29 जून, रविवार) मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्म शक्ति यानि तप की शक्ति का प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।

    ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।

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  88. किसी भी प्रकार की पूजा-अर्चना के लिए पुरुषों को धोती पहनना चाहिए, यह प्राचीन परंपरा है। आज भी कई स्थानों पर पुरुषों के लिए पूजा के समय धोती पहनना अनिवार्य नियम है। वैसे तो धोती पहनने का चलन बहुत कम हो गया है और पूजन आदि कर्मों में धोती की अनिवार्यता ब्राह्मणों तक ही सीमित रह गई है। प्राचीनकाल में धोती पहने बिना पूजादि कर्मकांड पूर्ण नहीं माने जाते थे। इसी वजह से धोती को पवित्र परिधान माना गया है।

    धोती पहनने का वैज्ञानिक महत्व

    धोती पहनने की अनिवार्यता के पीछे वैज्ञानिक महत्व भी है। पूजा-अर्चना जैसे कार्यों में काफी देर तक एक विशेष अवस्था में श्रद्धालु को बैठे रहना पड़ता है, उस दशा में धोती से अच्छा कोई और परिधान नहीं हो सकता है। आजकल लोग जींस, पेंट आदि पहनकर ही पूजा कार्य करते हैं, जिससे बैठने-उठने में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शरीर के रोमछिद्रों से हमें शुद्ध प्राणवायु मिलती है, तंग कपड़े न सिर्फ इसमें बाधा डालते हैं बल्कि रक्तप्रवाह पर भी बुरा असर डालते हैं। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से भी धोती पहनना लाभदायक है। धोती बारिक सूती कपड़े से बनी होती है, जो कि हवादार और सुविधाजनक होती है। इसी वजह से पूजन कर्म के लिए धोती श्रेष्ठ परिधान है।

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  89. विवाह के बाद कुछ दंपत्तियों को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन परेशानियों के कारण वैवाहिक जीवन से सुख और समृद्धि गायब हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में पति-पत्नी को आपसी समझदारी से काम लेना चाहिए, साथ ही ज्योतिष के अनुसार बताए गए कुछ उपाय भी करना चाहिए।

    क्यों करें ज्योतिष के उपाय...

    यदि पति-पत्नी के बीच की परेशानियां कुंडली में स्थित ग्रह दोषों के कारण उत्पन्न हो रही हैं तो उनका उपचार ज्योतिषीय उपायों से ही किया जा सकता है। पति-पत्नी अपनी-अपनी कुंडली के लग्न अनुसार उपाय करेंगे तो वैवाहिक जीवन की कई समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। कुंडली के प्रथम भाव को लग्न भाव कहा जाता है। यह भाव जिस राशि का होता है, कुंडली उसी राशि के लग्न की मानी जाती है।

    यहां जानिए कुंडली के लग्न अनुसार किए जाने वाले उपाय, जो पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन को सुखी बना सकते हैं...


    कुंडली का मेष लग्न

    मेष लग्न के लोगों के लिए दांपत्य सुख का कारक शुक्र ग्रह होता है। ये लोग वैवाहिक सुख पाने के लिए नियमित रूप से गाय व पक्षियों को चावल खिलाएं। स्त्रियां मां पार्वती को समर्पित सिंदूर अपनी मांग में लगाएं।

    कुंडली का वृष लग्न

    वृष लग्न के लोगों के लिए दांपत्य सुख के सप्तम भाव का कारक मंगल ग्रह होता है। वृष लग्न के व्यक्ति लाल वस्त्र में सौंफ बांधकर अपने शयनकक्ष में रखें और इसे समय-समय पर बदलते रहें।

    कुंडली का मिथुन लग्न

    जिन लोगों की कुंडली मिथुन लग्न की है, उनकी कुंडली में दांपत्य सुख का कारक गुरु ग्रह होता है। इस लग्न के लोगों को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए और इस दिन एक समय भोजन करना चाहिए। साथ ही, शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें।

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  90. कुंडली का कर्क लग्न

    कर्क लग्न की कुंडली में वैवाहिक जीवन के भाव का कारक शनि ग्रह होता है। अधिकांश मामलों में इस लग्न के लोगों का दांपत्य जीवन बहुत सुखी नहीं कहा जा सकता। शनिवार व मंगलवार की शाम पति-पत्नी हनुमानजी के दर्शन करने जाएं। साथ ही, हनुमान चालीसा का पाठ करें।

    कुंडली का सिंह लग्न

    जिन लोगों की कुंडली सिंह लग्न की है, उनकी कुंडली में वैवाहिक सुख का कारक शनि होता है। ये लोग शनिपुष्य नक्षत्र में नाव की कील से बना छल्ला मध्यमा उंगली में धारण करें।

    कुंडली का कन्या लग्न

    कन्या लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह बृहस्पति होता है। इस लग्न के लोगों को भगवान लक्ष्मीनारायण की आराधना करनी चाहिए। साथ ही, हर गुरुवार को केले के पौधे में जल अर्पित करें।

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  91. कुंडली का तुला लग्न

    तुला लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह मंगल होता है। इस लग्न के लोगों को मंगलवार का व्रत रखना चाहिए। दिन में एक समय भोजन करें और भोजन में मीठा व्यंजन अवश्य शामिल करें। साथ ही, शिवलिंग पर लाल पुष्प अर्पित करें।


    कुंडली का वृश्चिक लग्न

    वृश्चिक लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह शुक्र है। अत: शुक्र को प्रसन्न करने के लिए किसी ऐसे स्थान पर जाएं, जहां मछलियां हों और वहां मछलियों को मिश्रीयुक्त उबले चावल खिलाएं।

    कुंडली का धनु लग्न

    धनु लग्न के लोगों के लिए दांपत्य सुख का कारक बुध ग्रह है। इन लोगों को भगवान गणपति की आराधना करनी चाहिए। हर बुधवार गणेशजी को दूर्वा अर्पित करें।

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  92. दशम भाव में मंगल हो तो...

    कुंडली के दसवें भाव में मंगल हो तो व्यक्ति सभी कार्य करने में दक्ष होता है। इन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मंगल इन्हें श्रेष्ठ बनाता है। ये लोग पुत्र सुख प्राप्त करने वाला होते हैं।

    एकादश भाव में मंगल हो तो...

    कुंडली के ग्याहरवें भाव में मंगल हो तो व्यक्ति गुणी और सुखी होता है। मंगल की यह स्थिति व्यक्ति को धनवान बनाती है। इन लोगों को पुत्र संतान का सुख प्राप्त होता है।

    द्वादश भाव में मंगल हो तो...

    कुंडली के बाहरवें भाव में मंगल हो तो वह व्यक्ति आंखों का रोगी हो सकता है। मंगल की यह स्थिति व्यक्ति को चुगलखोर बना सकती है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में कई बार कठिन परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं।

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  93. कुंडली का मकर लग्न

    मकर लग्न की कुंडली में दांपत्य सुख का कारक चंद्रमा होता है। अत: इन लोगों को गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। साथ ही, चांदी का बना चंद्रमा यंत्र गंगा जल से पवित्र करके पूजा घर में रखें। हर पूर्णिमा पर गंगा जल से इस यंत्र को स्नान कराएं और नियमित रूप से पूजन करें।

    कुंडली का कुंभ लग्न

    यदि किसी व्यक्ति की कुंडली कुंभ लग्न की है तो उसमें वैवाहिक सुख का कारक सूर्य ग्रह है। कारक ग्रह को प्रसन्न करने के लिए प्रतिदिन सूर्य को तांबे के लोटे से जल अर्पित करें।

    कुंडली का मीन लग्न

    जिन लोगों की कुंडली मीन लग्न की है, उनकी कुंडली में दांपत्य सुख का कारक ग्रह बुध होता है। इन लोगों को हर बुधवार भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। पूजन के बाद किसी गाय को हरी घास भी खिलाएं।

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  94. कुंडली का नवम भाव भाग्य का स्थान माना जाता है। इस लग्न की कुंडली में नवां स्थान मकर राशि का स्वामी शनि है। शनि और केतु मित्र ग्रह माने जाते हैं। इसी वजह से यहां केतु होने पर व्यक्ति को भाग्य का साथ मिलता है। ये लोग धार्मिक स्वभाव के होते हैं और थोड़ी कमी के साथ सफलता प्राप्त करते हैं। भाग्य का साथ मिलता है और सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

    वृष लग्न की कुंडली के दशम भाव में केतु हो तो...

    जिन लोगों की कुंडली वृष लग्न की है और उसके दशम भाव में केतु होने पर व्यक्ति को पिता की ओर से पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं हो पाता है। दसवां भाव पिता एवं शासकीय कार्यों से संबंधित होता है। इस भाव कुंभ राशि का स्वामी शनि है और शनि की इस राशि में केतु के प्रभाव से व्यक्ति कठिन परिश्रम से ही सफलता प्राप्त कर पाता है। इन लोगों को कड़ी मेहनत के बाद मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ये लोग परिश्रमी और साहसी होते हैं।

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  95. जिन लोगों की कुंडली कुंभ लग्न की है और उसके ग्याहरवें भाव में राहु स्थित हो तो व्यक्ति को आमदनी के मामलों काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे लोगों को गुप्त योजनाओं के प्रयोग से ही कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। ये लोग अपनी चतुरता और बुद्धि से कार्यों में सफलता प्राप्त करते हैं। कुंभ लग्न की कुंडली का एकादश भाव धनु राशि का स्वामी गुरु है। यह स्थान लाभ का कारक स्थान होता है।

    कुंभ लग्न की कुंडली के द्वादश भाव में राहु हो तो...

    कुंडली का बाहरवां भाव व्यय का कारक स्थान होता है। जिन लोगों की कुंडली कुंभ लग्न की है और उसके इस स्थान पर राहु स्थित हो तो व्यक्ति के आय से अधिक खर्चें रहते हैं। कुंडली का बाहरवां भाव व्यय का कारक स्थान होता है। यहां राहु होने पर व्यक्ति को खर्च चलाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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  96. द्वितीया तिथि (29 जून, रविवार) को माता को शक्कर का भोग लगाएं तथा उसका दान करें। इससे साधक को दीर्घायु प्राप्त होती है।

    - तृतीया तिथि (30 जून, सोमवार) को माता को दूध चढ़ाएं तथा इसका दान करें। ऐसा करने से सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलती है।

    - चतुर्थी तिथि (1 जुलाई, मंगलवार) को मालपूआ चढ़ाकर दान करें। इससे सभी प्रकार की समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है।

    - पंचमी तिथि (2 जुलाई, बुधवार) को माता दुर्गा को केले का भोग लगाएं व गरीबों को केले का दान करें। इससे आपके परिवार में सुख-शांति रहेगी।

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  97. उम्र में जाकर ही लड़की की शादी हो पाती है

    हर माता-पिता की चाहत होती है कि अपनी बेटी की शादी सही उम्र में करके दायित्व से मुक्त हो जाएं।

    लेकिन कुछ मामलों में माता-पिता की लाख कोशिश करने बावजूद लड़की की शादी में बाधा आती रहती है। सामान्य से अधिक उम्र में जाकर ही बेटी की शादी हो पाती है।

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  98. विवाह में विलंब के प्रमुख कारण

    ज्योतिषशास्त्र के एक नियम के अनुसार जब कुण्डली के पहले घर में सूर्य, मंगल, बुध बैठे हों और गुरु इसके एक घर पीछे यानी बारहवें घर में बैठा हो तो कन्या का विवाह सामान्य से अधिक उम्र में होता है।

    विवाह स्थान के स्वामी ग्रह यानी सातवें घर के स्वामी के साथ अगर शनि बैठा हो तो लड़की की शादी देर से होती है।

    जिस लड़की की कुण्डली में मंगल सातवें, दूसरे, आठवें घर में हो उनकी शादी भी देर से होती है। लड़की की कुण्डली में शनि और बुध सातवें घर में बैठा होना वैवाहिक सुख में कमी करता है।

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  99. तंत्र शास्त्र के अनुसार अमावस्या के दिन किया गया उपाय बहुत प्रभावशाली होता है और इसका फल भी जल्दी ही प्राप्त होता है। यदि आप नीचे बताए गए उपाय को विधि-विधान पूर्वक करेंगे तो आपको धन लाभ होने की संभावना बन सकती है।

    प्रयोग

    - अमावस्या की रात को करीब 10 बजे नहाकर साफ पीले रंग के कपड़े पहन लें। इसके उत्तर दिशा की ओर मुख करके ऊन या कुश के आसन पर बैठ जाएं।

    - अब अपने सामने पटिए (बाजोट या चौकी) पर एक थाली में केसर का स्वस्तिक या ऊं बनाकर उस पर महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। इसके बाद उसके सामने एक दिव्य शंख थाली में स्थापित करें।

    - अब थोड़े से चावल को केसर में रंगकर दिव्य शंख में डालें। घी का दीपक जलाकर नीचे लिखे मंत्र का कमल गट्टे की माला से ग्यारह माला जप करें-

    मंत्र

    सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि मुक्ति भुक्ति प्रदायिनी।
    मंत्र पुते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।

    - मंत्र जप के बाद इस पूरी पूजन सामग्री को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। इस प्रयोग से आपको अचानक धन लाभ होने की संभावना बन सकती है।

