Tuesday, December 24, 2013

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128 comments:

  1. बुरे योग जिनका निवारण जरुरी है
    कुंडली में हम सामान्यतः राज योगों की ही खोज करते हैं, किन्तु कई बार स्वयं ज्योतिषी व कई बार जातक इन दुर्योगों को नजरअंदाज कर जाता है,जिस कारण बार बार संशय होता है की क्यों ये राजयोग फलित नहीं हो रहे.आज ऐसे ही कुछ दुर्योगों के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ,जिनके प्रभाव से जातक कई योगों से लाभान्वित होने से चूक जाते हैं.सामान्यतः पाए जाने वाले इन दोषों में से कुछ इस प्रकार हैं..
    १. ग्रहण योग: कुंडली में कहीं भी सूर्य अथवा चन्द्र की युति राहू या केतु से हो जाती है तो इस दोष का निर्माण होता है.चन्द्र ग्रहण योग की अवस्था में जातक डर व घबराहट महसूस करता है.चिडचिडापन उसके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है.माँ के सुख में कमी आती है.किसी भी कार्य को शुरू करने के बाद उसे सदा अधूरा छोड़ देना व नए काम के बारे में सोचना इस योग के लक्षण हैं.अमूमन किसी भी प्रकार के फोबिया अथवा किसी भी मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेसन ,सिज्रेफेनिया,आदि इसी योग के कारण माने गए हैं.यदि यहाँ चंद्रमा अधिक दूषित हो जाता है या कहें अन्य पाप प्रभाव में भी होता है,तो मिर्गी ,चक्कर व मानसिक संतुलन खोने का डर भी होता है. सूर्य द्वारा बनने वाला ग्रहण योग पिता सुख में कमी करता है.जातक का शारीरिक ढांचा कमजोर रह जाता है.आँखों व ह्रदय सम्बन्धी रोगों का कारक बनता है.सरकारी नौकरी या तो मिलती नहीं या उस में निबाह मुस्किल होता है.डिपार्टमेंटल इन्क्वाइरी ,सजा ,जेल,परमोशन में रुकावट सब इसी योग का परिणाम है.
    २. चंडाल योग: गुरु की किसी भी भाव में राहू से युति चंडाल योग बनती है.शरीर पर घाव का एक आध चिन्ह लिए ऐसा जातक भाग्यहीन होता है.आजीविका से जातक कभी संतुष्ट नहीं होता,बोलने में अपनी शक्ति व्यर्थ करता है व अपने सामने औरों को ज्ञान में कम आंकता है जिस कारण स्वयं धोखे में रहकर पिछड़ जाता है.ये योग जिस भी भाव में बनता है उस भाव को साधारण कोटि का बना देता है.मतान्तर से कुछ विद्वान् राहू की दृष्टी गुरु पर या गुरु की केतु से युति को भी इस योग का लक्षण मानते हैं.
    ३.दरिद्र योग:लग्न या चंद्रमा से चारों केंद्र स्थान खाली हों या चारों केन्द्रों में पाप ग्रह हों तो दरिद्र योग होता है.ऐसा जातक अरबपति के घर में भी जनम ले ले तो भी उसे आजीविका के लिए भटकना पड़ता है,व दरिद्र जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
    ४. शकट योग:चंद्रमा से छटे या आठवें भाव में गुरु हो व ऐसा गुरु लग्न से केंद्र में न बैठा हो तो शकट योग का होना माना गया है. ऐसा जातक जीवन भर किसी न किसी कर्ज से दबा रहता है,व सगे सम्बन्धी उससे घृणा करते हैं.वह अपने जीवन में अनगिनत उतार चढ़ाव देखता है.ऐसा जातक गाड़ी चलाने वाला भी हो सकता है.
    ५.उन्माद योग: (a) यदि लग्न में सूर्य हो व सप्तम में मंगल हो, (b) यदि लग्न में शनि और सातवें ,पांचवें या नवें भाव में मंगल हो (c) यदि धनु लग्न हो व लग्न- त्रिकोण में सूर्य-चन्द्र युति हों साथ ही गुरु तृतीय भाव या किसी भी केंद्र में हो तो गुरुजनों द्वारा उन्माद योग की पुष्टि की गयी है.जातक जोर जोर से बोलने वाला ,व गप्पी होता है.ऐसे में यदि ग्रह बलिष्ट हों तो जातक पागल हो जाता है.
    ६. कलह योग: यदि चंद्रमा पाप ग्रह के साथ राहू से युक्त हो १२ वें ५ वें या ८ वें भाव में हो तो कलह योग माना गया है.जातक के सारे जीवन भर किसी न किसी बात कलह होती रहती है व अंत में इसी कलह के कारण तनाव में ही उसकी मृत्यु हो जाती है.
    नोट:लग्न से घड़ी के विपरीत गिनने पर चौथा-सातवां -दसवां भाव केंद्र स्थान होता है.पंचम व नवं भाव त्रिकोण कहलाते हैं. साथ ही लग्न की गिनती केंद्र व त्रिकोण दोनों में होती है.
    ऐसे ही कई प्रकार के योग और भी हैं जिनकी चर्चा फिर कभी करेंगे.फिलहाल यदि इन योगों में से कोई योग आपको अपनी कुंडली में दिखाई पड़ता है तो किसी योग्य ब्रह्मण द्वारा इसका उचित निवारण कराएँ.लेख आपको कैसा लगा ये जरूर बताएं ,चर्चाओं का दौर जारी रहा तो इन योगों का निवारण भी इसी ब्लॉग के द्वारा बताऊंगा

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  2. बुध ग्रह की अनुकूलता हेतु

    बुध ग्रह की अनुकूलता हेतु

    आराध्य देव - श्री दुर्गाजी, श्री गणेश जी

    वैदिक उपाय
    वैदिक मंत्र
    ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च ।
    अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।

    बुध ग्रह के वैदिक मंत्र का नौ हजार जप करना चाहिए।

    तांत्रिक मंत्र
    ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।
    बुं बुधाय नमः।
    बुध ग्रह के तांत्रिक मंत्र का छत्तीस हजार जाप करना चाहिए।

    बुध गायत्री मंत्र ऊँ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि, तन्नो सौम्यः प्रचोदयात्॥

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  3. अब आप ये तो समझ गए की रत्न ग्रह से सम्बंधित ऊर्जा को बड़ा देता है परन्तु खुद रत्न में इतना दिमाग नहीं है की वो ऊर्जा आपको सकारात्मक प्रभाव देगी या नकारात्मक। यह आपको और आपके ज्योतिषी को पता लगाना होगा। अगर वो ग्रह आपकी कुंडली का अकारक/अनिष्ट ग्रह है तो नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जायेगी और आपको विपरीत परिणाम ही मिलेंगे। अथवा अगर आपके शरीर में पहले से ही अग्नितत्व की अधिकता के कारण कोई रोग है और आपने अग्नितत्व का ही रत्न पहन लिया तो रोग और ज्यादा बढ़ सकता है।

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  4. केतु महादशा उपाय

    अगर आप केतु की महादशा से पीड़ित हैं तो ऊपर बताये गए उपायों में से जो आप सहजता से कर सकें वो करें।
    भगवान् गणेश का एक लॉकेट अपने गले में इस तरह धारण करें की वो हमेशा आपके ह्रदय के पास रहे।
    प्रतिदिन गणेश जी पूजा करनी चाहिए और गणपति जी को लड्डू का भोग लगाना चाहिए.
    कन्याओं को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करना चाहिए.

    ऊपर बताये गए उपायों के अलावा महादशा-अन्तर्दशा के कुछ और उपाय निम्न प्रकार करें। ध्यान रहे इनके साथ केतु के सामान्य उपाय भी जरूर करें

    केतु महादशा - केतु अन्तर्दशा : दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। साथ ही केतु के मंत्र का भी जप करें।

    केतु महादशा - शुक्र अन्तर्दशा : माँ दुर्गा की उपासना करें , दुर्गा सप्तशती का पाठ करें

    केतु महादशा - सूर्य अन्तर्दशा : कपिला गौ दान, शिव मंदिर में रुद्राभिषेक करें

    केतु महादशा - चन्द्र अन्तर्दशा : पारद शिवलिंग का कच्चे दूध से अभिषेक करें, दुर्गासूक्त और चंद्रस्तोत्र का पाठ करें।

    केतु महादशा - मंगल अन्तर्दशा : हनुमान जी की उपासना, हनुमान अष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ नित्य करें। शनि तथा मंगलवार को हनुमान जी के दर्शन कर बेसन के लड्डू का भोग लगावें। संभव हो तो शनिवार और मंगलवार को सिंदूर और चोला भी चढ़ाना चाहिए।

    केतु महादशा - राहु अन्तर्दशा : दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। गणेश मंदिर में नारियल तोडें। कोयले के आठ टुकड़े बहते पानी में प्रवाहित करें। भैरवजी की उपासना करें।

    केतु महादशा - गुरु अन्तर्दशा : शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें
    केतु महादशा - शनि अन्तर्दशा : कपिला गौ दान, महामृत्युंजय मंत्र का जप करें

    केतु महादशा - बुध अन्तर्दशा : विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। गणेश जी की पूजा करें। चतुर्थी वाले दिन गणेश जी की विशेष पूजा करें , बकरी दान करें।

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  5. उपाय

    केतु अगर भूमि/पृथ्वी तत्त्व राशि / Earth Element Sign (वृष,कन्या,मकर) में स्थित है तो नीम के पेड़ लगाना केतु के अशुभ प्रभाव को दूर करके शुभ फल प्राप्त करने का बहुत अच्छा उपाय है।
    एक गिरिगोला के ऊपर के पार्ट में छोटा छेद कर उसमे भुनी हुआ आटा और शक्कर मिला कर पीपल के वृक्ष के निचे मट्टी हटा कर दबा दे। ये प्रयोग केतु के अशुभ प्रभाव दूर करने का रामबाण है। वैसे केतु अगर भूमि/पृथ्वी तत्त्व राशि / Earth Element Sign (वृष,कन्या,मकर) में स्थित है तो हर किसी को जरूर करना चाहिए।
    कुत्ते को खाना खिलावें। शनिवार को कुत्तों को गुलाबजामुन या दूसरी मीठी चीजें खिलाएं।
    शिव मंदिर में ध्वज लगाने से भी केतु शांत होता है। केतु को ध्वज का प्रतीक भी माना जाता है।
    नेत्रहीन, कोढ़ी, अपंग को एक से अधिक रंग का कपड़ा दान करें।
    केतु अगर जल तत्त्व राशि / Water Element Sign (कर्क, वृश्चिक, मीन ) में स्थित है तो काले या सफेद तिल को काले वस्त्र में बांधकर बहते पानी में प्रवाहित करें। बरफी के चार टुकड़े बहते पानी में बहाएं। लकड़ी के चार टुकड़े चार दिन तक बहते पानी में प्रवाहित करें। कोयले के आठ टुकड़े बहते पानी में प्रवाहित करें।
    केतु अगर अग्नि तत्त्व राशि / Fire Element (मेष, सिंह, धनु) में हो तो केतु के निमित्त रात्रि काल कुशा की समिधा से हवन करना ही सर्वथा उचित है।
    केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए जातक को लाल चन्दन की माला को अभिमंत्रित कराकर शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को धारण करना चाहिए।
    पैर में या पेशाब में कोई तकलीफ हो तो शुद्ध रेशम का उजला धागा धारण करें।
    भूरा कुत्ता घर में पालें।
    हरा रुमाल सदैव अपने साथ में रखें।
    तिल के लड्डू सुहागिनों को खिलाएं और तिल का दान करें।
    कन्याओं को रविवार के दिन मीठा दही और हलवा खिलाएं।
    कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन शाम को एक दोने में पके हुए चावल लेकर उस पर मीठा दही डाल लें और काले तिल के कुछ दानों को रख दान करें। यह दोना पीपल के नीचे रखकर केतु दोष शांति के लिए प्रार्थना करें।
    सूर्य केतु की युति होने पर सूर्य ग्रहण के समय तिल,नींबू,पका केला बहते पानी जैसे नदी में बहायें।
    बारहवे भाव के केतु के लिये बारह पताकायें बारह बार धर्म स्थान पर लगाना
    यदि केतु रोग कारक हो तो रोग ग्रस्त जातक स्वयं अपने हाथों से कम से कम 7 बुधवार भिक्षुकों को हलुआ वितरण करे तो लाभ होगा।
    केतु की शांति के लिए नवरात्रि में छिन्न्ामस्तादेवी का 9 दिनी अनुष्ठान कराएं।

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  6. केतु ग्रह की अनुकूलता हेतु
    आराध्य देव - श्री गणेश जी
    वैदिक उपाय : वैदिक मंत्र का अट्ठारह हजार जप करना चाहिए।
    “ऊँ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपे से समुषभ्दिंरिजायथाः।”
    तांत्रिक मंत्र केतु के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बहत्तर हजार जप करना चाहिए।
    ऊँ ऐं ह्रीं केतवे नमः।
    ऊँ कें केतवे नमः।
    दान : सात प्रकार के अन्न, बकरा, कपिला गौ दान, दो रंग का कंबल, भूरे रंग के वस्त्र , खट्टे स्वाद वाले फल, उड़द, कस्तूरी, लहसुनिया, काला फूल, तिल, तेल, रत्न, सोना, लोहा ।
    पूजन :
    केतु के अशुभ फल समाप्त करने के लिए गणपति की उपासना ही सर्वोपरि है। गणपति सहस्त्रनाम का पाठ, अथर्वशीर्ष का अनुष्ठान अथवा गणपति की किसी भी अन्य तरह से उपासना करनी चाहिए।
    हनुमान जी की उपासना, हनुमान अष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ नित्य करें।
    शनि तथा मंगलवार को हनुमान जी के दर्शन कर बेसन के लड्डू का भोग लगावें। संभव हो तो शनिवार और मंगलवार को सिंदूर और चोला भी चढ़ाना चाहिए।
    भैरवजी की उपासना करें। केले के पत्ते पर चावल का भोग लगाएं।
    प्रतिदिन द्वादश ज्योतिर्लिंग के नाम का उच्चारण करना चाहिये।
    हवन : रात्रि काल कुशा की समिधा से हवन करना चाहिए।
    औषधि स्नान : लोबान, तिलपत्र, पुत्थरा
    रूद्राक्ष : नौमुखी और छह मुखी रुद्राक्ष को चांदी का किनारा लगा कर दाहिनी बांह पर धारण करना चाहिए। धारण करने से पूर्व शिवजी के भैरव रूप की पूजा करनी चाहिए।
    रत्न धारण : लहसुनियां 7 से 9 रत्ती तक चांदी या तांबे में मढ़वा कर कच्चे दूध एवं गंगा जल से धो कर, प्राण प्रतिष्ठा कर, सीधे हाथ की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
    औषधि धारण : अश्व गंध को लाल कपड़े में यंत्र जैसा बांध कर, सीधे हाथ में बांधना चाहिए। कच्चे दूध के बाद गंगा जल से धोना आवश्यक है।
    व्रत उपवास : केतु की प्रसन्नता के लिए शनिवार और मंगलवार को व्रत करना चाहिए। उपवास के बाद सायं काल हनुमान जी के आगे धूप, दीप जलाने के पश्चात् मीठा भोजन करना चाहिए। यदि नमक न खाएं तो उत्तम है।
    दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को भी केतु के निमित्त व्रत रखा जाता है।

