Thursday, March 6, 2014

acharya astro: Santoshi Bhajan - Karti Hoon Tumhara Vrat Mein (HD...

64 comments:

  1. निर्वाण अष्टकम॥


    मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम् न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
    न च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

    न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:
    न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायू चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

    न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
    न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

    न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:
    अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

    न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद: पिता नैव मे नैव माता न जन्म
    न बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥

    अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
    न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय: चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥


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  2. नारायण स्तोत्रं -

    रचना : आदि शङ्कराचार्य-
    ॐ नारायण नारायण जय जय गोविन्द हरे ॥
    नारायण नारायण जय जय गोपाल हरे ॥
    करुणापारावार वरुणालयगम्भीर नारायण ॥ 1 ॥
    घननीरदसङ्काश कृतकलिकल्मषनाशन नारायण ॥ 2 ॥

    यमुनातीरविहार धृतकौस्तुभमणिहार नारायण ॥ 3 ॥
    पीताम्बरपरिधान सुरकल्याणनिधान नारायण ॥ 4 ॥

    मञ्जुलगुञ्जाभूष मायामानुषवेष नारायण ॥ 5 ॥
    राधाधरमधुरसिक रजनीकरकुलतिलक नारायण ॥ 6 ॥

    मुरलीगानविनोद वेदस्तुतभूपाद नारायण ॥ 7 ॥
    बर्हिनिबर्हापीड नटनाटकफणिक्रीड नारायण ॥ 8 ॥

    वारिजभूषाभरण राजीवरुक्मिणीरमण नारायण ॥ 9 ॥
    जलरुहदलनिभनेत्र जगदारम्भकसूत्र नारायण ॥ 10 ॥

    पातकरजनीसंहार करुणालय मामुद्धर नारायण ॥ 11 ॥
    अघ बकहयकंसारे केशव कृष्ण मुरारे नारायण ॥ 12 ॥

    हाटकनिभपीताम्बर अभयं कुरु मे मावर नारायण ॥ 13 ॥
    दशरथराजकुमार दानवमदसंहार नारायण ॥ 14 ॥

    गोवर्धनगिरि रमण गोपीमानसहरण नारायण ॥ 15 ॥
    सरयुतीरविहार सज्जन‌ऋषिमन्दार नारायण ॥ 16 ॥

    विश्वामित्रमखत्र विविधवरानुचरित्र नारायण ॥ 17 ॥
    ध्वजवज्राङ्कुशपाद धरणीसुतसहमोद नारायण ॥ 18 ॥

    जनकसुताप्रतिपाल जय जय संस्मृतिलील नारायण ॥ 19 ॥
    दशरथवाग्धृतिभार दण्डक वनसञ्चार नारायण ॥ 20 ॥

    मुष्टिकचाणूरसंहार मुनिमानसविहार नारायण ॥ 21 ॥
    वालिविनिग्रहशौर्य वरसुग्रीवहितार्य नारायण ॥ 22 ॥

    मां मुरलीकर धीवर पालय पालय श्रीधर नारायण ॥ 23 ॥
    जलनिधि बन्धन धीर रावणकण्ठविदार नारायण ॥ 24 ॥

    ताटकमर्दन राम नटगुणविविध सुराम नारायण ॥ 25 ॥
    गौतमपत्नीपूजन करुणाघनावलोकन नारायण ॥ 26 ॥

    सम्भ्रमसीताहार साकेतपुरविहार नारायण ॥ 27 ॥
    अचलोद्धृतचञ्चत्कर भक्तानुग्रहतत्पर नारायण ॥ 28 ॥

    नैगमगानविनोद रक्षित सुप्रह्लाद नारायण ॥ 29 ॥
    भारत यतवरशङ्कर नामामृतमखिलान्तर नारायण ॥ 30 ॥

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  3. क्यों नही काम करते उपाय.....
    ज्योतिष के कई उपाय इस प्रकार के है कि उनको फलित होने में और समस्या का समाधान देने में समय लगता है लेकिन कुछ उपाय ऎसे भी है जो अचूक है और जिनके लिए रामबाण शब्द का प्रयोग किया जा सकता है । हम उस जगद्गुरू भारत में निवास करते है जहाँ हजारों साल पहले कहा गया कि 'शब्दगुणम् आकाशम्' और आज मोबाइल आपके हाथ में है । कहने का मतलब है कि मंत्र में वो शक्ति है जिसके द्वारा प्रत्येक लाभ प्राप्त किया जा सकता है लेकिन क्या करें कि अनथक उपाय किए , मंत्र जपे लेकिन कोई लाभ नही , क्यों ?
    हम में से लगभग कोई भी ऎसे घर में नही रहता होगा जहाँ पूजा पाठ या कम से कम अगरबत्ती नही जलाई जाती होगी पर परिणाम वहीं ढाक के तीन पात ॥
    फिर ये सोचकर हार मानकर बैठ गए कि न तो ईश्वर है , न ज्योतिष है और समझदार लोग सोचते है कि मेरा दुर्भाग्य इतना शक्तिशाली है कि कोई उपाय काम नहीं करता ।
    पहली बात- हम दिन भर अनेक आनंद के क्षण भोगेंगे लेकिन परमात्मा के सामने खङे होंगे तो यूं जैसेकि वो अहसानमंद हो कि हमने उसके पास जाने का समय निकाला । मन में घूम रहा होता है अलग विचार शरीर है ईश्वर के सामने , मत जाइये मंदिर , आवश्यकता नही है उस शरीर को पहुंचाने की बस घर पर बैठकर आत्मीयता से एक बार खुद को जोङकर देखिये ।
    चन्द्र ग्रह माँ का कारक है वो घर में दुखी बैठी है हम सोमवार का व्रत रख उम्मीद करते है कि सब ठीक हो जाएगा ।
    युं ही सूर्य - पिता, मंगल - भाई, बुध- बहन आदि के प्रतिनिधि है ।
    लाख पते की बात है और ये चैलेंज है ज्योतिष से घृणा करने वालों के लिए कि कोई भी संतान मोटरसाइकिल का आनंद पच्चीस वर्ष से पहले तभी भोगेगी जब उसकी मां का स्नेह उसपे होगा बल्कि युं कहिये कि पच्चीस वर्ष से पहले यदि तीन संताने है तो सबसे पहले वाहन का सुख भोगने का सौभाग्य उसे मिलेगा जिसपर माँ सर्वाधिक स्नेह रखती है ।
    पच्चीस वर्ष इसलिए कि उसके बाद जातक भाग्येश काम करने लगता है वो वाहन छीन भी सकता है और एक से ज्यादा भी कर सकता है ।
    आर्थिक स्थिति - हालांकि कुंडली में लग्न , धन , आय स्थान आदि मायने रखते है आर्थिक हालात बनाने बिगाङने में लेकिन धन के मामले में सबसे ज्यादा नियंत्रण गुरू ग्रह के हाथ में रहता है तो यदि हम अपनी आर्थिक स्थिति सुधारना चाहे तो सबसे पहले कुंडली की बाधकता किसी योग्य ज्योतिर्विद से दूर करवायें फिर दादा, दादी और गुरू इनके प्रति सम्मान , सेवा करते जाए आपकी तन्मयता, सेवाभावना ज्यों ज्यों बढेगी आपकी समस्यायें घटती चली जायेंगी लेकिन पुनः निवेदन है कि कुंडली की बाधकता नष्ट करवाना आवश्यक है ।
    इन बुजुर्गों विशेषतः दादा, दादी , गुरू और अन्य बुजुर्ग की सेवा आपकी अनेक समस्याओं का समाधान कर सकती है ।
    कहा भी गया है-
    अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
    चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुविद्यायशोर्बलम् ॥

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  4. कुंडली का एकादश भाव लाभ का कारक स्थान होता है और मकर लग्न की कुंडली में इस स्थान वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है। यहां शुक्र होने पर व्यक्ति को व्यवसाय के मामलों में खास लाभ प्राप्त होता है। ये लोग अपनी बुद्धि और शिक्षा के बल पर धन लाभ हासिल करते हैं। शुक्र की इस स्थित के कारण इन्हें समाज में मान-सम्मान और सुख प्राप्त होता है। इन्हें अन्य लोगों को निर्देश देना बहुत पसंद होता है।
    मकर लग्न की कुंडली के द्वादश भाव में शुक्र हो तो...
    जिन लोगों की कुंडली मकर लग्न की होती है और उसके द्वादश यानी व्यय भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति क अधिकांश खर्चें विलासिता की वस्तुओं पर होते हैं। पिता की ओर से भी इन्हें पूर्ण सहयोग नहीं मिल पाता है और इसी वजह से कई बार पैसों की हानि उठाना पड़ती है। बाहरी स्थानों से इन्हें अधिक फायदा मिलता है। मकर लग्न की कुंडली में इस स्थान धनु राशि का स्वामी गुरु है। गुरु की इस राशि में शुक्र होने पर मानसिक चिंताओं का सामना करना पड़ता है।

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  5. मंगल से प्रभावित कुंडली को दोषपूर्ण माना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल अशुभ फल देने वाला होता है उसका जीवन परेशानियों में व्यतीत होता है। अशुभ मंगल के प्रभाव की वजह से व्यक्ति को रक्त संबंधी बीमारियां होती हैं। साथ ही, मंगल के कारण संतान से दुख मिलता है, वैवाहिक जीवन परेशानियों भरा होता है, साहस नहीं होता, हमेशा तनाव बना रहता है।

    यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल ज्यादा अशुभ प्रभाव देने वाला है तो वह बहुत कठिनाई से जीवन गुजरता है। मंगल उत्तेजित स्वभाव देता है, वह व्यक्ति हर कार्य उत्तेजना में करता है और अधिकांश समय असफलता ही प्राप्त करता है।

    मंगल का ज्योतिष में महत्व: ज्योतिष में मंगल मुकदमा ऋण, झगड़ा, पेट की बीमारी, क्रोध, भूमि, भवन, मकान और माता का कारण होता है। मंगल देश प्रेम, साहस, सहिष्णुता, धैर्य, कठिन, परिस्थितियों एवं समस्याओं को हल करने की योग्यता तथा खतरों से सामना करने की ताकत देता है।

    मंगल की शांति के उपाय: भगवान शिव की स्तुति करें। मूंगे को धारण करें। तांबा, सोना, गेहूं, लाल वस्त्र, लाल चंदन, लाल फूल, केशर, कस्तुरी, लाल बैल, मसूर की दाल, भूमि आदि का दान।

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  6. हस्तरेखा विज्ञान के बारे में हम सभी जानते हैं। इसके अंतर्गत किसी भी व्यक्ति के हाथ की रेखाओं को देखकर उसके भूत, भविष्य व वर्तमान के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। साथ ही उस व्यक्ति के स्वभाव को भी आसानी से समझा जा सकता है। रेखाएं सिर्फ मनुष्य के हाथों पर ही नहीं बल्कि अन्य अंगों पर भी होती है। पैर के तलवे पर भी रेखाएं होती हैं। इसी प्रकार हर मनुष्य के मस्तक पर भी रेखाएं होती हैं। ये रेखाएं विभिन्न ग्रहों से प्रभावित होती हैं। जिएंगे

    शरीर लक्षण विज्ञान के अनुसार मस्तक की इन रेखाओं को देखकर भी उस व्यक्ति के भूत, भविष्य, वर्तमान व स्वभाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यही नहीं मस्तक की रेखाओं के आधार पर मनुष्य की उम्र का अनुमान भी लगाया जा सकता है। इसके लिए व्यक्ति के मस्तक की स्थिति, आकार-प्रकार, रंग तथा चिकनाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जानिए मस्तक की रेखाओं में छिपे संकेतों के बारे में-

    शनि रेखा- इस रेखा का स्थान मस्तक में सबसे ऊपर होता है। यह रेखा अधिक लंबी नहीं होती, केवल मस्तक के मध्य भाग में ही दिखाई देती है। समुद्र लक्षण विज्ञान के अनुसार इस रेखा के आस-पास का भाग शनि ग्रह से प्रभावित माना जाता है। जिसके मस्तक पर यह रेखा स्पष्ट दिखाई देती है, वह गंभीर स्वभाव का होता है। यदि एक उन्नत मस्तक (थोड़ा उठा हुआ) पर शनि रेखा हो तो ऐसे लोग रहस्यमयी, गंभीर व थोड़े अंहकारी होते हैं। इनके बारे में अधिक जानकारी बहुत कम लोगों के पास होती है। ये सफल जादूगर, ज्योतिर्विद या तांत्रिक हो सकते हैं।
    मस्तक की अन्य रेखाओं के बारे में जानने के लिए अगली स्लाइड्स पर क्लिक करें-