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  100. मन ही शत्रु, मन ही मित्र
    मनोदशा में आवश्यकता
    सुधार हुए बिना न तो शारीरिक स्थिति सुधरती है और न पारिवारिक व्यवस्था बनती है।
    आर्थिक प्रश्न भी बहुत कुछ इसी के ऊपर निर्भर है। मन एक प्रकार का प्रत्यक्ष
    कल्पवृक्ष है। उसके नीचे बैठकर हम जैसी भी कल्पनाएँ करते हैं, भावनाएँ रखते हैं, वैसी ही परिस्थितियाँ
    सामने आकर खड़ी हो जाती हैं। बिगड़ा हुआ मन ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु और
    सुधरा हुआ मन ही अपना सबसे बड़ा मित्र है। इसलिए गीताकार ने कहा है कि ‘उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानं अवसादयेत्’ अर्थात् अपना सुधार आप करें, अपने को गिरने न दें।
    अपना सुधार मनुष्य स्वयं ही कर सकता है। दूसरे की सिखावन की उपेक्षा भी की जा सकती
    है और नुक्ताचीनी भी। सुधरता कोई व्यक्ति तभी है,
    जब मन
    में अपने सुधार की तीव्र आकांक्षा जाग्रत् होती है। यह आत्मसुधार का जागरण ही
    मनुष्य के सोए हुए भाग्य का जागरण है।
    लोग ज्योतिषियों से पूछते
    रहते हैं कि हमारा भाग्योदय कब होगा? वे बेचारे क्या उत्तर दे
    सकते हैं। हर मनुष्य का भाग्य उसकी अपनी मुट्ïठी में है। अपनी आदतों के
    कारण ही उसकी दुर्गति बनाई गई होती है। जब मनुष्य अपनी त्रुटियों को सुधारने, दृष्टिकोण को बदलने और अच्छी आदतों को उत्पन्न करने के लिए कटिबद्ध
    हो जाता है, तो इस परिवर्तन के
    साथ-साथ उसका भाग्य भी बदलने लगता है।

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  101. यदि कड़ी मेहनत के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो रहा है और पैसों की तंगी का सामना करना पड़ रहा है तो यहां एक चमत्कारी उपाय बताया जा रहा है। यह उपाय नारियल से संबंधित है एवं बहुत सरल और कारगर है। इस उपाय की एक सामान्य विधि है। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और कई समस्याओं का निवारण हो जाता है।

    क्यों आती हैं परेशानियां

    ज्योतिष के अनुसार यदि कुंडली में ग्रहों की स्थिति यदि विपरित हो तो धन संबंधी मामलों में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। यदि उचित ज्योतिषीय उपचार द्वारा ग्रह बाधा को दूर किया जाए तो संभवत: इस प्रकार की परेशानियों में कमी आ जाती है। यहां धन संबंधी समस्याओं को दूर करने के लिए एक प्राचीन उपाय बताया जा रहा है। यह उपाय प्रति शुक्रवार महालक्ष्मी की प्रतिमा के सामने किया जाना चाहिए।

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  102. कुंडली मिलान से व्यक्ति के जीवन से जुड़ी सभी खास बातें मालूम की जा सकती हैं। इसी वजह से विवाह से पूर्व कुंडली का मिलान अनिवार्य रूप से किया जाता है।

    ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति और विशेष योगों का प्रभाव व्यक्ति पर जीवनभर रहता है। अत: विवाह से पहले वर-वधू की कुंडली का सही-सही अध्ययन किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से करवा लेना चाहिए।

    लड़के की कुंडली में देखी जाती हैं ये बातें

    कुंडली अध्ययन के समय मुख्य रूप से पुरुष की कुंडली में देखना चाहिए कि बहुविवाह योग, मार्ग भटकने के योग या विधुर योग तो नहीं हैं।

    बहुविवाह योग यानी व्यक्ति के एक से अधिक विवाह होने के योग। मार्ग भटकने के योग का अर्थ है बुरी संगत में पडऩा या गलत कार्य करना। विधुर योग यानी विवाह के बाद पत्नी के जल्दी मरने का योग। ऐसे योग वाले लड़के से कन्या का विवाह करवाना काफी परेशानियां पैदा कर सकता है।

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  103. लड़की की कुंडली में देखी जाती हैं ये बातें

    शादी के लिए किसी लड़की की कुंडली का अध्ययन करवाते समय देखना चाहिए कि उसकी कुंडली में वैधव्य दोष, विषकन्या योग, बहुपति योग के लक्षण तो नहीं हैं।

    वैधव्य दोष का अर्थ है विवाह के बाद पति की मृत्यु जल्दी होने के योग। जिन लड़कियों की कुंडली में विषकन्या योग होता है, उनका वैवाहिक जीवन सुखी रहने के योग बहुत कम होते हैं। इसका उचित उपाय किया जाना चाहिए। बहुपति योग जिस लड़की की कुंडली में होता है, उसकी एक से अधिक शादी होने के योग होते हैं।

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  104. कुंडली में मंगल दोष हो तो

    यदि वर या वधू में से किसी एक की कुंडली में मंगल दोष है तो उनका वैवाहिक जीवन परेशानियों वाला हो सकता है। इसीलिए मंगली लोगों का विवाह मंगली से ही करवाने की परंपरा चली आ रही है। मंगल दोष का उचित उपाय किया जाए तो वैवाहिक जीवन की बाधाएं समाप्त हो सकती हैं। यदि किसी की कुंडली मंगली हो और सामने वाले पक्ष की कुंडली मंगली नहीं हो, लेकिन उस पत्रिका में ऐसे ग्रह योग हों, जिसके द्वारा मंगल का असर खत्म हो रहा है तो वह विवाह किया जा सकता है।

    विशेषज्ञ ज्योतिषियों के अनुसार कभी-कभी जल्दबाजी में विवाह के लिए नाम से ही मिलान कर लिया जाता है, जो कि अनुचित है। नाम बदलकर कुंडली मिलान नहीं करना चाहिए। कुंडली की वास्तविक स्थिति के आधार पर ही मिलान करना श्रेष्ठ रहता है।

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  105. विदुर नीति के मुताबिक-

    श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भात् सम्प्रवर्धते।
    दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठत्ति।।

    इस श्लोक में साफ तौर पर धन बटोरने व बचाने के चार सूत्र बताए गए हैं। समझिए इनका शाब्दिक व व्यावहारिक मतलब-

    - पहला अच्छे कर्म से लक्ष्मी आती है। व्यावहारिक नजरिए से परिश्रम या मेहनत और ईमानदारी से किए गए कामों से धन की आवक होती है।

    - दूसरा प्रगल्भता सरल शब्दों में इसका मतलब है धन का सही प्रबंधन यानी बचत से वह लगातार बढ़ता है।

    - तीसरा चतुराई यानी अगर धन का सोच-समझकर उपयोग, आय-व्यय का ध्यान रखा जाए, तो ज्यादा से ज्यादा आर्थिक संतुलन बना रहता है।

    - चौथा और अंतिम सूत्र संयम यानी मानसिक, शारीरिक और वैचारिक संयम रखने से धन की रक्षा होती है। सरल शब्दों में कहें तो सुख पाने और शौक पूरा करने की चाहत में धन का दुरुपयोग न करें।

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  106. गुप्त नवरात्रि में शक्ति उपासना मंगलकारी मानी जाती है। इस काल में गायत्री उपासना मनोरथ पूर्ति भी करती है।गायत्री मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें -

    ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यधीमहि धियो योनःप्रचोदयात्।

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  107. विष्णु व लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए ऐसा मंत्र जप व पूजा का सरल उपाय जो आपकी दोनों ही इच्छाओं को पूरा कर देगा। खास तौर पर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के हर दिन ही यह मंत्र जप मंगलकारी माना जाता है-

    - हर दिन सुबह स्नान के बाद देवालय या मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करें।

    - पूजा में भगवान विष्णु को गंध, अक्षत, पीले फूलों के साथ पीला वस्त्र और माता लक्ष्मी को लाल चंदन, लाल वस्त्र या लाल पूजा सामग्री जरूर चढ़ाएं।

    - पंजेरी (भुने धनिए, शक्कर व खोपरे बुरे आदि का मिश्रण), पंचामृत और अनार का भोग लगाएं।

    - पूजा के बाद इस मंत्र का जप उत्तर दिशा की तरफ मुख कर यथाशक्ति करें-

    "ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम:"

    - पूजा और जप के बाद घी के दीप जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।

    - अंत में भगवान विष्णु और लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।

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  108. ~जीवन मंत्र~
    नल बंद करने से नल बंद होता है पानी नही.ं
    घड़ी बंद करने से घड़ी बंद होती है समय नही.ं
    दीपक बुझाने से दीपक बुझता है रौशनी नही.ं
    झूठ छुपाने से झूठ छुपता है सच नही.ं
    प्रेम करने से प्रेम मिलता है नफरत नही.ं
    दान करने से अमीरी मिलती है गरीबी नहीं.

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  109. वास्तु टिप्स:::::
    घर का वास्तु ठीक हो तो आपको परेशानियां स्पर्श
    भी नहीं कर सकती हैं।
    इन आसान से वास्तु टिप्स को आजमाकर आप
    हमेशा खुशी और
    हर्षोउल्लास से अपनी ज़िंदगी को और
    भी ज्यादा बेहतर तरीके से
    जी सकते हैं।
    1. घर के मुख्य द्वारा की सजावट करें ऐसा करने से
    आपके धन की वृद्धि होती है।
    2. घर की खिड़कियों में सुंदर कांच लगाएं, आपके संबंधों में
    मधुरता आएगी।
    3. घर में दर्पण कुछ इस तरह से लटकाएं कि उसमें लॉकर या केश
    बॉक्स का
    प्रतिबिम्ब बने ऐसा करने से आपकी धन दौलत और शुभ
    अवसरों पर दो
    गुनी वृद्धि होती है।
    4. अपने मास्टर बेडरूम को हल्के रंगों से पेंट करना चाहिए जैसे
    समुंदरी हरा, हल्का गुलाबी और
    हल्का नीला ये वो रंग हैं जो बेडरूम
    के लिहाज से अच्छे रहते हैं।
    5. घर में रखी बेकार की वस्तुओं को समय-
    समय पर फेंकते रहना चाहिए।
    क्यों कि वास्तु के अनुसार घर में पड़ी वस्तुओं से प्रेम में
    बाधा पहुंचती है।

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  110. स्व उत्साहवर्धन
    जैसे-जैसे किसी विषय का ज्ञान संपादन करने में सफलता प्राप्त करते
    चलें, वैसे-वैसे
    अपनी पूर्व स्थिति से तुलना करके प्रसन्न होते जाइए । जितना आप सीख चुके हैं,
    उनका मुकाबला उनसे कीजिए जिनके पास वह वस्तु नहीं है, तब
    आपको अपनी महानता प्रतीत होगी । बड़ी योग्यता वालों से अपना मुकाबला न कीजिये, वरन्
    उनसे स्पर्द्धा
    कीजिए कि आप में भी वैसी योग्यताएँ हो जावें । मन में निराशा के
    विचार मत आने दीजिए, अपने
    ऊपर अविश्वास मत कीजिए । प्रभु का अमर पुत्र मनुष्य किसी प्रकार की
    योग्यता से रहित नहीं है । साधन मिलने पर उसके सब बीज उगकर महान्
    वृक्ष बन सकते हैं । माता जिस प्रकार बालक को उत्साहित कर देती है, उसी
    प्रकार अपनी आत्मा
    के द्वारा अपने मन को उत्साहित करना चाहिए, उसकी
    पीठ ठोकते हुए प्रशंसा करनी चाहिए और बढ़ावा देना चाहिए ।

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  111. प्रेम विवाह होगा या नहीं? आपका जीवन साथी कैसा होगा? कब तक घर बनेगा? नौकरी कब लगेगी? संतान प्राप्ति कब तक? जाने ज्योतिष सेवा पर

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  112. इस मंत्र का जप यथासंभव रोग या कष्ट से पीडि़त व्यक्ति द्वारा करना अधिक फलदायी होता है।

    - ऐसा संभव न हो तो रोगी या पीडि़त व्यक्ति के परिजन इस मंत्र का जप करें।

    - मंत्र जप के लिए जहां तक संभव हो सफेद कपड़े पहने और आसन पर बैठें। मंत्र जप रूद्राक्ष की माला से करें।

    - महामृत्युञ्जय मंत्र जप शुरू करने के पहले यह आसान संकल्प जरूर करें- मैं (जप करने वाला अपना नाम बोलें) महामृत्युञ्जय मंत्र का जप (स्वयं के लिए या रोगी का नाम) की रोग या पीड़ा मुक्ति या के लिए कर रहा हूं। महामृत्युञ्जय देवता कृपा कर प्रसन्न हो रोग और पीड़ा का पूरी तरह नाश करे।

    - कम से कम एक माला यानि 108 बार इस मंत्र का जप अवश्य करें।

    ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
    उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।

    - मंत्र जप पूरे होने पर क्षमा प्रार्थना और पीड़ा शांति की कामना करें।

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  113. शास्त्रों के मुताबिक भगवान शिव संहारकर्ता ही नहीं, कल्याण करने वाले देवता भी है। इस तरह शिव का काल और जीवन दोनों पर नियंत्रण है। यही वजह है कि व्यावहारिक जीवन में सुखों की कामनापूर्ति के लिए ही नहीं दु:खों की घड़ी में शिव का स्मरण किया जाता है।

    शिव की भक्ति से दु:ख, रोग और मृत्यु के भय से छुटकारा पाने का सबसे प्रभावी उपाय है- महामृत्युंजय मंत्र का जप। धार्मिक मान्यता है कि इस मंत्र जप से न केवल व्यक्तिगत संकट बल्कि पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय आपदाओं और त्रासदी को भी टाला जा सकता है। यहां जानिए इनके अलावा भी कैसे विपरीत हालात या बुरी घड़ियों में भी इस मंत्र का जप जरूर करना चाहिए-

    - विवाह संबंधों में बाधक नाड़ी दोष या अन्य कोई बाधक योग को दूर करने में।

    - जन्म कुण्डली में ग्रह दोष, ग्रहों की महादशा या अंर्तदशा के बुरे प्रभाव की शांति के लिए।

    - संपत्ति विवाद सुलझाने के लिए।

    - महामारी के प्रकोप से बचने के लिए।

    - किसी लाइलाज गंभीर रोग की पीड़ा से मुक्ति के लिए।

    - देश में अशांति और अलगाव की स्थिति बनी हो।

    - प्रशासनिक परेशानी दूर करने के लिए।

    - वात, पित्त और कफ के दोष से पैदा हुए रोगों की निदान के लिए।

    - परिवार, समाज और करीबी संबंधों में घुले कलह को दूर करने के लिए।

    - मानसिक क्लेश और संताप के कारण धर्म और अध्यात्म से बनी दूरी को खत्म करने के लिए।