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  7. केतु ग्रह
    केतु भी राहु की भांति ही एक छाया ग्रह हैं
    शास्त्रों में कहा गया है "कुजवत केतु" अर्थात नैसर्गिक रूप से केतु मंगल के समान फल देता है।
    केतु किसी भी भाव में स्वग्रही ग्रह के साथ बैठा हो तो वह उस भाव और साथी ग्रह के प्रभाव तथा शुभ अशुभ फल में चार गुने की वृद्धि कर देता है।
    केतु जिस भाव में बैठेगा उस भाव का अचानक आश्चर्य चकित कर देने वाला फल देगा.
    यह ग्रह तीन नक्षत्रों का स्वामी है: अश्विनी, मघा एवं मूल
    केतु जातक के मोक्ष का कारक होता है। विशेषतया बारहवे भाव में केतु मुक्ति प्रदान करता है।
    केतु विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित है।
    कुछ लोग केतु को उत्तर-पश्चिम दिशा का कारक ग्रह मानते हैं।

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  8. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केतु एक छाया ग्रह है, लेकिन जन्म कुंडली में यह जिस भाव में स्थित होता है उससे संबंधित क्षेत्र में व्यक्ति पर जीवनभर असर डालता है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि केतु अशुभ प्रभाव ही देता है, केतु शुभ फल भी प्रदान करता है। खासकर तब जब केतु की महादशा हो।
    केतु और राहु दोनों की स्थिति के अनुसार ही कालसर्प योग निर्मित होता है। कुंडली में केतु की स्थिति से भी व्यक्ति की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। यहां जानिए कुंडली में केतु किस भाव में कैसा असर दिखाता है...कुंडली के प्रथम भाव में केतु हो तो...
    केतु की इस स्थिति से व्यक्ति व्यापार में या सेवा क्षेत्र में संतोषजनक रहता है। इन्हें आध्यात्मिक क्षेत्र में सफलता मिलेगी, पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण रहेगा। सिरदर्द, पत्नी, बच्चे के जन्म या स्वास्थ्य के लिए चिन्ता रहेगी।
    कुंडली के द्वितीय भाव में केतु हो तो...
    इस ग्रह स्थिति के कारण व्यक्ति की यात्राएं लाभकारी होती हैं। ये लोग बहुत कुछ अर्जित करते हैं, लेकिन इसे भविष्य के लिए बचाने के लिए सक्षम नहीं हो पाते हैं। बच्चे बुढ़ापे में मददगार नहीं होते।

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  9. जीवन में निर्भीकता आवश्यक
    भगवान् कृष्ण ने भी गीता
    में दैवी-संपत्तियों का वर्णन करते हुए ‘निर्भयता’ को सबसे पहले रखा है। इससे उनका अभिप्राय यह है
    कि बिना अभय के दूसरी संपत्तियों का मिलना असंभव है, क्योंकि निर्भयता ही तो वह शक्ति है जो मनुष्य के आत्मबल को बढ़ाती
    है।
    जो मनुष्य अपने को
    शरीर-भाव से ऊँचा उठा लेता है, आत्मबल व निर्भयता का अमृत
    पान करता है, वह अपने को अजर-अमर मानता
    है। यदि रोग आ जाए, तो वह यह समझता है कि
    शरीर के क्षीण होने से उसकी क्षति होने वाली नहीं है। चोरी हो जाए तो वह रोता नहीं, मकान में आग लग जाए तो वह चिंतित नहीं होता।
    विपत्तियों को हँसी-खुशी से झेलता है। आर्थिक लाभ के लिए वह झूठ, छल, कपट, बेईमानी को नहीं अपनाता। इसका कारण यह है कि कुछ
    चला जाए तो वह उसे अपनी हानि नहीं समझता और आ जाए तो उसे लाभ नहीं मानता। सार यह कि जो व्यक्ति
    आत्मा की अमरता का विचार करता रहता है, वह सांसारिक भयों से
    मुक्त हो जाता है। डाकू उसे डरा नहीं सकते, बलवान् पुरुष उसे भयभीत
    नहीं कर सकते। उसके शरीर व मन स्वस्थ रहते हैं। इसलिए हमें भी इसी मार्ग का अनुकरण
    करके अपने जीवन को सुखी बनाना चाहिए। निर्भयता जीवन-विकास का एक आवश्यक अंग है।

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  10. तुला- रा, रि, रु, रे, रो, ता, ती, तू, ते. इन अक्षरों से शुरू होने वाले नाम के लोग तुला राशि के होते हैं। तुला राशि के लोगों का सोचने-समझने का स्तर काफी ऊंचा होता हैं। यह लोग काफी आसानी से किसी भी बात को समझ लेते हैं। रिश्ते निभाने में इन्हें काफी सुकून मिलता है। ज्योतिष के अनुसार इस राशि के स्वामी शुक्र हैं। इस राशि के लोग तेल, रुई, वस्त्र, राई, मच्छरदानी दान करें।

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  11. कन्या- कन्या राशि के लोग जिनके नाम का पहला अक्षर टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन्हें सुख-सुविधाओं वाला जीवन ज्यादा पसंद होता है। अपने परिवार के प्रति इतना गहरा झुकाव होता है, परिवार के लिए ये कुछ भी त्याग कर सकते हैं।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी बुध है। इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन तिल, कंबल, तेल, उड़द दाल का दान करें।

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  12. सिंह- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सिंह राशि वाले लोगों का नाम मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे अक्षरों से शुरू होता है। इन लोगों का व्यक्तित्व सिंह के समान होता है। ये लोग खुले विचारों वाले होते हैं और आकर्षक व्यक्ति के धनी होते हैं। इनकी आवाज में एक खास खिंचाव होता है। ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि का स्वामी सूर्य है। मकर संक्रांति के दिन इस राशि के लोग तिल, कंबल व मच्छरदानी अपनी क्षमतानुसार दान करें।

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  13. कर्क- इस राशि के लोग मूडी होते हैं इनके नाम का पहला अक्षर ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो होता है। ये अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार होते हैं और उसे जिम्मेदारी के साथ निभाते हैं। इन लोगों में निर्णय लेने की क्षमता इतनी अच्छी नहीं होती, इनका दिमाग स्थिर नहीं रहता है।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी चंद्र है। इस राशि के लोगों के लिए मकर संक्रांति पर तिल, साबूदाना एवं ऊन का दान करना शुभ फल प्रदान करने वाला रहेगा।

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  14. मिथुन- जिन व्यक्तियों के नाम का पहला अक्षर का, की, कु, घ, ड, छ, के, को, हा. हो उन लोगों के जीवन में सामान्यत: कई प्रेम संबंध होते हैं। इनके जीवन में कई प्रेम संबंध रहते हैं। इसी वजह से कई लोगों की एक से अधिक शादियां भी हो जाती है।
    ज्योतिषियों के अनुसार इस राशि का स्वामी बुध है। इस राशि के लोग यदि मकर संक्रांति के दिन तिल एवं मच्छरदानी का दान करें तो बहुत लाभ होगा।

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  15. वृषभ- वृष राशि वाले जिनके नाम का पहला अक्षर (ई, उ, ए, ओ, वा, वि, वू, वे, वो) से शुरू होता है वे उत्तम श्रेणी के प्रेमी होते हैं। वृष राशि वालों को प्रेम संबंध बनाने में महारत हासिल होती है। ये लोग बहुत जल्द किसी से भी प्रेम संबंध बनाने में सक्षम होते हैं।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी शुक्र है। इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन ऊनी वस्त्र एवं तिल का दान करें तो शुभ रहेगा।

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  16. मीन- दी, दू, थ, झ, दे, दो, चा, ची. इन अक्षरों से शुरू होने नाम के लोग मीन राशि के होते हैं। इस राशि के लोग अति भावुक होते हैं। इन्हें कोई भी आसानी से प्रभावित कर सकता है। यह लोग प्रेम में अटूट संबंध बनाए रखना चाहते हैं परंतु इनका दिल कई बार टूटता है।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी गुरु है। मकर संक्रांति के दिन ये लोग तिल, चना, साबूदाना, कंबल व मच्छरदानी दान करें।

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  17. कुंभ- जिन लोगों के नाम पहला अक्षर गु, गे, गो, सा, सी, सु, से सो, सा. है वे कुंभ राशि के होते हैं। इस राशि के लोग काफी भावुक और हर कार्य को दिल से करने वाले होते हैं। इस राशि के लोग अपना जीवन स्वतंत्रता से जीना चाहते हैं। अपने जीवन साथी पर पूरा विश्वास रखते हैं।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी शनि है। इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन तिल, साबुन, वस्त्र, कंघी व अन्न का दान करें।

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  18. मकर- भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी. इन अक्षरों से शुरू होने वाले नाम के लोग मकर राशि के होते हैं। मकर राशि के लोग सामान्यत: सोचते हैं कि उन्हें किसी की जरूरत नहीं। वे खुद हर कार्य करने में सक्षम होते हैं। इस राशि के लोग थोड़े जिद्दी स्वभाव के भी होते हैं। ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी शनि है। ये लोग मकर संक्रांति के दिन तेल, तिल, कंबल और पुस्तक का दान करें तो इनकी हर मनोकामना पूरी होगी।

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  19. धनु- धनु राशि यानी जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे. हैं। इस राशि के लोग काफी संवेदनशील और खुशमिजाज होते हैं। यह हर पल को खुशी के साथ गुजारना चाहते हैं। इन्हें जीवन पूरी स्वतंत्रता के साथ जीना पसंद है। ये अपने जीवन साथी का पूरा सम्मान करते हैं।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी गुरु है। इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन तिल व चने की दाल का दान करें तो विशेष लाभ होगा।

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  20. वृश्चिक- जिन लोगों के नाम का पहला अक्षर तो, ला, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू. है वे वृश्चिक राशि के होते हैं। इन लोगों में अहं की भावना काफी होती है जिससे कई बार इनके विवाद होते रहते हैं। इन्हें परिवार और मित्रों से पूरा सहयोग प्राप्त होता है। इन्हें रोमांटिक प्रेमियों की श्रेणी रखा जाता है।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी मंगल है। इस राशि के लोग गरीबों को चावल और दाल की कच्ची खिचड़ी दान करें साथ ही अपनी क्षमता के अनुसार कंबल भी।

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  21. कर्क- इस राशि के लोग मूडी होते हैं इनके नाम का पहला अक्षर ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो होता है। ये अपने रिश्ते के प्रति ईमानदार होते हैं और उसे जिम्मेदारी के साथ निभाते हैं। इन लोगों में निर्णय लेने की क्षमता इतनी अच्छी नहीं होती, इनका दिमाग स्थिर नहीं रहता है।
    ज्योतिष के अनुसार इस राशि का स्वामी चंद्र है। इस राशि के लोगों के लिए मकर संक्रांति पर तिल, साबूदाना एवं ऊन का दान करना शुभ फल प्रदान करने वाला रहेगा।

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  22. मेष- मेष राशि वाले (चू, चे, ला, ल, ली, लू, ले लो, अ नाम अक्षरों से शुरू होने वाले व्यक्ति) आकर्षक और प्रभावशाली स्वभाव वाले होते हैं। इनका व्यक्तित्व रूआबदार और मर्दाना होता है जिससे हर तरह की लड़की इन पर तुरंत ही आकर्षित हो जाती हैं।
    ज्योतिष के अनुसार मेष राशि का स्वामी मंगल है। इस राशि के लोग मकर संक्रांति के दिन मच्छरदानी एवं तिल का दान करें तो शीघ्र ही हर मनोकामना पूरी होगी।

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  23. ज्योतिष के अनुसार इस दिन सूर्य धनु राशि के निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे बहुत ही शुभ माना जाता है इसीलिए ये पर्व मनाया जाता है।
    मान्यता है कि इस दिन किए गए दान का फल सौ गुना होकर दानदाता को प्राप्त होता है। ज्योतिष के अनुसार राशि अनुसार दान करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी हो जाती है। आप भी जानिए मकर संक्रांति के दिन राशि अनुसार क्या दान करें।

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  24. मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान तथा गंगा तट पर दान की विशेष महिमा है। तीर्थ राज प्रयाग में मकर संक्रान्ति मेला तो सारे विश्व में विख्यात है। इसका वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी श्री रामचरित मानस में लिखा है-
    माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोइ।।
    देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।
    स्पष्ट है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर तीर्थ राज प्रयाग में 'मकर संक्रान्ति' पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान के लिए आते हैं। अतएव वहां मकर संक्रान्ति पर्व के दिन स्नान करना अनन्त पुण्यों को एक साथ प्राप्त करना माना जाता है।
    मकर संक्रान्ति पर्व पर इलाहाबाद (प्रयाग) के संगम स्थल पर प्रतिवर्ष लगभग एक मास तक माघ मेला लगता है। यहां बारह वर्ष में एक बार कुम्भ मेला लगता है यह भी लगभग एक माह तक रहता है। इसी प्रकार छह वर्षों में अर्ध कुम्भ मेला भी लगता है।

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  25. माघे मासि महादेव यो दद्यात् घृतकम्बलम्।
    स भुक्त्वा सकलान भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।
    माघ मासे तिलान यस्तु ब्राहमणेभ्य: प्रयच्छति।
    सर्व सत्त्व समाकीर्णं नरकं स न पश्यति।। (महाभारत अनुशासनपर्व)
    मकर संक्रान्ति के दिन गंगाजल सहित शुद्ध जल से स्नानादि के उपरान्त भगवान चतुर्भुज का पुष्प-अक्षत एंव विभिन्न द्रव्यों के अध्र्य सहित पूजन करके मंत्र जप विष्णु सहस्त्र नाम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इस दिन घी-तिल-कम्बल-खिचड़ी के दान का विशेष महत्व है। इसका दान करने वाले व्यक्ति को सभी देवी-देवताओं की विशेष कृपा प्राप्त होती है और पैसों की तंगी से मुक्ति मिलती है। इस दान से मोक्ष की प्राप्त होती है।

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  26. तिल का दान करें
    ज्योतिष के अनुसार यह उपाय सभी राशि के लोगों को करना चाहिए। संक्रांति पर तिल खाना और तिल का दान करना सबसे अच्छा और असरदार उपाय है। तिल के दान से आपकी कुंडली के कई दोष दूर हो जाएंगे, विशेष रूप से कालसर्प योग, शनि की साढ़ेसाती और ढय्या, राहु-केतु के दोष दूर हो जाते हैं।

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  27. तिल-गुड़ का सेवन करें
    सर्दी के दिनों में समय-समय पर तिल और गुड़ का सेवन करते रहना चाहिए। तिल और गुड़ की तासीर गर्म होती है जो कि हमारे शरीर को भी गर्मी प्रदान करती है। तिल-गुड़ की इसी विशेषता को ध्यान में रखते हुए मकर संक्रांति पर इनका सेवन करने की परंपरा बनाई गई है। संक्रांति के समय ठंड का मौसम पूरे प्रभाव में होता है, उस समय तिल-गुड़ ही हमारे सर्दी से संबंधित बीमारियों से बचाते हैं।
    सावधानी- तिल और गुड़ की तासीर गर्म होने के कारण इनका सेवन उन लोगों को नहीं करना चाहिए, जिन्हें डॉक्टर्स ने गर्म तासीर की चीजें खाने से मना किया है।