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  7. बृहस्पति (गुरु) रेखा- मस्तक पर शनि रेखा से थोड़ी नीचे गुरु रेखा का स्थान होता है। यह रेखा आमतौर पर शनि रेखा की तुलना में थोड़ी लंबी होती है। यह रेखा पढ़ाई, विचार, अध्यात्म, इतिहास संबंधी रुचि एवं महत्वाकांक्षा आदि की सूचक होती है। जिस व्यक्ति के मस्तक पर यह रेखा लंबी एवं स्पष्ट दिखाई देती है, वह आत्मविश्वासी व अपनी बात का पक्का होता है। ऐसे लोगों पर आंख मूंद कर विश्वास किया जा सकता है। ऐसे लोग सरकारी नौकरी या शिक्षा के क्षेत्र में अपना नाम कमाते हैं।

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  8. मंगल रेखा- मस्तक के बीच में कुछ ऊपर एवं गुरु रेखा के नीचे मंगल रेखा होती है। इस रेखा की प्रवृत्ति को समझने से पूर्व व्यक्ति के दोनों कानों के ठीक ऊपर के स्थानों तथा उससे कुछ आगे कनपटियों के ठीक ऊपर के स्थानों को भी देखना चाहिए। यदि एक सपाट या उन्नत मस्तक पर मंगल रेखा अपने शुभ गुणों के साथ हो और व्यक्ति के कनपटी से ऊपर के स्थान थोड़े उठे हुए हों तो ऐसा व्यक्ति साहसी, स्वाभिमानी, वीर, धर्मालु, दूरदृष्टि रखने वाला, समझदार एवं रचनात्मक प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोग किसी प्रशासनिक पद पर, सेना या पुलिस के अधिकारी अथवा राजदूत हो सकते हैं।

    लेकिन यदि एक निम्न या संकुचित मस्तक पर अशुभ गुणों से युक्त मंगल रेखा हो और कनपटी के ऊपर के भाग भी उन्नत हों तो ऐसा व्यक्ति अपराधी प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोग को बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता है और वे किसी के साथ कुछ भी कर बैठते हैं।

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  9. बुध रेखा- इस रेखा का स्थान लगभग मस्तक के बीच में होता है। यह रेखा लंबी होती है और कभी-कभी तो व्यक्ति की दोनों कनपटियों के किनारों को स्पर्श करती हुई दिखाई देती है। बुध रेखा व्यक्ति की याददाश्त, अन्य विषयों में उसका ज्ञान, सूझ-बूझ एवं ईमानदारी की सूचक होती है। यदि यह रेखा शुभ गुणों से युक्त हो तो ऐसा व्यक्ति तेज याददाश्त वाला, कलात्मक कामों में रुचि लेने वाला, सही-गलत की सोच रखने वाला, उच्च मानसिक क्षमता वाला व पारखी प्रवृत्ति का होता है। ऐसे लोगों में किसी भी इंसान को पहचानने की क्षमता सामान्य तौर पर अधिक होती है।

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  10. शुक्र रेखा- इस रेखा का स्थान बुध रेखा के ठीक नीचे केवल मध्य भाग में होता है। यह रेखा आमतौर पर छोटे आकार की होती है। यह रेखा उत्तम स्वास्थ्य, भ्रमण प्रवृत्ति, अनुसंधानात्मक रुचि, आकर्षक एवं सम्मोहक व्यक्तित्व की सूचक होती है। उन्नत मस्तक पर यदि यह रेखा स्पष्ट रूप से दिखाई दे तो ऐसा व्यक्ति स्फूर्ति, आशा व उत्साह से भरा रहता है। ऐसे व्यक्ति उच्च जीवन शक्ति से युक्त, घूमने-फिरने वाले, सौंदर्य प्रेमी एवं जरूरी मुद्दों पर गंभीर होते हैं। ऐसे लोग स्वच्छ, साफ तथा सफेद या रंग अधिक पसंद करते हैं।

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  11. सूर्य रेखा- इस रेखा का स्थान मनुष्य की दाईं आंख की भौंह के ऊपर होता है। यह रेखा अधिक लंबी नहीं होती, सिर्फ आंख के ऊपर सीमित होती है। यह रेखा प्रतिभा, मौलिकता, सफलता, यश तथा समृद्धि की प्रतीक होती है। यदि यह रेखा शुभ गुणों से युक्त हो तो ऐसे व्यक्ति में अद्भुत सूझबूझ होती है। ऐसे लोग अनुशासन में रहना पसंद करते हैं। ये लोग अच्छे गणितज्ञ, शासक या नेता हो सकते हैं। ये अपने सिद्धांतों तथा व्यवहार से लोगों को बहुत जल्दी प्रभावित कर लेते हैं।

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  13. चंद्र रेखा- यह रेखा बाईं आंख की भौंह के ऊपर होती है। यदि यह रेखा सरल, सीधी व स्पष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति कलाप्रेमी, एकांतप्रिय, विकसित बुद्धि वाला तथा कल्पनाशील होता है। इनकी रुचि चित्रकला, गायन, संगीत आदि क्षेत्रों में होती है। कभी-कभी ऐसी रेखा वाले लोग आध्यत्मप्रिय सिद्ध एवं दूरदृष्टि वाले होते हैं।

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  14. 1- मस्तक पर दो पूर्ण रेखाएं हो तो जातक की आयु लगभग 60 वर्ष होती है।

    2- सामान्य मस्तक पर तीन शुभ रेखाएं हो तो जातक करीब 75 वर्ष की आयु प्राप्त करता है। यदि मस्तक श्रेष्ठ हो तो जातक की उम्र और भी और भी अधिक होती है।

    3- निम्न ललाट पर भी शुभ गुणों से युक्त चार रेखाएं हों तो जातक की आयु लगभग 75 वर्ष होती है।

    4- सामान्य मस्तक पर पांच उत्तम रेखाएं हों तो ऐसे जातक सौ वर्ष तक सुख भोगते हैं।

    5- यदि उन्नत मस्तक पर पांच से अधिक रेखाएं हों तो जातक की आयु मध्यम और यदि मस्तक निम्न श्रेणी का हो तो जातक अल्पायु होता है।

    6- मस्तक की किन्हीं दो रेखाओं के किनारे आपस मेें एक-दूसरे का स्पर्श करते हैं तो ऐसे जातक की आयु करीब 60 वर्ष होती है।

    7- मस्तक पर यदि कोई रेखा न हो तो जातक को 25 से 40 वर्ष की आयु में पीड़ा देता है।

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  15. वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लिया था तथा समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। इस बार कूर्म जयंती 14 मई, बुधवार को है।

    इसलिए हुआ कूर्म अवतार

    एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इंद्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा। तब इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथनी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया।

    देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया।

    किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।

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  16. हिन्दू धर्मशास्त्रों में पाप से पैदा हुए ऐसे ही 4 फलों को बताया गया है, जो इंसान के लिए घातक ही साबित होते हैं। 1.रोग- बुरी सोच और काम मन के साथ शरीर पर भी निश्चित रूप से बुरा असर डालते हैं, जिससे बिगड़ा संयम और अनुशासन रोगों के रूप में सामने आता है, जो स्वयं के साथ परिवार के लिए भी दु:खदायी होता है।

    2.शोक- शास्त्रों के मुताबिक जानकर ही नहीं अनजाने में किसी का अहित, बुराई या नुकसान भी पाप है, जो हर इंसान को अंदर से पीड़ा देता है। यहीं नहीं, दूसरों की हानि से पैदा बदले की भावना या पलटवार से प्राण, परिजन, धन या प्रिय वस्तु को खोना भी भारी शोक का कारण बन सकता है, जो शरीर, स्वभाव, चरित्र और व्यक्तित्व के लिए बुरा ही होता है।

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  17. 3.संकट- स्वयं के हित के लिए दूसरों की भलाई को नजरअंदाज करने की लत हर वक्त संकट रूपी तलवार बनकर जीवन पर लटकी रहती है, जिसके बुरे नतीजों से परिजन ही नहीं नजदीकी लोगों को भी गुजरना पड़ सकता है।

    4.पतन या असफलता- पाप व बुरे कामों के कारण रोग, शोक और संकट से गुजरने या भुगतने के बाद अहंकारवश बुरे काम या सोच को अपनी ताकत मानकर भी अगर कोई इंसान पाप के रास्ते पर ही चलता रहे, तो उसका अंत या पतन बहुत ही करीब होता है। हिन्दू धर्मग्रंथों के प्रसंग उजागर भी करते हैं कि हिरण्यकशिपु से लेकर रावण या कंस तक ऐसी ही हालात से गुजरकर काल की गर्त में गिरे।

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  18. क्यों वैशाख पूर्णिमा (14 मई) होगी मंगलकारी?

    पूजा परंपराओं में शक्ति स्वरूपा महालक्ष्मी की ही उपासना का शुभ दिन पूर्णिमा तिथि (14 मई) भी है। इसके साथ ही चंद्रदर्शन का खास महत्व भी है। इस दिन देवी लक्ष्मी की उपासना दरिद्रता का नाश कर वैभव संपन्न बनाती है। दरअसल, लक्ष्मी कृपा देने वाले पूर्णिमा के चंद्रमा की दो खासियत लक्ष्मी कृपा के सूत्र भी उजागर करती है। इसकी रोशनी यानी प्रकाश, ज्ञान स्वरूप माना गया है, तो शीतलता अहंकार से परे विनम्रता। इन 2 गुणों से संपन्न चरित्र पर देवी लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न होती हैं। भगवान विष्णु का लक्ष्मीपति होना भी इसका प्रमाण है।

    पूर्णिमा की ही शुभ तिथि, लक्ष्मी कृपा देने वाले ऐसे गुणों से ही संपन्न भगवान विष्णु के ही अवतार श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी की उपासना का भी शुभ दिन है, क्योंकि शास्त्रों के मुताबिक हनुमानजी की जन्मतिथि पूर्णिमा (चैत्र पूर्णिमा) ही बताई गई है। कल वैशाख पूर्णिमा (14 मई) का ही शुभ योग है। यह भगवान विष्णु के दशावतारों में एक करुणामयी अवतार भगवान बुद्ध के जन्म की भी शुभ घड़ी यानी बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मंगलकारी तिथि है।

    यहीं नहीं, बुद्धिदाता गणेशजी का दिन बुधवार के साथ भी वैशाख पूर्णिमा का संयोग होगा। इसलिए हर पूर्णिमा तिथि के अलावा ऐसे ही मंगलकारी योगों के लिए भी अगली स्लाइड्स पर बताए जा रहे बल, बुद्धि व विद्या देने वाले ही हनुमानजी की पूजा के 15 अचूक व शास्त्रोक्त उपाय न केवल लक्ष्मी कृपा बरसाकर दुर्भाग्य को भी सौभाग्य में बदलने वाले, बल्कि ग्रह दोषो से आने वाली परेशानियों से निपटने का सरल उपाय भी माने गए हैं-

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  19. हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी व महायोगी भी हैं, इसलिए सबसे जरूरी है कि उनकी किसी भी तरह की उपासना में वस्त्र से लेकर विचारों तक पावनता, ब्रह्मचर्य व इंद्रिय संयम को अपनाएं।

    - इसी पवित्रता का ध्यान रखते हुए हनुमानजी की उपासना के लिए भक्त सवेरे तीर्थजल से स्नान कर यथासंभव स्वच्छ व लाल कपड़े पहने। पूजा के लिए लाल आसन पर उत्तर दिशा की तरफ मुंह रख बैठे। वहीं, हनुमानजी की मूर्ति या फिर तस्वीर सामने रखे यानी उनका मुखारविन्द दक्षिण दिशा की तरफ रखे।

    - शास्त्रों में हनुमानजी की भक्ति तंत्र 8मार्ग व सात्विक मार्ग दोनों ही तरह से बताई गई है। इसके लिए मंत्र जप भी प्रभावी माने गए हैं। भक्त जो भी तरीका अपनाए, किंतु यह बात ध्यान रखे कि मंत्र जप के दौरान उसकी आंखे हनुमानजी के नेत्रों पर टिकी रहें। यही नहीं, सात्विक तरीकों से कामनापूर्ति के लिए मंत्र जप रुद्राक्ष माला से और तंत्र मार्ग से लक्ष्य पूरा करने के लिए मूंगे की माला से मंत्र जप बड़े ही असरदार होते हैं।

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  20. पूर्णिमा तिथि पर हनुमानजी को तिल का तेल मिले सिंदूर से चोला चढ़ाने से सारी भय, बाधा और मुसीबतों का अंत हो जाता है। चोला चढ़ाते वक्त इस मंत्र का स्मरण करें-

    सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यसुखवर्द्धनम्।
    शुभदं चैव माङ्गल्यं सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।

    - पूर्णिमा तिथि पर हनुमानजी को लाल या पीले फूल जैसे कमल, गुलाब, गेंदा या सूर्यमुखी चढ़ाने से सारे वैभव व सुख प्राप्त होते हैं। हनुमानजी को आंकडे के फूल चढ़ाना भी हर कामना सिद्ध करता है।

    - मनचाही मुराद पूरी करने के लिए सिंदूर लगे एक नारियल पर मौली या कलेवा लपेटकर हनुमानजी के चरणों में अर्पित करें। नारियल को चढ़ाते समय श्री हनुमान चालीसा की इस चौपाई का पाठ मन ही मन करें-

    “नासै रोग हरे सब पीड़ा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।“

    - हनुमानजी को घिसे लाल चंदन में केसर मिलाकर लगाने से अशांति और कलह दूर हो जाते हैं।

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  21. हनुमानजी को नैवेद्य चढ़ाने के लिए भी शास्त्रों में अलग-अलग वक्त पर विशेष नियम बताए गए हैं। इनके मुताबिक सवेरे हनुमानजी को नारियल का गोला या गुड़ या गुड़ से बने लड्डू का भोग लगाना चाहिए।

    इसी तरह दोपहर में हनुमान की पूजा में घी और गुड़ या फिर गेहूं की मोटी रोटी बनाकर उसमें ये दोनों चीजें मिलाकर बनाया चूरमा अर्पित करना चाहिए। वहीं, शाम या रात के वक्त हनुमानजी को विशेष तौर पर फल का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। हनुमानजी को जामफल, केले, अनार या आम के फल बहुत प्रिय बताए गए हैं।

    हनुमानजी को ऐसे मीठे फल व नैवेद्य अर्पित करने वाले की दु:ख व असफलताओं की कड़वाहट दूर होती है और वह सुख व सफलता का स्वाद चखता है।

    - इन तीनों विशेष कालों के अलावा जब भी हनुमानजी को, जो भी नैवेद्य चढ़ावें तो यथासंभव उसमें गाय का शुद्ध घी या उससे बने पकवान जरूर शामिल करें। साथ ही यह भी जरूरी है कि भक्त स्वयं भी उसे ग्रहण करे।

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  22. शाम के वक्त हनुमानजी को लाल फूलों के साथ जनेऊ, सुपारी अर्पित करें और उनके सामने चमेली के तेल का पांच बत्तियों का दीपक नीचे लिखे मंत्र के साथ लगाएं-

    साज्यं च वर्तिसं युक्त वह्निनां योजितं मया।
    दीपं गृहाण देवेश प्रसीद परमेश्वर।

    यह उपाय किसी भी बाधा को फौरन दूर करने वाला माना जाता है।

    - धार्मिक आस्था है कि हनुमानजी की अलग-अलग स्वरूप की मूर्ति की उपासना विशेष कामनाओं को पूरा करती है, इसलिए हनुमानजी के मंत्र जप या किसी भी रूप में इस तरह भक्ति करें कि अगर नेत्र भी बंद करें, तो हनुमानजी का वहीं स्वरूप नजर आए। यानी हनुमानजी की भक्ति पूरी सेवा भावना, श्रद्धा व आस्था में डूबकर करें।

    - रुद्र अवतार श्रीहनुमान की उपासना बल, बुद्धि के साथ संपन्न भी बनाने वाली मानी गई है। शास्त्रों में श्रीहनुमान को विलक्षण सिद्धियों व 9 निधियों का स्वामी भी बताया गया है, जो उनको पवित्र भावों से की प्रभु राम व माता सीता की सेवा व भक्ति द्वारा ही प्राप्त हुई, इसलिए पूर्णिमा तिथि पर हनुमान के साथ श्रीराम-जानकी की मूर्ति रख उपासना करें और इस मंत्र का स्मरण कर सुख-सफलता व समृद्धि की कामना पूरी करें-

    मनोजवं मारुततुल्यं वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
    वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।

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  23. श्रीहनुमान चालीसा या इसकी एक भी चौपाई का पाठ हनुमान कृपा पाने का सबसे सहज और प्रभावी उपाय माना जाता है, इसलिए जब भी घर से बाहर निकलें तो श्रीहनुमान चालीसा की इस चौपाई का स्मरण कर निकलें-

    जै जै जै हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की नाई।

    इस हनुमान चालीसा के स्मरण भर न केवल अनहोनी से बचाता है, बल्कि मनचाहे काम व लक्ष्य भी पूरा करता है।

    - हनुमानजी शिव के अवतार हैं और शनिदेव परम शिव भक्त व सेवक हैं, इसलिए पूर्णिमा के अलावा शनिवार को शनि दशा या अन्य ग्रहदोष से आ रही कई परेशानियों और बाधाओं से फौरन निजात पाने के लिए श्रीहनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमान अष्टक का पाठ करें। श्रीहनुमान की गुण, शक्तियों की महिमा से भरे मंगलकारी सुन्दरकाण्ड का परिजनों या इष्टमित्रों के साथ शिवालय में पाठ करें।

    यह भी संभव न हो तो शिव मंदिर में हनुमान मंत्र 'हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट्' का रुद्राक्ष माला से जप करें या फिर सिंदूर चढ़े दक्षिणामुखी या पंचमुखी हनुमान के दर्शन कर चरणों में नारियल चढ़ाकर उनके चरणों का सिंदूर मस्तक पर लगाएं। इससे ग्रहपीड़ाओं या शनिपीड़ा का अंत होता है।

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  24. हनुमानजी की भक्ति नई उमंग, उत्साह, ऊर्जा व आशाओं के साथ असफलताओं व निराशा के अंधेरों से निकल नए लक्ष्यों और सफलता की ओर बढऩे की प्रेरणा देती है। लक्ष्यों को भेदने के लिए इस दिन अगर शास्त्रों में बताए श्रीहनुमान चरित्र के अलग-अलग 12 स्वरूपों का ध्यान एक खास मंत्र स्तुति से किया जाए तो आने वाला वक्त बहुत ही शुभ व मंगलकारी साबित हो सकता है। इसे पूर्णिमा के अलावा शनिवार, मंगलवार या हर रोज भी सुबह या रात को सोने से पहले स्मरण करना न चूकें–

    हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
    रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।
    उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
    लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
    एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
    स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
    तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।।

    इस खास मंत्र स्तुति में श्रीहनुमान के 12 नाम उनके गुण व शक्तियों को भी उजागर करते हैं। ये नाम है - हनुमान, अञ्जनी सूनु, वायुपुत्र, महाबल, रामेष्ट यानी श्रीराम के प्यारे, फाल्गुनसख यानी अर्जुन के साथी, पिंङ्गाक्ष यानी भूरे नयन वाले, अमित विक्रम, उदधिक्रमण यानी समुद्र पार करने वाले, सीताशोकविनाशक, लक्ष्मणप्राणदाता और दशग्रीवदर्पहा यानी रावण के दंभ को चूर करने वाले।

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  25. सोमवार के दिन सवेरे स्नान करें। पूजा स्थान पर गौरीशंकर की प्रतिमा रखें व पूजन करें। तन से स्वच्छ होकर पवित्र मन से भगवान शिव व माता गौरी का स्मरण करें। इसके बाद गौरीशंकर रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करके सोने, चांदी या धागे में डालकर पहनें। इन सरल मंत्रों को बोल कर भी गौरीशंकर रुद्राक्ष की पूजा कर धारण कर सकते हैं-

    ॐ गौरीशंकराय नमः

    ॐ नमः शिवाय

    शास्त्रों के मुताबिक गौरीशंकर रुद्राक्ष के शुभ प्रभाव से खासतौर पर अविवाहितों का शीघ्र विवाह, वैवाहिक जीवन में अलगाव या तलाक के कारणों का अंत और पति-पत्नी के संबंधों में प्रेम, समर्पण और घनिष्ठता आती है।

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  26. 1 दंपति को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।

    2 गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें, पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभव पीला भोजन ही करें।

    3 माता बनने की इच्छुक महिला को चाहिए गुरुवार के दिन गेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमें भीगी चने की दाल और थोड़ी सी हल्दी मिलाकर नियमपूर्वक गाय को खिलाएं।

    4 शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस पर कुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एक सुपारी रखकर सूर्यास्त से पहले किसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतान का वरदान देने के लिए प्रार्थना करें निश्चय ही संतान की प्राप्ति होगी ।

    5 गुरुवार के दिन पीले धागे में पीली कौड़ी को कमर में बांधने से संतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।

    6 माता बनने की इच्छुक महिला को पारद शिवलिंग का रोजाना दूध से अभिषेक करें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।

    7 हर गुरुवार को भिखारियों को गुड़ का दान देने से भी संतान सुख प्राप्त होता है ।

    8 पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर स्त्री को पिलाएं यह सिद्ध एंवम परीक्षित प्रयोग है ।

    9 रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाए और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।

    10 श्वेत लक्ष्मणा बूटी की 21 गोली बनाकर उसे नियमपूर्वक गाय के दूध के साथ लेने से संतान सुख की अवश्य ही प्राप्ति होती है ।

    11 उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।

    12 नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।

    13 पहली बार ब्याही गाय के दूध के साथ नागकेसर के चूर्ण का लगातार 7 दिन सेवन करने से संतान पुत्र उत्पन्न होता है ।

    14. सवि का भात और मुंग की दाल खाने से बांझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।

    15. गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।

    16. पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी ।

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  27. हमारे धर्म ग्रंथों में भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य कहा गया है यानी किसी भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले करनी चाहिए। हिंदू धर्म में गणेशजी के अनेक स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर आकार, स्वरूप व रंग के गणेश जी अलग-अलग फल प्रदान करते हैं।

    ज्योतिष के अनुसार जिन लोगों का मन किसी काम में नहीं लगता हो या दिमाग तेज नहीं चलता हो उन्हें हरे रंग के गणेशजी की पूजा करना चाहिए। क्योंकि बुद्धि का कारक बुध ग्रह होता है और हरा रंग का कारक बुध है। यदि ऐसे लोग हरे रंग के या पन्ने से निर्मित गणेश जी की पूजा करें तो उनके बुध ग्रह से संबंधित सभी दोष कम हो जाते हैं और इसका उन्हें लाभ मिलता है।

    दिमाग तेज चलने लगता है और भी कई लाभ होते हैं। चूंकि पढ़ाई पूरी तरह से मानसिक कार्य है इसलिए विद्यार्थियों के लिए भी हरे रंग के गणेश जी की पूजा करना शुभ होता है। व्यापार में सफलता पाने के लिए भी हरे रंग के गणेश जी की ही पूजा करना चाहिए।

    पूजन विधि- सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान श्री गणेश का पंचोपचार पूजन करें। उन्हें दुर्वा व फूल चढ़ाएं। लड्डू का भोग लगाएं और इस मंत्र का जप पन्ने की माला से करें।

    मंत्र- नमस्तस्मै गणेशाय ब्रहविद्यारदायिने। यस्यागस्त्यायते नाम विघ्वसागरशोषणे।।...