    - दुर्घटना या बीमारी से जीवन पर आए संकट से मुक्ति के लिए।

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  114. सामाजिक जीवन गुजारते हुए कई बार नजर आता है कि किसी व्यक्ति की आमदनी अच्छी होती, लेकिन इसके बावजूद पारिवारिक, शारीरिक या अन्य किसी कारण से पैदा हुआ कलह उसके धन के सुख को बेमानी बना देते है।

    आप भी अगर ऐसी ही किसी हालात से गुजर रहे हों या चाहते हैं कि धन के साथ बरकत और शांति भी प्राप्त हो तो धर्मशास्त्रों में इसका उपाय लक्ष्मी और विष्णु की उपासना बताया गया है।

    माता लक्ष्मी जहां धन और ऐश्वर्य की देवी है। वहीं, भगवान विष्णु शांति और आनंद देने वाले देवता के रूप में पूजित हैं। इसलिए यहां बताया जा रहा विष्णु व लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए ऐसा मंत्र जप व पूजा का सरल उपाय जो आपकी दोनों ही इच्छाओं को पूरा कर देगा। खास तौर पर आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के हर दिन ही यह मंत्र जप मंगलकारी माना जाता है-

    - हर दिन सुबह स्नान के बाद देवालय या मंदिर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा करें।

    - पूजा में भगवान विष्णु को गंध, अक्षत, पीले फूलों के साथ पीला वस्त्र और माता लक्ष्मी को लाल चंदन, लाल वस्त्र या लाल पूजा सामग्री जरूर चढ़ाएं।

    - पंजेरी (भुने धनिए, शक्कर व खोपरे बुरे आदि का मिश्रण), पंचामृत और अनार का भोग लगाएं।

    - पूजा के बाद इस मंत्र का जप उत्तर दिशा की तरफ मुख कर यथाशक्ति करें-

    "ॐ लक्ष्मीनारायणाय नम:"

    - पूजा और जप के बाद घी के दीप जलाकर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें।

    - अंत में भगवान विष्णु और लक्ष्मी से सुख-समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।

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  115. सूर्य को अर्घ्य देकर सूर्य की प्रतिमा को लाल चंदन, लाल कमल अर्पित कर गेहूं के आटे और घी व शक्कर से बने कसार का भोग लगाएं। इसके बाद नीचे लिखी सूर्य प्रार्थना बोलें-

    यमाराध्य पुरा देवी सावित्री काममाप वै।
    स मे ददातु देवेश: सर्वान् कामान् विभावसु:।।
    यमाराध्यादिति: प्राप्ता सर्वान् कामान् यथेप्सितान्।
    स ददात्वखिलान् कामान् प्रसन्नो मे दिवस्पति:।
    भ्रष्टराज्यश्च देवेन्द्रो यमभ्यर्च्य दिवस्पति:।
    कामान् सम्प्राप्तवान् राज्यं स मे कामं प्रयच्छतु।।

    - प्रार्थना पूजा के बाद गुग्गल धूप व दीप आरती कर निरोगी, सुखी व सफल जीवन की कामना सूर्य देव से करें।

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  116. नौ दिन गुप्त साधना कर सिद्धियां प्राप्त करने के लिए बहुत ही विशेष माने जाते हैं।

    ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन नौ दिनों तक अगर कोई व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार कुछ विशेष उपाय करे तो मां दुर्गा की कृपा से उसकी मनोकामना पूरी होने की संभावना बनती है साथ ही उसकी दु:ख व तकलीफें भी कम हो जाती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किस राशि के व्यक्ति को इस गुप्त नवरात्रि में क्या उपाय करना चाहिए-

    मेष- इस राशि के लोगों को स्कंदमाता की विशेष उपासना करनी चाहिए। दुर्गा सप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। स्कंदमाता करुणामयी हैं, जो वात्सल्यता का भाव रखती हैं।

    वृषभ- वृषभ राशि के लोगों को महागौरी स्वरूप की उपासना से विशेष फल प्राप्त
    होते हैं। ललिता सहस्रनाम का पाठ करें। जन-कल्याणकारी है। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

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  117. मिथुन- इस राशि के लोगों को देवी यंत्र स्थापित कर ब्रह्मचारिणी की उपासना करनी चाहिए साथ ही तारा कवच का रोज पाठ करें। मां ब्रह्मचारिणी ज्ञान प्रदाता व विद्या के अवरोध दूर करती हैं।

    कर्क- कर्क राशि के लोगों को शैलपुत्री की पूजा-उपासना करनी चाहिए। लक्ष्मी सहस्रनाम का पाठ करें। भगवती की वरद मुद्रा अभय दान प्रदान करती हैं।

    सिंह- सिंह राशि के लिए मां कूष्मांडा की साधना विशेष फल करने वाली है। दुर्गा मंत्रों का जप करें। ऐसा माना जाता है कि देवी मां के हास्य मात्र से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई। देवी बलि प्रिया हैं, अत: साधक नवरात्र की चतुर्थी को आसुरी प्रवृत्तियों यानी बुराइयों का बलिदान देवी के चरणों में निवेदित करते हैं।

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  118. कन्या- इस राशि के लोगों को मां ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए। लक्ष्मी मंत्रों का सविधि जप करें। ज्ञान प्रदान करती हुई विद्या मार्ग के अवरोधों को दूर करती हैं। विद्यार्थियों हेतु देवी की साधना फलदाई है।

    तुला- तुला राशि के लोगों को देवी महागौरी की पूजा-आराधना से विशेष फल प्राप्त होते हैं। काली चालीसा या सप्तशती के प्रथम चरित्र का पाठ करें। अविवाहित कन्याओं को आराधना से उत्तम वर की प्राप्ति होती है।

    वृश्चिक- वृश्चिक राशि के लोगों को स्कंदमाता की उपासना श्रेष्ठ फल प्रदान करती है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

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  119. धनु- इस राशि वाले मां चंद्रघंटा की उपासना करें। संबंधित मंत्रों का यथा विधि अनुष्ठान करें। घंटा प्रतीक है उस ब्रह्मनाद का, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।

    मकर- मकर राशि के लोगों के लिए कालरात्रि की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। नवार्ण मंत्र का जप करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोप, अग्निकांड आदि का शमन करती हैं।

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  120. कुंभ- कुंभ राशि वाले व्यक्तियों के लिए कालरात्रि की उपासना लाभदायक है। देवी कवच का पाठ करें। अंधकार में भक्तों का मार्गदर्शन और प्राकृतिक प्रकोपों का शमन करती हैं।

    मीन- मीन राशि के लोगों को मां चंद्रघंटा की उपासना करनी चाहिए। हरिद्रा (हल्दी) की माला से यथासंभव बगलामुखी मंत्र का जप करें। घंटा उस ब्रह्मनाद का प्रतीक है, जो साधक के भय एवं विघ्नों को अपनी ध्वनि से समूल नष्ट कर देता है।

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  121. शास्त्रों में बताई शिव पूजा से जुड़ी बातें उजागर करती हैं कि शिव भक्ति में मात्र शिव नाम स्मरण ही सारे सांसारिक सुखों को देने वाला है। विशेष रूप से शास्त्रों में बताए शिव उपासना के विशेष दिनों, तिथि और काल को तो नहीं चूकना चाहिए। इसी कड़ी में यहां बताई जा रही शिव मंत्र स्तुति, शिव पूजा व आरती के बाद बोलने से माना जाता है कि इसके प्रभाव से बुरे वक्त, ग्रहदोष या बुरे सपने जैसी कई परेशानियां दूर होती हैं-

    दु:स्वप्नदु:शकुन दुर्गतिदौर्मनस्य,
    दुर्भिक्षदु‌र्व्यसन दुस्सहदुर्यशांसि।
    उत्पाततापविषभीतिमसद्ग्रहार्ति,
    व्याधीश्चनाशयतुमे जगतातमीश:॥

    इस शिव स्तुति का सरल शब्दो में मतलब है कि-

    संपूर्ण जगत के स्वामी भगवान शिव मेरे सभी बुरे सपनों, अपशकुन, दुर्गति, मन की बुरी भावनाएं, भूखमरी, बुरी लत, भय, चिंता और संताप, अशांति और उत्पात, ग्रह दोष और सारी बीमारियों से रक्षा करे।

    धार्मिक मान्यता है कि शिव, अपने भक्त के इन सभी सांसारिक दु:खों का नाश और सुख की कामनाओं को पूरा करते हैं।

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  122. गरीबी मिटाने के लिए

    दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
    स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
    दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
    सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।।

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  123. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नौ ग्रहों की स्थितियों के आधार पर ही हमें सुख और सफलता या दुख प्राप्त होता है। ये नौ ग्रह हैं: सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु।

    किसी व्यक्ति की जन्म दिनांक, जन्म समय और जन्म स्थान के अनुसार बनाई जाने वाली कुंडली बारह भागों में विभाजित रहती है। इन 12 भागों में नौ ग्रहों की अलग-अलग स्थितियां रहती हैं। सभी ग्रहों के शुभ-अशुभ फल होते हैं। यहां जानिए सभी नौ ग्रहों का हमारे जीवन पर कैसा असर रहता है...

    सूर्य- सूर्य ग्रह हमें तेजस्वी बनाता है। यश, मान-सम्मान प्रदान करता है। सूर्य शुभ होने पर हमें समाज में प्रसिद्धि मिलती है, जबकि सूर्य अशुभ होने पर समाज में अपमान का सामना करना पड़ सकता है।

    सूर्य से शुभ फल पाने का उपाय: हर रोज सुबह-सुबह सूर्य को जल अर्पित करें।

    चंद्र: चंद्र का संबंध हमारे मन से बताया गया है। चंद्र अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति शांत होता है और चंचल स्वभाव वाला होता है। जबकि, अशुभ चंद्र मानसिक तनाव बढ़ाता है और मन को अस्थिर करता है।

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  124. मंगल: मंगल हमारे धैर्य और पराक्रम को नियंत्रित करता है। शुभ मंगल हो तो व्यक्ति कुशल प्रबंधक होता है। भूमि-भवन से लाभ प्राप्त करता है। जबकि अशुभ मंगल होने पर व्यक्ति को भूमि-भवन से सुख नहीं मिलता है और वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां हो सकती हैं।

    मंगल से शुभ फल पाने का उपाय: हर मंगलवार शिवलिंग पर लाल पुष्प अर्पित करें।


    बुध: बुध ग्रह हमारी बुद्धि और वाणी को प्रभावित करता है। शुभ बुध होने पर बुद्धि शुद्ध और पवित्र होती है, लेकिन अशुभ होने पर बुद्धि और वाणी पर विपरीत असर होता है। बुध के शुभ असर से व्यक्ति की उच्च शिक्षा प्राप्त करता है और इस क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल करता है। जबकि अशुभ बुध होने पर व्यक्ति कड़ी मेहनत के बाद भी औसत शिक्षा ही प्राप्त कर पाता है।

    बुध से शुभ फल पाने का उपाय: हर बुधवार गाय को हरी घास खिलाएं।

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  125. गुरु: गुरु ग्रह हमारी धार्मिक भावनाओं और भाग्य स्थान का कारक है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु शुभ स्थिति में है तो व्यक्ति भाग्यवान होता है और कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति धन संबंधी पूर्ण सुख प्राप्त कर सकता है। जबकि, अशुभ गुरु होने पर व्यक्ति कठिन परिश्रम करता है, लेकिन शुभ फल आसानी से प्राप्त नहीं कर पाता है।

    गुरु से शुभ फल पाने का उपाय: हर गुरुवार शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें और बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।

    शुक्र: शुभ शुक्र से प्रभावित व्यक्ति कलाप्रेमी, सुंदर और ऐश्वर्य प्राप्त करने वाला होता है। कुंडली में शुभ शुक्र होने पर व्यक्ति सदैव नए वस्त्र पहनना पसंद करता है। जबकि अशुभ शुक्र होने पर व्यक्ति कठिनाइयों के साथ जीवन व्यतीत करता है। साफ एवं स्वच्छ वस्त्र प्राप्त नहीं कर पाता है।

    शुक्र से शुभ फल पाने का उपाय: हर शुक्रवार शिवलिंग पर जल और कच्चा दूध अर्पित करें।

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  126. शनि: जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि शुभ हो, वह सभी सुख प्राप्त करने वाला, श्याम वर्ण और शक्तिशाली होता है। शनि अशुभ होने पर कई भयंकर परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

    राहु: जिस व्यक्ति की कुंडली राहु बलशाली होता है, वह कठोर स्वभाव वाला, तेज बुद्धि वाला और श्याम वर्ण होता है। इसके अशुभ होने पर कार्यों में आसानी से सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है।

    केतु: केतु शुभ हो तो व्यक्ति को कठोर स्वभाव, गरीबों के हित को ध्यान में रखने वाला और श्याम वर्ण होता है। जबकि, अशुभ केतु के कारण व्यक्ति कड़ी मेहनत के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं कर पाता है।

    शनि, राहु और केतु से शुभ पाने का उपाय: इन तीनों ग्रहों से शुभ फल पाने के लिए हर शनिवार पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए और इस वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाना चाहिए।

    ध्यान रखें, यहां बताए गए सभी ग्रहों के प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ युति करने पर बदल भी सकते हैं।

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  127. अच्छी नौकरी की लालसा हर किसी को होती है। कभी-कभार आप देखते होंगे कि लिखित परीक्षा और इंटरव्यू अच्छा होने के बावजूद कुछ ऐसे अड़ंगे लग जाते हैं, जिससे नौकरी मिलते-मिलते हाथ से आगे निकल जाती है। ज्योतिषियों की मानें तो ये सब ग्रहों का फेर ही होता है, जो आपके बनते काम को बिगाड़कर रख देता है। आइए, जानें लोग नौकरी के रास्ते आनेवाली बाधाओं को दूर करने के लिए कैसे-कैसे उपायों का सहारा लेते हैं-

    लोग इस टोटके को भी खूब आजमाते हैं। एक नींबू में चार लौंग गाड़ दें और 'ॐ श्री हनुमते नम:' मंत्र का 108 बार जप करके नींबू को अपने उस बैग में रखें, जिसे आप साथ लेकर जा रहे हों। कहते हैं ऐसा करने से बिगड़ता हुआ काम बन जाता है।