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  28. मंगलवार, 14 जनवरी 2013 को मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। इस दिन का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। विज्ञान के अनुसार भी मकर संक्रांति पर्व स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है। इस दिन से ठंड का असर कम होने लगता है।
    यहां चार ऐसे काम बताए जा रहे हैं जिनका धार्मिक महत्व भी है और ये आपके स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाएंगे। यह सभी परंपरागत काम स्त्री और पुरुष दोनों को ही समान रूप से करना चाहिए।सूर्य को जल चढ़ाएं
    मकर संक्रांति पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसी वजह से इस दिन को मकर संक्रांति कहा जाता है। सूर्य के राशि बदलने से इस दिन का ज्योतिष में भी काफी अधिक महत्व बताया गया है। इस राशि परिवर्तन का असर सभी राशि के योग पर पड़ता है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य अशुभ फल देने वाले हैं उन्हें संक्रांति पर यह उपाय विशेष रूप से करना चाहिए। सूर्य की पूजा भी इस दिन श्रेष्ठ फल प्रदान करती है।
    इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर सूर्य को जल चढ़ाएं। ऐसा नियमित रूप से करने पर सूर्य के दोष शांत होते हैं और समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है।

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  29. मकर संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद पूर्व दिशा में मुख करके कुश के आसन पर बैठें। अपने सामने बाजोट (पटिए) पर सफेद वस्त्र बिछाएं और उसके ऊपर सूर्यदेव का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद सूर्यदेव का पंचोपचार पूजन करें और गुड़ का भोग लगाएँ। पूजन में लाल फूल का उपयोग अवश्य करें। इसके बाद लाल चंदन की माला से नीचे लिखे मंत्र का जप करें
    मंत्र- ऊँ भास्कराय नम:
    कम से कम 5 माला जप अवश्य करें

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  30. ज्योतिष के अनुसार तांबा सूर्य की धातु है। मकर संक्रांति के दिन तांबे का सिक्का या तांबे का चौकोर टुकड़ा बहते जल में प्रवाहित करने से कुंडली में स्थित सूर्य दोष कम होता है। इसके साथ-साथ लाल कपड़े में गेहूं व गुड़ बांधकर दान देने से भी व्यक्ति की हर इच्छा पूरी हो जाती है।

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  31. तंत्र शास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के दिन गुड़ एवं कच्चे चावल बहते हुए जल में प्रवाहित करना शुभ रहता है। अगर सूर्यदेव को प्रसन्न करना हो तो पके हुए चावल में गुड़ और दूध मिलाकर खाना चाहिए। ये उपाय करने से भी सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं।

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  32. आदित्यहृदय स्तोत्र: ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
    रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम्।1।
    दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
    उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा।2।
    राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम्।
    येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे।3।
    आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
    जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्।4।
    सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।
    चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम्।5।
    रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
    पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।6।
    सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।
    एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः।7।
    एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।
    महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।8।
    पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः।
    वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः।9।
    आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान्।
    सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः।10।
    हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
    तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्।11।
    हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः।
    अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः।12।
    व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः।
    घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।13।
    आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः।
    कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः।14।
    नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।
    तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते।15।
    नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।
    ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः।16।
    जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।
    नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।17।
    नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।
    नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते।18।
    तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
    कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः।19।
    तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे।
    नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।20।
    नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः।
    पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः।21।
    एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।
    एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्।22।
    देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।
    यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः।23।
    एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च।
    कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव।24।
    पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।
    एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति।25।
    अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि।
    एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्।26।
    एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा।
    धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।27।
    आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्।
    त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।28।
    रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
    सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।29।
    अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः।
    निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।30

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  33. हम पुरुष से पुरुषोत्तम बनें

    यदि आत्मा और परमात्मा का संयोग संभव हो सके, तो साधारण सा दीन-हीन दीख पडऩे वाला व्यक्ति नर से नारायण बन सकता है और उसकी महानता परमात्मा जितनी ही विशाल हो सकती है।
    आत्मा और परमात्मा में अंतर उत्पन्न करने वाली माया और कुछ नहीं केवल अज्ञान का एक कलेवर मात्र है। भौतिक आकर्षणों, अस्थिर संपदाओं और उपहासास्पद तृष्णा, वासनाओं में उलझें रहने से मनुष्य के लिए यह सोच-समझ सकना कठिन हो जाता है कि वह जिस अलभ्य अवसर को, मनुष्य-शरीर को प्राप्त कर सकता है, वह एक विशेष सौभाग्य है और उसका सदुयोग जीवन-लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही होना चाहिए। शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी आनंद ध्यान में रखना चाहिए।
    यदि हम अपने स्वरूप और कत्र्तव्य को समझ सकें और तदनुकूल कार्य करने के लिए तत्पर हो सकें, तो इस क्षुद्रता और अशांति से सहज ही छुटकारा पाया जा सकता है, जिसके कारण हमें निरंतर क्षुब्ध रहना पड़ता है। अज्ञान की माया से छुटकारा पाना ही मनुष्य का परम पुरुषार्थ है। ऐसे पुरुषार्थी को ईश्वरीय महानता उपलब्ध हो सकती है और वह पुरुष से पुरुषोत्तम बन सकता है।

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  34. श्रद्धा से बुद्धि का
    नियमन कीजिए

    बुद्धि का अनियंत्रित
    विकास केवल दूसरों के लिए ही दु:खदायी नहीं होता, स्वयं
    अपने लिए भी हानिकारक होता है। अति बुद्धिवादी मानव को अंतत: असंतोष की ज्चाला में
    ही जलना होता है। वह बहुत कुछ पाकर भी कुछ नहीं पाता। एक बुद्धिवादी कितना ही
    शास्त्रज्ञ, विशेषज्ञ, दार्शनिक, तत्त्व-वेत्ता आदि क्यों न हो, बुद्धि
    का अहंकार उसके हृदय में शांति को न ठहरने देगा। वह दूसरों को ज्ञान देता हुआ भी
    आत्मिक शांति के लिए तड़पता ही रहेगा। बुद्धि की तीव्रता पैनी छुरी की तरह किसी
    दूसरे अथवा स्वयं उसको दिन-रात काटती ही रहती है। मानव की अनियंत्रित बुद्धि-शक्ति
    मनुष्य जाति की बहुत बड़ी शत्रु है। अतएव बुद्धि के विकास के साथ-साथ उसका
    नियंत्रण भी आवश्यक है।

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  35. हम पुरुष से पुरुषोत्तम बनें

    यदि आत्मा और परमात्मा का संयोग संभव हो सके, तो साधारण सा दीन-हीन दीख पडऩे वाला व्यक्ति नर से नारायण बन सकता है और उसकी महानता परमात्मा जितनी ही विशाल हो सकती है।
    आत्मा और परमात्मा में अंतर उत्पन्न करने वाली माया और कुछ नहीं केवल अज्ञान का एक कलेवर मात्र है। भौतिक आकर्षणों, अस्थिर संपदाओं और उपहासास्पद तृष्णा, वासनाओं में उलझें रहने से मनुष्य के लिए यह सोच-समझ सकना कठिन हो जाता है कि वह जिस अलभ्य अवसर को, मनुष्य-शरीर को प्राप्त कर सकता है, वह एक विशेष सौभाग्य है और उसका सदुयोग जीवन-लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ही होना चाहिए। शरीर का ही नहीं, आत्मा का भी आनंद ध्यान में रखना चाहिए।
    यदि हम अपने स्वरूप और कत्र्तव्य को समझ सकें और तदनुकूल कार्य करने के लिए तत्पर हो सकें, तो इस क्षुद्रता और अशांति से सहज ही छुटकारा पाया जा सकता है, जिसके कारण हमें निरंतर क्षुब्ध रहना पड़ता है। अज्ञान की माया से छुटकारा पाना ही मनुष्य का परम पुरुषार्थ है। ऐसे पुरुषार्थी को ईश्वरीय महानता उपलब्ध हो सकती है और वह पुरुष से पुरुषोत्तम बन सकता है।

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  36. शयनकक्ष में खिड़की अवश्य होना चाहिए। सुबह की किरणें शयनकक्ष में प्रवेश करने से स्वास्थ्य बेहतर रहता है। कभी भी मुख्य द्वार की ओर पैर करके न सोएं। पलंग के सम्मुख दर्पण नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से आप सदैव व्याकुल व परेशान रहेंगे।
    बेडरूम में पलंग सदैव दक्षिण दिशा में रखना चाहिए तथा सोते समय सिर उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो पश्चिम दिशा में पलंग रखा जा सकता है। इस स्थिति में सोते समय मुख पूर्व की ओर व सिरहाना पश्चिम की ओर रहना चाहिए।

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  37. यदि आप धन संबंधी परेशानियों का सामना कर रहे हैं तो किसी भी शुभ दिन झाड़ू का यह उपाय करें। जिस दिन यह उपाय करना चाहते हैं उससे एक दिन पूर्व बाजार से तीन झाड़ू खरीदकर लाएं और इन तीनों झाड़ू को किसी मंदिर में सुबह-सुबह रख आएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मंदिर में झाड़ू रखने जाते समय आपको कोई देखे नहीं। मंदिर में झाड़ू रखकर चुपचाप अपने घर लौट आएं, पीछे पलटकर न देखें।

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  38. किसी भी व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा दुख है मूर्ख होना। यदि कोई व्यक्ति मूर्ख है तो वह जीवन में कभी भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। वह जीवन में हद कदम दुख और अपमान ही झेलना पड़ता है। बुद्धि के अभाव में इंसान कभी उन्नति नहीं कर सकता।

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  39. घर और समाज में आसपास के लोगों से मान-सम्मान प्राप्त हो, इसके लिए जरूरी है कि आपका व्यवहार सभी के साथ अच्छा रहे। ध्यान रखें कि किसी भी व्यक्ति के संबंध में हम जाने-अनजाने कोई अपमानजनक या कटू शब्दों का प्रयोग न करें।फूलों की महक उसी दिशा में फैलती है जिस ओर हवा बह रही है। जबकि अच्छे इंसान की अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है। वह व्यक्ति हर ओर सम्मान प्राप्त करेगा, प्रसिद्ध हो जाएगा।

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  40. छठी बात: यहां बताई गई पांच बातों के साथ ही व्यक्ति को यह भी मालूम होना चाहिए कि उसका गुरु या स्वामी कौन है? और वह आपसे क्या काम करवाना चाहता है? यह मालूम होने पर व्यक्ति वही काम करें जो उसका गुरु या स्वामी चाहता है। ऐसा करने पर व्यक्ति को कभी भी परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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  41. समझदार इंसान को मालूम होना चाहिए कि वह कितना योग्य है और वह कौन-कौन से काम कुशलता के साथ कर सकता है। जिन कार्यों में हमें महारत हासिल हो वहीं कार्य हमें सफलता दिला सकते हैं।

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  42. चौथी बात: व्यक्ति को उसकी आय और व्यय की पूरी जानकारी होना चाहिए। व्यक्ति की आय क्या है उसी के अनुसार उसे व्यय करना चाहिए। एक बहुत पुरानी कहावत है कि जितनी लंबी चादर हो उतने ही पैर फैलाने चाहिए। इस बात का सदैव ध्यान रखें कि कभी भी हद से अधिक खर्च नहीं करना चाहिए।

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  43. तीसरी बात: व्यक्ति को यह भी मालूम होना चाहिए कि जिस जगह वह रहता है वह कैसी है? वहां का वातावरण कैसा है? वहां का माहौल कैसा है?
    जहां हम रहते हैं वहां रहने वाले लोगों के विषय में भी हमें पूरी जानकारी होनी चाहिए। यदि कोई बुरे स्वभाव का व्यक्ति हमारे आसपास है तो उससे सावधान रहें। वातावरण और माहौल का भी ध्यान रखना चाहिए, यदि वातावरण हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है तो उसका पहले प्रबंध करना चाहिए।

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  44. व्यक्ति को हमेशा छह बातें सोचते रहना चाहिए। इन बातों का मनन करने से किसी भी प्रकार के नुकसान की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। यहां जानिए ये छह बातें कौन सी हैं...
    पहली बात
    हम यह मालूम होना चाहिए कि अभी समय कैसा है... कोई भी समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान में कैसा समय चल रहा है। अभी सुख के दिन हैं या दुख के। इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं। दुख के दिनों में धैर्य और समझदारी के साथ काम करना चाहिए और सुख के दिनों में लापरवाह नहीं होना चाहिए।दूसरी बात यह है कि हमें मालूम होना चाहिए कि हमारे सच्चे मित्र कौन हैं और शत्रु कौन? यदि हमें जानकारी होगी कि हमारे सच्चे मित्र कौन हैं, तो निश्चित ही किसी भी प्रकार के नुकसान से बचा जा सकता है। जीवन में कुछ परिस्थितियों में मित्रों के भेष में शत्रु भी आ जाते हैं। जिनसे बचना चाहिए। शत्रुओं को पहचानकर सदैव उनसे सावधान रहने में ही भलाई होती है।

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  45. हमें मानसिक चिंताएँ क्यों घेरती हैं?
    जैसा हम चाहते हैं, वैसी ही परिस्थितियाँ बनें, यह आग्रह अनुचित है।
    परिस्थितियों के अनुभव से दूसरी तरह के हल सोच लेने की दूरदर्शीता जिनमें रहती है, वे खिन्नता और निराशा को नहीं अपनाते।
    संसार की समस्त
    परिस्थितियाँ अपने अनुकूल बन जाएँ, जो हम चाहते हैं, वह प्राप्त हो जाए, यह मान कर चलने वालों को
    दु:ख, निराशा और असफलता का ही
    पग-पग पर सामना करना पड़ता है। दूसरे लोग, यहाँ तक कि भाग्य और
    ईश्वर भी उन्हें दुश्मन दीखते हैं। ईश्वर की इच्छा से अपनी इच्छा मिला कर, संसार को नाट्यशाला मान कर अपना अभिनय उत्साहपूर्वक करते रहने में
    जिन्हें प्रसन्नता होती है, उनके लिए यहाँ सब कुछ
    शांति और संतोषदायक ही प्रतीत होता है। दुनिया में बिखरे हुए काँटे नही बीने जा
    सकते, वे तो बिखरे ही रहेंगे।
    अपने पैरों में जूते पहन कर उन काँटों से बचाव हो सकता है। अपने को बदल लेने से
    यहाँ सब कुछ ही बदल जाता है। दु:ख और असंतोष के स्थान पर पलक झपकते ही सुख और
    संतोष की स्थिति बन जाती है।
    मानसिक क्षेत्र में
    उत्पन्न होने वाली अगणित चिंता और वेदनाओं का एक ही समाधान है- अपने दृष्टिकोण में
    आवश्यक सुधार करना। आत्मनिर्माण के लिए, पुनर्निर्माण के लिए इसी
    आवश्यकता को ही सर्वोपरि माना गया है।