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  28. शनिवार, 24 मई 2014 की सुबह शुक्र ग्रह राशि बदलकर मेष में आ गया है। इससे पूर्व यह ग्रह मीन राशि में उच्च का बना हुआ था। मेष राशि का स्वामी मंगल ग्रह है, जो कि शुक्र का शत्रु है। मेष में पूर्व से ही केतु स्थित है, अत: अब शुक्र और केतु की जोड़ी बन गई है। इन दोनों ग्रहों पर शनि-राहु की भी पूर्ण दृष्टि रहेगी। मेष राशि में स्थित शुक्र तुला राशि पर पूर्ण दृष्टि रखेगा। तुला राशि का स्वामी शुक्र ही है। 18 जून तक शुक्र मेष राशि में रहेगा, इसके बाद वृष राशि में चले जाएगा। वृष राशि का स्वामी भी शुक्र ही है।
    शुक्र के राशि परिवर्तन का असर
    शुक्र के राशि परिवर्तन से तुला एवं मेष राशि पर सीधा असर होगा। तुला के लिए समय अच्छा रहेगा, जबकि मेष राशि के लोगों को कुछ परेशानियां हो सकती हैं, लेकिन जल्दी ही सब ठीक हो जाएगा। 25 मई से रोहिणी भी लग जाएगी एवं शुक्र के मंगल की राशि में जाने से इस वर्ष नवतपा बिगड़ सकता है, यानी खण्ड वृष्टि का योग बनेगा। इससे किसानों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। देश को विदेशों से व्यापारिक लाभ मिलेगा। सोने-चांदी के भाव में कमी आ सकती है।
    मेष- अब आपकी राशि में शुक्र आ गया है और कई बार विपरीत परिस्थितियां निर्मित होंगी। अत: संभल कर कार्य करें। लालच देने वाली योजनाओं से दूर रहें। अनजान लोगों की बातों पर भरोसा न करें।

    वृष- आपकी राशि से शुक्र द्वादश रहेगा। इस स्थिति से आपको धन लाभ होगा। वृष राशि का स्वामी शुक्र ही है, अत: इस परिवर्तन से आपके जीवन पर कोई बुरा असर नहीं होगा।

    मिथुन- मिथुन राशि के लोगों के लिए शुक्र अब एकादश हो गया है। शुक्र की यह स्थिति आपको बेहतर सफलताएं दिलाएगी। पुराने लक्ष्य पूरे होंगे। सभी काम समय पर पूर्ण हो जाएंगे।
    कर्क- इस राशि से शुक्र दसवां रहेगा जो कि कुछ परेशानियों को जन्म दे सकता है। मनचाहे कार्य पूर्ण होने में संशय बना रहेगा। धैर्य के साथ कार्य करें, आने वाले समय में परेशानियां दूर हो जाएंगी।

    सिंह- आपकी राशि से शुक्र अब नवम हो गया है। इस कारण आपके वर्चस्व में वृद्धि होगी। धन लाभ होगा। कार्य में जिम्मेदारी बढ़ेगी। बौद्धिक कार्य में सफलता मिलेगी।

    कन्या- इस राशि के लिए अष्टम शुक्र अच्छा नहीं माना जाता है। अत: आपको सावधान रहकर कार्य करने होंगे। खर्चों में वृद्धि हो सकती है, अत: फिजूल खर्च से बचें। अनावश्यक चिंताएं बढ़ेंगी। यदि यात्रा पर जा रहे हैं तो सचेत रहें, हानि के योग हैं।
    तुला- शुक्र ग्रह आपकी राशि का स्वामी है। मेष में ग्रह स्वामी आने से आपकी राशि पर शुक्र की पूर्ण दृष्टि रहेगी। पुरानी परेशानियां दूर हो जाएंगी। सुखद समाचार प्राप्त होंगे। कार्यों में सफलता मिलेगी। लाभ के अवसर प्राप्त होंगे।

    वृश्चिक- इस राशि से शुक्र षष्ठम रहेगा। इनके कार्यों में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं या कार्यों की गति धीमी हो सकती है। लक्ष्य पूर्ण करने में समय अधिक लगेगा। धैर्य के साथ काम करेंगे तो नुकसान से बचे रहेंगे। ध्यान रखें, क्रोध की अवस्था में हानि होगी।

    धनु- आपके लिए पांचवां शुक्र सुखद रहेगा। घमंड का नाश होगा, समाज में सम्मान मिलेगा। नवीन कार्य होंगे। परिवार से सुख प्राप्त होगा।
    मकर- शनिवार को शुक्र मकर राशि से चतुर्थ हो गया है, जो कि कार्यों की गति धीमी कर देगा। समय पर लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाएंगे। लाभ के अवसर हानि में बदल सकते हैं। अत: सावधानी से कार्य करें। इस समय निवेश से बचें।

    कुंभ- आपके लिए तृतीय शुक्र स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाने वाला रहेगा। पुराने समय से चले आ रहे रोगों से मुक्ति मिलेगी। मन काम में लगने लगेगा। घर-परिवार में वैचारिक मतभेद दूर होंगे। सुखद समाचार मिलेंगे।

    मीन- शनिवार से पूर्व शुक्र मीन राशि में ही स्थित था। अब से आपके लिए यह ग्रह द्वितीय हो जाएगा। शुक्र की यह स्थिति लाभदायक रहेगी। व्यापार में उन्नति होगी। नए वस्त्र और आभूषण प्राप्त होंगे। साथ ही, भव्यता दिखाने में व्यय होगा।

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  29. ज्योतिषशास्त्र में नवग्रहों से निर्मित योगों के आधार पर पितृदोष की भविष्यवाणी की जाती है। नवग्रहों में बृहस्पति और शनि क्रमश: आकाश और वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि राहु चुंबकीय क्षेत्र का, सूर्य पिता का, चंद्र माता का, शुक्र पत्नी का और मंगल भाई का प्रतिनिधित्व करता है। राहु एक छाया ग्रह है और प्रेतात्माएं भी छाया रूप में ही विद्यमान रहती हैं।
    अत: कुंडली में राहु की स्थिति पितृ दोष का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण है। यदि राहु सूर्य के साथ युति करे तो सूर्य को ग्रहण लगेगा। सूर्य पिता का कारक होने के कारण पितृदोष का कारण बनेगा तथा राज्य का कारक होने से राज्य पक्ष से नुक्सान पहुंचाएगा। इसी प्रकार माता के कारक चंद्र की राहु और सूर्य से युति मातृ दोष का कारण बनेगी जिससे भूमि, भवन और वाहन से कष्ट की आशंका बनी रहेगी, चंद्रमा मन का कारक होने से मन में अनावश्यक घबराहट के कारण असफलता एवं मानसिक तनाव रहेगा।
    जन्म कुंडली में बारहवां भाव, सूर्य-शनि की युति और राहु का प्रभाव पितृदोष का कारण बनता है। सूर्य नीचगत, शत्रुक्षेत्रीय अथवा राहु-केतु के साथ द्वादश भाव में स्थित हो तो पितृदोष बनता है। जिनकी जन्मकुंडली में पितृ दोष विद्यमान हो वे पितृपक्ष में श्राद्ध-तर्पण करें
    ॐ ऐं पितृदोष शमनं ह्रीं ॐ स्वधा’
    मंत्र का जप करें। नारायण गया श्राद्ध, विष्णु श्राद्ध, नान्दीमुख श्राद्ध कराएं। रुद्राभिषेक कराएं। शैय्या दान करें। लोकहितार्थ तालाब, पुल, नल या प्याऊ आदि लगवाने चाहिएं। ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन, वस्त्र, फल, दक्षिणा आदि का दान करें। किसी निर्धन और जरूरतमंद व्यक्ति को तिल दान करें।

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  30. अच्छी नौकरी के लिए यदि आप पूर्णत: योग्य हैं फिर भी आप को अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं मिल पा रहा है तो ज्योतिष के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। अपने उज्जवल भविष्य के लिए अपनी प्रतिभा और योग्यता के अनुरूप सर्वोत्तम नौकरी का चुनाव करना चाहते हैं तो परिस्थितियों को अपने अनुकुल करने के लिए कुछ छोटे-छोटे उपाय अपना कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है

    - श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करना अथवा करवाना शुभ होता है।

    - श्री महाकाली माता की पूजा-अर्चना करें।

    - गरीबों को भोजन करवाएं।

    - शनिवार के दिन काले कुत्ते को दूध पिलाएं।

    - लाल रंग सम्मिलित सेंडिल या जूते पहनें अथवा सफेद वस्त्रों को धारण करने से सकारात्मकता आती है।

    - जहां तक संभव हो लाल रंग के आभूषणों का प्रयोग करें।

    - घर से निकलने से पूर्व दाएं तरफ सूंड वाले श्री गणेश जी का दर्शन करें।

    - गाय को बृहस्पतिवार के रोज हरा चारा खिलाएं।

    - संध्या समय शिवालय में दीप दान करें।

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  31. आप अगर किसी संकट, रोग या दु:खों के दौर से गुजर रहें हों, तो भगवान शिव के यहां बताए जा रहे इस करिश्माई मंत्र का ध्यान सोम प्रदोष यानी सोमवार व प्रदोष तिथि के संयोग (26 मई) में रात जागरण कर या दिन में कभी भी शिव पूजा के साथ जरूर करें-

    - सुबह स्नान के बाद घर पर शिव की महामृत्युञ्जय स्वरूप की प्रतिमा या शिवमंदिर में शिवलिंग को गंगाजल या दूध से स्नान के बाद गंध, अक्षत, बिल्वपत्र, धतूरा चढ़ाकर पूजा व शिव आरती करें। कुश के आसन पर पूर्व दिशा में मुख कर बैठ नीचे लिखे तीन अक्षरी महामृत्युञ्जय मंत्र का रुद्राक्ष की माला से 108 बार स्मरण करें-

    ॐ जूं सः

    - किसी वजह से मंत्र जप न कर पाएं तो मन ही मन इस मंत्र का स्मरण भी रोग, भय व मृत्यु योग को टालने में असरदार माना गया है।

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  32. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शरीर द्वारा भविष्यकथन करने के कई तरीके बताए गए हैं जिनमें से एक है अंग स्फुरण या अंगों के फड़कने का अध्ययन कर भविष्यवाणी करना। मत्स्य पुराण के अनुसार, "पुरुषों के दाहिने (Right Side) अंगों का फड़कना शुभ और बाएं भाग (Left Side) का फड़कना अशुभ होता है। स्त्रियों के लिए यह विपरीत माना जाता है।" आइए जानें मानव शरीर के किस हिस्से के फड़कने से क्या संकेत मिलता है:
    * सिर का फड़कना: जमीन-जायदाद की वृद्धि
    * ललाट का फड़कना: स्थान की वृद्धि
    * नेत्रों के समीप स्फुरण: धन प्राप्ति
    * दाएं पलकों का फड़कना: युद्ध में विजय, लक्ष्य प्राप्ति का संकेत
    * आंत का फड़कना: धन प्राप्ति
    * नाक का फड़कना: प्रियजनों से मिलन
    * निचले होंठों का फड़कना: संतान सुख की प्राप्ति
    * गले का फड़कना: भोग लाभ

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  33. अपार धन प्राप्ति और धन संचय के लिए,लोग पैसा तो बहुत कमा लेते हैं लेकिन उसे जोड़ नहीं पाते। घर में पैसा आता तो है साथ ही कोई न कोई खर्च भी लाता है। ज्योतिष के अनुसार कुछ ग्रह दशाएं ऐसी होती है जिससे न चहाते हुए भी हम अपने खर्चों पर रोक नहीं लगा पाते है।

    मान्यता है कि कुत्ता शनिदेव का वाहन है और जो लोग कुत्ते को खाना खिलाते हैं उनसे शनि अति प्रसन्न होते हैं। शनि महाराज की प्रसन्नता के बाद व्यक्ति को परेशानियों के कष्ट से मुक्ति मिल जाती है। अगर आप भी इसी समस्या से जूझ रहे है तो धन लाभ पाने के लिए शनिवार को एक रोटी बनाने के उपरांत उसे तेल से चुपड़ लें और कुत्ते को खिलाएं। अगर संभव हो तो काले कुत्ते को ही खिलांए।

    शनि की साढ़ेसाती, ढय्या या कोई शनि दोष हो तब भी खर्चों की अधिकता रहती है। ऐसा करने से शनि के साथ ही राहु-केतु से संबंधित दोषों का भी निवारण हो जाता है। राहु-केतु के योग कालसर्प योग से पीडित व्यक्तियों को यह उपाय लाभ पहुंचाता है।

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  34. शास्त्रों में मां लक्ष्मी के 18 पुत्र वर्गों का वर्णन आता है। इनके नामों का जाप प्रत्येक शुक्रवार को करने से मन भावन धन की बरसात होती है।

    - ॐ देवसखाय नम:
    - ॐ चिक्लीताय नम:
    - ॐ आनन्दाय नम:
    - ॐ कर्दमाय नम:
    - ॐ श्रीप्रदाय नम:
    - ॐ जातवेदाय नम:
    - ॐ अनुरागाय नम:
    - ॐ सम्वादाय नम:
    - ॐ विजयाय नम:
    - ॐ वल्लभाय नम:
    - ॐ मदाय नम:
    - ॐ हर्षाय नम:
    - ॐ बलाय नम:
    - ॐ तेजसे नम:
    - ॐ दमकाय नम:
    - ॐ सलिलाय नम:
    - ॐ गुग्गुलाय नम:
    - ॐ कुरूण्टकाय नम:।

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  35. अच्छी नौकरी के लिए यदि आप पूर्णत: योग्य हैं फिर भी आप को अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं मिल पा रहा है तो ज्योतिष के माध्यम से इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। अपने उज्जवल भविष्य के लिए अपनी प्रतिभा और योग्यता के अनुरूप सर्वोत्तम नौकरी का चुनाव करना चाहते हैं तो परिस्थितियों को अपने अनुकुल करने के लिए कुछ छोटे-छोटे उपाय अपना कर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है

    - श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ करना अथवा करवाना शुभ होता है।