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  128. मंगल: मंगल हमारे धैर्य और पराक्रम को नियंत्रित करता है। शुभ मंगल हो तो व्यक्ति कुशल प्रबंधक होता है। भूमि-भवन से लाभ प्राप्त करता है। जबकि अशुभ मंगल होने पर व्यक्ति को भूमि-भवन से सुख नहीं मिलता है और वैवाहिक जीवन में भी परेशानियां हो सकती हैं।
    मंगल से शुभ फल पाने का उपाय: हर मंगलवार शिवलिंग पर लाल पुष्प अर्पित करें।

    बुध: बुध ग्रह हमारी बुद्धि और वाणी को प्रभावित करता है। शुभ बुध होने पर बुद्धि शुद्ध और पवित्र होती है, लेकिन अशुभ होने पर बुद्धि और वाणी पर विपरीत असर होता है। बुध के शुभ असर से व्यक्ति की उच्च शिक्षा प्राप्त करता है और इस क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल करता है। जबकि अशुभ बुध होने पर व्यक्ति कड़ी मेहनत के बाद भी औसत शिक्षा ही प्राप्त कर पाता है।
    बुध से शुभ फल पाने का उपाय: हर बुधवार गाय को हरी घास खिलाएं।

    गुरु: गुरु ग्रह हमारी धार्मिक भावनाओं और भाग्य स्थान का कारक है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु शुभ स्थिति में है तो व्यक्ति भाग्यवान होता है और कार्यों में सफलता प्राप्त करता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति धन संबंधी पूर्ण सुख प्राप्त कर सकता है। जबकि, अशुभ गुरु होने पर व्यक्ति कठिन परिश्रम करता है, लेकिन शुभ फल आसानी से प्राप्त नहीं कर पाता है।
    गुरु से शुभ फल पाने का उपाय: हर गुरुवार शिवलिंग पर चने की दाल अर्पित करें और बेसन के लड्डू का भोग लगाएं।
    शुक्र: शुभ शुक्र से प्रभावित व्यक्ति कलाप्रेमी, सुंदर और ऐश्वर्य प्राप्त करने वाला होता है। कुंडली में शुभ शुक्र होने पर व्यक्ति सदैव नए वस्त्र पहनना पसंद करता है। जबकि अशुभ शुक्र होने पर व्यक्ति कठिनाइयों के साथ जीवन व्यतीत करता है। साफ एवं स्वच्छ वस्त्र प्राप्त नहीं कर पाता है।
    शुक्र से शुभ फल पाने का उपाय: हर शुक्रवार शिवलिंग पर जल और कच्चा दूध अर्पित करें।

    शनि: जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि शुभ हो, वह सभी सुख प्राप्त करने वाला, श्याम वर्ण और शक्तिशाली होता है। शनि अशुभ होने पर कई भयंकर परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
    राहु: जिस व्यक्ति की कुंडली राहु बलशाली होता है, वह कठोर स्वभाव वाला, तेज बुद्धि वाला और श्याम वर्ण होता है। इसके अशुभ होने पर कार्यों में आसानी से सफलता प्राप्त नहीं हो पाती है।
    केतु: केतु शुभ हो तो व्यक्ति को कठोर स्वभाव, गरीबों के हित को ध्यान में रखने वाला और श्याम वर्ण होता है। जबकि, अशुभ केतु के कारण व्यक्ति कड़ी मेहनत के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं कर पाता है।
    शनि, राहु और केतु से शुभ पाने का उपाय: इन तीनों ग्रहों से शुभ फल पाने के लिए हर शनिवार पीपल की सात परिक्रमा करनी चाहिए और इस वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाना चाहिए।
    ध्यान रखें, यहां बताए गए सभी ग्रहों के प्रभाव अन्य ग्रहों के साथ युति करने पर बदल भी सकते हैं।

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  129. स्त्रियां ध्यान रखें ये बातें

    जो स्त्रियां अपने पति को डांटती हैं, सताती हैं, पति की आज्ञा का पालन नहीं करती हैं, सम्मान नहीं करती हैं, उनके पुण्य कर्मों का क्षय होता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार जो स्त्रियां वाणी द्वारा दुख पहुंचाती हैं, वे अगले जन्म में कौएं का जन्म पाती हैं। पति के साथ हिंसा करने वाली स्त्री का अगला जन्म सूअर के रूप में होता है।

    दिन के समय न करें समागम

    दिन के समय और सुबह-शाम पूजन के समय स्त्री और पुरुष को समागम नहीं करना चाहिए। जो लोग यह काम करते हैं, उन्हें महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है। कई प्रकार के रोगों का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से स्त्री और पुरुष, दोनों को आंख और कान से जुड़े रोग हो सकते हैं। साथ ही, इसे अधार्मिक कर्म भी माना गया है।

    ब्रह्मवैवर्तपुराण का परिचय: यह वैष्णव पुराण है। इस पुराण के केंद्र में भगवान श्रीहरि और श्रीकृष्ण हैं। यह चार खंडों में विभाजित है। पहला खंड ब्रह्म खंड है, दूसरा प्रकृति खंड है, तीसरा गणपति खंड है और चौथा श्रीकृष्ण जन्म खंड है। इस पुराण में श्रेष्ठ जीवन के लिए कई सूत्र बताए गए हैं।

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  130. सूर्य और चंद्र को अस्त होते समय नहीं देखना चाहिए

    सूर्य और चंद्र को अस्त होते समय नहीं देखना चाहिए। यह अपशकुन माना गया है। ऐसा करने पर आंखों से संबंधित रोग होने की संभावनाएं रहती हैं। सूर्य को उदय होते समय देखना बेहद फायदेमंद होता है। इसी वजह से सुबह जल्दी उठने की प्राचीन परंपरा है।

    इन तिथियों पर ध्यान रखें ये बातें

    हिन्दी पंचांग के अनुसार किसी भी माह की अमावस्या, पूर्णिमा, चतुर्दशी और अष्टमी तिथि पर स्त्री संग, तेल मालिश और मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।

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  131. इनका अनादर नहीं करना चाहिए

    हमें किसी भी परिस्थिति में पिता, माता, पुत्र, पुत्री, पतिव्रता पत्नी, श्रेष्ठ पति, गुरु, अनाथ स्त्री, बहन, भाई, देवी-देवता और ज्ञानी लोगों का अनादर नहीं करना चाहिए। इनका अनादर करने पर यदि व्यक्ति धनकुबेर भी हो तो उसका खजाना खाली हो जाता है। इन लोगों का अपमान करने वाले व्यक्ति को महालक्ष्मी हमेशा के लिए त्याग देती हैं।

    तय तिथि पर पूरा करना चाहिए दान का संकल्प

    यदि हमने किसी को दान देने का संकल्प किया है तो इस संकल्प को तय तिथि पर किसी भी परिस्थिति में पूरा करना चाहिए। दान देने में यदि एक दिन का विलंब होता है तो दुगुना दान देना चाहिए। यदि एक माह का विलंब होता है तो दान सौगुना हो जाता है। दो माह बीतने पर दान की राशि सहस्त्र गुनी हो जाती है। अत: दान के लिए जब भी संकल्प करें तो तय तिथि पर दान कर देना चाहिए। अकारण दान देने में विलंब नहीं करना चाहिए।

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  132. ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए

    किसी बुरे चरित्र वाले इंसान के साथ एक स्थान पर सोना, खाना-पीना, घूमना-फिरना वर्जित किया गया है। क्योंकि किसी व्यक्ति के साथ बात करने से, शरीर को छूने से, एक स्थान पर सोने से, साथ भोजन करने से, एक-दूसरे के गुणों और दोष आपस में संचारित अवश्य होते हैं। जिस प्रकार पानी पर तेल की बूंद गिरते ही वह फैल जाती है, ठीक उसी प्रकार बुरे चरित्र वाले व्यक्ति के संपर्क में आते ही बुराइयां हमारे अंदर प्रवेश कर जाती हैं।

    रविवार को ध्यान रखें ये बातें

    रविवार के दिन कांस्य के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए। इस दिन मसूर की दाल, अदरक, लाल रंग की खाने की चीजें भी नहीं खाना चाहिए।

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  133. इन चीजों को जमीन पर न रखें

    दीपक, शिवलिंग, शालग्राम, मणि, देवी-देवताओं की मूर्तियां, यज्ञोपवीत, सोना और शंख को कभी भी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इन्हें नीचे रखने से पहले कोई कपड़ा बिछाएं या किसी ऊंचे स्थान पर रखें।

    सुबह उठते ही ध्यान रखें ये बातें

    स्त्री हो या पुरुष, सुबह उठते ही इष्टदेव का ध्यान करते हुए दोनों हथेलियों को देखना चाहिए। इसके बाद अधिक समय तक बिना नहाए नहीं रहना चाहिए। रात में पहने हुए कपड़ों को शीघ्र त्याग देना चाहिए।

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  134. रुषों ध्यान रखनी चाहिए ये बात

    पुरुषों को कभी भी स्त्रियों के अंगों को या हास्य को देखना नहीं चाहिए। कभी भी मल-मूत्र को भी नहीं देखना चाहिए। ब्रह्मवेवर्तपुराण के अनुसार ये काम विनाश की ओर ले जाते हैं।

    घर में प्रवेश करते समय ध्यान रखें ये बातें

    हम जब भी कहीं बाहर से लौटकर घर आते हैं तो सीधे घर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। मुख्य द्वार के बाहर ही दोनों पैरों को साफ पानी से धो लेना चाहिए। इसके बाद ही घर में प्रवेश करें। ऐसा करने पर घर की पवित्रता और स्वच्छता बनी रहती है।

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  135. विधेहि द्विषतां नाशं, विधेहि बलमुच्चकै:।
    रूपं देहि, जयं देहि, यशो देहि, द्विषोजही।।
    हे भगवति! द्वेष करने वालों का नाश करो, हमारे बल में वृद्धि करो, रूप दो, विजय दो, यश दो और शत्रुओं का विनाश करो।

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  136. शुक्रवार का विशेष उपाय,जीवन में कौन नहीं पाना चाहता सफलता ? सफलता से मतलब हम इस बात से लगाते हैं कि हमें किसी भी कीमत पर जल्दी तरक्की मिले। वे सभी चीजें हासिल कर लें जिसे हम पाना चाहते हैं। सफलता के लिए भगवान श्री हरि विष्णु और धन की अधिष्ठात्री देवी का सुमिरन कर कार्य करें। भगवान का ध्यान कर किए जाने वाले कार्य में सफलता अवश्य मिलती है। केवल परिश्रम से कुछ नहीं होता।

    घर में मां लक्ष्मी का आगमन बना रहे इसके लिए शुक्रवार को लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए। सनातन धर्म में मां लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री एवं प्रमुख देवी हैं। समस्त देवी शक्तियों के मूल में लक्ष्मी जी ही हैं। जो सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति हैं। माता महालक्ष्मी को प्रसन्न करने से धन की कमी नहीं रहती। माता महालक्ष्मी की कृपा और मन भावन धन की बरसात चाहते हैं तो शुक्रवार को करें इन मंत्रों का जाप

    1 ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः

    2 श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये

    3 श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा

    4 ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः

    5 ॐ श्रीं श्रियै नमः

    6 ॐ ह्री श्रीं क्रीं श्रीं क्रीं क्लीं श्रीं महालक्ष्मी मम गृहे धनं पूरय पूरय चिंतायै दूरय दूरय स्वाहा

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  137. पुष्य नक्षत्र योग खरीदारी के लिए बहुत शुभ माना जाता है। यह नक्षत्र सोने-चांदी में निवेश और वाहन, मकान खरीदने के लिए बहुत शुभ होता है। पुष्य नक्षत्र में कोई भी नया काम, व्यापार, खरीदारी और शुभ कार्य के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। पुष्य नक्षत्र में की गई खरीदारी सर्वश्रेष्ठ और कोष में वृद्धि करने वाली होती है।

    राशिनुसार क्या करें खरीदारी

    मेष : मेष राशि के जातक प्रापर्टी, औषधि और गृह उपयोगी सामग्री की खरीदारी करें।

    वृषभ : वृषभ राशि के जातक आभूषण, सुगंधित पदार्थ और वस्त्रों की खरीदारी करें।

    मिथुन : मिथुन राशि के जातक वस्त्र, अन्न और इलक्ट्रॉनिक वस्तुओं की खरीदारी करें।

    कर्क : कर्क राशि के जातक बहीखाते, भोज्य सामग्री, डायरी व पेन की खरीदारी करें।

    सिंह : सिंह राशि के जातक सोना-चांदी, हीरे-मोती सहित बहुमूल्य धातु, रत्न व इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की खरीदारी करें।

    कन्या : कन्या राशि के जातक रत्न, कम्प्यूटर, प्रिंटर और स्टेशनरी की खरीदारी करें।

    तुला : तुला राशि के जातक रत्न, परफ्यूम और वाहन की खरीदारी करें।

    वृश्चिक : वृश्चिक राशि के जातक वाहन, खाद्य पदार्थ और वस्त्रों की खरीदारी करें।

    धनु : धनु राशि के जातक स्टेशनरी, स्वर्ण और मोबाइल की खरीदारी करें।

    मकर : मकर राशि के जातक उपकरण, औषधि और मेवे की खरीदारी करें।

    कुंभ : कुंभ राशि के जातक मोबाइल, वाहन, सोना-चांदी और संचार के साधनों की खरीदारी करें।

    मीन : मीन राशि के जातक जवाहरात, कम्प्यूटर और स्टेशनरी आदि की खरीदारी करें।

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  138. 12 जुलाई को राहु राशि बदलकर तुला से कन्या में जाएगा, इसके बाद शनि 21 जुलाई 2014 से पुन: मार्गी हो जाएगा। 14 जुलाई को मंगल भी तुला राशि में आएगा, तब मंगल और शनि की युति बन जाएगी।

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  139. श्रीसंतोषी माता का व्रत “शुक्रवार व्रत” के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह व्रत किसी भी माह, शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है। सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किये जाने का विधान है। माता संतोषी का व्रत पूजन करने से धन, विवाह संतानादि भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। संतोषी माता भगवान श्री गणेशजी की पुत्री हैं।