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  46. मानवदेह का सदुपयोग
    यह
    शरीर ही इंद्रियों के स्वामी (आत्मा) का निवास स्थान है और इसमें निवास करता हुआ, वह ऐसे
    सुकर्म रूपी उत्तम अन्नों की खेती कर सकता है, जिससे
    यह जीवन सुख-शांति से भरपूर हो जाए। यदि मनुष्य इस वेदोपदेश का पालन करेगा, मानव
    देह को झूठे भोगों में लिप्त न करके, उसके द्वारा उत्तम कार्य
    करने का ध्यान रखेगा,
    तो अवश्य ही उसका जीवन उच्च स्थिति को प्राप्त होता जाएगा और वह
    सांसारिक पाप-ताप से पृथक्ï रह कर और परलोक में
    सुख-सुयश का भागी बन सकेगा।
    वह अपने उद्योग द्वारा इस
    लोक की सुख सुविधाओं को ही प्राप्त नहीं करेगा, वरन्ï परलोक
    का भी सुधार कर लेगा। भगवान् ने अधिक नहीं तो इतनी शक्ति प्रत्येक प्राणी को दी है
    कि वह संसार में स्वावलंबनपूर्वक जीवन-निर्वाह कर सके। यदि कोई इसमें असफल रहता है, तो
    हमको निश्चित रूप से यह समझ लेना चाहिए कि वह मानव देह का उचित उपयोग नहीं कर रहा
    है और न अपने कत्र्तव्य का पालन करने की ओर उसका लक्ष्य है। वह संसार में शारीरिक
    और मानसिक काम से बच कर दूसरों की मेहनत के सहारे जीवन व्यतीत करना चाहता है। जब
    इसमें बाधा पड़ती है,
    तो वह संसार भर को कोसता है और अपना समस्त दोष दूसरों के सिर पर
    मढऩे की चेष्ट। करता है।

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  47. इस दिन आंकड़े के गणेश की पूजा व स्थापना से सम्पन्नता का आशीष मिलता है।
    - लक्ष्मी पूजन में एकाक्षी नारियल या समुद्री नारियल की पूजा करने एवं तिजोरी में इसे रखने से घाटा नहीं होगा एवं समृद्धि आएगी।
    - रात्रि में लक्ष्मी पूजन करें और उस समय कमल के पुष्प अर्पित करें और कमल गट्टे की माला से लक्ष्मी मंत्र ऊँ महालक्ष्मयै नम: का जप करें। इससे देवी लक्ष्मी की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

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  48. इस दिन लक्ष्मी-विष्णु के बाद प्रमुख द्वार पर लक्ष्मी के गृहप्रवेश करते हुए चरण स्थापित करें।
    - श्रीयंत्र, कनकधारा यंत्र, कुबेर यंत्र को सिद्ध कराकर पूजा स्थान पर या तिजोरी में रखा जाता है।
    - दक्षिणावर्ती शंख के पूजन व स्थापना से भी धनागमन और सुख प्राप्ति का लोकविश्वास है।

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  49. लक्ष्मी, भगवान नारायण की पत्नी हैं और नारायण को अत्यंत प्रिय भी हैं। उनकी उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है। शंख, मोती, सीप, कौड़ी भी समुद्र से प्राप्त होने के कारण नारायण को प्रिय हैं। अत: इस दिन लक्ष्मी पूजन भी करें और पूजन में समुद्र से प्राप्त वस्तुओं को अवश्य शामिल करें। इसके बाद जब भी लक्ष्मी पूजन करें ये चीजें जरूर रखें। पूजन के बाद इन चीजों को धन स्थान पर स्थापित करने से धन वृद्धि होती है।

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  50. पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो लोग यह व्रत रखना चाहते हैं वे दशमी तिथि को एक बार ही भोजन करें। एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और नित्य कर्मों के बाद जल, तुलसी, तिल, फूल और पंचामृत से भगवान श्रीहरि की पूजा करें। यह व्रत रखने वाले व्यक्ति को दिनभर निर्जल रहना चाहिए। शाम के समय दीपदान और पूजन के पश्चात फलाहार किया जा सकता है। अगले दिन द्वादशी तिथि पर किसी जरुरतमंद व्यक्ति को दान-दक्षिणा देकर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

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  51. पुत्रदा एकादशी की प्राचीन कथा
    एक माह में दो एकादशियां आती हैं और हर एकादशी के संबंध में अलग-अलग शास्त्रों में अलग-अलग कथाएं बताई गई है। पुत्रदा एकादशी के संबंध में यहां बताई जा रही कथा काफी प्रचलित है।
    प्राचीन काल में एक परम प्रतापी राजा हुए, उनका नाम था सुकेतु। राजा के यहां संतान नहीं थी। इस बात वे सदैव चिंतित रहते थे। एक दिन वे इसी चिंता में एक घने वन की ओर निकल गए। वन में उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया। यहां तपस्वी ऋषियों का वास था। राजा आश्रम में गए और वहां सभी ऋषियों को प्रणाम कर अपना परिचय दिया और चिंता का विषय बताया।
    ऋषि विश्वदेव ने राजा की चिंता को दूर करने उपाय बताते हुए कहा कि वे पौष माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का व्रत रखें और पूजन कर्म करें। इस उपाय आपको संतान की प्राप्ति हो जाएगी।
    राजा ने ऋषि की सलाह मानकर व्रत किया और कुछ दिनों के पश्चात रानी गर्भवती हुई और राजा को धर्मात्मा और गुणवान पुत्र रत्न प्राप्त हुआ।

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  52. 15. बीमारियां व अशान्ति दूर करने के लिए -
    दैहिक दैविक भौतिक तापा।
    राम राज काहूहिं नहि ब्यापा॥
    16. अकाल मृत्यु भय व संकट दूर करने के लिए -
    नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट।
    लोचन निज पद जंत्रित जाहिं प्रान केहि बाट।।

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  53. 13. किसी सफ़र पर निकलने से पहले या सफल व कुशल यात्रा के लिए -
    प्रबिसि नगर कीजै सब काजा।
    ह्रदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
    14. शत्रुता मिटाने के लिए -
    बयरु न कर काहू सन कोई।
    राम प्रताप विषमता खोई॥

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  54. 12. यज्ञोपवीत पहनने व उसकी पवित्रता के लिए -
    जुगुति बेधि पुनि पोहिअहिं रामचरित बर ताग।
    पहिरहिं सज्जन बिमल उर सोभा अति अनुराग।।

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  55. 10. हनुमानजी की कृपा के लिए -
    सुमिरि पवनसुत पावन नामू।
    अपनें बस करि राखे रामू।।
    11. सभी तरह के संकटनाश या भूत बाधा दूर करने के लिए -
    प्रनवउँ पवन कुमार,खल बन पावक ग्यान घन।
    जासु ह्रदयँ आगार, बसहिं राम सर चाप धर॥

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  56. 8. नजर उतारने के लिए -
    स्याम गौर सुंदर दोउ जोरी।
    निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी।।
    9. खोई वस्तु या व्यक्ति पाने के लिए-
    गई बहोर गरीब नेवाजू।
    सरल सबल साहिब रघुराजू।।

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  57. 7. जहर उतारने के लिए -
    नाम प्रभाउ जान सिव नीको।
    कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

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  58. शादी के लिए -
    तब जनक पाइ वशिष्ठ आयसु ब्याह साजि संवारि कै।
    मांडवी श्रुतकीरति उर्मिला, कुँअरि लई हँकारि कै॥
    6. पुत्र पाने के लिए -
    प्रेम मगन कौसल्या निसिदिन जात न जान।
    सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान।।

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  59. 4. पढ़ाई या किसी भी परीक्षा में कामयाबी के लिए-
    जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी। कबि उर अजिर नचावहिं बानी॥
    मोरि सुधारिहि सो सब भाँती। जासु कृपा नहिं कृपाँ अघाती॥

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  60. मनचाही नौकरी पाने या किसी भी कारोबार की सफलता के लिए -
    बिस्व भरण पोषन कर जोई।
    ताकर नाम भरत जस होई।।
    3. धन-दौलत, सम्पत्ति पाने व बढ़ाने के लिए -
    जे सकाम नर सुनहि जे गावहि।
    सुख संपत्ति नाना विधि पावहि।।

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  61. सिरदर्द या दिमाग की कोई भी परेशानी दूर करने के लिए रामायण की यह चौपाई बेहद असरदार मानी गई है -
    हनुमान अंगद रन गाजे।
    हाँक सुनत रजनीचर भाजे।।

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  62. रामचरितमानस की कुछ चौपाइयां सिरदर्द से लेकर घर या नौकरी से जुड़ी कई परेशानियों से भी छुटकारा पाने के लिए बड़ी शुभ होंगी। इन परेशानियों का सामना हर व्यक्ति दैनिक जीवन में करता है।
    रामचरित मानस की इन चौपाइयों को बोलने से पहले श्रीराम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान सहित राम दरबार की पूजा करें। यथासंभव शांत जगह व बनारस यानी काशी की ओर मुंह कर 108 बार बोलें, क्योंकि माना जाता है कि मानस स्वयं काशी विश्वनाथ द्वारा प्रमाणित की गई है।
    यही वजह है कि खासतौर शिव या विष्णु भक्ति के खास दिनों में जैसे एकादशी (11 जनवरी) या चतुर्दशी पर मनचाहे काम बनाने के लिए इन चौपाइयों का स्मरण बड़ा ही मंगलकारी माना गया है।

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  63. धन की तीन ही दशाएं हैं, दान, भोग और नाश। जो मनुष्य अपने धन का परोपकार के लिए दान नहीं करता और खुद भी भोग नहीं करता, उसके धन का नाश तय है।

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  64. प्याज-आधा चम्मच सफेद प्याज का रस, आधा चम्मच शहद और आधा चम्मच मिश्री के चूर्ण को मिलाकर सुबह और शाम सेवन करें। यह मिश्रण वीर्यपतन को दूर करने के लिए काफी उपयोगी रहता है।सफेद प्याज के रस को अदरक के रस के साथ मिलाकर शुद्ध शहद तथा देशी घी पांच-पांच ग्राम की मात्रा में लेकर एक साथ मिलाकर सुबह नियम से एक माह तक सेवन करें और लाभ देखें इससे यौन क्षमता में अभूतपूर्व वृद्धि देखी जाती है।

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  65. मनुष्य का लालच और स्वार्थ इतना बढ़ गया है कि उसने प्रभु नाम भी दाव पर लगा दिया है! ज्ञान को अंधविश्वास और अज्ञान को ज्ञान [ विश्वास ] मान मान लिया है!!

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  66. यदि घर में कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमार रहता है तो रोटी बनाते समय यह उपाय प्रतिदिन करें। जब भी रोटियां बनाई जाएं तब रोटी सेंकने से पहले तवे पर दूध के कुछ छींटे डाल देना चाहिए।
    इस उपाय से आपके घर से बीमारियां दूर हो जाएंगी और सभी सदस्यों को स्वास्थ्य संबंधी लाभ प्राप्त होने लगेंगे।

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  67. यदि आपको शनि, राहु या केतु के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो आप रोटी का यह उपाय करें...
    रोज रात को खाना बनाते समय जो रोटी अंत में बनती है उस पर तेल लगाकर वह रोटी किसी काले कुत्ते को दे दें। यदि काला कुत्ता न दिखाई दे तो किसी और कुत्ते को भी रोटी दी जा सकती है।
    यह उपाय प्रतिदिन किया जा सकता है, यदि आप चाहे तो सप्ताह में केवल एक दिन शनिवार को भी यह उपाय कर सकते हैं। इस उपाय से कुंडली के अन्य ग्रह दोष भी शांत हो जाते हैं।

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  68. जिन लोगों की हथेली मोटी, भारी और कोमल होती है वे लोग सामान्यत: काफी कामुक होते हैं। ऐसे लोगों को विलासिता से पूर्ण जीवन काफी आकर्षित करता है। ऐसे पुरुषों का स्त्रियों पर काफी अच्छा प्रभाव रहता है।
    - जो लोग कसकर और विश्वास के साथ हाथ मिलाते हैं वे सामान्यत: स्वभाव से अच्छे होते हैं। अन्य लोगों को आदर देते हैं। बराबरी का दर्जा देते हैं। भरोसेमंद होते हैं और दूसरों पर भरोसा भी करते हैं।

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  69. मेष राशि:
    इन राशियों के लोगों के साथ अच्छी रहेगी आपकी जोड़ी: मेष, सिंह और धनु
    इन राशियों के लोगों के साथ आपकी जोड़ी अच्छी हो सकती है: कुंभ, तुला और मिथुन
    इन राशियों के लोगों आपकी जोड़ी अच्छी रहने के चांस 50-50 हैं: वृष, कन्या और मकर
    इन राशियों के साथ आपकी जोड़ी अच्छी रहने की स्थिति संदेहास्पद है: वृश्चिक, मीन और कर्क

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  70. नए साल में हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए सामान्य पूजा और हनुमान चालीसा के पाठ के साथ ही यह उपाय करें। उपाय के अनुसार हनुमानजी के सामने एक नारियल लेकर जाएं और नारियल को अपने सिर पर से सात बार वार लें। इसके बाद यह नारियल बजरंग बली के सामने फोड़ दें। इस उपाय से आपका निगेटिव समय समाप्त हो जाएगा।

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  71. एकाक्षी नारियल से होते हैं मालामाल
    एकाक्षी नारियल बहुत ही दुर्लभ है। आमतौर पर नारियल की जटा की नीचे दो बिंदू होते हैं, लेकिन एकाक्षी नारियल में यहां सिर्फ एक ही बिंदू होता है। यह एक बिंदू वाला नारियल बहुत चमत्कारी होता है। जिस घर में यह नारियल होता है वहां महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और पैसों की समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। इस नारियल के प्रभाव से घर से वास्तु दोष भी नष्ट होते हैं और परिवार के सदस्यों को कार्यों में सफलता मिलती है।

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  72. एक लड़की की सुहागरात के अगले दिन उसकी सहेली ने पुछा " कैसी रही सुहागरात ?"

    लड़की " कुछ खास नहीं । "
    सहेली " कुछ खास नहीं क्या मतलब ? बताना क्या हुआ ?"

    लड़की " वो आये और कमरे की कुण्डी बंद कर ली। "
    सहेली " फिर क्या हुआ ?"

    लड़की " फिर उन्होंने अपना कोट उतार कर खूँटी पर टांग दिया । "
    सहेली " फिर क्या हुआ ?"
    लड़की " फिर उन्होंने अपनी पैंट भी उतार कर खूँटी पर टांग दी। "
    सहेली " फिर क्या हुआ ?"

    लड़की " फिर उन्होंने अपनी शर्ट भी उतार कर खूँटी पर टांग दी। "
    सहेली " फिर क्या हुआ ?"

    लड़की " फिर क्या हुआ जैसे ही उन्होंने अपनी बनियान उतार कर खूँटी पर टांगी, खूँटी टूट गयी और वो सारी रात उसको ही लगाते रहे। "

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  73. बांसुरी बजाते गणेश- यदि आपके घर में रोज क्लेश या विवाद होता है तो आपको बांसुरी बजाते हुए श्रीगणेश की तस्वीर या मूर्ति घर में स्थापित करना चाहिए। बांसुरी बजाते हुए श्रीगणेश की पूजा करने से घर में सुख-शांति का वातावरण रहता है।

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  74. बुरा समय आने पर घबराने के बजाए, चुपचाप रह जाना चाहिए। समय अपनी गति से गुजर ही जाएगा। जब अच्छा समय आएगा तो बात बनते देर नहीं लगेगी।

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  75. एक बार युधिष्ठिर ने राजसूर्य यज्ञ करवाया | बहुत-से लोगों को आमंत्रित किया |

    भगवान श्रीकृष्ण भी आए | उन्होंने युधिष्ठिर से कहा - "सब लोग काम कर रहे हैं | मुझे भी कोई काम दे दीजिए|"

    युधिष्ठिर ने उनकी ओर देखकर कहा - "आपके लिए हमारे पास कोई काम नहीं है|"

    श्रीकृष्ण बोले - "लेकिन मैं बेकार नहीं रहना चाहता| मुझे कुछ-न-कुछ काम तो दे ही दीजिए|"

    युधिष्ठिर ने कहा - "मेरे पास तो कोई काम है नहीं| यदि आपको कुछ करना ही हो तो अपना काम आप स्वयं तलाश कर लीजिए|"

    श्रीकृष्ण बोले - "ठीक है मैंने अपना काम खोज लिया|"

    युधिष्ठिर ने उत्सुकता से पूछा - "क्या काम खोज लिया?"