    - श्री महाकाली माता की पूजा-अर्चना करें।

    - गरीबों को भोजन करवाएं।

    - शनिवार के दिन काले कुत्ते को दूध पिलाएं।

    - लाल रंग सम्मिलित सेंडिल या जूते पहनें अथवा सफेद वस्त्रों को धारण करने से सकारात्मकता आती है।

    - जहां तक संभव हो लाल रंग के आभूषणों का प्रयोग करें।

    - घर से निकलने से पूर्व दाएं तरफ सूंड वाले श्री गणेश जी का दर्शन करें।

    - गाय को बृहस्पतिवार के रोज हरा चारा खिलाएं।

    - संध्या समय शिवालय में दीप दान करें।

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  36. लक्ष्मी मंदिर में कांसे के बर्तन में जल, केसर, कपूर, सुपारी और तुलसी पत्र मिलाकर चढाएं। इस उपाय से सभी मनोरथ सिद्ध होंगे।

    2 पीले कपड़े में हल्दी, कौड़ीयां, गोमती चक्र बांधकर तिजोरी में रखें। इस उपाय से तिजोरी धन से भरी रहेगी।

    3 विद्यार्थी वर्ग किसी ज़रूरतमंद को मक्खन-मिश्री दान करें। इस उपाय से शिक्षा क्षेत्र में सफलताएं प्राप्त होंगी।

    4 लाल कपडे में गेहूं और नारियल बांधकर लक्ष्मी मंदिर में चढ़ाएं। इस उपाय से शत्रुओं का दमन होगा।

    5 महिलाएं किसी सुहागन को कुमकुम (रोली) भेंट करें। इस उपाय से सौभाग्य का वरदान प्राप्त होगा।

    6 आज ब्राहमणों को पानी से भरा मिट्टी का मटका दान करें। इससे धन के नुकसान से निजात मिलेगा।

    7 सुपारी पर मौली बांधकर ब्राहमणों को भेंट करें। इस उपाय से चिर लक्ष्मी का वरदान मिलेगा।

    8 किसी ज़रूरतमंद को गद्दा और पलंग दान करें। इस उपाय से दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहेगी।

    9 किसी सुहागन को मीठा पान खिलाएं। इस उपाय से राज्य पक्ष में स्थिती अच्छी बनेगी।

    10 किसी ज़रूरतमंद को जूते चप्पल दान करें। इस उपाय से दुर्भाग्य का निवारण होगा।

    11 ब्राहमणों को चंदन भेंट करें। इस उपाय से दुर्घटनाओं से सुरक्षा प्राप्त होगी।

    12 किसी ज़रूरतमंद को कपड़े दान करें। इस उपाय से लंबी आयु पाएंगे।

    अक्षय तृतीया को खरीदारी करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार आज के शुभ दिवस पर मध्यान्ह काल में पितृ शांति के लिए तर्पण कर यदि दान किया जाए तो जीवन में आए हुए और आने वाले कष्टों से निजात पाया जा सकता है।

    अपनी राशि अनुसार अवश्य दान करें

    मेष : मेष राशि के जातक मसूर की दाल का दान करें।

    वृषभ : वृषभ राशि के जातक चावल और बाजरे का दान करें।

    मिथुन : राशि के जातक हरी सब्जियां का दान करें।

    कर्क : मिथुन राशि के जातक दूध और चावल का दान करें।

    सिंह : सिंह राशि के जातक लाल फल और तांबे का दान करें।

    कन्या : कन्या राशि के जातक मूंग की दाल का दान करें।

    तुला : तुला राशि के जातक शक्कर और चावल का दान करें।

    वृश्चिक : वृश्चिक राशि के जातक जल और गुड़ का दान करें।

    धनु : धनु राशि के जातक केला और पीले चावल का दान करें।

    मकर : मकर राशि के जातक काली उड़द और दही का दान करें।

    कुम्भ : कुम्भ राशि के जातक काली तिल और वस्त्र का दान करें।

    मीन : मीन राशि के जातक हल्दी और चने की दाल का दान करें।

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  37. सुख व ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी सदैव कर्म और कर्तव्य से जुड़े व्यक्ति पर हमेशा मेहरबान रहती है। हर व्यक्ति धन और समृद्धि के रूप में लक्ष्मी को प्रसन्न करने की कामना रखता है परंतु लक्ष्मी कृपा के लिए पवित्रता, परिश्रम, व्यवहार, स्वभाव और कर्म भी परम आवश्यक है।

    लक्ष्मी गायत्री मंत्र: महालक्ष्मी च विद्महे, विष्णुपत्नी च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्।

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  38. वृहस्पति का ज्योतिषीय वर्णन: ज्योतिष सिद्धांत अनुसार वृहस्पति की दो राशियां मानी गई हैं धनु और मीन। धनु राशि को पृष्ठोदयी मानी गयी अतः ये अंतिम समय में परिणाम देती है। इस राशि के प्रशासनिक लक्षण हैं और अत्यंत ऊर्जावान है। वृहस्पति की ही दूसरी राशि मीन है। ऐसे दो मछलियां जिनके मुंह एक-दूसरे की पूंछ की तरह हैं। ये राशि दिन में बलवान होती है। इस राशि से प्रभावित लोग जल में या जल के आसपास में होते हैं। ब्राह्मण राशि मानी गई है। ज्योतिष सिद्धांत अनुसार वृहस्पति हर लग्न के लिए शुभफल नहीं देते।

    सामान्य रूप से वृहस्पति की महादशा में नए कपड़ों की प्राप्ति होती है। नौकर-चाकर और परिवार के लोगों में वृद्धि होती है, संतान की प्राप्ति होती है, धन व मित्रों में वृद्धि होती है, प्रशंसा मिलती है, श्रेष्ठ व्यक्तियों से सम्मान प्राप्त होता है। वृहस्पति को 2, 5, 9, 10 और 11वें भाव का स्थिर कारक माना गया है। आमतौर से अपने ही भाव में कारक को अच्छा नहीं माना गया है परंतु दूसरे भाव में वृहस्पति को लाभ देने वाला माना गया है।

    वृहस्पति देव मनुष्य को धन, सुख, दाम्पत्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति देते हैं। यदि ये अस्त हो या वक्री हो तो विवाह सही आयु में नहीं हो पाता तथा वैवाहिक जीवन दु:खद अन्यथा तलाक की स्थिति बन जाती है। धन का नाश होता है। व्यक्ति दुभाग्यपूर्ण जीवन जीने को मजबूर हो जाता है। व्यक्ति के अपने रिश्तेदार भी उसका साथ छोड देते हैं। पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो पाती। इन्हीं सभी समस्याओं के समाधान हेतु हमें ज्योतिष शास्त्र द्वारा उचित मार्गदर्शन मिलता है। ज्योतिष शास्त्र में बताए गए उपायों द्वारा हम अपने जीवन में आने वाले कष्टों का निवारण कर सकते हैं। इन्हीं लघु उपायों से हम अपना जीवन सफल, सुखद एवं मंगलमय बना सकते हैं और साथ ही अपने बच्चों में अच्छे संस्कार और धर्म के बीज रोपित कर सकते हैं।

    वृहस्पति को प्रसन्न रखने के उपाय
    1. पीला पुखराज स्वर्ण की अंगूठी में जड़वाकर तथा अंगूठी की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा करवाकर वृहस्पतिवार को शुभ मुहुर्त में दाएं हाथ की तर्जनी में धारण कर सकते हैं।

    2. वृहस्पतिवार को पीली वस्तुओं का दान करें।

    3. वृहस्पतिवार को केले के पौधे का पूजन करें और पीला वस्त्र पहनें।

    4. विवाह हेतु शिवलिंग पर हल्दी का लेप करके जल से अभिषेक करें।

    5. संतान प्राप्ति के लिए वृहस्पतिवार के दिन संतान गोपाल साधना करें।

    6. मार्गशीर्ष के महीने में देवी कात्यायनी का पूजन करें।

    7. धन और समृद्धि के लिए हल्दी की गाठें, चनादाल और साबुत लालमिर्च पीले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें।

    8. संतान प्राप्ति के लिए वृहस्पतिवार के दिन गाय को केला खिलाएं।

    9. वृहस्पतिवार के दिन व्रत और कथा करें और वृहस्पति देव के चित्र पर चना और गुड़ का भोग लगाएं।

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  39. आप अपनी राशिनुसार उपाय करें जिससे सभी प्रकार की समस्याएं जैसे रोग, आर्थिक समस्या, भय, नौकरी, व्यवसाय, मकान, वाहन, विवाह, संतान, प्रमोशन आदि संबंधित सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। आपको अपने कर्मों के आति उत्तम फल प्राप्त होने लगेंगे। इन रामबाण उपायों से निश्चित ही आपकी किस्मत बदल जाएगी।

    मेष- पक्षियों को दाना डालें।

    वृषभ- हनुमान जी को शुद्ध घी का दीपक अर्पित करें। जिसमें कच्चे सूत के कलावे की दोमुंही बत्ती हो।

    मिथुन- धन लाभ हेतु मछलियों को आटे की गोलियां दें।

    कर्क- चांदी की गाय बनवाकर किसी विद्वान ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठिा करवा कर ब्राह्मण को ही दक्षिणा सहित दान दें।

    सिंह- सर्व कष्ट से मुक्ति हेतु गणेश जी की अराधना करें।

    कन्या- हनुमान जी को भोग अर्पित कर दर्शन करें।

    तुला- ताम्बे के पात्र में जल ले कर रोली मिला ले व सूर्य देव को अर्घ्य दें।

    वृश्चिक- घर में उत्तर या पूर्व दिशा में एक्वेरियम रखें।

    धनु- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

    मकर- शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति को दान दें।

    कुम्भ- काली मिर्च के 5 दाने अपने सिर से 7 बार उतारकर 4 दाने चारों दिशाओं में फेंक दें तथा पांचवे दाने को आकाश की ओर उछाल दें।

    मीन- किसी भी स्थान पर लाल पुष्प का पौधा लगाएं।

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  40. सर्वाबाधा प्रशमनम् त्रैलोकस्याखिलेश्वरी एवमेव त्वया कार्यमस्म वैरिविनाशनम्

    देवी बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं। ज्योतिष शस्त्र के अनुसार माता बगलामुखी का संबंध ग्रह वृहस्पति अर्थात गुरु से है। देवी बगलामुखी का वर्ण पीला है जो गुरु वृहस्पति को संबोधित करता है। ऐसी मान्यता है देवी बगलामुखी की उपासना शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए की जाती है। कालपुरुष सिद्धांत के अनुसार जातक की कुण्डली में देव गुरु वृहस्पति का पक्का स्थान बारहवां है और वेधा स्थान छठा है तथा वो आठवें स्थान में अनिष्टकारी फल देते हैं।

    अतः ये तीनों स्थान कुण्डली के त्रिक भाव कहे गए हैं। कुण्डली का बारहवां स्थान व्यक्ति के खर्चों और गुप्त शत्रुओं को संबोधित करता है। कुण्डली का छठा स्थान शत्रु और रोगों को संबोधित करता है तथा कुण्डली का आठवां स्थान मृत्यु को संबोधित करता है। देवी बगलामुखी की साधना से व्यक्ति को शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है, धन हानी से छुटकारा मिलता है और रोगों का शमन होता है तथा साधक के प्राणों की रक्षा होती है।

    मंत्र:
    ॐ ह्लीँ बगलामुखी सर्वदुष्टानाम् वाचम् मुखम् पदम् स्तंभय जिह्ववाम् कीलय बुद्धि विनाशय ह्लीँ फट स्वाहा।

    रुद्रमाल तंत्र अनुसार माता बगलामुखी शिव की अर्धांगिनी हैं तथा पीत वरण (पीले रूप) में इन्हें बगलामुखी और भगवान शंकर को बाग्लेश्वर कहा जाता है। इनका बीज मंत्र है "ह्लीँ" इसी बीज से देवी दुश्मनों का पतन करती है। देवी बगलामुखी की साधना को दुशमनों का सफाया करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। बगलामुखी माता अपने भक्तों के शत्रुओं की बोलती बंद कर देती हैं जिससे वो भक्तों के विरूद्ध कुछ बोल नहीं पाते और दुश्मनों के सोचने विचरने की शक्ति का भी हनन कर देती हैं। जिससे विरोधी भक्तों के बारे मे कोई षडयंत्र भी नहीं रच पाते। मां बगलामुखी का यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णन हैं की इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है। देवी बगलामुखी की साधना से भक्तों की दुष्टों से रक्षा होती है तथा मुकदमे और कोर्ट केस में जीत मिलती है।

    देवी बगलामुखी से संबंधित अचूक उपाय
    1. देवी बगलामुखी के चित्र के आगे पीले कनेर के फूल चढाएं।