    विधि –

    इस व्रत को करने वाला कथा कहते वे सुनते समय हाथ में गुड़ व भुने हुए चने रखें । सुनने वाला सन्तोषी माता की जय । सन्तोषी मात की जय । मुख से बोलते जायें । कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ चना गौ माता को खिलावें । कलश में रखा हुआ गुड़ चना सबको प्रसाद के रुप में बांट दें । कथा से पहले कलश को जल से भरें । उसके ऊपर गुड़ चने से भरा कटोरा रखें । कथा समाप्त होने और आरती होने के बाद कलश के जल को घर में सब जगह छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल देवें । व्रत के उघापन में अढाई सेर खाजी, मोमनदार पूड़ी, खीर, चने का शाक, नैवेघ रखें, घी का दीपक जला संतोषी माता की जय जयकारा बोल नारियल फोड़ें । इस दिन घर में कोई खटाई न खावे और न आप खावे न किसी दूसरे को खाने दें । इस दिन 8 लड़कों को भोजन करावे, देवर, जेठ, घर कुटुम्ब के लड़के मिलते हो तो दूसरों को बुलाना नहीं । कुटुम्ब में न मिले तो ब्राहमणों के, रिश्तेदारों या पड़ोसियों के लड़के बुलावें । उन्हें खटाई की कोई वस्तु न दें तथा भोजन कराकर यथाशक्ति दक्षिणा देवें ।

    उद्यापन -

    16 शुक्रवार का व्रत करने के बाद, अंतिम शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए। व्रत के उद्यापन में ढाई सेर खाजा (मोयमदार पुरी), चने कि सब्जी और खीर का भोग लगाना चाहिए। इस दिन कथा के समय नैवेद्य रखे घी का दीपक जला संतोषी माता कि जय जय कार बोल नारियल फोड़ना चाहिए । इस दिन खटाई न खावें, खट्टी वस्तु खाने से माता का कोप होता है। इसलिए उद्यापन के दिन भोग कि किसी सामग्री में खटाई न डालें। न आप खाएं, न किसी दुसरे को खानें दें। इस दिन आठ लड़कों को भोजन करावें। देवर-जेठ घर कुटुंब का मिलता हो पहले उन्हें बुलावें। न मिलें तो रिश्तेदारों, ब्राह्मणों या पड़ोसियों के लड़के बुलावें। भोजन कराने के बाद उन्हें यथा-शक्ति दक्षिणा देवें। नगद पैसे या खटाई कि कि कोई वस्तु न देवें। व्रत करने वाला कथा सुन एक समय भोजन-प्रसाद ले। इस प्रकार माता अत्यन्त प्रसन्न होंगी। दुख दरिद्रता दूर होकर चाही मुराद पूरी होगी।

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  140. श्रीसंतोषी माता (शुक्रवार) व्रत कथा

    एक बुढिय़ा थी, उसके सात बेटे थे। छह कमाने वाले थे। एक निक्कमा था। बुढिय़ा मां छहो बेटों की रसोई बनाती, भोजन कराती और कुछ झूटन बचती वह सातवें को दे देती थी, परन्तु वह बड़ा भोला-भाला था, मन में कुछ विचार नहीं करता था। एक दिन वह बहू से बोला- देखो मेरी मां को मुझ पर कितना प्रेम है। वह बोली-क्यों नहीं, सबका झूठा बचा हुआ जो तुमको खिलाती है। वह बोला- ऐसा नहीं हो सकता है। मैं जब तक आंखों से न देख लूं मान नहीं सकता। बहू ने हंस कर कहा- देख लोगे तब तो मानोगे?

    कुछ दिन बात त्यौहार आया, घर में सात प्रकार के भोजन और चूरमे के लड्डू बने। वह जांचने को सिर दुखने का बहाना कर पतला वस्त्र सिर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया, वह कपड़े में से सब देखता रहा। छहों भाई भोजन करने आए। उसने देखा, मां ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछा नाना प्रकार की रसोई परोसी और आग्रह करके उन्हें जिमाया। वह देखता रहा। छहों भोजन कर उठे तब मां ने उनकी झूंठी थालियों में से लड्डुओं के टुकड़े उठाकर एक लड्डू बनाया। जूठन साफ कर बुढिय़ा मां ने उसे पुकारा- बेटा, छहों भाई भोजन कर गए अब तू ही बाकी है, उठ तू कब खाएगा? वह कहने लगा- मां मुझे भोजन नहीं करना, मै अब परदेस जा रहा हूं। मां ने कहा- कल जाता हो तो आज चला जा। वह बोला- हां आज ही जा रहा हूँ । यह कह कर वह घर से निकल गया। चलते समय स्त्री की याद आ गई। वह गौशाला में कण्डे थाप रही थी।

    वहां जाकर बोला-दोहा- हम जावे परदेस आवेंगे कुछ काल। तुम रहियो संन्तोष से धर्म आपनो पाल।

    वह बोली- जाओ पिया आनन्द से हमारो सोच हटाय। राम भरोसे हम रहें ईश्वर तुम्हें सहाय।

    दो निशानी आपनी देख धरूं में धीर। सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गम्भीर।

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  141. वह बोला- मेरे पास तो कुछ नहीं, यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे। वह बोली- मेरे पास क्या है, यह गोबर भरा हाथ है। यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थाप मार दी। वह चल दिया, चलते-चलते दूर देश पहुंचा। वहां एक साहूकार की दुकान थी। वहां जाकर कहने लगा- भाई मुझे नौकरी पर रख लो। साहूकार को जरूरत थी, बोला- रह जा। लड़के पूछा- तनखा क्या दोगे? साहूकार ने कहा- काम देख कर दाम मिलेंगे। साहूकार की नौकरी मिली, वह सुबह ७ बजे से १० बजे तक नौकरी बजाने लगा। कुछ दिनों में दुकान का सारा लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को माल बेचना सारा काम करने लगा। साहूकार के सात-आठ नौकर थे, वे सब चक्कर खाने लगे, यह तो बहुत होशियार बन गया। सेठ ने भी काम देखा और तीन महीने में ही उसे आधे मुनाफे का हिस्सेदार बना लिया। वह कुछ वर्ष में ही नामी सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उस छोड़कर चला गया।

    अब बहू पर क्या बीती? सो सुनों, सास ससुर उसे दु:ख देने लगे, सारी गृहस्थी का काम कराके उसे लकड़ी लेने जंगल में भेजते। इस बीच घर के आटे से जो भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली मे पानी। इस तरह दिन बीतते रहे। एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी, रास्ते मे बहुत सी स्त्रियां संतोषी माता का व्रत करती दिखाई दी। वह वहां खड़ी होकर कथा सुनने लगी और पूछा- बहिनों तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसकेकरने से क्या फल मिलता है? इस व्रत को करने की क्या विधि है? यदि तुम अपने इस व्रत का विधान मुझे समझा कर कहोगी तो मै तुम्हारा बड़ा अहसान मानूंगी। तब उनमें से एक स्त्री बोली- सुनों, यह संतोषी माता का व्रत है। इसके करने से निर्धनता, दरिद्रता का नाश होता है। लक्ष्मी आती है। मन की चिन्ताएं दूर होती है। घर में सुख होने से मन को प्रसन्नता और शान्ति मिलती है। निपूती को पुत्र मिलता है, प्रीतम बाहर गया हो तो शीध्र घर आवे, कवांरी कन्या को मन पसंद वर मिले, राजद्वारे में बहुत दिनों से मुकदमा चल रहा हो खत्म हो जावे, कलह क्लेश की निवृति हो सुख-शान्ति हो। घर में धन जमा हो, पैसा जायदाद का लाभ हो, रोग दूर हो जावे तथा और जो कुछ मन में कामना हो सो सब संतोषी माता की कृपा से पूरी हो जावे, इसमें संदेह नहीं।

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  142. संकल्प

    यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये |

    तत्पश्चात श्रीगणेश की आदिपूजा करके कलश स्थापित कर उसमे देवी सरस्वतीका सादर आवाहन करके वैदिक या पौराणिक मंत्रो का उचारण करते उपचार -सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करे |

    वेदोक्त अष्टाक्षरयुक्त मंत्र सरस्वतीका मूलमंत्र है |

    श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा |

    इस अष्टाक्षर-मंत्र से पूजन सामग्री समर्पित करते हुए देवी की आरती करके स्तुति करे |

    मां सरस्वती की आराधना करने के लिए श्लोक है-

    सरस्वती शुक्ल वर्णासस्मितांसुमनोहराम।

    कोटिचन्द्रप्रभामुष्टश्री युक्त विग्रहाम।

    वह्निशुद्धांशुकाधानांवीणा पुस्तक धारिणीम्।

    रत्नसारेन्द्रनिर्माण नव भूषण भूषिताम।

    सुपूजितांसुरगणैब्रह्म विष्णु शिवादिभि:।

    वन्दे भक्त्यावन्दितांचमुनीन्द्रमनुमानवै:।
    - (देवीभागवत )

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  143. देवी सरस्वती की प्रसिद्ध ‘द्वादश नामावली’ का पाठ करने पर भगवती प्रसन्न होती हैं-


    प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती।

    तृतीयं शारदा देवी चतुर्थ हंस वाहिनी।।

    पञ्चम जगतीख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा।

    सप्तमं कुमुदी प्रोक्ता अष्टमें ब्रह्मचारिणी।।

    नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी।

    एकादशं चन्द्रकान्ति द्वादशं भुवनेश्वरी।।

    द्वादशैतानि नामानी त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।

    जिह्वाग्रे वसते नित्यं ब्रह्मरूपा सरस्वती ।।

    तुलसीदास ने सबका मंगल करने वाली देवी को वाणी कहा है। वे देवी गंगा और सरस्वती को एक समान मानते हैं-

    पुनि बंदउंसारद सुर सरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।

    भज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अविवेका।

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  144. शुभाशुभ स्वप्न फल

    धन लाभ



    अग्नि हाथ में लेना, आग लगना, कीड़े-मकोड़े देखना, आम का पेड़ देखना, पके हुए आम देखना या खाना, चंदन देखना, अनार फल प्राप्ति, मंदिर पर चढ़ना, दूध पीना, दफन विधि, शौच का जाना या लगना देखना, हाथी दिखना या हाथी पर सवार होना।

    व्यवसाय, नौकरी, भाग्योदय

    आग जलाते हुए देखना, अन्न दर्शन, अश्व, ऐनक देखना, कीड़े-मकोड़े बदन पर रेंगना, कड़वी चीज खाना, केला खाना या देखना, किसी को रोते हुए देखना, किसी का कत्ल करना, कुत्ते को मौत के घाट उतार देना, नमकीन/नमक खाना, चंदन लेप, गेहुं देखना, गो माता देखना, घोड़ा साज श्रृंगार किया हुआ देखना, घंटा की आवाज, मकान देखना, चंद्रकोट देखना, छाता खोलना, पहाड़ पर चढ़ना या घूमना, नयी तलवार देखना, घी पीना या मिलना, देवता, मूर्ती, धार्मिक कार्य, फुलवारी, फूल का पौधा देखना, भारद्वाज पक्षी देखना, पकोड़े खाना या देखना, प्रेत देखना, खुद रोते हुए देखना, रेस का घोड़ा, राजा, लड्डू खाना, बतक, बैल, युद्ध-लड़ाई में कत्ल होना, श्रीफल नारियल का प्रसाद मिलना देखना, सिगरेट पीना, जननेंद्रिय देखना, आसमान देखना।

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  145. विवाह/स्त्री प्राप्ति, विवाह सौख्य

    खरगोश पर बैठना, तितली देखना, नवयौवना, पान खाना, बर्फ देखना, मछली देखना, लहंगा देखना, शिशु देखना, अंगूठी देखना, नारियल देना, मुर्गी देखना, गुलाबी चीजें देखना, गोल गोल देखना।

    सत्ती प्राप्ति सौख्य

    अंडा खाना, कैद होना, इमली खाना, तरबूज का खेत देखना, रस्सी से बांधना, जंजीर से बांधना, इंद्रिय देखना।

    स्वास्थ्य लाभ – आयु वृद्धि/ रोग मुक्ति

    अर्थी देखना, आंवला खाना, आत्म हत्या करना, ईमली का पेड़ देखना, चोट लगना, ज्वर पीड़ित, गड्ढ़े देखना, तैरते देखना, दवाई पीना, दरिया में नहाना, दाह संस्कार देखना, नाखून काटना, बादाम देखना, सेब देखना, बिस्तर बिछाना, आसमान में उड़ना, बाल सफेद होना, चांद देखना, पांव खाना, रोटी, ब्रेड खाना, टैंक में से पानी पीना या नहाना।

    प्रवास – यात्रा

    किरानी में बैठकर नदी पार करना, पैर देखना, समुद्र, दरिया देखना, स्कूटर चलाना, हरा रंग देखना, कन्या देखना, घड़ी देखना, घाट पर नहाना, धनुष खींचना, पूल देखना, बकरी देखना, स्वयं को भूखा देखना

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  146. भैरव रुद्र स्वरूप हैं। इसलिए शिव की तरह ही भैरवनाथ को सर्वशक्तिमान बताया गया है। पौराणिक प्रसंग उजागर करते हैं कि अहं और अनिष्ट शांति के लिए भगवान शिव ने ही भैरव अवतार लिया। शिव-शक्ति उपासना के महत्व से भी दशविद्या के साथ भैरव उपासना मंगलकारी मानी गई है। इस दृष्टि से भैरव को शिव का पांचवा अवतार भी बताया गया है। रक्षक देवता के रूप में वह काशी के कोतवाल पुकारे जाते हैं।

    व्यावहारिक रूप से भी पुरुषार्थ, शौर्य व शक्ति की प्रेरणा है- भैरव भक्ति। इसलिए भैरव की उपासना हर भय व पीड़ा का अंत करने वाली मानी गई है। रुद्र स्वरूप होने से ही शास्त्रों में भैरव की उपासना शनि पीड़ा से भी रक्षा करती है, क्योंकि शनि शिव भक्त व सेवक बताए गए हैं। जिसके लिए वीरभद्र या कालभैरव पूजा शुभ मानी गई है।