    कृष्ण ने कहा - "मैं सबकी जूठी पत्तलें उठाऊंगा और सफाई करूंगा|" यह सुनकर युधिष्ठिर अवाक् रह गए| कृष्ण ने वही किया| सेवा से बढ़कर और क्या हो सकता है|

    जय श्री कृष्णा .....

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  76. भाग्योदय करने के लिए करें यह उपाय-
    अपने सोए भाग्य को जगाने के लिए आप प्रात सुबह उठकर जो भी स्वर चल रहा हो, वही हाथ देखकर तीन बार चूमें, तत्पश्चात वही पांव धरती पर रखें और वही कदम आगे बाधाएं। ऐसा नित्य-प्रतिदिन करने से निश्चित रूप से भाग्योदय होगा।

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  77. जिन स्त्रियों का जन्म ग्रीष्म ऋतु (ग्रीष्म ऋतु का समय प्रतिवर्ष लगभग अप्रैल-मई-जून तक रहता है।) मतलब गर्मी के दिनों में हुआ है वे क्रोधी स्वभाव की होती हैं। इन स्त्रियों को छोटी-छोटी बातों में ही क्रोध आ जाता है। सामान्यत: ऐसी स्त्रियां अन्य स्त्रियों से अधिक कामुक होती हैं। इनका शारीरिक लंबाई भी सामान्य से अधिक रहती है। स्वभाव से चतुर और बुद्धिमान होती हैं।

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  78. बुरे योग जिनका निवारण जरुरी है
    कुंडली में हम सामान्यतः राज योगों की ही खोज करते हैं, किन्तु कई बार स्वयं ज्योतिषी व कई बार जातक इन दुर्योगों को नजरअंदाज कर जाता है,जिस कारण बार बार संशय होता है की क्यों ये राजयोग फलित नहीं हो रहे.आज ऐसे ही कुछ दुर्योगों के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूँ,जिनके प्रभाव से जातक कई योगों से लाभान्वित होने से चूक जाते हैं.सामान्यतः पाए जाने वाले इन दोषों में से कुछ इस प्रकार हैं..

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  79. कुंडली के तृतीय भाव में केतु हो तो...
    यदि कुंडली के तृतीय भाव में केतु स्थित हो तो व्यक्ति को ससुराल वालों या दोस्तों और भाइयों से विशेष लाभ मिलता है। 45 वर्ष की आयु के बाद इनके पैसों पर कोई बुरा प्रभाव पडता है, जिससे इन्हें कई प्रकार की परेशानियां हो सकती हैं। इनकी आयु लम्बी रहती है।
    कुंडली के चतुर्थ भाव में केतु हो तो...
    केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति भगवान का सम्मान करने वाला होता है और अध्यापक, बड़ों और अपने पूरे कुल को जीवन में खुशी देने वाले होंगे। कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। इनका बचपन ठीक-ठाक रहता है।

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  80. समुद्र शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति को ठोड़ी फडफ़ड़ाती है उसे स्त्री सुख मिलता है और साथ ही उसे धन लाभ होने की संभावना भी रहती है।
    - सिर के अलग-अलग हिस्सों के फड़कने का भिन्न-भिन्न अर्थ होता है जैसे- मस्तक फड़कने से भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। कनपटी फड़के तो इच्छाएं पूरी होती हैं।

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  81. दाहिनी आंख व भौंह फड़के तो सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। बांई आंख व भौंह फड़के तो शुभ समाचार मिलता है,यदि लगातार दाहिनी पलक फडफ़ड़ाए तो शारीरिक कष्ट होता है।
    - दोनों गाल यदि फड़के तो धन की प्राप्ति होती है।

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  82. यदि होंठ फडफ़ड़ाएं तो हितैषी का आगमन होता है। मुंह का फड़कना पुत्र की ओर से शुभ समाचार का सूचक होता है।
    - दाहिनी ओर का कंधा फड़के तो धन-संपदा मिलती है। बांई ओर का फड़के तो सफलता मिलती है और यदि दोनों कंधे फड़कें तो झगड़े की संभावना रहती है।

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  83. हथेली में यदि फडफ़ड़ाहट हो तो व्यक्ति किसी विपदा में फंस जाता है। हाथों की अंगुलियां फड़के तो मित्र से मिलना होता है।
    - दाईं ओर की बाजू फड़के तो धन व यश लाभ तथा बाईं ओर की बाजू फड़के तो खोई वस्तु मिल जाती है। दाईं ओर की कोहनी फड़के तो झगड़ा होता है, बाईं ओर की कोहनी फड़के तो धन की प्राप्ति होती है।

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  84. पीठ फड़के तो विपदा में फंसने की संभावना रहती है। दाहिनी ओर की बगल फड़के तो नेत्रों का रोग हो जाता है। पसलियां फड़के तो विपदा आती है।
    - छाती में फडफ़ड़ाहट मित्र से मिलने का सूचक होती है। ह्रदय का ऊपरी भाग फड़के तो झगड़ा होने की संभावना होती है। नितंबों के फड़कने पर प्रसिद्धि व सुख मिलता है।

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  85. दाहिनी ओर की जांघ फड़के तो अपमान होता है, बाईं ओर की फड़के तो धन लाभ होता है। गुप्तांग फड़के तो दूर की यात्रा पर जाना होता है।
    - दाहिनें पैर का तलवा फड़के तो कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बाईं ओर का फड़के तो निश्चित रूप से यात्रा पर जाना होता है।

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  86. वैशाख शुक्ल नवमी (8 मई)

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  87. धर्म के नजरिए से क्षमा एक तपस्या है और क्षमा करने वाला सही मायनों में वीर होता है, क्योंकि क्षमा भाव धर्म पालन का जरिया ही नहीं, बल्कि उसे स्थापित करने वाला भी माना गया है। इसलिए यह स्त्री-पुरुष सभी के लिए आभूषण की तरह शोभा बढ़ाने वाला भी है।

    लिखा गया है कि -

    "क्षान्ति तुल्यं तपो" नास्ति यानी क्षमा जैसा तप नहीं होता।

    दरअसल, सच्चाई और प्रेम का अभाव क्षमा में बाधक बनता है। इसलिए जरूरी है अपने मन में दूसरों के प्रति दुर्भावनाओं, शिकायतों और कटुता को बिल्कुल जगह न दें।

    मन का सदुपयोग जीवन के अहम लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए किया जाना चाहिये। हमें अपने संबंधों को विनम्रता और क्षमाशीलता द्वारा सहज, सरल और सुगम बनाये रखना चाहिये। इस तरह के अभ्यास से मन स्वस्थ होगा और स्वस्थ मन पर नियंत्रण आसान होगा। इसके विपरीत अगर हमारे मन में संशय, घृणा और कटुता बनी रहेगी तो मन अस्वस्थ रहेगा और उस पर नियंत्रण बहुत कठिन होगा, इसलिए क्षमा करना सीखें।

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  88. 8 मई, गुरुवार को है।

    शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक संतान प्राप्ति के कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय पृथ्वी से एक बालिका का प्राकट्य हुआ। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं। इसलिए इस बालिका का नाम सीता रखा गया।

    इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। ऐसा कहते हैं जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित माता सीता का विधि-विधान से पूजन करता है। उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल, सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है। अत: इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।

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  89. शरीर के विभिन्न हिस्सों का फड़कना भी भविष्य में होने वाली घटनाओं से हमें अवगत कराने का एक माध्यम है।

    समुद्र शास्त्र के अंतर्गत कौन सा अंग फड़कने से भविष्य में आपके साथ क्या हो सकता है, इसके बारे में विस्तृत वर्णन किया गया है। शरीर का जो भी अंग फड़के वह भविष्य में घटित होने वाली एक निश्चित अच्छी या बुरी घटना के बारे में संकेत करता है। हालांकि वर्तमान समय में इन बातों पर विश्वास करना काफी कठिन है, लेकिन इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता।

    - समुद्र शास्त्र के अनुसार जिस व्यक्ति को ठोड़ी फडफ़ड़ाती है, उसे स्त्री सुख मिलता है और साथ ही उसे धन लाभ होने की संभावना भी रहती है।

    - सिर के अलग-अलग हिस्सों के फड़कने का भिन्न-भिन्न अर्थ होता है जैसे- मस्तक फड़कने से भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। कनपटी फड़के तो इच्छाएं पूरी होती हैं।

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  90. दाहिनी आंख व भौंह फड़के तो सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। बांई आंख व भौंह फड़के तो शुभ समाचार मिलता है,यदि लगातार दाहिनी पलक फडफ़ड़ाए तो शारीरिक कष्ट होता है।यदि होंठ फडफ़ड़ाएं तो हितैषी का आगमन होता है। मुंह का फड़कना पुत्र की ओर से शुभ समाचार का सूचक होता है।
    - दाहिनी ओर का कंधा फड़के तो धन-संपदा मिलती है। बांई ओर का फड़के तो सफलता मिलती है और यदि दोनों कंधे फड़के तो झगड़े की संभावना रहती है। हथेली में यदि फडफ़ड़ाहट हो तो व्यक्ति किसी विपदा में फंस जाता है। हाथों की अंगुलियां फड़के तो मित्र से मिलना होता है।
    - दाईं ओर की बाजू फड़के तो धन व यश लाभ तथा बांई ओर की बाजू फड़के तो खोई वस्तु मिल जाती है। दाईं ओर की कोहनी फड़के तो झगड़ा होता है, बांई ओर की कोहनी फड़के तो धन की प्राप्ति होती है।

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  91. पीठ फड़के तो विपदा में फंसने की संभावना रहती है। दाहिनी ओर की बगल फड़के तो नेत्रों का रोग हो जाता है। पसलियां फड़के तो विपदा आती है।

    - छाती में फडफ़ड़ाहट मित्र से मिलने का सूचक होती है। ह्रदय का ऊपरी भाग फड़के तो झगड़ा होने की संभावना होती है। नितंबों के फड़कने पर प्रसिद्धि व सुख मिलता है।

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  92. दाहिनी ओर की जांघ फड़के तो अपमान होता है, बांई ओर की फड़के तो धन लाभ होता है। गुप्तांग फड़के तो दूर की यात्रा पर जाना होता है।

    ​- दाहिने पैर का तलवा फड़के तो कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बांई ओर का फड़के तो निश्चित रूप से यात्रा पर जाना होता है।

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  93. धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की दीप पूजा हर दरिद्रता का अंधेरा दूर होकर खुशियों का उजाला फैलाने होती है। अगर आप भी जीवन से जुड़े किसी धन, मन या तन से जुड़े संताप, परेशानी या समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो शाम के वक्त नियमित रूप से खासतौर पर शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के इस मंत्र स्तोत्र का पाठ इस पूजा उपाय के साथ जरूर करें-
    आप भी अगर कारोबार या पारिवारिक जीवन में आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं और धन लाभ चाहते हैं तो इस उपाय से लक्ष्मी मंत्र स्तोत्र का स्मरण बहुत ही लाभदायक होगा।

    शाम के वक्त माता लक्ष्मी की सामान्य पूजा उपचारों गंध, अक्षत, फूल, फल व खीर का नैवेद्य अर्पित कर धूप और घी का दीप लगाने के बाद इस लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें-

    नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुरपूजिते।
    शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
    नमस्ते गरुडारूढ़े कोलासुरभयंकरि।
    सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
    सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
    सर्वदु:खहरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।
    सिद्धिबुद्धिप्रदे देवी महालक्ष्मी भुक्ति-मुक्तिप्रदायिनी।
    मन्त्रपूते सदादेवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।

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  94. शुक्रवार को नहाने के बाद देवी का ध्यान कर देवी दुर्गा की लाल पूजा सामग्रियों जैसे लाल चंदन, लाल अक्षत, लाल फूल व देवी सरस्वती की सफेद पूजा सामग्रियों, जिनमें सफेद चंदन, सफेद फूल और फूल माला, अक्षत, सफेद वस्त्र के साथ दोनों ही देवियों को मिठाई का भोग अर्पित करें।

    - पूजा के बाद पूर्व दिशा में मुख कर यथाशक्ति इन मंत्रों का जप करने पर बहुत ही शुभ फल मिलते हैं-

    रोगनाशक दुर्गा मंत्र-

    रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलान्भीष्टान्।
    त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।

    सरस्वती मंत्र-

    नमो देव्यै महामूत्र्यै सर्वमूत्र्यै नमो नम:।
    शिवायै सर्वमाङ्गल्यै विष्णुमाये च ते नम:।।
    त्वमेव श्रद्धा बुद्धिस्त्वं मेधा विद्या शिवंकरी।
    शान्तिर्वाणी त्वेमवासि नारायणि नमो नम:।।

    - अंत में धूप व दीप जलाकर देवी आरती करें व प्रसाद ग्रहण करें।

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  95. एकादशी 10 मई, शनिवार को है।

    मोहिनी एकादशी की व्रत विधि इस प्रकार है-
    जो व्यक्ति मोहिनी एकादशी का व्रत करे, उसे एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि (9 मई, शुक्रवार) की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत के दिन एकादशी तिथि में व्रती को सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और नित्य कर्म कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। संभव हो तो किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें और यदि यह संभव न हों तो घर में ही जल से स्नान करना चाहिए।

    स्नान करने के लिये कुश और तिल के लेप का प्रयोग करें। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इस दिन भगवान श्रीविष्णु के साथ-साथ भगवान श्रीराम की पूजा भी की जाती है। व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु करें। संकल्प इन दोनों देवों के समक्ष लें। देवों का पूजन करने के लिए कलश स्थापना कर, उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बांध कर पहले कलश का पूजन करें।

    इसके बाद इसके ऊपर भगवान की तस्वीर या प्रतिमा रखें तत्पश्चात भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाएं। फिर धूप, दीप से आरती उतारें और मीठे फलों का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद वितरीत कर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दक्षिणा दें। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करें।

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  96. ये है मोहिनी एकादशी व्रत की कथा-

    सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का नगर था। वहां धृतिमान नाम का राजा राज्य करता था। उसी नगर में एक बनिया रहता था, उसका नाम था धनपाल। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था। उसके पाँच पुत्र थे- सुमना, द्युतिमान, मेधावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि। धृष्टबुद्धि सदा पाप कर्म में लिप्त रहता था। अन्याय के मार्ग पर चलकर वह अपने पिता का धन बरबाद किया करता था।

    एक दिन उसके पिता ने तंग आकर उसे घर से निकाल दिया और वह दर-दर भटकने लगा। भटकते हुए भूख-प्यास से व्याकुल वह महर्षि कौंडिन्य के आश्रम जा पहुंचा और हाथ जोड़ कर बोला कि मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य प्रभाव से मेरी मुक्ति हो। तब महर्षि कौंडिन्य ने उसे वैशाख शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी के बारे में बताया। मोहिनी एकादशी के महत्व को सुनकर धृष्टबुद्धि ने विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया।