    2. गुरुवार के दिन 8 ब्राहमणों को इच्छानुसार चना दाल दान करें।

    3. सरसों के तेल में हल्दी मिलाकर देवी बगलामुखी के चित्र के आगे दीपक जलाएं।

    4. सैंधें नमक से देवी बगलामुखी का "ह्लीं शत्रु नाशय" मंत्र से हवन करें।

    5. लाल धागे में 8 नींबू पिरोकर देवी बगलामुखी के चित्र पर माला चढ़ाएं।

    6. देवी बगलामुखी के चित्र के आगे पीली सरसों के दाने कर्पूर में मिलाकर जलाएं।

    7. गुरुवार के दिन सफ़ेद शिवलिंग पर "ह्लीं बाग्लेश्वराय" मंत्र बोलते हुए पीले आम के फूल चढ़ाएं।

    8. शनिवार के दिन काले रंग के शिवलिंग पर हल्दी मिले पानी से अभिषेक करें।

    9. सफ़ेद शिवलिंग पर "ॐ ह्लीँ नमः" मंत्र का उच्चारण करते हुए शहद से अभिषेक करें।

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  41. मेष : मेष लग्न के कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी शुक्र व राशि तुला होती है शुक्र विवाह का कारक है अत: सुंदर व सुशिक्षित वर प्राप्त होगा। शुक्र कला प्रेमी व सौंदर्य के प्रतीक हैं अत: वर घर की साज सज्जा पर विशेष ध्यान देगा।

    वृष : इस राशि का सप्तमेश मंगल व राशि वृश्चिक है, ऐसी कन्या का पति कम पढ़ा-लिखा, गुस्सैल व रूखे स्वभाव वाला होगा। ऐसे जातक का जीवन संघर्षमय होगा व अक्सर किसी न किसी परेशानी का सामना करते रहना होगा।

    मिथुन : इस लग्न की कन्या के सप्तम भाव में गुरु की राशि धनु होती है। ऐसी कन्या का पति सुंदर, गौरवशाली होगा। इनको अवज्ञा पसंद नहीं है, ऐसा होने पर ये बहुत क्रोधित हो जाते हैं। इस लग्न की कन्या बहू पुत्रवान होती है।

    कर्क : इस लग्न का स्वामी चंद्रमा व सप्तमेश शनि होते हैं। ऐसी कन्याओं के पति अध्ययन की बजाय शौकीन ज्यादा होते हैं, कन्या की आयु से उम्र में बड़ा होने की संभावना होती है, स्वभाव से क्रोधी व परा-शक्तियों में विश्वास करने वाला होता है। अपने आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु वह किसी भी प्रकार का त्याग कर सकता है, परंतु अपने गर्व पर चोट सहन नहीं कर सकता।

    सिंह : इस लग्न की कन्या के सप्तम भाव में भी शनि की राशि कुंभ होती है, इस लग्न की कन्या का पति जीवन में अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कठिन से कठिन मेहनत करने वाला, बड़ों की सेवा करने वाला, परहित व दूसरों की भलाई करने वाला, गुणवान व श्रेष्ठ संतान का पिता होता है, ऐसा व्यक्ति अपना निर्माण स्वयं करता है।

    कन्या : इस लग्न वाली कन्या के सप्तम भाव में गुरु की मीन राशि होती है। ऐसी कन्या का पति आस्थावान, सुंदर, वाकपटु, धार्मिक वृत्ति वाला व भाग्यशाली होता है।

    तुला : तुला लग्न की कन्या का सप्तमेश मंगल व राशि मेष होती है। वर क्रोधी स्वभाव, जिद्दी, बात-बात पर कलह करने वाला व अशांत वातावरण बनाए रखने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा स्वयं के बारे में ही सोचता है किसी अन्य के बारे में नहीं,जो स्तर इस व्यक्ति का होता है उससे अधिक प्रदर्शन की आदत होती है यद्यपि इनका वैवाहिक जीवन सुखमय व सफल रहता है।

    वृश्चिक : इस लग्न की कन्या का सप्तमेश शुक्र व राशि वृष होती है। ऐसा व्यक्ति शांत स्वभाव, कर्मयोगी, किसी विशेष विधा में प्रवीण व भावुक किस्म का व्यक्ति होता है। इस कन्या के गुस्से व गर्म मिजाज को इसका पति सहजता से आत्मसात कर लेता है व दांपत्य-जीवन में मधुरता बनाए रखने का प्रयास करता रहता है।

    धनु : धनु लग्न की कन्या के सप्तम भाव में बुध की मिथुन राशि होती है, ऐसी कन्या का पति व्यावसायिक वृत्ति वाला, शालीन, उच्च विचार व भाग्यशाली होता है। सुंदरता का पुजारी व हमेशा साफ सफाई पसंद करने वाला होता है।

    मकर : इस लग्न की कन्या के सप्तम भाव में चंद्रमा की कर्क रशि होती है ऐसी कन्या का पति स्वभाव से जिद्दी व दोहरे स्वभाव वाला,मधुर वाणी व भावुक प्रवृति वाला होता है। अनुशासन,भय की बजाय भावनाओं से इन पर नियंत्रण किया जा सकता है। ऐसे व्यक्तियों में विषम परिस्थितियों को सहन करने की आदत कम होती है।

    कुम्भ : इस लग्न वाली कन्या का पति अपनी बात पर अडिग रहने वाला, स्वभाव से क्रोधी, दूसरों की सलाह नहीं मानने वाला होता है। सुंदरता से इन्हें कोई मतलब नहीं, प्रत्येक व्यक्ति से मेल-मुलाकात करना इनका स्वभाव होता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी प्रकार से हर हालात को अपने अनुरूप करने में प्रवीण होता है। झूठ से इनको चिढ़ होती है।

    मीन : मीन लग्न वाली कन्या के सप्तमेश बुध व राशि कन्या होती है। वर सुंदर व मृदुभाषी होने के साथ-साथ कम बोलने वाला, हंसमुख स्वभाव व बात बात पर शरमाने वाला होता है। मन में अनेक इच्छाएं रखते हुए भी अपने व्यक्तित्व पर उन इच्छाओं को हावी नहीं होने देता है।

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  42. आप अपनी राशिनुसार उपाय करें जिससे सभी प्रकार की समस्याएं जैसे रोग, आर्थिक समस्या, भय, नौकरी, व्यवसाय, मकान, वाहन, विवाह, संतान, प्रमोशन आदि संबंधित सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। आपको अपने कर्मों के आति उत्तम फल प्राप्त होने लगेंगे। इन रामबाण उपायों से निश्चित ही आपकी किस्मत बदल जाएगी।

    मेष- पक्षियों को दाना डालें।

    वृषभ- हनुमान जी को शुद्ध घी का दीपक अर्पित करें। जिसमें कच्चे सूत के कलावे की दोमुंही बत्ती हो।

    मिथुन- धन लाभ हेतु मछलियों को आटे की गोलियां दें।

    कर्क- चांदी की गाय बनवाकर किसी विद्वान ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठिा करवा कर ब्राह्मण को ही दक्षिणा सहित दान दें।

    सिंह- सर्व कष्ट से मुक्ति हेतु गणेश जी की अराधना करें।

    कन्या- हनुमान जी को भोग अर्पित कर दर्शन करें।

    तुला- ताम्बे के पात्र में जल ले कर रोली मिला ले व सूर्य देव को अर्घ्य दें।

    वृश्चिक- घर में उत्तर या पूर्व दिशा में एक्वेरियम रखें।

    धनु- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।

    मकर- शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति को दान दें।

    कुम्भ- काली मिर्च के 5 दाने अपने सिर से 7 बार उतारकर 4 दाने चारों दिशाओं में फेंक दें तथा पांचवे दाने को आकाश की ओर उछाल दें।

    मीन- किसी भी स्थान पर लाल पुष्प का पौधा लगाएं।

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  43. 8 मई, बुधवार) शनि जयंती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही देते हैं। जिस व्यक्ति पर शनिदेव की टेड़ी नजर पड़ जाए, वह थोड़े ही समय में राजा से रंक बन जाता है और जिस पर शनिदेव प्रसन्न हो जाएं वह मालामाल हो जाता है। जिस किसी पर भी शनिदेव की साढ़ेसाती या ढय्या रहती है, उसे उस समय बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

    धर्म ग्रंथों के अनुसार शनि जयंती के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए किए गए विशेष उपायों का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है। शनि जयंती के अवसर पर हम आपको बता रहे हैं शनिदेव को प्रसन्न करने कुछ खास तांत्रिक उपाय। ये उपाय करने से शनिदेव आप पर न सिर्फ प्रसन्न होंगे बल्कि आपकी किस्मत भी चमका देंगे। ये उपाय इस प्रकार हैं-

    1- काली गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। शनि जयंती के दिन काली गाय के सिर पर रोली लगाकर सींगों में कलावा बांधकर धूप-आरती करें फिर परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिला दें। ये उपाय आप कभी भी आपकी इच्छानुसार कर सकते हैं।

    2- शनि जयंती के दिन सूर्यास्त के बाद हनुमानजी का पूजन करें। पूजन में सिंदूर, काली तिल्ली का तेल, इस तेल का दीपक एवं नीले रंग के फूल का प्रयोग करें। ये उपाय आप हर शनिवार भी कर सकते हैं।

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  44. 3- शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के दिन किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।

    4- शनिवार या शनि जयंती के दिन शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा।

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  45. 28 मई, बुधवार) शनि जयंती है।

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  46. 5- शनि जयंती और प्रत्येक शनिवार के दिन बंदरों और काले कुत्तों को बूंदी के लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो जाता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।

    6- शनि जयंती के एक दिन पहले यानी मंगलवार की रात काले चने पानी में भिगो दें। शनि जयंती के दिन ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले कपड़े में बांधकर मछलियों के तालाब में डाल दें। यह टोटका पूरा एक साल करें। इस दौरान भूल से भी मछली का सेवन न करें।

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  47. 7- शनि जयंती के दिन अपने दाहिने हाथ के नाप का उन्नीस हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको बटकर माला की भांति गले में पहनें। इस प्रयोग से भी शनिदेव का प्रकोप कम होता है।

    8- चोकर युक्त आटे की 2 रोटी लेकर एक पर तेल और दूसरी पर शुद्ध घी लगाएं। तेल वाली रोटी पर थोड़ा मिष्ठान रखकर काली गाय को खिला दें। इसके बाद दूसरी रोटी भी खिला दें और शनिदेव का स्मरण करें।

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  48. 9- शनि जयंती के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद सवा किलो काला कोयला, एक लोहे की कील एक काले कपड़े में बांधकर अपने सिर पर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें और किसी शनि मंदिर में जाकर शनिदेव से प्रार्थना करें।

    10- शनि जयंती के दिन एक कांसे की कटोरी में तिल का तेल भर कर उसमें अपना मुख देख कर और काले कपड़े में काले उड़द, सवा किलो अनाज, दो लड्डू, फल, काला कोयला और लोहे की कील रख कर डाकोत (शनि का दान लेने वाला) को दान कर दें। ये उपाय अन्य किसी शनिवार को भी कर सकते हैं।

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  49. 18- शनि जयंती के दिन इन 10 नामों से शनिदेव का पूजन करें-

    कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:।
    सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।।

    अर्थात: 1- कोणस्थ, 2- पिंगल, 3- बभ्रु, 4- कृष्ण, 5- रौद्रान्तक, 6- यम, 7, सौरि, 8- शनैश्चर, 9- मंद व 10- पिप्पलाद। इन दस नामों से शनिदेव का स्मरण करने से सभी शनि दोष दूर हो जाते हैं।

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  50. कुंडली के विशेष योग :-
    क्या कहते हैं ? नीच राशी के ग्रह :-
    १. यदि सूर्य नीच राशी तुला (७) में हो तो, जातक पापी, साथियों की सहायता करने वाला , और नीच कर्म में तत्पर होता है।
    २. चन्द्रमा नीच राशी वृश्चिक (८) तो जातक रोगी , धन का अपव्यय करने वाला तथा विद्वानों का संगी।
    ३. मंगल नीच राशी कर्क (४) में होतो, जातक की बुद्धि कुंठित होती है , इअसके सोचे हुए कार्य अधूरे रहते हैं। यह किसी का एहसान भूलने में देर नहीं करता है।
    ४. बुध नीच राशी मीन (१२)का होतो, जातक समाज द्रोही , बंधुओं के द्वारा अपमानित तथा चित्रकला आदि में प्रसिद्ध।
    ५. गुरु नीच राशी मकर (१०) का हो तो अपनी दशा में जातक को कलंकित करता है, तथा भाग्य के साथ खिलवाड़ करता रहता है।
    ६. शुक्र नीच राशी कन्या (६) का हो तो , जातक को मेहनत के बाद भी धन नहीं मिलता है. इसके कारण जातक को पश्चाताप होता रहता है।
    ७. शनि नीच राशी मेष (१) का हो तो, अपव्ययी , मद्यप , तथा पर स्त्री गामी होता है।
    ८. राहू नीच राशी का होने पर जातक मुकदमें जीतने वाला , लेकिन धन प्राप्त नहीं होता है।
    ९. केतू नीच राशी का होने पर जातक मलिन मन का , दुर्बुद्धि और कष्ट सहन करने वाला होता है।
    (राहू , केतू की नीच राशी में विवाद रहता है, इसलिए नहीं बताये गये है )