    शनि दशा के बुरे असर पीड़ा, दु:ख व दरिद्रता के रूप में जीवन को प्रभावित करते हैं। इसलिए ऐसे कष्टों से बचने के लिए शनिवार के दिन भी भैरव मंत्र का स्मरण बहुत ही असरदार माना गया है। अगली स्लाइड पर जानिए शनि पीड़ा मुक्ति के लिए ऐसा ही अचूक भैरव मंत्र व पूजा उपाय-

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  147. भैरवनाथ की सिंदूर चढ़ी प्रतिमा को जल स्नान कराने के बाद सिंदूर व सुगंधित तेल के साथ गंध, अक्षत, फूल व विशेष रूप से नारियल, काली उड़द व तिल चढ़ाएं। मिठाई का भोग लगाकर धूप व गाय के घी का दीप जलाकर नीचे लिखे भैरव मंत्र का स्मरण शनि दोष शांति की कामना से करें-

    तीक्ष्णदृष्टं महाकाय कल्पान्तदहनोपम।
    भैरवाय नमोस्तुभ्यं अनुज्ञामदातुरमहर्षि।।

    या नीचे लिखे 2 छोटे-छोटे भैरव मंत्रों का जप दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठकर करें-

    - ॐ महाकाल भैरवाय नम:

    - ॐ भं भैरवाय अनिष्ट निवारणाय स्वाहा

    अंत में अनिष्ट शांति के लिए भैरव की धूप व कर्पूर आरती करें।

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  148. आप विद्यार्थी हैं, कामकाजी हो या प्रतियोगी, मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए शास्त्रों में बताए मां सरस्वती के इन मंत्रों या किसी भी 1 मंत्र का ध्यान या जप कम से कम 108 बार माता को सफेद पूजा सामग्रियों जैसे सफेद चंदन, सफेद फूल, सफेद वस्त्र अर्पित कर करें, दूध की मिठाई का भोग लगाएं व आरती करें-

    - ॐ ऐं स्मृत्यै नम:

    - ऐं नम: भगवति वद वद वाग्देवि स्वाहा।

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  149. बुरे वक्त में श्रीहनुमान का नाम स्मरण मात्र ही मन को प्रेरणा व हौंसला देकर सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाने वाला माना गया है। साथ ही यह निराशा व हताशा का अंत भी करता है।

    ज्योतिष मान्यताओं में भी शनि दशाओं में शनि पीड़ा भी विपरीत वक्त होता है। इसलिए यहां बताए जा रहे विशेष हनुमान मंत्रो का शनिवार या मंगलवार के अलावा हर सुबह ध्यान मात्र ऐसी सारी परेशानियों से भी छुटकारा देने वाला बताया गया है। जानिए ये 5 संकटमोचक विशेष हनुमान नाम मंत्र-

    - सुबह स्नान के बाद हनुमानजी की यथासंभव सिंदूर मूर्ति पर गंध, अक्षत, फूल चढ़ाकर चने-गुड़ का भोग लगाएं व धूप व दीप जलाकर नीचे लिखे मंत्रों का सफलता व संकटमोचन की कामना से ध्यान व आरती करें-

    ॐ दृढव्रताय नम:

    ॐ विजितेन्द्रियाय नम:

    ॐ लक्ष्मणप्राणदात्रे नम:

    ॐ रुद्र वीर्य समुद्भवाय नम:

    ॐ प्रभावे नम:

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  150. अभाव, दरिद्रता या दुःख दूर करने के लिए नीचे लिखा मंत्र बोलें-

    दुर्गे स्मृता हरसि भीतिशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
    दारिद्रयःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्दचित्ता।।

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  151. हर सुख व खुशहाली पाने के लिए इस मंत्र का स्मरण करें-

    ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।

    धन, संतान बाधा या परेशानियों को दूर करने के लिए इस मंत्र का स्मरण
    करें-

    सर्व बाधा विनिर्मुक्तो, धन धान्य सुतान्वितः।
    मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥

    भाग्य बाधा दूर करने व सौभाग्य की कामना से इस मंत्र का स्मरण करें-

    देहि सौभाग्य आरोग्यं देहि में परमं सुखम्।
    रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि।।

    हर तरह से बलवान बनने के लिए इस मंत्र का स्मरण करें-

    सृष्टिस्थितिविनाशानं शक्तिभूते सनातनि।
    गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तुते।।

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  152. देवी कवच के अद्भुत मंत्रों से गुप्त नवरात्रि की रातों में नवदुर्गा का स्मरण वह उपाय है, जिसका शुभ प्रभाव बुरा वक्त टाल खुशहाल कर देता है। जानिए इसके ध्यान का आसान उपाय-

    - इस देवी कवच के स्मरण से पूर्व मातृशक्ति की सामान्य पूजा में लाल गंध, लाल फूल और लाल वस्त्र चढ़ाएं।

    - धूप और दीप प्रज्जवलित कर इस आसान देवी कवच का उच्चारण करें-

    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
    पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम् ।।
    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
    अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
    विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।।
    न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
    नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।।
    ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
    दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।।

    - अंत में माता से जीवन की भय, बाधा से रक्षा कर सुख से भरने की प्रार्थना करें।

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  153. हर दिन भी अगर कोई इंसान यहां बताए जा रहे 32 नाम मंत्र स्तुति का ध्यान करता है, तो वह कष्ट और संताप से मुक्त होकर सुखी संपन्न व निर्भय हो जाता है। जानिए किस अद्भुत देवी मंत्र स्तुति से सारी देवी शक्तियों का स्मरण करें–

    इन 32 नाम मंत्रों को देवी की गंध, अक्षत, फूल और धूप-दीप जलाकर पूजा करने के बाद लाल आसन पर बैठकर घर या देवी मंदिर में करें-

    ॐ दुर्गा दुर्गतिशमनी दुर्गाद्विनिवारिणी
    दुर्ग मच्छेदनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी
    दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा
    दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला
    दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी
    दुर्गमार्गप्रदा दुर्गम विद्या दुर्गमाश्रिता
    दुर्गमज्ञान संस्थाना दुर्गमध्यान भासिनी
    दुर्गमोहा दुर्गभगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी
    दुर्गमासुर संहंत्रि दुर्गमायुध धारिणी
    दुर्गमांगी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी
    दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गमो दुर्गदारिणी
    नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानव:
    पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशय:।

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  154. मुसीबतों से बचने के लिए दुर्गा चालीसा पाठ का महत्व बताया गया है। यह चालीसा देवी की अद्भुत शक्तियों और स्वरूप का ही स्मरण है, जिसका हर रोज पाठ तो ऊर्जावान रखता ही है, किंतु नवरात्रि के दिन यह पाठ शक्ति उपासना से संकटमोचन के नजरिए से बहुत ही असरदार माना गया है। जानिए यह संकटमोचक देवी स्मरण उपाय-

    - देवी की सामान्य पूजा गंध, फूल, अक्षत, धूप, दीप से कर इस दुर्गा चालीसा का पाठ पूरी आस्था से करें-

    नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
    निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूं लोक फैली उजियारी॥
    शशि ललाट मुख महा विशाला। नेत्र लाल भृकुटी विकराला॥
    रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
    तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
    अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
    प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी॥
    शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रहृ विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
    रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्घि ऋषि मुनिन उबारा॥
    धरा रुप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भई फाड़कर खम्बा॥
    रक्षा कर प्रहलाद बचायो। हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो॥
    लक्ष्मी रुप धरो जग माही। श्री नारायण अंग समाही॥
    क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
    हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
    मातंगी धूमावति माता। भुवनेश्वरि बगला सुखदाता॥
    श्री भैरव तारा जग तारिणि। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
    केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
    कर में खप्पर खड्ग विराजे। जाको देख काल डर भाजे॥
    सोहे अस्त्र और तिरशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
    नगर कोटि में तुम्ही विराजत। तिहूं लोक में डंका बाजत॥
    शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
    महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
    रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
    परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
    अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
    ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर नारी॥
    प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे॥
    ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताको छुटि जाई॥
    जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
    शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
    निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहू काल नहिं सुमिरो तुमको॥
    शक्ति रुप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछतायो॥
    शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
    भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
    मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
    आशा तृष्णा निपट सतवे। मोह मदादिक सब विनशावै॥
    शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी॥
    करौ कृपा हे मातु दयाला। ऋद्घि सिद्घि दे करहु निहाला॥
    जब लगि जियौं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
    दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परम पद पावै॥
    देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

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  155. आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र मंत्र ऐसा सिद्घ मंत्र माना जाता है जिसके नियमित पाठ से देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव घर में बनी रहती है। इसी मंत्र से शंकराचार्य ने सोने की बरसात करवा दी थी इसलिए इस मंत्र को कनकधारा स्तोत्र कहा जाता है। आप भी धन वृद्घि के लिए नियमित इस स्तोत्र का पाठ करें।

    अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।
    अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।

    मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
    माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।

    विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
    ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।

    आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
    आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।

    बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।
    कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।

    कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
    मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।

    प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।
    मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।

    दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।
    दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।

    इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।
    दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।

    गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
    सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।

    श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
    शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।

    नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।
    नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।

    सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
    त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।

    यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।
    संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।

    सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
    भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।

    दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
    प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।

    कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
    अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।

    स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
    गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।

    ।। इति श्री कनकधारा स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।

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  156. हिन्दू धर्म के पंचदेवों में से प्रमुख देवता सूर्यदेव ही है। सूर्य देव को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है। यह सत्य है कि सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य देव को सर्व प्रेरक,सर्व प्रकाशक,सर्व प्रवर्तक ,सर्व कल्याणकारी माना गया है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। हर रोज सूर्य उपासना करके मनुष्य हर सांसारिक सुख को पूरा कर सकता है।

    रविवार को भगवान सूर्यदेव का दिन माना जाता है और सूर्य देव जी की उपासना के लिए यह दिन बड़ा शुभ माना गया है। सूर्य देव जी ज्ञान, सुख, स्वास्थ्य, पद, सफलता, प्रसिद्धि के साथ-साथ सभी आकांक्षाओं को पूरा करते है। सफलता और यश के लिए रविवार को सूर्य देव के इस मंत्र का जाप पूरी विधि से करना चाहिए।

    -रविवार सुबह स्नान के बाद सफेद वस्त्र पहन कर सूर्य देव को नमस्कार करें।

    - भगवान सूर्य देव को लाल चंदन का लेप , कुकुंम, चमेली और कनेर के फूल अर्पित करें, ये कार्य नवग्रह मंदिर में जाकर करें।

    - दीप प्रज्जवलित करके मन में सफलता और यश की कामना करें फिर सूर्य मंत्र का जाप करें

    विष्णवे ब्रह्मणे नित्यं त्र्यम्बकाय तथात्मने।

    नमस्ते सप्तलोकेश नमस्ते सप्तसप्तये।।

    हिताय सर्वभूतानां शिवायार्तिहराय च।

    नम: पद्मप्रबोधाय नमो वेदादिमूर्तये।

    - मंत्र जप के बाद सूर्य देव जी की आरती भी करें।

    - भगवान सूर्यदेव को भोग में मोदक ही चढ़ाएं।

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  157. 8 जुलाई, मंगलवार को देवशयनी एकादशी है।

    धर्म ग्रंथों के अनुसार इस तिथि का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु अगले चार महीनों के लिए शयन करते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन कोई भक्त कुछ विशेष उपाय करे तो भगवान विष्णु उस पर प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप चाहते हैं कि भगवान विष्णु आप पर प्रसन्न रहें तो आगे बताए गए उपाय करें-

    1- देवशयनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें तो जीवन के सभी सुख प्राप्त होते हैं। इसके बाद विधिपूर्वक गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। स्त्रियों के लिए यह स्नान उनके पति की लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य देने वाला है।

    2- इस दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान श्रीविष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं।

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  158. 3- भगवान श्रीविष्णु को पीतांबरधारी भी कहते हैं, जिसका अर्थ है पीले रंग के वस्त्र धारण करने वाला। देवशयनी एकादशी के दिन आप पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज पहले भगवान विष्णु को अर्पण करें, इसके बाद ये सभी वस्तुएं गरीबों व जरूरतमंदों में दान कर दें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा आप पर बनी रहेगी।

    4- देवशयनी एकादशी के दिन भगवान श्रीविष्णु का केसर मिश्रित दूध से अभिषेक करें। ये करने से आपके जीवन में कभी धन की कमी नहीं होगी और तिजोरी हमेशा पैसों से भरी रहेगी।

    5- यदि आप धन की इच्छा रखते हैं तो देवशयनी एकादशी के दिन समीप स्थित किसी विष्णु मंदिर जाएं और भगवान विष्णु को सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। इसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें। इससे भगवान विष्णु जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं।

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  159. 6- धन की कामना रखने वाले साधक देवशयनी एकादशी के दिन नीचे लिखे मंत्र का 5 माला जप करें-
    ऊं ह्रीं ऐं क्लीं श्री:
    एकादशी के दूसरे दिन किसी ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दक्षिणा, वस्त्र, आदि भेंट स्वरूप प्रदान करें। इससे आपको लाभ होगा।

    7- यदि आप निरंतर कर्ज में फंसते जा रहे हैं तो देवशयनी एकादशी के दिन समीप स्थित किसी पीपल के वृक्ष पर पानी चढ़ाएं और शाम के समय दीपक लगाएं। पीपल में भी भगवान विष्णु का ही वास माना गया है। इस उपाय से जल्दी ही आप कर्ज मुक्त हो जाएंगे।

    8 - काफी कोशिशों के बाद भी यदि आमदनी नहीं बढ़ रही है या नौकरी में प्रमोशन नहीं हो रहा है देवशयनी एकादशी के दिन सात कन्याओं को घर बुलाकर भोजन कराएं। भोजन में खीर अवश्य होना चाहिए। कुछ ही दिनों में आपकी कामना पूरी हो जाएगी।

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  160. 9- देवशयनी एकादशी के दिन एक नारियल व थोड़े बादाम भगवान विष्णु के मंदिर में चढ़ाएं। यह उपाय करने से आपको जीवन के सभी सुख प्राप्त होंगे और अटके कार्य बनते चले जाएंगे।