    इस व्रत को करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर बैठकर श्री विष्णुधाम को चला गया। इस प्रकार यह मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत उत्तम है। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसके पढऩे और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।

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  97. ‘कर भला सो हो भला’ शास्त्रों में ऐसी ही भावनाओं को जीवन में अपनाने के लिए परोपकार, भलाई, सेवा व सहायता को हर इंसान के लिए जरूरी बताया गया है। ऐसी भावनाएं ही सुखी, शांत और स्वस्थ जीवन जीना आसान बनाती है।

    ईश्वर भक्ति भी सेवा व सुख की ऐसी इच्छाओं को पूरा करने का सरल रास्ता माना गया है। यही कारण है कि शास्त्रों में देव पूजा-उपासना में तरह-तरह के विधि-विधानों के अलावा कुछ ऐसे मंत्रों का स्मरण इष्ट या हर देवी-देवता की पूजा में करना बहुत ही शुभ माना गया है, जो स्वयं के साथ दूसरों के जीवन में भी खुशहाली की कामना को पूरा करने वाले माने गए हैं।

    जानिए, ऐसा ही एक सुख, स्वास्थ्य, धनदायक व दु:खनाशक मंत्र विशेष-

    सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया:।
    सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्।।

    सरल अर्थ है- सभी सुखी हों, स्वस्थ हों, शुभ व मंगल को देखें और कोई भी दु:ख का सामना न करें।

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  98. 1 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 1 तारीख को हुआ है, उन सभी लोगों का लकी नंबर 1 होता है। अंक 1 का कारक ग्रह सूर्य है। इसलिए अंक 1 वाले सभी लोगों को सूर्य विशेष रूप से प्रभावित करता है।

    अंक ज्योतिष के अनुसार 1 अंक वाले व्यक्ति रचनात्मक, सकारात्मक सोच वाले और नेतृत्व क्षमता के धनी होते हैं। ये लोग जो कार्य शुरू करते हैं, उसे जब तक पूरा नहीं करते, इन्हें शांति नहीं मिलती। इन लोगों का विशेष गुण होता है कि यह हर कार्य को पूर्ण योजना बनाकर करते हैं, अपने कार्य के प्रति पूरे ईमानदार रहते हैं।

    - अंक 1 वाले लोगों के लिए रविवार और सोमवार विशेष लाभ देने वाले दिन हैं।

    - इनके लिए पीला, सुनहरा, भूरा रंग काफी फायदेमंद है।

    - तांबा और सोना से इन्हें विशेष लाभ प्रदान करता है।

    - इनके लिए पुखराज, पीला हीरा, कहरुवा और पीले रंग के रत्न, जवाहरात आदि लाभदायक हैं।

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  99. 2 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 2 तारीख को हुआ है, वे सभी अंक 2 वाले लोग माने जाते हैं। यह नंबर चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है। चंद्रमा रचनात्मकता और कल्पनाशीलता का प्रतिनिधित्व करता है। चंद्रमा के सभी गुण अंक 2 वाले में विद्यमान रहते हैं।

    जिस प्रकार चंद्रमा को चंचलता का प्रतीक माना जाता है कि ठीक उसी प्रकार अंक 2 वाले भी चंचल स्वभाव के होते हैं। चंद्र के प्रभाव से ये लोग प्रेम-प्रसंग में भी पारंगत रहते हैं।

    - इस अंक के लोगों के लिए रविवार, सोमवार और शुक्रवार काफी शुभ दिन होते हैं।

    - इनके लिए हरा या हल्का हरा रंग बेहद फायदेमंद है। क्रीम और सफेद रंग भी विशेष लाभ देते हैं।

    - लाल, बैंगनी या गहरे रंग इनके लिए अच्छे नहीं होते।

    - अंक 2 वाले लोगों को मोती, चंद्रमणि, पीले-हरे रत्न पहनना चाहिए।

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  100. 3 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 3 तारीख को हुआ है, वे लोग अंक 3 के व्यक्ति माने जाते हैं। अंक 3 वाले लोग काफी महत्वाकांक्षी होते हैं।

    अंक तीन का ग्रह स्वामी गुरु अर्थात बृहस्पति है। ज्योतिष और न्यूमरोलॉजी के अनुसार इस अंक से संबंधित लोगों को बृहस्पति विशेष रूप से प्रभावित करता है। यह लोग अधिक समय तक किसी के अधीन कार्य करना पसंद नहीं करते, ये लोग उच्च आकांक्षाओं वाले होते हैं।

    इनका लक्ष्य उन्नति करते जाना होता है, अधिक समय एक जगह रुककर यह कार्य नहीं कर सकते। इन्हें बुरी परिस्थितियों से लडऩा बहुत अच्छे से आता है।

    - इनके लिए मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार अधिक शुभ होते हैं।

    - हर माह की 6, 9, 15, 18, 27 तारीखें इनके लिए विशेष रूप से लाभदायक हैं।

    - इन लोगों की अंक 6 और अंक 9 वाले व्यक्तियों से काफी अच्छी मित्रता रहती है।

    - रंगों में इनके लिए बैंगनी, लाल, गुलाबी, नीला शुभ होते है।

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  101. 4 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिस व्यक्ति का जन्म किसी भी माह की 4 तारीख को हुआ हो, उसका मूलांक 4 होता है। अंक ज्योतिष के अनुसार ऐसे व्यक्ति एक विशेष प्रकार के चरित्र वाले होते हैं। इस अंक का स्वामी यूरेनस होता है।

    अंक 4 के लोग काफी संवेदनशील होते हैं। इन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है। छोटी-छोटी बातों पर बुरा मान जाते हैं। इस स्वभाव की वजह से इनके ज्यादा मित्र नहीं होते हैं। मित्र कम होने से ये लोग अधिकांश समय अकेलापन महसूस करते हैं। ये किसी को दुखी नहीं देख सकते हैं।

    - अंक 4 वाले लोगों के लिए रविवार, सोमवार और शनिवार भाग्यशाली दिन होते हैं।

    - इनके लिए 1, 2, 7, 10, 11, 16, 18, 20, 25, 28, 29 तारीखें विशेष लाभ प्रदान करने वाली होती हैं।

    - इन्हें नीला और ब्राउन कलर काफी फायदा पहुंचाता है अत: इन्हें इस रंग के कपड़े पहनना चाहिए।

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  102. 5 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन व्यक्तियों का जन्म 5 तारीख को हुआ हो, वे सभी मूलांक 5 के लोग होते हैं। अंक ज्योतिष के अनुसार अंक 5 का स्वामी बुध ग्रह है। बुध ग्रह बुद्धि और विवेक का प्रतिक है। बुध के प्रभाव से इस अंक के व्यक्ति काफी बुद्धिमान और तुरंत निर्णय लेने वाले होते हैं।

    अंक 5 वाले काफी स्टाइलिश होते हैं और वैसे ही कपड़े पहनना पसंद करते हैं। इनकी सभी लोगों से बहुत जल्द दोस्ती हो जाती है और ये अच्छी दोस्ती निभा भी सकते हैं। दोस्तों के लिए यह जितने उदार और शुभचिंतक होते हैं, ठीक इसके विपरीत दुश्मनों के लिए उतने ही बुरे होते हैं।

    - इन लोगों के लिए बुधवार और शुक्रवार शुभ होते हैं।

    - रंगों में इनके लिए हल्का ब्राउन, सफेद और चमकदार रंग बेहद लाभदायक हैं।

    - इन्हें गहरे रंग के कपड़े कम से कम पहनना चाहिए।

    - इनके लिए 5, 14, 23 तारीखें भाग्यशाली होती हैं।

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  103. 6 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 6 तारीख को हुआ है, वे सभी अंक 6 वाले माने जाते हैं। अंक ज्योतिष के अनुसार अंक 6 का स्वामी शुक्र ग्रह है। शुक्र ग्रह से प्रभावित व्यक्ति काफी ग्लैमरस और हाई लाइफ स्टाइल के साथ जीवन जीते हैं। ऐसे लोगों से कोई भी बहुत ही जल्द आकर्षित हो जाता है। इस वजह से इनके कई मित्र होते हैं और इस अंक के अधिकांश व्यक्तियों के एक से अधिक प्रेम संबंध भी होते हैं।

    अंक 6 के लोग किसी भी कार्य को विस्तृत योजना बनाकर ही करते हैं, जिससे इन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है। यह लोग स्वभाव से थोड़े जिद्दी होते हैं। जो कार्य शुरू करते हैं, उसे पूरा करने के बाद ही इन्हें शांति मिलती है।

    - इनके लिए मंगलवार, गुरुवार, शुक्रवार शुभ दिन होते हैं। इन दिनों से शुरू किए गए कार्यों में इन्हें सफलता अवश्य प्राप्त होती है।

    - किसी भी माह की 3, 6, 9, 12, 15, 18, 21, 24, 27, 30 तारीख के दिन शुभ होते हैं।

    - इन लोगों के लिए बैंगनी और काला रंग अशुभ है। इन्हें लाल या गुलाबी शेड्स के कपड़े पहनने चाहिए।

    - इन लोगों की मित्रता 3, 6, 9 अंक वालों से अच्छी रहती है।

    - ये लोग अंक 5 के लोगों से आगे बढऩे का बहुत प्रयास करते हैं, परंतु पीछे रह जाते हैं।

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  104. 7 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन व्यक्तियों का जन्म किसी भी माह की 7 तारीख को हुआ हो, वे अंक 7 वाले होते हैं। इस अंक के स्वामी वरुण देव अर्थात् जल के देवता हैं। जल मूल रूप से चंद्रमा से संबंधित है। इसी वजह से इस अंक के लोगों पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव रहता है।

    अंक 7 लोग स्वतंत्र विचारों वाले और आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं। ये लोग किसी को भी बड़ी आसानी से प्रभावित कर लेते हैं। चंद्र से संबंधित होने के कारण ये मन से बड़े ही चंचल होते हैं। इन्हें मस्ती-मजाक करना पसंद होता है। ये लोग अपने मित्रों का हमेशा मनोरंजन करते रहते हैं। सभी को खुश रखते हैं।

    - अंक 7 वालों के लिए रविवार और सोमवार शुभ दिन होते हैं।

    - इनके लिए माह की 1, 2, 4, 7, 10, 11, 13, 16, 19, 20, 22, 25, 28, 29, 31 तारीखें शुभ फल देने वाली हैं।

    - इनके लिए हरा, पीला, सफेद, क्रीम और हल्के रंग लाभदायक है।

    - इन्हें गहरे रंगों के उपयोग से बचना चाहिए।

    - अंक 7 वालों को भगवान की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन शिवलिंग पर जल चढ़ाना चाहिए।

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  105. 8 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    किसी भी माह की 8 तारीख को जन्म लेने वाले व्यक्ति अंक 8 वाले होते हैं। अंक ज्योतिष के अनुसार ये लोग काफी रहस्यमयी स्वभाव के होते हैं। इन्हें समझना काफी मुश्किल होता है।

    अंक 8 के लोगों का व्यवहार अन्य अंक वालों से बिल्कुल अलग होता है। ये लोग हर बात के लिए बहुत गहराई से सोचते हैं तथा बोलने में स्पष्टवादी होते हैं। इसलिए अपने जीवन में इन्हें कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।

    इस अंक के लोगों में मनोबल एवं आध्यात्मिक शक्ति अधिक होती है। इन लोगों का परमात्मा पर अधिक विश्वास होता है।

    - इन लोगों के लिए शनिवार का दिन विशेष महत्व रखता है। साथ ही, सोमवार और रविवार भी फायदेमंद रहते हैं।

    - इन लोगों के लिए किसी भी माह की 8, 17 और 26 तारीखें बहुत शुभ रहती हैं।

    - इनके लिए गहरा भूरा रंग, नीला, काला और बैंगनी रंग शुभ रहता है।

    - इनके लिए काला नीलम या काला मोती धारण करना शुभ होता है।

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  106. 9 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 9 तारीख को हुआ है, वे अंक 9 के लोग होते हैं। अंक 9 का कारक मंगल ग्रह है और यह अंक मंगल का प्रतीक है। मंगल के प्रभाव से इन लोगों को गुस्सा काफी अधिक आता है। ये लोग जल्दबाजी में निर्णय ले लेते हैं और फिर बाद में बुरा परिणाम झेलना पड़ता है।

    सामान्यतः: अंक 9 के लोग स्वप्रेरित होते हैं। खुद की प्रेरणा से कार्य करते हैं। ये लोग अपने गुस्से के कारण समाज में कई शत्रु बना लेते हैं। इन लोगों को दूसरों पर नियंत्रण रखना पसंद होता है, लेकिन जब इनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो पाती है तो संबंधित कार्य से हट जाते हैं।

    - अंक 9 वाले लोगों के लिए 3, 6, 9, 12, 15, 18, 21, 24, 27 और 30 तारीखें विशेष फायदेमंद रहती है।

    - इन लोगों को अपने क्रोध पर काबू रखना चाहिए। गुस्से पर नियंत्रण करने के बाद इन्हें कार्यों में कई उपलब्धियां हासिल हो जाती हैं।

    - इन लोगों के लिए रूबी रत्न धारण करना फायदेमंद रहता है। यह रत्न ऐसे धारण करना चाहिए कि ये हमेशा शरीर से स्पर्श होता रहे।

    - इनके लिए शुक्रवार, बृहस्पतिवार, मंगलवार शुभ दिन होते हैं।

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  107. 10 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की तारीख 10 को हुआ है, वे लोग रचनात्मक और खोज करने वाले होते हैं। इस अंक का कारक ग्रह सूर्य है। सूर्य के कारण इस अंक के लोगों को समाज में पूर्ण मान-सम्मान प्राप्त होता है।

    इस अंक के लोग अपनी सफलता के मार्ग में आने वाली हर बाधा पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। ये लोग अति महत्वाकांक्षी होते हैं। ये लोग जिस भी क्षेत्र में कार्य करते हैं, सफलताएं और ऊंचाइयां प्राप्त करते हैं। इस अंक वाले लोग सम्मान के भूखे होते हैं और अत्यधिक सम्मान प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं।

    - इस अंक के लोगों के लिए रविवार और सोमवार विशेष लाभ देने वाले दिन हैं।

    - इनके लिए पीला, सुनहरा, भूरा रंग काफी फायदेमंद है।

    - इन्हें तांबा और सोना धातु धारण करना चाहिए, इससे विशेष लाभ प्राप्त होता है।

    - इनके लिए पुखराज, पीला हीरा, कहरुवा और पीले रंग के रत्न, जवाहरत आदि लाभदायक हैं।

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  108. 11 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    अंक ज्योतिष के अनुसार इस अंक के लोगों की कल्पनाशक्ति और रचनात्मक क्षमता काफी अधिक होती है। इस अंक का कारक ग्रह चंद्र है। ये लोग चंद्र के प्रभाव से हर कार्य को अच्छे और बेहद ही आकर्षक तरीके से करते हैं। हर पल नया करने के लिए लालायित रहते हैं। ये लोग काफी रोमांटिक स्वभाव के होते हैं और विपरीत लिंग के प्रति बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। अन्य लोग भी इनके व्यक्तित्व और कार्यशैली से इन पर मोहित हो जाते हैं। इस अंक के कुछ लोग शारीरिक दृष्टि से अधिक बलवान नहीं होते हैं, वे सामान्य शरीर वाले होते हैं।