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  51. चिकित्सा ज्योतिष

    मानव प्रकृति विवरण

    शुक्रशोणितसंयोगे यो भवेद्दोष उत्कटः।
    प्रकृतिर्जायते तेन तस्या मे लक्षणं श्रृणु॥

    गर्भाधान के संयोग होते समय, जिस दोष की उत्कटता (अधिकता) होग़ी; उसी दोष के अनुसार भ्रूण में प्रकृति बनेगी। उसी के अनुसार जातक प्रकृति के लक्षण होंगे।

    वात प्रकृति :- >>>
    अल्पकेशः कृश रुक्षो वाचालश्चलमानसः।
    आकाशचारी स्वप्नेषु वातप्रकृतिको नरः॥

    जिस व्यक्ति के केश छोटे छोटे, शरीर कृश व रुक्ष हो, जिसकी मानसिक प्रवृतियां चंचल एवं वाचाल हों, जो व्यक्ति स्वप्नों में वायुयानों में अथवा बिना किसी साधन के स्वयं हवा में उड़ता हो, ऐसे व्यक्ति वात प्रकृति के होते हैं।

    पित्त प्रकृति :- >>>
    अकालेपलितैर्व्याप्तो धीमान्स्वेदी च रोषणः।
    स्वप्नेषु ज्योतिषां द्रष्टा पित्तप्रकृतिको नरः॥

    जिस व्यक्ति के केश युवावस्था में श्वेत हो गये हों, जो बुद्धिमान एवं क्रोधी, जिसे पसीना थोड़ा परिश्रम करने पर ही आ जाता है (पित्त प्रकृति मनुष्य को बहुत पसीना आता है), अवप्न में जो व्तक्ति आकाश में सूर्य, तारा मण्डल, विद्युत आदि (अर्थात अधिक अग्नि सम्बन्धि पदार्थ) देखता है वह व्यक्ति पित्त प्रकृति का होता है।

    कफ प्रकृति :- >>>

    गम्भीर बुद्धिः स्थूलांग स्निग्ध केशो महाबल:।
    स्वप्ने जलाशयालोकी श्लेष्मप्रकृति को नरः।

    जिस व्यक्ति के केश स्निग्ध, गम्भीर बुद्धि, शरीर भरा हुआ और अधिक बल युक्त हो, स्वप्न में तालाब, नदी, झील, आदि को देखता हो वह व्यक्ति कफ प्रकृति का होता है।

    मिश्र प्रकृति :- >>>
    ज्ञातवा मिश्रचिन्हैश्च द्वित्रिदोषोल्वणा नराः।

    जिस व्यक्ति में दो अथवा तीनों दोषों के कुछ कुछ लक्षण मिलते हों उसे मिश्र प्रकृति वाला व्यक्ति समझना चाहिए।
    ..............................................

    वात, पित्त, कफ़ दोष व मूत्र परीक्षा :-

    वातेन पाण्डुरं मूत्रं पीतं नीलं च पित्ततः।
    रक्तमेव भवेद्रक्तात धवलं फेनिलं कफ़ात्॥

    > वायु के प्रकोप की अवस्था में मूत्र का रंग हलका पीलापन लिए हुए,
    > पित्तप्रकोप मे अधिक पीला और नील वर्ण होता है,
    > कफ़ की प्रकुपितावस्था में मूत्र सफ़ेद एवं फ़ेनयुक्त होता है।
    > रक्तदोष होने पर लाल रंगत में होता है।

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  52. क्या कहते हैं स्वराशी ग्रह ?
    जब कुंडली में स्वराशी ग्रह होते है, तो वह जातक के जीवन में क्या फल देते है ?
    १. सूर्य -यदि सूर्य स्वराशी सिंह (५) में, हो तो, जातक सुन्दर , धनवान, ऐश्वर्य शाली , परन्तु कामातुर तथा व्यभिचारी होता है।
    २. चन्द्रमा -कर्क राशी (४) होतो, जातक को तेज तथा धन देता है . जातक सुन्दर और भाग्यशाली होता है। यह जातक अचानक धनवान बन जाता है।
    ३. मंगल -मेष (१) अथवा वृश्चिक (८) का होतो , जातक बलिष्ठ , साहसी , ख्याति प्राप्त होता है। यह जमीदार भी हो सकता है .
    ४. बुध -मिथुन (३) का होतो, जातक बुद्धिमान , विद्वान , कुशल लेखक व सम्पादक होता है। शास्त्रों में रूची।
    ५. गुरु- धनु (९) या मीन (१२) , जातक काव्य रसिक , चिकित्सा शास्त्री तथा सुखी जीवन जीने वाला होता है।
    ६. शुक्र-वृषभ (२) या तुला (७) का होतो, जातक स्वच्छंद स्वभाव का , धनी, गुणी , व समृद्ध होता है।
    ७. शनि - मकर (१०) , कुम्भ (११) का हो तो क्रोधी तथा पराक्रमी होता है। कष्ट में भी मुस्कराने वाला।
    ८. राहू -कन्या राशी (६) का होतो , जातक सुन्दर, भाग्य शाली , यशस्वी होता है।
    ९. केतू -मीन राशी (१२) का होतो, जातक कार्य निपुण , कर्मठ तथा सट्टे या लाटरी से अचानक धन-लाभ पाने वाला।

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  53. जानिये कौन घर से भागकर शादी (लव मैरीज़ ) करते है ?
    १. यदि छठे , सातवे , आठवे भाव में तीनों भावों में पाप ग्रह हो।
    २. चतुर्थ भाव अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी पर पृथकतावादी ग्रहों यथा सूर्य, शनि , राहू का प्रभाव होतो , ये जातक घर से भागकर शादी करते है।
    (उदाहरण : कुम्भ लग्न (११) दसरे भाव में केतू , पंचम भाव (५) में चन्द्रमा +गुरू , ६ ठे भाव (६) में मंगल , सातवे भाव (७) में शनि , आठवे भाव (८) में राहू , ग्यारवें भाव (११) में बुध , बारहवें भाव में (१२) सूर्य+शुक्र ) . इस स्नातक लड़की ने घर से भागकर शादी की। इस कुंडली में उपरोक्त दोनों योग है )

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  54. कुंडली के विशेष योग :-
    १. चन्द्र+मंगल युती :- इस युति से चन्द्र-मंगल योग का निर्माण होता ,है जिसके फल स्वरुप जातक अपने जीवन में धनवान हो जाता है , यह जातक धन-संचय करने में बहुत प्रवीण होता है। जीवन में विविध स्त्रीयों से उसका संपर्क रहता है। इसका व्यवहार चालाकी भरा होता है। यदि कुंडली में चन्द्र-मंगल अकारक होगें तो फल बदल जाएगा। यह योग २, ९, १०, और ११ वे भाव में यह योग विशेष शुभ फल देता है।
    (उदाहरण : श्री अशोक कुमार फिल्म अभिनेता , मेष लग्न (१) में राहू+शनि , २रे भाव में चन्द्र+मंगल , ५ वे भाव में शुक्र , ६ ठे भाव में सूर्य+बुध , ७वे भाव में गुरू +केतू )

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  55. न्यायाधीश शनि...

    मान्यता है कि सूर्य है राजा, बुध है मंत्री, मंगल है सेनापति, शनि है न्यायाधीश, राहू-केतु है प्रशासक, गुरु है अच्छे मार्ग का प्रदर्शक, चंद्र है आपका मन और शुक्र है वीर्य बल। यह भ्रांति मन से निकाल दें की कोई ग्रह व्यक्ति रूप में विद्यमान है। सारे ग्रह ठोस पदार्थ है, और यह भी सच है कि इनके प्रभाव से आप बच नहीं सकते हैं। बचाने वाले कोई और है।

    शनि के कार्य :

    जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है, पाप करता है या धर्म विरुद्ध आचरण करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।

    यदि चाल-चलन ठीक नहीं रहते हैं तो राहु और केतु को उक्त व्यक्ति के पीछे लगा दिया जाता है। राहु सिर में मार करता है तो केतु आपके पैरों को तोड़ने का प्रयास करता है। यदि इन दोनों से आप बचते रहे तो, कोर्ट, जेल या फिर अस्पताल में से किसी एक के या सभी के आपको चक्कर जरूर काटना पड़ेगा।

    शनि अर्थात न्यायाधीश के फरमान को उलटने का कार्य कोई भी ग्रह नहीं करता है। जब एक बार एफआईआर दर्ज हो गई तो फिर कुछ नहीं हो सकता। कहते हैं कि मंगल के उपाय करने से शनि शां‍त हो जाएगा तो यह मन को समझाने वाली बात मानी गई है। राजा भी शनि के कार्य में दखल नहीं देता।

    शनि या फिर राजा के पास सच्चे मन से ‘रहम अर्जी’ लगाई जाए तो कुछ हो सकता है। लेकिन किसी भी शनि मंदिर जाने से कुछ नहीं होगा। शनि के इस देश में केवल तीन ही मंदिर है वहीं अर्जी लगती है बाकी का कोई महत्व नहीं।

    शनि को यह पसंद नहीं-

    शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना, किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना।

    शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाएं।

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  56. यदि आपकी कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशी में है तो, आपको क्या देगा ? यह जानिये ?
    १. यदि सूर्य उच्च राशी मेष (१) में होगा तो , यह आपको ज्ञानियों में पूज्य बनाएगा, सहधर्मियों में नायक , भाग्यवान , धनवान , सुख भोगने वाला बना देता है।
    २. यदि चन्द्रमा उच्च राशी वृषभ (२) होगा तो , वह जातक को समाज में सम्मान दिलाता है, साथ ही वह जातक को हंसमुख , चंचल , विलासी स्वभावबनाता
    है।
    ३. मंगल के उच्च राशी मकर (१०) का होने पर जातक बलिष्ठ , और शूरवीर होता है, यह कर्तव्य शीतलता नहीं दिखाता है। जातक राज्य की सेवा में विशेष सफलता पाता है।
    ४. यदि बुध उच्च राशी कन्या (६) का होतो, जातक को यह कुशल सम्पादक , प्रसिद्ध लेखक या कवि बनाता है। यह यश -वृद्धि से संतुष्ट रहता है , तथा समाज में सम्मान पाता है।
    ५. यदि गुरु उच्च राशी कर्क (४) का हो तो , जातक चतुर , विवेक शील , सोच- समझकर कार्य करने वाला , ऐश्वर्य वान होता है।
    ६. यदि शुक्र उच्च राशी मीन (१२) का हो जातक संगीतज्ञ , अभिनेता , उन्नत भाग्य वाला होता है।
    ७. यदि शनि उच्च राशि तुला (७) का हो तो जातक को विशेष धन की प्राप्ति होती है , अचानक धन मिलता है , सट्टे , शेयर , या लॉटरी से धन लाभ।
    ८. यदि राहू उच्च का होतो, स्पष्ट वादी , गूढ़ विद्या की प्राप्ति होती। है
    ९. यदि केतू उच्च राशी का हो तो, राज्य में पदोन्नति पाता है. किन्तु जातक नीच, लम्पट, धोखेबाज़ दोस्तों से हानी पाने वाला , किसी टीम का नायक होता। है

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  57. कुण्डली मिलान" वैवाहिक जीवन के लिए उपयुक्त है ?पढ़िये "झा शास्त्री "

    ---वैवाहिक जीवन सुखमय हो -इसके लिए कुण्डली का मिलान अर्थात अष्टकुंडली मिलान" अवश्य ही माता -पिता कराते हैं । ये -वर्ण ,वश्य ,तारा ,योनिविचार ,ग्रहमैत्री,गुणकूट,भकूट और नाड़ी को अष्टकूट कहते हैं । इन अष्टकूटों के प्रत्येक के स्वभाव और प्रभाव को जानने की आप भी कोशिश करें -कि ये सच भी हैं या हम भ्रम के शिकार तो नहीं होते हैं ।