    10- देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और पूजा करते समय कुछ पैसे विष्णु भगवान की मूर्ति या तस्वीर के समीप रख दें। पूजन करने के बाद यह पैसे फिर से अपने पर्स में रख लें। ये उपाय करने से आपका पर्स में कभी पैसों की कमी नहीं आएगी।

    11- देवशयनी एकादशी के दिन शाम के समय तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक लगाएं और ऊं वासुदेवाय नम: मंत्र बोलते हुए तुलसी की 11 परिक्रमा करें। इस उपाय से घर में सुख-शांति बनी रहती है और किसी भी प्रकार का कोई संकट नहीं आता।

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  161. यह सुनकर भोलेनाथ का क्रोध शांत हो गया। उन्होंने सूर्य को फिर से जीवित कर दिया। सूर्य कश्यप जी के सामने खड़े हो गए। जब उन्हें कश्यप जी के शाप के बारे में पता चला तो उन्होंने सभी का त्याग करने का निर्णय लिया। यह सुनकर देवताओं की प्रेरणा से भगवान ब्रह्मा सूर्य के पास पहुंचे और उन्हें उनके काम पर नियुक्त किया।

    ब्रह्मा, शिव और कश्यप आनंद से सूर्य को आशीर्वाद देकर अपने-अपने भवन चले गए। इधर सूर्य भी अपनी राशि पर आरूढ़ हुए। इसके बाद माली और सुमाली को सफेद कोढ़ हो गया, जिससे उनका प्रभाव नष्ट हो गया। तब स्वयं ब्रह्मा ने उन दोनों से कहा-सूर्य के कोप से तुम दोनों का तेज खत्म हो गया है। तुम्हारा शरीर खराब हो गया है। तुम सूर्य की आराधना करो। उन दोनों ने सूर्य की आराधना शुरू की और फिर से निरोगी हो गए।

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  162. श्रीगणेश स्तोत्र

    प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
    भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

    प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
    तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।

    लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
    सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।

    नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
    एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।

    द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
    न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

    विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
    पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।

    जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
    संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।

    अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
    तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।

    ।।इति संकटनाशनस्तोत्रं संपूर्णम्।।

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  163. इन रत्नों को हीरा, मोती, स्फटिक, मूंगा, माणिक्य, पुलक, मुक्तामणि जैसे नामों से पुकारा गया। सभी नग या रत्न सुख, आनंद, ऐश्वर्य देने वाले और पीड़ानाशक होते हैं। काम नहीं बन रहा तो पुखराज, बुरा साया है तो हीरा, शीघ्र सफलता चाहिए तो नीलम इस तरह के सुझाव अक्सर पंडित या ज्योतिषाचार्य दिया करते हैं। आइए जानते हैं कौन सा रत्न किस ग्रह के लिए पहना जाता है। साथ ही, ये भी कि उस रत्न को पहनने से फायदा क्या होगा।

    ग्रह: सूर्य
    रत्न: माणिक्य
    इसका रंग गहरा लाल होता है। इस स्टोन को अंग्रेजी में रूबी के नाम से भी जाना जाता है। इसे दुनिया के सभी रत्नों में सबसे ज्यादा मूल्यवान माना जाता है। यह रत्न नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक में बदलता है और कहा जाता है कि जिसके पास माणिक्य है वह शांत और संतुष्ट रहता है।

    ग्रह: चंद्र
    रत्न: मोती
    मोती शांति प्रदान करने वाला होता है। इसका रंग चमकदार सफेद होता है। यह रत्न प्रेम को बढ़ाता है। इसलिए आप चाहें तो इसे उस व्यक्ति को तोहफे में दे सकते हैं जिससे आप आत्मीय संबंध चाहते हैं।

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  164. ग्रह: मंगल
    रत्न: मूंगा
    मूंगा गहरे लाल रंग का होता है। इंग्लिश में इसे कोरल नाम से जाना जाता है। समुद्री जीव मूंगे की जमावट से यह रत्न तैयार होता है। यह हृदय में सौहाद्र्र की भावना बढ़ाता है। इसलिए व्यावहारिकता से दूर रहने वाले लोगों को यदि यह रत्न पहनाया जाए तो उनके कठोर हृदय के नरम पडऩे की संभावनाएं बनती हैं। यह रत्न धनागम के दरवाज़े भी खोलता है।

    ग्रह: बुध
    रत्न: पन्ना
    पन्ने को अंग्रेजी में एमरल्ड कहते हैं। इसे बुध ग्रह का रत्न कहा जाता है जो कि समृद्धि बढ़ाने वाला है। विशेष रूप से बौद्धिक क्षेत्रों के लोगों को इसे पहनने की सलाह दी जाती है। जैसे, यदि आप अध्यापन, मीडिया, कला, साहित्य आदि विधाओं से जुड़े हैं तो यह रत्न तरक्की में आपकी मदद कर सकता है।

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  165. ग्रह: शनि
    रत्न: नीलम
    यह रत्न महंगा भी बहुत होता है। इंग्लिश में सफायर नाम से पहचाना जाने वाला यह रत्न नीली चमक लिए होता है। इस रत्न को हर कोई धारण नहीं कर पाता। माना जाता है कि नीलम से जब तक आपके शरीर का तापमान नहीं मिलता तब तक यह शुभ फल नहीं देता।

    ग्रह: राहु
    रत्न: गोमेद
    गहरे भूरे रंग के इस रत्न को हैसोनाइट कहा जाता है। इसका रंग शहद की तरह भी होता है और ज्यादा गहरा होने पर कम रोशनी में काला दिखाई देता है।

    ग्रह: केतु
    रत्न: लहसुनिया
    केतु का रत्न सफेद-पीला लहसुनिया होता है। बिल्ली की आंख की तरह दिखने की वजह से ही इसका नाम कैट्स आई पड़ा।

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  166. ग्रह: गुरु
    रत्न: पुखराज
    पीले रंग के इस खूबसूरत रत्न को इंग्लिश में टोपाज कहा जाता है। पुखराज आपकी आंतरिक शक्तियों को संतुलित करने में आपकी मदद करता है। यह याद्दाश्त को भी बढ़ाता है। पुखराज रत्न की यह खासियत है कि इसे धारण करने से कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और यह धारण करने वाले को किसी ना किसी रूप में लाभ ही पहुंचाता है।

    ग्रह: शुक्र
    रत्न: हीरा
    हीरा यानी डायमंड। बेहद महंगा रत्न। बेहद चमकीला और खूबसूरत होता है। सबसे ज्यादा पॉप्युलर रत्न है, जिसे गहनों में भी इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि इस रत्न को धारण करने वाले व्यक्ति पर बुरी शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता। मुसीबत के समय यह कष्टों से रक्षा करता है।

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  167. भारतीय संस्कृति में शुरू से ही भगवान सूर्य नारायण की महिमा अतिशय रही है। धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान सूर्य विष्णु रूप में समस्त ब्रह्माण्ड के पालन पोषण का कार्य कर रहे हैंं तथा व्यवहारिक दृष्टि से भी प्रत्यक्ष रूप में साक्षात् सूर्य देव कार्य करते हैं। वेदों में भगवान सूर्य देव ईश्वर का साक्षात् स्वरूप और सर्वाधिक शक्तिमान देवता बताए गए हैं एवं नक्षत्र व राशि मंडल के स्वामी भी हैं।

    रविवार का दिन भगवान सूर्य नारयण को समर्पित है। सूर्य षष्ठी पर सूर्य़ उपासना का विशेष महत्व है। सूर्य षष्ठी को करें 'राष्ट्रवर्द्धन' सूक्त से लिए गए मंत्र का जाप आपके शत्रुओं का होगा नाश भगवान सूर्य नारायण का दुर्लभ मं‍त्र -

    'उदसौ सूर्यो अगादुदिदं मामकं वच:।

    यथाहं शत्रुहोसान्यसपत्न: सपत्नहा।।

    सपत्नक्षयणो वृषाभिराष्ट्रो विष सहि:।

    यथाहभेषां वीराणां विराजानि जनस्य च।।'

    अर्थ : यह सूर्य ऊपर चला गया है, मेरा यह मंत्र भी ऊपर गया है, ताकि मैं अपने शत्रुओं को मारने वाला बन जाऊं। प्रतिद्वधियों का नाश करने वाला, प्रजा की चाह को पूर्ण करने वाला, देश को निपुणता से पाने वाला तथा विजयी बनूं। तभी तो मैं दुश्मन दल के बहादुर योद्धाओं का एवं अपने व बेगाने अनुचरवर्ग का पैमाना बन सकूंगा।

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  168. भगवान गणेशजी का उल्लेख ऋग्वेद के एक मंत्र (2-23-1) से मिलता है। चाहे कोई सा अनुष्ठान हो, इस मंत्र का जाप तो होता ही है...गणानां त्वां गणपति ँ हवामहे..। इस मंत्र में ब्रह्मणस्पति शब्द आया है। यह बृहस्पति देव के लिए प्रयुक्त हुआ है। बृहस्पति देव बुद्धि और ज्ञान के देव हैं। इसलिए गणपति देव को भी बुद्धि और विवेक का देव माना गया है। किसी भी कार्य की सिद्धि बिना बुद्धि और विवेक के नहीं हो सकती। इसलिए हर कार्य की सिद्धि के लिए बृहस्पतिदेव के प्रतीकात्मक रूप में गणेशजी की पूजा होती है।

    गणेश पुराण में गणेशजी के अनेकानेक रूप कहे गए हैं। सतयुग में कश्यप ऋषि पुत्र के रूप में वह विनायक हुए और सिंह पर सवार होकर देवातंक -निरांतक का वध किया। त्रेता में मयूरेश्वर के रूप में वह अवतरित हुए। धर्म शास्त्रों में भगवान गणेश के 21 गण बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- गजास्य, विघ्नराज, लंबोदर, शिवात्मज, वक्रतुंड, शूर्पकर्ण, कुब्ज, विनायक, विघ्ननाश, वामन, विकट, सर्वदैवत, सर्वाॢतनाशी, विघ्नहर्ता, ध्रूमक, सर्वदेवाधिदेव, एकदंत, कृष्णपिंड्:ग, भालचंद्र, गणेश्वर और गणप। ये 21 गण हैं और गणेशजी की पूजा के भी 21 ही विधान हैं।

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  169. आज के विशेष योग में करें अपनी संतान के सुख में वृद्धि और कष्टों का निवारण,शास्त्रानुसार संतान सप्ति का पर्व भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों में संतान सप्ति के दिन शिव तथा गौरी की आराधना का विधान है। इस दिन पर किए गए पूजन व्रत और उपाय से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है तथा संतान के सुखों में वृद्धि होती है और संतान के कष्टों का निवारण होता है। यह पर्व मूलतः निसंतान दंपति हेतु कल्याण कारक है। इस व्रत को करने से सन्तान के सुखों में वृद्धि होती है। व्यक्ति के पापों का नाश होता है। नियमपूर्वक जो कोई भी व्यक्ति संतान सप्तमी का व्रत करता है तथा शिव और पार्वती की सच्चे मन से आराधना करता है, निश्चय ही अमर पद प्राप्त करके अन्त में शिवलोक को जाता है। इस व्रत को 'मुक्ताभरण' भी कहते हैं।

    संतान सप्तमी का पौराणिक मत: इस व्रत का आलेख करते हुए श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। एक समय में लोमश नामक ऋषि मथुरा पधारे। देवकी और वासुदेव ने श्रद्धापूर्वक लोमश ऋषि की सेवा की। सेवा से प्रसन्न होकर लोमश ऋषि ने देवकी और वसुदेव को कंस द्वारा मारे गए पुत्रों के शोक से उबरने हेतु 'संतान सप्तमी' के व्रत करने की सलाह दी। लोमश ऋषि ने देवकी और वसुदेव को राजा नहुष तथा उनकी पत्नी चंद्रमुखी के बारे में भी बताया और ये भी कहा के यह व्रत नहुष और चंद्रमुखी द्वारा भी रखा गया था तथा इस व्रत के प्रताप से उनके भी पुत्र नहीं मरे। लोमश ऋषि ने देवकी और वसुदेव को यह आश्वासन दिया के इस व्रत करने से वो भी पुत्र शोक से मुक्त पांएगे।

    संतान सप्तमी व्रत पूजन और उपाय: इस वर्ष संतान सप्तमी 1 सितम्बर, 2014 को सोमवार के दिन मुक्ता भरण किया जाएगा। इस सप्तमी के व्रत को करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात प्रात काल में भगवान शंकर और पार्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन श्री कृष्ण तथा उनकी पत्नी जाम्बवती तथा उनके बच्चे साम्ब की पूजा भी की जाती है। इस व्रत का विधान दोपहर तक रहता है। इस दिन एक समय का भोजन करें, दोपहर के समय चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से शिव-पार्वती की पूजा करें। नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड़ के पुए का भोग लगाएं। संतान की रक्षा की कामना करते हुए गौरी-शंकर को मौली चढ़ाएं। गौरी-शंकर को अर्पित कि हुई मौली वरदान के रूप में स्वयं धारण करके व्रत कथा सुनें।

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  170. शास्त्रों में कहा गया है कि एक पेड़ दस पुत्रों के समान होता है। पेड़ पौधे घर की सुंदरता के साथ साथ घर की सुख शांति के द्योतक भी मानें जाते हैं। कुछ पेड़ पौधे ऐसे होते हैं जिन्हें घर में लगाने से देवी देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। शमी का वृक्ष घर के ईशान कोण (पूर्वोत्तर) में लगाना लाभकारी माना गया है क्योंकि शमी वृक्ष तेजस्विता एवं दृढता का प्रतीक है। इसमें प्राकृतिक तौर पर अगि्न तत्व की प्रचुरता होती है इसलिए इसे यज्ञ में अगि्न को प्रज्जवलित करने हेतु शमी की लकड़ी के विभिन्न उपकरणों का निर्माण किया जाता है। आयुर्वेदिक दृष्टि में तो यह अत्यंत गुणकारी औषधि मानी गई है।