    - इस अंक के लोगों के लिए रविवार, सोमवार और शुक्रवार काफी शुभ दिन हैं।

    - इनके लिए हरा या हल्का हरा रंग बेहद फायदेमंद है। क्रीम और सफेद रंग भी विशेष लाभ देते हैं।

    - लाल, बैंगनी या गहरे रंग इनके लिए अच्छे नहीं होते।

    - इस अंक वालों को मोती, चंद्रमणि, पीले-हरे रत्न पहनना चाहिए।

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  109. 12 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    इस अंक के व्यक्ति बहुत भावुक होते हैं और अनुशासन बहुत पसंद करते हैं। इस अंक के लोगों की यही मानसिकता होती है कि इन्हें निरंतर प्रगति करना है। इस अंक का कारक ग्रह बृहस्पति है। इनके लिए जीवन का लक्ष्य हर समय खुश रहना और दूसरों को भी खुश रखना है। ये लोग स्वभाव से बहुत मनमौजी होते हैं। अपने से बड़ों के आदेशों का पालन करते हैं और चाहते हैं कि इनके आदेशों का पालन भी उसी तरह किया जाए।

    - इनके लिए मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार अधिक शुभ होते हैं।

    - हर माह की 6, 9, 15, 18, 27 तारीखें विशेष लाभदायक हैं।

    - इन लोगों की अंक 6 और अंक 9 वाले व्यक्तियों से काफी अच्छी मित्रता रहती है।

    - इनके लिए बैंगनी, लाल, गुलाबी, नीला रंग शुभ होता है।

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  110. 21 तारीख को जन्म लेने वाले लोग

    जिन लोगों का जन्म किसी भी माह की 21 तारीख को हुआ है, वे लोग अपनी अलग ही विशेषता के कारण प्रसिद्ध होते हैं। सामान्यत: इस अंक के लोग काफी महत्वकांक्षी होते हैं। इस अंक का ग्रह स्वामी गुरु है। गुरु के प्रभाव से ये लोग किसी उच्च पद को प्राप्त करते हैं। इन्हें किसी भी प्रकार का दबाव पसंद नहीं होता है। यदि काम को लेकर इन पर दबाव बनाया जाता है तो ये लोग खीजने लग जाते हैं।

    इस अंक के लोग हर क्षेत्र में ऊंचाई पर पहुंचते हैं। इन्हें मेहनत अधिक करना होती है, परंतु अंतत: सफलता प्राप्त कर लेते हैं।

    - इनके लिए मंगलवार, गुरुवार और शुक्रवार अधिक शुभ होते हैं।

    - हर माह की 6, 9, 15, 18, 27 तारीखें इनके लिए विशेष रूप से लाभदायक हैं।

    - इन लोगों की अंक 6 और अंक 9 वाले व्यक्तियों से काफी अच्छी मित्रता रहती है।

    - रंगों में इनके लिए बैंगनी, लाल, गुलाबी, नीला शुभ होते है।

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  111. शनिवार या किसी भी संकट के दौर में सवेरे स्नान के बाद यथासंभव हनुमान मंदिर में या फिर घर पर हनुमानजी को सिंदूर, लाल फूल व नारियल चढ़ाकर गुग्गल धूप लगाएं। आटे से बने दीपक में गाय के घी का दीप प्रज्जवलित कर इस हनुमान मंत्र स्तुति का स्मरण संकटमोचन की कामना से करें-

    हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
    रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोमितविक्रम:।।
    उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
    लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा।।
    एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन:।
    स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत्।।
    तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत्।।

    इस खास मंत्र स्तुति में श्रीहनुमान के 12 नाम, उनके गुण व शक्तियों को भी उजागर करते हैं । ये नाम है - हनुमान, अञ्जनीसुत, वायुपुत्र, महाबली, रामेष्ट यानी श्रीराम के प्यारे, फाल्गुनसख यानी अर्जुन के साथी, पिंगाक्ष यानी भूरे नयन वाले, अमित विक्रम, उदधिक्रमण यानी समुद्र पार करने वाले, सीताशोकविनाशक, लक्ष्मणप्राणदाता और दशग्रीवदर्पहा यानी रावण के दंभ को चूर करने वाले।

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  112. यदि किसी व्यक्ति की कुंडली वृश्चिक लग्न की हो और उसके प्रथम भाव बुध स्थित हो तो व्यक्ति को सुंदर शरीर प्राप्त होता है। ऐसे लोग दिखने में आकर्षक और प्रभावशाली होते हैं। वृश्चिक लग्न की कुंडली में प्रथम भाव वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल है। कुंडली का पहला स्थान शरीर का कारक स्थान होता है। यहां बुध होने पर व्यक्ति शारीरिक श्रम द्वारा श्रेष्ठ लाभ प्राप्त कर लेता है। ऐसे लोगों को जीवन साथी की ओर से कुछ परेशानियां हो सकती हैं।

    वृश्चिक लग्न की कुंडली के द्वितीय भाव में बुध हो तो...

    कुंडली का द्वितीय भाव घर-परिवार और धन का कारक स्थान होता है। यहां बुध होने पर व्यक्ति को धन संचय में श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होता है। वृश्चिक लग्न की कुंडली का द्वितीय भाव धनु राशि का स्वामी है और उसका स्वामी गुरु है। गुरु की इस राशि में बुध होने पर कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हालांकि इन लोगों का जीवन पूरे ऐश और आराम से व्यतीत होता है।

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  113. ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत कई प्रकार की विद्याएं बताई गई हैं, इन विद्याओं में से हस्तरेखा अध्ययन भी एक विद्या है। वैसे तो हथेली की रेखाओं का अध्ययन कर पाना काफी मुश्किल कार्य है, लेकिन सिर्फ हथेली का रंग देखकर ही व्यक्ति के नेचर की कई बातें मालूम की जा सकती हैं।

    हथेली के रंग- सभी लोगों की हथेलियों का रंग अलग-अलग होता है। किसी व्यक्ति की हथेली लाल या गुलाबी होती है तो किसी की हथेली पीले रंग की होती है। कुछ लोगों की हथेली मटमैले रंग की होती है, किसी की हथेली सफेद रंग की दिखाई देती है।

    हस्तरेखा ज्योतिष के अंतर्गत हथेली की रेखाओं, हथेली की बनावट, हथेली और उंगलियों की लंबाई, हथेली तथा रेखाओं का रंग आदि बातों पर विचार करके व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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  114. गहरा गुलाबी- जिस व्यक्ति की हथेली का रंग गहरा गुलाबी दिखाई देता है, वह शाही सुख प्राप्त करने वाला होता है। यदि इन लोगों की छोटी-छोटी बातें भी पूरी नहीं होती हैं तो इन्हें क्रोध आ जाता है। हालांकि, ये लोग बहुत जल्दी खुश भी हो जाते हैं। इन लोगों के विचार बदलते रहते हैं, आज जिस बात को सही बता रहे हैं, उसी बात को कल गलत भी बता सकते हैं।

    हल्का गुलाबी- जिन लोगों की हथेली का रंग हल्का गुलाबी दिखाई देता है, वे लोग अच्छे स्वभाव और उच्च विचारों वाले होते हैं। घर-परिवार और समाज में अपने गुणों के कारण मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। किसी भी कार्य को पूर्ण धैर्य और शांति के साथ पूर्ण करते हैं। इस प्रकार की हथेली वाले लोग हर हाल में सदैव प्रसन्न रहते हैं।

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  115. निस्तेज सफेद रंग- निस्तेज सफेद रंग का अर्थ है कि ऐसा सफेद रंग जिसमें किसी प्रकार की चमक ना हो, आभाहीन सफेद रंग की हथेली, सूखी-सूखी हथेली दिखाई देना। जिन लोगों की हथेली ऐसी होती है, वे उत्साही नहीं होते हैं। किसी भी कार्य के प्रति इन लोगों में कोई उत्साह नहीं होता है। आमतौर पर ऐसे लोग अकेले में रहना पसंद करते हैं। किसी भी समारोह या पार्टी में इनका मन नहीं लगता है।
    कार्यों के प्रति अकर्मठ रहते हैं, इस वजह से इन्हें महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं हो पाती है। इनके जीवन में धन की कमी बनी रहती है। इस कारण इनके जीवन में अधिकांश समय कठिन परिस्थितियां रहती हैं।

    चमकदार सफेद रंग- जिन लोगों की हथेली सफेद रंग की है और वह चमकदार है, सुंदर दिखाई देती है तो ऐसे लोगों का मन आध्यात्म की ओर होता है। इस प्रकार की हथेली वाले लोग अद्भुत शक्तियों के मालिक होते हैं। कार्यों को पूरी तन्मयता और उत्साह के साथ पूर्ण करते हैं। ये लोग शांति प्रिय होते हैं।

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  116. यदि किसी व्यक्ति की हथेली का रंग पीला दिखाई देता है तो यह शुभ नहीं होता है। पीले रंग की हथेली व्यक्ति की कमजोरी की ओर इशारा करती है। ऐसी हथेली वाले लोगों को कई प्रकार की बीमारियां होने का भय बना रहता है। पीले रंग की हथेली बताती है कि व्यक्ति विपरीत लिंग की ओर बहुत जल्दी आकर्षित हो जाता है।

    यदि किसी स्त्री की हथेली का रंग पीला है तो वह पुरुष की ओर जल्दी आकर्षित हो जाती है और यदि किसी पुरुष की हथेली का रंग पीला है तो वह किसी स्त्री की ओर जल्दी आकर्षित हो जाता है।

    इस प्रकार की हथेली वाले लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां रखनी चाहिए। खान-पान में किसी भी प्रकार असावधानी इन्हें बहुत जल्दी बीमारी कर सकती है।

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  117. जिन लोगों की हथेली का रंग लाल होता है, साथ ही हथेली चमकदार और चिकनी दिखाई देती है तो उन लोगों पर महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। ऐसे लोगों के जीवन में सभी सुख-सुविधाएं रहती हैं।

    हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार लाल रंग की हथेली बहुत शुभ होती है। ऐसी हथेली वाले लोगों को समाज में मान-सम्मान भी मिलता है। आमतौर पर ऐसी हथेली वाले लोग उच्च स्तरीय कार्य करते हैं। ये लोग अधिक शारीरिक श्रम से बचे रहते हैं।

    लाल रंग की हथेली वाले लोग स्वभाव से भावुक और थोड़े क्रोधी होते हैं। कभी-कभी इन्हें छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आ जाता है। साथ ही, इन लोगों के विचारों में अस्थिरता रहती है।

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  118. हथेली का रंग मटमैला होना
    जिन लोगों की हथेली मटमैले रंग की होती है, वे जीवन में अधिकांश समय दरिद्रता का सामना करते हैं। धन की कमी के कारण ये लोग निराश हो जाते हैं। ऐसी हथेली वाला व्यक्ति कड़ी मेहनत के बाद भी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते हैं। आमतौर पर ऐसे लोग कार्यों में झूठ का सहारा भी लेते हैं। इन्हें अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए।

    हथेली पर दाग-धब्बे होना
    यदि किसी व्यक्ति की हथेली पर दाग-धब्बे दिखाई देते हैं तो वे लोग नशे की लत के शिकार हो सकते हैं। ऐसे लोगों का जीवन सामान्यत: सुख-सुविधाओं के अभाव में व्यतीत होता है।

    ध्यान रखें, हस्तरेखा से भविष्य देखने के लिए दोनों हाथों की पूरी स्थिति का अध्ययन अतिआवश्यक है। इसके बाद ही कोई सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है।

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  119. सामुद्रिक शास्त्र के विद्वानों के अनुसार शरीर के रंग के आधार पर भी मनुष्य के स्वभाव के बारे में जाना जा सकता है। स्थान, प्रकृति तथा अनुवांशिकता के अनुसार मनुष्य काशरीर मुख्य रूप से तीन रंगों का होता है, जिन्हें हम साधारण बोलचाल की भाषा में गोरा, गेहुंआ (सांवला) व काला कहते हैं। इनके आधार पर हम किसी भी मनुष्य के स्वभाव का आंकलन कर सकते हैं। जानिए किस रंग के लोग कैसे स्वभाव वाले होते हैं-

    - समुद्र शास्त्र के अनुसार काले रंग के लोगपूर्ण स्वस्थ, दृढ़ परिश्रमी, तमोगुणी एवं क्रोधी होते हैं। इनका बौद्धिक विकास कम होता है, जिसके परिणामस्वरूप वे सभी सामाजिक परंपराओं, संस्कारों एवं मर्यादाओं से दूर, उत्तेजित, हिंसक, कामी, हठी एवं आक्रामक तथा अपराधी प्रवृत्ति के होते हैं।

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  120. कदम काले रंग से प्रभावित स्त्रियों के संबंध में समुद्र शास्त्र में वर्णन है कि अत्यधिक काले रंग के नेत्र, त्वचा, रोम, बाल, होंठ, तालु एवं जीभ आदि जिन स्त्रियों के हों, वे निम्न वर्ग में आती है। इस वर्ण की स्त्रियां स्वामीभक्त और बात को अंत तक निभाने वाली एवं निर्भिक होती है।

    रति में पूर्ण सहयोग और आनन्द देती हैं। विश्वसनीय, उत्तम मार्गदर्शिका और प्यार में बलिदान देने वाली होती हैं। इनके प्यार में धूप सी गर्मी व चंद्रमा सी शीतलता पाई जाती है। यही इनका गुण होता है।

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  121. समुद्र शास्त्र के अनुसार गोरे रंग के लोगो में मुख्य रूप से दो भेद होते हैं हैं। प्रथम में लाल एवं सफेद रंग का मिश्रण होता है जिसे हम गुलाबी कहते हैं। ऐसे लोगमृदु स्वभाव, बुद्धिमान, साधारण परिश्रमी, रजोगुणी एवं अध्ययन तथा विचरण प्रेमी होते हैं। ऐसे लोगदिखने में सुंदर तथा आकर्षक होते हैं तथा सभी को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम होते हैं।

    - दूसरे भेद में लाल व पीले रंग का मिश्रण होता है, जिसे पिंगल कहा जाता है। ऐसे जातक परिश्रमी, धैर्यवान, सौम्य, गंभीर, रजोगुणी, भोगी, समृद्ध एवं व्यवहार कुशल होते हैं। देखने में आता है कि ऐसे जातक बीमार रहते हैं तथा इन्हें रक्त संबंधी बीमारी अधिक होती है।

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  122. विद्वानों की मान्यता है कि सफेद या पीले रंग से संयुक्त लाल रंग के नाखून, तालू, जीभ, होंठ, करतल तथा पदतल वाली स्त्री धन-धान्य से युक्त, उदार एवं सौभाग्यवती होती है।

    - समुद्र शास्त्र के अनुसार विश्व में सबसे ज्यादा सांवले रंग के लोग होते हैं। इसे काले रंग से युक्त कहा जाता है क्योंकि यह एकदम गहरा काला रंग न होकर सफेद एवं लाल रंग से मिश्रित काला होता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार इसके दो भेद होते हैं। प्रथम के अंतर्गत रजोगुण प्रधानता के साथ तमोगुण की हल्की सी प्रवृत्ति होती है। ऐसे जातक अस्थिर, परिश्रमी और कभी सुस्त, सामान्य बुद्धि वाले, सामान्य समृद्ध तथा सामान्य अध्ययन-मनन एवं चिंतनप्रिय तथा प्राय: उच्च मध्यम वर्ग के होते हैं।