    {1}--प्रथम विचार -वर्ण-का मिलान होने से -जातीय कर्म,गुणधर्म ,स्वभाव -उत्तमप्रीति,होती है--मिलान नहीं होने पर मध्यम स्नेह एवं प्रेम का अभाव रहता है -वैवाहिक सुख में । क्या मिलान कुण्डली का होना चाहिए या नहीं आप खुद विचार करें ।

    {2}-दूसरा विचार -वश्य-का मिलान होने से ---स्वभाव से एक दूसरे के वशीभूत होते हैं । क्या वैवाहिक जीवन में ये नहीं होना चाहिए ।

    {3}तीसरा विचार -तारा- का सही मिलान होने से -भाग्य सबल होता है -अन्यथा निर्बलता रहती है ।क्या वैवाहिक जीवन भाग्यवान हो आप नहीं चाहते हैं ।

    {4}चतुर्थ विचार -योनि-विचार सही होने से --शारीरिक सम्बन्ध अर्थात तृप्ति रहती है मन में -अन्यथा जीवन में अतृप्ति ही रहेगी ।क्या वैवाहिक जीवन में ये जरुरी नहीं है ।

    {5}पांचवां विचार -ग्रहमैत्री- का सही मिलान होने से --आपसी सम्बन्ध सही रहता है अन्यथा उदासीनता रहेगी ।क्या वैवाहिक जीवन में ये जरुरी नहीं होता है ।

    {6}छठां विचार -गुणकूट- का सही मिलान होने से --सामाजिकता किसमें कितनी रहेगी अन्यथा -असामाजिक रहते है दोनों ।क्या सामाजिकता नहीं चाहिए ।

    {7}सातवां विचार -भकूट -का सही मिलान होने से --जीवन शैली परस्पर स्नेह सच्चा रहता है अन्यथा बनाबटी रहती है ।क्या ये वैवाहिक जीवन में नहीं होना चाहिए ।

    {8}आठवां विचार -नाड़ी- का सही मिलान होने से --स्वास्थ दिनचर्या ,सम्बन्ध बनने पर एक दूसरे को हानि लाभ कितना रहेगा -इसका अनुमान लगाया जाता है ।क्या आयु के बिना वैवाहिक जीवन यत्तम हो सकता है ।

    ------नोट- क्या हमें अपनी संगनी चयन करने में ज्योतिष मदद नहीं करती है ?---क्या हमें दाम्पत्य सुख के लिए अष्टकूटों {जन्म कुण्डली का मिलान }के मिलान नहीं करने चाहिए ?दोस्तों संगनी आपके अनुकूल अवश्य ही होनी चाहिए किन्तु रूप ,रंग,धन के साथ -साथ और भी चीजों की जरुरत होती है । अतः वैवाहिक जीवन सुखमय हो अवश्य ही कुण्डली का विचार करने चाहिए ।

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  58. वैवाहिक जीवन में स्थिरता के लिए तारा का विचार क्यों करें ? पढ़िये "झा शास्त्री" --पति -पतनी की सबसे बड़ी विशेषता अपने जीवन में एक दूसरे के प्रति समर्पित रहना होता है ,क्योंकि रूप का मोह समाप्त होते ही परिवार और समाज से जुड़ जाते हैं, तब हमें एक आदर्श अभिभावक बनना पड़ता है और -ये तब संभव होता है ---जब हमारी कुंडली में तारा का सही मिलान हुआ हो । जिस प्रकार से अनंत तारा होते हुए भी रोशनी नहीं मिलती है किन्तु ये अपनी -अपनी जगह स्थिर रहती हैं --जो सूर्य एवं चंद्रमा को स्थिरता प्रदान करते हैं ।

    -------कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक और वर के नक्षत्र से कन्या के नक्षत्र तक "अभिजित "को छोड़कर गणना करके अलग -अलग 9 के भाग देने से जो संख्या शेष रहे वह तारा होती है ।-तारा संख्या -3/5/7/-अशुभ होती है -एवं -1/2/4/6/8/9/{0}शेष रहे तो शुभ होती है ।।

    ------निदान -{1}---3--शेष हो तो -विपत नाम की तारा कहलाती है ---इनकी शांति -गुड का दान करने से हो जाती है ।

    {2}--5 शेष हो तो प्रत्यरी नाम की तारा होती है ----इनकी शांति नमक का दान करने से होती है ।

    {3}--7-शेष हो तो वध नाम की तारा होती है --इनकी शांति -सफेद तिल ,तेल या तिलकूटी-मिठाई एवं स्वर्ण दान से अशुभता समाप्त हो जाती है

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  59. भगवान शंकर सांसारिक सुखों से जुड़े सारे मनोरथ पूरे करने वाले देवता हैं। उनकी प्रसन्नता के लिए धर्मग्रंथों में कई व्रत-उपवास बताए गए हैं। किंतु इनमें सोमवार का विशेष महत्व है। कई भक्त अलग-अलग वजहों से व्रत के धार्मिक विधानों का पालन नहीं कर पाते। चूंकि महादेव भी थोड़ी ही भक्ति से प्रसन्न होने वाले देवता है, इसलिए शिव कृपा के लिए शिवपुराण में बताए अलग-अलग फूल चढ़ाकर भी मनोकामना पूर्ति के आसान उपाय मंगलकारी माने गए हैं।

    इसी तरह शिवपुराण के मुताबिक शिव पूजा में अन्य पूजा सामग्रियों के अलावा कई तरह के अनाज का चढ़ावा सुख-सौभाग्य व धन सहित कई मनचाहे फल देने वाला मंगलकारी व बेहद आसान उपाय है। इन उपायों से पहले भगवान शिव की सामान्य पूजा यानी चंदन, बिल्वपत्र, फूल, छोटा सफेद वस्त्र चढ़ाकर करें और इनके साथ यहां बताए अनाज व फूल शिवलिंग पूजा में चढ़ाएं। इन चीजों से कामना विशेष पूरी करते हैं। जानिए कौन सा अनाज व फूल चढ़ाने का उपाय कौन सी चाहत पूरी करते हैं। इनको चढ़ाते वक्त ये मंत्र स्मरण करना शुभ होगा-

    मृत्युंजयाय रुद्राय नीलाकंताया शम्भवे।
    अमृतेशाय सर्वाय महादेवाय ते नमः।।

    - देव पूजा में अक्षत यानी चावल का चढ़ावा बहुत ही शुभ माना जाता है। शिव पूजा में भी महादेव या शिवलिंग के ऊपर चावल, जो टूटे न हो चढ़ाने से लक्ष्मी की कृपा यानी धन लाभ होता है।

    - शिव की गेहूं चढ़ाकर की गई पूजा से संतान सुख मिलता है। संतान होनहार व सद्गगुणी कुल का गौरव बढ़ाने वाली निकलती है।

    - शिव की तिल से पूजा करने पर मन, शरीर और विचारों से हुए दोष का अंत हो जाता है। सारे तनाव व दबाव की वजहे अचानक दूर हो जाती हैं।

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  60. अरहर के पत्तों या दाल से शिव की पूजा करने से तन, मन व धन से जुड़े हर तरह के दु:ख दूर हो जाते हैं।

    - शिव को मूंग चढ़ाने से किसी विशेष काम या मकसद से जुड़े विशेष मनोरथ फौरन पूरे होते हैं।

    - जौ चढ़ाकर शिव की पूजा अंतहीन व पीढ़ीयों को सुख देने वाली सिद्ध होती है।मन की अशांति और तनाव दूर करने के लिए शिव को शेफालिका के फूल चढ़ाएं।

    - शिव की तुलसी के पत्तों से पूजा हर पीड़ा से मुक्ति और हर सुख प्राप्त होते है।

    - विवाह बाधा दूर करने के लिए भगवान शंकर पर बेला के फूल चढ़ाएं। इससे श्रेष्ठ वर और सर्वगुण संपन्न पत्नी मिलती है।

    - ख्याति, पद और सम्मान पाने के लिए शिव पूजन में अगस्त्य के फूल अर्पित करें।

    - पुत्र कामना पूरी करने के लिए लाल फूल वाला धतूरा शिव को चढ़ाना चमत्कारी फल देता है। इसके अभाव में सफेद धतूरा भी चढ़ा सकते हैं।

    - सेहत व लंबी उम्र की चाहत रखने वाला व्यक्ति शिव पूजा में दूर्वा चढ़ाए।

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  61. श्रीमद्भावतगीता में लिखा गया है कि-

    मन: स्वबुद्ध्यामलय नियम्य

    जिसका अर्थ है कि अपनी पवित्र बुद्धि से ही मन को साधें। इसमें बुद्धि की पावनता द्वारा कर्म, वचन और व्यवहार में बुराई से बचने का संकेत है। यह तभी संभव है जब यहां बताए जा रहे कुछ बुरे काम और भावों से इंसान बचकर रहे। जानते हैं शास्त्रों में बताई ये बुरी बातें-

    अहं, कर्महीनता, नफरत यानी घृणा, बुरे संस्कार और आचरण, मान-सम्मान की लालसा, राग, मोह, आसक्ति, ईर्ष्या, द्वेष, स्त्री प्रसंग, स्वार्थ भाव के कारण मन व ह्दय से उदार न होना, दुराग्रह, झूठा दंभ।

    स्वभाव, व्यवहार से जुड़ी ये सारी बातें इंसान के बुद्धि और विवेक पर सीधे ही बुरा असर डालती है, जिससे जीवन में आए बुरे बदलाव दु:ख और पीड़ा का कारण बन सकते हैं। इसलिए संयम और समझ के साथ इन बुरी बातों से बचने की यथासंभव कोशिश करें।

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  62. गुरुवार का दिन गुरु दोष शांति व गुरु की प्रसन्नता के लिए विशेष दिन माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि गुरु बृहस्पति, देवगुरु हैं। ज्योतिष मान्यताओं में भी गुरु सुखद दाम्पत्य जीवन व सौभाग्य को नियत करते हैं। खासकर स्त्री के विवाह और पुरुष की आजीविका की परेशानी गुरु की प्रसन्नता से दूर हो जाती है।

    यहां बताए जा रहे देवगुरु बृहस्पति पूजा के वे उपाय व सरल मंत्र, जो आपके जीवन में आ रही ऐसी ही तमाम परेशानियों से छुटकारा दिला सकते हैं और जल्द मनचाही नौकरी व जीवनसाथी की मुराद पूरी कर देंगे। जानिए, ये उपाय-

    - गुरुवार के दिन व्रत रखें, जिसमें पीले वस्त्र पहने व बिना नमक का पीला भोजन का संकल्प लें।

    - गुरु बृहस्पति की प्रतिमा या तस्वीर पीले वस्त्र पर विराजित कर पंचोपचार पूजा केसरिया चंदन, पीले अक्षत, पीले फूल व भोग में पीले पकवान या फल अर्पित करें। नीचे लिखे सरल गुरु मंत्र का ध्यान सुख-सौभाग्य की कामना से करें-

    ॐ बृं बृहस्पते नम:

    इसके बाद 1 विशेष मंत्र से देवगुरु का ध्यान आजीविका या विवाह में आ रही बाधा दूर करने की कामना से करें।

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  63. बृहस्पति मंगल मंत्र-

    जीवश्चाङ्गिर-गोत्रतोत्तरमुखो दीर्घोत्तरा संस्थित:
    पीतोश्वत्थ-समिद्ध-सिन्धुजनिश्चापो थ मीनाधिप:।
    सूर्येन्दु-क्षितिज-प्रियो बुध-सितौ शत्रूसमाश्चापरे
    सप्ताङ्कद्विभव: शुभ: सुरुगुरु: कुर्यात् सदा मङ्गलम्।।

    - पूजा व मंत्र जप के बाद गुरु आरती करें और क्षमाप्रार्थना के साथ प्रसाद ग्रहण करें।

    - गुरु दोष शांति के लिए पीली वस्तुओं जैसे गुड़,चने की दाल, केले, पीले फूल, चन्दन या पीले वस्त्र, हल्दी, पीले रंग की मिठाई और गाय का घी का दान करें। सोने का दान भी बहुत शुभ है।यथासंभव ब्राह्मण को भोजन कराएं। माना जाता है कि गुरु की ऐसी पूजा धन, संपत्ति, विवाह और सौभाग्य की कामना शीघ्र पूरी करती है।

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  64. दो लीटर पानी में थोड़ा आंवले का चूर्ण और नीम की पत्तियां डालकर पानी को उबाल कर आधा कर लें। इस पानी से सप्ताह में कम से कम एक बार बाल धोएं। बाल गिरना बंद हो जाएंगे।

    - यदि आप नशीले पदार्थों का सेवन या धूम्रपान करते हैं तो बंद कर दें। बाल गिरना जल्द ही कम हो जाएंगे। अधिक से अधिक पानी पिएं। चाय- कॉफी का सेवन कम कर दें।

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