    धार्मिक मान्यताओं में शमी का वृक्ष बड़ा ही मंगलकारी माना गया है। लंका पर विजयी होने के पश्चात श्री राम ने शमी पूजन किया था। नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा का पूजन शमी वृक्ष के पत्तों से करने का शास्त्रों में विधान है। गणेश जी और शनिदेव दोनों को ही शमी बहुत प्रिय है। शमी के पेड़ की पूजा करने से शनि देव और भगवान गणेश दोनों की ही कृपा प्राप्त की जा सकती है। शमी को वह्निवृक्ष या पत्र भी कहा जाता है। इस पौधे में भगवान शिव स्वयं वास करते हैं जो गणेश जी के पिता और शनिदेव के गुरू हैं। शमी पत्र के उपाय करने से घर-परिवार से अशांति को दूर भगाया जा सकता है।
    1 शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। उसे घर में रोपित कर नित्य उसका पूजन करें। ऐसा करने से गणेश जी आएंगे घर के आर और शनिदेव जाएंगे घर से पार।

    2 भगवान गणेश को शमी अर्पित करते समय निम्न मंत्र का जाप करें -
    त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै।
    शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक।।
    जाप के उपरांत मोदक और दुर्वा का भोग लगाएं और आरती करें।

    3 शमी के पौधे की जड़ को काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। ऐसा करने से शनिदेव से संबंधित जीवन में जितने भी विकार हैं उनका शीघ्र ही निवारण होगा।

    4 गणेश पूजन करते समय शमी के कुछ पत्ते गणेश जी को अर्पित करने से घर में धन एवं सुख की वृद्धि होती है।

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  171. लेकिन मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक अहंकार, लोभ, अभिमान और मोह के बंधन में बंधा रहता है। इसलिए मनुष्य में मनुष्यता को बनाए रखने के लिए धर्म की आवशयकता है। धर्म के नहीं होने पर मनुष्य आसमान में भटकते दिशाहीन बादलो की तरह नष्ट हो जाएगा। मनुष्य को नष्ट होने से बचाने के लिए ही धर्म की आवशयकता है।

    भीष्म ने धर्म को धारण करने वाला बताया है इस एक शब्द से भी मुनष्य के लिए धर्म की आवश्यकता को समझा जा सकता है। धारण करने से अर्थ है अपने में समेट लेना जैसे आप वस्त्र धारण करते हैं तो उसे अपने ऊपर समेट लेते हैं, आप उस वस्त्र के हो जाते हैं और वस्त्र आपका हो जाता है। यह आपके शरीर की खामियों को छुपा लेता है।

    धर्म भी उसी प्रकार है आपके मन के अंदर कई तरह की खामियां हैं, कितने ही दूषित विकार हैं धर्म उन सभी को ढंक कर आपके वयक्तित्व और चरित्र को उभारने की प्रेरणा देता है। जब आपको लगने लगे कि आपके अंदर की खामियां आप पर हावी होने लगी हैं तो समझ लीजिए आप धर्म से दूर जा रहे हैं और उस वक्त आपको धर्म के बारे में सोचना चाहिए और अपने धर्म को पहचान कर अपनी दिशा बदल लेनी चाहिए ताकि आप अपने धर्म को जी सकें।

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  172. 3- वासुकि कालसर्प दोष

    - वासुकि कालसर्प दोष होने पर रात्रि को सोते समय सिरहाने पर थोड़ा बाजरा रखें और सुबह उठकर उसे पक्षियों को खिला दें।

    - श्राद्ध के दौरान किसी भी दिन लाल धागे में तीन, आठ या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।


    4- शंखपाल कालसर्प दोष

    - शंखपाल कालसर्प दोष के निवारण के लिए श्राद्ध पक्ष के दौरान किसी भी दिन 400 ग्राम साबूत बादाम बहते पानी में प्रवाहित करें।

    - शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।

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  173. 7- तक्षक कालसर्प दोष

    - तक्षक कालसर्प योग के निवारण के लिए 11 नारियल बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

    - सफेद वस्त्र और चावल का दान करें।


    8- कर्कोटक कालसर्प दोष

    - कर्कोटक कालसर्प योग होने पर बटुकभैरव के मंदिर में जाकर उन्हें दही-गुड़ का भोग लगाएं और पूजा करें।

    - शीशे के आठ टुकड़े पानी में प्रवाहित करें।

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  174. 9- शंखचूड़ कालसर्प दोष

    - शंखचूड़ नामक कालसर्प दोष की शांति के लिए श्राद्ध के किसी भी दिन रात को सोने से पहलेसिरहाने के पास जौ रखें और उसे अगले दिन पक्षियों को खिला दें।

    - पांचमुखी, आठमुखी या नौ मुखी रुद्राक्ष धारण करें।


    10- घातक कालसर्प दोष

    - घातक कालसर्प के निवारण के लिए पीतल के बर्तन में गंगाजल भरकर अपने पूजा स्थल पर रखें।

    ​- चार मुखी, आठमुखी और नौ मुखी रुद्राक्ष हरे रंग के धागे में धारण करें।

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  175. 11- विषधर कालसर्प दोष

    - विषधर कालसर्प के निदान के लिए परिवार के सदस्यों की संख्या के बराबर नारियल लेकर एक-एक नारियल पर उनका हाथ लगवाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करें।

    - भगवान शिव के मंदिर में जाकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें।


    12- शेषनाग कालसर्प दोष

    - शेषनाग कालसर्प दोष होने पर अंतिम श्राद्ध की पूर्व रात्रि को लाल कपड़े में सौंफ बांधकर सिरहाने रखें और उसे अगले दिन सुबह खा लें।

    - श्राद्ध पक्ष में किसी भी दिन गरीबों को दूध व अन्य सफेद वस्तुओं का दान करें।

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  176. गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि संसार का सबसे बड़ा सत्य यही है कि कोई भी व्यक्ति खुद को मरता हुआ नहीं देखता। व्यक्ति दूसरों को मरता हुआ देखता है तो उसे कुछ पल के लिए दुःख होता है उस समय वह घबराता भी है कि उसे भी एक दिन मरना होगा।

    लेकिन वह इस सत्य को अधिक समय तक स्वीकार नहीं कर पाता मनुष्य को लगता है कि दूसरे की मौत आ सकती है लेकिन वह थोड़े ही मरने वाला है। अगर मौत आएगी भी तो इसमें काफी समय है और वह जीवन के दूसरे कार्यों में मस्त हो जाता है।

    लेकिन मौत कब दबे पांव आकर किसे ले जाए यह तो कोई भी नहीं जानता। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने जीवन को पानी में रखे कच्चे घड़े के समान कहा है जो पल-पल पानी में घुलता जाता है और कब पानी में पूरी तरह घुलकर नष्ट हो जाए कहा नहीं जा सकता।

    हर जीव चाहे वह पशु हो या मानव सभी को एक दिन शरीर त्यागकर परलोक जाना ही पड़ता है। परलोक का सफर बड़ा ही कष्टकारी और दुखद होता है। मरने के बाद का सफर जीवन और मृत्यु के समय के भयंकर कष्ट से भी भयंकर है। जिसके बारे में गरुड़ पुराण और कठोपनिषद् में बताया गया है।

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  177. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरू अपनी राशि धनु या मीन में हो अथवा अपनी उच्च राशि कर्क में केन्द्र स्थान यानी पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में मौजूद हो तब यह दिव्य योग बनता है। वराहमिहिर ने वृहत्संहिता में लिखा है कि यह योग मेष, कर्क, तुला और मकर लग्न वालों की कुण्डली में बनता है।

    जिनकी कुण्डली में यह योग बनता है वह चरित्रवान और महान विचारों वाला होता है। इनकी पत्नी सुंदर होती है। यह स्वयं दीर्घायु होते हैं और लंबे समय तक सुखमय जीवन बिताते हैं।

    यह बहुत ही बुद्घिमान होते हैं और जीवन में सफलता की ऊंचाईयों तक पहुंचते हैं। समाज में इनका आदर होता है और लोग इनके गुणों एवं उपलब्धियों की प्रशंसा करते हैं।

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  178. पंचमहापुरूष योग में एक योग है मालव्य योग। इस योग का निर्माण शुक्र करता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग तब बनता है जब शुक्र पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में अपनी राशि तुला या वृष में हो। शुक्र अगर इन घरों में अपनी उच्च राशि में बैठा हो तब भी यह योग बनता है।

    माना जाता है कि जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग बनता है वह रोमांटिक होते हैं। कलात्मक विषयों में इनकी खूब रुचि होती है और खुद दिखने में सुंदर और आकर्षक होते है।

    ऐसे व्यक्ति जीवन में खूब धन कमाते हैं और ऐसो आराम से जीवन का आनंद लेते हैं। इनकी रुचि भौतिक सुख के साधनों में रहती है। ऐसे व्यक्ति चतुर और दीर्घायु होते हैं।

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  179. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिनकी जन्मकुण्डली में शनि महाराज पहले, चौथे, सातवें अथवा दसवें घर में अपनी राशि मकर या कुंभ में विराजमान होते हैं। उनकी कुण्डली में पंच महापुरूष योग में शामिल एक शुभ योग बनता है।

    इस योग को शश योग के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का राजयोग है। शनि अगर तुला राशि में भी बैठा हो तब भी यह शुभ योग अपना फल देता है। इसका कारण यह है कि शनि इस राशि में उच्च का होता है।

    माना जाता है कि जिनकी कुण्डली में यह योग मौजूद होता है वह व्यक्ति गरीब परिवार में भी जन्म लेकर भी एक दिन धनवान बन जाता है। मेष, वृष, कर्क, सिंह, तुला वृश्चिक, मकर एवं कुंभ लग्न में जिनका जन्म होता है उनकी कुण्डली में इस योग के बनने की संभावना रहती है।

    अगर आपकी कुण्डली में शनि का यह योग नहीं बन रहा है तो कोई बात नहीं। आपका जन्म तुला या वृश्चिक लग्न में हुआ है और शनि कुण्डली में मजबूत स्थिति में है तब आप भूमि से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। गुरू की राशि धनु अथवा मीन में शनि पहले घर में बैठे हों तो व्यक्ति धनवान होता है।

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  180. पंचमहापुरुष योगों में चौथा शुभ योग है रुचक योग। यह योग मंगल बनाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में अगर मंगल केन्द्रस्थान यानी पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में अपनी उच्च राशि मकर या अपनी राशि मेष में होता है तो यह योग बनता है।

    जिनकी जन्मपत्री में यह योग होता है वह साहसी और बलवान होते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज में प्रभावशाली और कुशलवक्ता होते हैं। खेल एवं रक्षा क्षेत्र में यह काफी सफल होते हैं।

    यह अपनी योग्यता एवं मेहनत से भूमि एवं वाहन का सुख प्राप्त करते हैं। आमतौर पर यह दीर्घायु होते हैं और करीब 70 साल तक सुख एवं ऐश्वर्य का आनंद प्राप्त करते हैं। इस योग को भी राजयोग के समान शुभ माना गया है।

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  181. पंचमहापुरुष योग में पांचवा शुभ योग है भद्रक योग। इस योग को भी राजयोग के समान शुभ फलदायी माना जाता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कुण्डली में भी यह योग मौजूद है।

    ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह योग बुध के कारण निर्मित होता है। जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में बुध कन्या राशि में मौजूद होता है तब यह योग अपना शुभ फल देता है। इस योग से प्रभावित व्यक्ति बुद्घिमान और पढ़ने-लिखने में होशियार होते हैं।

    यह व्यापार, लेखन एवं गणित के क्षेत्र में खूब नाम और यश अर्जित करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी योग्यता और ज्ञान से सम्मानित और धनवान बनते हैं।

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  182. पति-पत्नी के बीच सुख-दुख आपसी तालमेल और समझदारी पर ही निर्भर करता है। वैवाहिक जीवन में कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं, जब तालमेल की कमी से पति-पत्नी के बीच विवाद उत्पन्न हो जाता है। कई बार छोटी-छोटी बातें भी बड़े विवाद का रूप ले लेती हैं। कुछ लोगों को वैवाहिक जीवन में पत्नी से सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। इस संबंध में ज्योतिष में कुंडली के कुछ ऐसे योग बताए गए हैं, जिनसे यह मालूम हो जाता है कि किसी व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में सुख मिलेगा या नहीं।
    कुंडली में सप्तम भाव जीवन साथी का कारक स्थान होता है। इस भाव में यदि ग्रहों के अशुभ योग बनते हैं तो वैवाहिक जीवन में सुख नहीं मिलता है। इस भाव के आधार पर जानिए कुंडली के कुछ योग जो वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ माने जाते हैं...
    1. जिन लोगों की कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य और चंद्रमा स्थित होता हैं, वे लोग संतान और पत्नी से सुख प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इस स्थिति के कारण वैवाहिक जीवन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।
    2. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य सप्तम भाव में अकेला स्थित हो तो व्यक्ति को पत्नी की ओर से सुख प्राप्त नहीं होता है।
    3. कुंडली के सप्तम भाव में मंगल स्थित हो तो वैवाहिक जीवन संतोषजनक नहीं रहता है।
    4. जिन लोगों की कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य, शनि और राहु स्थित होते हैं, वे पत्नी की ओर से कष्ट प्राप्त करते हैं।
    5. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के सप्तम भाव में शनि और चंद्र एक साथ स्थित हैं तो यह स्थिति भी वैवाहिक जीवन के लिए शुभ नहीं है।
    इन अशुभ योगों को दूर करने के उपाय
    1. हर सुबह सूर्य को जल चढ़ाएं।
    2. हल्के रंग और सफेद रंग के कपड़े पहनें। गहरे रंग के कपड़े पहनने से बचें।
    3. सफेद रंग का रूमाल हमेशा अपने साथ रखें।
    4. प्रतिदिन केशर या चंदन का तिलक लगाएं।
    5. सूर्य एवं चंद्रमा से संबंधित वस्तुओं का दान करें।
    6. चंद्रमा से शुभ फल प्राप्त करने के लिए शिवजी और श्रीगणेश की आराधना करें।
    7. कुंडली के अशुभ दोषों को दूर करने के लिए उचित उपाय करें।

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