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  123. सांवले रंग के प्रथम वर्ण के विपरीत द्वितीय वर्ण वालों में उपरोक्त गुणों में कुछ न्यूनता आ जाती है अत: उस वर्ग को निम्न मध्यम वर्ग में रखा जाता है।

    - इस वर्ण का प्रभाव स्त्रियों पर भी उसी प्रकार का होता है। फिर भी विशेष स्थिति में वे गृहस्थी के उतार-चढ़ाव में निंरतर संघर्षरत, धैर्यसम्पन्न, सहनशील, उदार, चंचल, भोगी एवं विश्वस्त होती हैं।

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  124. यज्ञ वृष्टी का जनक है व रोगों का नाशक है। मानसिक रोगों का शरिरिक रोगों से संबंध तुलसी दास जी द्वारा उत्तर खण्ड में दिया गया है। धर्म के बिना स्वास्थ्य असम्भव है और स्वास्थ्य के बिना धर्म असंभव है। ज्योतिष शास्त्र में 6 ग्रहों का संबंध स्वास्थ्य से माना गया है। इन ग्रहों के दुष्प्रभाव हेतु निम्न विधान है-

    1 यदि सूर्य कमजोर है तो आकड़े का यज्ञ करवाएं।

    2 चन्द्र ग्रह कमजोर हो तो पलास की लकड़ी जलाएं।

    3 मंगल ग्रह कमजोर हो तो खदीर की लकड़ी का हवन करें।

    4 बुध ग्रह कमजोर हो तो अपामार्ग की आहुति दें।

    5 बृहस्पति कमजोर हो तो पीपल की लकड़ी की आहुति दें।

    6 शुक्र ग्रह कमजोर हो तो गूलर की लकड़ी की आहुति दें।

    7 शनि वात ग्रह है उसको शांत करने के लिए खेजड़े की लकड़ी का हवन करने से उनसे संबंधित किटाणु नाश होते हैं।

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  125. हर किसी व्यक्ति को खुशबु अच्छी लगती है, जिस ओर से ये खुशबु आ रही हो हम उसी ओर खिचें चले जाते हैं। खुशबू तन मन दोनों को महकाती है, इसको लगाने के बाद हर व्यक्ति कुछ खास और अलग सा महसूस करता है। क्या आप जानते हैं इत्र से किसी को भी वशीभूत किया जा सकता है और इत्र की खुशबू से आप आपनी किस्मत भी बदल सकते हैं।ज्योतिष के अनुसार अपनी राशि के अनुसार परफ्युम का उपयोग करने से अपनी राशि के स्वामी को खुश कर सकते हैं-


    मेष- इस राशि के जातकों को मोगरे की सुगंध के डियो या परफ्युम लगाने चाहिए।

    वृष- इस राशि के जातकों को चमेली की सुगंध के डियो या परफ्युम लगाने चाहिए।

    मिथुन- इस राशि के जातकों को लेवेंडर की सुगंध के डियो या परफ्युम लगाने चाहिए।

    कर्क- इस राशि के जातकों को गुलाब की खुशबू वाले परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

    सिंह- इस राशि के जातकों को मिठी खुशबु यानी चॉकलेट फ्लेवर वाले परफ्युम लगाने चाहिए।

    कन्या- इस राशि के जातकों को बादाम की सुगंध वाले परफ्युम और डियोड्रेंट लगाने चाहिए।

    तुला- इस राशि के जातकों को चॉकलेट और चमेली की सुगंध वाले परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

    वृश्चिक- इस राशि के जातकों को रोजमेरी की सुगंध वाले परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

    धनु- इस राशि के जातकों को चंदन की सुगंध वाले परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

    मकर- इस राशि के जातकों को एनर्जेटीक सुगंध वाले परफ्युम जैसे लेमन फ्लेवर आदि परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

    कुंभ- इस राशि के जातकों को एक्वा फ्लेवर वाले परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

    मीन- इस राशि के जातकों को कस्तुरी जैसी सुगंध वाले परफ्युम और डियो लगाने चाहिए।

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  126. ज्योतिषशास्त्र में नवग्रहों से निर्मित योगों के आधार पर पितृदोष की भविष्यवाणी की जाती है। नवग्रहों में बृहस्पति और शनि क्रमश: आकाश और वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि राहु चुंबकीय क्षेत्र का, सूर्य पिता का, चंद्र माता का, शुक्र पत्नी का और मंगल भाई का प्रतिनिधित्व करता है। राहु एक छाया ग्रह है और प्रेतात्माएं भी छाया रूप में ही विद्यमान रहती हैं।

    अत: कुंडली में राहु की स्थिति पितृ दोष का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण है। यदि राहु सूर्य के साथ युति करे तो सूर्य को ग्रहण लगेगा। सूर्य पिता का कारक होने के कारण पितृदोष का कारण बनेगा तथा राज्य का कारक होने से राज्य पक्ष से नुक्सान पहुंचाएगा। इसी प्रकार माता के कारक चंद्र की राहु और सूर्य से युति मातृ दोष का कारण बनेगी जिससे भूमि, भवन और वाहन से कष्ट की आशंका बनी रहेगी, चंद्रमा मन का कारक होने से मन में अनावश्यक घबराहट के कारण असफलता एवं मानसिक तनाव रहेगा।


    जन्म कुंडली में बारहवां भाव, सूर्य-शनि की युति और राहु का प्रभाव पितृदोष का कारण बनता है। सूर्य नीचगत, शत्रुक्षेत्रीय अथवा राहु-केतु के साथ द्वादश भाव में स्थित हो तो पितृदोष बनता है। जिनकी जन्मकुंडली में पितृ दोष विद्यमान हो वे पितृपक्ष में श्राद्ध-तर्पण करें

    ॐ ऐं पितृदोष शमनं ह्रीं ॐ स्वधा’

    मंत्र का जप करें। नारायण गया श्राद्ध, विष्णु श्राद्ध, नान्दीमुख श्राद्ध कराएं। रुद्राभिषेक कराएं। शैय्या दान करें। लोकहितार्थ तालाब, पुल, नल या प्याऊ आदि लगवाने चाहिएं। ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन, वस्त्र, फल, दक्षिणा आदि का दान करें। किसी निर्धन और जरूरतमंद व्यक्ति को तिल दान करें।

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  127. आज के दौर में सबसे बड़ी चुनौती है करियर का निर्माण। सही विषय के चयन में थोड़ी-सी भी चूक आपकी मंजिल को आपसे कोसों दूर ले जाती है। इसलिए करियर के शुरूआती दिनों में ही कुंडली पर जरूर गौर करना चाहिए। कुंडली के द्वितीय व चतुर्थ भाव से शिक्षा का व पंचम भाव से बु़िद्ध व स्मरण शक्ति का विचार किया जाता है। दशम भाव से विद्या, यश का विचार किया जाता है। कम्पीटीशन टैस्ट में उत्तीर्ण होने अथवा न होने का विचार दशम स्थान से होता है। करियर निर्धारण में कुंडली के द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम व दशम भाव विचारणीय हैं।

    यदि पंचम स्थान का स्वामी बुध हो और वह किसी शुभ ग्रह के साथ हो, यदि शुभ ग्रह दृष्ट हो, यदि बुध उच्च राशि में हो, यदि बुध पंचमस्थ हो, पंचमेश जिस नवांश में हो, उसका स्वामी केद्र्रगत हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो इन योगों में से किसी भी योग के रहने से जातक समझदार, बुद्धिमान (इंटैलीजैंट) होता है। चतुर्थ भाव से सामान्य शिक्षा, नवम भाव से उच्च शिक्षा या तकनीकी क्षेत्र से संबंधित शिक्षा एवं एकादश (लाभ) भाव से शिक्षा प्राप्ति तथा शिक्षा में सफलता जानी जाती है।

    दशम भाव से करियर का विचार किया जाता है यानी जातक को किस कर्म अथवा किस व्यापार द्वारा सफलता प्राप्त होगी इन सबका विचार दशम भाव से ही होता है। लग्न से जातक का शरीर, चंद्रमा से मन और सूर्य से आत्मा का विचार होता है। लग्न स्थान से दशम स्थान मनुष्य के शारीरिक परिश्रम द्वारा कार्य सम्पन्नता, चंद्रमा से दशम स्थान द्वारा जातक की मानसिक वृत्ति के अनुसार कार्य सम्पन्नता का एवं सूर्य से आत्मा की प्रबलता का ज्ञान होता है। लग्न और चंद्रमा में जो बली हो, उससे दशम भाव द्वारा कर्म और जातक के करियर का विचार किया जाता है। यदि चंद्रमा और लग्न इन दोनों में से दशम स्थान पर कोई ग्रह न हो तो सूर्य से, दशम स्थान में स्थित चंद्रमा से और सूर्य से दशम स्थान में कोई ग्रह न हो तो ऐसी स्थिति में दशम स्थान के स्वामी के नवांशपति से करियर का विचार किया जाता है। तीनों स्थानों से आजीविका का विचार किया जाता है। उन तीनों स्थानो में से जो बली हो उसके दशम स्थान में स्थित ग्रह से अथवा उसके दशमेश के नवांशपति के अनुसार जातक की मुख्य आजीविका होती है।

    स्वामी ग्रहों के अनुसार करियर
    सूर्य ग्रह वाला जातक वित्त, जवाहरात, बीज विक्रेता, चमड़े की वस्तुओं का निर्माता और एंटीबायोटिक मैडीसिन के निर्माता, स्कूल व कॉलेज प्रबन्धक, मैनेजमैंंट कंसलटैंट, फार्मासिस्ट, सामाजिक कार्यकर्ता जैसे क्षेत्रों में सफलता पाता है।
    चंद्रमा चंद्र ग्रह वाले जातक रिसैप्शनिस्ट, लेखक, लाइब्रेरियन, गार्मैंट डिजाइनर, ड्रैस डिजाइनर, ट्यूटर, सलाहकार, सूचना अधिकारी, ट्रैवल एजैंट, करियर कौंसलर, आयात-निर्यातकर्ता, प्रकाशक, काव्य सृजक, पत्रकार इत्यादि क्षेत्रों में सफलता पाते हैं।

    मंगल ग्रह वाला जातक सैन्य अधिकारी, प्रॉपर्टी डीलर, जासूस, सर्जन, मैडिकल शॉप, पुलिस अधिकारी, प्रोफैशनल खिलाड़ी, हैल्थ वर्कर, सिक्योरिटी सर्विस आदि कार्य करते हैं। ये अपने करियर में निर्भीक होते हैं।

    बुध ग्रह वाले सी.ए., लेख विश्लेषक, क्लर्क, प्रकाशक, हॉबी क्लास टीचर, इन्वैस्टमैंंट प्रबंधक, रीटेल शॉप, जनरल स्टोर, स्किन केयर, एकाऊंट्स, एग्जीक्यूटिव, बुक बाइन्डर, बैंककर्मी, इवैंट आयोजक इत्यादि होते हैं।
    बृहस्पति ग्रह वाले साहित्य संस्थाओं के अधिकारी, वैेबपेज डिजाइनर, संगठन प्रबंधक, आर्किटैक्ट, व्यवसायी, संपादक, राजनीतिज्ञ, कम्प्यूटर प्रोग्रामर, वकील, कॉलेज प्रोफैासर, न्यायाधीश, होटल प्रबंधक, प्रशासक आदि होते हैं।

    शुक्र ग्रह वाले मीडिया प्लानर, सर्जन, इंटीरियर डैकोरेटर, फोटोग्राफर, ज्योतिषी, मैरिज ब्यूरो संचालक, टी.वी. एंकर, ब्यूटीशियन, लेडीज टेलर, पर्यटन प्रबंधक आदि कार्य करते हैं।

    शनि ग्रह वाले उत्पादन प्रबंधक, हार्डवेयर इंजीनियर, टैक्नीशियन, वैज्ञानिक, शोधकर्ता, विदेशी भाषा अनुवादक, कंप्यूटर प्रोग्रामर, प्राइवेट डिटैक्टिव, लैब टैक्नीशियन, स्टील फैक्ट्री मालिक आदि कार्य करते हैं।

    राहु ग्रह वाले वैंचर कैपिटलिस्ट, फिजियोथैरेपिस्ट, शेयर ब्रोकर, राजनीतिज्ञ, होटलकर्मी, ऑटो पाट्र विक्रेता, शराब ठेकेदार, फिल्म निर्माता, नशीले पदार्थों का उत्पादक आदि कार्य करते हैं।

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  128. शनिवार के दिन शनि देव को आनंदित करने से जातक को सब दिशाओ में विजय, धन, काम सुख और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में वर्णित है समस्त देवी-देवताओं की पूजा सुबह के उजाले में संपन्न होती है वहीं शनि ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा संध्या के समय अधिक फलदायी होती है। पूजा करते समय कभी भी सामने से नहीं करनी चाहिए इससे शनि की वक्र दृष्टि का प्रभाव पड़ता है जो शुभ नहीं माना जाता इसलिए इनकी पूजा करते समय हमेशा तिरछा खड़े रहें। व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार संध्या के समय निम्न उपायों का पालन करना चाहिए।

    शनिवार को करें यह काम शनि देंगे पुरस्कार
    1 आपके घर कोई भिखारी कुछ पाने की आशा से आए अथवा राह में मिल जाए तो उसके कुछ मांगने से पूर्व ही उसकी अभिलाषा पूर्ण करें। इससे आपका रूठा भाग्य मानेगा और जीवन सुखमय बन जाएगा।

    2 आपके घर अथवा दफ्तर के सफाई कर्मचारी को मीठा खिलाएं। इससे शनि देव खुश रहेंगे।

    3 काले कुत्ते को रोटी पर सरसों का तेल लगाकर खिलाएं। शनि कृपा होगी।

    4 शनि देव को काले तिल बहुत प्यारे लगते हैं। आज के दिन किसी गरीब को अथवा शनि मंदिर में तिलों का दान करें। ऐसे करने से शनि की प्रतिकुलता अनुकूलता में परिवर्तित हो जाएगी।

    5 शनि से संबंधित किसी भी तरह की चिंता का निवारण करना हो तो शनि मंत्र, शनि स्तोत्र विशेष रूप से शुभ रहते हैं।

    6 धर्म शास्त्रों के अनुसार अयोध्या के राजा महाराज दशरथ ने शनि की साढ़ेसाती की पीड़ा से बचने के लिए शनि स्तोत्र की रचना की थी। जब तक नदी, समुद्र, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी आदि रहेंगे तब तक इस स्तोत्र के जाप से शनि देव अपने भक्तों का कल्याण करते रहेंगे।

    श्री दशरथ कृत स्तोत्र
    नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण् निभाय च।

    नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥

    नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

    नमो विशालनेत्रय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥

    नम: पुष्कलगात्रय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

    नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥

    नमस्ते कोटराक्षाय दुख्रर्नरीक्ष्याय वै नम: ।

    नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥

    नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

    सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ॥5॥

    अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते ।

    नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते ॥6॥

    तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।

    नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥

    ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे ।

    तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥

    देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा: ।

    त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:॥9॥

    प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत ।

    एवं स्तुतस्तदा सौरिग्र्रहराजो महाबल: ॥10॥

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